राष्ट्रीय आय की अवधारणा

राष्ट्रीय आय की सही जानकारी तब तक सम्भव नहीं हो सकती जब तक कि राष्ट्रीय आय से सम्बिन्ध्त कुछ महत्वपूर्ण अवधारणाओं क समुचित अध्ययन कर लिया जाय। राष्ट्रीय आय के विशेषज्ञों ने Meansव्यवस्था की समस्त आय के विषय में छ: मुख्य अवधारणायें (Concepts) प्रस्तुत की हैं ये हैं

  1. सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Gross National Product i.e. GNP)
  2. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (Net National Product, i.e., NNP)
  3. राष्ट्रीय आय अथवा साधन लागत पर राष्ट्रीय आय (National Income, i.e., NI)
  4. वैयक्तिक आय (Personal Income i.e., PI) ;
  5. खर्च योग्य वैयक्तिक आय (Disposable Persoanl Income, i.e., DPI)
  6. सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product, i.e., GDP)
  7. शुद्ध घरेलू उत्पाद (Net Domestic Product NNP)

    1. सकल राष्ट्रीय उत्पाद 

    यह राष्ट्रीय लेखे की Single बुनियादी अवधारणा है। किसी Meansव्यवस्था में जो भी अन्तिम वस्तुएं (Final products) And सेवाएं Single वर्ष की अवधि में उत्पादित की जाती हैं उन All के बाजार मूल्य के जोड़ को सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) की गणना करते समय निम्न तीन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिये :.

    First GNP में अन्तिम वस्तुओं (final goods) एवे सेवाओं मौद्रिक मूल्य को ही जोड़ा जाता है। मवर्ती वस्तुओं (Intermediate goods) And सेवाओं को नहीं। अन्तिम वस्तुओं वे होती है जो उपभोक्ताओं द्वारा अन्तिम Reseller से उपभोग कर ली जाती है और इनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन में नहीं Reseller जाता। उसके विपरीत मध्यवर्ती वस्तुये उन्हें कहते हैं जो अन्य वस्तुओं के निर्माण में सहायक होती हैं अथवा निका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन में Reseller जता है। उदाहराणार्थ, कपड़ा अन्तिम उत्पाद है जबकि कपास, मध्यवर्ती, इसी प्रकार डबल रोटी अन्तिम वस्तु है जबकि आटा मध्यवर्ती।

    दूसरा, सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अनुमान लगाते समय यह भी जरूरी है कि उसमें केवल चालू वर्ष की उपज के मूल्यों को ही जोड़ा जाये Meansात जो वस्तु जिस वर्ष पैदा की जाये, उसी वर्ष के ळछच् में सम्मिलित की जाये। इसका कारण यह है कि Singleल राष्ट्रीय उत्पाद किसी Meansव्यवस्था की उत्पादकता का संसूचक होता है। उदाहरणार्थ यदि कोर्इ वस्तु 2009 में उत्पादित की गयी है और वह 2010 तक नहीं बिक पाती, तो वह वस्तु 2009 के GNP में ही सम्मिलित की जायेगी, 2010 के GNP में नहीं।

    Third, कुल राष्ट्रीय उत्पाद में से पूंजीगत वस्तुओं की घिसावट मूल्य ह्रास तथा प्रतिस्थापन लागत आदि को घटाया नहीं जाता है। वास्तव में यही कारण है कि इसे कुल या सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं।

    2. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद 

    यद्यपि सकल राष्ट्रीय आय की धारणा उत्पादन And रोजगार सम्बन्धी दशाओं की अधिक विश्वसनीय सूचकांक है लेकिन इसके बावजूद समष्टि विश्लेषण (Macro Analysis) की यह धारणा दोषपूर्ण है। जिस प्रकार Single फर्म का कुल लाभ (Gross profit) उसकी वास्तविक स्थिति का चित्रा प्रस्तुत नहीं करता बल्कि फर्म की सही सही स्थिति जानने के लिये शुद्ध लाभ (Net profit) की जानकारी करना आवश्यक होता है। ठीक उसी प्रकार GNP किसी देश की आर्थिक उपलब्धियों का धुधला चित्रा ही प्रस्तुत करता है ओर देश की सही Meansों में आार्थिक प्रगति का मूल्यांकन करने के लिये उसके विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) की जानकारी करना आवश्यक माना जाता है। यदि कुल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में से मूल्य ह्रास आदि को घटा दिया जाय तो जो शेष बचता है उसे विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहते हैं। इसको बाजार कीमतों पर राष्ट्रीय (National Income at Market Prices) भी कहा जाता है।

    NNP = GN — Depreciation

    नि:सन्देह, छछच् की अवधारणा देश में हुर्इ उत्पादन वृद्धि का Single सपाट प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करती है जिस कारण इसका ‘विकास के Meansशास्त्रा’ (growth economics) में Single विशेष महत्व है। किन्त्ु इस धारणा में Single गम्भीर दोष यह पाया जाता है कि पूंजीगत घिसावट Meansात मूल्य àाास का सही सही अनुमान लगाना Single कठिन कार्य है जिस कारण NNP अनुमान कभी कभी भ्रमात्यक सिद्ध होते हैं।

    3. राष्ट्रीय आय अथवा साधन लागत पर राष्ट्रीय आय 

    उत्पति के All साधनों जैसे भमि श्रम, पूंजी संगठन व साहसी को प्राप्त होने वाले आय सम्बन्धी भुगतानों के योग को राष्ट्रीय आय कहते हैं। Second Wordों में विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) में से उत्पादको द्वारा चुकाये गये अप्रत्यक्ष कों को घटा देने और सरकार द्वारा फर्मों को प्रदत्त आार्थिक सहायता (Subsdies) को जोड़कर देने पर, राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है। सूत्रा के Reseller में

    BNI = NNP — Indirect Taxes + Governemtn Subsidies

    NI = GNP — Depreciation—Indirect Taxes + Subisidies

    प्रश्न उठता है कि राष्ट्रीय आय की मात्रा, विशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) के बराबर क्यों नहीं होती ? Meansात NNP में से अप्रत्यक्ष कर क्यों घटा दिये जाते हैं तथा इसमें आार्थिक सहायता क्यों जोड़ दी जाती है ? इसका उत्तर अत्यन्त सरल है। चूंकि NNP की कुल मात्रा उत्पत्ति के साधकों मके बीच वितरण के लिये उपलब्ध नहीं होती क्योंकि व्यवसायिक फर्मो को अपने उत्पादन पर सरकार को अप्रत्यक्ष कर (जैसे excise duty) भी चुकाने पड़ते हैं, इसलिये इन करों की मात्रा को NNP से घटा दिया जाता है। इसी प्रकार फर्मों को सरकार द्वारा कभी कभी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है जिसे NNP में जोड़ दिया जाता है। ध्यान में रखने वाली बात यह है कि राष्ट्रीय अउभव की धारणा का सीधा सम्बन्ध आाख्रथक न्याय की धारणा से होता है।

    4. वैयक्तिक आय 

    Single वर्ष की अवधि में Single देश के All व्यक्ति या परिवार जितनी आय वास्तव में प्राप्त करते हैं, उन All आयों के जोड़ों को वैयक्तिक आय (Personal Income) कहा जाता है। स्मरण रहे, Single देश में, किसी वर्ष विशेष के दौरान उत्पादन साधनों द्वारा अर्जित की गयी सम्ण्पूर्ण राष्ट्रीय आय उन्हें उपलब्ध नहीं होती अपितु उसमें से कुछ कटौतियां की जाती हैं। ये कटौतियां इस प्रकार हैं, नियमों द्वारा अपनी आय पर दिया गया कर भुगतान, कम्पनियों द्वारा न बांटा गया लाभांश वेतन भोगियों अथवा कर्मचारियों द्वारा प्रावीडेण्ट फण्ड इत्यादि की आंशदान। इसके विपरीत, कुछ ऐसी रकमें भी उत्पादन साधनों को प्राप्त होती हैं जिनके लिये उन्होंने कोर्इ उत्पादन कार्य नहीं Reseller होता। ऐसी रकमों को हस्तांतरित भुगतान कहा जाता है। वृद्धावस्था पेन्शन, बेरोजगारी भत्ता, आदि हस्तांतरित भुगतान के कुछ उदाहरण हैं।

    संक्षेप में वैयक्तिक आय की गणना करते समय राष्ट्रीय आय में से निगम कर (Corporate Tax), कम्पनियेां द्वारा अवितरित लाभांश तथा सामाजिक Safty के लिये किये गये अनिवयार्य भुगतानों को घटाना चाहिये क्योंकि ये लोगों की आय को कम कर देते हैं लेकिन इसके साथ साथ लोगों को सामाजिक Safty के Reseller कमें मिलने वाले लाभ जोड़ देने चाहिये क्योंकि ये हस्तान्तरणीय भुगतान लोगों की आय में वृद्धि कर देते हैं सूत्रा के Reseller में 

    Personal Income = National Income — Social Security
    Contruibutions—Corporate Income Taxes—Indistributed Corporate
    Profits + Transfer Payments

    5. व्यय योग्य वैयक्तिक आय

    व्यक्तियों अथवा परिवारों की जो वैयक्ति आय होती है, वह सारी की सारी उपभोग में नहीं लार्इ जा सकती। उसका कारण यह है कि लोगों को अपनी निजी आय पर सरकार को कुछ प्रत्चक्ष करों जैसे आयकर, सम्पत्ति कर आदि, भी देना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्यक्ष करों के भुगतान करने के बाद जो शेष बचता है उसे उपभोग्य वैयक्तिक आय अथवा व्यय योग्य वैयक्तिक आय कहते हैं। सूत्रा के Reseller में,

    Disposable Personal Income = Persoanl Income—Direct Taxes

    यह कोर्इ जरूरी नहीं कि सम्पूर्ण उपभोग्य वैयक्तिक आय को उपभोग दर व्यय कर दिया जाय। हाँ आम तौर पर उपभोक्ता द्वारा अपनी आय का अक्तिाकांश भाग उपभोग पर व्यय कर दिया जाता है और कुछ भाग बचा लिया जाता है। अत:

    Disposable Personal Income = Consumption + Saving

    6. सकल घरेलू उत्पाद 

    राष्ट्रीय आय की उपर्युक्त पांच धारणाओं के अतिरिक्त Single और धारणाा की भी प्राय: प्रयोग Reseller जाता है। यह है सकल घरेलू उत्पाद (GDP)। यदि किसी देश के सकल राष्ट्रीय उत्पाद की गणना करने में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (Net factor income from abroad) को न सम्मिलित करे तो वह ‘सकल घरेलू उत्पाद’ (GDP) कहलाता है

    GDP = GNP — Net factor Income from abroad
    or GNP = GDP + Net factor Income from abroad

    7. शुद्ध घरेलू उत्पाद 

    सकल घरेलू उत्पाद में से मशीनों पर संयत्रों के प्रयोग के कारण होने वाली टूट फूट या घिसावट से उत्पन्न मूल्य ह्रास (Depreciation) घटा देने पर शुद्ध घरेलू उत्पाद का अनुमान प्राप्त हो जाता है।

    राष्ट्रीय आय की गणना का महत्व-

    1. गों के जीवन स्तर के बोर में ज्ञान राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित आंकड़ाों से लोगों के रहन सहन के स्तर की अनुमान लगाया जा सकता है, क्योंकि राष्ट्रीय आय की वृद्धि से प्रति व्यक्ति औसत आय में वृद्धि होने से देश के नागरिकों के जीवन स्तर में वृद्धि होती है। 
    2. आार्थिक नीति के निर्धारण में सहायक.इससे सरकार को अपनी आार्र्थिक नीति ठीक दशा में निर्धारित करने में सहायता मिलती है। प्रत्येक सरकार राष्ट्रीय कार्य के आंकड़ों के According देश की Meansव्यवस्था का सच्चा चित्रा प्राप्त कर लेती है और तदनुसार ही अपनी साख, मुूद्रा, निवेश, रोजगार And बजट सम्बन्धी नीति का निर्माण।
    3. आार्थिक उन्नति का तुलनात्मक अध्ययन – इसकी सहायता से देश में हुर्इ आार्थिक प्रगति का तुलनात्मक अध्ययन Reseller जा सकता है। अन्य देशों से भी तुलना सम्भव हो पाती है। 
    4. आार्थिक नियोजन के लिये विशेष महत्व – इसी के आधार पर आार्थक योजनाओं का निर्माण होता है; क्यो कि राष्ट्रीय आय कितनी है ? कितने समय में कितनी वृद्धि हुर्इ है ? क्या साधन है ? यह सब निश्चित करना पड़ता है। 
    5. देश के आार्थिक कल्याण का सूचक – प्रो0 मार्शल के According ‘‘अन्य बातों के थितर रहने पर किसी देश की राष्ट्रीय आय जितनी अधिक होती है, उस देश का आर्थिक कल्याण भी उतना ही अधिक समझा जाता है।’’ 
    6. समाज के विभिन वर्गों में आय के वितरण का अनुमान – राष्ट्रीय आय के आंकड़ाों से समाज के विभिन्न वर्गों में आय के वितरण का भी ज्ञान हो जाता है, और उस प्रकार आय की असमानताओं को दूर करने के लिये आवश्यक केवल उठाये जा सकते हैं। 
    7. आय, व्यय और बचत का अनुमान – उसके द्वारा आय व्यय और बचत का अनुमान लगाया जा सकता है और उन्हें उचित अनुपात में रखने की दशा में प्रयत्न किये जा सकते हैं। 
    8. Meansव्यवस्था के दोषों को दूर करने में सहायक – राष्ट्रीय आय के आंकड़े इस बात की जानकारी देते हैं कि देश की Meansव्यवस्था में कौन से दोष विद्यमान हैं जिनके कारण आार्थिक विकास नहीं हो या रहा है। इस ज्ञान के आधार पर इन दोषों को दूर करने के उपाय किये जा सकते हैं।

    राष्ट्रीय आय को मापने की कठिनाइयाँ 

    किसी देश की राष्ट्रीय आय की गणना करते समय अनेक कठिनाइयों And जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। ये कठिनाइयां And जटिलतायें इसलिये उत्पन्न होती हैं क्योंकि Meansव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों (Sectors) के बारे में विश्वसनीय आंकड़ों का या तो पूर्ण आभाव रहता है और/या वे केवल आंशिक Reseller में ही उपलब्ध होते हैं। ये समस्याएं इसलिये भी उत्पन्न होती हैं क्योंकि इस कार्य को सम्पन्न करने वाली संस्थाओं को (विशेषकर अल्पविकसित देशों में) राष्ट्रीय लेखा विधियों का स्पष्ट And सही ज्ञान नहीं होता।

    पश्चिम के विकसित देशों में राष्ट्रीय आय सम्बन्धी गणनाओं के कार्य में इतनी कठिनाइयां And जटिलतायें उत्पन्न नहीं होती। क्योंकि इन देशों ने अपनी साांख्यकीय प्रणालियों को पर्याप्त ऊचे स्तर तक विकसित कर लिया है। इसके अतिरिक्त वे देश अपनी Meansव्यवस्थओं के विभिन्न खण्डों के बारे में विस्तृत And विश्वसनीय आँकड़े भी Singleत्रा कर कसते हैं।

    लेकिन एशिया And अफ्रीका के पिछड़े And अल्पविकसित देशों पर यह बात लागू नहीं होती। राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय इन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। ये कठिनाइयां सांख्यकीय (Statistical) And अवधारणात्मक (Conceptual) दोनों प्रकार की हैं।

    1. इन देशों में उपलब्ध आंकड़े उपर्याप्त ही नहीं बल्कि अविश्वसनीय भी हैं। उदाहरणार्थ भारत के कृषि से सम्बन्धित आंकड़े पूर्ण नहीं हे। Indian Customer कृषि में उत्पादन लागतों से सम्बन्धित विश्वसनीय अनुमानों का अभाव है। लघु And मध्यम वर्गीय उद्याोगों सवे सम्बन्धित आंकड़े भी अपर्याप्त हैं।
    2. अल्प विकसित देशों में गैर-विमुद्रित खण्ड (non monetised sector) के कारण भी राष्ट्रीय आय की संगणना में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं। जैसा कि विदित है, इन देशों में कृषि उत्पादन का अधिकांश भाग का या तो कृषक स्वंय उपभोग कर लेते हैं या गांवों में अन्य वस्तुओं And सेवाओं के साथ उसका विनिमय कर लेते हैं। इससे राष्ट्रीय आय की संगणना में अनेक कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं।
    3. अल्पविकसित देशों में अधिकांश छोटे उत्पादक अशिक्षित And अनपढ़ होते हैं। वे अपने उत्पादक कार्यों से सम्बन्धित सही सही लेखे रखने की स्थिति में नहीं होते। अत: वे अपने उत्पाद की मात्रा And उसके मूल्य के बारे में सही सही सूचना देने में असमर्थ रहते हैं। परिणामत: Meansव्यवस्थाक  विशालकाय खण्यण्डाों में आय अथवा उत्पादन का मूल्यांकन करते समय हमें अनिवार्य Reseller में अनुमानों (guesswork) का आश्रय लेना पड़ता है।
    4. अल्पविकसित देशों में लोगों में पेशेवर विशेषज्ञता (Occupational specialisation) का आभाव होता है। अनेक व्यक्ति अपनी आजीविका कमाने हेतु Single से अधिक धन्धे करते हैं। अत: उनकी आय के बारे में सूचनाये Singleत्रिात करना कठिन हो जाता है।

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