तनाव का Means, लक्षण And कारण

तनाव वर्तमान जीवन की Single बड़ी समस्या है। मनोवैज्ञानिकों ने तनाव के कर्इ तरीकों से परिभाषित कर उसे समझने का प्रयास Reseller है। इन मनोवैज्ञानिकों में हैंस सेली का नाम सर्वाधिक प्रमुखता से लिया जाता है। आइये हम तनाव की प्रमुख परिभाषाओं को जानें।

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हैंस सेली ने अपनी पुस्तक ‘द स्ट्रेस ऑफ लाइफ’ में तनाव को Single अनुक्रिया के Reseller में परिभाषित करते हुए कहा है कि ‘तनाव से तात्पर्य शरीर द्वारा उसके प्रति प्रस्तुत की गर्इ मांग के प्रति अविशिष्ट अनुक्रिया से होता है।

मॉर्गन, किंग, विस्ज And स्कॉपलर के According – हमलोग तनाव को Single ऐसी आन्तरिक अवस्था के Reseller में परिभाषित करते हैं जो शरीर के सम्मुख Single शारीरिक Needओं (जैसे कि बीमारी की अवस्थाएॅं, व्यायाम, तापमान की अतिरंजता आदि) या वैसे वातावरणीय And सामाजिक परिस्थितियॉं जिन्हें कि संभावित Reseller से नुकसानदेह, नियंत्रण से बाहर तथा निबटने के उपलब्ध संसाधनों को चुनौति देने वाले के Reseller में मूल्यॉंकित Reseller जाता है, से उत्पन्न होता है।

मनोवैज्ञानिक बैरोन अपनी पुस्तक ‘मनोविज्ञान’ में तनाव को परिभाषित करते हुए कहते हैं कि- ‘तनाव Single बहुआयामी प्रक्रिया है जो हम लोगों में वैसी घटनाओं के प्रति अनुक्रिया के Reseller में उत्पन्न होती है जो हमारे शारीरिक And मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों को विकृत करता है या विकृत करने की धमकी देता है।’ वुड And वुड ने तनाव को इस प्रकार परिभाषित Reseller है-’अधिकतरमनोवैज्ञानिक तनाव को Single ऐसी घटना के प्रति शरीरक्रियावैज्ञानिक And मनोवैज्ञानिक अनुक्रिया के Reseller में परिभाषित करते हैं जो व्यक्ति को चुनौती देती है अथवा धमकी देती है तथा जिसमें अनुकूलन अथवा समायोजन के किसी प्रकार की जरूरत होती है।’ उपरोक्त परिभाषाओं के विश्लेषण से निम्न बातें स्पष्ट होती हैं –

  1. तनाव Single बहुआयामी प्रक्रिया And अनुक्रिया है। 
  2. तनाव नाम अनुक्रिया आसेधकों (stressors) के कारण उत्पन्न होती है। 
  3. तनाव उत्पन्न करने वाली All परिस्थितियॉं, वस्तु अथवा व्यक्ति आसेधक कहलाते हैं। 
  4. तनाव परिस्थितियों के मूल्यॉंकन के स्वReseller पर निर्भर करता है। जब जीवन की परिस्थितियॉं व्यक्ति के सम्मुख चुनौतियों के Reseller में सामने आती हैं तब व्यक्ति उन चुनौतियों से निपटने हेतु अपनी तैयारी को देखता है And उपलब्ध संसाधनों तथा अपनी योग्यता अथवा सहयोग का मूल्यॉंकन करता है। यदि उसे उपलब्ध संसाधन And अपनी योग्यता तथा सहयोग की उपलब्धता चुनौतियों का यथोचित सामना करने हेतु पर्याप्त प्रतीत होते हैं तो उसे तनाव नहीं होता है। परन्तु यदि उसे उपलब्ध संसाधन, योग्यता अथवा सहयोग अपर्याप्त प्रतीत होते हैं तब उसे तनाव हो जाता है।उदाहरण के लिए यदि आप Single विद्याथ्र्ाी हैं जिसका मूल्यॉंकन परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर Reseller जाता है, मान लीजिए कि Single दिन कक्षाध्यापक आपको यह सूचना देते हैं कि आज सायंकाल आपको पढ़ार्इ गयी किसी इकार्इ से प्रश्न पूछ कर आपकी परीक्षा ली जायेगी तथा इसमें प्राप्त होने वाले अंक मुख्य परीक्षा में जुड़ेंगे। अब यदि आप सदैव तत्पर रहते हुए परीक्षा हेतु तैयार रहते हैं, अथवा आप समझते हैं कि सायंकाल तक आप परीक्षा में सफल होने हेतु पर्याप्त तैयारी कर लेंगे And जरूरी पुस्तकें And नोट्स आपके पास हैं तब आपको तनाव का अनुभव नहीं होगा। वहीं यदि आप परीक्षा हेतु सदैव तैयार नहीं रहते तथा जरूरी पुस्तकें अथवा नोट्स तैयार नहीं करते हैं तथा सायंकाल तक परीक्षा की तैयारी कर पाना आपके लिए संभव नहीं है तो होने वाली परीक्षा की यही परिस्थिति आपको तनावग्रस्त कर देगी।
  5. तनाव न केवल परिस्थितियों के नकारात्मक होने पर ही उत्पन्न नहीं होता है बल्कि जीवन की सकारात्मक कही जाने वाली परिस्थितियॉं भी व्यक्ति को तनाव ग्रस्त बना देती हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी महिला अथवा पुरूष को यदि अचानक अपनी नौकरी में तय अनुभव प्राप्त होने से पूर्व ही प्रोन्नति मिल जाती है तब उस पद के उपयुक्त कार्य निष्पादन करने के लिए उस पर स्वत: ही दबाव बढ़ जाता है जब उसे लगता है कि उपयुक्त कार्य निष्पादन हेतु जिस योग्यता अथवा कुशलता की जरूरत है उसकी योग्यता में कुछ अथवा अधिक बढ़ोत्तरी की Need है तब उसे तनाव की अनुभूति होती है यह तनाव वस्तुत: सकारात्मक स्वReseller का होता है अतएव इसे सकारात्मक तनाव के Reseller में जाना जाता है। इसी प्रकार का अनुभव व्यक्तियों को किसी उच्च अथवा अति उत्तम कुल में विवाह होने, बहुत बड़े सम्मान अथवा पुरस्कार से नवाजे जाने पर भी उत्पन्न होता है।कनाडा के प्रिस़़द्ध विद्वान हैंस सेली ने इसी आधार पर तनाव को दो भागों में बॉंटा है सकारात्मक तनाव And नकारात्मक तनाव। सकारात्मक तनाव को अंगे्रजी में यूस्ट्रेस (eustress) And नकारात्मक तनाव को उन्होंने डिस्ट्रेस (distress) कहा है। 
  6. तनाव का कोर्इ न कोर्इ कारण होता है तथा तनाव के बहुआयामी प्रभाव भी होते हैं। तनाव प्रारम्भ में संज्ञानात्मक कारणों से उत्पन्न होता है तथा बाद में इसके मनोवैज्ञानिक (psyhchological) And शरीरक्रियावैज्ञानिक (physiological) प्रभाव भी होते हैं।
  7. तनाव की कोर्इ तय समय सीमा नहीं होती है। तनाव आसेधकों के स्वReseller, उनकी तीव्रता, उपस्थिति की अवधि, And अनुभव कर्ता की क्षमता के According कम And लम्बी अवधि वाला हो सकता है। तनाव कम समय तक चलेगा या लम्बे समय तक चलेगा, यह बहुत कुछ तनाव उत्पन्न करने वाली घटनाओं या परिस्थितियों पर निर्भर करता है। जब व्यक्ति परिस्थितियों पर शीघ्र नियंत्र्ाण पा लेता है तब उसे लघु अवधि का तनाव होता है तथा जब व्यक्ति को परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने में अधिक समय लगता है तब उसे लम्बी अवधि का तनाव होता है। 8. सारReseller में तनाव जीवन में उत्पन्न चुनौतियों के मूल्यॉंकन के उपरान्त उसके प्रति की गयी Single विशेष अनुक्रिया होती है जिसके शारीरिक, मानसिक प्रभाव होते हैं।

तनाव के लक्षण / अनुक्रियायें

आप तनाव के लक्षणों को अनुक्रियाओं के अध्ययन द्वारा सरलतापूर्वक समझ सकते हैं। मुख्यत: तनाव के प्रति व्यक्ति दो प्रकार की अनुक्रियायें करता है। 1. मनोवैज्ञानिक अनुक्रियायें (psychological responses) And 2. शरीरक्रियावैज्ञानिक अनुक्रियायें (physiological responses)।

1. मनोवैज्ञानिक अनुक्रियायें (psychological responses)

मनोवैज्ञानिक अनुक्रियाओं में वे All अनुक्रियाएॅं सम्मिलित हैं जिन्हें मानसिक प्रक्रियाओं And भाव-.संवेग, व्यवहार के अन्तर्गत रखा जाता है। यहॉं पर मानसिक प्रक्रियाओं से हमारा तात्पर्य अवधान, प्रत्यक्षण, भाषा, अधिगम, स्मृति, समस्या समाधान क्षमता आदि All से है। भाव-संवेग में All संवेग (जैसे- क्रोध, हर्ष, विषाद, आक्रामकता आदि) And अनुभूतिपरक लक्षण And अनुक्रियायें सम्मिलित हैं।
संज्ञानात्मक लक्षण – तनाव की अवस्था में व्यक्ति की Singleाग्रता (concentration) प्रभावित होती है, जिससे व्यक्ति अपने कार्यों का उत्कृश्टता के साथ निष्पादन नहीं कर पाता है।तनाव से व्यक्ति की तार्किक क्षमता (logical ability) भी प्रभावित होती हैं। व्यक्ति व्यवस्थित Reseller से तर्कपूर्ण चिन्तन नहीं कर पाता है। चिन्तन में चिन्ता की भूमिका बढ़ जाती है And व्यक्ति कार्य विशेष के, परिस्थिति विशेष के All पहलुओं पर ठीक ढंग से विचार नहीं कर पाता है।

तनाव से व्यक्ति की अवधान क्षमता (attention ability) भी प्रभावित होती है। अवधान विस्तार (attention span) कम हो जाता है।

स्मृति क्षमता भी तनाव से प्रभावित होती है। तनाव की अवस्था में स्मृति शक्ति कमजोर हो़ जाती है फलत: व्यक्ति भूतकाल की घटनाओं को स्पष्ट Reseller में बता नहीं पाता है तथा नयी जानकारियों को पूर्णReseller से अपनी स्मृति में धारण नहीं कर पाता है।

उपरोक्त संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं के तनाव से प्रभावित होने के कारण व्यक्ति की समस्या समाधान क्षमता And सृजनात्मक क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है And व्यक्ति की ये क्षमतायें भी कमजोर पड़ जाती हैं।

संवेगात्मक लक्षण – तनाव की अवस्था में व्यक्ति में कर्इ प्रकार के सांवेगिक परिवर्तन होते देखे गये हैं। आप All ने अपने जीवन में इसे अवश्य ही अनुभव Reseller होगा। जब व्यक्ति तनाव की स्थिति में होता है तब उसमें नकारात्मक सांवेगिक अनुक्रियाओं की अधिकता हो जाती है। Second Wordों में नकारात्मक सांवेगिक अनुक्रियाओं की बारंबारता में बढ़ोत्तरी हो जाती है। तनाव के परिणाम स्वReseller होने वाली इन All नकारात्मक अनुक्रियाओं का वर्णन निम्नांकित पंक्तियों में Reseller जा रहा है।

चिंता (anxiety)- तनाव की अवस्था में व्यक्ति में प्राय: First उत्पन्न होने वाली सांवेगिक अनुक्रिया चिंता है। आप All ने यह अनुभव Reseller होगा कि जब आप किसी तनावपूर्ण परिस्थिति का सामना करते हो तब उस परिस्थिति के संभावित परिणाम आपको डर, आशंका And घबराहट से भर देता है। इस अनुभव की प्रतिक्रिया दो Resellerो में देखने को मिलती है Single तो सामान्य चिंता (normal anxiety) के Reseller में And दूसरी स्नायुविकृत चिंता(neurotic anxiety) के Reseller में।
सामान्य चिंता में चिंता की मात्रा कम होने के कारण यह व्यक्ति के परिस्थिति के साथ समायोजन में मददगार साबित होती है। Second Wordों में यह कार्यों के बेहतर निष्पादन में मददगार भी साबित होती है And समस्या का समाधान ढूंढने के लिए हमें Singleाग्रचित भी कर देती है।

स्नायुविकृत चिंता में चिंता की यह मात्रा उस सीमा तक बढ़ जाती जिससे व्यक्ति का परिस्थिति के साथ समायोजन विकृत हो जाता है। व्यक्ति तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति से इतना भयग्रस्त हो जाता है या आशंकित हो उठता है कि उसके कारण वह परिस्थिति के All पहलुओं पर ठीक प्रकार से विचार ही नहीं कर पाता है And उसकी समस्या समाधान क्षमता का ह्रास हो जाता है। क्रोध And आक्रामकता (anger and aggression) – तनावपूर्ण परिस्थिति जब व्यक्ति के अपने लक्ष्य अथवा उद्देश्य की प्राप्ति में बाधा बन जाती है तो उससे व्यक्ति में कुंठा का भाव उत्पन्न हो जाता है यही कुंठा तदन्तर क्रोध And आक्रामकता को जन्म देती है। First तनावपूर्ण परिस्थिति के प्रति व्यक्ति में क्रोध उत्पन्न होता है तथा जब यह क्रोध लम्बे समय तक बरकरार रहता है तो इसकी परिणति आक्रामक व्यवहार के Reseller में होने लगती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड के According कभी-कभी जब तनाव उत्पन्न करने वाली परिस्थिति, वस्तु अथवा व्यक्ति के प्रति क्रोध उत्पन्न होने के बावजूद जब व्यक्ति उसके प्रति आक्रामक व्यवहार की अभिव्यक्ति नहीं कर पाता है तब उसका यह क्रोध विस्थापित होकर विस्थापित आक्रामक व्यवहार (displaced aggressive behaviour) में बदल जाता है। फ्रायड ने इसका वर्णन अपने व्यक्तित्व सिद्धान्त में Safty प्रक्रम (defense mechanism) के संप्रत्यय के अन्तर्गत इसका वर्णन Reseller है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ व्यक्ति अपनी नौकरी में प्रोन्नति चाहता है, परन्तु किसी गलतफहमी की वजह से उसका बॉस उससे नाराज हो जाता है तथा उसे फटकार लगाता है तो इससे उस व्यक्ति में क्रोध उत्पन्न होता है परन्तु वह इस भय के कारण कि कहीं उसकी नौकरी ही खतरे में न पड़ जाये वह क्रोध की आक्रामक अभिव्यक्ति को नियन्त्रित कर लेता है। लेकिन वही व्यक्ति जब अपने इस गुस्से को किसी अन्य व्यक्ति पर जैसे कि उसकी पत्नी अथवा पुत्र पर आक्रामक व्यवहार के Reseller में करता है तो यह विस्थापित आक्रामक व्यवहार कहलायेगा।

विषाद (depression) – तनाव पूर्ण अवस्था का प्रभाव व्यक्ति में अवसाद भाव की उत्पत्ति के Reseller में भी देखने को मिलता है। सामान्य तौर पर आपने देखा होगा कि जब व्यक्ति के जीवन में उसके सम्मुख कुछ ऐसी चुनौतियॉं उत्पन्न हो जाती हैं जिनसे निपटने में व्यक्ति को असफलता हाथ लगती है तो व्यक्ति में गुस्सा अथवा आक्रामक अभिव्यक्ति के स्थान पर निराशा का भाव जन्म ले लेता है। व्यक्ति कर्इ बार परिस्थिति के प्रति उदासीन भाव भी अपना लेता है जिसे भावशून्यता (apathy) भी कहते हैं। मनोवैज्ञानिकों के According विषाद का अर्जित निस्सहायता (learned helplessness) से भी सीधा संबंध होता है। अर्जित निस्सहायता अवसाद की उत्पत्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह निस्सहायता व्यक्ति में तब उत्पन्न होती है जब जीवन की कठिनाइयों से वह स्वयं को घिरा हुआ देखता है तथा उनसे निपट नहीं पाता तथा वह ऐसी ही अन्य कठिनार्इयों के संबंध में भी यह सोच लेता है कि इनसे वह अब बच नहीं सकता अतएव वह निस्सहाय महसूस करना सीख लेता है।

व्यवहारात्मक लक्षण (behavioural symptoms) – व्यवहारात्मक लक्षणों अथवा अनुक्रियाओं में वे All अनुक्रियायें आती हैं जो तनावपूर्ण परिस्थितियॉं उत्पन्न होने पर व्यक्ति द्वारा वातावरण, समाज अथवा परिस्थिति के प्रति स्थूल Reseller में की जाती हैं। इनका वर्णन निम्नांकित है।

तनाव उत्पन्न होने पर व्यवहार में चिड़चिड़ापन (irritability) बढ़ जाता है। व्यक्ति के व्यवहार में झुंझुलाहट बढ़ जाती है।

तनावपूर्ण परिस्थिति के कारण व्यक्ति में आक्रामकता (aggressiveness) की मात्रा बढ़ जाती है। व्यक्ति जोर-जोर से चिल्ला कर अपनी खीझ प्रदर्शित करता है, अथवा कुर्सी, मेज आदि वस्तुओं को फेंककर उसकी अभिव्यक्ति करता है।

तनाव के कारण कर्इ बार व्यक्ति परिहारी दृष्टिकोण (avoidance approach) अपना लेता है। परिणामस्वReseller वह परिहारी व्यवहार का प्रदर्शन करने लगता है। वह परिस्थितियों, व्यक्तियों आदि से बचने का प्रयास प्रारंभ कर देता है यथासंभव सामाजिक परिस्थितियों से लोगों से दूरी बना कर रखने लगता है।

तनाव सामान्यतया देखे जाने वाले व्यवहारात्मक प्रभाव हैं-

  1. साधारण मुद्दों पर बहस And झगड़ा करना
  2. अतिनिर्भरता 
  3. अपनी बात समझा न पाना 
  4. अतार्किकता
  5. प्रेम से किनारा करना 
  6. लैंगिक रूचि में कमी अथवा अधिकता

2. तनाव के शरीरक्रियावैज्ञानिक लक्षण 

उपरोक्त described सेक्शन में अब तक हमने तनाव के मुख्य Reseller से केवल मनोवैज्ञानिक लक्षणों अथवा अनुक्रियाओं के बारे में बात की है परन्तु तनाव की अवस्था में तनाव से निबटने की तैयारी के Reseller में इन मनोवैज्ञानिक अनुक्रियायों के अलावा व्यक्ति के शरीर में कर्इ प्रकार की दैहिक या शरीरक्रियावैज्ञानिक अनुक्रियायें भी होने लगती हैं। इन अनुक्रियाओं का वर्णन निम्न पंक्तियों में Reseller जा रहा है।

ये अनुक्रियायें स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (autonomic nervours system) के द्वारा प्रारंभ की जाती हैं। तनाव हृदय गति, स्वसन गति, रक्तचाप और पाचन को प्रभावित करता है। जब आपातअवस्था टल जाती है तो व्यक्ति का शरीर पुन: पूर्वावस्था में लौट आता है। व्यक्ति की मांसपेशियों में तनाव भी काफी बढ़ जाता है। लार की मात्रा में काफी कमी आ जाती है ताकि फेफड़ों को अधिक-से- अधिक हवा प्रवेश करने के मार्ग में कहीं कोर्इ रूकावट नहीं आए। शायद यही कारण है कि तनावपूर्ण परिस्थिति में व्यक्ति को मुॅंह सूखा होने का अनुभव होता है।

तनाव की स्थिति में एन्डोरफिन्स (स्वाभाविक दर्दनाशक )के स्राव में बढ़ोत्तरी हो जाती है तथा शरीर की त्वचा में पायी जाने वाली रक्त नलिकायें सिकुड़ जाती हैं ताकि शरीर मे कुछ घाव होने की स्थिति में कम मात्रा में रक्तस्राव हो।

तनाव की अवस्था में प्लीहा द्वारा अधिक मात्रा में लाल रक्त कणिकाओं का उत्सर्जन होता है ताकि अधिक से अधिक ऑक्सीजन शरीर के अंगों को मिल सके। उपरोक्त All अनुक्रियायें स्वायत्त तंत्रिका तंत्र तथा अन्त:स्रावी ग्रन्थी विशेषकर एड्रीनल ग्रन्थि तथा पीयूष ग्रंथि की मदद से नियमित And नियंत्रित होती हैं। प्राय: ऐसी परिस्थिति में स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के कार्यों पर Single प्रकार से हाइपोथैलेमस का नियंत्रण होता है।

तनाव का सबसे बड़ा प्रभाव हाइपरटेंशन होता है। उच्च रक्तचाप को ही हाइपरटेंशन कहा जाता है। हृदय द्वारा उत्पन्न किये जाने वाले दबाव से रक्त शरीर के विभिन्न भागों में पहुॅंचता है। शरीर की Needनुसार हृदय का यह दाब घटता-बढ़ता रहता है। दिन के समय के According भी यह बदलता रहता है। सुबह के समय जब हम गहरी निद्रा में सो रहे होते हैं यह दबाव सबसे कम रहता है And हमारे उठने के समय से दिन शुरू करने अथवा व्यायाम के दौरान धीरे धीरे बढ़ता जाता है। जब यह रक्तचाप निरन्तर सामान्य से अधिक बना रहता है तो इसे हाइपरटेंशन कहा जाता है।

हाइपरटेंशन के बहुत से कारणों में व्यक्ति की जीवनशैली प्रमुख है। सामान्य तौर पर यह पाया गया है कि हाइपरटेंशन के मरीजों का व्यवहार पैटर्न टाइप ‘ए’ प्रकार का होता है जैसे कि ये लोग लक्ष्य केंद्रित, आक्रामक And स्वयं को नीचा देखे जाने के प्रति बिल्कुल भी सहनशीलनहीं होते हैं और इसीलिए इनके उद्देश्य उच्च से उच्चतर होते हैं। इनका सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम हमेंशा ही सतत Reseller से बढ़ी हुर्इ सक्रियता में रहता है जिसके कारण उच्च रक्तचाप की स्थिति बनी रहती है। सांवेगिक अवस्था भी रक्तचाप को प्रभावित करती है। उत्तेजना, गुस्सा And टेंशन रक्तचाप को बढ़ा देते हैं हालॉंकि यह कुछ ही मिनटों में सामान्य स्तर पर वापस आ जाता है। यह पाया गया है कि हाइपरटेंशन परिवार में Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में फैलता है। टाइप ए प्रकार के व्यक्तित्व के माता-पिता के बच्चों के रक्तचाप के रोगी होने की संभावना काफी बढ़ जाती है।

तनाव के दैहिक प्रभाव केवल हाइपरटेंशन अथवा हृदय की स्थिति तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह रोगप्रतिरोधक क्षमता को भी प्रभावित करता है (Lovallo, 1997)। तनाव की वजह से रिह्यूमेटाइड आर्थ्राइटिस का खतरा भी बढ़ जाता है ।

तनाव के दैहिक प्रभावों And अनुक्रियाओं को प्रसिद्ध शरीरक्रियावैज्ञानिक हैंस सेली ने तनाव के स्वयं के द्वारा प्रतिपादित मॉडल ‘सामान्य अनुकूलन संलक्षण’ (General Adaptation Syndrome or GAS) में विस्तार से स्पष्ट Reseller है। सेली का यह मॉडल उनके द्वारा पशुओं पर किए गये अध्ययन पर आधारित था परन्तु उनका यह दावा था कि तनाव की अवस्था में मनुष्यों में भी यही दैहिक अनुक्रियायें होती हैं। इन दैहिक अनुक्रियाओं को सेली ने तीन अवस्थाओं में बॉंटा है।

  1. चेतावनी की अवस्था (Stage of alarm reaction)
  2. प्रतिरोध की अवस्था (Stage of resistance)
  3. समापन की अवस्था (Stage of exhaustion)

चेतावनी की अवस्था (Stage of alarm reaction) – जब व्यक्ति तनावपूर्ण परिस्थिति से घिर जाता है तब उसके शरीर में दैहिक अनुक्रियायें प्रारम्भ हो जाती हैं सबसे First होने वाली अनुक्रियाओं को चेतावनी अनुक्रिया कहा जाता है। ये अनुक्रियायें दो उपअवस्थाओ के अन्तर्गत घटती हैं। पहली अनुक्रिया आघात अवस्था (shock phase) तथा दूसरी अवस्था प्रतिआघात (counter-shock phase) अवस्था कहलाती है। आसेधक से सामना होते ही व्यक्ति को आघात लगता है And वह आघात अवस्था में प्रवेश कर जाता है इसकी First प्रतिक्रिया स्वReseller दैहिक ताप न्यून हो जाता है, रक्तचाप गिर जाता है, हृदय गति मन्द हो जाती है तथा मांसेपेशियॉं शिथिल पड़ जाती हैं। इस अवस्था के तुरन्त बाद प्रतिघात की अवस्था उत्पन्न होती है जिसमें शरीर अपने Safty क्रियाओं को बढ़ा देता है तथा All तरह की आपातकालीन अनुक्रियाएॅं जैसे कि रक्तचाप, हृदय गति And श्वसन गति बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वReseller व्यक्ति की प्रतिरोध क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है।

प्रतिरोध की अवस्था (Stage of resistance) –यदि चेतावनी अवस्था में आसेधक की चुनौतियॉं समाप्त नहीं होती बल्कि जारी रहती हैं And आसेधक की उपस्थिति बनी रहती है तब शरीर को इससे निबटने हेतु अन्य उपायों का सहारा लेना होता है। यह अवस्था प्रतिरोध की अवस्था कहलाती है क्योंकि इस अवस्था मे कुछ हारमोन्स का स्राव होता है जिनसे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। इसके पीयूष ग्रंथि (pituitary gland) द्वारा एड्रीनल ग्रंथि (adrenal gland) का नियंत्रण Reseller जाता है जो एड्रिनोकोरटिकोट्रोपिक हारमोन (adrenocorticotropic hormone – ACTH) का रक्त में उत्सर्जन करता है जिससे शरीर आसेधक के शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को रोक पाने में सक्षम हो जाता है। इस ACTH के स्राव की मात्रा का नियमन हाइपोथेलेमस (हाइपोथेलेमस आसेधक की लगातार मौजूदगी से उत्तेजित हो CRF के उत्सर्जन द्वारा पीयूष ग्रंथि को संदेश भेजता है) द्वारा कौरटिकोट्रोपिन-रिलीजिंग-फैक्टर (CRF) के उत्सर्जन द्वारा Reseller जाता है। इस अवस्था में एड्रीनल कॉर्टेक्स के उत्तेजन से कॉर्टिसोल नामक हारमोन्स स्रावित हो रक्त में मिलता है तथा शरीर को आसेधक के प्रतिरोध हेतु सक्षम बनाता है। लम्बे समय तक इसके स्रावित होने पर यह शरीर के लिए हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करने लगता है And व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। इस समय किसी नये आसेधक की उपस्थिति होने पर व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता काफी घट जाती है और व्यक्ति समापन की अवस्था में पहुॅंच जाता है।

समापन की अवस्था (Stage of exhaustion) – प्राणी की शिथिलता बढ़ जाती है वह निष्क्रिय समान हो जाता है तथा रोगग्रस्त हो जाता है। शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता के घट जाने से बीमारियों के जकड़ लेने की संभावना बढ़ जाती है। अल्सर, उच्चरक्तचाप, कैंसर And मधुमेह आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं And व्यक्ति की मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।

तनाव के कारण

तनाव उत्पत्ति के कारकों पर मनोवैज्ञानिकों द्वारा गहन अध्ययन Reseller गया है जिसके आधार पर तनाव उत्पत्ति के प्रमुख कारकों की Single सूची विनिर्मित की गयी है। निम्नांकित पंक्तियों मेंं इन्हीं कारकों का वर्णन Reseller जा रहा है। इनमें प्रमुख हैं- 1. कुंठा (frustration) – 2. दैनिक उलझनें (daily hasseles) – 3. जीवन की तनावपूर्ण घटनायें (stressful events of life)- 4. अभिप्रेरकों का द्वन्द (conflict of motives) – 5. कार्यसंबंधी स्रोत (work-related sources) – 6. पर्यावरण संबंधी स्रोत (environmental sources)

  1. कुंठा (frustration) – तनाव की उत्पत्ति के प्रमुख स्रोतों में मनोवैज्ञानिक कारकों के Reseller में कुंठा की उत्पत्ति भी तनाव का Single प्रमुख स्रोत है। कुंठा Single प्रकार की मनोदशा है यह तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति की चाहतों अथवा लक्ष्य प्राप्ति के बीच कोर्इ बाधा खड़ी हो जाती है। या किसी अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों द्वारा बाधा खड़ी कर दी जाती है। उदाहरण के लिए ऐसे अनेक कारक हैं जो कि व्यक्ति की लक्ष्य प्राप्ति अथवा इच्छापूर्ति में बाधक हो सकते हैं जैसे-अनाथ होना, विकलांगता, दोषभाव, कुशलता की कमी, आत्मनियंत्रण की कमी, आर्थिक भेदभाव, जाति-धर्म-क्षेत्रीयता आधारित भेदभाव आदि। उदाहरण के लिए यदि आप का लक्ष्य नौकरी प्राप्त करना है परन्तु नौकरी हेतु साक्षात्कार देने के उपरान्त अन्य प्रतिभागियों से आप को ज्ञात होता है कि क्षेत्रीयता को वरीयता दी जा रही है और आप उस क्षेत्र के नहीं हैं तो यह क्षेत्र आधारित भेद आपको आपके लक्ष्य में Single बाधा के Reseller में खड़ा दिखार्इ देगा। इससे आपके सम्मुख यह आसेधक का कार्य करेगा And आप तनाव ग्रस्त हो सकते हैं। इसी तरह यदि आप विकलांग हैं तथा नौकरी देने वाले Single पूर्णांग वाले व्यक्ति को विकलांग पर वरीयता दे रहे हैं तो आप को अपनी विकलांगता Single बाधा के Reseller में प्रत्यक्षित होगी And आप तनावग्रस्त हो जायेंगे।
  2. दैनिक उलझनें (daily hassles) – लेजारस And कैनर जैसे मनोवैज्ञानिकों ने जीवन से जुड़ी छोटी-छोटी उलझनों से भी तनाव होने की बात को अपने अध्ययनों के माध्यम से सिद्ध Reseller है। उन्होंने इसके अध्ययन के लिए Single मापनी का भी निर्माण Reseller है। जिसे उलझन मापनी यानि ‘हैजल्स स्केल’ (hassles scale) कहा जाता है। इसे मापनी में व्यक्ति को अपने पिछले महीने में घटी उन घटनाओं के बारे में बताना होता है जिन्में उसे उलझन का अनुभव हुआ था। इन उलझनों को तनाव के साथ संहसंबंधित करने पर सकारात्मक सहसंबंध प्राप्त हुए हैं। जिनसे यह साबित होता है कि दिन-प्रतिदिन की उलझनों से व्यक्ति में तनाव उत्पन्न होता है। इन उलझनों को इन मनोवैज्ञानिकों निम्नलिखित Reseller से वर्गीकृत Reseller है।
    1. पर्यावरणीय उलझनें (environmental hassles) – पर्यावरणीय उलझनों में वे All उलझनेंआती हैं जिनका संबंध आसपास के वातावरण से है। उदाहरण के लिए लोगों की भीड़ से उत्पन्न शोरगुल जैसे बाजार आदि, लाउडस्पीकर, भारी यातायात आदि से उत्पन्न उलझन, अपराध जैसे-चोरी, लूट, मारपीट आदि में बढ़ोत्तरी, पास-पड़ोस में होने वाले झगड़ें आदि। 2. घरेलू उलझनें (household hassles) – घर के दैनिक कार्यों जैसे कि घर की साफ-सफार्इ, भोजन बनाना, सब्जी खरीदना, बिजली-पानी-किराया जमा करना, दूध लेना, कपड़े धोना आदि को नित्यप्रति की घरेलू उलझनों के Reseller में चिह्नित Reseller गया है।
    2. आन्तरिक उलझनें (inner concern hassles) – स्वयं से संबंधित उलझनों को इस वर्ग में रखा जाता है। उदाहरण के लिए किसी स्वजन का नाराज हो जाना, पत्नी का रूठ जाना, मित्रों से मनमुटाव हो जाना आदि को आन्तरिक उल्झनों के Reseller में चिह्नित Reseller जाता है।
    3. समयाभाव से उत्पन्न उलझनें (hassles due to lack of time) – व्यक्ति द्वारा Single साथ कर्इ भूमिकायें ले लेने पर या भूमिकायें होने पर उन्हें Single साथ पूरा करने के लिए प्राय: समय की कमी पड़ जाती है। इस प्रकार की उलझनें समयाभाव से उत्पन्न उलझनों के अन्तर्गत रखी जाती हैं।
    4. आर्थिक जिम्मेदारी से उत्पन्न उलझनें (hassles arising due to financial responsibility) –किसी अन्य संबंधी का आर्थिक उत्तरदायित्व आ पड़ने अथवा किसी कंपनी, स्कूल आदि में आर्थिक जिम्मेदारी दिये जाने से जो उलझन होती हैं उसे इस श्रेणी के अन्तर्गत रखा जाता है।
    5. कार्य उलझनें (work hassles) – कार्य में रूचि न होना, कार्य के स्वReseller से असंतुष्टि होना, कार्य की कमी होना, कार्य का अतिरिक्त भार होना, कार्य का उचित पारिश्रमिक न मिलना, कार्य के स्थान का उचित न होना, प्रोन्नति के अवसर का न होना, कार्य से हटाये जाने की संभावना आदि से उत्पन्न उलझनों को कार्य उलझनों के अन्तर्गत रखा जाता है।
  3. जीवन की तनावपूर्ण घटनायें (stressful events of life)- प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक होम्स And राहे(Holmes & Rahe,1967) ने जीवन की तनावपूर्ण घटनाओं पर गहन अध्ययन Reseller है। इस अध्ययन के According व्यक्ति के जीवन में बहुत प्रकार की घटनायें घटती रहती हैं। कुछ घटनायें सुखद् होती हैं And कुछ दुखद्। जो व्यक्ति इन घटनाओं से अपना सामंजस्य बिठा लेते हैं Meansात परिस्थितियों से विचलित नहीं होते Meansात् परिस्थितियों के साथ समायोजन कर लेते हैं उन्हें तनाव नहीं होता परन्तु वे व्यक्ति जो परिस्थितियों के साथ समायोजन नहीं कर पाते वे तनावग्रस्त हो जाते हैं। परिणाम स्वReseller व्यक्ति में कर्इ प्रकार के दैहिक And भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। जीवन की तनावपूर्ण घटनाओं से उत्पन्न तनाव को मापने के लिए होम्स And राहे ने ‘सामाजिक पुनर्समायोजन रेटिंग मापनी का निर्माण Reseller है। इसके अन्दर विभिन्न प्रकार की 43 घटनाओं को रखा गया है जैसे कि विवाह विच्छेद, विवाह, पति अथवा पत्नी की मृत्यु, तलाक, परिवार के किसी सदस्य की बीमारी, ससुराल वालों से झगड़ा, घर के किसी सदस्य का गुम हो जाना आदि। इन घटनाओं के को इकार्इ मूल्य प्रदान किये गये हैं। सर्वाधिक तनावपूर्ण घटना का इकार्इ मूल्य 100 रखा गया है। All इकार्इ मूल्यों को जोड़ने पर जो कुल अंक हासिल होते हैं वे तनाव को निर्धारित करते हैं। अधिक प्राप्तांक अधिक तनाव को बताते हैं।  यद्यपि यह सच है कि जीवन की महत्वपूर्ण घटनायें तनाव का कारण होती हैं। परन्तु यह All व्यक्तियों पर लागू नहीं होता है। क्योंकि व्यावहारिक तौर पर यह पाया गया है कि कुछ व्यक्तियों के लिए जो घटना अत्यंत महत्वपूर्ण होती है तथा जिससे उन्में गंभीर तनाव होता है वही घटना अन्य व्यक्तियों के लिए तनिक भी महत्वपूर्ण नही होती है अत: उन्हें उसके साथ समायोजन की Need ही नहीं होती। ऐसी स्थिति में होम्स And राहे द्वारा विभिन्न प्रकार की घटनाओं के लिए निर्धारित इकार्इ मूल्य विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के लिए कम अथवा ज्यादा भी हो सकते हैं। फिर भी जीवन की महत्वपूर्ण घटनाएॅं तनाव का Single प्रमुख स्रोत हैं इससे इंकार नहीं Reseller जा सकता है।
  4. अभिप्रेरकों का द्वन्द (conflict of motives) – अभिप्रेरकों के बीच संघर्ष भी तनाव का Single महत्वपूर्ण स्रोत है।जब व्यक्ति को दो अभिप्रेरकों में से किसी Single को चुनना होता है तब उसमें संघर्ष उत्पन्न होता है। किसी Single अभिप्रेरक को चुनने का यह संघर्ष कर्इ बार तनाव उत्पन्न कर देता है। उदाहरण के लिए समाज में प्रतिस्पर्धा And सहयोग दोनों के ही व्यवहार को बढ़ावा दिया जाता है जिसके कारण व्यक्ति के मन में प्राय: अभिप्रेरकों का संघर्ष छिड़ जाता है, Single ओर जहा First स्थान प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा आवश्यक होती है वहीं दूसरों का समर्थन स्नेह व प्यार पाने के लिए सहयोग जरूरी होता है। प्रतिस्पर्धा में सहयोग बाधक होता है And सहयोग करने पर प्रतिस्पर्धा नहीं की जा सकती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कर्ट लेविन ने तीन प्रकार के अभिप्रेरकों के संघर्ष के बारे में वर्णन Reseller है। वे निम्न हैं।
    1. पहुॅंच-पहुॅंच संघर्ष (approach-approach conflict) –जब व्यक्ति के सम्मुख उसकी पसंद के कम से कम दो अवसर होते हैं जिनमें से वह किसी Single को चुन सकता है तो ऐसी स्थिति में वह कौन से अवसर का चुनाव करे इसे लेकर उसके मन में जो संघर्ष उत्पन होता है उसे पहुॅंच-पहुॅंच संघर्ष कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति के सम्मुख नौकरी के दो उत्तम प्रस्ताव आते हैं जिनमें से Single प्रस्ताव विदेश में आकर्षक वेतनमान And सुविधाओं से संबंधित हो और दूसरा प्रस्ताव घर के पास अच्छे वेतनमान से संबंधित हो तो व्यक्ति के मन में विदेश में रहने व घर में से किसी Single से संबंधित नौकरी को चुनने की समस्या खड़ी हो जाती है। मन दोनों में से किसी को भी छोड़ना नहीं चाहता है परन्तु उसे Single को तो चुनना ही है, अतएव पहुॅंच-पहुॅंच संघर्ष उत्पन्न हो जाता है जिससे प्रकारान्तर से उसे तनाव का अनुभव होता है।
    2. परिहार-परिहार संघर्ष (avoidance-avoidance) – जब व्यक्ति के सम्मुख ऐसी दो स्थितियांॅं उत्पन्न हों जो नकारात्मक हों अथवा जोखिम भरी हों, जिनमें से उसे कोर्इ भी स्थिति पसंद नहीं हो, और उसे किसी Single को चुनना ही हो तो ऐसी स्थिति में परिहार-परिहार संघर्ष उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि किसी व्यक्ति को मौत की सजा मिले लेकिन उसे मौत के किन्हीं दो तरीकों जैसे कि जहर खाने से मृत्यु अथवा फांसी में से किसी Single का चयन करना हो तो परिहार-परिहार संघर्ष उत्पन्न हो जायेगा क्योंकि व्यक्ति वस्तुत: मरना सपंद नहीं करता अतएव वह दोनों से ही बचना चाहेगा। 
    3. पहुॅंच-परिहार संघर्ष (approach-avoidance) – जब व्यक्ति को Single ही पसंद में वांछनीय And अवांछनीय दोनों ही अभिप्रेरकों का सामना करना पड़ता है तब पहुॅंच-परिहार संघर्ष प्रारम्भ हो जाता है। उदाहरण के लिए यदि कोर्इ व्यक्ति अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता है परन्तु उसे तलाक के उपरान्त गुजारा भत्ता नहीं देना चाहता तो ऐसी परिस्थति में उसमें पहुॅंच-परिहार संघर्ष से तनाव उत्पन्न हो जाता है। मनोवैज्ञानिकों के According उपरोक्त तीनों प्रकार के संघर्षों में पहुॅंच-परिहार संघर्ष तनाव उत्पत्ति का सर्वाधिक प्रमुख स्रोत है।
  5. कार्य संबंधी स्रोत (work-related sources) – यहॉं कार्य से तात्पर्य जीविका हेतु किये जाने वाले नौकरी अथवा पेशे से है। कार्य से संबंधित कर्इ प्रकार के विभिन्न कारक होते हैं जो कि व्यक्ति में तनाव उत्पन्न कर सकते हैं। उदाहरण के लिए दिये गये कार्य की प्रकृति का रूचिपूर्ण न होना, परिणामस्वReseller ऐसे कार्य को प्रारम्भ में तो व्यक्ति आराम से संपादित करता है परन्तु बाद में उसमें उसके प्रति ऊब का भाव विकसित हो जाता है, जो लम्बे समय तक जारी रहने पर तनाव उत्पन्न करता है। यदि कार्यस्थल पर व्यक्ति को यह महसूस होता है कि कार्यस्थल का भौतिक वातावरण जैसे कि पानी, हवा, रोशनी, तापमान आदि उचित परिमाण में नहीं है अथवा अनुपयुक्त है तो इससे उसमें तनाव उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्षमता से अधिक कार्य दे दिया जाता है जिसे वह समय पर पूरा नहीं कर पाता, अथवा कर्इ भूमिकायें Single साथ निर्वहन हेतु दे दी जाती हैं जिनमें सामंजस्य रख पाना उसके लिए कठिन हो जाता है तब इन कारणों से उसमें तनाव उत्पन्न हो जाता है। कार्य में अपनी भूमिका स्पष्ट नहीं होने पर, योग्यता अनुReseller कार्य नहीं मिलने पर, बॉस And अन्य सहयोगियों की अधिक प्रत्याशायें होने पर भी व्यक्ति तनाव का अनुभव करता है।
  6. प्रर्यावरण संबंधी स्रोत (environmental sources) – पर्यावरण भी तनाव उत्पत्ति का Single प्रमुख स्रोत है। पर्यावरण पर्यावरणीय बदलावों के Reseller में व्यक्ति को तनावग्रस्त करने की सामथ्र्य रखता है। पर्यावरण में घटने वाली प्राकृतिक घटनायें जैसे कि, भूस्खलन, भूकंप, बाढ़, हिमस्खलन, तीव्र आंधी, तूफान, चक्रवात, भारी वर्षा व्यक्ति में तनाव उत्पन्न कर देते हैं। जब लोग ऐसे वातावरण में निवास करते हैं जहॉं भूकंप बार-बार आते रहते हैं अथवा भूस्खलन, बाढ़, तूफान अथवा चक्रवात जैसी घटनायें बार-बार घटती रहती हैं तों उनसे प्रभावित होने की संभावना के कारण व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। केवल स्वाभाविक घटनायें ही नहीं बल्कि मनुष्य निर्मित पर्यावरणीय कारक भी व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे रिहायशी इलाकों में शोरगुल प्रदूषण, परमाणु परीक्षण, औद्योगिक कचरा प्रदूषण, वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण आदि।

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