अभय का Means

अभय का Means है-भय रहित होना, भय न होना, अनिष्ट की आशंका न होना। मनोविकास का आदि बिन्दु है-अभय। Meansात् मानसिक विकास के लिए अभय का होना आवश्यक है। अत: अहिंसा के विकास का भी यह आदि बिन्दु रहता है। व्यक्ति हिंसा तब करता है जब वह भयभीत होता है। जो भी भय रहित होता है, वह हिंसा आदि अनेक बुराइयों से बच जाता है। ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि भय सर्वथा बुरा ही है। भय इस सन्दर्भ में सही कहा जा सकता है जो व्यक्ति के लिए हितकर हो अथवा उसके विकास में सहायक हो। परीक्षा का भय Single आम बात है। यदि इस भय से विद्याथ्र्ाी अधिक अध्ययन करता है तो वह सकारात्मक भय कहा जा सकता है। दूसरी ओर यदि भय के कारण अध्ययन ही छूट जाए तो यह निषेधात्मक भय है। बुरार्इ से डरना, गलत कामों से बचना व्यक्ति हित में है लेकिन भय से विकास ही अवरुद्ध हो जाना नकारात्मक भय है। अत: अभय की सार्थकता तभी कही जा सकती है जब भाव शुद्ध हों, मैत्रीपूर्ण हों। अभय अहिंसा का आधार है। अभय पर टिकी अहिंसा ही वास्तव में अहिंसा है। व्यक्ति अपने जीवन में अभय रहता है और दूसरों को अभयदान देता है तो वह व्यक्ति वास्तव में अहिंसक है।

सामान्यतया देखा जाता है कि जो व्यक्ति भयभीत होता है उसे All सताते है, परेशान करते है, दु:खी करते है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में साधारण से साधारण कार्य को करने में भी असमर्थ होता है। शक्तियां होते हुए भी वे भय से कुण्ठित हो जाती है। भयभीत व्यक्ति ही अपने को बचाने के लिए हिंसा का सहारा लेता है। वह दूसरों को भी कष्ट देता है। अत: आवश्यक है कि व्यक्ति-व्यक्ति के बीच अभय का वातावरण बना रहे। व्यक्ति समाज में हमेशा ही अभय चाहता है। यही समाज विकास का भी आधार है। यदि समाज में भय ही भय सर्वत्र व्याप्त हो तो जीवन ही अWindows Hosting हो जाएगा। फिर तो Single पाशविक प्रवृत्ति ही चारों ओर व्याप्त हो जाएगी। ऐसा समाज कभी प्रगति नहीं कर सकता है। इसलिए व्यक्ति विकास और समाज विकास के लिए आवश्यक है-अभय। अभय जीवनदान देता है। जीवनदान बहुत बड़ा पुण्य है, बहुत बड़ी अहिंसा है। प्रत्येक प्राणी प्राण रक्षा चाहता है, अपने लिए शुभ की कामना करता है। इसलिए अभय चेतन जगत् के लिए आवश्यक And अनिवार्य तत्त्व है। दूसरों को अभयदान देकर ही व्यक्ति प्रसé रह सकता है, स्वतंत्र रह सकता है। समूचा प्राणी जगत् अभय चाहता है। Single छोटे से छोटे जीव को हिंसा की स्थिति में भयग्रस्त देखा जा सकता है। साथ ही अपनी रक्षा की एवज में प्रतिपक्षी हिंसा करते भी देखा जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि भय वास्तव में व्यक्ति के व्यवहार को नकारात्मक बना देता है, दब्बू बना देता है अथवा हिंसक बना देता है। वनस्पति जगत् भी अहिंसक व्यक्ति को देखकर प्रसन्न होते है। इससे भी स्पष्ट है कि अभय वास्तव में सर्वत्र सकारात्मक वातावरण को फैलाता है।

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