सहसंबंध का Means और परिभाषा And प्रकार

सामान्यत: सहसम्बंध का Means दो वस्तुओं, समूहों अथवा घटनाओं के आपसी सम्बंध से लिया जाता है परन्तु सांख्यिकी में सहसम्बंध से तात्पर्य किसी वस्तु, समूह अथवा घटना के दो या दो से अधिक चरों (Variables) के बीच पाए जाने वाले सम्बंधों से होता है। लैथरॉप के Wordों में – ‘सहसम्बंध दो चरों के बीच पाए जाने वाले संयुक्त सम्बंध को इंगित करता है।’

किसी वस्तु, समूह अथवा घटना में अनेक चर हो सकते हैं परन्तु Single समय में उनमें से किन्हीं दो चरों के बीच सम्बंध का ही अध्ययन Reseller जा सकता है इसलिए लैथरॉप ने दो चरों की ही बात की है। इन दो चरों में भी First चर में परिवर्तन होने से जिस प्रकार का प्रभाव Second चर पर पड़ता है ठीक उसी प्रकार का प्रभाव Second चर में परिवर्तन होने से First चर पर पड़ता है इसलिए लैथरॉप ने संयुक्त सम्बंध की बात कही है पर इस परिभाषा में चरों के आधार (वस्तु, समूह अथवा घटना) को नहीं लिया गया है इसलिए यह परिभाषा कुछ अधूरी सी लगती है। हमारी दृष्टि से सहसम्बंध को इस Reseller में परिभाषित करना चाहिए- ‘सह-सम्बंध से तात्पर्य किसी वस्तु, समूह अथवा घटना के Single चर में होने वाले परिवर्तन से Second चर में होने वाले परिवर्तन से होता है।’

सहसंबंध के प्रकार

सहसम्बंध तीन प्रकार का होता है –

1. धनात्मक सहसम्बंध –

जब किसी वस्तु, समूह अथवा घटना के किसी Single चर के मान में वृद्धि होने से Second साहचर्य चर के मान में वृद्धि होती है अथवा उसके मान में कमी होने से Second साहचर्य चर के मान में कमी होती है तो मान दोनों चरों के बीच पाए जाने वाले इस अनुReseller सम्बंध को धनात्मक सहसम्बंध करते हैं। उदाहरणार्थ किसी गैस का समान दाब पर तापक्रम बढ़ने से उसका आयतन बढ़ना अथवा तापक्रम कम होने से उसका आयतन कम होना गैस के दो चरौ- तापक्रम और आयतन के बीच धनात्मक सहसम्बंध है।

2. ऋणात्मक सहसम्बंध –

जब किसी वस्तु, समूह अथवा घटना के किसी Single चर के मान में वृद्धि होने से Second साहचर्य चर के मान में कमी आती है अथवा उसके मान में कमी होने से Second साहचर्य चर के मान में वृद्धि होती है तो इन दोनों चरों के बीच पाए जाने वाले इस प्रतिकूल सम्बंध को ऋणात्मक सहसम्बंध कहते हैं। उदाहरणार्थ किसी गैस का समान तापक्रम पर दाब बढ़ने से उसका आयतन कम होना अथवा दाब कम होने से उसका आयतन बढ़ना, गैस के दो चरों-दाब और आयतन के बीच ऋणात्मक सहसम्बंध है।

3. शून्य सहसम्बंध –

जब किसी वस्तु , समूह अथवा घटना के किसी Single चर में परिवर्तन होने से Second साहचर्य चर पर कोर्इ प्रभाव नहीं पड़ता तो इन दोनों चरों के बीच के सम्बंध को शून्य सहसम्बंध कहते हैं। उदाहरणार्थ किसी गैस के आयतन के बढ़ने अथवा घटने से उसके रासायनिक सूत्र में कोर्इ अन्तर न होना गैस के दो चरों- आयतन और रासायनिक सूत्र के बीच शून्य सहसम्बंध है।

सहसंबंध की उपयोगिता, Need और महत्व

विज्ञान का मूल आधार कार्य-कारण सम्बंध (Cause and Effect Relationship) है। इस सम्बंध की जानकारी के आधार पर किसी Single क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन से किसी Second क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन की भविष्यवाणी की जा सकती है। इस प्रकार विज्ञान के क्षेत्र में तो सहसम्बंध की सबसे अधिक उपयोगिता है, उसकी सबसे अधिक Need है और उसका सबसे अधिक महत्व है। इस युग में मनोवैज्ञानिकों ने भी Human व्यवहार के कारकों का पता लगाकर कार्य-कारण सम्बंधों की स्थापना की है। आज Humanीय व्यवहार में कार्य-कारण सम्बंधों को समझने के लिए सहसम्बंध प्रविधियों (Correlation Techniques) का प्रयोग Reseller जाता है। इस प्रकार आज मनोविज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में भी सहसम्बंध की बड़ी उपयोगिता है, इसकी बड़ी Need है और इसका बड़ा महत्व है। यहाँ शिक्षा के क्षेत्र में सहसम्बंध की उपयोगिता, Need And महत्व का संक्षेप में वर्णन प्रस्तुत है।

  1. दो विषयों के सहसम्बंधों की सहायता से किसी छात्र की Single विषय की योग्यता के आधार पर उसकी Second विषय की योग्यता का अनुमान लगाया जा सकता है। 
  2. दो विषयों के सहसम्बंध की सहायता से यदि उपरोक्त अनुमान सही न निकले तो यह निदान करना आवश्यक हो जाता है कि उसका कारण क्या है। निदान करने के बाद उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था की जाती है। 
  3. अध्ययन विषयों के सहसम्बंध की सहायता से छात्रों को शैक्षिक And व्यावसायिक निर्देशन देने में सहायता मिलती है। 
  4. क्रियात्मक अनुसन्धान में सहसम्बंध का प्रयोग विशेष Reseller से Reseller जाता है।

सहसंबंध की सीमाएँ

  1. किन्हीं दो विषयों के सहसम्बंध से उनके बीच सहसम्बंधों के मूल कारणों का ज्ञान नहीं होता। 
  2. किन्हीं दो विषयों के सहसम्बंध छात्रों की संख्या पर निर्भर करते हैं, छोटे समूह से प्राप्त सहसम्बंध की अपेक्षा बड़े समूह से प्राप्त सहसम्बंध अधिक विश्वसनीय होता है। 
  3. किन्हीं दो विषयों के बीच का सहसम्बंध विषयों की प्रकृति के साथ-साथ छात्रों की प्रकृति (योग्यता, रूचि और अभिरूचि) पर भी निर्भर करता है। अत: Single निदर्श से प्राप्त सहसम्बंध Second निदर्श पर उसी Reseller में लागू नहीं Reseller जा सकता। 
  4. सहसम्बंध गुणांक का Meansापन परिस्थितियों पर निर्भर करता है इसलिए उसकी व्याख्या करना थोड़ा कठिन कार्य है।

सहसंबंध का मापन

सामान्य दृष्टि से किन्हीं दो चरों के बीच सहसम्बंध के विषय में केवल इतना ही कहा जा सकता है कि इनमें धनात्मक सहसम्बंध है अथवा ऋणात्मक सहसम्बंध है अथवा शून्य सहसम्बंध है। कभी-कभी यह कथन करना भी सम्भव होता है कि उच्च अथवा निम्न कोटि का धनात्मक अथवा ऋणात्मक सम्बंध है, परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि कितना धनात्मक अथवा ऋणात्मक सम्बंध है। सहसम्बंध की मात्रा का मापन करने के लिए विद्वानों ने सहसम्बंध गुणांक (Coefficient of Correlation) का विकास Reseller है। यहाँ सहसम्बंध गुणांक का Means And उसकी गणना विधि का वर्णन प्रस्तुत है।

सहसंबंध गुणांक का Means और परिभाषा 

सहसम्बंध गुणांक Single ऐसी अनुपातिक संख्या होती है जो दो चरों के बीच सहसम्बंध की प्रकृति (धनात्मक, ऋणात्मक अथवा शून्य) और उसकी मात्रा दोनों का स्पष्ट बोध कराती है। गिलफोर्ड के Wordों में – ‘सहसम्बंध गुणांक वह संख्या है जो हमें यह बताती है कि दो चीजें (चर, Variables) आपस में किस सीमा तक सम्बंधित हैं और उनमें से किसी Single में परिवर्तन होने से Second में किस सीमा तक परिवर्तन होते हैं।’

सहसंबंध के गुणांक की व्याख्या 

सहसम्बंध गुणांक Single अनुपातिक संख्या होती है जिसका मान -1 से +1 तक होता है। -चिन्ह ऋणात्मक सहसम्बंध और + चिन्ह धनात्मक सहसम्बंध प्रकट करता है और -1 से +1 के बीच की संख्याएँ सहसम्बंध की मात्रा का बोध कराती हैं। सहसम्बंध गुणांक की व्याख्या इस सारिणी के आधार पर की जाती है।

सहसंबंध के गुणांक की व्याख्या

सहसम्बंध गुणांक का मान सहसम्बंध गुणांक की व्याख्या
+ 1.00 पूर्ण (Perfect) धनात्मक सहसम्बंध
+ .91 से + .99 तक अत्यन्त उच्च (Very High) धनात्मक सहसम्बंध
+ .71 से + .99 तक उच्च (High) धनात्मक सहसम्बंध 
+ .41 ये + .70 तक सामान्य (Moderate) धनात्मक सहसम्बंध
+ .21 से + .40 तक निम्न (Low) धनात्मक सहसम्बंध 
+ .01 से + .20 तक अत्यन्त निम्न (Very Low) धनात्मक सहसम्बंध
– .21 से – .40 तक निम्न (Low) ऋणात्मक सहसम्बंध 
– .41 से – .70 तक सामान्य (Moderate) ऋणात्मक सहसम्बंध
-.71 से – .90 तक उच्च (High) ऋणात्मक सहसम्बंध
– .91 से – .99 तक अत्यन्त उच्च (Very High) ऋणात्मक सहसम्बंध
– 1.00 पूर्ण (Perfect) ऋणात्मक सहसम्बंध

   

सहसंबंध के गुणांक की गणना

सहसम्बंध गुणांक ज्ञात की करने की कर्इ विधियों का विकास Reseller गया है जिनमें दो विधियों का प्रयोग अधिक Reseller जाता है- Single स्पीयरमैन की रैंक अन्तर विधि (Spearman’s Rank Difference Method) और दूसरी पीयरसन की प्रोडक्ट मुमैन्ट विधि (Pearson’s Product Moment Method) ।

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