सांस्कृतिक क्रांति

20वीं सदी के First दशक से ही चीन का History क्रांतियों का साक्षी रहा है। चीन में 1911 की क्रांति के बाद जो राजनीतिक And सामाजिक पुर्ननिर्माण का सिलसिला प्रारंभ हुआ वह 1949 की लाल क्रांति से होता हुआ आखिरकार 1968 की महान सांस्कृतिक क्रांति में परिणीत हो गया। वास्तव में 1966 से 1976 का कालखंड वह समय माना जा सकता है जब चीनी समाज में राजनैतिक And सामाजिक व्यवस्था को लेकर शीर्ष नेतृत्व में मतभिन्नता स्पष्ट Reseller से उभरकर सामने आ गर्इ थी। 1949 से लेकर 1959 तक माओ-त्से-तुंग ने चीन की चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रमुख के साथ ही शासनाध्यक्ष का कार्यभार स्वयं निरंकुश Reseller से संभाला। 1959 में उसने शासनाध्यक्ष के पद से त्यागपत्र दे दिया किन्तु वह कम्यूनिस्ट पार्टी का प्रमुख बना रहा। माओ के इस First चरण के 10 वष्र्ाीय निरंकुश शासन के दौरान चीन ने अभूतपूर्व प्रगति की। माओ ने प्रत्येक क्षेत्र में पुर्ननिर्माण की नीति को अपनाया और हर संभव प्रयत्न किये कि चीन Single संपूर्ण Reseller से आत्मनिर्भर राष्ट्र बन जाये। आत्मनिर्भरता के इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए उसने अनेक आंदोलनात्मक अभियान प्रारंभ किये। इन अभियानों में पंचवर्ष्ीय योजना, विशेष कम्युनों की स्थापना, वास्तविक समाजवाद की तीव्र प्रगति की नीति, सामूहिक श्रम की नीति, कृषिका उत्थान, सामूहिक लामबंदी की नीति, औद्योगिकिकरण तथा उत्पादन संबंधी महान छलांग श्ळतमंज स्मंच थ्वतूंतकश् आदि ऐसे अभियान थे जिन्होंने माओ के लक्ष्यो को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। इनमें सर्वाधिक विवादास्पद And महत्वपूर्ण कदम उत्पादन संबंधी श्महान छलांग (Great Leap Forward) थी। यद्यपि माओ की नीतियों ने शुरूआती दौर में महत्वपूर्ण सफलतायें अर्जित की किन्तु कालांतर में उनमें परिवर्तन की Needएं परिलक्षित होने लगी। उदाहरणार्थ माओ द्वारा लौह उत्पादन को प्रोत्साहित Reseller गया था किन्तु कुशल प्रशिक्षण और तकनीक के अभाव में उत्पादन में वृध्दि होने के बावजूद लोहे की गुणवत्ता खराब स्तर की हो गर्इ साथ ही इसी समय कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा क्योंकि, कृषक लोग अन्य उद्योगों में कार्य करते थे। इन परिस्थितियों में माओ के द्वारा प्रतिपादित नीतियों के विरोध में स्वर उठने लगे। हालाकि माओ ने कर्इ स्थानों पर अपनी आलोचना स्वयं की थी लेकिन उसे अपनी नीतियों की असफलता पर विश्वास नहीं होता था। 1959 में जब माओ ने राष्ट्राध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया और सत्ता लियु-शाओ-की, चाऊ-एन-लार्इ आदि नेताओ के पास आर्इ तो यह विरोध के स्वर और भी मुखर होने लगे। 1959 से 1963 के मध्य चीन के आर्थिक हालात बदत्तर होने लगे और यह सिध्द हो गया कि माओ द्वारा प्रारंभ की गर्इ उत्पादन संबंधी ‘Great Leap Forward’ चीन की Meansव्यवस्था को बरबाद कर सकती हैं। 1960 से 1962 के बीच चीन में लगभग दो करोड़ लोग मारे गये। चीन के History में इसे श्त्रिवष्र्ाीय प्राकृतिक आपदाश् कहा जाता है। इन परिस्थितियों में लियु-शाओ-की ने निर्णय लिया कि माओ द्वारा संचालित नीतियों को बदला जाना Indispensable है। उसने आर्थिक क्षेत्र में अनेक सुधार कार्यक्रम चलाये जिसके बड़े सकारात्मक परिणाम आये और कम्यूनिस्ट पार्टी में लियु-शाओ-की Single लोकप्रिय शक्ति बनकर उभरा। वह चाहता था कि माओ को अब सत्ता से बाहर होकर सेवानिवृत्त हो जाना चाहिए। लेकिन माओ ने इसे कभी स्वीकार नहीं Reseller उसने अपनी गिरती हुर्इ लोकप्रियता से घबराकर अपनी शक्ति के पुन: संचरण के लिए 1963 में श्सामाजिक शिक्षा आंदोलनश् चलाया। यह आंदोलन काफी लोकप्रिय हुआ। हालाकि माओ का सामाजिक शिक्षा आंदोलन प्राथमिक शिक्षा से Added हुआ था तथापि आगे चलकर इस आंदोलन से जुड़े युवाओ ने 1966 में Single महान क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ। विश्व History में युवाओं के इस संगठन को श्रेड गार्डश् और इस क्रांति को श्महान सांस्कृतिक क्रांतिश् के नाम से जाना जाता है।

क्रांति का प्रा्रंभ्, प्रमुख घटनायें 

1966 के मध्य में माओ तथा लियु-शाओ-की के बीच मतभेद खुलकर सामने आ गये। समाचार पत्रों And अन्य माध्यमों के द्वारा दोनो के बीच वाक्युध्द प्रारंभ हो गया। इस समय तक दोनों ने Single Second की खुलकर आलोचना प्रारंभ कर दी थी। 1966 के प्रारंभ से मध्य तक अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं के उपरांत दोनो पक्षों के बीच खार्इ बढ़ती चली गर्इ। आखिरकार 6 अगस्त 1966 को माओ के आह्वान पर सम्पूर्ण चीन से करोड़ो श्रेड-गार्डश् बीजिंग के श्थिएन-मेनश् चौक पर अपने नेता के अगुवार्इ में Singleत्रित हो गये और विशाल जंगी प्रदर्शन Reseller। इस तरह 1966 की महान सांस्कृतिक क्रांति व्यावहारिक Reseller से प्रारंभ हो गर्इ। Historyकारों में इस क्रांति के वास्तविक कारणों को लेकर आज भी मतभेद है किन्तु यह कहा जा सकता है कि यह क्रांति चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी के भीतर ही उपस्थित कारणों का परिणाम थी। इस क्रांति का घोषित लक्ष्य था कि चीनी समाज में अवशिष्ट बुंर्जुआ विचारों को नेस्तनाबूद करके नवीन युग का सूत्रपात Reseller जाए तथा पूर्व की क्रांति के श्महान उत्साहश् को चीनी समाज में पुर्नजीवित Reseller जाए। वास्तव में यह क्रांति माओ-त्से-तुंग की अदम्य महत्वाकांक्षाओं का परिणाम थी। माओ ने इस क्रांति के द्वारा पुरातन संस्कृति जो कि चीनी समाज की बेड़ी साबित हो रही थी, को उखाड़ फेकने का संदेश दिया। विशेषकर इस क्रांति ने धर्म की अवधारणा पर घातक प्रहार Reseller। इस क्रांति के दौरान धर्म से संबंधित प्रत्येक वस्तुओं को Destroy Reseller जाने लगा। रेड-गार्डस ने असंख्य मंदिरो, मस्जिदो, चर्चो, विहारों आदि धर्मस्थलों को या तो बंद कर दिया या Destroy कर ड़ाला। उन All लोगो को, जो क्रांति के Meansात् माओ के विचारो के समर्थक नहीं थे, उन्हें बुरी तरह अपमानित, प्रताड़ित Reseller गया अथवा मार ड़ाला गया। सितम्बर-अक्टूबर 1966 में अकेले बीजिंग नगर में लगभग 2000 लोगो की हत्या कर दी गर्इ। सितम्बर 1966 में ही शंघार्इ शहर में सांस्कृतिक क्रांति से संबंधित लगभग 1500 मौते दर्ज की गर्इ। इस विनाशकारी घटनाक्रम के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गर्इ। कतिपय Historyकारों का मानना है कि क्रांतिकारियों को पुलिस व्यवस्था का भी मौन समर्थन हासिल था। स्वयं माओ ने क्रांति के दौरान हिंसा को बढ़ावा दिया। वह स्वयं मानता था कि जो जितनी अधिक हत्याएं करेगा वह उतना ही बड़ा देशभक्त है। क्रांति के दौरान समस्त विश्वविद्यालय बंद हो गये। और बुध्दिजीवियों को चुन-चुनकर प्रताड़ित Reseller गया। इस समय माओ ने लियु-शाओ-की सहित अपने All विरोधियों का पूर्णत: सफाया कर दिया। और सम्पूर्ण सत्ता अपने हाथों में ले ली। माना जाता है कि क्रांति के समय 1966 से 1969 के मध्य लगभग 5 लाख लोग काल के ग्रास बन गये। सांस्कृतिक क्रांति 1966 से प्रारंभ होकर 1976 तक प्रभावशील रही। इस क्रांति में माओ-त्से-तुंग की तीसरी पत्नी जियांग किंग की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुत: वह क्रांतिकारियों में Single अहम स्थान रखती हैं। जियांग किंग ही माओ के बाद Single ऐसी शक्ति थी जो रेड-गार्डस का नेतृत्व करती थी। इस दौरान माओ की विरोधियों द्वारा राजनीतिक हत्या की भी कोशिश की गर्इ जो कि असफल रही। 1876 में माओ की दीर्घकालिक बीमारी के बाद मृत्यु हो गर्इ और क्रांति धीमी पड़ती चली गर्इ। इसके बावजूद जियांग किंग ने अन्य तीन क्रांतिकारियों के साथ मिलकर जो कि श्चार का दलश् कहलाते थे, उन All सैध्दांतिक मूल्यों पर हमला जारी रखा जो माओवादी दर्शन से भिन्नता रखते थे। लेकिन अन्तत: 1976 में सरकार के द्वारा जियांग किंग And उसके साथियों को गिरफ्तार कर लिया गया और इस तरह महान सांस्कृतिक क्रांति का अन्त हुआ।

क्रांति का प्रभाव And महत्व 

प्रभावों And महत्व के लिहाज से सांस्कृतिक क्रांति ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष Reseller से सम्पूर्ण चीनी समाज के All अंगो को आवश्यक Reseller से स्पर्श Reseller। सांस्कृतिक क्रांति विश्व की उन महान क्रांतियों में से Single थी जिन्होंने Human सभ्यता और संस्कृति को गहरार्इ तक प्रभावित Reseller है। इस क्रांति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रभाव था, चीन में माओवाद की स्थापना। इसके साथ ही कालांतर में माओवादी दर्शन चीन की सीमाओं को लांघकर वैश्विक आधार पर फैलता चला गया। इसने अपने पड़ोसी राष्ट्रों भारत और नेपाल को सर्वाधिक Reseller से प्रभावित Reseller। इस तरह राजनैतिक सिध्दांत के Reseller में माओवाद सर्वहारा वर्ग्ा का दार्शनिक आधार बना। आन्तरिक Reseller से माओवाद चीन में आगे चलकर कम्यूनिस्ट पार्टी के भीतर ही अनेक शक्ति संघर्षो का भी कारण बना। इन संघर्षो में से कर्इ का सांस्कृतिक क्रांति के मौलिक सिध्दांतो से कोर्इ लेना देना नहीं था और इन्होंने कम्यूनिस्ट पार्टी के अंदर अव्यवस्था और मत भिन्नता को जन्म दिया।

सांस्कृतिक क्रांति के बाद चीन में शिक्षा व्यवस्था को Single गुणात्मक आधार मिला, साथ ही पुरातनपंथी गतिविधियों में भी नवीन वैज्ञानिक बदलाव आये। इस क्रांति ने चीनी समाज को अन्दर तक झकझोर दिया। सामूहिक-शारीरिक श्रम का महत्व बढ़ गया। बौध्दिक विलासिता को चीनी समाज ने दरकिनार कर दिया। इस क्रांति में ग्रामीण युवाओं ने रेड-गार्डस के Reseller में महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ थी। अत: ग्रामीण And दूरस्थ क्षेत्रों में रहने वाले जनमानस का महत्व राष्ट्रीय स्तर पर रेखांकित हुआ। क्रांति के फलस्वReseller चीनी समाज की सोच का दायरा बढ़ा। जनता अब कम्युनिस्ट पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के गुण-दोषों के बारे में अब खुलकर सोच सकती थी। हालांकि अब भी माओ के विचारो के प्रति चीनी जनता में अत्याधिक पूर्वाग्रह थे और आगामी कर्इ वर्षो तक माओवाद निर्विवाद Reseller से समाज के All अंगों को Single आदर्श वैचारिक दर्शन के Reseller में संचालित करता रहा।

महान सांस्कृतिक क्रांति के नकारात्मक परिणाम भी Historyनीय रहें। क्रांति के दौरान Human अधिकारों को दरकिनार कर दिया गया। माओ के विरोधियों का निर्वासन, मृत्युदंड, राजनैतिक हत्याओ के द्वारा सफाया कर दिया गया। हजारो लोग विस्थापित हुये और लाखों लोगों को जबरदस्ती गांवों की ओर पलायन करने के लिए बाध्य Reseller गया। सांस्कृतिक क्रांति के दौरान चीन की अल्पसंख्यक संस्कृति को भारी क्षति पहुंचायी गर्इ। तिब्बत में लगभग 6000 बौध्द मठ Destroy कर दिये गये और बौध्द धर्म के अनुयायीयों को प्रताड़ित Reseller गया। यही हाल मुस्लिमों And इसार्इ अल्पसंख्यकों का भी हुआ। इस क्रांति के दौरान पंरपरागत चीनी संस्कृति को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा। धर्म को माक्र्सवाद, लेनिनवाद और माओवादी विचारधारा का शत्रु समझा गया अत: All धर्मों पर प्रतिबंध लगाते हुए माओ ने इसे श्अफीमश् की संज्ञा दी। धर्म से संबंधित तमाम रीति-रिवाजों, प्रतीकों, त्यौहारों को श्पुरातनपंथी सोचश् करार देते हुये अवैध घोषित कर दिया गया। महान सांस्कृतिक क्रांति पर महत्वपूर्ण Reseller से विश्व स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हुर्इ।

पश्चिमी विश्व ने इसकी कटु आलोचना करते हुये इसमें हुये भारी रक्तपात And माओवादी विचारधारा का विरोध Reseller गया। यह तथ्य आगामी तीन दशको तक संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिम के अन्य देशों की चीन के प्रति विदेश नीति को आवश्यक Reseller से प्रभावित करता रहा। चीन में साम्यवादियों की विजय अमेरिका की करारी हार मानी गर्इ। अमेरिका ने दो दशको से अधिक समय तक साम्यवादी चीन को मान्यता देने से इंकार Reseller। अमेरिका ने जनवादी चीन को अपने निषधाधिकार का प्रयोग करके सयुक्त राष्ट्र में प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं करने दिया। इस प्रकार चीन के प्रतिनिधित्व की समस्या शीत युध्द का मुद्द्ा बन गर्इ। सोवियत ब्लॉक में इस क्रांति को समाजवाद की विजय के Reseller में देखा जाता रहा।

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