वैयक्तिक समाज कार्य

Indian Customer समाज में आरम्भ में वैयक्तिक आधार पर सहायता करने की परम्परा रही है। यहाँ पर निर्धनों को भिक्षा देने, असहायों की सहायता करने, निराश्रितों की सहायता करने, वृद्धों की देखभाल करने आदि कार्य किये जाते रहे हैं, जिन्हें समाज सेवा का नाम दिया जाता रहा है। ऐतिहासिक दृष्टि से देखा जाये तो हम निश्चित Reseller से यह कह सकते हैं कि भारत में भी अमेरिका, इंग्लैण्ड की भाँति शोषण का सरलतापूर्वक शिकार बनने वाले वर्गों की सहायता का प्रावधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। First इस सहायता को समाज सेवा के Reseller में देखा जाता रहा है, लेकिन धीरे-धीरे इसने अपना स्वReseller बदल लिया और उन्नीसवीं शताब्दी में समाज कार्य के Reseller में सामने आयी। समाज कार्य की छ: प्रणालियाँ है जिनका उपयोग करते हुए लोगों की सहायता की जाती है, इन्हें दो भागों में विभाजित Reseller गया है,

  1. पहली-प्राथमिक प्रणाली And 
  2. दूसरी- सहायक प्रणाली। 

प्राथमिक प्रणाली में वैयक्तिक समाज कार्य, सामूहिक समाज कार्य तथा सामुदायिक संगठन, जबकि सहायक प्रणाली में समाज कल्याण प्रशासन, समाज कार्य शोध तथा सामाजिक क्रिया को रखा गया है।

वैयक्तिक समाज कार्य की परिभाषाये 

वैयक्तिक समाज कार्य- समाज कार्य की प्राथमिक प्रणाली है, जिसके माध्यम से किसी व्यक्ति विशेष की मनोसामाजिक समस्याओं का समाधान करने का प्रयास Reseller जाता है। वैयक्तिक समाज कार्य सेवाथ्री की अन्तदर्ृश्टि को उकसाने वाली Single प्रक्रिया है, जो सेवाथ्री के विभिन्न पहलुओं की जानकारी कराती है। इसके माध्यम से सेवाथ्री के पर्यावरण में परिवर्तन लाने का प्रयास Reseller जाता है जिससे सेवाथ्री की सोंच And क्षमताओं का विकास हो सके और वह अपनी समस्याओं का समाधान स्वयं कर सके तथा परिस्थितियों के साथ उचित समायोजन स्थापित कर सके।

  1. मेरी रिचमन्ड (1915) ने वैयक्तिक समाज कार्य की परिभाषा करते हुए यह कहा है कि यह “विभिन्न व्यक्तियों के लिये उनके साथ मिलकर उनके सहयोग से विभिन्न प्रकार के कार्य करने की Single कला है। इसका उद्देश्य Single ही साथ व्यक्तियों और समाज की उन्नति करना हैं।”
  2. टैफ्ट् (1920) के According वैयक्तिक समाज कार्य “समायोजन रहित व्यक्ति की सामाजिक चिकित्सा है जिसमें इस बात का प्रयास Reseller जाता है कि उसके व्यक्तित्व, व्यवहार, And सामाजिक सम्बन्धों को समझा जाए और उसकी सहायता की जाऐ मत Single उच्चतर सामाजिक And वैयक्तिक समायोजन प्राप्त कर सके।’’
  3. मेरी रिचमण्ड (1922) के According, वैयक्तिक समाज कार्य का Means है “वह प्रक्रियायें जो व्यक्तित्व के विकास के लिए Single Single करके व्यक्तियों और उनके सामाजिक पर्यावरण के बीच समायोजन स्ािापित करती है”।
  4. वाटसन (1922) के According, वैयक्तिक समाज कार्य, “असन्तुलित व्यक्तित्व को इस प्रकार सन्तुलित बनाने और उसका पुनर्निर्माण करने की Single कला है कि व्यक्ति अपने पर्यावरण से समायोजन प्राप्त कर सकें।
  5. क्वीन (1922) ने वैयक्तिक समाज कार्य को “वैयक्तिक सम्बन्धों में समायोजन लाने की Single कला” के Reseller में परिभाषित Reseller।
  6. ली (1923) ने वैयक्तिक समाज कार्य को “Humanीय मनोवृत्तियों को परिवर्तित करने की Single कला के Reseller में परिभाषित Reseller।”
  7. रिनॉल्ड्स (1932) ने वैयक्तिक समाज कार्य की परिभाषा इस प्रकार की, “यह Single ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सेवाथ्री को Single ऐसी समस्या के विषय में परामर्श दिया जाता है जो विशेष प्रकार से उसी की समस्या है और जिसका सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धो की उन कठिनाइयों से है जिनका यह सामना कर रहा है।”
  8. डखीनीज़ (1939) ने वैयक्तिक समाज कार्य की परिभाषा इस प्रकार की : “ऐसी प्रक्रियायें जो व्यक्तियों को सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों द्वारा निश्चित नीतियों के According और वैयक्तिक Needओं को सामने रखकर सेवा प्रदान करने, आर्थिक सहायता देने या वैयक्तिक परामर्श देने से सम्बद्ध है।
  9. स्वीथन बॉवर्स (1949) ने कहा : “वैयक्तिक समाज कार्य Single कला है जिसमें Humanीय सम्बन्धों के विज्ञान के ज्ञान और सम्बन्धों में निपुणता का प्रयोग इस दृष्टि से Reseller जाता है कि व्यक्ति में उसकी योग्यताओं और समुदाय में साधनों को गतिमान Reseller जाए जिससे सेवाथ्री और उसके पर्यावरण के कुछ या समस्त भागों के बीच उच्चतर समायोजन स्थापित हो सके।’’
  10. सैनफोर्ड सोलेन्डर (1957) ने कहा “वैयक्तिक समाज कार्य Single ऐसी प्रणाली है जिसका प्रयोग समाजकार्यकर्ता व्यक्तियों की सहायता करने के लिये करते है मत उन सामाजिक असामन्जस्य की समस्याओं का समाधान कर सकें जिनका सामना वे स्वयं संतोशजनक Reseller से नही कर पा रहें है।”
  11. पर्लमैन (1957) के According, “वैयक्तिक समाज कार्य Single प्रक्रिया है जिसका प्रयोग कुछ Human कल्याण संस्थाएं करती हैं ताकि व्यक्तियों की सहायता की जाए मत सामाजिक कार्यात्मकता की समस्याओं का सामना उच्चतर प्रकार से कर सकें।”
  12. होलिस के According, ‘‘वैयक्तिक समाज कार्य Human व्यक्तित्व, सामाजिक मूल्यों And उद्देश्यों के प्रति कुछ मौलिक मान्यताओं पर आधारित है। वैयक्तिक समाज कार्य की यह मान्यता है कि सामाजिक संCreation का उद्देश्य व्यक्ति को इच्छित जीवन स्तर जीने के योग्य बनाना है। व्यक्ति राज्य के लिए नहीं वरन् राज्य व्यक्ति के कल्याण के लिए विनिर्मित हुआ है।

परिभाषाओं का अध्ययन And अवलोकन करने से यह स्पष्ट होता है कि वैयक्तिक समाज कार्य Single सहायता मूलक कार्य है यह ऐसे व्यक्ति को दी जाती है जो मनोसामाजिक समस्याओं से ग्रसित है तथा जिसके पर्यावरण में परिवर्तन की Need है, जिससे कि उसकी क्षमताओं का विकास हो सके और वह समाज में अच्छा समायोजन स्थापित कर सके।

वैयक्तिक समाज कार्य की विशेषताएँ 

  1. वैयक्तिक समाज कार्य आपस में सहयोगात्मक प्रवृत्ति का कार्य करने की Single कला है। 
  2. सामाजिक सम्बन्धों में अधिक अच्छे समायोजन लाने की कला है। 
  3. वैयक्तिक समाज कार्य कुसमायोजित व्यक्ति का सामाजिक उपचार है। 
  4. असन्तुलित व्यक्ति को सन्तुलित करने की कला है। 
  5. वैयक्तिक समाज कार्य Humanीय मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाने की Single कला है। 
  6. वैयक्तिक समाज कार्य Single प्रक्रिया है जिसके माध्यम से समस्याग्रस्त व्यक्ति को परामर्श दिया जाता है। 
  7. वैयक्तिक समाज कार्य सेवार्थियों के लिए समुदाय में उपलब्ध साधनों को गतिमान करने तथा पर्यावरण से बेहतर समायोजन रखने की कला है। 
  8. वैयक्तिक समाज कार्य Single सहायता मूलक कार्य है। 
  9. वैयक्तिक समाज कार्य सेवाथ्री को उसी Reseller में स्वीकार करते हुए जिसमें वह है, की सहायता करने And उसके लिए उपयुक्त उपचार करने की Single प्रक्रिया है। 
  10. वैयक्तिक समाज कार्य उलझे हुए व्यक्ति को सुलझाने की प्रक्रिया है। 

वैयक्तिक समाज कार्य के उद्देश्य 

  1. सेवाथ्री की मनोसामाजिक समस्याओं का अध्ययन करना तथा समाधान करना; 
  2. सेवाथ्री की मनोवृत्तियों में परिवर्तन लाना। 
  3. सेवाथ्री में समायोजन लाने की क्षमता का विकास करना। 
  4. सेवाथ्री में आत्मनिर्णयात्मक मनोवृत्ति का विकास करना। 
  5. सेवाथ्री को स्वयं सहायता करने के लिए प्रेरित करना। 
  6. नेतृत्व की क्षमता And योग्यता का विकास करना। 
  7. सेवाथ्री का वैयक्तिक अध्ययन करना। 
  8.  सेवाथ्री की समस्याओं का सामाजिक निदान करना तथा उपचार करना। 
  9. विभिन्न समाज विज्ञानों का सहारा लेते हुए सेवाथ्री में चेतना का प्रसार करना। 
  10. पर्यावरण में परिवर्तन लाने And सेवाथ्री की सोंच में परिवर्तन लाने का प्रयास करना।

वैयक्तिक समाज कार्य की प्रकृति 

 वैयक्तिक समाज कार्य Humanतावादी दर्षन पर आधारित है। यह समस्याग्रस्त व्यक्ति की इस प्रकार सहायता करता है जिससे वह स्वयं अपनी सहायता कर सके। यह अपने सेवार्थियों की सहायता करने के लिए वैज्ञानिक ज्ञान And निपुणताओं का प्रयोग करता है। वैयक्तिक समाज कार्य में कार्यकर्ता वैज्ञानिक ज्ञान And निपुणताओं से परिपूर्ण Single व्यावसायिक सदस्य होता है जोकि किसी न किसी संस्था से सम्बद्ध होता है, वह अपनी सेवायें सेवाथ्री को उपलब्ध कराने के लिए संस्था के अन्दर या संस्था के बाहर सेवाथ्री से प्रत्यक्ष सम्पर्क करता है और उसकी समस्याओं को जानने के उपरान्त उपयुक्त उपचार करने का प्रयास करता है।

वैयक्तिक समाज कार्य के अंगभूत 

 पर्लमैन (1957) के द्वारा दी गर्इ परिभाषा यह है कि ‘‘वैयक्तिक समाज कार्य Single प्रक्रिया है जिसका प्रयोग Human कल्याण संस्थाएं करती है ताकि व्यक्तियों की सहायता की जा सके जिससे वे अपनी समस्याओं का सामाजिक कार्यात्मकता से सामना कर सकें।’’परिभाषा में वैयक्तिक समाज कार्य के चार अंगभूतों का History Reseller गया है जो हैं :

  1. व्यक्ति (Person)
  2. समस्या (Problem)
  3. स्थान (Place)
  4. प्रक्रिया (Process)

वैयक्तिक समाज कार्य में व्यक्ति से तात्पर्य ऐसे सेवाथ्री से है जो मनोसामाजिक समस्याओं से ग्रसित है, यह व्यक्ति Single पुरूश, स्त्री, बच्चा अथवा वृद्ध कोर्इ भी हो सकता है। अपनी Needओं की पूर्ति के लिए जो भी व्यक्ति स्पश्टतया सहायता चाहता है, वैयक्तिक समाज कार्य उसको सहायता उपलब्ध कराता है। कोर्इ भी समस्या व्यक्ति के सामाजिक समायोजन को प्रभावित करती है इसका स्वReseller कैसा भी क्यों न हो। समस्या शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक या मनोवैज्ञानिक इत्यादि प्रकृति की हो सकती है। वस्तुत: वैयक्तिक समाज कार्य में समस्या वही आती है जो व्यक्ति की सामाजिक क्रिया को गम्भीर Reseller से प्रभावित करती हैं। उन समस्याओं के कारण व्यक्ति का सामाजिक सन्तुलन बिगड़ जाता है और वह समस्या से ग्रसित हो जाता है। वैयक्तिक समाज कार्य इसी असन्तुलन को समाप्त करने का प्रयास करता है। स्ािान से तात्पर्य ऐसी संस्था से है जिसके तत्वावधान में व्यक्ति की सहायता की जाती है। यह संस्था सरकारी या गैर-सरकारी हो सकती है। सेवाथ्री को विशेष सहायता इन्हीं संस्थाओं के तत्वावधान में अथवा संस्था के बाहर कार्यकर्ता द्वारा उपलब्ध करायी जाती है। वैयक्तिक समाज कार्य में संस्था ऐसी घटक होती है जो सेवार्थियों की सहायता करने में प्रमुख भूमिका का निर्वहन करती है।

वैयक्तिक समाज कार्य में प्रक्रिया से तात्पर्य उस व्यवस्था से है जिसके माध्यम से सेवाथ्री की सहायता की जाती है। इस सहायता प्रक्रिया में First वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता सेवाथ्री से मधुर सम्बन्धों की स्थापना करता है तत्बाद उसके पारिवारिक, व्यक्तिगत History की जानकारी करता है, उसकी समस्याओं को जानने का प्रयास करता है फिर समस्याओं का सामाजिक निदान करने के उपरान्त उपयुक्त उपचार योजना बनाता है तथा मूल्यांकन करता है, यह सब Single प्रक्रिया के माध्यम से होता है।

वैयक्तिक समाज कार्य की मौलिक मान्यतायें 

वैयक्तिक समाज कार्य का मूल Humanतावादी दर्शन And जन कल्याण की भावना पर आधारित है। यह ऐसी सहायता है जो व्यक्ति की आन्तरिक And वाºय समस्याओं का पता लगाकर उसे समायोजन And दृढ़ता प्रदान करती है जिससे कि व्यक्ति स्वयं अपनी समस्याओं का समाधान कर सके। वैयक्तिक समाज कार्य की मान्यताओं के सन्दर्भ में कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा प्रदत्त मान्यतायें है : – हैमिल्टन के According वैयक्तिक समाज कार्य की मान्यतायें :-

  1. व्यक्ति और समाज में पारस्परिक निर्भरता होती है।
  2. सामाजिक शक्तियों क्रियाशील रहते हुए व्यक्ति में व्यवहार तथा दृष्टिकोण में अपेक्षित परिवर्तन लाकर उसे आत्मविकास का अवसर पद्र ान करती है 
  3. वैयक्तिक समाज कार्य से सम्बन्ध रखने वाली अधिकांश समस्यायें अन्तवर्ैयक्तिक होती है। 
  4. अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए सेवाथ्री की भूमिका उत्तरदायित्वपूर्ण होती है।
  5. वैयक्तिक समाज कार्य की प्रक्रिया के दौरान कार्यकर्ता तथा सेवाथ्री के बीच समस्याओं के निराकरण And Needओं की पूर्ति के लिए चेतन तथा नियन्त्रित सम्बन्ध होता है। 

वैयक्तिक समाज कार्य का History 

1. अमेरिका में वैयक्तिक समाज कार्य का History : –

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम समय में अमेरिका में निर्धनता, रोग And बेरोजगारी की समस्याएं सामान्य Reseller से फैली हुर्इ थीं। विशेष Reseller से बड़े-बड़े नगरों में बेरोजगारी की समस्या अधिक थी। उस समय के परोपकारी व्यक्तियों पर यह बात स्पष्ट हो गर्इं कि निर्धन विधान को चलाने वाले अधिकारियों द्वारा जो सहायता दी जा रही है वह न तो पर्याप्त है और न ही Creationत्मक। यह बात भी स्पष्ट हो गर्इ कि परोपकारी संस्थाओं के बीच सहयोग के अभाव के कारण Single Second के कार्यों And कार्यक्षेत्र के विषय में सूचना नही मिल पाती है और परिणामस्वReseller जो कुछ परिश्रम Reseller जाता है और धन व्यय होता है वह अधिकतर व्यर्थ हो जाता है। कार्यों में द्वितीयावृत्ति के कारण कुछ क्षेत्रों में Need से अधिक संस्थाएं कार्य करती है आरै कुछ क्षेत्रों में संस्थाओं का अभाव है। इस परिस्थिति के सुधार करने के लिए 1877 में चैरिटी आर्गनाइजेशन सोसाइटी आन्दोलन की स्थापना हुर्इ थीं।

हम First ही बता चुके हैं कि इस आन्दोलन का आधार टॉमस चामर्स के विचारों पर था। इस आन्दोलन का आधार इस विचार पर था कि सार्वजनिक निर्धन सहायता अपने उद्देश्य में असफल है और सेवाथ्री का इस प्रकार पुनर्वास होना चाहिए कि वह अपना और अपने परिवार का भरण पोषण कर सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इस आन्दोलन ने इस बात की व्यवस्था की कि निर्धनों के घर जाकर उनका निरीक्षण Reseller जाये, उन्हें परामर्श दिया जाये, अनुचित कायोर्ं से रोका जाये और आर्थिक सहायता दी जाये। इस प्रकार निर्धनों के पुनर्वास के पूर्व उनकी दशा का सावधानी से परीक्षण और उनकी समस्या के विषय में स्वयं उनसे और उनके आस-पास के लोगों से विचार विमर्श आवश्यक समझा जाने लगा। निर्धनों And समस्याग्रस्त व्यक्तियों के विषय में इस प्रकार की वैयक्तिक रूचि समाज कार्य की Single नर्इ दिशा की ओर संकेत करती है। इसी नर्इ दिशा से वैयक्तिक समाज कार्य की उत्पत्ति हुर्इ।

चैरिटी आर्गनाइजेशन सोसाइटीज ने सेवार्थियों की वैयक्तिक And आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए सामाजिक हल (सुझाव) का प्रयोग करना चाहा और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण, उपकरण, छोटे-छोटे कारखानों या व्यापार के लिए धन, भोजन, वस्त्र, And परिवारों के लिए कमरों या Single छोटे से घर की सुविधाएं प्रदान कीं। इस अवसर पर Single प्रमुख बात यह हुर्इ कि स्वयं सेवकों और सी. ओ. एस. के प्रतिनिधि वैतनिक थे और वे सी.ओ.एस. के कायोर्ं के लिऐ नगर के धनी व्यक्तियों से धन Singleत्र करते थे। स्वयंसेवक सेवार्थियों से वैयक्तिक सम्पर्क रखते थे और उन्हें आत्म निर्भर बनाने के लिए उपदेश And निर्देश देते थे। सेवार्थियों से यह आशा की जाती थी कि वे उनके सुझावों का पालन करेंगे। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त तक स्वयं सेवकों को यह अनुभव हुआ कि निर्धनता का कारण बहुधा सेवाथ्री के व्यवहार का दोष ही नहीं है बल्कि उसकी सामाजिक परिस्थिति भी है जिसमे वह रहता हैं। बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में सामाजिक दशाओं के सुधार पर बल दिया जाने लगा। सी.ओ.एस. ने इस बात का प्रयास करना आरम्भ Reseller कि ऐसे सामाजिक विधान बनने चाहिये जिसमें निराश्रित, रोग, सामाजिक विघटन का प्रतिबन्ध हो सके।

सामाजिक सुधार के उपायों से निर्धन व्यक्तियों की दशा में उन्नति होने लगी परन्तु फिर भी कुछ परिवार ऐसे थे जिनकी Needएं पूरी नहीं हो पाती थीं और जिन्हें ऐसे सहायकों की Need थी जो उनकी समस्याओं को सहानुभूति के साथ समझकर उन्हें उपदेश दें जिससे वे सामुदायिक साधनों का सदुपयोग कर सकें। यह समझा जाने लगा कि सामाजिक सुधार से ही समस्त वैयक्तिक समस्याएं नहीं सुलझ जातीं। अत: सामाजिक संस्थाएं वैयक्तिक समाज कार्य सेवाएं प्रदान करती रहीं। बीसवी शताब्दी के आरम्भ में समाज कार्य के विद्यालयों की स्थापना हुर्इ और व्यवसायिक प्रशिक्षण की सुविधाएं उपलब्ध हुर्इ। सामाजिक संस्थाओं ने अब प्रशिक्षण प्राप्त कार्यकर्ताओं को नियुक्त करना आरम्भ कर दिया। अब सेवाथ्री की समस्या का अध्ययन, निदान और चिकित्सा की योजना इन प्रशिक्षण प्राप्त कार्यकर्ताओं का ही उत्तरदायित्व हो गया।

इस प्रकार उनका महत्व बढ़ गया क्योंकि अब उनकी जांच का प्रतिवेदन किसी समिति के सम्मुख रखने की अपेक्षा स्वयं उनकी राय के According ही सहायता का कार्य होने लगा। 1917 में पहली बार मेरी रिचमण्ड ने वैयक्तिक समाज कार्य की प्रक्रियाओं को Single निश्चित Reseller में अपनी पुस्तक सोशल डाइग्नोसिस में प्रस्तुत Reseller। परन्तु यह स्पष्ट हो गया कि केवल परामर्श से ही पुनर्वास नहीं हो सकेगा और यह कि इसके लिये आर्थिक साधनों की भी Need होगी। अत: निजी And सार्वजनिक आर्थिक सहायता के कार्यक्रम प्रचलित रहे और अब भी प्रचलित हैं।

2. इंग्लैण्ड में वैयक्तिक समाज कार्य का History 

मध्यकाल में इंग्लैण्ड में गरीबों की सहायता का कार्य चर्च का था। धार्मिक भावना से पे्िर रत होकर लोग असहायों, अंधों, लंगड़ों तथा रोगियों की सहायता करते थे। दान वितरण के कार्य को अधिक महव देने के कारण चर्च तथा राज्य में अAgreeि उत्पन्न हुर्इ उसके फलस्वReseller सोलहवीं शताब्दी में निर्धनों की सहायता का उत्तरदायित्व राज्य पर हो गया।

  1. एलिजाबेथ का धनहीनों के लिए कानून :सन् 1601 में एलिजाबेथ पुअर ला बना जिसके द्वारा पुरखों तथा अभावग्रस्त माता पिताओं की सहायता करना अनिवार्य कर दिया गया। इस कानून ने निर्धनों को तीन श्रेणियों में विभाजित Reseller : समर्थ निर्धन, असमर्थ निर्धन तथा आश्रित बालक। समर्थ निर्धनों को हाउसेज आफ करेक्षस या वर्क हाउसेज में रखने की व्यवस्था थी तथा उन्हें दान देना निशिद्ध था। रोगी, विराश्रित, बुद्ध, अन्धे, बहरे, गूंगे, लंगड़े, पागल और वे मातायें जिनके पास छोटे-छोटे बच्चे थे, असमर्थ निर्धन की श्रेणी में आते थे, उन्हें या तो भिक्षा जिनके पास छोटे-छोटे बच्चे थे, असमर्थ निर्धन की श्रेणी में आते थे, उन्हें या तो भिक्षा गृहों में रखा जाता था या घर पर ही बाºय सहायता सामान्य वस्तुओं जैसे खाना, कपड़ा, इंर्ध् ान के Reseller में दी जाती थी। अनाथ पिताहीन, परित्यक्त बालक या निर्धन माता-पिता के बालक आश्रित बालक कहे जतो थे। ऐसे बच्चे उन नागरिकों को दिये जाते थे जो रखना चाहते थे। लड़कों को उनके मालिक के व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया जाता था। निर्धनों के निरीक्षक निर्धनों के कानून का पालन कराते थे। उनका कार्य निर्धनों की सहायता के लिए प्रार्थना पत्र लेना, उनकी दषाओं की जाँच करके पता लागना कि उनको सहायता दी जाय या नहीं और यदि दी जाय तो उसका Reseller कया हो। 
  2. पुअर ला अमेंडमेंट ऐक्ट : कार्यग्रह निवासियों के दुव्र्यवहार, उचित स्वच्छता का अभाव, अनैतिकता तथा भ्रश्टाचार के कारण सन् 1982 में पुअर ला अमेंडमेंट ऐक्ट बना। जिससे वैतनिक निरीक्षकों के स्थान पर वैतनिक संरक्षक नियुक्त किये गये। आश्रमों की सहायता समाप्त कर दी गयी और कार्य न मिलने की अवधि में इच्छुक व्यक्तियों को सहायता दी जाने की व्यवस्था की गयी। 
  3. थामस चाल्मर्स का योगदान : थामस चाल्मर्स ने अपने अनुभव के आधार पर दान पद्धति को कटु आलोचना की क्योंकि यह व्यवस्था निर्धनों में आचार भ्रश्टाचार को प्रोत्साहन देती थी। स्वावलम्बन की इच्छा को निर्बल बनाती थी। इस संबंध में थामस चाल्मर्स ने सुझाव दिया कि : –
    1. दुर्गति के प्रत्येक मामले की जाँच भली भाँति की जाय, कश्ट के All कारणों का निश्चय Reseller जाय और निर्धनों में आत्म-निर्भरता की All सम्भावनाओं को विकसित Reseller जाय। 
    2. यदि आत्मावलम्बन सम्भव न हो तो सम्बन्धियों, मित्रों और पड़ोसियों को अनाथ, बृद्ध, बीमार और अपंगों की सहायता के लिए प्रोत्सािहत Reseller जाय, 
    3. यदि निर्धन परिवारों की Need इस प्रकार भी पूरी न की जा सके तो कुछ धनाड्य नागरिकों से उनके निर्वाह के लिए सम्बन्ध स्थापित Reseller जाय। 
    4. केवल जब इन प्रस्तावित तरीकों में से Single भी सफल न हो तो तभी जिले का डीकन अपनी धार्मिक परिशद् से सहायता से प्रार्थना करे।
  4. थामस चाल्मर्स को दान-भिक्षा कार्यक्रम का व्यावहारिक अनुभव होने से दान की अवधारणा में परिवत्रन लाने में काफी योगदान रहा। उन्होंने वैयक्तिक आधार पर जाँच करने को प्रोत्साहन दिया तथा दरिद्रता के कारणों को ज्ञात करने का प्रयत्न करने के सिद्धांत को उत्पन्न करती है। उन्होंने व्यक्तिगत असफलताओं को ही निर्धनता का निराश्रितों के भाग्य निर्धारण में वैयक्तिक Reseller से ध्यान देना आवश्यक होता है, सहायता कार्य की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण मानी गयी। चाल्मर्स के अग्रगामी कार्य के 50 वर्ष बाद लंदन चैरिटी आर्गनाइजेषन सोसाइटी ने सहायता का Single कार्यक्रम संगठित Reseller, जो प्रमुख Reseller से थामस चाल्मर्स के विचरों पर ही आधारित था। उन्होंने समाज कार्य में व्यक्तिगत उपागम की First आधारशिला रखी जिसे आज हम “वैयक्तिक कार्य” को संबल देते हैं।
  5. जान हावर्ड तथा एलिजाबेथ फ्रार्इ- सत्रहवीं तथा अठारहवीं “ाताब्दियों में इंग्लैण्ड के कारागारों की व्यवस्था बहुत अस्त-व्यस्त थी। बन्दियों के साथ दुव्र्यवहार Reseller जाता था तथा उनके आवास And भोजन तथा वस्त्र की उचित व्यस्था न थी। जान हावर्ड जेल सुधार के दृढ़ समर्थक थे। उनका विचार था कि अपराधियों को अपराध विशेष के आधार पर दण्ड Reseller जाय तथा अपराध के कारणों की खोज की जाय। बन्दियों को आवश्यक Needएँ प्रदान की जायें। हावर्ड का जेल सुधार सम्बन्धी विचार अपने युक्तिगत जेल अनुभव पर आधारित था। वेडफोर्ड के शेरिफ पद पर कार्य करते हुए उन्होंने अपने दुखदायी अवलोकनों का अभिलेख तैयार Reseller। इन अभिलेखों से उसने यह निष्कर्ष निकाला कि इस सम्बन्ध में और अधिक खोजपूर्ण अन्वेशणों की Need है।
  6. श्रीमती एलिजाबेथ फ्रार्इ- शांति प्रचारक समिति की सदस्य होने के कारण न्यूगेट जेल जिसे धरती पर नरक कहा जाता था, का निरीक्षण कर जेल में ही बच्चों के लिए विद्यालय को प्रारम्भ कराने में सफलता प्राप्त की। बन्दिनियों में से Single को विद्यालय की अध्यापिका नियुक्त Reseller। अनेक सुधारकों ने जेल व्यवस्था में सुधार लाने का अथक प्रयास Reseller परन्तु जब तक 1877 में प्रिजन Single्ट ने दण्ड सम्बन्धी संस्थाओं का प्रशासन Single केन्द्रीय संस्था नेशनल प्रिजन Single्ट ने दण्ड सम्बन्धी संस्थाओं का प्रशासन Single केन्द्रीय संस्था नेशनल प्रिजन कमीशन को सांपै न दिया तब तक कारागारों में सन्तोषजनक सुधार न हुआ। हेनरी सोली तथा चाल्र्स स्टुअर्ट लोच चैरिटी आर्गनाइजेशन सोसाइटी की स्थापना सन् 1869 में सोसाइटी फार आगर्न ाइजेशन रिलीफ एण्ड रिपे्िर संग से बदलकर की गयी। इसके संगठन का मूल श्रेय हेनरी सोली को है जिन्होंने सन् 1868 में वैयक्तिक And सार्वजनिक परोपकारी समितियों की कार्य विधियों के बीच समन्वय करने वाली परिशद के निर्माण की Single योजना प्रस्तुत की। इस दान संगठनसोसाइटी की नींव थामस चाल्मर्स के सिद्धांतों पर की गयी। दान संगठन समितियों का कार्य प्रार्थियों से साक्षात्कार करना, उनके सामाजिक अमामथ्र्य की चिकित्सा की योजना बनाना और जो संस्थाएँ First ही से विद्यमान थ्ीां उनसे धन प्राप्त करना था। इस समितियों के कार्यों में सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य के स्वReseller की झलक मिलती है। समाज कार्य ऐतिहासकों का विचार है कि समाज कार्य की संगठित क्रियाओं की वर्तमान पद्धति की उत्पत्ति चैरिटी आर्गनाइजेशन सोसाइटी की इसी योजना से हुर्इ। 
  7. कैनन सैमुअल अगस्टस बारनेट- बारनेट ने यह पाया कि व्हाइट चनै ेट के निर्धन 8000 पंैिरष निवासियों में अधिकांष बेकार अथवा रोग से पीड़ित थे। आक्सफोर्ड तथा कैम्ब्रिज स्थित कालेजों ने बारनेट से इस बात की जानकारी चाही कि सामाजिक अध्ययनों में रुचि रखने वाले विद्याथ्री निर्धनों की सहायता के लिए कुछ कर सकते हैं। उन्होंने छात्रों को विशेषाधिकार हीन व्यक्तियों के जीवन का अध्ययन करने, उन्हें शिक्षा सम्बन्धी और व्यक्तिगत सहायता प्रदान करने के लिए आमन्त्रित Reseller। बारनेट तथा उनके साथियों ने निर्धनता की समस्या को सुलझाने का दो प्रकार से प्रयास Reseller। अविवेकपूर्ण दान पद्धति बन्द करें ‘पुअर ला’ के अधीन सहायता केवल वर्क हाउस में दी जाय तथा Second इस बात की कोषिष की कि व्यक्तियों को पुन: आत्म स्वावलम्बी बनाया जाय। इसके लिए उनकी Needओं, योग्यताओं And कमियों का सावधानी से अध्ययन Reseller जाय। उनका विचार था कि सहायता का उद्देश्य का उद्देश्य वैयक्तिक कठिनाइयों को थोड़े समय के लिए कम करना नहीं है बल्कि समाज के रोग की चिकित्सा करना है। बारनेट के विचारों ने सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य की जड़ों को और अधिक सुदृढ़ बनाया।
  8. इडवार्ड डेनिसन इडवार्ड- डेनिसन सन् 1887 में माइल दण्ड रोड की फिलपाट स्ट्रीट में रहने गये। यहाँ पर उन्होंने Single स्कूल की स्थापना की तथा रात्रि में वे इस स्कूल में पढ़ाने का कार्य करते थे। दिन के समय रोगियों की देखभाल, स्थनीय निकायों का निरीक्षण तथा गरीबों की Needओं को जनता व सरकार तक पहुँचाने का कार्य करते थे। इससे हम देखते है कि प्रारम्भिक सामाजिक वैयक्तिक कार्यकर्ता नकद या भौतिक सहायता देते हुए भी उनका प्रमुख उददेश्य आर्थिक अथवा भौतिक Needओं से नहीं बल्कि सम्बन्ध स्थापन से था।

भारत में वैयक्तिक समाज कार्य का History 

1. प्राचीन दृष्टिकोण 

भारत में दीन दुखियों, असहायों तथा पीड़ित व्यक्तियों की सहायता करने की परम्परा प्राचीन काल से ही चली आ रही है। मानेचिकित्सा सम्बन्धी कार्य भी प्राचीन युग से ही चले आये हैं। कृष्“ा का अर्जुन को उपदेष देना, वशिष्ठ का राम को कर्तव्य बोध कराना, बुद्ध का अंगुलिमाल के व्यवहार को परिवर्तित करना आदि इसके उदाहरण हैं। Indian Customer संस्कृति तथा धर्म का मुख्य उद्देश्य उन व्यक्तियों की सहायता करना है जो उत्पीड़ित हों तथा दयनीय जीवन व्यतीत करते हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक भी भिखारियों को दान देना, निर्धनों तथा असहायों की सहायता करना, धर्मशालाएँ बनवाना रोगियों की सहायता करना आदि पुण्य के कार्य समझे जाते रहे हैं। History इस बात का साक्षी है कि ऐसे सहायता मूलक कार्य करने के लिए व्यक्तियों में होड़ लगती थी।

2. बौद्ध काल 

बौद्ध काल में समाज की भलार्इ के लिए अनेक प्रकार के डपदेश देने का प्रबन्ध Reseller गया था। बोधिसत्त्व में इस बात का History मिलता है कि दानी व्यक्तियों के कौन-कौन से कार्य थे। बोधिसत्त्व के According सहायताकारी कार्यों को First अपने सगे सम्बन्धियों तथा मित्रों की सहायता उसके पष्चात् असहाय, रोगी, संकटग्रस्त तथा दरिद्र व्यक्तियों तथा मित्रों की सहायता उसके बाद असहाय, रोगी, संकटग्रस्त तथा दरिद्र व्यक्तियों की सहायता करनी चाएिह।

3. मौर्य काल

मौर्य काल में सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का क्षेत्र अधिक व्यापक हो गया था। बच्चों, वृद्धों तथा रोग्रस्त व्यक्तियों की देखभाल का कार्य अत्यन्त धार्मिक समझा जाता था। गाँव के वयोवृद्ध तथा मुखिया माता-पिता विहीन बालकों की देख भाल का कार्य करता था। निर्धन बच्चों के लिए नि:शुल्क शिक्षा तथा भोजन का प्रबन्ध अध्यापक करता था।

4. इस्लाम काल

13वीं शताब्दी से Indian Customer लोक जीवन में इस्लाम का आविर्भाव हुआ। इस्लाम धर्म में प्रारम्भ से ही भिक्षा देने की व्यवस्था तथा प्रथा रही है। यह दान उन व्यक्तियों को दिये जाने की व्यवस्था है जो हज पर जाने का व्यय न वहन कर सके, जिनके पास भोजन न हो, भिखारी हों तथा जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन र्इश्वर हेतु अर्पित कर दिया हो। जकात से प्राप्त धन का उपयोग समाज कल्याण के कार्यों में ही Reseller जाता था। कुतुबुद्दीन, इल्तुतमिष, नासिरुद्दीन आदि सुल्तानों ने इस क्षेत्र में अनेक कार्य किये। फिरोज ने ऐसे व्यक्तियों की सहायता करने के लिए जिनके पास पुत्रियों का विवाह करने के लिए पर्याप्त धन नहीं था Single दीवान-र्इ-खरात संस्था का निर्माण Reseller था। मुगल काल में ऐसी अनेक दुकानें खोल दी जाती थीं जहाँ पर सस्ते मूल्य पर अनाज मिलता थ। उस समय Single ऐसे विभाग का संगठन भी था जो Need वाले व्यक्तियों की सूची रखता था। निरीक्षकों को Appointment भेदभाव को रोकने के लिए की जाती थी। सुल्तान गयासुद्दीन तुगलक ने व्यक्तियों को रोजगार देने तथा अन्य Needओं की पूर्ति करने का वृहद् कार्यक्रम बनाया था। उसका विचार था कि अपराधों का कारण Needओं की संतुश्टि का न होना है।

5. अंग्रेजी शासन काल 

अंग्रेजी शासन काल में अनेक समाज सुधार आन्दोलनों का सूत्रपात हुआ। Kingराम मोहन राय ने बाल विवाह तथा सती प्रथा को रोकने का प्रयत्न Reseller। उनके प्रयत्नों के फलस्वReseller सन् 1829 र्इ0 में प्रतिबन्ध अधिनियम पारित Reseller गया जिसने सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया। सन् 1856 र्इ0 में हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम पास हुआ। गाँधी जी के प्रयत्नों के फलस्वReseller अनेक सुधार सम्भव हो सकें। भारत में सन् 1936 र्इ0 से First सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य को Single ऐच्छिक कार्य समझा जाता था। सन् 1936 र्इ0 में पहली बार समाज कार्य की व्यावसायिक शिक्षा के लिए Single संस्था पर रावजी टाटा ग्रेजुएट स्कूल आफ सोशल वर्क के नाम से स्थापित हुर्इ। इस समय इस बात की Need महसूस हो चुकी थी कि वैयक्तिक सेवा कार्य करने के लिए औपचारिक शिक्षा अनिवार्य है।

6. स्वतंत्रता के बाद 

 बीसवीं शताब्दी में ऐसी समाज सेवी संस्थाओं की वृद्धि हुर्इ। अनाथालयों, शिशु सदनों की तथा अंधों के लिए स्कूलों की स्थापना की गयी। विकलांग बालकों के लिये पहली बार सन् 1947 र्इ0 में Single ऐच्छिक संस्था स्थापित हुर्इ। इस संस्था के कार्यों से प्रभावित होकर भारत के अनेक चिकित्सालयों में विकलांग चिकित्सा विभाग स्थापित हुए। सन् 1952 र्इ0 में इन्डियन कौंसिल फॅार चाइल्ड वेलफेयर की स्थापना हुर्इ जिसका उद्देश्य शिशु कल्याण के क्षेत्र में कार्य करने वाली संस्थाओं के बीच समन्वय स्थापित करना और दूसरी ओर ऐच्छिक संस्थाओं And राज्य के बीच सम्पर्क स्थापित करना है।

समाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग होना “ाीघ्र ही प्रारम्भ हुआ। जब Indian Customer चिकित्सक अमेरिका तथा इग्लैंण्ड गये और उन्होंने रोगियों के साथ सेवा कार्य के महत्त्व को समझा तो Indian Customer चिकित्सालयों ने भी इसके विकास पर जोर दिया। दि हेल्थ सर्वे एण्ड डेवलपमेन्ट कमेटी (भोर कमेटी) ने

सन् 1945 र्इ0 में चिकित्सालयों में प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता की Appointment की सिफारिश की। चिकित्सीय वैयक्तिक सेवा कार्य के विकास में यह महत्वपूर्ण कारक था। दूसरा कारण मानसिक चिकित्सालयों की स्थापना तथा इसमें मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं के महत्त्व को समझ जाता है। सन् 1946 र्इ0 में टाटा इन्स्टीट्यूट ने चिकित्सकीय समाज कार्य की शिक्षा का प्रबन्ध Reseller। सन् 1944 र्इ0 में डा0 जे0एम0 कुमारप्पा इन्स्टीट्यूट के निदेशक, अमेरिका गये तथा चिकित्सकीय समाज कार्य के लिए विजिटिंग प्रोफेसर के लिए समझौता Reseller। इसके परिणामस्वReseller लूर्इस विले, कंट्री की मिस लुर्इस ब्लैन्की नवम्बर सन् 1946 र्इ0 में भारत आयी। कुछ महीनों तक उन्होंने Indian Customer स्वास्थ्य समस्याओं को समझने तथा चिकित्सालयों की समस्याओं से अवगत होने में अपना ध्यान लगाया। कुछ समय बाद Single नये विभाग चिकित्सकीय तथा मनोचिकित्सकीय समाज कार्य का संगठन Reseller। जिस अवधि में मिस ब्लैन्की भारत आयीं थीं उन्हीं दिनों डॉ0 (मिस) जी0आर0 बनर्जी चिकित्सकीय तथा मनोचिकित्सकीय समाज कार्य में प्रषिक्षण हेतु षिकागो गयीं और वापस आकर मिस ब्लैन्की से सन् 1948 र्इ0 में कार्यभार सँभाल लिया।

सन् 1946 र्इ0 में जे0 जे0 हास्पिटल बाम्बे में First चिकित्सकीय समाज कार्यकर्ता की Appointment हुर्इ थी। उस समय से उसमें काफी वृद्धि हो रही है। आज चिकित्सकीय सामाजिक कार्यकर्ता ने केवल सामान्य चिकित्सालयों में बल्कि विशेषीकृत चिकित्सालयों, क्लिनिकों तथा पुनस्र्थापन केन्द्रों में कार्य करने लगे हैं।

यद्यपि यह सत्य है कि सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का क्षेत्र व्यापक हो रहा है परन्तु कार्यकर्ता अपनी भूमिकाओं को पूरा करने में अनेक बाधाएँ अनुभव कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त प्रषिक्षित कार्यकर्ताओं को चयन में कोर्इ विशेष वरीयता नहीं मिलती है। आशा है समय परिवर्तन के साथ-साथ इस दृष्टिकोण में परिवर्तन आयेगा तथा सामाजिक वैयक्तिक सेवा कार्य का सामान्य विकास सम्भव हो सकेगा।

बीसवीं शताब्दी में वैयक्तिक समाज कार्य की नवीन रूचि 

बीसवीं शताब्दी के First दस वर्षों में वैयक्तिक समाज कार्यकर्ताओं ने इस बात पर बल देना आरम्भ Reseller कि जिस व्यक्ति की सहायता करनी है उसके जीवन के विषय मे पर्याप्त सूचना प्राप्त की जाये। इन सूचनाओं के आधार पर व्यक्ति की सामाजिक And वैयक्तिक समस्याओं का सामाजिक निदान बनाया जाये जो उन समस्याओं के कारणों को स्पष्ट करता है। इसी सामाजिक निदान के आधार पर चिकित्सा की योजना बनार्इ जाये। उस समय चिकित्सा की योजनाएं अधिकतर पर्यावरण के बाहरी परिवर्तन, जीवन सम्बन्धी दशाओं और व्यवसाय से सम्बन्धित परिवर्तन And उन्नति से सम्बन्धित होती थीं।

मनोविज्ञान And मनोचिकित्सा विज्ञान में जो विकास हुआ उसका प्रभाव समाज कार्य की प्रणालियों And अभ्यास पर पड़ा। इन विचारों के प्रभाव से समाज कार्य की रूचि आर्थिक And सामाजिक कारकों से हटकर सेवाथ्री की मनोवैज्ञानिक And संवेगात्मक समस्याओं की ओर केन्द्रित हुर्इ और उसकी प्रतिक्रियाओं, सम्पेर्र णाओं And मनोवृत्तियों को अधिक महत्व दिया जाने लगा। विशेष प्रकार से सिगमन्ड फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सम्बन्धी सिद्धांतों ने सामाजिक वैयक्तिक समाज कार्य को प्रभावित Reseller और वैयक्तिक समाज कार्य में मनोविश्लेषण सम्बन्धी सिद्धान्तों का प्रयोग होने लगा। बीसवीं शताब्दी के Second दस वर्षों में समाज कार्यकर्ताओं का प्रयोग सामान्य चिकित्सालयों में होने लगा।

इसके पूर्व केवल मानसिक चिकित्सालयों में ही समाज कार्यकर्ताओं का प्रयोग होता था। सामान्य चिकित्सालयों में जो वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता नियुक्त किये जाते थे वे रोगी के रोग के विषय में जानकारी प्राप्त करके और उसकी सामाजिक And आर्थिक परिस्थिति का पता लगाकर चिकित्सक की निदान और चिकित्सा योजना बनाने में सहायता करते थे। इसके अतिरिक्त वे रोगी के परिवार के साधनों और समुदाय, सामाजिक संस्थाओं, नियोक्ताओं And मित्रों से सम्बन्धों का भी प्रयोग करते थे जिससे रोगी की चिकित्सा में सहायता मिल सके।

जब द्वितीय महाFight हुआ तो अमेरिकन रेडक्रास ने ऐसे परिवारों की सहायता के लिए जिनके पति Fight पर गए हुए थे होम सर्विस डिवीजन्स स्थापित किये। यहां जो परिवार आते थे उन्हें आर्थिक सहायता की उतनी Need नहीं होती थी जितनी मनोवैज्ञानिक और संवेगात्मक सहायता की। अत: सहायता के दृष्टिकोण में परिवर्तन की Need थी। इसी कारण और भी अधिक समाज कार्यकर्ताओं की रूचि पर्यावरण सम्बन्धी कारकों से हटकर अधिकतर मनोवैज्ञानिक कारकों की ओर हुर्इ।

Fight के कारण अनेक प्रकार के मनोविकार सामने आने लगे। विशेषतया ‘‘शेल-शाक’’ से प्रभावित व्यक्ति रोगी बनकर आने लगे। अत: मनोचिकित्Seven्मक समाज कार्यकर्ताओं की अधिक Need का अनुभव Reseller जाने लगा और इस Need की पूर्ति के लिए पहली बार 1918 में स्मिथ कालेज में साइकिट्रिक सोशल वर्कर्स प्रशिक्षिण दिया जाने लगा। इस समय मनोचिकित्सकों का इतना अभाव था कि मनोविकार की चिकित्सा में मनोचिकित्Seven्मक समाज कार्यकर्ताओं को पर्याप्त उत्तरदायित्व दिया जाने लगा और वे सेना के मनोचिकित्सकों से घनिष्ठ सम्पर्क रखते हुए कार्य करने लगे।

फ्रायड के सिद्धान्तों ने यह सिद्ध कर दिया था कि बहुधा मनुष्य का व्यवहार भावनाओं पर आधारित होता है और व्यक्ति को स्वयं अपनी सम्प्रेरणाओं का ज्ञान नहीं होता। इसके अतिरिक्त यह बात भी स्पष्ट हो गर्इ थी कि बाल्यावस्था की घटनाओं का प्रभाव व्यक्तित्व पर महत्वपूर्ण Reseller से पड़ता है और बहुत कुछ व्यक्तित्व का विकास प्रारम्भिक जीवन की घटनाओं And परिस्थितियों के According होता है। इन सब सिद्धान्तों से समाज कार्यकर्ताओं को जो नवीन ज्ञान प्राप्त हुआ उसे उन्होंने अपने अभ्यास में प्रकट करने का प्रयत्न Reseller।

वैयक्तिक समाज कार्यकर्ताओं ने अनुभव Reseller कि सेवाथ्री के व्यक्तित्व सम्पेर्र णाओं And भावनात्मक Needओं को समझने के लिये अधिक विस्तृत सूचना प्राप्त करने की Need है। इस प्रकार Humanीय व्यवहार की मनोवैज्ञानिक व्याख्या उच्चतर प्रकार से की जाने लगी और आर्थिक समस्याओं का भी अधिक विषयात्मक Reseller से मूल्यांकन Reseller जाने लगा। इसके फलस्वReseller वैयक्तिक समाज कार्य में Single प्रजातांत्रिक दृष्टिकोण का प्रवेश हुआ जिसके According सेवाथ्री को Single मनुष्य के Reseller में देखते हुए उसके वैयक्तिक महत्व And मूल्य की प्रतिष्ठा की जाने लगी। वैयक्तिक समाज कार्यकर्ता सेवाथ्री को उसके वास्तविक Reseller में स्वीकृत करने लगे और इस बात का ध्यान रखने लगे कि सेवाथ्री को सूचना देने के लिए बाध्य न Reseller जाये। आरम्भ में वैयक्तिक समाज कार्यकर्ताओं ने कुछ निष्क्रियता का दृष्टिकोण ग्रहण Reseller और अधिकतर सेवाथ्री के वर्णन पर ही विश्वास करते रहे परन्तु 1930 के उपरान्त वैयक्तिक समाज कार्यकर्ताओं ने पूर्ण निष्क्रियता And पूर्ण अधिकार की परस्पर विरोधी सीमाओं के बीच Single संतुलित स्थान ग्रहण Reseller। Meansात् जहाँ Need समझी वहां अधिकार का प्रयोग करने में कोर्इ संकोच न Reseller।

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