एनजीओ (NGO) हेतु रणनीति And नियोजन

रणनीति सैन्य Wordावली है । इसका प्रयोग रणक्षेत्र में सैन्य आक्रमण के लिए सैनिकों And सैन्यदल का बेहतर उपयोग उनकी स्थिति निर्धारित करने में Reseller जाता है जिससे Fight में विजय प्राप्त की जा सके । इसी तरह एन0 जी0 आ0 के लिए भी यह आवश्यक है कि वह संसाधनों And लोगोंं का बेहतर उपयोग, संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु करे । इसके लिए आवश्यक है कि एन0 जी0 ओ0 भी रणनीति बनाएं और उसके आधार पर नियोजन करे ।

एन0 जी0 ओ0 हेतु रणनीति And नियोजन 

कोर्इ भी संगठन किस प्रकार Humanीय एंव भौतिक संसाधनों की पहचान करता है और उसको संस्था के लक्ष्य की पूर्ति के लिए उपयोग करता है यह उस संस्था की रणनीति कहलाएगी । रणनीति का निर्धारण निर्धारक की वैज्ञानिक (प्रबन्धन) And Humanीय कुशलता पर निर्भर करता है । जार्ज स्टीनर ने अपनी पुस्तक ‘स्टे्रटजिक प्लानिंग’ में रणनीति के बारे में निम्न बातों को इंगित Reseller :-

  • रणनीति – निर्णयों को दिशा प्राप्त करती है जिससे लक्षित उद्देश्यों को प्राप्त Reseller जा सके ।
  • रणनीति के अन्तर्गत निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति हेतु क्रिया भी महत्वपूर्ण अवयव है । 
  • रणनीति प्रश्नों का उत्त्ार भी सुझाती है जैसे संगठन क्या कर रही है ? संगठन का अन्तिम लक्ष्य क्या है और उसे कैसे प्राप्त Reseller जा सकता है ? 

इस प्रकार हम कह सकते हैं किसी भी संगठन के लिए रणनीति नियोजन में उसका लक्ष्य, उद्देश्य And किस प्रकार इनकी प्राप्ति की जा सकती है सम्मिलित होता है ।

रणनीति नियोजन के तत्व 

रणनीति नियोजन के मुख्य तत्व निम्न हैं –

  • दृष्टि And उद्देश्य (संस्था का स्वप्न क्या है तथा उसके उद्देश्य) 
  •  इस दृष्टि And उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कौन से कदम उठाए जाने की Need है 
  • उपलब्ध संसाधन 

किसी संगठन की दीर्घकालिक दृष्टि यह इंगित करती है कि भविष्य में वह क्या होना चाहती है । किसी संगठन के लिए इसका होना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है इससे संगठन को निरन्तर प्रेरणा मिलती रहती है । संगठन के उद्देश्य यह बताता है कि किस प्रकार उसके दीर्घकालिक दृष्टिकोण को प्राप्त Reseller जा सकता है । जैसे – लघु ऋण क्षेत्र में काम करने वाली संस्था का दीर्घकालिक दृष्टि है कि वह गरीबों को लघुण प्रदान करने वाली संस्था के तौर पर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान हो । ऐसी संस्था का मिशन है लोगों को समय पर लघु ऋण प्रदान कर उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करना, इस हेतु इस क्षेत्र में कार्य कर रहे संगठनों के मध्य छमजूवता तैयार करना जिससे सरकार पर दबाव डाला जा सके कि वह इस क्षेत्र में काम कर रहे संगठनों को कम ब्याज पर धन उपलब्ध कराए ।

रणनीतिक लक्ष्य 

संगठन के मिशन को ध्यान में रखते हुए लक्ष्य का निर्धारण भी रणनीतिक नियोजन का महत्वपूर्ण आयाम है । इसके लिए संगठन के दीर्घकालिक दृष्टिकोण And उद्देश्य को ध्यान में रखना चाहिए । संगठन के लक्ष्य को निर्धारित करते समय आवश्यक है कि उसे विभिन्न चरणों में विभाजित कर लें या दीर्घकालिक एंव लघुकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए भी लक्ष्यों का निर्धारण कर सकते हैं । किसी संगठन के लिए रणनीतिक नियोजन करते समय हमें First यह देखना चाहिए कि संगठन की वर्तमान में स्थिति क्या है । इसको समझने के लिए विभिन्न तरीके हो सकते हैं इनमें से Single तरीका है SWOT विश्लेषण जिसमें संगठन की क्षमता, उसकी कमजोरी, उसको प्राप्त सुविधाएँ/अवसर, खतरा (Threat)।साथ ही यह भी आवश्यक है कि राजनैतिक, आर्थिक,सामाजिक सांस्कृतिक And प्रौद्योगिक पक्षों का अध्ययन भी संस्था के लिए रणनीतिक नियोजन बनाने में महत्वपूर्ण है । इससे हम संगठन पर पड़ने वाले बाह्य कारकों के प्रभावों को भली भांति समझ सकते हैं । साथ ही एन. जी. ओ. के विशेष सन्र्दभों में यह भी महत्वपूर्ण है कि हमें वैधानिक And पर्यावरणीय पक्षों को भी पर्याप्त महत्व देनाचाहिए।

रणनीति की परिभाषांए जो प्रबन्धन से प्रयोग की जाती हैं की व्याख्या हम चार श्रेणियों नियोजन, पा्र Reseller , स्थिति And परिपेक्ष््रय के अन्तगर्त कर सकते है। नियोजन श्रेणी के अन्र्तगत रणनीति का निर्धारण करते समय हम इस पर विचार करते हैं कि कैसे हम वर्तमान स्थिति से लक्ष्य तक पहंचु सकते है।

प्राReseller:-इस श्रेणी के अन्र्तगत हमारे द्वारा जो कि निश्चित समय में की जाती है सम्मिलित होती है।

स्थिति :- किसी विशेष क्षेत्र में कार्य करने के निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए संस्था की स्थिति के निर्धारण हेतु भी उपयुक्त रणनीति आवश्यक है।

परिप्रेक्ष्य :- कोर्इ संस्था कहां पहुंचना चाहती है इसके लिए महत्वपूर्ण है कि उसकी दिशा And लक्ष्य स्पष्ट हों अत: आवश्यक है कि दिशा And लक्ष्य का निर्धारण निश्चित रणनीति के तहत Reseller जाए। रणनीति की व्याख्या सामान्य Reseller से दिए गए उददेष्यों की प्राप्ति हम केसै ै कर सकते है के Reseller में की जी सकती हैं परिणामस्वReseller रणनीति सामान्य Reseller में लक्ष्य और साधनों के बीच तारतम्यता को दर्षाती है।, या Second Wordों में उपलब्ध संसाधनों के माध्यम से किस प्रकार अपेक्षित परिणाम प्राप्त कर सकते हैं यह बताती है। संस्था की स्थापना करते समय और इसकी रणनीति का निर्धारण करते समय कुछ आधारभूत प्रश्न करने चाहिए जो कि निम्न है।
(क) मिशन और विजन (दृष्टि) के सम्बन्ध में

  1. हम कौन है? 
  2. हम क्या कर रहे हैं ? 
  3. हम क्यों कर रहे हैं ? 
  4. हमारी संस्था किस प्रकार की है ? 
  5. हम अपनी संस्था को कहां देखना चाहते हैं। 

(ख) संस्था के सम्बन्ध में सामान्य रणनीति का निर्धारण करते समय भी हमें कुछ प्रश्न ध्यान में रखना चाहिए.

  1. संस्था का उददेश्य क्या है?
  2. संस्था का लक्ष्य क्या है? 
  3. संस्था की वर्तमान रणनीति क्या है। 
  4. संस्था के पास उपलब्ध संसाधन क्या हैं ?
  5. संस्था के लक्ष्य जो हम पाना चाहते हैं उसके लिए कौन सी क्रियाएं आवश्यक हैं। 
  6. हमारे द्वारा सम्पन्न क्रियाएं कहां तक उपलब्ध साधनों में की जी सकती हैं। 
  7. जोखिम की पहचान और उनमें भी सबसे ज्यादा जोखिम की पहचान। 

(ग) कारपोरेट रणनीति के सम्बन्ध में :-

  1. वर्तमान रणनीति क्या है ? 
  2. वर्तमान में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक क्षेत्र में क्या घटित हो रहा है तथा इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है? 
  3. किस क्षेत्र में कार्य Reseller जाना चाहिए साथ ही भौगोलिक क्षेत्र की पहचान जहां कार्य करना है। 

मिशन – किसी संस्था का मिशन ही यह निर्धारित करता है कि वह क्यों है। संस्था के मूल संस्थापकों का इसको स्थापित करने के पीछे मंशा क्या थी। वे इस संस्था की स्थापना कर क्या प्राप्त करना चाहते है। इसको भी निश्चित समयान्तराल पर पुर्नावलोकित Reseller जाना चाहिए यह संस्था की गत्यात्मकता के लिए आवश्यक है।

मूल्य- किसी भी संस्था का मूल्य जो भी कुछ हम करते है में भी परिलक्षित होता हैं यह न केवल संस्था के सार्वनिक कार्यक्रमों बल्कि वह किस प्रकार से इनको क्रियान्वित करती है में भी परिलक्षित होता है। मान लें कोर्इ संस्था का प्राथमिक मूल्य लोगों तक पहुॅच बढाना है तो यह संस्था जब कोर्इ कार्यक्रम नियोजित करती है तो वह विचार करती है कि किस प्रकार लोगों तक पहुॅच बढाने में आने वाले अवरोधों को दूर Reseller जाए साथ ही लोगों की भागीदारी केैसे सुनिश्चित की जा सकें। 

विज़न- किसी संस्था का विजन उसकेा आगे बढ़ने के लिए पे्िर रत करता है, विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भी किसी संस्था का विज़न Single मुख्य प्रेरक की भूमिका भी अदा करता हैं इसके बिना कोर्इ भी संस्था आगे नही बढ़ सकती है। किसी संस्था के विज़न, मिशन और नियोजन के बीच सम्बन्ध को बेहतर ढंग से समझने के लिए हमें तीन मुख्य बिन्दुओं की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहिए। ये है इनके बीच अन्त: सम्बन्ध, स्थायित्व, और इनकी विशिष्टता। 

अन्त: सम्बन्ध :- किसी संस्था का विज़न भविष्य के लिए आदर्ष दृष्टि प्रदान करता है। मिशन उन प्रश्नों का उत्तर सुझाता है तो संस्था की रणनीति और निर्देषित सिद्धान्तों से सम्बन्धित है। नियोजन उन विशिष्ट उक्तियों को सुझाता है जो मिशन के लिए सहायक है और संस्था के विज़न को प्राप्त करने में सहयोग करता है। इस प्रकार ये तीनों परस्पर सम्बन्धित है। 

स्थायित्व – विजन- मिशन-नियोजन के बीच में स्थायित्व की दृष्टि से सम्बन्ध क्रमश: स्थायी से निरन्तर परिवर्तनशील का होता है। नियोजन में गत्यात्कता सर्वाधिक होती है क्योंकि परिस्थिति And समय के साथ मांग अनुReseller नियोजन में परिवर्तन आवश्यक है। मिशन में नियोजन के मुकाबले ज्यादा स्थायित्व देखने को मिलता है परन्तु निश्चित समयान्तराल पर इसमें में भी परिवर्तन सामाजिक-आर्थिक, राजनैतिक कारकों के प्रभाव स्वReseller आवश्यक होता है। 

विशिष्टता :- विज़न को सामान्य Reseller में व्याख्यायित Reseller जाता है जबकि संस्था का मिशन ज्यादा विशिष्ट होता है। नियोजन में समय और प्रणाली के सम्बन्ध में विशिष्टता ज्यादा होती है। रणनीति नियोजन संगठन के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति में सहायक होता है, इसमें निम्नलिखित शामिल है। 

  1. संगठन के उदद्ेष्यों को स्पष्ट Reseller में परिभाषित करना और उसके According संगठन के लक्ष्य और उददेष््यों को निर्धारित समय और संसाधनों के माध्यम से हासिल करना।
  2. संगठन के अनुशंगियों को लक्ष्य और उदद्ेष्यों के बारें में अवगत कराना। 
  3. यह सुनिश्चित करना कि संगठन के संसाधनों का प्रभावी उपयोग हो सके। 
  4. आधार उपलब्ध कराना जहां से प्रगति का मापन हो सके और ऐसी प्रणाली स्थापित करना जिसके माध्यम से होने वाले परिवर्तनों के बारे में लोगों को अवगत कराया जाए। 
  5. प्रत्येक व्यक्ति की क्षमताओं का सवोर्त् तम उपयोग सुनिश्चित करना साथ ही संगठन क्या लक्ष्य हासिल करना चाहता है उस पर सर्वसम्मति बनाना। 
  6. क्षमता और प्रभाविकता को बढ़ाते हुए सकारात्मक प्रगति हासिल करना। किसी भी संगठन की रणनीति नियोजन उसकी प्रकृति और Need को ध्यान में रखते हुए Reseller जाना चाहिए। 

संगठन का एस0 डब्ल्यू0 ओ0 टी0 विश्लेषण 

प्रबन्ध की प्रक्रिया:- प्रबन्ध के कार्यों को पांच मुख्य अवयवों में विभाजित Reseller जा सकता- नियोजन, संगठित करना, कर्मचारियों की Appointment, दायित्वों का निर्धारण, And समन्वयन या नियंत्रण ।

नियोजन :- किसी संगठन के लिए नियोजन करते समय हमें उसके दीर्घकालिक दृष्टिकोण, उद्देश्य And मूल्यों को ध्यान में रखना चाहिए । नियोजन करते समय हमें यह भी दृष्टिगत रखना चाहिए कि क्या Reseller जाना चाहिए, किसके द्वारा Reseller जाना है, कहां Reseller जाना है, कब और कैसे करना है । नियोजन करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए :-

  • योजना के विभिन्न अवयवों का ध्यान पूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है साथ ही यह भी देखना चाहिए कि उसे किस प्रकार लागू Reseller जा सकता है । 
  • योजना के अन्तर्गत लक्ष्यों का निर्धारण इस प्रकार हो कि वे वास्तविक Reseller से प्राप्त किए जा सकें । 
  • योजना हेतु उपलब्ध धन And व्ययों की मद को ध्यान से देखें । 
  • योजना के क्रियान्वयन में लगे लोगों की पर्याप्त भागीदारी सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है साथ ही उनके दायित्वों का निर्धारण भी भली-भांति Reseller जाना चाहिए। 
  • उन क्षेत्रों की भी पहचान करना आवश्यक है जिन्हें सशक्त करने की Need है । 
  • योजना के क्रियान्वयन के प्रत्येक स्तर का मूल्याकंन करना भी आवश्यक है। नियोजन प्रबन्धन में कर्मचारियों, दायित्वों का आंबटन, समूह कार्य, दायित्वों का निर्वहन, वित्त्ा, समन्वयन, नियंत्रण, निगरानी आदि का ध्यान रखा जाता है । रणनीतिक नियोजन में लक्ष्य काफी महत्वपूर्ण होते हैं । अत: लक्ष्य ऐसे निर्धारित किए जाने चाहिए जिनको अवलोकित Reseller जा सके, मापा जा सके तथा जिनकी पूर्ति हो सके।ये लक्ष्य विशिष्ट होने चाहिए । लक्ष्यों का निर्धारण समयावधि को ध्यान में रखते हुए करना चाहिए । 

संगठित करना :-योजना तैयार करने के उपरान्त उसके कार्यान्वयन के लिए यह आवश्यक है कि प्रबन्धक स्वयं And अपने दल को संगठित करे।इसके लिए उसे अपने दल के विभिन्न सदस्यों के बीच समन्वय करना आवश्यक है । इसके लिए वह अपने दल के सदस्यों को जिम्मेदारी का आबंटन And उत्त्ारदायित्व सुनिश्चित करना है । साथ ही साथ उनके समक्ष आने वाली दिक्कतों का सुलझाव भी करने का प्रयास वह करता है । इस प्रकार दल के नेतृत्व की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है कि वह किस प्रकार संगठन के लक्ष्य की पूर्ति के लिए अपने दल के सदस्यों को अधिकतम प्रोत्साहित And प्रशस्त करता है ।

दायित्वों का निर्धारण :- दायित्वों का निर्धारण किस प्रकार Reseller जाए यह प्रबन्धक के लिए आवश्यक कुशलता है । दायित्वों के निर्धारण के लिए आवश्यक है कि कार्यकर्त्त्ाा को पर्याप्त सत्त्ाा And दायित्व होना चाहिए जिससे वह उसे दिए गए लक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति कर सके। साथ ही उसे कुछ सीमा तक यह आजादी भी होनी चाहिए कि लक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति किस प्रकार करनी है तथा किस संसाधन का उसे आवश्यक Reseller से उपयोग करना चाहिए।

कभी-कभी प्रबन्धक दायित्वों And शक्तियों को दूसरों को हस्तांतरित करने में दिक्कत महसूस करते हैं क्योंकि वे सफलता के फलस्वReseller मिलने वाले पुरस्कार को दूसरों से साझा नहीं करना चाहते । कभी-कभी प्रबन्धक को दूसरों की क्षमताओं पर विश्वास नहीं हो पाता है तब भी वह समूह के Second सदस्यों को दायित्व And शक्तियां देने में संकोच करता है परन्तु यदि हम समूह के सदस्यों पर विश्वास कर उन्हें दायित्व And उससे जुड़ी शक्तियों को प्रदान करते हैं तो समूह के कार्य की प्रभाविता बढ़ जाती है ।
दायित्वों का निर्धारण/आबंटन करते समय ध्यान रखने योग्य मुख्य बातें निम्न हैं :-

  1. प्रत्येक व्यक्ति को Single काम सांपै ना चाहिए इससे व्यक्ति को दायित्व का बोध होता है आरै वह पे्िर रत होता है । 
  2. दल के प्रत्येक सदस्य की दक्षता को समझते हुए उपयुक्त व्यक्ति को उपयुक्त कार्य देना चाहिए । 
  3. प्रबन्धक को अपनी अपेक्षाओं के बारे में स्पष्ट होना चाहिए कि वह क्या चाहता है, कितने समय में चाहता है ? 
  4. योजना की प्रगति की निगरानी निरन्तर करते रहना चाहिए तथा यदि आवश्यक हो तो उसमें जरूरी संशोधन इत्यादि भी करना चाहिए । 
  5. अगर कोर्इ कार्य संतोषजनक तरीके से नहीं कर पा रहा है तो उससे काम नहीं वापिस लेना चाहिए बल्कि कोशिश करनी चाहिए कि कैसे प्रबन्धक उसे मदद कर सकता है या किसी योग्य व्यक्ति को उसके साथ काम पर लगा सकता है ।
  6. मूल्यांकन And अच्छा कार्य करने वाले को पुरस्कृत भी करना चाहिए । 

समन्वयन :- संगठन के लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु यह आवश्यक है कि उसके सदस्यों के बीच पर्याप्त समन्वय हो । संगठन के समन्वय की कुछ प्रमुख पद्धति निम्न हैं :-

  1. प्रशासनिक स्तर पर यह आवश्यक है कि सूचनओं को भली-भांति And व्यवस्थित Reseller से संग्रहित Reseller जाए । ये सूचनाएं विभिन्न Reseller से हो सकती हैं जैसे वित्तीय रिपोर्ट, प्रोजेक्ट रिपोर्ट, स्थिति रिपोर्ट आदि इनके माध्यम से यह निगरानी करना सम्भव हो जाता है कि क्या Reseller जा रहा है, And कब और कैसे Reseller गया ? 
  2. वित्तीय प्रबन्धन :- किसी परियोजना मेंवित्तीय प्रबन्धन भी महत्वपूर्ण है । किसी भी संगठन के लिए वित्तीय नियन्त्रण महत्वपूर्ण है, चाहे वह लाभकारी And गैर लाभकारी किसी भी प्रकृति का हो । कुछ दस्तावेज जैसे बैलेंस शीट, आय And नगद प्रवाह से सम्बन्धित दस्तावेज महत्वपूर्ण हैं। वित्तीय अंकेक्षण भी नियमित होना चाहिए जिससे संगठन की वित्तीय स्थिति का आंकलन सम्भव हो सके । 
  3. किसी भी संस्था के लिए नीति And प्रक्रियाएं भी अत्याधिक उपयोगी होती हैं । संगठन की नीति यह सुनिश्चित करती है कि उसके कर्मचारी सरकारी And वैधानिक प्रक्रिया के तहत काम करें । 

महत्वपूर्ण दक्षताएं And क्षमता निर्माण 

किसी संगठन की महत्वपूर्ण दक्षता से तात्पर्य है कि उसकी किस क्षेत्र विशेष में विशेषज्ञता है । Second Wordों में किसी संगठन की ऐसी विशेष क्षमता से है जो उसे दूसरी संस्थाओं से भिन्न देखती है । उदाहरण के तौर पर कोर्इ संगठन सामुदायिक कार्यक्रम के अन्तर्गत किसी परियोजना पर काम कर रहा है परन्तु उसके पास ऐसे योग्य, कुशल लोग हैं जिन्हें शोध And उसके आधार पर विश्लेषण करने कि क्या Reseller जाना चाहिए मौजूद है जो दूसरों के पास नहीं है तो निश्चित ही हम कह सकते हैं कि इस संगठन की दक्षता महत्वपूर्ण है । संगठन की महत्वपूर्ण दक्षता, कुशलता And ज्ञान के आधार पर निर्मित होती है ।

क्षमता निर्माण :- किसी संगठन की क्षमता को बढ़ाने के लिए की जाने वाली समस्त क्रियाएं जिससे कि वह अपने संस्थानिक लक्ष्य की पूर्ति कर सकें, क्षमता निर्माण के तहत आती है । संगठन के सम्बन्ध में क्षमता निर्माण से तात्पर्य निम्न से है कि संगठन का संचालन बेहतर हो, नेतृत्व, उद्देश्य And रणनीति, प्रशासनिक, कार्यक्रम का विकास And नियोजन, आय सृजन, निगरानी And मूल्यांकन, पैरोकारी ।

व्यक्ति के दृष्टिकोण से क्षमता निर्माण से आशय है नेतृत्व के गुणों का विकास, प्रौद्योगिक कुशलता, बोलने की क्षमता, संगठनिक क्षमता, व्यक्तिगत And व्यवसायिक विकास आदि । क्षमता निर्माण के अन्तर्गत Human संसाधन विकास भी सम्मिलित हैं जिसमें व्यक्ति को ज्ञान And कुशलता के माध्यम से दक्ष Reseller जाता है जिससे कि वह बेहतर दंग से कार्य कर सके ।

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