समिति क्या है?

समिति व्यक्तियों का Single समूह है जो कि किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु बनाया जाता है। उस उद्देश्य की पूर्ति हेतु समाज द्वारा मान्यता प्राप्त नियमों की व्यवस्था को संस्था कहते हैं। बहुत से लोग इन दोनों को समान Meansों में प्रयोग करते हैं जो कि उचित नहीं है। ऐसा भ्रम इन दोनों Wordों के सामान्य प्रयोग के कारण पैदा होता है। उदाहरण के लिए हम किसी भी महाविद्यालय को Single संस्था मान लेते हैं। समाजशास्त्र में जिस Means में संस्था का प्रयोग होता है उस Means की दृष्टि महाविद्यालय संस्था न होकर Single समिति है क्योंकि यह व्यक्तियों का Single मूर्त समूह है। यदि इसे परीक्षा पद्धति (जो कि नियमों की Single व्यवस्था है) की दृष्टि से देखें, तो इसे संस्था भी कहा जा सकता है। यह सर्वमान्य तथ्य है कि कोई भी व्यक्ति अपनी All Needओं की पूर्ति स्वयं अकेला ही नहीं कर सकता है। यदि Single जैसे उद्देश्यों की पूर्ति वाले मिलकर सामूहिक Reseller से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करें, तो Single समिति का निर्माण होता है। इसीलिए समिति को व्यक्तियों का Single समूह अथवा संगठन माना जाता है।

समिति का Means And परिभाषा

समिति व्यक्तियों का समूह है। यह किसी विशेष हित या हितों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है। परिवार, विद्यालय, व्यापार संघ, चर्च (धार्मिक संघ), राजनीतिक दल, राज्य इत्यादि समितियाँ हैं। इनका निर्माण विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए Reseller जाता है। उदाहरणार्थ, विद्यालय का उद्देश्य शिक्षण तथा व्यावसायिक तैयारी हैं। इसी प्रकार, श्रमिक संघ का उद्देश्य नौकरी की Safty, उचित पारिश्रमिक दरें, कार्य की स्थितियाँ इत्यादि को ठीक रखना है। साहित्यकारों या पर्वतारोहियों के संगठन भी समिति के ही उदाहरण हैं।

जिन्सबर्ग (Ginsberg) के According, “समिति आपस में सम्बन्धित सामाजिक प्राणियों का Single समूह है, जो Single निश्चित लक्ष्य या लक्ष्यों की पूर्ति के लिए Single सामान्य संगठन का निर्माण करते हैं।” मैकाइवर And पेज (MacIver and Page) के According-”सामान्य हित या हितों की पूर्ति के लिए दूसरों के सहयोग के साथ सोच-विचार कर संगठित किए गए समूह को समिति कहते हैं।” गिलिन And गिलिन (Gillin and Gillin) के According-”समिति व्यक्तियों का ऐसा समूह है, जो किसी विशेष हित या हितों के लिए संगठित होता है तथा मान्यता प्राप्त या स्वीकृत विधियों और व्यवहार द्वारा कार्य करता है।” बोगार्डस (Bogardus) के According-”समिति प्राय: किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लोगों का मिल-जुलकर कार्य करना है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि समिति व्यक्तियों का Single ऐसा समूह होता है जिसमें सहयोग व संगठन पाया जाता है। इसका प्रमुख उद्देश्य किसी लक्ष्य की पूर्ति है। समिति के सदस्य अपने विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति कुछ निश्चित नियमों के अन्तर्गत सामूहिक प्रयास द्वारा करते हैं।

समिति के अनिवार्य तत्त्व

समिति के चार अनिवार्य तत्त्व हैं-

  1. व्यक्तियों का समूह-समिति समुदाय की ही तरह मूर्त है। यह व्यक्तियों का Single संकलन है। दो अथवा दो से अधिक व्यक्तियों का होना समिति के निर्माण हेतु अनिवार्य है।
  2. सामान्य उद्देश्य-समिति का दूसरा आवश्यक तत्त्व सामान्य उद्देश्य अथवा उद्देश्यों का होना है। व्यक्ति इन्हीं सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो संगठन बनाते हैं उसे ही समिति कहा जाता है।
  3. पारस्परिक सहयोग-सहयोग समिति का तीसरा अनिवार्य तत्त्व है। इसी के आधार पर समिति का निर्माण होता है। सहयोग के बिना समिति का कोई अस्तित्व नहीं है।
  4. संगठन-समिति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठन का होना भी आवश्यक है।

संगठन द्वारा समिति की कार्य-प्रणाली में कुशलता आती है। समिति के निर्माण हेतु उपर्युक्त चारों तत्त्वों का होना अनिवार्य है। वस्तुत: समितियों का निर्माण अनेक आधारों पर Reseller जाता है। अवधि के आधार पर समिति स्थायी (जैसे राज्य) And अस्थायी (जैसे बाढ़ सहायता समिति); सत्ता के आधार पर सम्प्रभु (जैसे राज्य); अर्द्ध-सम्प्रभु (जैसे विश्वविद्यालय) And असम्प्रभु (जैसे क्लब); कार्य के आधार पर जैविक (जैसे परिवार); व्यावसायिक (जैसे श्रमिक संघ); मनोरंजनात्मक (जैसे संगीत क्लब) And परोपकारी (जैसे सेवा समिति) हो सकती हैं।

समिति की प्रमुख विशेषताएँ

समिति की विभिन्न परिभाषाओं से इसकी कुछ विशेषताएँ भी स्पष्ट होती हैं। इनमें से प्रमुख विशेषताएँ हैं-

  1. Human समूह-समिति का निर्माण दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह से होता है जिसका Single संगठन होता है। संगठन होने का आधार उद्देश्य या उद्देश्यों की समानता है। 
  2. निश्चित उद्देश्य-समिति के जन्म के लिए निश्चित उद्देश्यों का होना आवश्यक है। यदि निश्चित उद्देश्य न हों तो व्यक्ति उनकी पूर्ति के लिए तत्पर न होंगे और न ही समिति का जन्म होगा।
  3. पारस्परिक सहयोग-समिति अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए Single व्यवस्था का निर्माण करती है। उद्देश्य की प्राप्ति तथा व्यवस्था के लिए सहयोग होना अति आवश्यक है। चूँकि सदस्यों के समान उद्देश्य होते हैं, इस कारण उनमें सहयोग पाया जाता है।
  4. ऐच्छिक सदस्यता-प्रत्येक मनुष्य की अपनी Needएँ हैं। जब वह अनुभव करता है कि अमुक समिति उसकी Need की पूर्ति कर सकती है तो वह उसका सदस्य बन जाता है। समिति की सदस्यता के लिए कोई बाध्यता नहीं होती है। इसकी सदस्यता ऐच्छिक होती है। इसे कभी भी बदला जा सकता है।
  5. अस्थायी प्रकृति-समिति का निर्माण विशिष्ट उद्देश्यों को पूर्ति के लिए Reseller जाता है। जब उद्देश्यों की प्राप्ति हो जाती है तो वह समिति समाप्त हो जाती है। उदाहरणार्थ, गणेशोत्सव के लिए गठित समिति गणेशोत्सव समाप्त होने के बाद भंग हो जाती है। 
  6. विचारपूर्वक स्थापना-समिति की स्थापना Humanीय प्रयत्नों के कारण होती है।  व्यक्तियों का समूह First यह परामर्श करता है कि समिति उनके लिए कितनी लाभप्रद होगी। यह विचार-विमर्श करने के बाद ही समिति की स्थापना की जाती है।
  7. नियमों पर आधारित-प्रत्येक समिति की प्रकृति अलग होती है। इसी कारण समितियों के नियम भी अलग-अलग होते हैं। उद्देश्यों को पाने के लिए व सदस्यों के व्यवहार में अनुResellerता (Conformity) लाने के लिए कतिपय निश्चित नियम आवश्यक हैं। नियमों के अभाव में समिति अपने लक्ष्यों की पूर्ति नहीं कर सकती।
  8. मूर्त संगठन-समिति व्यक्तियों का Single ऐसा समूह है जो कतिपय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु Singleत्र होते हैं। इस दशा में समिति को मूर्त संगठन के Reseller में described Reseller जा सकता है। इसको किसी के भी द्वारा देखा जा सकता है।
  9. समिति साधन है, साध्य नहीं-समितियों का निर्माण उद्देश्यों की पूर्ति के लिए Reseller जाता है। यदि हम पढ़ने के शौकीन हैं, तो वाचनालय की सदस्यता ग्रहण कर लेते हैं। इससे हमें इच्छानुसार पुस्तकें मिलती रहती हैं। इसमें वाचनालय पुस्तकें प्राप्त करने का साधन है, साध्य नहीं; और यही समिति है। अत: हम कह सकते हैं कि समिति साधन है साध्य नहीं।
  10. सुनिश्चित संCreation-प्रत्येक समिति की Single सुनिश्चित संCreation होती है। समस्त सदस्यों की प्रस्थिति समान नहीं होती, वरन् उनकी अलग-अलग प्रस्थिति या पद होते हैं। पदों के According ही उन्हें अधिकार प्राप्त होते हैं। उदाहरण के लिए, महाविद्यालय में प्राचार्य, अध्यापक, छात्र, लिपिक इत्यादि प्रत्येक की अलग-अलग प्रस्थिति होती है तथा तदनुसार उनके अलग-अलग कार्य होते हैं।

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