मनोरोग के प्रकार

मनोचिकित्सा विज्ञान में मनोरोगों का वर्गीकरण करना अत्यधिक भिन्न तथ्यों अथवा लक्षणों को Single कोटि में लाने का प्रयास है। वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य Single ही प्रकार के चिकित्सकीय लक्षणों वाले रोगियों के समूह की पहचान करना है। जिससे उनके उपचार की Single उपयुक्त योजना बनार्इ जा सकें और इसके सम्भावित परिणाम की व्याख्या की जा सके। मनोचिकित्सा विज्ञान में व्याधि And बीमारी जैसे दो समान सम्बन्धित प्रत्ययों के लिये सामाजिक And व्यवहारिक प्रतिमान के अपेक्षा चिकित्साशास्त्र के प्रतिमान (medical model) का समर्थन Reseller गया है।

अधिकतर शारीरिक स्थितियों को हेतुकी And संरचात्मक विकृति के आधार पर वर्गीकृत Reseller जा सकता है। कुछ सामान्य चिकित्सकीय स्थितियों जैसे माइग्रेन,ट्रार्इजेमिनल न्यूरालजिया को अभी तक इस प्रकार से वर्गीकृत नहीं Reseller जा सका है, जिसके कारण उनका वर्गीकरण केवल लक्षणों के आधार पर ही Reseller गया है। मानसिक विकार मुख्य Reseller से इस Second प्रकार की स्थिति के समान ही है। यद्यपि कुछ मनोरोगों में शारीरिक हेतुकी को माना गया है किन्तु अधिकांश का वर्गीकरण केवल लक्षणों के आधार पर ही Reseller जा सकता है। कुछ प्रमुख मनोरोगों के प्रकार जो DSM – TR में संलग्न है, वो इस प्रकार है –

चिन्ता विकार –

चिन्ता को काफी लम्बे समय से कर्इ मनोरोगों के लक्षण के Reseller में पहचाना जाता है। First फ्र्रायडा (1895) ने कहा कि ऐसे मामले जिसमें मुख्य Reseller से चिन्ता के ही लक्षण हों, फ्रायड के चिन्ता मन:स्ताप में भीतियों (Phobia) And संत्रास (panic attack) को सम्मिलित Reseller गया है परन्तु उन्होंने इसे दो भाग में बाँटा है – First, जिसे चिन्ता मन:स्ताप का नाम दिया गया है जिसमें मुख्यत: मानसिक लक्षण वाली घटनाएँ थी, दूसरा उसको जिसे चिन्ता हिस्टीरिया का नाम दिया गया, जिसमें चिन्ता के शारीरिक लक्षण वाली घटनायें थी। फ्रायड का मानना था कि चिन्ता विकार And चिन्ता हिस्टीरिया लैंगिक अन्तर्द्वन्द के कारण होते है।

चिन्ता मनोरोग Single ऐसी असामान्य स्थिति है, जिसमें मुख्य Reseller से चिन्ता के मानसिक And शारीरिक लक्षणों की प्रधानता होती है। इन लक्षणों की उत्पत्ति किसी आंगिक मस्तिष्क रोग व अन्य मनोरोगों के कारण से नहीं होता है। DSM IV में चिन्ता मनोराग का तात्पर्य ऐसे विकार से लगाया गया है जिसमें रोगी में अवास्तविक चिन्ता And अतार्किक डर की मात्रा इतनी अधिक होती है कि उससे उसके सामान्य जीवन का व्यवहार प्रतिकूलित हो जाता है।

चिन्ता विकृति के प्रकार –

DSM IV TR (2000) में चिन्ता विकृति के निम्न छ: प्रकार बताये गये हैं –

  1. दुभ्र्ाीति (Phobias) 
  2. भीशिका विकृति (Panic disorder) 
  3. सामान्यीकृत चिन्ता विकृति (Generalized anxiety disorder or GAD) 
  4. मनोग्रस्ति बाध्यता विकृति (Obsessive – Compulsive disorder or OCD) 
  5. उप्तर आघातीय तनाव विकृति (Post – traunatic stress disorder or PTSD) 
  6. तीव्र तनाव विकृति (Active stress disorder)

देहResellerी विकार –

देह का Means शरीर होता है और देहResellerी विकारों में चिन्ता पर आधारित मनस्तापी प्रतिदर्श होते है जिसमें व्यक्ति कर्इ प्रकार के शारीरिक लक्षणों को प्रस्तुत करता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है जैसे उस व्यक्ति को शारीरिक समस्या है परन्तु इन लक्षणों अथवा समस्याओं का कार्इ अंगिक आधार नहीं मिलता है।

देहResellerी विकारों की मुख्य विषेषता विभिन्न शारीरिक लक्षणों को बार – बार प्रस्तुत Reseller जाना है परन्तु किसी प्रकार की जाँच And परीक्षणों पर भी उनका कोर्इ शारीरिक आधार नहीं मिलता है। मुख्य Reseller से देहResellerी विकार निम्न प्रकार के होते है-

  1. दैहिकीकरण विकार (Somatization Disorder) 
  2. रोग भ्रमी विकार (Hypochondrial Disorder) 
  3. देहResellerी स्वचालित अकार्यता (Somataform Otonomic Dusfunction )  
  4. पीड़ा विकार (Pain Disorder) 
  5. शरीर दुष्क्रिया आकृति विकार (Body Dysmorphic Disorder)

1. दैहिकीकरण विकार – 

इस विकार में अनेकानेक पुनरावर्तक And बारम्बार परिवर्तनशील शारीरिक लक्षण , रोगी में पूर्व कर्इ वर्षो से विद्यमान होता है। दैहिकीकरण विकार में कम से कम आठ तरह के लक्षण निश्चित Reseller से होते है जो इस प्रकार है –

  1. चार तरह के दर्द के लक्षण – इसमें दर्द सिर, पेट, पीठ, छाती, पेशाब करने के दौरान, मासिक धर्म के दौरान, लैगिंक क्रिया के दौरान आदि में से किसी चार से सम्बद्ध हो सकता है। 
  2. दो आमाशयांत्र लक्षण – कम से कम दो आमाशयांत्र (Gestrointestinal) लक्षण जैसे – मिचले, के, डायरिया, पेट फूलना आदि अवश्य हुए हों। 
  3. Single लौंगिक लक्षण – इसमें कम से कम Single लैगिक लक्षण जैसे लैगिक तटस्थता (Sexual indefference) स्खलन समस्याएँ (Ejacalatory problem ) अनियमित मासिक स्राव, मासिक स्राव में अत्यधिक रक्त निकलना आदि अवश्य हुए हो। 
  4. Single कूटस्नायविक लक्षण – कम से कम Single कूटस्नायविक (pseudoneuroligical) लक्षण जैसे अंधापन द्विदृष्टि, बहरापन, स्पर्श संवेदना की कमी, विभ्रम, पक्षाघात, कंठ में दर्द या खाते समय निगलने में कठिनार्इ आदि अवश्य हुए हो।

2. रोगभ्रमी विकार – 

इस विकृति में व्यक्ति अपने स्वास्थ्य के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचता है तथा उसके बारे में चिंता करता है। उसके मन में अक्सर यह घात बनी रहती है कि उसे कोर्इ न कोर्इ शारीरिक व्याधि या बिमारी हो गर्इ है औ उसकी यह चिंता इतनी अधिक हो जाती है कि वह अपने दिन प्रतिदिन की जिंदगी के साथ समायोजन करने में असमर्थ रहता है। DSM IV (IR) की कसौटी के According इस तरह की चिंता व्यक्ति में कम से कम छ: महीने तक बने रहने पर ही उसे रोगीभ्रम विकार की श्रेणी में रखा जा सकता है अन्यथा नहीं। इस विकृति में रोगी की शिकायत किसी Single अंग विषेष तक सीमित नहीं रहती है। कभी – कभी उन्हें लगाता है कि पेट में भयानक रोग हो गया है तो कभी – कभी उनके सिर में गड़बड़ी नजर आती है। इसी तरह से उन्हें अपने यौन अंगों में किसी ढंग का शारीरिक रोग होने की खौफनाक चिंता होती है। जब ऐसे रोगियों से उनके लक्षण के बारे में विस्तृत Reseller से पूछ – ताछ की जाती हैं। तो वे उसकी सही-सही वर्णन करने में असमर्थ रहते है। मेडिकल परीक्षण से जब यह बात स्पष्ट हो जाती हे कि वास्तव में उनकी आशंकाएँ निराधार है तो भी उन्हें यह विश्वास नहीं होता है कि उनमें कोर्इ रोग नहीं है। बल्कि वे मेडिकल परीक्षणों में कुछ कमी रह जाने की बात करते है आधुनिक अध्ययनों से यह पता चला है कि यह रोग महिलाओं And पुरूषो में लगभग समान ढंग से होता है।

3. पीड़ा विकार – 

इस विकृति में रोगी गंभीर या स्थायी तौर पर दर्द का अनुभव करता है जबकि इस तरह के दर्द कोर्इ दैहिक आधार (Physical basis) नहीं होता है। इस तरह का दर्द प्राय: हृदय या अन्य महत्वपूर्ण अंगों के क्षेत्र में सम्बद्ध होता हे। गहन मेडिकल जाँव में ऐसे रोगियों के दर्द का कोर्इ भी स्पष्ट आधार व विकृति नहीं मिलती है। सामान्यत: इस तरह के दर्द की उत्पत्त्रि का सम्बन्ध किसी प्रकार के संघर्ष या तनाव से होता है या जब व्यक्ति किसी दुखद परिस्थिति से छुटकारा पाना चाहता है या अन्य लोगों की सहानुभूति या ध्यान को अपनी ओर खींचना चाहता है, तो इस तरह को दर्द व्यक्ति में उत्पन्न होते देखा गया है। मनश्चिकित्सकों का मत है कि इस रोग के निदान में काफी दिक्कत इसलिए होती है क्योंकि दर्द Single पूर्णत: आत्मनिष्ठ अनुभूति है जो मनोवैशानिक Reseller से प्रभावित होने वाली घटना है। अत: यह पहचान करना मुश्किल हो जाता है कि व्यक्ति में हाने वाला दर्द का स्वReseller कायप्राReseller (Somatoform) है या वह वास्तविक दर्द है।

4. शरीर दुश्क्रिया आकृति विकार – 

इस विकृति में रोगी को अपने चेहरे में कुछ कल्पित दोष (Imagined defect) उत्पन्न हो जाने की आशंका उत्पन्न हो जाती है। जैसे सम्भव है कि रोगी को यह विश्वास हो जाए कि उसके नाम का आकार दिनों दिन बढ़ा होता है या होता जा रहा है, या उसके ऊपरी होंठ ऊपर की दिशा में तथा निचली होंठ नीचे की दिशा में लटकता जा रहा है। इस तरह के कल्पित दोष से वह इतना अधिक चिंतित रहता है कि उसके दिन प्रतिदिन के सामाजिक जिंदगी में काफी परेशानी आ जाती है और समायोजन सम्बद्ध समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है।

इस तरह की विकृति से संबद्ध कम शोध किये गये है। इस तरह की विकृति वाले अधिकतर रोगी यूरोपियन And एशियन देशों के मानसिक अस्पतालों में कुछ देखने को मिले है। अमेरिका में इस तरह के रोग न के बराबर देखे गए है। यही कारण है कि कर्इ मनचिकित्सकों में इस बात पर मतभेद है कि इसे कायप्राReseller विकृति (Somatoform disorder) का Single स्वतंत्र प्रकार माना जाए या नहीं।

मनोविच्छेदी विकृतियाँ – 

मनोविच्छेदीविकृति Single महत्वपूर्ण And सामान्य मानसिक रोग है जिसमें रोगी के मानसिक प्रक्रियाएँ विषेषकर स्मृति या चेतना जो समन्वित रहता है, विच्छेदित हो जाता है। इसमें स्मृति का कुछ क्षेत्र चेतन से विच्छेदित होकर अलग हो जाता है जिससे व्यक्ति अपने आप को तथा वातावरण को भिन्न ढंग से प्रत्यक्षण करने लगता है। कहने का तात्पर्य यह है कि मनोविच्छेदी विकृति का सबसे प्रमुख लक्षण विच्छेदन है। विच्छेदन की अनुभूति में अन्य बातों के अलावा निम्नांकित तरह की अनुभूतियाँ अधिक होती है –

  1. स्मृतिलोप (Amnesia) – स्मृतिलोप में रोगी अपने पूर्व अनुभूतियों का आंशिक या पूर्णResellerेण प्रत्याहृन (Crecall) करने में असमर्थ रहता है। 
  2. व्यक्तित्वलोप (Depersonalization) – इसमें रोगी को पूरा वातावरण ही अवास्तविक And अविश्वसनीय लगता है। 
  3. पहचान संभ्राति /आत्मविस्मृति (Identify confusion) – इसमें रोगी को अपने बारे में यह संभ्राति उत्पन्न होती है कि वह कौन है, क्या है, आदि। 
  4. पहचान बदलाव – इसमें रागी कभी – कभी कुछ आश्चर्य उत्पन्न करने वाले कौशलों से अपने को लैश पाता है। रोगी को आश्चर्य इसलिए होता है कि उसे पता भी नहीं रहता है कि उसमें ऐसा कौशल है। जैसे सम्भव है कभी – कभी रोग विदेशी भाषा में कुछ ऐसे Wordों का उपयोग करके अपने सम्भाशण को आकर्शक बना देता है कि उसे आश्चर्य होने लगता है।

मनोविच्छेदी विकृति के प्रकार –

मनोविच्छेदी विकृति (Dissociative Disorder) के कर्इ तरह के प्रकार बतलाये गये हैं, जिनमें निम्नांकित चार प्रमुख है –

  1. मनोविच्छेदी स्मृतिलोप (Dissociative Amnesia) – इस रोग में व्यक्ति अपने ऐसे अनुभवों का प्रत्याहृान पूर्णत: या अंशत: नहीं कर पाता है, जो तनाव उत्पन्न करने वाला होता है या जो मानसिक आघात उत्पन्न किये होते है। स्मृतिलोप के अनेक प्रकार होते है, जिनमें निम्न प्रमुख है।
    1. पश्चगामी स्मृतिलोप (Retrogracle Amensia) 
    2. उत्तर अघातीय स्मृतिलोप (Post traumatic amnesia) 
    3. अग्रगामी स्मृतिलोप (Anterograde amnesia) 
    4. चयनात्मक या श्रेणीबद्ध स्मृतिलोप (Selective of categorical amnesia) 
    5. सामान्यीकृत स्मृतिलोप (Generalized amnesia) 
    6. सतत स्मृतिलोप (Continuous amnesia) 
    7. क्रमबद्ध स्मृतिलोप (Systemized amnesia)
  2. मनोविच्छेदी आत्मविस्मृति (Dissociative Fugue) – इसे First मनोजनिक आत्म विस्मृति (psychogenic Fugue) कहा जाता था। इसमें व्यक्ति में स्मृतिलोप (amnesia) के लक्षण तो होते ही है। साथ ही साथ वह अपने घर या सामान्य निवास स्थान छोड़कर And अप्रत्याशित ढंग से दूर चला जाता है और वह वहाँ नया काम, नया नाम, बताकर Single नयी जिन्दगी की शुरूआत करता है। कर्इ दिन, महीना तथा कभी -कभी साल बीत जाने के बाद फिर रोगी अचानक अपने आप को नये जगह में पाकर आश्चर्यचकित रह जाता है और फिर वह नयी जिन्दगी के बारे में सब कुछ भूल जाता है। उसे यह भी समझ में नहीं आता कि वह किस तरह यहाँ आता था और क्यों आता था। अध्ययनों से यह स्पष्ट है कि सामान्य जनसंख्या का करीब 0.2 प्रतिशत लोगों में ही इस तरह का रोग पाया जाता है। स्पष्टत: तब इस तरह के रोग का प्रचलन काफी कम है।
  3. मनोविच्छेदी पहचान विकृति (Dissociative Identify Disorder)- इस रोग को First बहुत्यक्तित्व विकृृति (Multipli Personality Disorder) कहा जाता था। क्प्क् में Single ही व्यक्ति में दो या दो से अधिक भिन्न व्यक्तित्व अवस्थाएँ पायी जाती है। प्रत्येक अवस्था अपने आप में सवंगात्मक And भावात्मक दृश्टिकोण से काफी सुसज्जित And संगठित होते है और प्रत्येक व्यक्तित्व तंत्र का अपना – अपना अलग विचार And संज्ञान (Cognition) होता है। व्यक्ति Single व्यक्तित्व अवस्था में कुछ समय (जैसे कुछ महीना या साल) Single रहकर फिर अपने आप Second व्यक्तित्व अवस्था में चला जाता है। Single व्यक्तित्व अवस्था व्यक्तित्व अवस्था में नाटकीय ढंग से भिन्न होता है। जैसे व्यक्ति Single व्यक्तित्व अवस्था में कुछ मजाReseller, चिंतामुक्त व्यवहार कर सकतता है तो दूसरी अवस्था में वह किसी गंभीर, शान्त And चिन्तायुक्त व्यक्ति समान व्यवहार कर सकता है। वैसी Needएँ And व्यवहार जो मुख्य व्यक्तित्व में अवरूद्ध And दबी होती है, वे अन्य व्यक्तित्व अवस्थाओं में विषेष Reseller से अभिव्यक्ति होती हे। इसे First भूतबाधा आदि के Reseller में प्रत्यक्षण Reseller जाता था।
  4. व्यक्तित्व विकृतियाँ (Personality Disorders)-व्यक्तित्व विकृति किसी तनावपूर्ण परिस्थिति (Stress Situation) के प्रति Single प्रतिक्रिया नहीं होती है जैसा कि हम Adjustment disorder में पाते है न ही वह चिंता के प्रति Single तरह का अपरिपक्व व्यक्तित्व विकास का प्रतिफल होता है। इा तरह की व्यक्तित्व विकृतियों के लक्षण किशोरावस्था तक स्पष्ट हो जाते है जो वयस्कावस्था में भी मौजूद रहते है। व्यक्तित्व विकृति मूलत: शीलगुणों की विकृति है। Second Wordों में व्यक्तित्व विकृति वैसा विकृति है, जो पर्यावरण को कुसमायोजित ढंग से प्रत्यक्षण करने तथा उसके प्रति अनुक्रिया करने की प्रवृत्ति की ओर इशारा करता है।

व्यक्तित्वलोप विकृति – 

इसमें व्यक्ति का आत्मन् का प्रत्यक्षण अथवा अनुभव इस हद तक बदला रहता है कि उससे पृथकता का भाव उत्पन्न होता है। व्यक्ति स्वयं को यंत्र के समान चलने वाला प्राणी मानने लगता है। उसे लगता है कि वह स्वप्न की दुनिया में विचरण कर रहा है और वह स्वयं की ही मानसिक तथा शारीरिक प्रक्रियाओं का Single बाहरी प्रेक्षक बनकर उनका निरीक्षण कर रहा है। इस रोग में व्यक्ति को संवेदी भ्रामक, भावात्मक अनुक्रियाओं की कमी, अपनी की क्रियाओं पर नियंत्रण न होने का भाव आदि होते देखा गया है। इस प्रकार के रोगियों में सम्मोहनशीलता का गुण अधिक पाया जाता है।

व्यक्तित्व विकृति के प्रकार (Types of personality disorder)-

DSM – IV ( TR) जो मनोरोग के वर्गीकरण की नवीनतक सर्वमान्य अमेरिकतन पद्धति है, के According व्यक्तित्व विकार के निम्न 10 प्रकार है –

  1. स्थिर व्यामोही व्यक्तित्व विकृति 
  2. स्किजोआयड व्यक्तित्व विकृति 
  3. स्किजाटाइपल व्यक्तित्व विकृति 
  4. हिस्ट्रीओनिक व्यक्तित्व विकृति 
  5. आत्ममोही व्यक्तित्व विकृति 
  6. समाज विरोधी व्यक्तित्व विकृति 
  7. सीमान्तरेखीय व्यक्तित्व विकृति 
  8. परिवर्जित व्यक्तित्व विकृति 
  9. अवलम्बित व्यक्तित्व विकृति 
  10. मनोग्रस्ति बाध्यता व्यक्तित्व विकृति ।

मनोदशा विकृतियाँ And आत्महत्या (Mood disorder and suicide) – मनोदशा विकृति जैसा नाम से ही स्पष्ट है, Single ऐसी मानसिक विकृति है जिसमें व्यक्ति के भाव, संवेग And संबधित मानसिक दशाओं में इतना उतार – चढ़ाव होता है कि वह अपने दिन प्रतिदिन के जवन में समायोजन का सामान्य स्तर बना कर नहीं रख पाता है और उसकी सामाजिक And पेशेवर जिंदगी में तरह – तरह की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती है। इस तरह की मानसिक विकृति में व्यक्ति की मनोदशा में कमी तो विषाद देखा जाता है ताक कभी विषाद And सुखाभास दोनों ही कभी – कभी बारी – बारी से होते देखा जाता है। चाहे मानसिक अवस्था विषाद का हो या सुखाभास का, रोग का समायोजन बुरी तरह प्रभावित हो जाता है और व्यक्ति को चिकित्सा देना अनिवार्य हो जाता है।

मनोदशा विकृति के प्रकार (Types of mood disorder) – DSM – IV-TR में तीन तरह के मनोदशा विकृति का History Reseller गया है जो निम्नांकित है –

  1. विषादी विकार – इसे Singleध्रवीय भी कहा जाता है और इसका मुख्य लक्षण व्यक्ति में उदासी And विषाद का होना है। इसके अतिरिक्त इसमें भूख – नींद And शारीरिक वनज में कमी होते पायी जाती है और व्यक्ति का संक्रियण स्तर काफी कम जाता है। विषादी विकृति को फिर दो भागों में बॉटा गया है –
    1. डायस्थाइमिक विकृति (Dysthymic Disorder) – इस विकृति में विषादी मनोदशा का स्वReseller चिरकालिक होता है Meansात् गत कर्र्इ वर्षो से व्यक्ति की मनोदशा विषादी होती है। व्यक्ति को गत् कर्इ वर्षो से किसी भी चीज में अभिरूची, आनन्द की कमी का अनुभव करता है। बीच में कुछ दिनों के लिए उसकी मनोदशा भले ही सामान्य हो जाय परन्तु विषादी मनोदशा की प्रबलता सतत बनी रहती हे। 
    2. बड़ा विषादी विकृति (Major depressive disorder) – इस विकृति में व्यक्ति Single या Single से अधिक बड़े विषादी घटनाओं का अनुभव Reseller होता है। व्यक्ति प्रत्येक चीज में अपनी अभिरूचि खो चुका होता है तथा उसे कोर्इ कार्य में मन नहीं लगता है। ऐसे व्यक्तियों में नींद की कमी, शारीरिक वनज की कमी, थकान, स्पष्ट Reseller से सोचने की क्षमता में कमी, बेकार And अयोग्य होने का भाव, आत्महत्या की प्रवृत्ति आदि अधिक होती है। इस विकृत में श्रेणीकृत होने के लिए वह आवश्यक है कि ऐसे लक्षण कम-से-कम गत दो सप्ताह से अवश्य हो रहे है। 
      1. द्विध्रुवीय (Bipolar) विकृति – द्विध्रुवीय विकृति वैसी विकृति को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति या रोगी में बारी – बारी से विषाद तथा उन्माद दोनों ही तरह की अवस्थाएँ होती पायी जाती है। यही कारण है कि इसे उन्मादी – विषाद विकृति भी कहा जाता है। DSM IV (TR) में द्विध्रुवीय विकृति में निम्नांकित तीन प्रकार बतलाये गये है –
        1. साइक्लोथाइमिक विकृति (cyclothymic disorder) – dysthmic disorder के समान cyclothymic disorder में भी मनोदशा में चिरकालिक क्षुब्धता पायी जाती हैं। इसमें विषादी व्यवहार तथा अल्पोन्माद व्यवहार दोनों ही पाये जाते है परन्तु इन दोनों में से किसी की भी गंभीरता ऐसी नहीं कि यह द्वारा निर्धारित कसौटी को छू सकें। ऐसे व्यवहारों का History निश्चित Reseller से कम से कम दो वर्ष पुराना अवश्य होता है। 
        2. द्विधु्रवीय Single विकृति (Bipolar Ipisorder) – जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, वैसी मानसिक विकृति होती है जिसमें रोगी या व्यक्ति Single या Single से अधिक उन्माद की घटना तथा Single या Single से अधिक विषाद की घटना की अनुभूति अवश्य Reseller होता है। गुडविन तथा जैमिसन के According Bipaler I disorder के बहुत कम रोगी ऐसे भी होते है जो Single या Single से अधिक बार उन्मादी अवस्थ का अनुभव किये हो किन्तु उन्हें कभी भी विषादी लक्षण का अनुभव नहीं हुआ हो। 
        3. द्विधुवीय दो विकृति (Bipolar II disorder) – इसमें रोगी को कम से कम Single अल्पोन्मादी मानसिक अवस्था का अनुभव तथा कम से कम Single या Single से अधिक विषादी मानसिक अवस्थाओं का अनुभव हो चुका होता है। इसके रागी को कभी उन्मादी मानसिक अवस्था का अनुभव नहीं होता है। अल्मोन्मादी अवस्था Single ऐसी अवस्था होती है जिसमें व्यक्ति की मनोदशा थोड़ी देर के लिए बढ़ी – चढ़ी होती है। तथा उनमें चिढ़चिढ़ापन जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। द्विध्रुवीय Single विकृति तथा द्विध्रुवीय दो विकृति के मुख्य अंतर यह है कि द्विध्रुवीय दो विकृति में उन्मादी व्यवहार की गंभीरता कम होती है जबकि द्विध्रुवीय Single विकृति में उन्मादी व्यवहार व्यक्ति अधिक गंभीर मात्रा में दिखाता है।
  2. अन्य मनोदशा विकार (Other mood disorder) – इस श्रेणी में वैसी मनोदशा विकृतियों को रखा गया है जो दैहिक And मानसिक विकृतियों से उत्पन्न हो जाते है। जैसे क्लिंटन के अध्ययन के According प्रत्येक 10 मुख्य विषादी में से Single का कारण मनोवैज्ञानिक या सांवेगिक न होकर कोर्इ मेडिकल बिमारी जैसे- कैंसर, मधुमेह, हृदय आघात आदि या कुछ द्रव्य दुResellerयोग (substance abuse) या अन्य विकृतियों के उपचार के लिए लिया जाने वाला औशध आदि होता है।

मनोविदालिता या सिजोफ्रेनिया –

सिजोफ्रेनिया Single गंभीर मानोरोग है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को सामान्यत: पागल कहा जाता है। यह चिन्तन And क्षुब्ध मनोदशा की विकृति है। इस रोग में व्यक्ति में गलत प्रत्यक्षण तथा गलत विश्वास उत्पन्न हो जाता है तथा वास्तविकता को समझने में अनेकों कठिनाइयाँ होती है, तथा भाषा संबधित सांवेगिक अभिव्यक्ति में तालमेल करने में असमर्थता होती है। मनोविदालिता, मनोविक्षिप्तता विकृतियों का Single समूह है जिसमें चिंतन, संवेग तथा व्यवहार में अत्यधिक क्षुब्धता की विषेषता होती है। विकृत चिंतन जिसमें विचार तार्किक Reseller से संबद्ध नहीं होते हैं, दोषपूर्ण प्रत्यक्षण And ध्यान होता है। यह रोगी को अन्य लोगों And वास्तविकता से दूर करके उसे व्यामोह तथा विभ्रम के काल्पनिक दुनिया में ले जाता है। मनोविदालिता के प्रकार – DSM (IV) (2000) के According सिजोफ्रेनिया के पाँच प्रमुख प्रकार है –

  1. विघटित मनोविदालिता – विघटित मनोविदालिता का मुख्य लक्षण संभ्राति (Confusion) संगतता (incoherence) तथा कुंठित प्रभाव (feat affect) आदि है। इस प्रकार में विभ्रम तथा व्यामोह विषेषकर लैंगिक, रोगभ्रमी (hypo chondrical) धार्मिक तथा दंडात्मक (persecutory) काफी होते है And घटियाा ढंग से संगठित होते है। रोगी में अपने शरीर से संबधित विचित्र विषेषकर शारीरिक हृास से संबधित विचार काफी आते है। विघटित मनोविछालिता के रोगी न तो अपनी देख-रेख ठीक ढंग से करते है और न ही इनका सामाजिक संबध ही उत्तम होता है। 
  2. कैटेटोनिक मनोविदालिता – इसमें पेशीय लक्षण (motor symptoms) बौद्धिक (Intellectual) तथा लक्षणों (emotional symptoms) से अधिक स्पष्ट होते है। सामान्यत: इस प्रकार के मनोविदालिता में तीन तरह की लाक्षणिक अवस्थाएँ होती है – Single अवस्था catatonic stupor का होता है जिसमें रोगी गतिहीन तथा अनुक्रियाहीन होने का लक्षण दिखलाता है। रोगी Single स्थिति में लम्बे समय तक चुपचाप सोता या खड़ा रहता है, वह किसी से बातचीत नहीं करना चाहता है तथा किसी के बात पर कोर्इ ध्यान भी नहीं देता है। कभी – कभी वह सांकेतिक हाव – भाव, रूढ़िवादी गति तथा दृढ़ मनोवृत्ति भी दिखलाता है।
  3. व्यामोही मनोविदालिता – मनोविदालिता के इस प्रकार का सबसे प्रमुख लक्षण व्यामोह तथा श्रव्य विभ्रम का Single क्रमबद्ध And संगठित तंत्र का होना है। व्यामोह में दंडात्मक व्यामोह (diliusion of persecuation) की प्रबलता होती है परन्तु इसके अतिरिक्त बड़प्पन का व्यामोह (diliusion of grendeour) , dilusion or reference भी पाया जाता है। जब ऐसे रोगियों के प्रत्यक्षण तथा चिंतन की सत्यता के बारे में दूसरों के द्वारा प्रश्न Reseller जाता है, तो उनके इस व्यामोही चिंतन व विभ्रमात्मक प्रत्यक्षणों के साथ-साथ उसमें क्रोध या चिंता भी उत्पन्न होती है। APA (1994) के According इसके विपरीत जिन रोगियों में बड़प्पन का व्यामोह अधिक होता है वे शांत And अकेले रहते है। 
  4. मिश्रित मनोविदालिता – इस श्रेणी में उस मानसिक रोगी को रखाा जाता है जिन्हें मनोविदालिता के रोगी के Reseller में पहचान तो की जाती है किन्तु उसके मनोविदालिता के कोर्इ स्पष्ट प्रकार में रखना संभव नहीं हो पाता है। जब रोगी में मनोविदालिता के लक्षण अचानक उत्पन्न होते है और लघु अवधि में ही वे दूर हो जाते है, तो उसे प्रखर मिश्रित मनोविदालिता (acute undifferentiated schizophrenia) कहा जाता है। परन्तु मनोविदालिता के रोग की शुरूआत क्रमिक (gradual) होती है और उसके लक्षण लम्बे समय तक बने रहते है, तो इसे चिरकालिक मिश्रित मनोविदालिता (chronic undifferentiated schizophrenia) कहा जाता है।
  5. अवशिष्ट मनोविदालिता – इस श्रेणी में मनोविदालिता के उन रोगियों को रखा जाता है जो मनोविदालिता के सम्पूर्ण कसौटी पर तो खरे नहीं उतरते है परन्तु फिर भी उनमें मनोविदालिता के लक्षण दीख पड़ते है। Second Wordों में, इस प्रकार के मनोविदालिता के भड़कीले लक्षण की संख्या तथा तीव्रता में तो कमी हो जाती है परन्तु फिर भी वे अवशिष्ट प्राReseller में बने रहते है। इसमें रोगी में भोथरें या अनुपयुक्त सांवेगिक प्रतिक्रिया, सामाजिक प्रत्याहार (Social withdraw) अनोखा व्यवहार (eccentric behavior) तथा कुछ आतार्किक चिंतन के लक्षण होते है। DSM IV (TR) (2000) के According इस प्रकार के मनोविदालिता के मुख्य लक्षण निम्न प्रकार है।
    1. स्पष्ट सामाजिक अलगाव 
    2. समाजिक भूमिकाओं को करने में स्पष्ट दोष 
    3. व्यक्तिगत स्वास्थ्य And देखभाल में गंभीर दोष 
    4. अनुपयुक्त सांवेगिक अभिव्यक्ति 
    5. अत्यन्त विचित्र व्यवहार 
    6. असाधारण प्रत्यक्षज्ञानात्मक अनुभूतियाँ 
    7. भावषून्यता अथवा पहल की कमी।

इस प्रकार स्पष्ट हुआ कि मनोविदालिता के इस प्रकार में मनोविदालिता के प्रमुख लक्षण जैसे व्यामोह, विभ्रम, असंगतता तथा विघटित व्यवहार आदि तो अनुपस्थित रहते है किन्तु अन्य उपर्युक्त तरह के लक्षण उनमें दीखते है, जो निश्चित Reseller से दुखदायी होते है।

व्यामोही विकृतियाँ या स्थिर व्यामोही विकृतियाँ – 

स्थिर व्यामोह (paranoia) से तात्पर्य Single वैसे मानसिक रोग से होता है जिसमें रोगी Single जटिल व्यामोह तंत्र विकसित कर लेता है परन्तु उसमें किसी प्रकार के विभ्रम (hallucination) भाषा तथा क्रिया-कलापों में गड़बड़ी तथा स्थिति भ्रान्ति आदि का कोर्इ लक्षण नहीं होता है। स्पष्ट हुआ कि इस रोग में रोगी में व्यामोह तंत्र इतना जटिल (Complex) होता है कि उसके व्यवहार में असामान्यता तथा कुसायोजन (Maladjustment) स्पष्ट Reseller से दिखते है। सुव्यवस्थित And स्थिर व्यामोह के अलावा इस तरह के रोगियों में और कोर्इ भी लक्षण असामान्य नहीं होते है। DSM IV (TR) में इस रोग का नाम व्यामोही विकृति (delusional disorder) रखा गया है।

स्थिर व्यामोही विकृति के प्रकार – 

स्थिर व्यामोही विकृति के अनेक प्रकार बतलाये गए है, जिनमें निम्न प्रमुख है-

  1. दंडात्मक प्रकार (persecutory types) -इस प्रकार की विकृति के रोगी में यह व्यामोह या गलत विश्वास उत्पन्न हो जाता है कि Second लोग उसके प्रति कुछ साजिश कर रहे है, उन्हें तकलीफ देने का प्लान तैयार कर रहे है। इस तरह के व्यक्तियों के प्रति क्रोध तथा अहिंसा दिखाते है जिन्हें वे यह समझते है कि वह उन्हें चोट पहुँचा रहा है। 
  2. र्इश्र्यालू प्रकार (Jealous type) – इस प्रकार के रागी में गलत विश्वास उत्पन्न हो जाता है, कि उसका लैंगिक साथी (sexual partner) अविश्वासी (unfaithful) है इस तरह के गलत विश्वास का आधार छोटे-छोटे सबूतों के आधार पर लगाये गये गलत अनुमान होते है। 
  3. कामोन्मादी प्रकार (Erotomanic type) – इस प्रकार के रोगी को यह गलत विश्वास हो जाता है कि कुछ उच्च-स्तरीय व्यक्ति या सम्मानित व्यक्ति उसके साथ प्यार करते और उसके साथ लैंगिक संबध की इच्छा रखते है। कभी-कभी इसमें रोगी किसी अपरिचित व्यक्ति से रोमांस करने का विश्वास विकसित कर लेता है। नैदानिक प्रतिदर्श इस प्रकार के रोग अधिकतर महिलाओं में होते है।  
  4. आडम्बरी प्रकार (Complex) –इस प्रकार के रागी में यह गलत विश्वास हो जाता है कि उसमें कोर्इ असाधारण या दिव्य सूझ या शक्ति या योग्यता है। उसे यह भी गलत विश्वास हो जाता है कि उसने कोर्इ महत्वपूर्ण खोज Reseller है। ऐसे रोगी प्राय: यह भी कहते पाये जाते है कि उनका किसी बडे़ राजनैतिक नेता से संबध है या र्इश्वर के दूत है। 
  5. शरीरिक प्रकार (Sometic type) – इस प्रकार के रागी को यह गलत विश्वास हो जाता है कि उसमें कार्इ ना कोर्इ शारीरिक क्षुब्धता उत्पन्न हो गयी है। वह इस विचार से हमेशा अत्यधिक परेशान रहता है। Sometic dilusion के कर्इ प्रकार होते है। इसमें सबसे सामान्य वह है जिसमें रोगी को यह गलत विश्वास हो जाता है कि उसकी त्वचा, मुँह, 
  6. मिश्रित प्रकार (Mixed type) – इस श्रेणी में स्थिर व्यामोह के किसी रोगी को तब रखा जाता है, जिन रोगियों में कोर्इ Single तरह का व्यामोही विषय की प्रबलता नहीं होती है। 
  7. अविशिष्ट प्रकार – इस प्रकार के स्थिर व्यामोह के किसी रोगी को तब रखा जाता है जब उसका प्रबल व्यामोही विश्वास के बारे में यह निश्चय नहीं Reseller जा सकता है कि किस प्रकार है। जैसे मान लिया जाए कि कोर्इ व्यक्ति में संदर्भ व्यामोह तो होता है परन्तु आडम्बरी या दंडात्मक तत्व न हो, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि उसका व्यामोही विश्वास किस श्रेणी का है।

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