मुगल साम्राज्य – औरंगजेब के शासनकाल में

उत्राधिकार का Fight- 

मुगल सम्राट शाहजहां के चार पुत्र थे । दारा शिकोह, भुजा, औरंगजेब और थे । शाहजहां की तीन पुत्रियां भी थी । जहांआरा, रोशनआरा, गौहरआरा । मुसलमान Kingों में उत्तराधिकार के नियमों का आभाव था तलवार के बल पर शासन प्राप्त Reseller जा सकता था । शेष भाइर्यों की कत्ल कर दिये जाते थे । जीते जी All पुत्रों में बंटवारा कर दिया था ।

चारों पुत्रों की इच्छा व रूचि- 

शाहजहां के चारों पुत्रों की अलग-अलग रूचियां थी । दारा पंजाब का सुबेदार था । शाहजहां और जहांआरा से अनुकम्पा प्राप्त कर हमेशा शाहजहां के नजदीक में रहना चाहते थे । विद्यानुरागी धार्मिक उदारता के गुण विद्यमान था । सुलहSingleुल की नीति का समर्थक था । शुजा शिया महत्वाकांक्षी था। उसे बंगाल की सुबेदारी प्रदान की गर्इ । वह वीर साहसी कुशल प्रKing थे । आराम तलब And विषय वासना प्रिय King हुआ । औंरगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान थे । मुराद Single वीर सैनिक यौद्धा थे सैनिक मिलन सारिता उदार हृदय विद्यमान थे । शराब की लत लगी हुर्इ थी । उसे गुजरात की सुबेदारी दी गर्इ थी ।

शाहजहां की रूग्णना- 

सन 1657 में शाहजहां बीमार पड़ा । वह स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने आगरा आ गया और अफवाह फैल गर्इ की शाहजहां का निधन हो गया ।

उत्तराधिकारी के लिए Fight का कारण – 

शाहजहां के जीवित अवस्था में चारों पुत्रों में उत्तराधिकारी के लिए संघर्ष छिड़ गया । उसके निम्नलिखि कारण थे-

  1. उत्तराधिकारी के लिए सुनिश्चित नियमों अभाव- मुगलकाल मे उत्राधिकार के कोर्इ सुनिश्चित नियम नहीं थे । इसलिए संभावित उत्तराधिकारी अवसर पाते ही उत्तराधिकार के लिए संघर्ष आरम्भ कर देते थे । शाहजहां के अन्तिम समय में भी यही हुआ, उसके चारों पुत्रों में संघर्ष छिड़ गया । 
  2. चरित्रगत विभिन्नताएं- शाहजहां के चारों पुत्र भिन्न-भिन्न स्वभाव के थे । उनमें चारित्रिक विभिन्नता के कारण कोर्इ किसी को पसन्द नहीं करता था । इसी के परिणामस्वReseller वे संघर्ष के लिए प्रेरित हुए ।
  3. साधन सम्पन्नता- शाहजहां के चारों राजकुमार सुबदेार थे तथा साधन सम्पन्न थे आर्थिक तथा सैनिक स्वतंत्रता ने उसकी महत्वाकांक्षा को बढ़ा दिया था । 
  4. शाहजहां की रूग्णावस्था- शाहजहां Single बार बीमार पड़ा । इस सामाचार को सुनकर उसके पुत्रों ने उत्तराधिकार की तैयारी कर ली । यहां तक अफवाह फैला दी कि दाराशिकोह शाहजहां की मृत्यु के खबर को छिपा रहा है तथा मुगल साम्राज्य का स्वामी बनना चाहता है ।
  5. दाराशिकोह को शाहजहां द्वारा उत्तराधिकारी नियुक्त करना- शाहजहां दाराशिकोह को बहुत चाहता था, उसने उसे उत्तराधिकारी नियुक्त करने हेतु अपने विश्वसनीय सरदारो के सामने प्रस्ताव रखा । उसने उसकी मनसवदारी 40,000 से बढ़ाकर 60,000 कर दी थी तथा यह घोषणा कर दी गर्इ कि दाराशिकोह को सम्राट का सम्मान दिया जाए । इसे पक्षपातपूर्ण मानकर शेष राजकुमारों ने अपने-अपने अधिकारों के पक्ष प्रस्तुत किए । 
  6. दाराशिकोह के प्र्रयत्न- दाराशिकोह, शाहजहां का प्रेम तथा पक्ष पाकर मनमानी करने लगा था । उसके इस प्रकार के व्यवहार ने ही भाइयों में पारस्परिक संघर्ष को जन्म दिया। उसने बंगाल, गुजरात तथा दक्षिण में बीजापुर जाने के सारे मार्ग बंद कर दिए ताकि उसके भाइयों के पास कोर्इ सूचना न पहुंच सके । परिणाम में उसके भाइयों ने संघर्ष का रास्ता अपनाया ।
  7. अमीरों तथा सरदारों की स्वार्थता- अमीर तथा सरदार अपने स्वार्थ की पूिर्त के लिए पारस्परिक गुटबन्दी के आधार पर संघर्ष की स्थिति पैदा कर देते थे । कट्टर सुन्नी मुसलमान Single ओर औरंगजेब को भड़काते तो उदारवादी लोग दाराशिकोह को समर्थन देते । शिया, शुजा को ऊपर उछालते थे । इससे संघर्ष की स्थिति निर्मित हो गर्इ थी । 

उत्तराधिकार हेतु Fight 

1657 र्इ. में शाहजहां अस्वस्थ हो गया । उसने पूर्व में ही दाराशिकोह को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था, फलत: दाराशिकोह अपने अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करने लगा । वह चाहता था कि आगरा की कोर्इ सूचना उसके भाइयों तक न पहुंच सके, परन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका । उसके भाइयों को उसके भीतरी प्रयत्नों की जानकारी मिल गर्इ तथा वे भी इस दिशा में प्रयत्नशील हो गए ।

बहादुगढ़ का Fight- 

सर्वपथ््राम शुजाशाह ने स्वयं को सम्राट घाेिषत Reseller तथा अपने नाम के सिक्के भी चलवाए । उसने Single विशाल सेना लेकर आगरा की ओर कूच Reseller । दाराशिकोह ने उसे रोकने के लिए अपने पुत्र सुलेमानशिकोह के साथ जयसिंह को भेजा, शुजाशाह की पराजय हुर्इ तथा वह बंगाल की ओर लौट गया ।

धरमत का Fight – 

औरगंजेब में कूटनीति चतुरार्इ थी । उसने इस संघर्ष में मुराद को अपनी ओर मिला लिया । उसने कहा कि पंजाब, सिंध, काबुल तथा कश्मीर मुराद का होगा तथा साम्राज्य का अधिकारी वह स्वयं होगा । औरंगजेब इस समझौते के बाद आगरा की ओर बढ़ा तथा दीपालपुर के पास मुराद उसे आकर मिल गया । दारा को आक्रमण की सूचना मिलते ही औरंगजेब तथा मुराद की सम्मिलित सेना आगरा की ओर चला उसका रास्ता रोकने का प्रयास Reseller और धरमत के पास दोनों सेनाओं के मध्य मुठभेड हुर्इ ।

सामूगढ का Fight- 

औरंगजेब धरमत के Fight में सफल होते ही आगरा की ओर बढ़ने लगा। दाराशाही सेना ही हार के बाद स्वयं औरंगजेब का सामना करने का निश्चय कर लिया । औरंगजेब और मुराद की विजय सेना सामूगढ़ पहुंची जहां दारा शिकोह विशाल सेना के साथ सामना करने का इंतजार कर रहे थे । 29 मर्इ 1658 र्इ. को Fight हुआ । भीषण Fight में दारा पराजित हुआ और Fight क्षेत्र से भाग गया । औरंगजेब सेना जून 1658 को आगरा पहुंची और आगरा किले को घेर लिया और किले पर अधिकार कर लिया । शाहजहां को किले में कैद कर लिया गया और उससे बादशाह के समस्त अधिकार छीन लिए गए ।

मुराद का वध- आगरा को कब्जे में लने के बाद औरंगजेब दिल्ली की आरे आग बढ़ा मार्ग में उसने मथुरा के पास मुराद को दावत के लिए बुलाया । खुब शराब पिलार्इ तथा उसे बेहोशी की दशा में बन्दी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर लिया कुछ दिनों पश्चात 4 दिसम्बर 1661 र्इको औरंगजेब ने उसका वध कर दिया और लाश को किले के अंदर दफना दिय गया । सौमूगढ़ के Fight ने औरंगजेब के पक्ष में निर्णय कर दिया था । अब मुगल साम्राज्य की बागडोर औरंगजेब के हाथ में आ गर्इ थी । वह केवल उत्तराधिकारी के लिए Fight ही नहीं था बल्कि सारे साम्राज्य में फलै गया जिसके परिणाम स्वReseller साम्राज्य में अराजकता फैली इस Fight में जन धन की भी अपार हानि हुर्इ ।

खजवा Fight- 

शुजा तथा औरंगजेब खजवा के पास भिड़ गये । दोनो सेनाओं के मध्य भी भीषण Fight हुआ जिसमें शुजा Defeat हुआ, और जान बचा अराकान की ओर भाग गया परन्तु 1660 र्इ. में मारा गया । सामूगढ़ Fight के पश्चात दारा शिकोह दिल्ली, लाहौर होता हुआ गुजरात पहुंचा। वहां औरंगजेब ने उसका पीछा करने के लिए बहादुर खां को भेजा । उसने खलील खां को पंजाब का गवर्नर नियुक्त करके बहादुर खां की सहायता के लिए भेजा यहां भी भाग्य ने साथ नहीं दिया और वह हार गया । उसने भाग कर जीवन नामक सरदार के यहां शरण ली परन्तु व विश्वास घाती हुआ उसने उसे औरंगजेब के हवाले कर दिया । औरंगजेब ने दारा को गन्दे हाथी पर बिठाकर उसका जुलूस निकाला तथा अपमानित Reseller । उस पर काफिर होने का आरोप लगाकर उसे मृत्यु दण्ड दे दिया गया । उसके बाद भी वह शान्त न हुआ । दारा के बेटे सुलेमान को कैद कर (1662 र्इ.) में उसका वध करवा दिया । इस प्रकार गद्दी का कोर्इ हकदार नहीं बचा । औरंगजेब निश्चित होकर साम्राज्य करने लगा ।

औैरंगंजेब के विजय के कारण 

  1. शाहजहां की दुर्बलता- शाहजहां की बिमारी तथा दुर्बलता के कारण औरंगजेब उत्राधिकारी के संघर्ष में विजयी रहे ।
  2. दाराशिकोह की कार्य प्रण््रणाली- दाराशिकोह अपनी पराजय आरै औरंगजेब की विजय के लिए स्वयं जिम्मेदार है । दारा को अपने शत्रु की शक्ति का अनुमान था जसवन्त सिंह को बागीयों सेनाओं केवल भगाने का आदेश था, Fight का नहीं । जिससे औंरगजेब की सेना का मनोबल बढ़ा । दारा की अकुशलता पूर्ण सेना का संचालन हुआ । 
  3. औरंगजेब Single कुशल योग्य सेनापति- औरगंजेब स्वयं Single कुशल योग्य सेेेनापति था । अपने लाभ के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार था । मुराद को मिलकार उनका वध कर देना उसके कुटनीति था । 
  4. कुटनीतिज्ञता- औरगंजेब Single चतुर कटनीतिज्ञ थे । कुटनीतिक चालों से मुराद को मिलाकर अपनी सैन्य शक्ति दुगुनी कर लेना और दाराशिकोह के उपर आक्रमण करके Defeat करना । मुराद विचार करने का अवसर न देकर बन्दी बना लेना और उसकी हत्या कर देना ।
  5. राजपूतों द्वारा औंरगजेब को समर्थन- राजपतू Kingओं के द्वारा दारा शिकोह को सहयोग नहीं मिला । जसवन्त सिंह ने धरमत की लड़ार्इ में दारा शिकोह के महत्वपूर्ण आदेश की अवहेलना कर Fight प्रारंभ कर दिया । वह पराजित होकर जोधपुर चला गया । उदयपुर के राणा ने भी समय पर दाराशिकोह की सहायता करने से इंकार कर दिया । 
  6. औरंगजेब में झुठा आश्वासन के गुण- औरगंजेब राजपतूों व अन्य को धामिर्क स्वतंत्रता का झूठा आश्वासन दिया तथा दाराशिकोह की ओर से उसका ध्यान हटाकर अपनी ओर कर लिया । 

औरंगजेब की धार्मिक नीति

औरंगजेब ने Single शुद्ध इस्लामी राज्य की स्थापना करने का प्रयत्न Reseller, वह कट्टर सुन्नी मुसलमान था । उसने अकबर तथा जहांगीर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति को त्याग दिया था, और Single कट्टर सुन्नी मुसलमान की तरह धार्मिक सिद्धान्तों के आधार पर शासन Reseller । इस्लाम धर्म उसके शासन के नीतियों का मुख्य आधार था और इसका प्रचार करना ही उसके जीवन का लक्ष्य बन गया ।

डॉं. इश्वरी प्र्रसाद के According ‘‘आरैंगजेब के राज्य की नीति धार्मिक विचारों से प्रभावित थी और उसने कट्टरपंथी की भांति शासन करने का प्रयत्न Reseller । प्रत्येक बात में वह शरीयत का अनुसरण करता था । उसकी दो नीतियां थी-

  1. इस्लाम समर्थक नीति, 
  2. हिन्दू विरोधी नीति । 

1. इस्लाम समर्थक नीति

  1. संगीत, नृत्य, चित्रकला और काव्य इस्लाम में मान्य नहीं है, इसलिए औरंगजेब ने अपने राजत्व में उक्त विधाओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । 
  2. व्यक्ति पूजा का इस्लाम में निषेध है, अत: उसने झरोखा दर्शन प्रथा को वर्जित कर दिया।
  3. वेश्यालय तथा जुए के अड्डे बन्द करवा दिए गए थे, वे भी इस्लाम में ग्राह्य नहीं है।
  4. फैशन तथा नशीले पदार्थो के सेवन पर प्रतिबन्ध था, इसके लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था थी, भांग की खेती बंद करवा दी । 
  5. तुलादान की प्रथा समाप्त कर दी गयी, ज्योतिषियों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। 
  6. लोगों को शरीयत के According जीवन बिताने की प्रेरणा देने 8 के लिए उसने मुहतसिबों की Appointment की । उनका काम समाज में नैतिकता की स्थापना करना था । 
  7. उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना बन्द करवा दिया, ताकि इस्लामी नियमों का अपमान न हो, क्योंकि सिक्कों के जमीन पर गिरने तथा पैरों तले आ जाने की सम्भावनाएं रहती थी ।
  8. नौरोज त्यौहार फारसी रीति-रिवाज पर आधारित था, इसलिए उसे बन्द करवा दिया गया । 
  9. राजदरबार को सामान्य Reseller से सजाया जाता था । आडम्बर युक्त साज-सज्जा बन्द कर दी गयी ।
  10. मुसलमान व्यापारियों को कर मुक्त Reseller गया था, परन्तु मुस्लिम व्यापारियों ने हिन्दू व्यापारियों के माल को अपना माल बताकर जब भ्रष्टाचार प्रारम्भ Reseller, तो मुसलमानों पर हिन्दुओं की तुलना में आधा कर लगाया गया । 
  11. कुछ पद ऐसे थे, जो मुसलमानों के लिए ही Windows Hosting थे । पेशकर तथा करोडियों के पद इसी प्रकार के थे । 
  12. दासों का खरीद फरोख्त बंद कर दिया गया ।
  13. नयी मस्जिदों का निर्माण करवाया गया । नये मन्दिरों को तोड़ा गया पुराने मन्दिरों का जीर्णोद्धार भी नहीं करवाया गया । 
  14. फैशन परस्ती, अवांछनीय खेल-तमाशों पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया । 
  15. धर्म यात्राएं, पीरों मजारों में महिलाओं के प्रवेश निषिद्ध करवा दिये । 
  16. इस्लाम धर्म के नियमों को लागू करने के लिए मुहतसिब नाम के विशेष अधिकारी नियुक्त किये गये इनका काम जनता को कुरान के नियमों के According चलने के लिए ओदश देना था । 

2. हिन्दू विरोधी नीति 

  1. नये बने हिन्दू मन्दिर औरंगजेब की आज्ञा से गिराए गए तथा पुराने जीर्ण-शीर्ण मन्दिरों की मरम्मत की आज्ञा भी नहीं थी । धार्मिक कट्टरता के कारण हिन्दूओं के पूजा स्थलों को वह शत्रुता की दृष्टि से देखता था । 
  2. औरंगजेब ने हिन्दुओं पर जजिया कर वसूल करने का फरमान जारी Reseller था । सर जदूनाथ सरकार के According- ‘‘जजिया कर का भाग निर्धनों पर ही अधिक पड़ा उन्हें धामिर्क स्वतंत्रता के लिये अपने Single वर्ष के भोजन के मूल्य का कर देना पड़ता था ।’’
  3. औरंगजेब ने ऐसा प्रयत्न Reseller कि उच्च पदों पर मुसलमान ही नियुक्त किए जाएं । हिन्दू कर्मचारियों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था ।
  4. औरंगजेब ने हिन्दू तथा गैर-मुसलमानों को उपहार, अनुदान तथा पदवियां देकर उनमें इस्लाम धर्म ग्रहण करने की भावना को जागृत Reseller । वह चाहता था कि अधिक से अधिक हिन्दू, मुसलमान बन जाएं । 1661 र्इ. में उसने हिन्दुओं को Kingीय पद से पृथक कर दिया । अनेक पदों पर मुसलमानों को नियुक्त कर दिया ।
  5. हिन्दुओं को अपने त्यौहार मनाने की मनाही थी । इस संकीर्णता ने राष्ट्रीय तथा सांस्कृतिक Singleता को गहरी चोट पहुंचार्इ । होली के त्यौहार में पाबन्दी लगार्इ गयी । 
  6. औरंगजेब ने हिन्दुओं को जिस प्रकार परेशान Reseller, ठीक उसी तरह शिया मुसलमान भी उससे त्रस्त थे । उसने दक्षिण के शिया राज्य गोलकुण्डा तथा बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । इसके अतिरिक्त उसने अनेक शिया सम्प्रदाय के लोगों की हत्या करवायी, परन्तु उसकी औरंगजेब को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । वह जीवन भर Fight की आग में जलता रहा। Single क्षण के लिए भी शान्ति से सांस नहीं ले सका ।
  7. हिन्दुओं की पाठशालाओं को Destroy कर दिया, वाराणसी में विश्वनाथ मन्दिर, मथुरा में केशवदेव का मन्दिर, गुजरात में सोमनाथ का मन्दिर, अयोध्या व हरिद्वार के मन्दिरों को तोड़-फोड़ कर Destroy कर दिया मन्दिरों से प्राप्त अनके मूर्तियों को अपमानित करने के लिए आगरा के जामा मस्जिद के सीढ़ियों के नीचे जड़वा दिया ताकि मुसलमान उन मूर्तियों व उसके टुकड़ों पर पैर रखकर ऊपर जा सके । मन्दिरों के भग्नावशेषों से मस्जिदों के निर्माण करवाये । 

धार्मिक नीति के परिणाम –

  1. इस्लाम समर्थक नीति के कारण हिन्दू, शिया तथा गैर मुसलमान औरंगजेब के शत्रु बन गए । उनको वह जीवन भर दबाने में लगा रहा तथा खजाने का धन पानी के तरह बहाता रहा। 90 वर्ष की आयु में मरणासन्न होने पर भी औरंगजेब के हृदय में इस्लाम धर्म के प्रचार का धार्मिक उत्सान अग्नि के समान धधक रहा था । 
  2. औरंगजेब अपनी संकीर्ण धार्मिक नीति के परिणामस्वReseller वीर राजपूत जाति के सहयोग से वंचित हो गया । 
  3. उसकी कला विरोधी नीति ने कला के विकास के मार्ग पर पूर्णविराम लगा दिया । इससे जन असन्तोष में वृद्धि हुर्इ ।
  4. धार्मिक कट्टरता के कारण धीरे-धीरे औरंगजेब के विशाल साम्राज्य की नींव के पत्थर उखड़ते गए । Single दिन ऐसा आया कि मुगल साम्राज्य चरमराकर ढह गया । 

राजनीतिक गतिविधियां 

(1) उत्तर भारत की डगमगाती स्थिति में सुदृढ़त़ता की स्थापना- 

सिहासनारूढ़ होने के प्रारम्भिक दिनों में उत्तराधिकार के Fight में व्यस्त रहने के कारण औरंगजेब उत्तर भारत की राजनीतिक गतिविधियों की ओर पूर्णReseller से ध्यान नहीं दे सका । फलस्वReseller Kingओं ने स्वतंत्र होने का प्रयास Reseller । भूमि-कर देना बंद कर दिया तथा आसपास में लूटपाट की जाने लगी । सड़के अWindows Hosting हो गर्इ, व्यापार ठप्प पड़ गया । औरंगजेब ने सिंहासन पर बैठते ही इन अव्यवस्थाओं को दूर करने का प्रयत्न Reseller । इस प्रयत्न की दिशा में First उसने मुगल सेना को बीकानेर भेजा । बीकानेर के King ने मुगल साम्राज्य के विरूद्ध विद्रोह नहीं करने का वचन दिया, जिससे औरंगजेब ने बीकानेर को मुगल साम्राज्य में विलीन नहीं Reseller । बिहार के पलामू प्रदेश का King अशान्ति तथा अव्यवस्था का लाभ उठाकर मनमानी करने लगा था । औरंगजेब ने उसे हराया तथा उसके प्रदेशों को मुगल साम्राज्य में मिला लिया । बुन्देला सरदार चम्पत राय की रूख भी विद्रोहात्मक था । उसने आस-पास के प्रदेशों में भयंकर लूटपाट मचा रखी थी । उसे भी पकड़ लिया गया तथा उसके प्रदेश को मुगल साम्राज्य में विलीन कर लिया गया । 

(2) उत्तर पूर्वी भारत के अहोमेमों से संघर्ष- 

अहोम जाति उत्तरी बंगाल तथा पश्चिमी असम में राज्य करती थी । अहोमों ने 1658 र्इ. में मुगल साम्राज्य पर आक्रमण कर गोहाटी पर कब्जा कर लिया था । मीर जुमला ने 1661 र्इ. में असम पर आक्रमण Reseller तथा असम की राजधानी गढ़गांव मुगलों के अधिकार में आ गया । यह विजय स्थायी नहीं हो सकी । मीर जुमला की मृत्यु के पश्चात औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण से वापस बुलाकर बंगाल का गर्वनर बनाकर भेज दिया । शाइस्ता खां ने अहोम के King चक्रध्वज को दबाने की कोशिश की । उसने उसके सारे प्रयत्न विफल कर दिये तथा अपने खोए हुए राज्य मुगलों से वापस ले लिए । इतना ही नही उसने गोहाटी पर भी अधिकार कर लिया । 

(3) बंगाल अभियान- 

पूर्वी भारत के अभियान में मुगलों का े अच्छी सफलता मिली थी । इससे उत्साहित होकर शाइस्ता खां ने समुद्री बेड़े का अच्छा संगठन Reseller । उसने पुर्तगालियों को बंगाल के डेल्टा प्रदेश से बाहर कर दिया । सोनद्वीप पर कब्जा कर समुद्री डाकुओं का आतंक समाप्त कर दिया गया । 1666 र्इ. में उसने अराकान पर चढ़ार्इ की, इससे चटगांव मुगलों के अधिकार में आ गया, परन्तु पूर्वी बंगाल में अविरल Fight होता रहा । 

औरंगजेब दक्षिण में जीवन भर व्यस्त रहा । बीजापुर और गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया । कावेरी नदी तक मुगल साम्राज्य को फैलाया गया । इसके बाद भी पश्चिमी तट पर दक्षिण के Single बड़े भाग ने महाKing छत्रपति शिवाजी के अधीन अपना स्वतंत्र अस्तित्व कायम रखा । 

लोकप्रिय विद्रोह या आन्दोलन 

औरंगजेब दमन की नीति का अनुगामी था । इसलिए समय-समय पर उसे आन्दोलनों का भी सामना करना पड़ा । उसके समय में चार बड़े आन्दोलन हुए, जो लोकपिय्र विद्रोहों के Reseller में जाने जाते हैं- (1) जाट आन्दोलन, (2) सतनामियों का विद्रोह, (3) अफगान आन्दोलन, (4) सिक्ख आन्दोलन –

1. जाटो का विद्रोह- 

समय-समय पर जहांगर ने भी जाटों के विद्रोह का सामना Reseller था । 1661 र्इ. में औरंगजेब का फौजदार अब्दुल नबी ने धार्मिक कट्टरता के कारण मथुरा में Single मन्दिर का विध्वंस करके वहां मस्जिद का निर्माण करवा दिया था, उसने केशवराय के मन्दिर का संगमरमर का वह जंगला उठवा लिया था, जिसे दाराशिकोह ने भेंट Reseller था । हिन्दू कन्याओं का अपहरण निरन्तर होता रहा जिसके कारण औरंगजेब के समय में गोकुल के नेतृत्व में जाटों ने मथुरा क्षेत्र में विद्रोह कर दिया । विद्रोह का स्वReseller भयंकर था। वहां 20 हजार सेना के साथ औरंगजेब पहुंचा । सेना तो जाटों की भी 20,000 तक थी, परन्तु मुगलों की सुगठित सेना ने उन्हें शीघ्र ही Defeat कर दिया । गोकुल बन्दी बना लिया गया । बाद में उसकी हत्या कर दी गर्इ । गोकुल के वध ने आन्दोलन को भड़का दिया । उसके स्थान पर Kingराम जाट ने नेतृत्व संभाला । जाटों ने लूटपाट तथा छापामार Fight प्रणाली अपनाकर औरंगजेब को परेशान कर दिया, परन्तु औरंगजेब ने Kingराम की भी हत्या करवा दी ।

इसके बाद भी जाटों ने हार नहीं मानी । नेतृत्व की बागडोर जाट सरदार चूड़ामन ने अपने हाथों में ले ली । वह भी औरंगजेब को छुटपुट हमलों से परेशान करता रहा । मुख्य मार्गो पर लूटपाट मचाकर उसने औरंगजेब की शान्ति छीन ली । आगरा में आक्रमण कर अकबर की कब्र को खोदकर उसकी हड्डियों को जलवा दिया गया । इस बीच औरंगजेब की मृत्यु हो गर्इ । चुडामन ने भरतपुर के आसपास के क्षेत्रों में स्वतत्रं जाट प्रदेश की स्थापना कर ली ।

जाट विद्रोह के कारण- (1) मथुरा के फौजदार अब्दुल नबीं ने जाटों के साथ दुव्र्यवहार Reseller, जाटों ने उसके खिलाफ शस्त्र उठा लिये और वह मारा गया । (2) जाटों से ली जाने वाली कर की राशि बहुत अधिक थी, वह भी Single असन्तोष का कारण था । 

2. सतनामियों का विद्रोह- 

सतनामियों का Single सम्पद्राय था- जो बड़ी ही धार्मिक और शान्तिप्रिय था इन्हें ‘मुण्डिया’ कहा जाता था । सतनामी नारनौल और मेवात के जिलों में निवास करते थे, उन्होंने औरंगजेब की धार्मिक कट्टरता की नीति के विरूद्ध संगठित होकर विद्रोह Reseller। सतनामियो ने नारनौल के सूबेदार को पराजित कर मार डाला । इस प्रकार वहां उनका अधिकार हो गया । इस विद्रोह को दबाने के लिए औरंगजेब ने दिल्ली से सेना भेजी, परन्तु वह भी पराजित हाे गयी, अन्त में तोपखाने की मदद से सतनामियों का निर्दयतापूर्वक वध कर दिया गया ।

3. अफगान विद्रोह- 

अफगानिस्तान मुगल सामा्र ज्य के लिये Single समस्या मूलक राज्य था। स्वतंत्र विचार के अफगान स्वभाव से लडाकू थे । बात-बात पर भड़क उठते थे । अकबर का प्रिय मित्र बीरबल अफगानों से संघर्ष करते समय मारा गया था । अफगानों ने शाहजहां की भी नींद हराम कर दी थी ।

भारत के उत्तर पश्चिम सीमान्त प्रदेशों में कर्इ अफगान कबीले निवास करते थे । उनके विद्रोह का कारण आर्थिक था । वे उस क्षेत्र में रहते थे जहां न अनाज होता था और न व्यापार का ही ठिकाना था । उनके जीने का आधार सिर्फ लूटपाट ही था । किसी की जान ले लेना, उनके लिए मामूली बात थी । लडाकू स्वभाव के कारण वे मुगल सेना में भरती हो जाते थे तथा स्वतंत्रता प्रिय होने के कारण उन्हें बागी नेतृत्व खूब भाता था और उसी का साथ देते थे । यदि उन्हें मुगल साम्राज्य में कभी कमजोरी दिखार्इ पड़ती तो तत्काल विद्रोह का झण्डा खड़ा कर देते थे । वे स्वयं को शेर खां का वंशधर मानते थे तथा भारत पर अपने जन्म सिद्ध अधिकार की बात करते थे ।

युसुफजर्इ कबीले का सरदार मामु था । वह अपने को शेरशाह का वंशधर कहता था । वह मुहम्मद शाह के नाम से स्वतंत्र King बन बैठा था, परन्तु शीघ्र ही दबा दिया गया । उक्त विद्रोह के बाद रोशनार्इ कबीले ने विद्रोह प्रारम्भ कर दिया । इसकी लहर हजारा, अटक तथा पेशावर तक पहुंच गर्इ । इससे खैबर का रास्त ही बंद हो गया । अत: व्यापार ठप्प पड़ गया, औरंगजेब ने विद्रोह को फैलते देखकर अमीर खां के नेतृत्व में राजपूति सेना उसे दबाने के लिए भेजी । अफगानों ने मुगल सेना को लोहे के चने चबवा दिए, परन्तु अन्त में कठिन परिश्रम से अमीर खां उन्हें दबाने में समर्थ हुआ । विद्राहे न हाे इसलिए मारवाड़ के King जसवन्त सिंह को जमरूद का फौजदार बनाया गया । अफगानों का सर्वाधिक भयंकर विद्रोह 1672 र्इ. में हुआ । इस समय अफगान अजमल खां के नतेृत्व में इकटठ्े हुए । वह अफरीदी था । उसने स्वयं को स्वतत्रं घाेि “ात कर दिया । उसने अपने नाम पर खुतवा पढ़वाए तथा सिक्के भी चलवाए । खैबर का दर्रा बन्द कर दिया गया । अमीर खां ने फिर अफगान सरदार से टक्कर ली । वह Fight में हारकर भाग गया । उसके दस हजार सिपाही मारे गए ।

विद्रोहियों ने दो करोड़ की सम्पत्ति छीन ली । इस सफलता से अन्य विद्रोही भी उसके साथ हो गए । खुशहाल खट्टक भी इनके साथ आ मिला । उन्हें दबाने में मुगल सरदार शुजात खां पराजित हो गया । राजपूत सैनिकों ने समय पर पहुंच कर उसकी जान बचार्इ । इस विद्रोह के कारण औरंगजेब को साल भर पेशावर में ही रहना पड़ा । औरंगजेब ने अपनी कुटनीतिक चालों से किसी तरह अफगानों को आपस में लडाकर शान्ति प्राप्त की । अफगानों के विद्रोह ने औरंगजेब को थका दिया ।

इन विद्रोहों को दबाने के लिए खजाने का बहुत बड़ा भाग निकल गया । इस संघर्ष में बड़े-बड़े सैनिक अधिकारी मारे गए तथा औरंगजेब को दक्षिण से अपनी दृष्टि हटानी पड़ी। इससे दक्षिण में शिवाजी के नेतृत्व में मराठों को सिर उठाने का अच्छा अवसर मिला । आगे चलकर विद्रोहों को दबाते-दबाते मुगल साम्राज्य भी डगमगा गया । उसके पतन की प्रक्रिया यही से प्रारम्भ हुर्इ ।

4. सिक्ख विद्रोह- 

जहांगीर ने 1706 इर्. में सिक्खों के गुरू अर्जुनसिंह का वध करवा दिया था, उसी समय से मुगलों के विरोध में सिक्खों के विद्रोह होते रहे । औरंगजेब की नीति के कारण मुगल-सिक्ख संघर्ष को और अधिक बढ़ावा मिला । जब औरंगजेब गद्दी पर बैठा उसक समय सिक्खों के गुरू तेगबहादुर थे । औरंगजेब की हिन्दू विरोधी नीति का विरोध Reseller । क्रोधित होकर औरंगजेब ने तेगबहादुर को पकड़कर इस्लाम धर्म स्वीकार करने मजबूर Reseller, किन्तु स्वीकार न किये जाने पर गुरू तेगबहादुर की औरंगजेब ने 1675 र्इ. में हत्या करवा दी । इस हत्या से सिक्खों का क्रोध भड़क उठा और वे मुगलों के घोर शत्रु बन गए । तेगबहादुर के पुत्र गुरू गोविन्द सिंह ने अपने पिता का बदला लेने की दृढ़ निश्चय Reseller । सिक्खों ने सैनिक सामग्री Singleत्रित कर मुगलों का सामना भी Reseller । Fight में गुरू गोविन्द सिंह के दो पुत्र भी मारे गए । फिर भी सिक्खों ने हार नहीं मानी औरंगजेब को परेशान करते ही रहे । विवश होकर औरंगजेब ने सिक्खों से सन्धि करना चाहा, लेकिन 1707 र्इ. में बीच में ही औरंगजेब की मृत्यु हो गर्इ । फिर भी सिक्खों का संघर्ष जारी रहा । अन्त में मुगल साम्राज्य के पतन में सिक्खों का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।

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