समन्वय क्या है

किसी भी संगठन में समन्वय Single महत्वपूर्ण प्रकार्य है जो संगन के All अंगों को आपस में जोड़कर रखता है। प्रस्तुत इकार्इ में समन्वय का Means, महत्व, सिद्धान्त And समन्वय को प्रबन्ध के सार के Reseller में प्रस्तुत Reseller गया है। समन्वय को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रबन्ध का केन्द्र बिन्दु माना गया है। समन्वय की प्रारम्भिक विचारधारा जो इसे प्रबन्ध का Single प्रकार्य मात्र मानकर चलती है वर्तमान में कोर्इ महत्व नहीं रखती। आधुनिक विचारधारा के According यह प्रबन्ध का Single प्रकार्य मात्र ही नहीं है अपितु ‘‘प्रबन्ध-प्रक्रिया का सार है।’’ किसी भी उपक्रम के निर्वाध संचालन के लिए यह आवश्यक है कि उसके समस्त विभागों में की जाने वाली क्रियाओं मे तालमेल बना रहे। समन्वय इस उद्देश्य की पूर्ति करता है।

समन्वय का Means 

साधारण Wordों में समन्वय का Means सामान्य लक्ष्यों की पूर्ति हेतु किये जाने वाले सामूहिक प्रयासों में तालमेल बनाये रखना है।समन्वय Single विस्तृत Means वाला Word है जिसे विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न ढंग से स्पष्ट Reseller है। समन्वय की कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा दी गर्इ परिभाषाएं हैं :-

  1. कुन्टज तथा ओडोनेल (Koontz and O’Donell) के According, ‘‘समन्वय समूह लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु व्यक्तिगत प्रयत्नों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रबन्ध का सार है।’’ 
  2. मूने तथा रेले (Mooney and Reiley) के According, ‘‘किसी सामान्य उद्देश्य की पूर्ति हेतु की जाने वाली क्रियाओं में Singleता बनाये रखने के लिए सामूहिक प्रयासों की सुव्यवस्था को समन्वय कहते हैं।’’ 
  3. टीड (Tead) के According, ‘‘समन्वय किसी संगठन के समस्त विभिन्न साध् ाक अंगों के कार्यों And शक्तियों के सुचारू Reseller से संचालन हेतु प्रयास है जिसका उद्देश्य यह होगा कि लक्ष्यों की पूर्ति न्यूनतम फूट और अधिकतम सहयोगात्मक प्रभाव पूर्णता के साथ हो सके।’’ 
  4. हेनरी फेयोल (Henri Fayol) के According, ‘‘किसी प्रतिष्ठान के कार्य संचालन को सुविधाजक And सफल बनाने के लिए उसकी समस्त क्रियाओं में सामंजस्य स्थापित करना ही समन्वय है।’’ 
  5. मेक फारलैण्ड (Mc Farland) के According ‘‘समन्वय Single वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से Single कार्यकारी (Executive) अपने अधीनस्थों के सामूहिक प्रयासों में Single सुव्यवस्थित स्वReseller का विकास करता है और सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु क्रियाओं में Single Resellerता लाता है।’’ 
  6. हैमेन (Haimann) के According, ‘‘समन्वय किसी क्रिया को उचित राशि, समय And निष्पादन की किस्म प्रदान करने हेतु अधीनस्थों के प्रयासों की क्रमानुसार संयोजन (Orderly Synchronizing) है ताकि उनके संयुक्त निर्धारित उद्देश्य Meansात् उपक्रम के सामान्य लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सके।’’ 
  7. ब्र्रेच (Brech) के According, ‘‘समन्वय से आशय विभिन्न सदस्यों में क्रियाशील क्रियाओं (Working activities) का उपयुक्त आवंटन करके तथा यह निश्चय करके कि सदस्य उन क्रियाओं को सदभावनापूर्वक कर रहे हैं संगठन में सन्तुलन And समूह भावना बनाये रखना है।’’ 
  8. जार्ज आर. टेरी (George R. Terry) के According, ‘‘समन्वय निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति हेतु प्रयासों का क्रमानुसार संयोजन (Synchronization) है जिससे निष्पादन की उपयुक्त मात्रा, समय और निर्देशन से क्रियाओं में सामंजस्य And Singleता स्थापित हो जाय।’’ 

समन्वय की उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने के पश्चात हम कह सकते हैं कि समन्वय प्रबन्ध का Single प्रकार्य मात्र ही नहीं है अपितु सार भी है। यह Single सतत प्रक्रिया है जिसके माध्यम से निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु किये जाने वाले विभिन्न प्रयासों में Singleता And सामन्जस्य स्थापित Reseller जाता है। समन्वय के सम्बन्ध में कुछ विद्वानों ने निम्न विचार प्रस्तुत किये हैं –

  1. कून्ट्ज And ओडोनेल, समन्वय निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तिगत प्रयासों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए प्रबन्ध का सार है। 
  2. जेम्स डी. मूने, समन्वय प्रबन्ध का Single महत्वपूर्ण कार्य है तथा संगठन का Single First सिद्धान्त है। लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि अन्य कोर्इ सहायक सिद्धान्त नहीं है। इसका तो साधारण Means यह है कि शेष All सिद्धान्त समन्वय में शामिल हैं। 
  3. थियो हेमेन, समन्वयक प्रबन्ध की पृथक और भिन्न क्रिया नही  है। यह तो अन्य All प्रबन्धकीय कार्यों जैसे नियोजन, संगठन, कर्मचारियों की Appointment, निर्देशन ओर नियंत्रण का Single अंग है। 
  4. न्युमेन, समन्वय प्रबन्ध की Single पृथक और अविच्छिन्न क्रिया नही  है क्याेिं क यह प्रशासन के विभिन्न स्वResellerों का Single अंग है। 
  5. आर.सी.डेविस, समन्वय नियत्रंण का Single व्यापक साधन या Reseller है। पीटरसन And प्लोमेन, समन्वय उच्च प्रबन्ध का Single अविच्छिन्न कार्य (Distinctive task) है। 
  6. हेनेरी फियोल, समन्वय प्रबन्ध का Single कार्य है। 
  7. जार्ज आर. टेरी, समन्वय को प्रबन्ध का आधारभतू कार्य मानना भलू हागे ी। इस दृष्टि से समन्वय का सम्बन्ध नियोजन, संगठन, निर्देशन और नियंत्रण के साधनों से है। अत: इन चारों कार्यों का उचित क्रियान्वयन समन्वय की प्राप्ति के लिए आवश्यक है। 

समन्वय का महत्व

यद्यपि कुछ विद्वान समन्वय को प्रबन्ध के आधारभूत कार्यों की सूची में सम्मिलित नहीं करते फिर भी इसका महत्व अन्य प्रबन्धकीय कार्यों से किसी भी दशा में कम नहीं है।इसी तथ्य से प्रभावित होकर कून्ट्ज And ओडोनेल ने कहा है, ‘‘समन्वय प्रबन्ध का Single प्रकार्य मात्र ही नही है अपितु प्रबन्ध का सार भी है।’’ समन्वय के अभाव में प्रबन्ध के अन्य All कार्य उसी प्रकार निष्क्रिय हो जाते हैं जिस प्रकार बिना रक्त संचार के शरीर। वर्तमान में जब उत्पादन का पैमाना काफी विस्तृत हो गया, स्वचालन And कम्प्यूटर यन्त्रों का प्रादुर्भाव हो गया, व्यापार स्थानीय सीमाओं को लांघकर अन्तर्राष्ट्रीय हो गया तो समन्वय का महत्व निश्चित ही अधिक हो गया है। मूने तथा रेले के According ‘‘समन्वय संगठन की सम्पूर्ण योजना का सारतत्व है। ‘‘इन्हीं के According समन्वय ही संगठन का Single मुख्य सिद्धान्त है लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं है कि संगठन के अन्य कोर्इ सिद्धान्त प्रभावी नहीं हैं। वास्तविकता यह है कि अन्य All सिद्धान्त समन्वय को और अधिक प्रभावी बना देते हैं।

एल.एफ. उर्विक के According, ‘‘All Creationत्मक सामाजिक सम्बन्धों की जड़ Singleता है।’’ किसी भी सफलता उसकी संगठन संCreation पर निर्भर होती है। और संगठन की सफलता समन्वय की किस्म And मात्रा पर निर्भर होती है। अत: इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि समन्वय प्रबन्ध का सार है। समन्वय की महत्ता न केवल व्यावसायिक जगत में ही सर्वाधिक है बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सर्वाधिक है। Single परिवार समाज में अपना अस्तित्व उसी समय तक बनाये रख सकता है जबकि उसके सदस्यों की क्रियाओं में तालमेल हो, ख्ेाल के मैदान में Single टीम उसी समय विजय हासिल कर सकती है जबकि उसके खिलाड़ियों में समन्वय हो, Fight के मैदान में सैनिक अपनी जीत का डंका बजा सकते हैं जबकि उनमें आपस में समन्वय हो। समन्वय की महत्ता निम्न संक्षिप्त कहानी द्वारा और अधिक स्पष्ट हो जाती है –

‘‘Single बार Single बालक को प्रात: रेल से कहीं जाना था। उसने रात को सोने से पूर्व कहीं उठने में देर न हो जाय और रेल छूट न जाय, घड़ी को आधे धण्टे आगे कर दिया और सुबह उठने के लिए वह जल्दी ही सो गया। कुछ समय बाद उसके पिताजी यह जानते हुए कि लड़के को सुबह जाना है उसे उठने में देर न हो जाय घड़ी को आधे घण्टे और आगे कर दिया और सो गये। कुछ समय बाद उसकी माताजी पूर्व दोनों क्रियाओं की जानकारी के बिना घड़ी को Single घण्टे और आगे कर दिया ताकि लड़के को सुबह जाने के लिए तैयार होने में पर्याप्त समय मिल जाय। इन All क्रियाओं का परिणाम यह हुआ कि पुत्र को निर्धारित समय से आधे घण्टे पूर्व उठने की बजाय दो घण्टे पूर्व उठना पड़ा और अपने माता पिता के मध्य समन्वय के अभाव से डेढ़ घण्टे की नींद से हाथ धोना पड़ा।’’ समन्वय की Need And महत्व को निम्न शीर्षकों द्वारा और अधिक स्पष्ट Reseller जा सकता है :-

अनेकता में Singleता – 

यद्यपि किसी उपक्रम में कार्य करने वाले व्यक्तियों का लक्ष्य समान होता है फिर भी उनकी योग्यता And कार्य करने के तरीकों में पर्याप्त भिन्नता पार्इ जाती है। यह भिन्नता प्राकृतिक है। संसार में कोर्इ ऐसे दो व्यक्ति देखने को नहीं मिलते जो हर तरह से Single समान हो। ऐसी स्थिति में निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए उनकी क्रियाओं में सामन्जस्य स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है।अत: यह स्पष्ट है कि विभिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं में सामन्जस्य स्थापित करके ही उपक्रम का सुचारू Reseller से संचालन Reseller जा सकता है। अत: कुन्ट्ज And ओ’डोनेल ने ठीक ही लिखा है कि ‘‘प्रबन्धक का केन्द्रीय कार्य विचारधारा के मध्य अन्तरों को समाप्त करना और व्यक्तिगत लक्ष्यों And क्रियाओं के मध्य सामंजस्य स्थापित करना है ताकि समूह उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके।’’

विभिन्न कार्यों की कुन्जी – 

समन्वय प्रबन्ध के अन्य All कार्यों की कुन्जी है। यह Single ऐसा Word है जिसमें प्रबन्ध के अन्य All कार्यों का निचोड़ सम्मिलित है। यह प्रबन्ध प्रक्रिया का अन्तिम परिणाम है। अत: इसे प्रबन्ध के अन्य कार्यों यथा नियोजन, संगठन, निर्देशन और नियंत्रण आदि की कुन्जी माना जाता है। Single उपक्रम की सफलता के लिए Single नियोजन के विभिन्न तत्वों, Single संगठन के विभिन्न अंगों और नियंत्रण के विभिन्न स्तरों के समन्वय स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है। समन्वय ही प्रबन्ध का Single ऐसा कार्य है जो नियोजन को अधिक उद्देंश्यपूर्ण, संगठन को अधिक सुदृढ़ और नियंत्रण को अधिक नियमित बनाता है। जार्ज सी. होमेन्स के According, ‘‘समन्वय में Single से अधिक व्यक्ति की क्रियायें सम्मिलित होती हैं और वास्तव में जहॉं व्यक्ति अनेक जटिल तकनीकों का प्रयोग करते हैं वहॉं पर उत्पादन कार्य को समन्वित करने के लिए, कच्चे माल को प्राप्त करने के लिए और उत्पादित वस्तुओं के विक्रय के लिए अनेक सह-विस्तृत अन्त:क्रियाएं जन्म लेती हैं।’’

निर्देश की Singleता – 

निर्देश की Singleता प्रबन्ध का Single आधारभूत सिद्धान्त है। इसका पालन Single उपक्रम में उसी समय सम्भव है जबकि उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में पर्याप्त समन्वय है। समन्वय प्रबन्धकों को इस योग्य बनाता है कि वे विभिन्न दृष्टिकोणों से समग्र Reseller में उपक्रम की समस्त क्रियाओं की देखरेख करें। यह निर्देश की Singleता बनाये रखता है। वास्तव में देखा जाय तो किसी संगठन के अन्तर्गत विभिन्न प्रयासों को Single दिशा में निर्देशित करना कोर्इ आसान कार्य नहीं होता। यह तो समन्वय ही प्रबन्ध का ऐसा कार्य है जो इसे सम्भव बनाता है।

सकल उपलब्धियॉं  – 

यदि यह मान भी लिया जाय कि Single समूह में समानता की पर्याप्त मात्रा है और इसके विभिन्न सदस्य सामान्य लक्ष्य की पूर्ति के लिए भरसक प्रयत्न करते हैं। फिर भी सामूहिक प्रयासों की प्राप्ति के लिए समन्वय की नितान्त Need होती है क्योंकि सामूहिक प्रयासों की उपलब्धियॉं व्यक्तिग प्रयत्नों की उपलब्धियों से कहीं अधिक होती हैं। अत: समूह प्रयासों में सामंजस्य अत्यन्त आवश्यक है। समूह प्रयासों में सामंजस्य स्थापित करने से कुल उपलब्धि में वृद्धि होती है और उपक्रम का चहुमुखी विकास होता है। जार्ज आर. टेरी के Wordों में ‘‘किसी समूह के अन्तर्गत समन्वय कुल प्राप्ति में व्यक्तिगत प्रयासों की कुल उपलब्धि में वृद्धि सम्भव करता है। दस कर्मचारी जो व्यक्तिगत Reseller में कार्य करते हैं की तुलना में विभाग ए के दस कर्मचारी जो आपस में समन्वित हैं, की कुल उपलब्धि अधिक होगी।’’

उच्च मनोबल – 

जिन साधनों द्वारा कर्मचारियों की कार्य-कुशलता में वृद्धि की जाती है उनमें समन्वय भी Single प्रमुख साधन है। यह कर्मचारियों को कार्य सन्तुष्टि प्रदान करता है और उनके मनोबल के सामान्य स्तर को ऊॅंचा उठाता है।कुशल नेतृत्व और समृद्ध भावना के कारण की जाने वाली क्रमबद्ध क्रियाएं कर्मचारियों को कार्य से जहॉं Single ओर व्यक्ति ्रगत सन्तुष्टि प्रदान करती है वहीं दूसरी ओर सामाजिक सन्तुष्टि भी प्रदान करती है। फलत: उनका मनोबल उच्च होता है।

सन्तुलन – 

यह सर्वविदित सत्य है कि Single सा कार्य या उसी तरह का कार्य करने वाले व्यक्तियों की क्षमताओं में पर्याप्त भिन्नता होती है। कुछ व्यक्ति अधिक योग्य होते हैं तो कुछ कम। कुछ व्यक्ति तीव्र गति से कार्य करते हैं तो कुछ मन्द गति से। र्इश्वर प्रदत्त मनुष्यों में किसी कार्य को करने की भिन्नता स्वाभाविक है पर उसमें सन्तुलन स्थापित Reseller जा सकता है। संतुलन ही समन्वय का दूसरा Reseller है।

न्यूनतम लागत पर अधिकतम परिणामोंं की प्रा्राप्ति – 

समन्वय And विभिन्न व्यक्तियों की क्रियाओं में सन्तुलन स्थापित करता है। और न्यूनतम लागत पर अधिकतम परिणामों की प्राप्ति सम्भव बनाता है। यह ही प्रबन्ध का Single ऐसा कार्य है जो अधिक शीघ्र कार्य करने वाले व्यक्ति सामान्य गति से और धीमी गति से कार्य करने वाले को तीव्र गति से कार्य करने योग्य बनाता है ताकि समग्र Reseller में सम्पूर्ण उपक्रम का कार्य सुचारू Reseller से चलता रहे। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि असमानताओं में सन्तुलन स्थापित करने के लिए समन्वय की नितान्त Need है।

अन्य –

  1. समन्वय Single Creationत्मक शक्ति है जो वैयक्तिक And समूह प्रयासों को गति प्रदान करती है और नवीनतम वस्तुओं का उत्पादन सम्भव बनाती है। 
  2. टैरी के According अच्छा समन्वय संस्था में अच्छे कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि करता है और उन्हें संस्था में बनाये रखता है। 
  3. समन्वय संस्था के प्रसाधनों के दुResellerयोग को रोकता है। 
  4. समन्वय विभिन्न व्यक्तियों को Single सूत्र में पिरोकर किसी कार्य को अच्छे ढंग से सम्पन्न कराता है और सौहार्दपूर्ण Humanीय सम्बन्धों की स्थापना करता है।
  5.  समन्वय से Single उपक्रम को विशिष्टीकरण के लाभों की प्राप्ति होती है। 
  6. समन्वय निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न क्रियाओं को व्यवस्थित क्रम करता है।
  7.  समन्वय के माध्यम से प्रबन्धक अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का निर्वाह ठीक ढंग से करने में समर्थ होते हैं।

समन्वय के सिद्धान्त 

समन्वय की विचारधारा के सम्बन्ध में सबसे अधिक मौलिक और Creationत्मक धारणा मेरी पार्कर फोलेट की है। इन्होंने समन्वय के कुछ निम्न सिद्धान्तों का प्रतिपादन Reseller है-

प्रत्यक्ष सम्पर्क – 

समन्वय का यह सिद्धान्त इस बात पर बल देता है कि Single उपक्रम में समन्वय की स्थापना व्यक्तियों में व्यक्तिगत और समतल सम्बन्धों द्वारा ही होनी चाहिए। व्यक्तियों के मध्य विचारों, आदर्शों And लक्ष्यों का प्रत्यक्ष व्यक्तिगत सम्प्रेषण द्वारा आसानी से आदान प्रदान Reseller जा सकता है। और सामान्य And व्यक्तिगत लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है। प्रत्यक्ष सम्पर्क द्वारा जहॉं Single ओर उपक्रम के उद्देश्य And कार्य विधियों को आसानी से स्पष्ट Reseller जा सकता है वहॉं दूसरी ओर भ्रम And अस्पष्टता का तुरन्त निवारण भी Reseller जा सकता है। प्रत्यक्ष सम्पर्क के अभाव में लिखित सम्प्रेषण से सन्देश का गलत Means लगाया जा सकता है और व्यक्तियों में विपरीत विचारधारा उत्पन्न हो सकती है।

प्रारम्भिक स्थिति में समन्वय – 

समन्वय का यह सिद्धान्त स्पष्ट करता है कि समन्वय की स्थापना नियोजन तथा नीति निर्धारण की प्रारम्भिक स्थिति में ही होनी चाहिए। जैसा कि हमें विदित है कि प्रबन्ध के सोचने के कार्य के पश्चात करने का कार्य प्रारम्भ होता है। अत: समन्वय की स्थापना का कार्य प्रारम्भिक स्तर (नियोजन And नीति निर्धारण) पर ही Reseller जाना चाहिए, अन्यथा क्रियान्वयन कार्य की विभिन्न क्रियाओं में समन्वय स्थापित करना Single दुष्कर कार्य हो जाता है। उदाहरण के लिए विभागीय योजनाओं के निर्माण के समय उनकी क्रियाओं में समन्वय सहज ही स्थापित Reseller जा सकता है किन्तु इन्हें कार्यान्वित करने के प्रयासों को प्रारम्भ करने के पश्चात उनमें समन्वय स्थापित करना बहुत ही कठिन हो जाता है। अत: समन्वय की स्थापना का कार्य प्रारम्भिक स्थिति में ही Reseller जाना चाहिए।

पारस्परिक सम्बन्ध – 

समन्वय के सिद्धान्त के According किसी स्थिति विशेष में All घटक Single Second से सम्बन्धित होते है। उदाहरण के लिए, ‘अ’ और ‘ब’ Single साथ कार्य करते हैं तो ऐसी स्थिति में दोनों Single Second से प्रभावित होते हैं।अन्य Wordों में ‘अ’’ब’ से प्रभावित होता है। और ‘ब’ ‘अ’ से प्रभावित होता है। इसी प्रकार समस्त उपक्रमों में कार्य करने वाले Single व्यक्ति स्वयं दूसरों से प्रभावित होते हैं और दूसरों को स्वयं भी प्रभावित करते हैं। अत: स्पष्ट है कि Single उपक्रम के All घटकों में पारस्परिक सम्बन्ध होते हैं जो Single Second को प्रभावित करते हैं।

निरन्तरता – 

मेरी पार्कर फोलेट ने ठीक ही कहा है कि, समन्वय Single निरन्तर प्रक्रिया है। अत: उपक्रम की विभिन्न क्रियाओं में समन्व्य स्थापित करने के लिए उच्च अधिकारियों को सदैव प्रयास करते रहना चाहिए। समन्वय की स्थापना न तो Single दो दिन में ही हो जाती है और न ही अवसरों पर छोड़ी जा सकती है। यह तो प्रबन्ध का Single ऐसा कार्य है जिसे प्रबन्धक को निरन्तर करते रहना चाहिए। यद्यपि कभी कभी विशेष परिस्थितियों का सामना करने के लिए समन्वय स्थापित करने वाली समितियों की स्थापना की जाती है। लेकिन वे निरन्तर प्रयत्न का स्थान ग्रहण नहीं कर सकती। अन्य Wordों में इन समितियों की स्थापना समन्वय के लिए किये जाने वाले प्रयासों की इतिश्री नहीं हो जाती। मेरी पार्कर फोलेट द्वारा प्रतिपादित उपर्युक्त सिद्धान्तों के अतिरिक्त समन्वय की स्थापना के समय निम्न सिद्धान्तों को भी ध्यान में रखना चाहिए।

गतिशीलता – 

प्रबन्ध के अन्य कार्यों की भॉंति समन्वय में भी कठोरता न होकर गतिशीलता होनी चाहिए। समन्वय के इस सिद्धान्त के According बाहरी वातावरण और आन्तरिक क्रियाओं And निर्णयों में परिवर्तन होने के कारण व्यावसायिक परिस्थितियों में भी यदा कदा परिवर्तन होता रहता है। अत: समन्वय की तकनीकों में भी परिवर्तन करते रहना चाहिए। कूट्ज And बो’डोनेल के According ‘‘अच्छा समन्वय भयंकर बिन्दुओं को उनके उदगम स्थान पर समाप्त कर देगा। सर्वोत्तम समन्वय इन बिन्दुओं का First से अनुमान लगा लेगा और उनकी उत्पत्ति को रोक देगा।’’

आत्म समन्वय – 

आत्म समन्वय प्रत्येक उपक्रम के विभिन्न विभागों के मध्य पाये जाने वाले पारस्परिक सम्बन्धों का परिणाम है। किसी भी उपक्रम में प्रत्येक विभाग की सफलता अन्य अनेक विभागों की सफलता पर निर्भर होती है। उदाहरण के लिए निर्माण विभाग की सफलता अन्य अनेक विभागों जैसे श्रम विभाग, श्रम सम्बन्ध, विज्ञापन विभाग, प्रेषण विभाग आदि पर निर्भर है। फिर भी निर्माण विभाग का इन अन्य विभागों पर कोर्इ प्रत्यक्ष अधिकार नहीं होता। इन All विभागों में आपस में पारस्परिक सम्बन्ध होते हुए भी किसी को Single Second को निर्देश देने का अधिकार नहीं होता। ऐसी स्थिति में आत्म समन्वय की Need उत्पन्न होती है।आत्म समन्वय से आशय है प्रत्येक विभागाध् यक्ष/अधिकारी द्वारा अपने निर्धारित उत्तरदायित्व का इस ढंग से निर्वाह करना है कि अन्य विभागीय क्रियाओं पर कोर्इ विपरीत प्रभाव न पड़े। आत्म समन्वय के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने प्रयासों को अन्य कार्य करने वाले व्यक्तियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए समायोजित करें। आत्म समन्वय के अन्तर्गत उपक्रम के अधिकारियों के मध्य जहॉं Single ओर पारस्परिक सम्प्रेषण की मात्रा काफी हो जाती है वहॉं दूसरी ओर प्रत्येक अधिकारी अन्य अधिकारियों की सुविधानुसार अपनी योजना, कार्य पद्धतियॉं आदि में परिवर्तन करने का किसी न किसी Reseller में विरोध करता है। अत: योग्य नेतृत्व द्वारा आत्म समन्वय की स्थापना की जानी चाहिए।

समय सिद्धान्त – 

समन्वय का यह सिद्धान्त इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक कार्य सही समय पर Reseller जाना चाहिए। अत: समन्वय की स्थापना यथा समय कर लेनी चाहिए। यदि निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु किये जाने वाले प्रयासों में यथा समय समन्वय स्थापित नहीं Reseller गया तो प्रयासों का दुResellerयोग होता ओर असफलता का सामना करना पड़ता। यथा समय स्थापित Reseller गया समन्वय जहॉं Single ओर प्रयासों की सफलता में वृद्धि करता है वहॉं दूसरी ओर निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति भी करता है। कहा गया है कि, समस्या का सही समय निवारण या रोकथाम उसके उपचार से ज्यादा महत्वपूर्ण है इसलिए समय रहते समन्वय बड़ी असफलता को रोक सकता है। Meansात भविष्य में होने वाली असफलताओं को उचित समन्वय के द्वारा वर्तमान में ही सुधारा जा सकता है। 

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