व्यावसायिक पर्यावरण के प्रकार

व्यावसायिक पर्यावरण मुख्य Reseller से आन्तरिक And बाह्य पर्यावरण के योग से बनता है। आन्तरिक पर्यावरण के घटक है जो Single फर्म के नियंत्रण में होते हैं। इस प्रकार के घटक फर्म के संसाधनों, नीतियों And उद्देश्यों से सम्ब- न्धित होते हैं। लेकिन जब हम व्यवासायिक पर्यावरण के उन घटकों की बात करते हैं जो गतिशील And स्वतंत्र होते हैं या जो नियंत्रण योग्य नहीं है तो उसे हम बाह्य पर्यावरण कहते हैं। व्यवसाय के बाह्य पर्यावरण को पुन: दो भागों में बांटा गया है।

  1. सूक्ष्म (Micro) पर्यावरण 
  2. बृहद (Macro) पर्यावरण। 

व्यवसाय या फर्म के आस-पास दिखने वाले घटकों को हम सूक्ष्म (Macro) पर्यावरण कहते हैं जैसे आपूर्तिकर्ता, ग्राहक, श्रमिक, विपणन मध्यस्थ, प्रतियोगी आदि। व्यवसाय के वृहद (Micro) पर्यावरण में हम उन घटकों का अध्ययन करते हैं जो नियन्त्रण योग्य नहीं है। इन्हें हम 1. आर्थिक पर्यावरण 2. अनार्थिक पर्यावरण के Reseller में जानते हैं।

व्यावसायिक पर्यावरण के संघटकों को चार्ट द्वारा स्पष्ट Reseller जा सकता है:

व्यावसायिक पर्यावरण के प्रकार

 व्यवसाय का आन्तरिक पर्यावरण – 

व्यवसाय के आन्तरिक पर्यावरण में अग्रलिखित घटकों का समावेश Reseller जाता है: (1) व्यवसाय के उद्देश्य And लक्ष्य (2) व्यवसाय से सम्बन्धित विचारधारा And दृष्टिकोण, (3) व्यावसायिक And प्रबंधकीय नीतियाँ, (4) व्यावसायिक संसाधनों की उपलब्धि तथा उपदेयता, (5) उत्पादन व्यवस्था, मशीन And यन्त्र तथा तकनीकें, (6) कार्यस्थल का समग्र पर्यावरण, (7) व्यावसायिक क्षमता And वृद्धि की सम्भावनायें, (8) पूँजी का उपयुक्त नियोजन, (9) श्रम And प्रबंध की कुशलता, (10) व्यावसायिक संगठन की संCreation, (11) व्यावसायिक योजनाएं And व्यूहCreationएं, (12) केन्द्रीयकरण, आन्तरिक  बाह्य सूक्ष्म व्यापक  आर्थिक अनार्थिक विकेन्द्रीयकरण तथा विभागीकरण, (13) श्रम संघ व समूह तथा दबाव, (14) सामाजिक दायित्वों के प्रति दृष्टिकोण, (15) प्रबन्ध सूचना प्रणाली तथा संदेशवाहक व्यवस्था, (16) व्यावसायिक दृष्टि। व्यवसाय के आन्तरिक पर्यावरण पर व्यवसायी आसानी से नियंत्रण रख सकता है। लेकिन इसमें निरंतर बाधायें सामने आती रहती हैं।

व्यावसायिक पर्यावरण के आन्तरिक पर्यावरण की पहचान करना तथा उसे पूर्णReseller से समझना व्यवसायी का अहम दायित्व हो जाता है। सामान्यतया व्यवसाय का उद्देश्य अपने लाभ को अधिकतम करना होता है। इसके बावजूद विभिन्न उद्योगों के उच्च पदस्थ अधिकारी ‘कुछ मूल्यों’ (Some Values) को मान्यता देते हैं जिससे उनकी नीतियाँ, व्यवहार तथा सम्पूर्ण आन्तरिक पर्यावरण प्रभावित होता है। इसी के फलस्वReseller व्यवसाय में श्रम कल्याण कार्यों की ओर ध्यान दिया जाता है।

वर्तमान में किसी कम्पनी के प्रबंध की शक्ति मुख्य Reseller से कम्पनी के अंशधारियों, संचालक मण्डल के सदस्यों तथा उच्च अधिशासी अधिकारियों के पारस्परिक सम्बन्ध पर निर्भर करती है। संचालकों में मतभेद उत्पन्न होने पर कम्पनी में अंशधारियों का विश्वास कम होता है। इससे कम्पनी की आन्तरिक कार्यदशायें कुप्रभावित होती है। इसके विपरीत परिस्थिति में जब आन्तरिक पर्यावरण या कार्यदशाएं उत्तम होती हैं, कम्पनी सफलता की ओर अग्रसर होती है।

व्यवसाय का बाह्य पर्यावरण- 

कम्पनी के बाहर कार्यरत शक्तियाँ, दशायें And संगठन व्यवसाय के बाह्य पर्यावरण में शामिल किये हैं। ये व्यवसाय पर पृथक Reseller से तथा सामूहिक Reseller से प्रभाव डालते हैं। अत: व्यावसायिक निर्णयकर्ताओं को पर्यावरण के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए योजनायें बनानी चाहिए। व्यवसाय के बाह्य पर्यावरण को दो वर्गों में रखा जा सकता है:

  1. व्यवसाय का सूक्ष्म या विशिष्ट पर्यावरण तथा
  2. व्यवसाय का व्यापक या समष्टि पर्यावरण

1. व्यवसाय का सूक्ष्म पर्यावरण-  

व्यवसाय के अन्तर्गत अनेक उद्योग और अनेक फर्में कार्य करती हैं। प्रत्येक का अपना व्यावसायिक प्रबन्ध होता है। Single उद्योग में कार्यरत फर्मों में विशिष्ट अथवा सूक्ष्म पर्यावरणीय घटकों का समान प्रभाव नहीं होता है। Single फर्म के पर्यावरणीय घटक दूसरी फर्म पर प्रभाव नहीं डालते हैं, क्योंकि प्रत्येक फर्म की अपनी-अपनी विशिष्टता होती है। अत: Single फर्म की कुशलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह अपने विशिष्ट पर्यावरण के संघटकों (Components) को किस प्रकार से प्रयोग में लाकर सफलता प्राप्त करती है।

व्यवसाय के सूक्ष्म पर्यावरण के घटक – 

Single कम्पनी की व्यावसायिक क्रियाओं की दृष्टि से सूक्ष्म पर्यावरण अति महत्वपूर्ण है। फिलिप कोटलर के Wordों में, ‘‘Single कम्पनी के आस-पास दिखायी पड़ने वाले घटकों को सूक्ष्म पर्यावरण में शामिल Reseller जाता है।’’  सूक्ष्म पर्यावरण के प्रमुख संघटकों या निर्धारकों में निम्नलिखित को शामिल Reseller जाता है।


(i) कच्चेमेमाल के आपूर्तिकर्ता –वस्तुओं की कम उत्पादन लागत पर कम्पनी की सफलता निर्भर करती है। इसके लिए कच्चे माल की निरन्तर आपूर्ति होते रहना आवश्यक है। व्यवसाय के सुव्यवस्थित संचालन के लिए विश्वसनीय आपूर्ति साधन का होना अति आवश्यक है। यदि आपूर्ति में तनिक भी अनिश्चितता होती है तो कम्पनी को अतिरिक्त कच्चे माल का संग्रहण करना पड़ता है जिस पर अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ती है। अत: आवश्यक है कि Single ही आपूर्तिकर्ता पर निर्भर न रहा जाय। ऐसी व्यवस्था होना आवश्यक है कि Single आपूर्तिकर्ता से कच्चामाल प्राप्त न होने पर Second आपूर्तिकर्ता से इस कमी को पूरा कर लिया जाय।

(ii) ग्राहक –सूक्ष्म पर्यावरण में ग्राहकों की भूिमका महत्वपमूर्ण होती है। Single कम्पनी के कर्इ प्रकार के ग्राहक हो सकते हैं, जैसे-थोक ग्राहक, फुटकर ग्राहक, औद्योगिक ग्राहक, विदेशी ग्राहक, सरकारी निकाय ग्राहक इत्यादि। इन लोगों की वस्तु में रूचि उससे मिलने वाली संतुष्टि पर निर्भर करती है। जब तक वस्तु विशेष ग्राहकों की Need को पूरा करती है, तब तक उसकी माँग की जाती है। यहाँ महत्वपूर्ण है कि किसी Single ग्राहक वर्ग पर निर्भर रहना कम्पनी के लिए काफी जोखिम पूर्ण होता है। अत: सुदृढ़ विपणन प्रणाली से कम्पनी को अधिकतम वर्ग के लोगों को अपना ग्राहक बनाये रखना चाहिए। व्यवसाय की सफलता के लिए ग्राहकों की रूचि को भी ध्यान में रखना आवश्यक है।

(iii) श्रमिक And उनके संघ् – उत्पादन का Single महत्वपूर्ण साधन है, इसके अभाव में उत्पादन होना लगभग असम्भव है। श्रम श्रमिकों या कर्मचारियों द्वारा प्रदान Reseller जाता है जो संगठित हो सकता है या असंगठित। यदि श्रमिक असंगठित है तो कम्पनी श्रमिकों को अति अल्प मजदूरी स्वीकार करने हेतु बाध्य कर सकती है। लेकिन वर्तमान समय में अधिकांश कम्पनियाँ अपने को सुदृढ़ अवस्था में इसलिए नहीं पाती क्योंकि श्रमिक कम्पनी में रोजगार पाते ही श्रम संघ की सदस्यता ग्रहण कर लेते हैं। कुछ श्रम संघ कम्पनी से टकराहट की नीति अपनाते हैं जबकि कुछ इस स्थिति से बचने का प्रयास करते हैं। श्रमिक And प्रबंध के मध्य लगातार संघर्ष दोनों के ही हित में नहीं होता है। व्यवसाय के हित में कम्पनी व श्रमिकों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होना आवश्यक है।

(iv) विपणन मध्यस्थ –Single कम्पनी के सक्ष्ूम पर्यावरण में विपणन मध्यस्थों जैसे-फुटकर विक्रेता अभिकर्ता वितरक इत्यादि का महत्वपूर्ण स्थान है। ये कम्पनी तथा अन्तिम उपभोक्ता के मध्य Single कड़ी का कार्य करते हैं। इनका गलत चयन होने पर कम्पनी को भारी हानि का सामना करना पड़ सकता है। उपयुक्त विपणन व्यवस्था के अभाव में कम्पनी अपने उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुँचाने में अत्यन्त असमर्थ पाती है। वितरण फर्में जिनमें भण्डारगृह तथा परिवहन फर्में शामिल की जाती हैं, वे कम्पनी के माल को स्टॉक करने तथा इनके मूल स्थान से उपभोग-स्थल तक पहुँचाने में सहायता करती हैं।

(v) प्रतियोगी – प्रतियोगियों की भी व्यवसाय संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। प्रतियोगियों के व्यवहार को ध्यान में रखते हुए व्यवसाय को अपनी विभिन्न गतिविधियों का संचालन करना पड़ता है और उनमें परिवर्तन लाने पड़ते हैं। प्रतियोगिता कर्इ प्रकार की हो सकती है:

  1. इच्छाओं की प्रतियोगिता  – इस प्रतियोगिता का मूल उद्देश्य इच्छाओं को प्रभावित करना होता है। किसी फर्म की प्रतियोगिता केवल Single जैसी वस्तु का उत्पादन करने वाली फमोर्ं से ही नहीं होती बल्कि उन All फर्मों से होती है जो उपभोक्ता की सीमित आय को अपनी ओर खींचना चाहती है। उदाहरणार्थ-टेलीविजन कम्पनी की प्रतियोगिता फ्रिज निर्माता, स्कूटर, कम्प्यूटर निर्माता तथा अन्य कम्पनियों जो बचत व विनियोग योजनायें चलाती हैं, से भी होती हैं क्योंकि ये All उपभोक्ता की सीमित आय को अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं।
  2. जन प्रतियोगिता – वैकल्पिक वस्तुआ ें में पारस्परिक प्रतियोगिता किसी विशेष प्रकार की इच्छा को संतुष्ट करने वाली प्रतियोगिता को जनन प्रतियोगिता कहते हैं। उदाहरणार्थ- Single व्यक्ति अपनी बचत को बैंक में या डाकघर में रख सकता है अथवा अंशों का क्रय कर सकता है। इस प्रकार विभिन्न निवेश योजनाओं के बीच होने वाली प्रतियोगिता जनन प्रतियोगिता कहलाती है। 
  3. उत्पादन स्वReseller प्रतियोगिता – इस प्रतियोगिता में उपभोक्ता को उत्पाद के विभिन्न स्वResellerों में से चयन करना पड़ता है, जैसे यदि कोर्इ उपभोक्ता टेलीविजन खरीदना चाहता है तो उसे निर्णय लेना होता है कि बड़ा टी0वी0 लेगा या छोटा, इसके साथ ही यह भी निर्णय करना होता है कि वह रंगीन टेलीविजन लेगा अथवा ब्लैक एण्ड व्हाइट। 
  4. ब्रांड प्रतियोगिता – Single ही उत्पाद का उत्पादन अनेक कम्पनियाँ अलग-अलग ब्रांड नाम से करती है। अत: उपभोक्ता को उनमें से चयन करना पड़ता है कि वह कौन से ब्रांड का क्रय करें। रंगीन टेलीविजन क्रय करने का निर्णय करने के पश्चात उसके सामने प्रश्न उठता है कि वह कौन सा ब्रांड खरीदें, जैसे-फिलिप्स, वीडियोकॉन, बी0पी0एल0 या सैमसंग इत्यादि। 
    1. (vi) जनता – कम्पनी के पर्यावरण में जनता भी शामिल है। फिलिप कोटलर के According ‘‘जनता व्यक्तियों का वह समूह है जो किसी संस्था के हितों को प्राप्त करने की योग्यता पर वास्तविक अथवा सम्भावित प्रभाव रखता है’’ जनता के प्रमुख उदाहरण है- पर्यावरणवेत्ता, उपभोक्ता, संरक्षण समूह, मीडिया से सम्बन्धित लोग And स्थानीय जनता, ऐसी कम्पनियाँ जो अपनी उत्पादन प्रक्रिया से पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं, उनके विरूद्ध अनेक कदम उठाये जाते हैं। अब पर्यावरणवेत्ता सरकार के साथ मिल सामान्य जनता के हित में न्यायालय में प्रदूषण सम्बन्धी मामले ले जाते हैं। मीडिया के लोग भी व्यवसाय को बड़ी सीमा तक प्रभावित कर सकते है। व्यवसाय से सम्बन्धित विभिन्न सूचनाओं को इनके द्वारा प्रकाशित व प्रसारित करवाया जा सकता है। पर्यावरण प्रदूषण के विरूद्ध अनेक बार स्थानीय जनता द्वारा आन्दोलन चलाये जाते हैं, जिसके फलस्वReseller कम्पनी को अपनी व्यवसाय नीति तथा उत्पादन प्रक्रिया में परिवर्तन करना पड़ता है।

      2. व्यवसाय का व्यापक पर्यावरण  

      कोर्इ भी फर्म अथवा व्यवसाय विशिष्ट अथवा सूक्ष्म पर्यावरण को अपनी सूझ-बूझ से नियन्त्रित कर लेता है। जहाँ तक व्यवसाय के व्यापक पर्यावरण अथवा वातावरण का प्रश्न है, यह अकेले Single व्यवसायी के नियन्त्रण की सीमा से बाहर की बात है। व्यापक पर्यावरण Single चुनौती के Reseller में व्यवसायी के सामने आता है, उसे इस चुनौती का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय का व्यापक वातावरण- व्यवसाय के व्यापक पर्यावरण में उन क्रियाकलापों का अध्ययन Reseller जाता है जिन पर सूक्ष्म घटकों की तुलना में निंयत्रण रखना कठिन होता है व्यवसाय के व्यापक पर्यावरण को दो वर्गों में रखा जा सकता है :-

      1. आर्थिक पर्यावरण 
      2. अनार्थिक पर्यावरण

      1. व्यवसाय का आर्थिक पर्यावरण- 

    व्यावसायिक पर्यावरण में आर्थिक पक्ष का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रत्येक व्यवसायिक इकार्इ बाजार में अपने लाभ को अधिकतम करने का प्रयास करती है। Single व्यवसाय का व्यवहार आर्थिक प्रकृति का होता है। व्यवसायिक जीवन चक्र के लगभग All कार्यकलापों में आर्थिक पहलू की प्रधानता होती है। किसी भी देश के आर्थिक पर्यावरण को निर्मित करने में तीन महत्वपूर्ण घटकों की भूमिका होती है:

    1. उस देश की आर्थिक प्रणाली, 
    2. उस देश की आर्थिक नीति, तथा 
    3. उस देश में विद्यमान आर्थिक दशाएँ 

    (i) आर्थिक प्रणालीँ- किसी देश की आर्थिक प्रणालीँ उस देश की आर्थिक विचारधारा, आर्थिक संCreation तथा आर्थिक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आर्थिक प्रणालियाँ मुख्य Reseller से तीन प्रकार की है:-

    1. पूँजीवादी आर्थिक प्रणाली – इस आर्थिक प्रणाली में All साधनों पर निजी क्षेत्र का स्वामित्व होता है। क्या, कैसे, कब तथा किस प्रकार उत्पादन Reseller जाय, ये All निर्णय पूँजीपतियों द्वारा स्वयं लिये जाते है। इसीलिए पूँजीवाद को ‘स्वतंत्र Meansव्यवस्था, ‘अनियोजित Meansव्यवस्था’ या ‘बाजारोन्मुखी’ Meansव्यवस्था भी कहते हैं। इस Meansव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ हैं: आर्थिक स्वतंत्रता, निजी सम्पत्ति, निजी लाभ, स्वतंत्र प्रतिस्पर्धा, व्यवसाय चयन की स्वतंत्रता, सरकार की सीमित भूमिका, उत्पादन के साधनों में पूँजी को सर्वोच्च स्थान, उपभोक्ता सम्प्रभुता का महत्वपूर्ण स्थान इत्यादि। 
    2. समाजवादी आर्थिक प्रणाली  – समाजवादी Meansव्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर सम्पूर्ण समाज का स्वामित्व पाया जाता है।सामान्यत्या आर्थिक निर्णय Single केन्द्रीय सत्ता द्वारा लिये जाते हैं। इस व्यवस्था में संसाधनों का आंवटन, विनियोजन स्वReseller, उत्पादन, उपभोग, वितरण आदि सरकार द्वारा निर्देशित होते हैं। इस व्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार है: Meansव्यवस्था में सरकार की भूमिका में वृद्धि तथा व्यापक हस्तक्षेप, केन्द्रीय नियोजन की प्रधानता, आय वितरण में समानता पर बल, केन्द्रीय इकाइयों की प्रधानता, उपभोक्ता सम्प्रभुता की अवहेलना, स्वतन्त्र प्रतिस्पर्धा का अभाव, व्यवसाय व रोजगार चुनने में स्वतंत्रता का अभाव इत्यादि।
    3. मिश्रित आर्थिक प्रणाली  – मिश्रित Meansव्यवस्था में पूँजीवादी तथा समाजवादी दोनों Meansव्यवस्थाओं का सह-अस्तित्व रहता है। इसमें दोनों क्षेत्र आपसी प्रतियोगिता समाप्त करके Human कल्याण में वृद्धि करने का प्रयास करते हैं। इस Meansव्यवस्था में दोहरे बाजार की स्थिति पायी जाती है Meansात् कुछ कीमतें माँग तथा आपूर्ति के आधार पर बाजारी ताकतों द्वारा तय की जाती हैं तो कुछ वस्तुओं के ऊपर सरकार का नियंत्रण रहता है। मिश्रित Meansव्यवस्था की प्रमुख विशेषतायें ये हैं: निजी And लोक क्षेत्र का सह-अस्तित्व, केन्द्रीय नियोजन, निजी क्षेत्र को पर्याप्त प्रोत्साहन, सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सरकार द्वारा संचालन, आर्थिक क्रियाओं पर सरकार द्वारा नियंत्रण व विनियमन इत्यादि। 

    (ii) आर्थिक नीतियाँ – देश में व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण को निर्धारित करने में सरकार की आर्थिक नतियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आर्थिक नीतियों को मुख्यतया चार वर्गों में विभक्त Reseller जा सकता है: (i) औद्योगिक नीति, (ii) व्यापार नीति, )iii) मौद्रिक नीति, तथा (iv) राजकोषीय नीति।

    1. औद्योगिक नीति – विभिन्न आर्थिक क्रियाओं में, व्यवसाय से प्रत्यक्ष And निकटतम सम्बन्ध रखने वाली क्रिया औद्योगिक क्रिया है। इसलिए व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण का विश्लेषण करते समय सरकार को औद्योगिक नीति का सावधानीपूर्वक परीक्षण करना आवश्यक है। सन् 1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक तथा निजी दोनों क्षेत्रों को औद्योगिक विकास की जिम्मेदारी सौंपी गयी। वर्ष 1991 में नयी औद्योगिक नीति लागू होने के पश्चात विभिन्न नियंत्रणों को समाप्त करने का व्यापक कार्यक्रम प्रारम्भ Reseller गया। Safty सामरिक महत्व और पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील उद्योगों की छोटी-सी सूची में शामिल 6 उद्योगों को छोड़कर अन्य All औद्योगिक परियोजनाओं के लिए लाइसेंस की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है।
    2. व्यापार नीति  – पा्र रम्म्भ में भारत की व्यापार नीति का मुख्य उद्देश्य देश के विकास की Need को ध्यान में रखते हुए आयात को नियमित करना था तथा आयात-प्रतिस्थापन उपायों के माध्यम से घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करना था। परन्तु उदारीकण का दौर शुरू होने के बाद व्यापार के जरिए विश्वव्यापीकरण तथा Meansव्यवस्था की प्रगति के लिए निर्यात को मुख्य हथियार बनाने के महत्व को मान्यता दी गयी। सामान्यत: व्यापार नीति दो प्रकार की होती है। First ‘संरक्षणवादी नीति’ जिसमें सरकार अपने नये And छोटे उद्योगों को विदेशी प्रतियोगिता से बचाने हेतु आयात पर रोक लगा देती है, तथा द्वितीय, ‘स्वतंत्र व्यापार नीति’ के अन्तर्गत निर्यात या आयात पर सरकार का कोर्इ प्रतिबन्ध नहीं होता है। 1 अप्रैल, 2001 से भारत ने विश्व व्यापार संगठन  की शर्तों के मुताबिक स्वतंत्र व्यापार नीति घोषित कर दी है। अब वे वस्तुएँ भी आयात की जा सकेंगी जिन पर First प्रतिबन्ध लगा हुआ था। आम उपभोक्ता And कृषि से सम्बन्धित कतिपय उत्पादों पर सरकार भारी आयात शुल्क लगायेगी, ताकि स्थानीय लघु उद्योगों तथा कृषकों के हितों पर विपरीत प्रभाव न पड़े। इस विवेचन से स्पष्ट है कि देश के व्यवसायिक पर्यावरण पर सरकार की व्यापार नीति का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 
    3. मौद्रिक नीति – मौद्रिक नीति से तात्पर्य, कन्े द्रीय बैंक की उस नियंत्रण नीति से है जिसके द्वारा केन्द्रीय बैंक सामान्य आर्थिक नीति के लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्यों से मुद्रा की पूर्ति पर नियंत्रण करता है। भारत में यह कार्य रिजर्व बैंक द्वारा सम्पादित Reseller जाता है। यह बैंक मौद्रिक And साख नीति का निर्धारण करता है जिससे साख-नियंत्रण के उपाय किये जाते हैं। देश का आर्थिक विकास तथा मूल्यों की स्थिरता इस नीति के उद्देश्य माने जाते हैं। हाल के वर्षों में बाह्य प्रतियोगी पर्यावरण में Indian Customer Meansव्यवस्था का खुलापन, विश्व व्यापार में देश के निर्यात में वृद्धि तथा वाह्य ऋणों को कम करने के लिए घरेलू कीमत स्तर को स्थिर रखने की Need होती है और यह कार्य सामान्यता मौद्रिक नीति से Reseller जाता है। मौद्रिक उपाय ही आर्थिक तथा व्यवसायिक कार्यकलापों को उचित दिशा निर्देश देते हैं, इसीलिए इसे आर्थिक नीति का महत्वपूर्ण अंग माना जाता है। 
    4. राजकोषीय नीति – राजकोषीय नीति का संचालन वित्त मंत्रालय द्वारा Reseller जाता है। इस नीति के अन्तर्गत सरकारी आय-व्यय, सार्वजनिक ऋण (बाजार ऋण, क्षतिपूर्ति And अन्य ऋणपत्र, रिजर्व बैंक, राज्य सरकारों व वाणिज्यिक बैंकों आदि को जारी किये गये ट्रेजरी बिल, विदेशेां तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं से लिए गये ऋण इत्यादि) तथा घाटे की Meansव्यवस्था को शामिल Reseller जाता है। राजकोषीय नीति के प्रमुख उद्देश्यों में पूँजी निर्माण, विनियोग-निर्धारण, राष्ट्रीय लाभांश तथा प्रतिव्यकित आय में वृद्धि, रोजगार के अवसरों में वृद्धि, स्थिरता के साथ विकास तथा आर्थिक समानता लाना, इत्यादि होते हैं। 

    (iii) आर्थिक दशाये – देश में विद्यमान आर्थिक दशायें वहाँ के आर्थिक विकास And स्तर को Single बड़ी सीमा तक प्रभावित करती है। व्यवसाय के लिए आर्थिक दशाओं का महत्व व्यावसायिक सम्भावनाओं तथा अवसरों की पूर्ति से Added है। आर्थिक दशाओं का महत्व व्यावसायिक सम्भावनाओं तथा अवसरों की पूर्ति से Added है। आर्थिक दशाओं को नियोजन And विकास का आधार मानकर उस देश की सरकार अनेक आर्थिक कार्यक्रमों को संचालित करती है। आर्थिक दशाओं में अग्रलिखित घटकों को शामिल Reseller जा सकता है।

    1. देश में प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता,
    2. Humanीय संसाधनों की उपलब्धता, किस्म तथा उपयोग, 
    3. बचतों की स्थिति तथा पूँजी निर्माण की मात्रा,
    4. राष्ट्रीय उत्पादन, राष्ट्रीय आय तथा वितरण व्यवस्था, 
    5. विदेशी पूँजी का आकार, 
    6. देश में उद्योगों की स्थिति, प्रकार तथा उत्पादन की मात्रा, 
    7. देशवासियों के उपभोग का स्तर, (viii) देश में लोक कल्याणकारी कार्य,
    8. विदेशी व्यापार की स्थिति तथा विदेशी मुद्रा अर्जन, 
    9. देश की मौद्रिक नीति, बैंकिग व्यवस्था तथा ब्याज की दरें,
    10. उद्यमशीलता तथा साहस का स्तर, 
    11. शोध And अनुसंधान, 
    12. देश में प्रचलित सामान्य मूल्य स्तर, 
    13. आर्थिक विकास तथा प्रगति की दर।

    2. व्यवसाय का अनार्थिक पर्यावरण- 

    व्यवसाय Single आर्थिक क्रिया है। इसके बावजूद यह अनार्थिक पर्यावरण से प्रभावित होती है। अनार्थिक पर्यावरण को सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनैतिक, कानूनी, तकनीकी, जनसांख्यिक पर्यावरण में वर्गीकृत कर सकते हैं।

    (i) सामाजिक-सास्ंकृितक पयार्वरण- व्यवसायिक फर्में सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण में संचालित की जाती हैं, इसीलिए उनकी नीतियाँ इस घटक को ध्यान में रखकर बनायी जाती है। संस्कृति से तात्पर्य समाज में रहने वालों द्वारा किये गये साम्य आचरण से हैं। इसमें रीति-रिवाजों, मान्यताओं, परम्पराओं, रूचियों, प्राथमिकताओं इत्यादि को सम्मिलित Reseller जा सकता है जिनकी अवहेलना करने पर फर्मों को बड़े दुष्परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त शिक्षा का स्तर, भाषा, आदतें भी व्यवसाय पर व्यापक प्रभाव डालती हैं। व्यवहार में सामान्यतया देखने को मिलता है कि एशिया व अफ्रीका के देशों की तुलना में यूरोपीय देशवासी अपने स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक होते हैं, अत: वहाँ स्वास्थ्य हेतु हानिकर उत्पादों को सफलतापूर्वक बाजार में उतारना सम्भव नहीं होता है। इसी प्रकार बहुत से मुस्लिम देशों में अभी भी पर्दा प्रथा विद्यमान है अत: वहाँ श्रृंगार सामग्री तथा आधुनिक फैशनेबुल कपड़ों का बाजार सीमित है। Indian Customer समाज में धीरे-धीरे उदारता का विकास हो रहा है और नयी-नयी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ देश में प्रवेश कर रही हैं। इससे लोगों की रूचि, फैशन, आदतों में परिवर्तन आया है। पारम्परिक पैंट तथा सलवार कुर्ता के स्थान पर आज Indian Customer लड़के-लड़Resellerँ नीली जीन्स को प्राथमिकता देते हैं। अत: स्पष्ट है कि Single देश में सफल व्यवसाय की रणनीति बिना उस देश के सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण को ध्यान में रखे नहीं बनायी जा सकती है।

    (ii) राजनीतिक पर्यावरण – Single व्यवसाय की सफलता के लिए कुशल तथा स्वच्छ राजनैतिक पर्यावरण होना आवश्यक है। व्यवसाय की विभिन्न संCreationओं के मूल में राजनीतिक निर्णय होते हैं। कुछ राजनीतिक निर्णय व्यवसाय विशेष के लिए लाभप्रद हो सकते हैं, जबकि कुछ के लिए हानिप्रद। राजनीतिक निर्णय को प्रभावित करने में कर्इ घटकों का हाथ होता है, जैसे-विचारधारा, जनसेवा, चिन्तन, राजनैतिक दबाव, अन्तर्राष्ट्रीय दबाव व प्रभाव, राष्ट्रीय Singleता व Safty इत्यादि। व्यवसाय के साथ ही प्रKingीय वर्ग आता है। राजनैतिक निर्णयों की अनुपालना प्रशासनिक स्तर पर की जाती है। निर्णयों का जितनी शीघ्रता से पालन Reseller जायेगा उतना ही जनहित में रहेगा। किन्तु जहाँ तक हमारे देश का प्रश्न है, धीमी गति, भ्रष्टाचार, मनमानी आदि ऐसी समस्याएं हैं जो प्रगति के मार्ग को अवरूद्ध करती हैं। किसी देश के व्यवसायिक विकास हेतु राजनैतिक स्थिरता भी अत्यन्त महत्वपूर्ण घटक है। जितनी अधिक स्थिरता होगी, उतना ही अधिक सरकार में जनता का विश्वास होगा जिस का व्यवसाय तथा उद्योगों पर अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। इससे आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति में सुधार होगा। देश में शान्ति व Safty का वातावरण होना भी आवश्यक है ताकि विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ तथा विदेशी पूँजी आकर्षित हो सके। यदि देश में Safty तथा न्याय की समुचित व्यवस्था है तो लोगों में बचत की प्रवृत्ति होगी जिससे पूँजी निर्माण में सहायता मिलेगी तथा व्यवसाय के विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।

    (iii) वैधनिक पर्यावरण – वैधानिक पर्यावरण का क्षत्रे अत्यन्त व्यापक है। इससे आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन प्रभावित होता है। जहाँ तक व्यवसाय व उद्योग का प्रश्न है, इनके अलग-अलग पक्षों के लिए अलग-अलग अधिनियमों का निर्माण Reseller गया है। इसके साथ ही न्यायालयों तथा न्यायाधिकरणों की पृथक व्यवस्था है जो इस बात का प्रयास करते हैं कि विभिन्न अधिनियमों व कानूनों का पालन हो तथा पीड़ित पक्षकार को न्याय मिल सके। देश में व्यवसाय तथा उद्योगों को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कुछ अधिनियम हैं:-

    1. Indian Customer कारखाना अधिनियम, 1948 
    2. औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 
    3. Indian Customer कम्पनीज, अधिनियम, 1956 
    4. आयात And निर्यात (नियंत्रण) अधिनियम, 1947
    5. विदेशी विनिमय तथा नियमन अधिनियम, 1947 
    6. उद्योग (विकास And नियमन) अधिनियम, 1951 
    7. विदेश मुद्रा प्रबन्धन अधिनियम (फेमा), 1999 
    8. मजदूरी भुगतान अधिनियम, 1936 
    9. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 
    10. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 
    11. बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 
    12. कर्मचारी भविष्य निधि अधिनियम, 1952 
    13. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम, 1923 
    14. प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 
    15. ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972
    16. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 
    17. बिजली नियामक आयोग अधिनियम, 1948 
    18. अन्य-खान अधिनियम, बागान अधिनियम, आवश्यक वस्तु अधिनियम, पेटेन्ट्स अधिनियम इत्यादि

    (iv) तकनीकी पर्यावरण – औद्याेि गक परिवर्तन तथा क्रान्ति मुख्यतया तकनीकी पर्यावरण पर निर्भर करती है। वैज्ञानिक शोधों से नयी-नयी प्रणालियों का अविष्कार होता है तथा प्रौद्योगिकी उन प्रणालियों का उपयोग करके व्यवसाय जगत में आमूल-चूल परिवर्तन ला देती है। राष्ट्र का तकनीकी And प्रौद्योगिकी विकास उत्पादन की प्रणालियों, नयी वस्तुओं, नये कच्चे माल के स्रोत, नये बाजार, नये यन्त्र व उपकरण, नयी सेवाओं इत्यादि को प्रभावित करता है। विकसित देशों में तकनीकी परिवर्तन तेजी से होते हैं क्योंकि वहाँ नयी तकनीक शीघ्रता से उपलब्ध हो जाती है। ये देश नयी तकनीक के उपलब्ध होते ही पुरानी तकनीक को शीघ्रता से त्याग देते हैं। किसी भी व्यवसायिक इकार्इ को अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए नवीनतम तकनीक को अपनाना अनिवार्य है संरक्षण प्राप्त बाजार तकनीकी परिवर्तन धीमी गति से होते हैं और बहुत सी फर्में बिना कोर्इ परिवर्तन के वर्षों अपना उत्पादन करती रहती हैं। इसका Single प्रमुख कारण प्रतियोगिता का अभाव होना भी है। Indian Customer संदर्भ में ऑटामोबाइल्स इंडस्ट्री का उदाहरण दिया जा सकता है। स्वतंत्रता के बाद चार दशकों तक कार क्षेत्र पर ‘फियेट’ का Singleाधिकार रहा जबकि इसकी उत्पाद तकनीकी उत्कृष्ट स्तर की नहीं थी। उपभोक्ताओं के समक्ष कोर्इ दूसरा विकल्प नहीं था, अत: ‘फियेट’ कार का उत्पादन तथा माँग निरन्तर रही। किन्तु श्रेष्ठ व उन्नत तकनीक के साथ स्थापित मारूति उद्योग के पश्चात पूरा परिदृश्य बदल गया। हाल के वर्षों में औद्योगिक क्षेत्र में हुए उदारीकरण के कारण ऑटोमोबाइल तकनीक में तेजी से परिवर्तन आये हैं। अब इस क्षेत्र में तकनीकी उत्कृष्टता के बिना टिक पाना असम्भव है।

    (v) जनसांख्यिकी पर्यावरण – मनुष्य उत्पादक And उपभोक्ता दोनों होता है। इसलिए जनसांख्यिकी कारक जैसे जनसंख्या का आकार तथा विकास दर, जीवन प्रत्याशा, आयु And लिंग संCreation, जनसंख्या का वितरण, रोजगार स्तर, जनसंख्या का ग्रामीण And शहरी वितरण, शैक्षणिक स्तर, धर्म, जाति तथा भाषा इत्यादि All व्यवसाय के लिए संगत हैं। जनसंख्या में वृद्धि विकासशील देशों की Single प्रमुख विशेषता है। इसीलिए इन देशों में बच्चों हेतु वस्तुओं की माँग तथा उत्पादन में वृद्धि दृष्टिगोचर हुर्इ है। भारत जैसे विकासशील देश में ज्यों-ज्यों जनसंख्या में वृद्धि हो रही है, त्यों-त्यों बेबी फूड, बेबी साबुन इत्यादि की माँग में वृद्धि हो रही है। बड़ी जनसंख्या वाले देशों में बड़ी मात्रा में श्रम शक्ति भी उपलब्ध रहती है। भारत में कम मजदूरी पर बड़ी संख्या में श्रमिक उपलब्ध हो जाते हैं। विकसित पश्चिमी देशों में इसके विपरीत दृश्य है। जन्म दर कम होने से वहाँ जनसंख्या भी कम है और इसीलिए विकसित देशों में श्रम अपर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो पाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए गहन पूँजी की तकनीक का उपयोग करते है। पूँजी की कमी के कारण इस तकनीक का प्रयोग अविकसित/विकासशील देश नहीं कर पाते हैं। उत्पादन करने के स्थान पर यदि श्रमिक व कर्मचारी बाहर से बुलाये गये हों तो भाषा, धर्म व जाति की समस्या सामने आती है। इससे सेविवर्गीय प्रबन्ध के सामने विभिन्न समस्याएं आती है। बहुराष्ट्रीय निगमों ने उत्पादन क्षेत्र के लोगों को ही अपने प्लान्ट में नियोजित कर इस समस्या के निदान का प्रयास Reseller है।

    (vi) प्राकृतिक पर्यावरण – वैज्ञानिक तथा तकनीकी विकास के बावजूद, व्यवसायिक क्रियाएं Single बहुत बड़ी सीमा तक प्राकृतिक पर्यावरण से प्रभावित होती है। इसे स्पष्ट करने के लिए अग्रलिखित उदाहरण प्रस्तुत किये जा सकते हैं: (i) उत्पादन कच्चे माल पर निर्भर करता है। चीनी मिल अधिकतर उस स्थान पर स्थापित की जाती है जहाँ उन्हें कच्चा माल (गन्ना) आसानी से उपलब्ध हो सके। (ii) परिवहन And संचार भौगोलिक परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पहाड़ी क्षेत्रों में सड़क परिवहन सुविधाजनक होता है। (iii) दो क्षेत्रों के मध्य व्यापार भौगोलिक स्थितियों पर निर्भर करता है। (iv) खनन And उत्खनन प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है। जहाँ प्राकृतिक संसाधन पाये जाते हैं, वहीं पर खनन And उत्खनन क्रियाएं सम्पादित की जाती हैं। (अ) विभिन्न बाजारों की भौगोलिक स्थितियों में अन्तर होने से बाजार में परिवर्तन आ जाता है। आधुनिक काल में परिस्थितिकी कारक (Circumstantial Factors) Single महत्वपूर्ण कारक बन गया है। प्राकृतिक संसाधनों में तीव्रगति से कमी आना, पर्यावरण प्रदूषण तथा प्राकृतिक असन्तुलन ने All का ध्यान आकृष्ट Reseller है। अत: सरकार की नीति का मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक असन्तुलन को कम करना तथा पुन: पूर्ति (Replenishment) न होने वाले संसाधनों को संरक्षण देना है। इसके फलस्वReseller व्यवसाय के उत्तरदायित्वों में वृद्धि हुर्इ है।

    (vii) नैतिक पर्यावरण – व्यवसाय को समाज के नैि तक पर्यावरण का पालन करना होता है। वर्तमान जटिल व्यवसायिक पर्यावरण में नैतिक सिद्धान्त तथा संहिताएँ प्रबन्धकों के व्यवहार का मार्गदर्शन करती है। अनेक विकसित देशों ने नीतिशास्त्र के सिद्धान्तों का पालन करके अन्तर्राष्ट्रीय सफलताएं प्राप्त की हैं। आज व्यवसाय शहरीकरण, शोरगुल, प्रदूषण, औद्योगिक बस्तियाँ, गन्दगी जैसी समस्याओं का निदान ढूँढ़ रहा है। व्यवसायिक क्रियाओं को नीतिशास्त्र के अनुकूल संचालित करने के लिए नियम-कानून तथा सरकार विशेष बल दे रही है।

    (viii) अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण – अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण ने व्यवसायिक क्रियाओं पर गहरा प्रभाव डाला है। संचार, परिवहन, प्रौद्योगिकी, बहुराष्ट्रीय व्यवसाय, देशों के पारस्परिक सम्बन्धों आदि में आये क्रान्तिकारी परिवर्तनों में से व्यवसायिक क्रियाएं प्रभावित हुर्इ हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं के कार्यकलापों तथा अन्तर्राष्ट्रीय घटनाचक्र से विभिन्न देशों पर Single बड़ी सीमा तक प्रभाव पड़ता है। उपभोग के क्षेत्र में जो आमूल-चूल परिवर्तन देखने को मिलता है, उसके पीछे अन्तर्राष्ट्रीय संचार तथा विज्ञापन माध्यमों का हाथ है।

    आधुनिक युग में पर्यावरण या वातावरण को बचाने का आन्दोलन तथा इसके प्रति जन-चेतना जागृत करने का कार्य अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण के प्रभाव की ही देन है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं विभिन्न देशों को आने वाली सम्भावित बीमारियों तथा खतरों से अवगत कराती हैं। चाहे ये खतरे कैंसर व एड्स जैसी बीमारियों से सम्बन्धित हों या आर्थिक व वित्तीय संकट या जनसंख्या के विस्फोट से।

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