शैक्षिक मापन And मूल्यांकन

मापन का Means शैक्षिक मापन की विशेषताएँ

हम अपने जीवन के प्रत्येक क्षण अपने चारों ओर हो रहे परिवर्तनों के प्रति सजग रहते हैं तथा उन प्रत्येक परिवर्तनों का मात्रात्मक आंकलन करते हैं जो हमें किसी न किसी प्रकार प्रभावित करते हैं। शिक्षा सतत् गत्यात्मक प्रक्रिया में इससे जुडे़ प्रत्येक व्यक्ति, छात्र, अभिभावक, अध्यापक, प्रKing तथा नीति निर्माता सदैव किसी न किसी रुप में शिक्षा की चुनौतियां, समस्याएँ तथा समाधान के प्रति चिंतित रहते हैं। किसी भी समस्या के सम्बन्ध में तत्थ्यात्मक जानकारी के अभाव में कोर्इ भी निर्णय त्रुटिपूर्ण हो सकता है। अत: समस्या के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित सूचना की पर्याप्तता, सन्दर्भ तथा उपयुक्तता उस समस्या के समाधान हेतु First तथा Indispensable Need है। सूचनाओं को वस्तुनिष्ठ, विश्वसनीय तथा वैध तरीके से प्राप्त करने के लिये हमें मापन का सहारा लेना पड़ता है।

  1. एस.एस. स्टीवेन्स के According- ‘मापन किन्ही स्वीकृत नियमों के According वस्तुओं को अंक प्रदान करने की प्रक्रिया है Meansात मापन का स्वReseller आंकिक है। 
  2. जी.सी. हेल्मस्टडेटर के According- ‘मापन को किसी व्यक्ति या वस्तु में निहित किसी विशेषता की मात्रा का आंकिक वर्णन प्राप्त करने की प्रक्रिया के Reseller में परिभाषित Reseller गया हैं’ Meansात् मापन का स्वReseller मात्रात्मक हैं तथा यह Single प्रक्रिया है। 
  3. ब्रेड फील्ड तथा मोरडोक के According- ‘‘मापन किसी घटना के विभिन्न आयामों को प्रतीक आवंटित करने की प्रक्रिया है जिससे उस घटना की स्थिति का यथार्थ निर्धारण Reseller जा सके’’ Meansात् मापन यथार्थ है।

किसी वस्तु के गुणों तथा विशेषताओं का description गुणात्मक तथा मात्रात्मक दोनों हो सकता है। अत: मापन भी दो प्रकार के होते हैं- गुणात्मक मापन तथा मात्रात्मक मापन। गुणात्मक मापन में गुण या विशेषता की उपस्थिति/अनुपस्थिति दर्शायी जाती है अथवा गुण या विशेषता का प्रकार बताया जाता है जबकि मात्रात्मक मापन में कोर्इ भी गुण या विशेषता कितनी मात्रा में उपस्थित है इसका यथार्थ description प्रस्तुत Reseller जाता है। वस्तुत: मापन में व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना के ऐसे Word, अंक, अक्षर अथवा प्रतीक प्रदान किये जाते हैं जो उन संदर्भ गुणों के प्रकार अथवा उसकी मात्रा को व्यक्त करते हैं। अत: मापन प्रक्रिया में मूलत: तीन तत्व होते हैं-

  1. विषयी : जिसके गुणों का मापन होना है।
  2. प्रतीक : जिसमें गुणों की मात्रा अभिव्यक्त होती है।
  3. नियम या मान्यता : जिसके आधार पर मात्रा व्यक्त होनी है।

    प्राय: भौतिक गुणों जैसे- लम्बार्इ, चौड़ार्इ, क्षेत्रफल, आयतन आदि के मापन में गुण दिखार्इ देते रहते हैं तथा उनमें स्थायित्व रहता है। अत: मापन परोक्ष होता है। जबकि शैक्षिक तथा मनोविज्ञान के क्षेत्र में गुणों जैसे- बुद्धि, व्यक्तित्व, रूचि, सम्प्राप्ति आदि में गुण दिखार्इ नहीं पड़ते तथा इनमें स्थायित्व का भी अभाव रहता है। अत: मापन अपरोक्ष होता है। शैक्षिक मापन बहुत ही चुनौतीपूर्ण तथा अस्थार्इ होता है क्योंकि लक्षण दिखार्इ नहीं देते। विषयी द्वारा दिये गये उद्दीपन की प्रतिक्रिया स्वReseller प्राप्त अनुक्रिया का विश्लेषण करके गुणों की मात्रा का अनुमान लगाया जाता है। यह अनुमान सही भी हो सकता हैं तथा त्रुटिपूर्ण भी। विषयी यदि अनुक्रिया न करना चाहे या उसकी मनोवैज्ञानिक दशा अनुकूल न हो तो गुण होते हुए भी उसकी मात्रा का ठीक ठीक पता लगाना कठिन हो जाता है। अत: विषयी की मनोदशा पर पर्याप्त नियंत्रण करके ही और स्वाभाविक मनोवैज्ञानिक पर्यावरण प्रदान करने के उपरान्त ही शैक्षिक मापन सम्भव हो सकता है। शैक्षिक मापन में मापक उपकरण का स्थान तो महत्वपूर्ण रहता है साथ ही विषयी का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।

    चरों की प्रकृति

    मापन द्वारा व्यक्ति, वस्तु अथवा घटना की विशेषताओं की मात्रा का अध्ययन Reseller जाता है। इन विशेषताओं अथवा गुणों को जिससे कोर्इ घटना अपने आप में विशेष हो जाती है चर (Variable) कहते हैं। चर (Variable) का Wordिक Means है जो बदलती रहे Meansात स्थिर न रहे, भिन्न-भिन्न लोगों में भिन्न-भिन्न मात्रा में पायी जाय। जैसे- भार, लम्बार्इ, बुद्धि, अभिवृत्ति आदि। चर के आधार पर समूह के सदस्यों को कुछ उप-समूहों में बाँटा जा सकता है। यदि समूह का Single सदस्य भी किसी गुण के प्रकार अथवा मात्रा में शेष से भिन्न है तब उसे चर कहा जा सकता है। कोर्इ गुण किसी Single समूह के लिये चर राशि हो सकता है जबकि Second समूह के लिए स्थिर हो। चर दो प्रकार से वर्गीकृत किये जा सकते हैं-

    1. गुणात्मक चर
    2. मात्रात्मक चर : (1) सतत्  (2) असतत्

      गुणात्मक चर गुणों के विभिन्न प्रकारों को व्यक्त करते हैं जिनके आधार पर समूह को उपश्रेणियों में बाँटा जा सकता है। जैसे- धर्म के आधार पर हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख तथा र्इसार्इ या लिंग के आधार पर महिला, पुरुष। जबकि मात्रात्मक चर वे हैं जो गुणों की मात्रा को व्यक्त करते हैं। समूह के प्रत्येक व्यक्ति में इनका परिमाप भिन्न-भिन्न होता है। जैसे- प्राप्तांक, बुद्धिलब्धि, आय आदि। इनमें लम्बार्इ तथा भार में Single बिन्दु से Second बिन्दु के बीच कोर्इ भी मान सम्भव है, अत: ये सतत् चर कहलाते हैं। जबकि परिवार में सदस्यों की संख्या 3 या 4 ही सम्भव है बीच का मान 3.5, 3.8 नहीं। अत: ऐसे चर असतत् चर (Discrete Variable) कहलाते हैं। असतत् चर में प्रयुक्त संख्याएं यथार्थ संख्याएं होती हैं जबकि सतत् चर में प्रयुक्त संख्याएं निकटस्थ प्रकृति की होती हैं।

      मापन के स्तर- 

      एस.एस. स्टीवेन्स ने मापन की यथार्थता के आधार पर मापन के चार स्तर बताये हैं:-

      1. नामित मापन (Nominal Measurement)- इनमें व्यक्तियों अथवा घटनाओं को किसी गुण या विशेषता के आधार पर कोर्इ नाम, Word, अंक या संकेत प्रदान Reseller जाता हैं। इनमें कोर्इ क्रम या सम्बन्ध अंतर्निहित नहीं रहता हैं। यह Single गुणात्मक मापन है, तथा प्राप्त मानों या संकेतों से कोर्इ भी गशितीय संक्रिया जैसे- जोड़, घटाना, गुणा, भाग आदि सम्भव नहीं हैं। गुणों के आधार पर मात्र विभिé समूहों या उप समूहों की Creation की जा सकती हैं। जैसे- णहरी, ग्रामीण या कला, विज्ञान, वाणिज्य आदि।
      2. क्रमित मापन (Ordinal Measurement)- यह मापन गुणों की मात्रा के आकार पर आधारित होता है जिस कारण विभिé श्रेणियों या उप समूहों में Single निश्चित क्रम होता है। वर्गों को कोर्इ नाम या प्रतीक प्रदान करते हैं। जैसे- योग्यता के आधार पर श्रेण्ठ, औसत, कमजोर या First, द्वितीय, तृतीय तथा फेल आदि। क्रमित मापन भी नामित मापन के भाँति गुणात्मक मापन हैं। इसमें प्रत्येक समूह में सदस्यों की संख्या ज्ञात की जा सकती है किन्तु गशितीय संक्रियाएं सम्भव नहीं है।
      3. अन्तरित मापन- (Interval Measurement) यह मापन गुणों की मात्रा पर आधारित होता है गुणों की मात्रा का इस प्रकार श्रेणीबद्ध Reseller जाता है कि प्रत्येक उप श्रेणी में अन्तर समान रहता है। शैक्षिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक चरों का मापन अन्तरित पैमाने पर ही Reseller जाता है। इन इकाइयों में शून्य का Means परम शून्य या पूर्ण गुण विहीनता नहीं होता हैं अंतरित मापन में प्राप्त अंकों के साथ जोड़ तथा घटाना तो सम्भव है किन्तु गुणा या भाग सम्भव नहीं है।

      जैसे- ग्रेडिंग में श्रेणी A,B,C,D,E

      100-80 80-60 60-40 40-20 20-10
      A B C D E

      1. अनपुातिक मापन- (Ratio Measurement) यह सर्वाधिक परिमाजिर्त मापन है जिसमें अन्तरित मापन के लक्षणों के साथ परम शून्य भी निहित होता है। शून्य का Means अस्तित्व विहीनता होता है। अनुपातिक मापन में प्राप्त मापों की अनुपातिक तुलनीयता है। यह मापन परिणामों का अनुपात के Reseller में व्यक्त करता हैं। अधिकांश भौतिक चरों का मापन अनुपातिक स्तर का होता है। अनुपातिक मापन कल्पित शून्य न हो कर वास्तविक तथा परम शून्य होता है तथा प्राप्त परिणामों से जोड़, घटाना, गुणा, भाग All गशितीय संक्रियाएं सम्भव हैं।

      मूल्याकंन 

      मूल्यांकन का Means है मूल्य का अंकन करना। यह मूल्य निर्धारण की प्रक्रिया है जो मापन की अपेक्षा अधिक व्यापक है। मूल्यांकन गुणों या विशेषताओं की वांछनीयता स्पष्ट करता है। किसी व्यक्ति में उपस्थित गुणों की मात्रा का विश्लेषणात्मक अथवा गुणात्मक description मूल्यांकन प्रस्तुत करता है और यह बताता है कि किसी निश्चित उद्देश्य हेतु वह कितना उपयुक्त या संतोषप्रद है। बेड फील्ड तथा मोरडोक के According- ‘‘मूल्याकं न किसी सामाजिक, सांस्कृतिक अथवा वैज्ञानिक मानदण्ड के सन्दर्भ में किसी घटना को प्रतीक आवंटित करना हैं जिससे उस घटना का महत्व अथवा मूल्य ज्ञात Reseller जा सके।’’ एन.एम. डाडंकेर ने मूल्याकंन को छात्रों के द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों के प्राप्त करने की क्रमबद्ध प्रक्रिया के Reseller में परिभाषित Reseller है। एन.सी.र्इ.आर.टी. ने मूल्यांकन को ऐसी सतत् व व्यवस्थित प्रक्रिया कहा है जो शैक्षिक उद्देश्यों की प्रप्ति की सीमा, अधिगम अनुभवों की प्रभावशीलता का आंकलन करती है। मूल्यांकन Single अत्यन्त ही व्यापक तथा बहुआयामी प्रत्यय है जो पाठ्यवस्तु के ज्ञान के आंकलन के अतिरिक्त विद्यालयी पाठ्यक्रम से सम्बन्धित समस्त उद्देश्यों की Single विशाल तथा व्यापक श्रृंखला है जो बालक के सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास से सम्बन्धित है। मूल्यांकन प्रक्रिया के तीन प्रमुख अंग हैं-

      1. शिक्षण उद्देश्य 
      2. अधिगम क्रियाएं 
      3. व्यवहार परिवर्तन 

        शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए विद्यालय में अधिगम क्रियाएं आयोजित की जाती हैं जिनसे छात्रों के व्यवहार में परिवर्तन होता है तथा इन व्यवहार परिवर्तनों की तुलना शैक्षिक उद्देश्यों से करके मूल्यांकन Reseller जाता हैं। अत: मूल्यांकन Single अत्यन्त व्यापक तथा बहुआयामी प्रत्यय हैं जिसका सम्बन्ध मात्र छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि से न होकर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के विकास से होता है।

        मापन, मूल्यांकन, परीक्षा तथा मूल्यकरण 

        किसी वस्तु में निहित किसी गुण की मात्रा को सूक्ष्मता से ज्ञात करना मापन है। मापन प्राय: Single विमीय व स्थायी होता है और यह मूल्यांकन या मूल्यकरण को आधार प्रदान करता है। मूल्याकंन Single व्यापक प्रत्यय है जो किसी वस्तु में निहित गुणों की मात्रा के आधार पर उसकी वांछनीयता की श्रेणी का निर्धारण करता है जो समय परिस्थिति तथा Need के According परिवर्तित होती रहती है। परीक्षा का Means है परि तथा इक्ष Meansात चारों ओर से देखना। इसमें किसी क्षेत्र विशेष में छात्रों के ज्ञान के स्तर का पता लगाना। परीक्षाएं विषय वस्तु के सन्दर्भ में छात्रों के ज्ञान का स्तर मापती हैं। जबकि मूल्यांकन इसके अतिरिक्त ज्ञान की सार्थकता का निर्धारण करता है और इसका सम्बन्ध छात्रों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व से होता है। परीक्षाएं अल्पकालिक होती हैं जबकि मूल्यांकन Single सतत् प्रक्रिया है। परीक्षा के आधार पर छात्रों को विभिé विषयों में अंक प्रदान करना मापन है जबकि अंकों के आधार पर First, द्वितीय, तश्तीय या सम्मानजनक श्रेणी प्रदान करना मूल्यांकन है। मूल्यकरण तथा मूल्यांकन दोनों ही मूल्य निर्धारण से सम्बन्धित हैं। मूल्यांकन का दृष्टिकोण आन्तरिक होता है जबकि मूल्यकरण बाºय होता है। मूल्यांकन वांछनीयता पर बल देता है जबकि मूल्यकरण उपयोगिता दर्शाता है। दोनों का आधार मापन ही है।

        मापन तथा मूल्यांकन का महत्व 

        शिक्षा Single सोद्देश्य Human निर्माण की प्रक्रिया है। इसके विभिé पक्षों पर सतत् निगरानी आवश्यक होती है। किसी भी स्तर पर Single छोटी सी चूक भयावह परिणाम प्रस्तुत कर सकती है। अत: इससे परोक्ष या अपरोक्ष Reseller से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति-छात्र, अध्यापक, अभिभावक, समाज तथा प्रKing की दृष्टि से मापन तथा मूल्यांकन का महत्व रहता है। यह छात्रों को अपनी प्रगति की जानकारी तो देता ही है साथ ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा तथा आत्मविश्वास जागश्त भी करता है। अध्यापकों को शिक्षण हेतु उपयुक्त प्रविष्टिा के चुनाव में, शिक्षण विधि की सफलता जानने में, उपयुक्त परीक्षा प्रणाली विकसित करने में मापन तथा मूल्यांकन का विशेष महत्व होता है। अभिभावक अपने बालकों हेतु विद्यालय, पाठ्यक्रम, भावी दिशा तय करने में मापन व मूल्यांकन का सहारा लेते हैं। शैक्षिक नीतियों में संशोधन, शैक्षिक वित्त And प्रशासनिक व्यवस्था के निर्धारण में शैक्षिक प्रKing मापन व मूल्यांकन का सहारा लेते हैं। समाज तथा राष्ट्र का तो निर्माण ही शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। अत: कोर्इ भी राष्ट्र अपनी शिक्षा व्यवस्था से किसी भी प्रकार समझौता नहीं कर सकता है। सदैव सजग Reseller से इस पर नियंत्रण रखता है। अत: मापन व मूल्यांकन का महत्व शिक्षा व्यवस्था से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति के लिए है जिसे निम्नवत् बिन्दुवार व्यक्त Reseller जा सकता है-

        1. शैक्षिक नीतियों के निर्धारण में मापन व मूल्यांकन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
        2. शिक्षा के उद्देश्य निर्धारित करने में तथा उद्देश्य प्राप्ति की सीमा ज्ञात करने में यह स्पष्ट योगदान करता है। 
        3. मापन तथा मूल्यांकन शिक्षक की प्रभावशीलता इंगित करता है। 
        4. यह छात्रों को अध्ययन हेतु प्रोत्साहित करता है। 
        5. यह पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, सहायक सामग्री तथा मूल्यांकन विधि में सुधार हेतु आधार स्पष्ट करता है। 
        6. कक्षा शिक्षण को प्रभावशाली तथा जीवन्त बनाने हेतु यह अध्यापकों को निर्देशित करता है। 
        7. यह छात्रों को उनकी रूचियों तथा अभिक्षमताओं की पहचान कराकर शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करता है। 
        8. शिक्षा में चल रहे विभिन्न नवाचारों की उपयोगिता ज्ञात करने में तथा नवीन प्रविधियों की खोज में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

        मापन तथा मूल्यांकन के उद्देश्य 

        शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है तथा इसकी प्रक्रिया अत्यधिक जटिल व विकाSeven्मक है जो देश, काल, परिस्थिति And Need के अनुReseller परिवर्तित होती रहती है। मापन तथा मूल्यांकन इस प्रक्रिया में लिटमस परीक्षण की भाँति कार्य करती हैं। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न है-

        1. छात्रों को अर्जित ज्ञान का स्तर बताना। 
        2. छात्रों के सर्वांगीण विकास में सहायता करना। 
        3. विकास में बाधक तत्वों की पहचान करना। 
        4. छात्रों को वैयक्तिक Needओं के अनुReseller शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराना। 
        5. छात्रों में स्वस्थ प्रतियोगिता की भावना विकसित करना। 
        6. अधिगम को सहज बनाकर शिक्षण को आनन्ददायी बनाना। 
        7. पाठ्यक्रम में परिवर्तन का आधार प्रस्तुत करना। 
        8. शिक्षण विधियों में विकास का आधार तथा नवीन अधिगम सामग्रियों के चयन को प्रोत्साहित करना। 
        9. योग्यता आधारित वर्गीकरण करना तथा Need अनुReseller गुणात्मक शैक्षिक अनुभव हेतु प्रोत्साहित करना। 
        10. छात्रों को उपयुक्त शैक्षिक तथा व्यावसायिक निर्देशन का आधार स्पष्ट करना। 
        11. परीक्षा प्रणाली में सुधार का आधार प्रस्तुत करना तथा राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय शैक्षिक मानकों को निर्धारित करना।

        मापन तथा मूल्यांकन के कार्य  

        शिक्षा प्रक्रिया में मापन तथा मूल्यांकन छात्रों द्वारा अर्जित ज्ञान के स्तर को ज्ञात करने हेतु Reseller जाता है जिससे शिक्षण प्रक्रिया में यथोचित सुध् ाार का आधार प्रस्तुत Reseller जा सके। मापन छात्रों की कमजोरियों तथा कठिनार्इ के क्षेत्रों की पहचान हेतु Reseller जाता है। साथ ही छात्रों की वर्तमान क्षमताओं को ज्ञात कर उनकी भविष्य को कार्य क्षमता के सम्बन्ध में पूर्वानुमान लगाने में भी Reseller जाता है। अत: मापन तथा मूल्यांकन के तीन प्रमुख कार्य हैं- साफल्य निर्धारण (Prognostic Function), निदानात्मक कार्य (Diagnostic Function) तथा पूर्वकथन (Prediction)। इनके अतिरिक्त मापन तुलना करने में, वर्गीकरण तथा चयन करने में तथा अनुसंधान कार्यों में भी प्रयुक्त होता है। फिन्डले (1963) ने मापन के तीन कार्य स्पष्ट किये हैं-

        शैक्षिक कार्य, प्रशासनिक कार्य तथा निर्देशनात्मक कार्य। शैक्षिक कार्य के अन्तर्गत शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक, सजग तथा उत्पादक बनाने हेतु मापन तथा मूल्यांकन द्वारा प्राप्त परिणामों का उपयोग Reseller जाता है। मापन तथा मूल्यांकन छात्रों, अध्यापकों तथा अभिभावकों All हेतु पृष्ठपोषण का कार्य करते हैं। ये All स्वमूल्यांकन, सहयोगी मूल्यांकन तथा बाºय मूल्यांकन के परिणामों का प्रयोग अपनी स्थिति And कार्य प्रणाली को सुधारने हेतु करते हैं।

        प्रशासनिक कार्य के अन्तर्गत चयन, प्रमापीकरण, वित्तीय नियंत्रण, सामान्य प्रशासन, गुणवत्ता निर्धारण, वर्गीकरण आदि सम्मिलित हैं। राष्ट्रीय, क्षेत्रीय तथा सामाजिक स्तर पर शैक्षिक Needओं की पहचान तथा माँग के अनुReseller गुणात्मक शैक्षिक सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित कर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों के निर्धारण में मापन तथा मूल्यांकन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शैक्षिक लागत का निर्धारण तथा समयबद्ध कार्यक्रम के According शैक्षिक उपलब्धि सुनिश्चित करने हेतु शैक्षिक प्रशासन को निर्देशित करना मापन तथा मूल्यांकन का कार्य है। कक्षा कक्ष गतिविक्षिायों के नियमन से लेकर सम्पूर्ण शैक्षिक प्रांगण की गतिविधियों की निगरानी तथा गुणात्मक सुधार बिना मापन व मूल्यांकन सम्भव नहीं हो सकता। निर्देशन कार्य में छात्रों की क्षमता, रूचि, योग्यता तथा अभिक्षमता के पहचान तथा उनके अनुReseller शैक्षिक व व्यावसायिक निर्देशन प्रदान करने में मापन तथा मूल्यांकन का उपयोग होता है। निर्देशन सेवाओं की उपयुक्तता तथा उसमें संशोधन भी मापन तथा मूल्यांकन के बिना सम्भव नहीं है। पाठ्यक्रम तथा शैक्षिक गतिविधयों में परिवर्तन तथा माँग के अनुReseller शैक्षिक अनुभव को मापन द्वारा ही सुनिश्चित Reseller जा सकता है।

        मूल्यांकन प्रक्रिया 

        शिक्षा Single सतत् अन्त: क्रियात्मक प्रक्रिया है जिसका अभिé अंग मूल्यांकन है। मूल्यांकन कार्यक्रम Single प्रक्रिया के Reseller में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया से सम्बन्धित रहता हैं। उद्देश्य निर्धारण के उपरान्त शिक्षण बिन्दुओं का निर्धारण तथा शिक्षण क्रियाओं के आयोजन के उपरान्त छात्रों के व्यवहार परिवर्तन की स्थिति का आकलन कर कमजोरी के बिन्दुओं को पहचान कर यथोचित पृष्ठपोषण आधार तैयार करना मूल्यांकन प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है। कहाँ पहुँचाना था? कैसे पहुँचाना था? किस प्रकार पहुँचाया गया? क्या वास्तव में पहुँचा पाये? क्या कारण हैं कि वहाँ तक नहीं पहुँच पाये? अब कैसे लक्ष्य प्राप्ति की जाय? आदि मूल्यांकन प्रक्रिया के अंग हैं। इन्हें उद्देश्य निर्धारण, अधिगम क्रियाओं का संचालन तथा मूल्यांकन में क्रमबद्ध कर सकते हैं। उद्देश्य निर्धारण मूल्यांकन प्रक्रिया का First चरण है जिसका लक्ष्य यह ज्ञात करना है कि मूल्यांकन किसका करना है? Meansात् शैक्षिक उद्देश्य क्या हैं? दूरगामी तथा तात्कालिक उद्देश्य छात्र की शारीरिक, मानसिक स्थिति, विषय वस्तु की प्रकृति, सांस्कृतिक आधार, तथा शिक्षा के स्तर पर आधारित होते हैं। विशिष्ट उद्देश्य प्रत्यक्ष तथा कार्यपरक होते हैं। बिना सामान्य तथा विशिष्ट उद्देश्यों के निर्धारण के शिक्षण प्रक्रिया की वान्छनीयता निध्र्धारित नहीं की जा सकती है। उद्देश्य निर्धारण के उपरान्त उन शिक्षण बिन्दुओं का निर्धारण Reseller जाता है जिनके द्वारा विशिष्ट शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिण्चित की जाती है। विषय वस्तु के वे संक्षिप्त पूर्ण इकाइयाँ जो Single क्रम में लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होते हैं शिक्षण बिन्दु कहलाते हैं। शिक्षण बिन्दुओं के निर्धारण के उपरान्त वास्तविक शिक्षण अधिगम क्रियाओं का आयोजन होता है जिससे शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिण्चित की जा सके। शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति हुर्इ या नहीं यह निर्धारित करने हेतु छात्रों में व्यवहार परिर्वतन की वस्तु स्थिति जानने का प्रयास होता है जिसमें परीक्षण, समाजमिति, प्रश्नावली, साक्षात्कार, अवलोकन, संचित अभिलेख आदि का प्रयोग Reseller जाता है। इनके प्राप्तांको के आधार पर परिवर्तित व्यवहार की अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन के संदर्भ में वांछनीयता के सापेक्ष व्याख्या की जाती है जिसे मूल्यांकन कहते हैं। यदि परिवर्तित व्यवहार की स्थिति अपेक्षित व्यवहार परिवर्तनों के निकट होती है तो शिक्षण प्रक्रिया सन्तोषप्रद आँकी जाती है। चूँकि शतप्रतिशत छात्रों में शत-प्रतिशत वान्छित परिवर्तन लाना असम्भव होता है अत: व्यवहार परिवर्तनों के सन्दर्भ में न्यूनतम अधिगम स्तर (MLL) निध्र्धारित Reseller जाता है। यदि 80: छात्र 80: व्यवहार परिवर्तन दर्शाते हैं तो इसे मास्टरी लर्निंग की श्रेणी में रखते हैं। मूल्यांकन प्रक्रिया का अन्तिम और महत्वपूर्ण चरण पृष्ठपोषण (Feed Back) है। मूल्यांकन से शिक्षण के अप्राप्त विशिष्ट उद्देश्यों की स्थिति स्पष्ट होने के उपरान्त शिक्षण उद्देश्यों का पुन: निर्धारण Reseller जाता है। शिक्षण बिन्दुओं का चयन कर शिक्षण अधिगम प्रक्रिया का आयोजन Reseller जाता हैं। छात्रों की स्थिति को देखते हुए वैकल्पिक स्ट्रेटजीज अपनायी जाती हैं जिससे छात्रों को निर्धारित उद्देश्यों के समीप पहँुचाया जा सके। व्यवहार परिवर्तन की जानकारी हेतु मूल्यांकन Reseller जाता है। यह क्रिया चक्रिय Reseller में तब तक अपनयी जाती है। जब तक निर्धारित उद्देश्य प्राप्त नहीं कर लिए जाते हैं।

        मापन की त्रुटियाँ 

        चूँकि शैक्षिक मापन Single अप्रत्यक्ष मापन है, अत: इसमें त्रुटियों का होना स्वाभाविक है। मापन की त्रुटियों में वे All त्रुटियाँ सम्मिलित होती हैं जो वास्तविक मापन अंको को किसी भी प्रकार प्रभावित करती हैं। ये मुख्यतया- व्यक्तिगत त्रुटि, चर त्रुटि, स्थिर त्रुटि तथा व्याख्यात्मक त्रुटि होती हैं।

        प्राय: मापन में परीक्षक अपने विवेक से परीक्षाथ्र्ाी द्वारा दिये उत्तर पर अंक प्रदान करते समय व्यक्तिनिष्ठ मापन कर बैठते हैं जिसमें परीक्षक की पसन्द, दृष्टिकोण, मन: स्थिति, थकान, पूर्वाग्रह आदि का प्रभाव अंको पर पड़ता है जिसे व्यक्तिगत त्रुटि कहा जाता है। परीक्षण को वस्तुनिष्ठ बनाकर, केन्द्रीय मूल्यांकन द्वारा, बहुपरीक्षक मूल्यांकन तथा माडल उत्तर प्राReseller प्रदान कर व्यक्तिगत त्रुटि को कम Reseller जा सकता है।

        परीक्षण के प्रशासन के दौरान निर्देशों की अस्पष्टता, परीक्षण स्थिति में अन्तर, संयोग द्वारा उत्तर, थकान, प्रश्नों की अस्पष्टता, प्रोत्साहन, चिन्ता आदि के कारण चर त्रुटियाँ आ जाती हैं। परीक्षण की विश्वसनीयता में वृद्धि करके चर त्रुटियाँ कम की जा सकती हैं।

        मापन में कुछ त्रुटियाँ ऐसी होती हैं जो All परीक्षार्थियों को समान Reseller से प्रभावित करती हैं, स्थिर त्रुटि कहलाती हैं। जब कोर्इ परीक्षण इच्छित योग्यता का ठीक-ठीक मापन न कर किसी अन्य योग्यता का पूर्ण या आंशिक मापन करता है, तब प्राप्त अंक त्रुटिपूर्ण हो जाने हैं। चूंकि ये त्रुटियाँ All परीक्षार्थियों में समान Reseller से होती हैं अत: इन्हें स्थिर त्रुटि कहते हैं। परीक्षण की वैधता को बढ़ाकर स्थिर त्रुटियों को कम Reseller जा सकता है। मानकों या संदर्भ बिन्दुओं के अभाव में या दोषपूर्ण होने पर प्राप्तांको की व्याख्या त्रुटिपूर्ण हो जाती है। जिसके कारण व्याख्यात्मक त्रुटि बढ़ जाती है। व्यापक आधार पर मानक तैयार कर व्याख्यात्मक त्रुटियों को कम Reseller जा सकता है।

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