Indian Customer रिजर्व बैंक के कार्य

Single केन्द्रीय बैंक के Reseller में ‘‘ Indian Customer रिजर्व बैंक’’ पारम्परिक कार्यों के साथ विविध प्रकार के विकास And प्रचार के कार्य भी करता है। Indian Customer रिजर्व बैंक, अधिनियम 1934, के According यह विविध कार्य करता है जैसे नोट जारी करने वाला प्राधिकारी, सरकार का बैंकर, बैंको का बैंकर, इत्यादि। हमारे देश की मुद्रा में Single Resellerये के नोट व सिक्के (सहायक सिक्के सहित) आते है जिन्हे भारत सरकार जारी करती है व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 38 के अनुसर, Single Resellerये के सिक्के व नोटो का प्रसार सरकार केवल Indian Customer रिजर्व बैंक के माध्यम से करती है। नोट जारी करने का Singleाधिकार रिजर्व बैंक को प्राप्त है। Indian Customer रिजर्व बैंक नोट And सरकार Single Resellerये के नोट व सिक्के जारी करती है जिसकी असीमित कानूनी निविदा सरकार द्वारा की जाती है। जनता की Need के According बैंक नोट को बदलने व सिक्को को अन्य मूल्यवर्ग में बदलना Indian Customer रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है।

Indian Customer रिजर्व बैंक के कार्य 

हमारे देश की मुद्रा में सम्मिलित Single Resellerये के नोट व सिक्के (सहायक सिक्के सहित) आते है जिन्हे भारत सरकार जारी करती है व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 38 के According, Single Resellerये के सिक्के व नोटो का प्रसार केवल Indian Customer रिजर्व बैंक के माध्यम से होता है। नोट जारी करने का Singleाधिकार रिजर्व बैंक को प्राप्त है। Indian Customer रिजर्व बैंक नोट व सरकार Single Resellerये के नोट व सिक्के जारी करता है जिसकी असीमित कानूनी निविदा की जाती है। जनता की Need के According बैंक नोट को बदलने व सिक्को को अन्य मूल्यवर्ग में बदलना Indian Customer रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी है।

Indian Customer रिजर्व बैंक अधिनियम के According नोटो को जारी करना और बैंक के सामान्य बैंकिंग कारोबार को दो अलग-अलग विभागों द्वारा Reseller जाता है। निर्गम विभाग की जिम्मेदारी नये नोटो को जारी करने की है। नये नोट जारी करने के लिए विभाग अपनी सम्पत्ति रखता है जो कि बैंकिग विभाग की संपत्ति से अलग होती है। कारोबार बैंकिंग विभाग के अन्र्तगत आता है जो अपने पास मुद्रा का भण्डार रखती है। जरूरत पड़ने पर बैंक विभाग मुद्रा का भण्डार रखती है। जरूरत पड़ने पर , बैंक विभाग मुद्रा का भण्डार उपलब्ध कराता है, निर्गम विभाग से जिसके लिए समान मूल्य की आस्तियां का अन्तरण Reseller जाता है। इसी तरह से बैंकिग विभाग के पास मुद्रा का भण्डार यदि जरूरत से ज्यादा है तो निर्गत विभाग अतिरिक्त मुद्रा को समान मूल्य की आस्तियों से बदल लेता है। निर्गम विभाग की सम्पत्ति जिसके विरूद्व नोट जारी किये जा सकते है, वह है:-

  1. सोने के सिक्के और बहुमूल्य धातुऐं।
  2. विदेशी प्रतिभूतियॉ।
  3. Resellerये के सिक्के।
  4. भारत सरकार की Resellerया प्रतिभूतियां।
  5. विनियमन के बिल व वचनपत्र भारत में देय हो जो कि बैंक द्वारा खरीदे जा सके।

Indian Customer रिजर्व बैंक संशोधन अधिनियम, 1957 के According, बैंक अब रू 200 करोड़ सोने के सिक्को के लायक स्वर्ण बुलियन और विदेशी प्रतिभूतियों की जो सोने का सिक्का और बुलियन के मूल्य रू 115 करोड़ से कम नही होना चाहिए की Single न्यूनतम आरक्षित बनाये रखना चाहिए। रिजर्व बैंक सशक्त है केन्द्रीय सरकार की पूर्व मंजूरी से निर्गत विभाग द्वारा जमा की हुर्इ विदेशी प्रतिभूतियों को कम कर सकता है।

करेंसी चेस्ट

मुद्रा नोटो और सिक्को के वितरण का कार्य रिजर्व बैंक द्वारा प्रशासित Reseller जाता है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिये निर्गम विभाग द्वारा 10 बड़े शहरो में इसका कार्यालय खोला गया। करेंसी चेस्ट (Meansात बाक्स या कंटेनर) है जिसमें नये या पुन:जारी सिक्के , Resellerये के सिक्को के साथ जमा करता है। Indian Customer रिजर्व बैंक, Indian Customer स्टेट बैंक, Indian Customer स्टेट बैंक के साहयक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको, सरकारी भण्डारों व उप भण्डारो के द्वारा करेंसी चेस्टों व कोशों का प्रबन्धन Reseller जाता है। नये नोटो का भण्डार देश भर में फैले हुये करेंसी चेस्ट में रखे जाते है जो अधिकांश मामलों में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंको द्वारा संचालित किये जाते है। करेंसी चेस्ट को बनाये रखने में बैंक व सरकारी भण्डार (कोशागार) के कर्इ लाभ है :-

  1. यदि किसी दिन बैलेंस से अधिक भुगतान हो जाये, तो तुरन्त ही चेस्ट से धन निकाल लिया जाता है। इसी तरह अगर फंड जरूरत से ज्यादा अधिक हो तो, धन को तुरन्त ही जमा कर दिया जाता है। ऐसा करने से धन के भौतिक हस्तान्तरण से बचा जा सकता है। भण्डार व बैंक की शाखायें सापेक्षतया: कम अन्त: शेश के साथ काम करते है।
  2. करेंसी चेस्ट Resellerये व सिक्कों को नोटो से बदलने की सुविधा देती है और छोटे मूल्यवर्ग के नोटो की जगह बड़े मूल्यवर्ग के नोटो की आपूर्ति व निकासी का कार्य करती है साथ ही साथ पुराने व फटे हुये नोटो को बदल कर नये नोट निर्गत करती है।
  3. करेंसी चेस्ट जनता व बैंको को प्रेषण सुविधा भी प्रदान करती है।

सरकार के बैंकर के Reseller में रिजर्व बैंक

केन्द्रीय व राज्य सरकारों के लिये Indian Customer रिजर्व बैंक बैंकर के Reseller में कार्य करता है। धारा 20 के According, सरकारी लेनदेन करना And सार्वजनिक क्षेत्र के ऋण का प्रबन्धन करना Indian Customer रिजर्व बैंक के लिये अनिवार्य है। धारा 21 के द्वारा केन्द्र सरकार को बाध्य Reseller गया है कि अपने समस्त नकद धन को And ब्याज मुक्त जमा राशियों को And धन, धन के प्रेषण, धन के अन्तरण And बैंकिंग लेन देन को वह बैंको को सौंप दे और विशेश Reseller से धारा 21 ए के According Indian Customer रिजर्व बैंक, केन्द्र सरकार And राज्य सरकारो की तरफ से भी उक्त All कार्य करता है। Indian Customer रिजर्व बैंक ने इन कार्यो को करने के लिए केन्द्र व राज्य सरकारो के साथ अनुबन्ध Reseller है। सरकार के साधारण बैंकिंग व्यवसाय को करने के लिये बैंको को किसी प्रकार की पारिश्रमिक नही दी जायेगी। यह सरकार की नकदी ब्याजमुक्त रखती है। सार्वजनिक ऋण के प्रबंधन के लिए बैंक कमीशन प्राप्त करता है। सरकार द्वारा घोशित किये गये स्थानो पर निर्गम विभाग के करेंसी चेस्ट का अनुरक्षण करना और साथ ही साथ पर्याप्त नोट व सिक्के बनाये रखना भी Indian Customer स्टेट की जिम्मेदारी है। धारा 45 के According, रिजर्व बैक के लिए अनिवार्य है कि वह अपने Only प्रतिनिधि के Reseller में Indian Customer स्टेट बैंक की Appointment All स्थानों पर करता है जहां Indian Customer रिजर्व बैंक की कोर्इ शाखा या कार्यालय नही है लकिन वहॉ स्टेट बैंक या उसके सहायक बैंक की शाखा हो। स्टेट बैंक ने अपने सहायक बैको के साथ अभिकरण व्यवस्था के लिये अनुबन्ध स्थापित Reseller है। एजेंसी और उप एजेंसी बैंको के द्वारा सरकार के सामान्य बैंकिग व्यापार का परिचालन करते हैं और उसी के लिए कमीशन प्राप्त करते है। रिजर्व बैंक केन्द्र व राज्य सरकारो को ऐसे माध्यम And प्रकीर्ण अग्रिम देने के लिये अधिकृत है जो कि अग्रिम प्रदान करने की तारीख से 3 महीने के भीतर वापसी योग्य हो। Indian Customer रिजर्व बैंक महत्वपूर्ण आर्थिक और वित्तीय मामलो में सरकार के वित्तीय सलाहकार के Reseller में भी कार्य करता है।

बैंकर्स बैंक के Reseller में रिजर्व बैंक

Indian Customer रिजर्व बैंक All वाणिज्यिक बैंको, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको और सहकारी के लिये Single बैंकर के Reseller में कार्य करता है। इसका संबंध तभी स्थापित हो जाता है जैसे ही बैंक का नाम Indian Customer रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची में शामिल हो जाता है। ऐसे बैको को अनुसूचित बैंक कहा जाता है जो रिजर्व बैक से पुनर्वित्त की सुविधा का लाभ उठा सकते है। 1935 में Indian Customer रिजर्व बैंक के उदघाटन के समय वाणिज्यिक बैको का वर्गीकरण अनुसूचित व गैर अनूसूचित में Reseller गया । इसका उद्देश्य रिजर्व बैक और वाणिज्यिक बैंक के बीच में सुदृढ़ वित्तीय सम्बन्ध स्थापित करना था। इस प्रकार इस अधिनियम के अन्र्तगत बैको को अनुसूचित बैको की सूची में शामिल करने के लिय कुछ शर्ते रखी गयीं । 1966 से राज्य सहकारी बैंको को भी अधिनियम के दूसरी अनूसूची में शामिल कर लिया गया है। 1975 से क्षेत्रीय ग्रामीण बैंको की स्थापना अनुसूचित बैंको में की गयी। सार्वजनिक क्षेत्रों के बैको (स्टेट बैंक समूह सहित) को केन्द्र सरकार द्वारा अनुसूचित बैको के अंतर्गत अधिसूचित Reseller गया है केन्द्र सरकार के द्वारा अनुसूचित बैको की श्रेणी के अन्र्तगत सम्मिलित हैं-

  1. वाणिज्यिक बैंक-Indian Customer और विदेशी
  2. राज्य सहकारी बैंक और
  3. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक ।

अनुसूचित बैंक का मतलब है वह बैक जो Indian Customer रिजर्व बैक अधिनियम 1934 की दूसरी अनुसूची के अन्र्तगत आते है। रिजर्व बैक दूसरी अनुसूची में उन बैको का नाम शामिल करनें के लिये सशक्त है जो भारत में बैंकिंग व्यापार का संचालन करते हो और धारा 42(6) में निर्धारित शर्तो को संतुष्ट करता हो :-

  1. चुकता पूंजी और भण्डार कुल मूल्य के 5 लाख से कम नही होना चाहिए ।
  2. इसे रिजर्व बैक को संतुष्ट करना होगा कि यह अपनी कार्यवाहियों को तरीके से अंजाम नहीं देगा जिससे जमाकर्ताओं के हितों को हानि पहुंचे।
  3. यह
    1. Single राज्य सहकारी बैक;
    2. कम्पनी अधिनियम 1956 के अन्र्तगत कंपनी के Reseller में परिभाषित;
    3. केन्द्रिय सरकार द्वारा इस निमित्त अधिसूचित Single संस्था, या
    4. भारत से बाहर किसी भी जगह पर लागू कानून के तहत निगमित निगम या कम्पनी होनी चाहिए। दूसरी अनुसूची में बैंक का नाम शामिल करने से First, रिजर्व बैंक की संतुष्टि के लिये बैंक को दो शर्तो को पूरा करना होगा 
  1. चुकता पूंजी और भण्डार की न्यूनतम मूल्य :-अधिनियम के According बैंक के पास चुकता पूंजी और भण्डार का कुल मूल्य 5 लाख से कम नही होना चाहिए। इस उद्देश्य के लिये मुल्य का Means है वास्तविक या विनिमय मूल्य न कि अंकित मूल्य जो कि बैंक की पुस्तकों में दिखाया गया है। चुकता पूंजी और भण्डार के वास्तविक मूल्य को खोजने के लिए शेयर धारको की पूंजी (मुक्त भण्डार सहित) का अनुमान लगाया जाता है और बाहरी देनदारियो की राशि को घटाया जाता है। प्रत्येक परिसम्पत्ति का निरीक्षण And परिवीक्षण या छानबीन की जाती है ताकि वर्तमान मूल्य मिल सके। अगर बैंक की कुल परिसम्पत्ति के मूल्य से बाहरी देनदारियों को घटा करके 5 लाख के बराबर या उससे अधिक आता है तभी बैंक को दूसरी अनुसूची मे शामिल Reseller जा सकता है। यदि कोर्इ विवाद बैंक की कुल परिसम्पत्ति के अनुमानित मूल्य या भण्डार के मूल्य पर उठता है तो रिजर्व बैंक द्वारा मूल्य निर्धारण अंतिम होगा।
  2. जमाकर्ताओ का हित :-रिजर्व बैंक संतुष्ट होना चाहिये कि बैंक जमाकर्ताओं के हितो के विरूद्ध किसी भी प्रकार का कार्य नहीं करेगा। बैंक के काम करने के All पहलुओं की पूरी तरह विस्तृत जॉच की Need होती है और अंतत: जमाकर्ताओं के हितों के लिये रिजर्व बैंक, बैंक के विभिन्न पहलुओं पर जैसे प्रबंधन की गुणवत्ता, निवेश And अग्रिमों की Safty वित्तीय सुदुढता आदि के संबंध में अपनी राय रखती है।

रिजर्व बैंक किसी भी बैंक के नाम को दूसरी अनुसूची से बाहर निकालने के लिये अधिकृत है यदि बैंक द्वारा उपर्युक्त शर्तो को पूरा नही Reseller जाये या बैंक के व्यापार का परिसमापन हो जाये या ऐसा देखा जा रहा है कि बैंक अपने बैंकिंग व्यापार को चला पाने में अक्षम है। फिर भी रिजर्व बैक उन अनुसूचित बैंको को चुकता पूँजी के मूल्य में वृद्वि करने And अपने व्यापार प्रणाली की कमियो को दूर करने के लिये Single अवसर दे सकता हैं।बैंको को अनुसूचित बैंक का दर्जा प्राप्त करने पर विषेशा धिकार प्रदान किये जाते हैं उदाहरण के लिये रिजर्व बैंक से लाभ उठाने के लिये पात्र हो जाते है। दूसरी तरफ अनुसूचित बैंकों के लिये रिजर्व बैक के साथ वैधानिक भण्डार बनाये रखने का दायित्व भी हो जाता है।

रिजर्व बैक और वाणिज्यिक बैंको के बीच सम्बंध

Indian Customer रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 और बैंकिग विनियमन अधिनियम, 1949 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर Indian Customer रिजर्व बैक और अनुसूचित वाणिज्यिक बैको के बीच बहुत करीब और विविध प्रकृति का सम्बंध होता है।

बैंकों का पर्यवेक्षण And नियंत्रण करने के प्राधिकारी के Reseller में 

बैंकिग विनियमन अधिनियम 1948 Indian Customer रिजर्व बैक को बैंकिग कम्पनियों पर पर्यवेक्षण व नियंत्रण करने के लिये व्यापक अधिकार प्रदान करता है जो है:-

बैंकिंग कम्पनियों को लार्इसेंस 

धारा 22 के According भारत में बैकिंग कारोबार करने के लिये हर कम्पनी को Indian Customer रिजर्व बैक से लाइसेंस प्राप्त करने की जरूरत है। इसके लिये रिजर्व बैक को बैंकिंग कम्पनियो की किताबों का निरीक्षण करने का अधिकार प्राप्त है और अगर वह संतुष्ट है तो लाइसेंस जारी कर सकती है, इन शर्तो पर :-

  1. कम्पनी वर्तमान या भविष्य में ऐसी परिस्थिति में हो कि वह वर्तमान या भविष्य जमाकर्ताओं के दावों को पूरी तरह अर्जित कर सके।
  2. अपने वर्तमान या भविष्य जमाकर्ताओं के हितों के लिये हानिकारक तरीके में कार्य करने की कम्पनी को कोर्इ सम्भावना न हो।
  3. कम्पनी के प्रस्तावित प्रबंधन का सामान्य चरित्र जनता के हित में या जमाकर्ताओं के हित में हानिकारक नही होगा।
  4. कंपनी के लिये पर्याप्त पूंजी संCreation और कमार्इ की संभावनाएं हो।
  5. भारत में बैंकिग व्यापार करने के लिये कम्पनी को लाइसेंस जारी Reseller जाये जो कि सार्वजनिक हित में हो।
  6. यह कि बैंकिंग कम्पनी को लाइसेस दिया जाना बैंकिंग तंत्र के संचालन And समग्रता के विरूद्व नहीं होगा।

इस प्रकार कम्पनी को लाइसेंस देने के लिये संतोषजनक वित्तीय स्थिति होनी चाहिए। विदेशी बैंक के मामले में रिजर्व बैक को संतुष्ट करने हेतु तथ्य पूर्ण होने चाहिये –

  1. भारत में ऐसे बैको द्वारा बैंकिग व्यापार करने के लिये जनता के हित को ध्यान में रखा जाना चाहिये ।
  2. जिस सरकार या राष्ट्र के विधान के अन्तर्गत इसका गठन Reseller गया हो वह Indian Customer बैंकिंग कम्पनियों के साथ कोर्इ भेदभाव न रखती हों।
  3. कम्पनी ऐसी All कम्पनियों के लिये लागू कम्पनी अधिनियम के All प्रावधानों का अनुपालन करती हों।

रिजर्व बैंक किसी भी बैंकिंग कम्पनी के लाइसेंस को रद्द करने के लिये And शाखाओं को खोलने के लिये अनुमति देने हेतु सशक्त है । धारा 23 के According भारत में नयी जगह पर व्यापार करना या वर्तमान स्थान को भारत के अन्दर या बाहर बदलने के लिये All बैकिंग कम्पनी को रिजर्व बैक की पूर्व अनुमति लेने की Need है। रिजर्व बैक किसी भी बैंकिंग कम्पनी को लाइसेंस देने से पूर्व यह ध्यान रखती है कि बैंक की वित्तीय स्थिति, History , प्रबंधन का सामान्य चरित्र और पूंजी संCreation में पर्याप्तता और कमार्इ की संभावनाये और यह तथ्य कि क्या अनुमति देने से First सार्वजनिक हित में कार्य Reseller गया है या नही।

बैंकिग कम्पनियों का निरीक्षण करने की शक्ति

धारा 35 के तहत, रिजर्व बैंक या तो खुद से पहल करके या केन्द्रीय सरकार के कहने पर किसी भी बैकिंग कम्पनी व उसकी पुस्तको व खातों का भी निरीक्षण कर सकता है। यदि रिजर्व बैंक की निरीक्षण आख्या पर केन्द्र सरकार यह विचार करती है कि कम्पनी की कार्यप्रणाली उसके जमाकर्ताओं के हितों के विपरीत है,तब यह कम्पनी को नर्इ जमाराशियों को लेने से निशिद्व कर सकती है या रिजर्व बैंक को कम्पनी का व्यापार समेटने के लिये लिखित Reseller में निर्देषित कर सकती है।

निर्देश देने की शक्ति :-

धारा 35 ए रिजर्व बैंक को निर्देश देने की शक्तियॉ प्रदान करता है जिसके According बैंकिंग कम्पनी या कम्पनियॉ जनता के हित में या बैंकिंग नीतियों के हित में ही कार्य करें And Indian Customer रिजर्व बैंक बैंकिंग कम्पनियों को जमाकर्ताओं के हितो के विरूद्व कार्य करने से रोकने या बैकिंग कम्पनी के हित के विपरीत कार्य करने से रोकने के लिये निर्देषित कर सकती है तथा बैंकिंग कम्पनी को सुनिश्चित ढंग से प्रबंधन करने के लिये भी निर्देषित कर सकती है। धारा 36 रिजर्व बैंक को शक्ति देता है कि वह बैकिंग कम्पनियों को किसी भी प्रकार के विशेष लेन-देन में प्रवेश करने पर चेतावनी दे सकती है या निशेध कर सकती है और सामान्यत: किसी भी बैंकिंग कम्पनी को सलाह दे सकता है। यह बैंको को सुचारू Reseller से कार्य करने के लिये निर्देश देने का आदेश भी पारित कर सकता है।

शीर्ष प्रबंधन पर नियंत्रण :-

Indian Customer रिजर्ब बैंक को बैंको के शीर्ष प्रबंधन पर सम्पूर्ण नियंत्रण रखने के लिये व्यापक शक्तियां प्राप्त है। बैंकिंग कम्पनी के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक, प्रबंधक या मुख्य कार्यकारी अधिकारी की Appointment या पुनर्Appointment या Appointment के समापन के सम्बंध में रिजर्व बैक से पूर्व अनुमोदन लेना आवश्यक है। धारा 36 ए Indian Customer रिजर्व बैंक को शक्ति प्रदान करता है कि वह किसी भी बैंक के कार्यालय से अध्यक्ष , निदेशक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी या अन्य अधिकारी या बैक के कर्मचारी को आवश्यक या अवॉछनीय समझने पर हटा सकता है। And उस हटाये हुये व्यक्ति के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को नियुक्त कर सकता है। रिजर्व बैक बैंकिग नीति के हित में या सार्वजनिक हित में या बैंक और उसके जमाकर्ताओं के हित में आवश्यक समझे तो बैको के निदेशक मंडल में Single या अधिक अतिरिक्त निदेशक को नियुक्त कर सकता है,।

क्रेडिट के नियंत्रक के Reseller मे :-

Indian Customer रिजर्व बैक निम्न तरीको से वाणिज्यिक बैको द्वारा प्रदान क्रेडिट पर नियंत्रण रखता है :-
तरल सम्पत्ति के रखरखाव से संबंधित वैधानिक Needओं को बदल कर क्रेडिट पर नियंत्रण रखता है । बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की धारा 24 के According, हर बैकिंग कम्पनी के लिये आवश्यक है कि वह भारत में नकद, सोना या भार रहित अनुमोदित प्रतिभूतियों को कारोबार के किसी भी दिन, 25 प्रतिशत की शुद्व मांग व समय देनदारियो से कम न हो। इसे वैधानिक चलनिधि अनुपात (एस0एल0आर0) कहा जाता है। रिजर्व बैक इसे 40 प्रतिशत तक बढाने के लिये सशक्त है । सांविधिक तरलता अनुपात को बढाकर , रिजर्व बैक अन्य बैंको को तरल सम्पत्ति के जमा देनदारियों के Single बडे अनुपात को विशेश Reseller से सरकारी व अन्य अनुमोदित प्रतिभूतियों में बनाये रखने के लिये मजबूर करता है, जिससे इस प्रकार बैको के ऋण सक्षम संसाधनो को तदनुसार कम Reseller जा सके। वर्तमान में All अनुसूचित वाणिज्यिक बैको को 30 सितम्बर 1994 को बकाया जमा देनदारियों पर 31.8% दर से And इस तारीख के बाद जमा की गर्इ धनराशियों पर 25 प्रतिशत की दर से एस0एल0आर0 बनाये रखना आवश्यक है जो कि वृद्विषील है।

बैंकिग विनियमन अधिनियम, 1948 की धारा 21 के अन्तर्गत Indian Customer रिजर्व बैंक बैकिंग कम्पनियों को निर्देश जारी करने के लिये सशक्त Reseller गया है And निर्देश जारी करता है कि रिजर्व बैंक सशक्त है कि उनके द्वारा पालन किये गये अग्रिम के सम्बंध में नीति का निर्धारण करें। इन निर्देषों निम्न से संबंधित हो सकते हैं-

  1. अग्रिम बनाने या न बनाये जाने का उद्देश्य।
  2. Windows Hosting अग्रिम के सम्बंध में मार्जिन बनाये रखना।
  3. किसी भी उधारकर्ता को दी गयी अग्रिम की अधिकतम राशि ।
  4. बैंकिग कम्पनी द्वारा किसी भी फर्म, कम्पनी इत्यादि के द्वारा ली गयी अधिकतम राशि की गारंटी, और
  5. अग्रिम देने के लिये ब्याज दर और अन्य शर्ते।

रिजर्ब बैंक ने अपने में निहित शक्तियों का काफी व्यापक प्रयोग Reseller है। बढ़ती कीमतों और अटकलो की जॉच करने के इरादे से निर्देश जारी करता है।

बैको के लिये बैंकर के Reseller में:-

बैको के लिये बैकर के Reseller में, रिजर्व बैक ऋणदाता के Reseller में कार्य करता है और निम्न Resellerों में अनुसूचित बैको को अनुदान दे सकता है।

  1. योग्य बिलों को पुन: रियायत करना या खरीद करना।
  2. निश्चित प्रतिभूतियों के विरूद्व ऋण व अग्रिम प्रदान करना

धारा 17(2) और 17(3) रिजर्व बैक को विभिन्न प्रकार के विनिर्दिश्ट बिलों को खरीद या फिर रियायत के माध्यम से अनुदान देने को अधिकृत करता है । धारा 17(4) रिजर्व बैक को कुछ निर्दिश्ट प्रतिभूतियों के विरूद्व ऋण व अग्रिम को प्रदान करने के लियें अधिकृत करता हैं।

(अ) बिलों पर पुन: छूट :-

धारा 17(2) के According बिलों की श्रेणियो पर रिजर्व बैक से पुन: छूट ली जा सकती है।

  1. वाणिज्यक बिल:-वाािज्यिक विल की उत्पत्ति वाणिज्यिक या व्यापार लेन-देन से होती है। यह भारत में देय होना चाहिए व खरीद या छूट की तारीख से 90 दिनो के भीतर परिपक्व हो जाना चाहिए। अगर भारत से वस्तुओं का निर्यात होता है तो परिपक्वता की अवधि को 180 दिनो की अवधि के अन्दर लेन-देन करना होता है। यह जरूरी है कि बिल पर दो या दो से अधिक हस्ताक्षर हो जिनमे Single अनुसूचित बैक या राज्य सहकारी बैक शामिल हो।
  2. कृषि कार्यो के वित्त पोशण के लिये बिल:- इस तरह के बिल तब जारी किये जाते है जब मौसमी कृषि संचालन के लिये वित्त या फसलो के विपणन खरीद या पुन: छूट की तारीख से 15 महीने के अन्दर परिपक्व होना हो। इन्हे भारत में दर्शाया व देय होना चाहिये व दो या दो से अधिक हस्ताक्षर जिनमे Single अनुसूचित बैक या राज्य सहकारी बैक सहित हो।
  3. लघु उघोगो को वित्त उपलब्ध कराने के लिये बिल – इस बिल को लाने का उद्वेष्य कुटीर And लघु उघोगो में उत्पादन व विपणन गतिविधियो के लिये वित्त उपलब्ध कराना है जो कि रिजर्व बैक द्वारा अनुमोदित हो व छूट की तारीख से 12 महीने के अन्दर परिपक्त हो। भारत मे देय हो व दो या दो से अधिक हस्ताक्षर हो जिनमे राज्य सहकारी बैक या राज्य वित्त निगम शामिल हो और बिल का मूलधन व उस व्याज के भुगतान की गारंटी राज्य सरकार देती है।
  4. सरकारी प्रतिभूतियों में व्यापार करने के लिये विधेयक-इस तरह के बिल पर अनुसूचित बैक के हस्ताक्षर होने चाहिए व खरीद या पुन: छूट की तारीख से 90 दिन के भीतर परिपक्व होना चाहिए और भारत मे देय हो।
  5. विदेशी बिल –  इस तरह के बिल तब बनते है जब भारत से वस्तुओं का निर्यात होता है और 180 दिनो के भीतर परिपक्त होता है। ऐसा बिल भारत से बाहर किसी ऐसे देश के नाम निर्गत होना चाहिये जो अन्र्तराश्ट्रीय मुद्रा कोश का सदस्य हो। अगर बिल भारत से वस्तुओं के निर्यात से सम्बंधित नही है तो परिपक्वता की अवधि 90 दिन हो जायेगी। यह ध्यान रखना चाहिए कि वह बिल पुन: छूट के पात्र हो उनके निष्चित परिपक्वता हो। पुन: छूट के बिलो की प्रथा को प्रोत्साहित करने के लिये, रिजर्व बैक ने 1 नवम्बर 1971 से पुन: छूट योजना लागू की है। Indian Customer रिजर्व बैक (संशोधन) अधिनियम, 1974 लागू होने के बाद, विनिमय पत्रों में श्रेणियां आती है उपरोक्त (i),(ii),(iii) और किसी भी वित्तीय संस्था के हस्ताक्षर जो कि मुख्य Reseller से विनिमय पत्रों की छूट पर स्वीकृति और वचन पत्रों और इस सम्बंध में रिजर्व बैक से मंजूरी प्राप्त है जो कि पुन: छूट के लिये भी पात्र होगा।

(ब) ऋण व अग्रिम:-

धारा 17 (4) रिजर्व बैक को सक्षम बनाता है, अनुसूचित बैको को अग्रिम व ऋण देने के लिये, जो मॉग पर पुन:देय या निर्धारित अवधि की समाप्ति पर जो कि Saftyओं के 90 दिन से अतिरिक्त न हो देय, की प्रतिभूति के बदले में:-

  1. स्टाक , फंड या प्रतिभूतियों (अचल सम्पत्तियों के अलावा) जिसमे Single न्यासी अधिकृत है न्यास धन को निवेश करने के लिये।
  2. समान स्वामित्व के सोने या चॉदी या दस्तावेज
  3. इस तरह के विनिमय पत्र और वचन पत्र, रिजर्व बैक से खरीदने या पुन: छूट (ऊपर described) के लिये पात्र है और मूलधन व ब्याज के पुर्नभुगतान के लिये राज्य द्वारा गारंटी दी जाती है। 
  4. वस्तुओं के स्वामित्व के दस्तावेजो द्वारा समर्थित किसी भी अनुसूचित बैक या सहकारी राज्य बैक के वचन पत्र, (इस तरह के दस्तावेजो का स्थानान्तरण, सुपुर्दगी या किसी अन्य बैक को ऋण के लिये Safty का वचन देना या वाणिज्यिक या व्यापार के लिये वास्तविक अग्रिम उपलब्ध कराना या कृषि प्रयोजन के लिये वित्तपोशण या फसलो का विपणन)। धारा 17 (3-A) 1962 में सम्मिलित की गयी थी जो बैको को सक्षम बनाती है रिजर्व बैक से आसान शर्तों पर Windows Hosting समायोजन के लिए निर्यात वित्त के सम्बंध में जो Indian Customer रिजर्व बैक प्रदान करता है। Indian Customer रिजर्व बैक वचन पत्र के बदले ऋण और अग्रिम किसी भी अनूसुचित बैक को दे सकता है अगर मॉग पर वचन पत्र प्रतिदेय हो या 180 दिन की समय सीमा से अधिक न हो। उधार लेने वाला बैंक यह लिखित Reseller में धोशणा प्रस्तुत करें :-
  1. यह इन विनिमय पत्रों को धारण करेगा जिनकी उत्पत्ति भारत से वस्तुओं के निर्यात से सम्बंधित लेन-देन से होती है, जो कि भारत में और भारत के बाहर देश के किसी भी स्थान से जो कि आर्इ0एम0एफ0 का सदस्य होया रिजर्व बैक द्वारा अधिसूचित हो में लिखित हैं और ऋण व अग्रिम की तारीख से 180 दिनों में परिपक्व हों। उधार लेने वाला बैंक रिजर्व बैक से ली गयी ऋण राशि के बराबर मूल्य के बिल अपने पास रखेगा And उन्हें अपने पास तब तक बनाए रखेगा जब तक बकाया ऋण की राशि का कीमत तक का ऋण चुकता न कर दिया जाये।
  2. यह भारत में निर्यातक या किसी अन्य व्यक्ति को भारत से वस्तुओं के निर्यात के लिये सक्षम बनाने के लिए पूर्व षिपमेन्ट ऋण या अग्रिम प्रदान करेगा। इस तरह के ऋण की राशि बैंक द्वारा रिजर्व बैक से उधार ली गयी राशि से कम नही होना चाहिये। इस प्रावधान को प्रभावी करने के लिये Indian Customer रिजर्व बैक ने मार्च 1963 में निर्यात बिल क्रेडिट योजना का शुभारम्भ Reseller। इस योजना और विदेशी बिल में छूट में मुख्य अन्तर यह है पूर्व के मामले में बैको को विदेशी बिल रिजर्व बैक से विवर (lodge) करने की Need नही (जो कि पुन: छूट के तहत आवश्यक है)। उन्हे सिर्फ घोषणा कर देनी चाहिये कि वह ऋण की राशि के बराबर बिल धारण कर चुके है। Single नयी उप धारा 3 ब Indian Customer रिजर्व बैक अधिनियम (संशोधन) 1974 द्वारा स्थापित की गर्इ। इस उपधारा के तहत Indian Customer रिजर्व बैक किसी भी अनुसूचित बैक या राज्य सहकारी बैक को ऋण या अग्रिम देता है ऐसे बैको के बचन पत्रो के विरूद्व जो मॉग पर प्रतिदेय हो या तय अवधि के भीतर जो कि 180 दिनो से अधिक न हो। उधार लेने वाले बैक के लिये यह लिखित में घोषणा करना आवश्यक है कि के लिए ऋण और अग्रिम Reseller गया है-
    1. सद्भावनापूर्ण व्यवसायिक या व्यापार लेन-देन या
    2. वित्तपोशक कृशि संचालन या फसलो के विपणन या अन्य कृषि के उद्वेष्यो की उद््घोशणा के लिये । इस घोषणा के अन्र्तगत अन्य description भी शामिल होगे जो रिजर्व बैक को आवश्यक हो।

आपातकालीन अग्रिम

धारा 18 के तहत रिजर्व बैक वाणिज्यिक बैको और सहकारी बैको को आपातकालीन अग्रिम दे सकता है विशेष अवसरो पर जब रिजर्व बैक संतुष्ट हो कि Indian Customer व्यापार वाणिज्य , उघोग और कृशि के हित में क्रेडिट विनियमन के उद्देश्य के लिए यह आवश्यक है। धारा 17 में निहित सीमाओ के होते हुए भी आपातकालीन अग्रिम स्थिति दी गयी है। 1978 में संशोधन Indian Customer रिजर्व बैक को अधिकृत करता है –

  1. किसी भी ऐसे विनिमय पत्र या वचनपत्र के खरीद, बेचने या रियायत करने की, जो कि धारा 17 के अन्र्तगत Indian Customer रिजर्व बैक द्वारा खरीद या रियायत के लिये पात्र न हो ।
  2. ऋण और अग्रिम प्रदान करने के लिये
    1. राज्य सहकारी बैक को या
    2. राज्य सहकारी बैक की सिफारिश पर पंजीकृत सहकारी समिति जो कि राज्य सहकारी बैक के क्षेत्र के भीतर हो या
    3. किसी अन्य व्यक्ति, मॉग पर प्रतिदेय या निर्धारित अवधि की समाप्ति पर जो 90 दिनो से अधिक न हो, इस तरह के नियम व शर्तो पर बैक विचार कर सकता है।

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