रेग्युलेटिंग Single्ट (1773 ई.)

र्इस्ट इंडिया कंपनी द्वारा दीवानी की प्राप्ति और कुछ क्षेत्रों पर अधिकार का इंग्लैण्ड पर गहरा असर पड़ा। वहाँ की जनता ने कंपनी के मामलों में संसदीय हस्तक्षेप के लिए आंदोलन शुरू Reseller। कंपनी द्वारा Indian Customer Kingओं से Fight, कुछ विशेष व्यक्तियों द्वारा स्वार्थ सिद्धि के लिए राजनीतिक शक्ति का पय्रागे , कंपनी के कर्मचारियों द्वारा अपार धनराशि हासिल करना, कंपनी के एजेटों द्वारा Indian Customerों के साथ दुव्र्यहार और अनुत्तरदायी शासन व्यवस्था इस आंदोलन के लिए विशेष Reseller से जबावदेह थे। ब्रिटिश लोक सभा ने मामलों पर रिपोर्ट देने के लिए 1772 र्इ. में Single चयन समिति की Appointment की। उस समय कंपनी के प्रशासन और व्यापार की जाँच-पड़ताल के लिए Single गुप्त समिति की भी बहाली की गर्इ। इन समितियों की रिपोर्ट के आधार पर 19 जून, 1773 को ब्रिटिश संसद ने र्इस्ट इंडिया कंपनी रेगुलेटिंग Single्ट पास Reseller। इसने भी शासन व्यवस्था के दोषों को दूर नहीं Reseller। फिर भी इस दिशा में यह Single महत्वपूर्ण कदम था।

रेगुलेटिंग Single्ट के मुख्य उपबंध

1. मद्रास और बंबर्इ को बंगाल के अधीन Reseller जाना-

1773 र्इ. के पूर्व बंगाल और मद्रास की प्रेसीडेन्सियाँ Single Second से स्वतंत्र थी। इस अधिनियम के द्वारा बंबर्इ और मद्रास प्रेसिडेन्सियों को बंगाल के अधीन कर दिया गया। बंगाल के गवर्नर को तीन प्रेसिडेन्सियों का शशनिरीक्षण, निर्देशन और नियंत्रणशश का अधिकार प्रदान Reseller। बंगाल सरकार को अधीनस्थ प्रेसिडेन्सियों के अध्यक्षों और परिषदों की Need पड़ने पर पदच्युत करने का अधिकार दिया गया। बंबर्इ और मद्रास की पे्रसिडेन्सियाँ साधारणत: बंगाल सरकार या डाइरेक्टों की अनुमति से भी शांति या Fight की घोषणा कर सकती थी।

2. गवर्नर जनरल की परिषद की स्थापना- 

गवर्नर जनरल की सहायता के लिए Single परिषद की व्यवस्था की गर्इ थी। इसमें चार सदस्य होते थे। उनका कायर्काल पाँच वर्षों का था। उन्हें डाइरेक्टरों के अनुरोध पर सम्राट् द्वारा हटाया जा सकता था। गवर्नर-जनरल की परिषद् Single सामूहिक कार्यपालिका थी। इसका निर्णय बहुमत द्वारा होता था। वह पार्षदों के बहुमत निर्णय की उपेक्षा नहीं कर सकता था। अत: पाषर्द संगठित होकर गवर्नर जनरल की इच्छा के खिलाफ निर्णय ले सकते थे।

3. डाइरेक्टर- 

गवर्नर जनरल और उसकी परिषद को डाइरेक्टरों की आज्ञा का पालन करना पड़ता था। उनका यह कर्त्तव्य था कि कंपनी के हित से संबंधित मामलों की सूचना डाइरेक्टरों को देते रहें। इसका उद्देश्य Indian Customer अधिकारियों को ब्रिटिश Kingों के अधीन रखना था। इस प्रकार र्इस्ट इंडिया के मामलों में, जो Single राजनीतिक संस्था बन गर्इ थी, संसद को हस्तक्षेप करने का अधिकार दिया गया।

4. कानून बनाने का अधिकार- 

सपरिषद गवर्नर जनरल को कंपनी के अधीन क्षेत्रों में कुशल प्रशासन के लिए नियम, आदेश तथा विनियम बनाने का अधिकार दिया गया। यह भारत सरकार को कानून बनाने के अधिकार की शुरूआत थी। सपरिषद गवर्नर जनरल द्वारा निर्मित All विनियमां े की स्वीकृति सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आवश्यक थीं और इसके लिए हर विनियम का न्यायालय में रजिस्ट्रेशन करना पड़ता था। इस प्रकार भारत में कार्यपालिका को न्यायालय के अधीन रखा गया।

6. सर्वोच्च न्यायालय- 

बंगाल के फोर्ट विलियम में सम्राट् को Single सुप्रीम कोर्ट ऑफ जुडिकेचर का अधिकार प्रदान Reseller गया। यह कंपनी के अधीन क्षेत्रों का सर्वोच्च न्यायालय था। इसमें Single मुख्य न्यायाधीश तथा तीन अन्य न्यायाधीश होते थे। उनकी Appointment सम्राट् द्वारा होती थी। न्यायालय को विस्तृत अधिकार प्रदान किये गये थे। इसे दीवानी, फौजदारी, न्यायिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में अधिकार प्रदान किये गये थे। इसका क्षेत्राधिकार बंगाल, बिहार और उड़ीसा में निवास करने वाले ब्रिटिश पज्राजनों तथा कंपनी और सम्राट् के कर्मचारियों पर फैला हुआ था। इसके फौजदारी क्षेत्राधिकार से गवर्नर जनरल तथा उसकी परिषद के सदस्य बाहर थे। सर्वोच्च न्यायालय अभिलेख न्यायालय भी था।

7. उच्च अधिकारियों पर प्रतिबंध- 

कंपनी के भ्रष्ट शासन में सुधार लाने के उद्दशेय से कर्इ उपबंध जोड़े गये। गवर्नर-जनरल, परिषद के सदस्य और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष Reseller से भेटं , दान या इनाम लेने से मना कर दिया गया। उन्हें निजी व्यापार करने से रोक दिया गया। सम्राट् या कंपनी के अधीन लोकसेवकों या सैनिकों को भी किसी प्रकार भेंट, दान या इनाम लेने से मना कर दिया गया। अपराधियों को कड़ा आर्थिक दण्ड देने की व्यवस्था की गर्इ। राजस्व या न्याय के प्रशासन से संबंधित किसी भी अधिकारी को व्यापार व व्यवसाय में भाग लेने से मना कर दिया गया।

    रेगुलेटिंग Single्ट के दोष

    1. गवर्नर जनरल की संवैधानिक स्थिति- 

रेगुलेटिंग Single्ट द्वारा Single गवर्नर जनरल तथा चार सदस्यों वाली Single परिषद का प्रावधान Reseller गया था। सपरिषद गवर्नर जनरल का निर्णय बहुमत द्वारा होता था। तीन पार्षदों के बहुमत के समक्ष गर्वनर जनरल कुछ नहीं करता था। उसे निषाधिकार की शक्ति नहीं दी गर्इं। ऐसा देखा गया कि गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बराबर पार्षदों के बहुमत के समक्ष झुकना पड़ता था। वह स्वचेछा से कोर्इ भी निर्णय नहीं ले सकता था। कुछ पार्षद Indian Customer समस्याओं से आमतौर से Singleदम अनभिज्ञ थे। कंपनी तथा उसके अधिकारियों के विरूद्ध इतना संकीर्ण विचार रखते थे कि हर बात में बिना सोच-समझे गवर्नर का विरोध करते थे।

2. नीति की Singleता का अभाव- 

रेगुलेटिंग Single्ट के पूर्व All प्रेसिडेन्सियों को अलग-अलग नीति निधार्र ण का अधिकार था। उनकी नीतियों को समन्वित तथा Singleीकृत करने के लिए सर्वोपरि अधिकार नहीं था। अधिनियम की इस त्रुटि को दूर करने के लिए अन्य प्रेसिडेन्सियों को बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया लेकिन कर्इ अपवादों का भी प्रावधान Reseller जिनके आधार पर अधीनस्थ प्रेसिडेन्सियाँ बंगाल सरकार की आशाओं की अवहेलना कर सकती हैं।

3. सपरिषद् गवर्नर जनरल और सर्वोच्च न्यायालय का संबंध अस्पष्ट- 

सपरिषद् गवर्नर जनरल और सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार स्पष्ट नहीं थे जिसके फलस्वReseller दोनों संस्थाओं में निरंतर पदै ा हो गया। Single और गवर्नर जनरल ने मुगल सम्राट से शक्तियाँ प्राप्त की थीं जिसे ब्रिटिश संसद परिभाषित कर सीमित करती थी। दूसरी ओर सपरिषद गवर्नर जनरल द्वारा बनायी गयी विधियों को सर्वोच्च न्यायालय को रद्द करने का अधिकार प्रदान Reseller गया था। क्षेत्राधिकार के इस विरोधाभास के चलते बंगाल में अराजकता की स्थिति पैदा हो गयी थी।

4. विधि की अस्पष्टता-

सर्वोच्च न्यायालय के संबध में यह स्पष्ट नहीं था कि न्यायिक प्रशासन में वह किस विधि का उपयोग करेगी। ब्रिटिश विधि को जानने वाले अंग्रेज जज भारत की विधियों, रीति-रिवाजों तथा परंपराओं से परिचत नहीं थे। अत: Indian Customerों के न्यायिक मामालें में वे ब्रिटिश विधियों तथा प्रक्रियाओं का उपयागे करते थे। फलत: Indian Customerों को वांिछत न्याय नहीं मिलता था।

5. कंपनी के गृह सरकार के संविधान में त्रुटिपूर्ण परिवर्तन- 

अधिनियम द्वारा यह नियम बना दिया गया कि 1800 पौंड से कम के शये र होल्डर, संचालकों के चुनाव में मतदान नहीं कर सकते। इससे 1246 छोटे शेयर होल्डरों को मतदान अधिकार छीन गया।

6. कंपनी पर संसद का अपर्याप्त नियंत्रण- 

सपरिषद गवर्नर जनरल द्वारा संचालक मण्डल को प्रेषित All पत्रों को दो सप्ताह के अंदर मंत्रालय के समक्ष रखा जाना चाहिए था। लेकिन इन पत्रों की पूरी छानबीन करने के लिए कोर्इ व्यवस्था नहीं की गयी थी। अत: कंपनी पर संसद का नियंत्रण अपर्याप्त और प्रभावहीन ही रहा।

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