वैट क्या है?

मूल्य वर्धित कर प्रणाली में राज्य में माल के प्रत्येक विक्रय पर कर लगता है तथा विक्रेता द्वारा राज्य में क्रेता को चुकाए गए कर का सेट-ऑफ ‘इनपुट टैक्स रिबेट’ के Reseller में प्राप्त होता है। इस प्रणाली में Single बार First विक्रेता को पूर्ण विक्रय मूल्य पर कर लगता है तथा बाद के विक्रयों पर मूल्य संवर्धन पर ही विक्रेता को कर देना पड़ता है। चूंकि माल क्रय करते समय जो कर विक्रेता को दिया गया था, उसको उसके द्वारा माल विक्रय करते समय देय कर में से कम कर लिया जाता है। Second Wordों में, यह कह सकते हैं कि मूल्य वर्धित कर माल के प्रत्येक विक्रय पर लगने वाला कर है जिसमें विक्रय के पूर्व स्तर पर राज्य में चुकाए गए कर, को कम करने की प्रत्येक विक्रय के समय व्यवस्था है। Value added tax is levied at each stage of sale with a credit of tax paid at immediately purchase stage within the state. उदाहरण द्वारा इसे इस प्रकार रखा जा सकता है, मोहन Single पंजीकृत व्यवसायी है, वह किसी माल को सोहन को 1000 रू में विक्रय करता है तथा मूल्य वर्धित कर की दर 10 प्रतिशत है तो वह क्रेता  से 1100 रू वसूल करेगा, 1000 रू माल की कीमत तथा 100 रू मूल्य वर्धित कर, कुल 1000 + 100 = 1000 रू। सोहन भी पंजीकृत व्यवसायी है, वह उस माल को 1300 रू में विक्रय करता है तथा 10 प्रतिशत से 130 रू मूल्य वर्धित कर वसूल करेगा। इस प्रकार सोहन का विक्रय मूल्य 1430 रू होगा। इस विक्रय पर उसे राज्य शासन को 130 रू – 100 (मोहन द्वारा चुकाया गया कर ) = 30 रू जमा करने होंगे। यह प्रक्रिया तब तक चालू रहेगीं जब तक माल का विक्रय पंजीकृत व्यवसायियों की श्रृंखला के बीच चलता रहेगा तथा इस श्रृंखला के First विक्रेता व्यवसायी को अपने विक्रय मूल्य पर बनने वाला समस्त मूल्य वर्धित कर जमा करना होगा तथा श्रृंखला के शेष व्यवसायियों को केवल उनके द्वारा सवंिर्द्धत मूल्य (Value addition) पर ही कर जमा करना होगा।

निर्माता व्यवसायी द्वारा वस्तु के निर्माण के लिए जो भी अन्य माल क्रय Reseller जायेगा, जिसमें कच्चा माल, आनुंषगिक माल, पैकिंग मैटेरियल तथा प्लान्ट And मशीनरी इक्यूपमेंट तथा स्पेयर पार्ट्स शामिल होगा, जिसका निर्माण की प्रक्रिया में उपयोग Reseller जाता है, अथवा व्यापारी द्वारा अनुसूची दो के माल के सम्बन्ध में उपयोग Reseller जाता है, तब ऐसे समस्त माल पर चुकाए गए कर सेट-ऑफ (Input Tax Rebate) के Reseller में निर्माता व्यवसायी तथा व्यापारी को प्राप्त होगी, यदि निर्मित माल का विक्रय अपने राज्य में या अन्तर्राज्यीय व्यवसाय में अथवा भारत के बाहर निर्यात के अनुक्रम में Reseller जाता है।

अनुसूची Single में described कर-मुक्त माल के निर्माण में लगने वाली इनपुट पर भी यदि राज्य में पंजीकृत व्यवसायी से माल क्रय Reseller गया है तब 5 प्रतिशत से अधिक दर से चुकाए गए कर का इनपुट टैक्स रिबेट के सेट-ऑफ मिलगा, इसी प्रकार यदि निर्मित माल का राज्य से बाहर शाखाओं को ट्रांसफर कर दिया जाता है या राज्य से बाहर आढ़त में विक्रय के लिए भेजा जाता है तब भी राज्य के पंजीकृत व्यवसायियों से क्रय माल पर 5 प्रतिशत से अधिक दर से चुकाए गए कर का इनपुट टैक्स रिबेट प्राप्त होगा।

वैट के अन्तर्गत कर-दायित्व

मूल्य वर्धित कर प्रणाली में निर्माता, आयातक तथा अन्य व्यवसायियों के लिए पृथक-पृथक कर दायित्व की सीमा नहीं रखी गई है। समस्त व्यवसायियों के लिए कर दायित्व सीमा सामान्यत: 5 लाख रू रखी गई है। इस टर्नओवर में All प्रकार के विक्रय जैसे कर-मुक्त, कर-चुका, कर-योग्य शामिल होगा। 5 लाख रू में अधिक विक्रय होने पर ही कर-दायित्व उत्पन्न होगा। आयातक, निर्माता या अन्य का कर दायित्व के लिए कोई वर्गीकरण नहीं है। मूल्य वर्धित कर अधिनियम राज्य में लागू होने पर जिन व्यवसायियों का विक्रय निर्धारित की सीमा से अधिक होगा उन पर कर-दायित्व मूल्य वर्धित कर कर अधिनियम लागू होने के बाद से आएगा तथा जिनका विक्रय कम है उनका विक्रय यदि किसी वर्ष में निर्धारित सीमा से अधिक हो जाता है, तब जिस दिनांक को विक्रय सीमा से अधिक होगा उस दिनांक से कर दायित्व उदय होगा।

वैट का औचित्य/प्रचलन के कारण

विक्रय कर की वर्तमान संCreation में वस्तुओं पर दोहरे करारोपण तथा करों की बहुलता के करण समस्याएं उत्पन्न होती है जिसके परिणामस्वReseller कर बोझ स्तर दर स्तर बढ़ता है। उदाहरणस्वReseller वर्तमान प्रचलित कर ढांचे में किसी वस्तु के निर्मित होने से पूर्व उसके इनपुट्स (कच्चे माल) पर करारोपण होता है तथा उसके बाद जब वस्तु निर्मित हो जाती है तथा उसमें इनपुट पर लगा हुआ कर शामिल हो जाता है। जिसके कारण बहुस्तरीय कर बोझ बढ़ता है। मूल्य वर्धित कर में इनपुट टैक्स तथा पूर्ववर्ती क्रयों पर चुकाए गए कर के सम्बन्ध में सेट-ऑफ दिया जाता है। वर्तमान में प्रचलित विक्रय कर के ढांचे में अनेक राज्यों में बहुबिन्दु करों के करारोपण की स्थिति है यथा- टर्नओवर टैक्स, विक्रय पर अधिभार तथा अतिरिक्त अधिभार आदि। मूल्य वर्धित कर के क्रियान्वित होने पर इस प्रकार के अन्य कर समाप्त हो जाएंगे। इनके अतिरिक्त केन्द्रीय विक्रय कर (CST) को भी चरणबद्ध Reseller से समाप्त Reseller जा रहा है जिसके लिए 1-6-2008 से CST की दर 2 प्रतिशत की गई है जिसे G.S.T. के साथ पूरा समाप्त Reseller जाना प्रस्तावित है। इसका परिणाम यह होगा कि समेकित Reseller से पड़ने वाला कर बोझ युक्तिसंगत होगा तथा मूल्यों में भी सामान्यत: गिरावट आएगी।

  1. इनपुट टैक्स तथा पूर्ववर्ती क्रयों पर चुकाए गए कर का सेट-ऑफ दिया जाएगा।
  2. अन्य कर जैसे टर्नओवर टैक्स, अधिभार तथा अतिरिक्त अधिभार आदि समाप्त होंगे।
  3. समग्र Reseller से कर बोझ का विवेकीकरण होगा।
  4. सामान्यत: कीमतें गिरेंगी।
  5. व्यवसायियों के द्वारा स्वत: कर-निर्धारण Reseller जाएगा।
  6. पारदर्शिता में वृद्धि होगी।
  7. राजस्व आय बढ़ेगी।

इस प्रकार मूल्य वर्धित कर जन-सामान्य, व्यवसायियों, उद्योगपतियों तथा शासन को सहायता करेगा। वास्तव में यह अधिक कार्यक्षमता तथा कर प्रणाली में पारदर्शिता तथा समान प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ाया जाने वाला Single कदम है।

वैट की विशेषताएं

माल के क्रय-विक्रय पर कर लगाने के लिए अभी तक जो कर प्रणालियां अपनाई जाती रही हैं, उनमें मूल्य वर्धित कर प्रणाली नवीनतम अवधारणा है। विश्व के अनेकों देशों में इस प्रणाली को अपनाया गया है And भारत में भी इस प्रणाली को All राज्य सरकारों ने लागू कर दिया है। मूल्य सवंिर्द्धत कर जो कि अपने संक्षिप्त नाम मूल्य वर्धित कर के Reseller में जाना जाता है की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार है :

राज्य सरकार द्वारा करारोपण –

मूल्य सवंिर्द्धत कर राज्य सरकारों And केन्द्र शासित प्रदेशों द्वारा राज्य में माल का क्रय-विक्रय पर लगाया जाने वाला कर है। Indian Customer संविधान में माल के क्रय-विक्रय पर कर लगाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया है। मूल्य वर्धित कर के पूर्व राज्य सरकारें विक्रय कर या वाणिज्यिक कर के Reseller में माल के क्रय-विक्रय पर कर लगाती थी। अब इनका स्थान मूल्य विर्द्धत कर ने लिया है। इस कर को लागू करने के लिए विभिन्न राज्य सरकारों ने अपने-अपने अधिनियम And नियम बनाए है।

अप्रत्यक्ष कर –

मूल्य विर्द्धत कर Single प्रकार का अप्रत्यक्ष कर है। यह माल की बिक्री पर विक्रेता द्वारा वसूला जाता है, And शासन को जमा Reseller जाता है। इसका भुगतान विक्रेता व्यापारी द्वारा Reseller जाता है और मूल्य में इसे जोड़कर उपभोक्ता से वसूला जाता है। इसका अंतिम भार उपभोक्ता पर पड़ता है। इसका कराघात व्यापारी पर And करापात उपभोक्ता पर होने के कारण यह अप्रत्यक्ष कर की श्रेणी में आता है।

बहुबिन्दु कर –

मूल्य विर्द्धत कर बहुबिन्दु कर है। किसी वस्तु को उत्पादक से उपभोक्ता तक पहुंचने में जितने स्तरों पर इसका हस्तान्तरण होता है, उतने स्तरों पर यह कर वस्तु के बढ़े हुए मूल्य पर लगता है। इसे हम निम्नलिखित उदाहरण से समझ सकते है –

First स्तर : उत्पादक द्वारा वितरक को विक्रय ;
द्वितीय स्तर : वितरक द्वारा थोक व्यापारी को विक्रय ;
तृतीय स्तर : थोक व्यापारी से उपभोक्ता को विक्रय ;
चतुर्थ स्तर : फुटकर व्यापारी से उपभोक्ता को विक्रय ;

वस्तु की बिक्री से प्रत्येक स्तर यह कर राज्य में अपनाई गई गणना पद्धति के According लगेगा।

बढ़े हुए मूल्य पर कर –

यद्यपि मूल्य विर्धित कर बहुबिन्दु कर है, लेकिन प्रत्येक स्तर पर वस्तु के सम्पूर्ण मूल्य पर यह कर नहीं लगता है, बल्कि विक्रेता द्वारा की गयी वृद्धि (विकय मूल्य -क्रय मूल्य = अन्तर ) पर यह कर लगता है।

मूल्य वर्धित कर की राशि बिल में अलग से प्रदर्शित करना –

मूल्य वर्धित कर, कर प्रणाली में पूर्ववर्ती विक्रेता को चुकाए गए कर की छूट व्यापारी को तभी मिल सकती है, जबकि बिल में ऐसे कर की राशि अलग से प्रदर्शित की गयी हो। अत: आगत कर की छूट की प्राप्ति के्रता व्यापारी को उस वस्तु के पुन: विक्रय पर देय कर में से मिल सके, इसके लिए ऐसे कर की राशि बिल में माल की कीमत में शामिल करने की बजाय पृथक से चार्ज की जाती है।

कम्पोजिशन के सुविधा –

जो छोटे व्यापारी इनपुट कर की छूट प्राप्त नहीं करना चाहते है, उनको यह विकल्प है कि वे Single निर्धारित प्रतिशत से Singleमुश्त कर चुका कर अपने दायित्व को पूरा कर सकते है। इसे कम्पोजिशन कहते है। विभिन्न राज्यों के अधिनियमों के अन्तर्गत सामान्यत: 40 लाख रू तक के वार्षिक विक्रय वाले व्यापारियों को यह विकल्प प्राप्त होता है।

पंजीयन –

विक्रय कर या वाणिज्यिक कर की तरह राज्य के मूल्य वर्धित कर अधिनियम के अन्तर्गत भी व्यापारी के लिए पंजीयन कराना अनिवार्य है। इस सम्बन्ध में यह महत्वपूर्ण है कि जो व्यापारी किसी राज्य में पूर्ववर्ती विधान में पंजीकृत थे, उनको मूल्य वर्धित कर अधिनियम के अन्तर्गत पुन: नया रजिस्ट्रेशन कराने की Need नहीं है। ऐसे व्यापारी मूल्य वर्धित कर के अन्तर्गत स्वत: ही पंजीकृत मान लिए गए है। नये व्यापारी जो अब पंजीकरण कराना चाहते है, उनका पंजीकरण उनके राज्य के मूल्य वर्धित कर अधिनियम के अन्तर्गत होगा।

स्वत: कर-निर्धारण –

मूल्य वर्धित कर प्रणाली की Single प्रमुख विशेषता यह है कि इस प्रणाली में स्वत: कर-निर्धारण की व्यवस्था की गयी है। जो व्यापारी निर्धारित तिथि तक विक्रय descriptionी प्रस्तुत कर देते है And कर जमा कर देते हैं, उन्हें कर-निर्धारण के लिए कर विभाग के पास जाने की Need नहीं है। अपवादस्वReseller जांच के लिए कुछ प्रतिशत व्यापारियों को लेखे या सबूत प्रस्तुत करने के लिए विभाग कह सकता है।

मूल्य वर्धित कर क्रियान्वयन हेतु प्रशासन –

विभिन्न राज्यों में मूल्य वर्धित कर प्रणाली को लागू करने And कर की वसूली के लिए पूर्ववर्ती वाणिज्यिक कर या विक्रय कर के अधिकारियों की सेंवाएं ही ली गयी है। जैसे – किसी राज्य में वाणिज्यिक कर के प्रशासन And वसूली के लिए वाणिज्यिक कर विभाग कार्यरत था, उसे ही मूल्य वर्धित कर के प्रशासन And वसूली का कार्य सौंपा गया है। मूल्य वर्धित कर निर्धारण का कार्य वाणिज्यिक कर अधिकारी ही कर करेंगे।

अन्तर्राज्यीय विक्रय पर कर –

राज्य के अन्दर वस्तुओं के विक्रय पर तो मूल्य वर्धित कर लगेगा, लेकिन अन्तर्राज्यीय विक्रय पर करारोपण की समस्या का अभी समाधान नहीं हो पाया है। इसलिए अन्तर्राज्यीय विक्रय पर अभी भी केन्द्रीय विक्रय कर लागू है। यद्यपि शासन ने केन्द्रीय विक्रय कर को क्रमश: समाप्त करने की घोषणा की है और इसी कड़ी में 1 अप्रैल 2007 से केन्द्रीय विक्रय कर की दर 4 प्रतिशत से घटाकर 3 प्रतिशत कर दी गयी है And 1 जून 2008 से इसे 2 प्रतिशत कर दिया गया है।

इस प्रकार मूल्य वर्धित कर प्रणाली Single प्रकार से विक्रय कर या वाणिज्यिक कर का सुधरा हुआ Reseller है। इससे Single तरफ कर की अपेक्षाकृत कम दरों के कारण उपभोक्ताओं को कुछ राहत मिली है तो दूसरी तरफ राज्य सरकारों को करवंचना में कमी के कारण अधिक राजस्व प्राप्त हो रहा है।

वैट का परम्परागत कर प्रणाली से श्रेष्ठता

परम्परागत बिक्री कर के स्थान पर मूल्य वर्धित कर अपनाने की Need इन कारणों से हो रही थी:

First बिन्दु कर के कारण कम कर प्राप्ति –

विक्रय कर या वाणिज्यिक कर First बिन्दु होने के कारण सरकार को न्यूनतम मूल्य पर कर मिलता है। इससे राजस्व की हानि होती है। उदाहरण के लिए, Single निर्माता Single वस्तु का निर्माण करता है जिसकी लागत 20 रू प्रति वस्तु आती है। निर्माता अपना सम्पूर्ण माल अपने Single डीलर को 22 रू प्रति वस्तु बेचता है तथा 22 रू पर ही विक्रय कर 10 प्रतिशत की दर से 2.20 रू चुकाता है। डीलर तत्बाद उस वस्तु को 25 रू में खुदरा व्यापारी को कर चुका माल के Reseller में विक्रय करता है तथा खुदरा व्यापारी व्यापारी उपभोक्ता को 40 रू पुन: कर चुका माल के Reseller के Reseller में विक्रय करता है। अत: यहां सरकार को मात्र 2.20 कर के Reseller में प्राप्त होते है जबकि वास्तव में 40 रू पर 10 प्रतिशत की दर से 4 रू प्राप्त होने चाहिए थे। यह दोष मूल्य वर्धित कर को अपनाकर ही दूर Reseller जा सकता है।

प्रोत्साहनों And छूटों में राजस्व हानि –

राज्य सरकारें अपने प्रदेश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से औद्योगिक इकाइयों को विभिन्न प्रकार के प्रोत्साहन And छूटें प्रदान करती है। इस कारण से राज्य सरकार के राजस्व में कमी आती है। मूल्य वर्धित कर व्यवस्था में All राज्यों में करमुक्त माल एंव कर की दरों में SingleResellerता होने के कारण किसी राज्य विशेष को ऐसी छूटें या प्रोत्साहन देने का अधिकार नहीं रहेगा।

अन्तिम कर की अव्यावहारिकता –

अन्तिम बिन्दु पर करारोपण के अन्तर्गत वस्तु का मूल्य अधिकतम होता है तथा उस पर Single निश्चित दर से कर वसूल Reseller जा सकता है परन्तु प्रKingीय And व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण अन्तिम बिन्दु कर को व्यवहार में पूर्ण Reseller से नहीं लाया जा सकता है। अत: मूल्य वर्धित कर प्रणाली ही यह कठिनाई दूर कर सकती है।

कर दरों की अधिक संख्या –

First बिन्दु कर को अपनाने पर राज्य सरकार को अनिवार्य Reseller से भिन्न-भिन्न प्रकार की दरों का समावेश करना होता है। इस कारण से गणना सम्बन्धी कार्य जटिल हो जाता है, लेकिन राजस्व में कोई विशेष वृद्धि नहीं होती है। मूल्य वर्धित कर अपनाने से दरों के कम से कम वर्ग अपनाए जा सकते है And All राज्यों में समान Reseller से लागू किए जा सकते है।

टर्नओवर टैक्स के दोषों का निवारण –

टर्नओवर टैक्स की दशा में विक्रय के प्रत्येक बिन्दु पर सम्पूर्ण मूल्य पर कर चुकाना पड़ता है, इससे वस्तु के मूल्य में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। जैसे-Single वस्तु उत्पादक से उपभोक्ता तक पंहुचाने में चार कड़ियों से गुजरती है। ऐसी स्थिति में उसके विक्रय मूल्य पर चार बार कर लगेगा, जो कि वस्तु के अन्तिम मूल्य को अत्यधिक बढ़ा देगा, जबकि वास्तविक Reseller में मूल्य वर्धित कर की दशा में प्रत्येक चरण पर केवल बढे़ हुए मूल्य पर ही कर लगता है।

राजस्व में वृद्धि –

विक्रय के प्रत्येक व्यवहार में बढ़े हुए मूल्य पर सरकार को कर मिलता है, इससे राजस्व में वृद्धि होती है। इस कर से सरकार को निरन्तर आय प्राप्त होती रहती है। मूल्य वर्धित कर अपनाने से करवंचना पर भी रोक लगती है, क्योंकि विक्रय के विभिन्न चरणों में Single साथ कर चोरी सम्भव नहीं होती।

स्वत: नियन्त्रण –

जमा कर घटाव विधि स्वत: नियन्त्रण का कार्य करती है। प्रत्येक व्यापारी अपने सकल कर दायित्व में से पूर्व में चुकाए गए कर की के्रडिट पाने के लिए अपने पूर्व विक्रेता से बीजक प्राप्त करेगा। ऐसी स्थिति में विक्रय के विभिन्न चरणों में बिना बीजक के व्यवहार नहीं होगें। इससे करवंचना पर नियन्त्रण की स्वत: व्यवस्था हो जाएगी।

वैट के गुण

  1. First बिन्दु And अन्तिम बिन्दु कर का मिश्रण – मूल्य वर्धित कर कर प्रणाली में माल के विक्रय के प्रत्येक चरण में विक्रेता द्वारा वस्तु के मूल्य में की गयी वृद्धि पर कर चुकाया जाता है। इसमें First बिन्दु पर भी कर लगता है And बाद वाले चरणों में भी कर लगता है।
  2. करवंचना में कमी – मूल्य विर्द्धत कर में कर की चोरी का भय कम रहता है, क्योंकि प्रत्येक फर्म को केवल मूल्य वृद्धि पर ही कर देना पड़ता है, जो विक्रय कर की तुलना में काफी कम होता है। स्वाभाविक है उत्पादक कर की चोरी करने को प्रोत्साहित नहीं होते।
  3. पूर्ण हिसाब-किताब – मूल्य वर्धित कर व्यवस्था की यह विशेषता है कि इसमें प्रत्येक व्यापारी And निर्माता अपने व्यवसाय का सही And पूरा-पूरा हिसाब रखता है, क्योकि ऐसा करने से ही वह पूर्व में भुगतान किए गए करों पर छूट की मांग कर सकता है।
  4. सरलता – किसी भी व्यापारिक फर्म द्वारा देय कर का हिसाब लगाने के लिए First उसकी कुल बिक्री पर लागू दर से कर लगाया जाता है। इस कर में से फर्म या संस्था द्वारा मध्यवर्ती सामान के क्रय पर And मशीनों आदि के क्रय पर First दिए गए कर घटा दिए जाते है। सैद्धान्तिक Reseller में, मूल्य वर्धित कर को इस ढंग से बनाया गया है, कि फुटकर स्तर And सेवाओं सहित Meansव्यवस्था के All क्षेत्रों पर इसे लागू Reseller जा सके।
  5. निर्यात प्रोत्साहन – मूल्य विर्द्धत कर को उत्पादन लागत से सरलता से पृथक Reseller जा सकता है तथा कर भार को पृथक करके निर्यात व्यापार को प्रोत्साहित Reseller जा सकता है। यदि हम अन्य करों से तुलना करें, तो पातें है कि मूल्य विर्द्धत कर निर्यात व्यापार बढ़ाने में अधिक सहायक है।
  6. मूल्य नियन्त्रण में सहायक – विक्रय कर के फलस्वReseller मूल्य में अधिक वृद्धि होती है, किन्तु मूल्य विर्द्धत कर का भार, वितरण की All क्रियाओं में समान होने से मूल्य में अधिक वृद्धि नहीं होती।
  7. व्यावहारिक – अन्य करों की तुलना में मूल्य विर्द्धत कर अधिक व्यावहारिक है। यही कारण है कि यूरोप के अधिकतर देशों ने इसे अपनाया है And भारत के All राज्य भी इसे अपना रहे है।
  8. उत्पादन क्षमता में वृद्धि – मूल्य विर्द्धत कर लाभ के आधार पर न लगाया जाकर उत्पादन की मात्रा के According लगाया जाता है। लाभ हो या हानि फर्म को कर देना ही पड़ता है, अत: प्रत्येक फर्म यह प्रयास करती है कि न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन करे।

वैट के दोष

  1. व्यावहारिक कठिनाइयां – मूल्य विर्द्धत कर को लागू करने के लिए Single सक्षम And कार्यकुशल प्रशासन तन्त्र की Need होती है जो उत्पादन And वितरण की विभिन्न कड़ियों में होने वाली मूल्य वृद्धि का सही लेखा-जोखा रख सके, परन्तु इस प्रकार के कुशल कर्मचारी न होने से इसे लागू करने में प्रारम्भिक कठिनाई हो सकती है।
  2. करदाताओं का सहयोग आवश्यक – यह कर प्रणाली उसी समय लागू की जा सकती है जब सरकार को करदाताओं का पूरा सहयोग मिल सके। इसके लिए फर्मो को उत्पादन व मूल्य की सही गणना करना जरूरी है। फर्मो को इसका हिसाब भी रखना पड़ता है, कि उत्पादन में जिन अन्य फर्मो से सामग्री क्रय की गई है, उन्होने कितने कर का भुगतान Reseller है।
  3. गणना सम्बन्धी कठिनाइयां – इस कर की गणना करना सरल नहीं है, क्योंकि इसमें काफी जटिलता रहती है। पूर्ववर्ती लागत या पूर्व में चुकाया गया कर, ज्ञात करने के लिए काफी रिकार्ड रखने पड़ते है।
  4. मूल्य वर्धित कर की विभिन्न दरें – कुछ प्रदेशों में अघोषित माल पर 13 प्रतिशत की दर से And घोषित माल पर 5 प्रतिशत की दर से मूल्य विर्द्धत कर लगता है जो कि काफी उंची है। जिन वस्तुओ पर वाणिज्यिक कर की दर कम थी उन पर भी मूल्य वर्धित कर 13 प्रतिशत से लगता है जो कि न्यायसंगत नहीं है।
  5. मूल्य वृद्धि – मूल्य वर्धित कर के कारण वस्तुओं के मूल्य घटने के बजाय बढ़ रहे है, क्योंकि विक्रय के प्रत्येक चरण में कर लगने के कारण उपभोक्ता पर अन्तिम भार काफी बढ़ गया है। व्यापारी First कर सहित मूल्य पर अपना माल बेचते थे। अब उसी मूल्य पर माल बेच रहे हैं And उपभोक्ता से मूल्य वर्धित कर अलग से वसूल कर रहे है।
  6. प्रKingीय जटिलता – मूल्य वर्धित कर के कारण वाणिज्यिक कर विभाग को प्रKingीय जटिलता And तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। अधिकारियों And कर्मचारियों को मूल्य वर्धित कर की गणना प्रक्रिया And इनपुट रिबेट देने की पद्धति में व्यावहारिक कठिनाइयां आ रही है। इसका परिणाम, व्यापारियों को भुगतना पड़ रहा है। उन्हें अधिकारियों की मनमानी का शिकार होना पड़ रहा है।
  7. कर चोरी पर अंकुश की धारणा गलत – यह गलतफहमी है, कि मूल्य वर्धित कर लगने के कारण कर चोरी रूक जाएगी। मूल्य वर्धित कर प्रणाली में कर चोरी की सम्भावना विक्रय कर या वाणिज्यिक कर की तुलना में अधिक है। यदि First चरण में ही माल बिना बिल के बिकता है, तो अन्तिम चरण तक वह बिना बिल बिकता जाएगा और सरकार को किसी भी स्तर पर कोई राजस्व नहीं मिलेगा।

इस प्रकार यह कहना अतिशयोक्ति पूर्ण होगा कि मूल्य वर्धित कर प्रणाली लागू करने के बाद सरकार And व्यापारियों की All समस्याओं का समाधान हो गया है।

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