महिला सशक्तिकरण के उपाय

महिला सशक्तीकरण के उपाय 

1. विशेष विवाह अधिनियम, 1954

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 बिना किसी धार्मिक महत्व के विवाह के संबंध में उपबन्ध करता है। अधिनियम की धारा 4 के According किसी भी धर्म के दो वयस्क व्यक्ति विवाह कर सकते हैं बशर्ते कि पक्षकार प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर नहीं है या किसी Second धार्मिक संस्कारों के भीतर किसी अन्य व्यक्ति के साथ उनका विवाह न हुआ हो या जीवित पति/पत्नी विवाह के समय न हो।

अधिनियम की धारा 5 के According पक्षकारों को विवाह करने के लिए उस जिले के विवाह अधिकारी (Marriage Officer) को लिखित Reseller से सूचना देनी होगी जिसमें कम से कम Single पक्षकार 30 दिन अथवा अधिक अवधि से रह रहा हो। उक्त नोटिस विवाह पंजीकरण कार्यालय (Marriage Registry Office) में प्रमुख स्थान पर चस्पा कर दी जाती है। चस्पा करने की तिथि के बाद 30 दिन से First विवाह तथा उसका पंजीकरण नहीं होगा परन्तु 3 माह के अन्दर हो जाना चाहिए। विवाह अधिकारी द्वारा विवाह का पंजीकरण 3 (तीन) गवाहों की उपस्थिति में Reseller जाता है तथा विवाह प्रमाण पत्र संबंधित पति-पत्नी को निर्गत कर दिया जाता है। अधिनियम की धारा 7 के According सूचना के 30 दिवस के दौरान कोर्इ व्यक्ति विवाह होने के संबंध में आपत्ति कर सकता है यदि अधिनियम में उल्लिखित आधारों पर विवाह अवैध हो। ऐसी आपत्ति के सत्य पाये जाने पर विवाह अधिकारी विवाह सम्पादन के लिए इन्कार कर सकता है।

2. विदेशी विवाह अधिनियम, 1969

अधिनियम की उद्देशिका से ज्ञात होता है कि Indian Customer नागरिकों के भारत के बाहर होने वाले विवाहों के संबंध में यह अधिनियम उपबन्ध करता है। इस अधिनियम के प्रख्यापन (Promulgation) के पूर्व ऐसे विवाह विशेष विवाह अधिनियम 1954 (Special Marriage Act, 1954) के उपबन्धों के अधीन होते थे। उस समय भी ऐसे विवाह के All पहलुओं के संबंध में अधिनियम में प्रावधान नहीं था अत: उस समय भी कुछ अनिश्चिततायें थीं। अनिश्चितताओं को दूर करने के लिए Single व्यापक कानून की Need थी, अत: अधिनियम पारित Reseller गया। यह अधिनियम भारत से बाहर होने वाले ऐसे विवाह जिनमें दोनों पक्षकार Indian Customer हों या कम से कम Single पक्षकार Indian Customer हो, से संबंधित विधि को अधिक्रान्त न करके बल्कि अनुपूर्ति (Supplement) करता है।

3. विवाह विधि (संशोधन) अधिनियम,  1976 

यह संशोधन अधिनियम हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 तथा विशेष विवाह अधिनियम 1954 के उपबन्धों में और अधिक सुधार लाने के आशय से पारित Reseller गया था।

हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 के बहुत से उपबन्ध पूरी तरह से संशोधित कर दिये गये हैं जिससे कि हिन्दुओं के विवाह And विवाह विच्छेद संबंधी समस्याओं के निराकरण में सुविधा मिलेगी। संशोधन हो जाने से विवाह विच्छेद संबंधी कार्यवाही में कम समय लगता है। निम्नलिखित संशोधन स्त्रियों के सशक्तीकरण को केन्द्र में रखकर किए गए हैं।

  1. न्यायिक पृथक्करण के लिए उपलब्ध All आधार अब विवाह विच्छेद के लिए भी उपलब्ध हैं। अब Single हिन्दू अभित्यजन या क्रूरता के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री के लिए दावा कर सकता है। 
  2. पति या पत्नी में से किसी ने भी यदि किसी अन्य व्यक्ति (स्त्री या पुरुष) के साथ केवल Single बार भी स्वेच्छया मैथुन Reseller है तो यह विवाह विच्छेद का आधार होगा। 
  3. अब वह पत्नी जिसको कि किसी अन्य विधि के अन्तर्गत भरण-पोषण प्राप्त करने का आदेश प्राप्त हो गया है, भी विवाह-विच्छेद की डिक्री प्राप्त कर सकती है। 
  4. पारस्परिक Agreeि के आधार पर विवाह विच्छेद का उपबन्ध Reseller गया है, इस आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त करने के लिए पक्षकारों को याचिका दायर करने के उपरान्त केवल छ: माह प्रतीक्षा करनी है। यद्यपि 18 माह व्यतीत होने के First विवाह विच्छेद की डिक्री प्राप्त हो जानी चाहिये। 
  5. तात्विक तथ्यों (Material Facts) के बारे में किसी प्रकार का दुव्र्यपदेशन (Misrepresentation) हिन्दू विवाह को शून्य घोषित कराने के लिए Single अन्य आधार है। 
  6. Single अवयस्क लड़की अपना विवाह 15 वर्ष की आयु प्राप्त करने के उपरान्त लेकिन 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने से First निराकृत (Repudiate) कर सकती है 
  7. यदि दूसरा पक्षकार या तो भारत के बाहर रहता है या Seven वर्ष या उससे अधिक समय तक उसके बारे में पता नहीं चलता है तो ऐसे मामलों में अधिनियम के अन्तर्गत याचिका उस क्षेत्र में न्यायालय में दाखिल की जा सकती है जहाँ पर याची निवास करता है। 
  8. विवाह संबंधी याचिका के शीघ्र निस्तारण हेतु उपबन्ध Reseller गया है कि छ: माह की अवधि के अन्दर निस्तारण हो जाना चाहिए तथा अपील का निस्तारण उसके बाद 3 माह के अन्दर हो जाना चाहिए। 
  9. अब विवाह विच्छेद के बाद पति या पत्नी तुरन्त पुनर्विवाह कर सकते हैं।
  10. न्यायिक पृथक्करण के उपरान्त विवाह विच्छेद हेतु याचिका दायर करने के लिए दो वर्ष से कम करके Single वर्ष की अवधि कर दी गर्इ है।
  11. पति या पत्नी अपने विवाह से Single वर्ष बाद ही विवाह विच्छेद हेतु याचिका दायर कर सकते हैं। 
  12. प्रत्येक विवाह संबंधी मामलों की सुनवार्इ बन्द कमरे में होगी। ख्धारा 22,

4. दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961

 इस अधिनियम के अन्तर्गत दहेज लेना और देना दोनों ही प्रतिषेधित है। अधिनियम की धारा 2 के According ‘दहेज’ का अभिप्राय विवाह के Single पक्ष द्वारा Second पक्ष के लिए या विवाह के किसी पक्ष के माता-पिता या अन्य व्यक्ति द्वारा विवाह के Second पक्ष या किसी अन्य व्यक्ति के लिए विवाह करने के संबंध में दी जाने वाली किसी सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति से है। चाहे यह सम्पत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति विवाह के समय या उसके पूर्व या बाद किसी भी समय दी गर्इ हो, परन्तु दहेज की परिधि में आन के लिए आवश्यक है कि यह विवाह के संबंध में दी गर्इ हो। इसमें तीसरा अवसर ‘विवाह के बाद किसी समय’ कभी न समाप्त होने वाली अवधि प्रतीत होती है परन्तु यहाँ पर Word ‘कथित पक्षों के विवाह के संबंध में’ निर्णायक हैं। अत: पारम्परिक भुगतान जैसे बच्चे के जन्म या Second समारोहों में जो कि विभिन्न समाजों में दिये जाते हैं, ‘दहेज’ की परिधि में नहीं आते।

अधिनियम की धारा 3(1) के According जो कोर्इ भी दहेज देता है या लेता है अथवा लेने या देने के लिए दुष्पे्ररित करता है, तो वह ऐसी अवधि के कारावास से जो पाँच वर्ष की होगी और 15,000 रुपयों या ऐसे दहेज के मूल्य की रकम के जो भी अधिक हों, हो सकने वाले जुर्माने से दण्डित Reseller जायेगा। अधिनियम की धारा 3(1) के According न्यायालय यथोचित और विशेष कारणों से पाँच वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड दे सकता है। धारा 4 के According यदि कोर्इ व्यक्ति प्रत्यक्षत: या परोक्षत: वर या वधू के माता-पिता या अन्य रिश्तेदारों से दहेज माँगता है तो वह छह मास से दो वर्षों तक के कारावास और 10,000 रुपयों के जुर्माने से दण्डित Reseller जा सकता है।

क्योंकि धारा 3(1) के According दहेज लेने और देने वाले दोनों ही पक्षों को सजा दी सकती है अत: दहेज के संबंध में प्राय: शिकायत नहीं की जाती।

धारा 5 के According दहेज देने या लेने के लिए किये गये All करार व्यर्थ होंगे।

धारा 6 के According जब कोर्इ दहेज उस स्त्री के अतिरिक्त, जिसके संबंध में वह प्राप्त Reseller गया हो, अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त Reseller जाता है, तो वह व्यक्ति दहेज उस स्त्री को विवाह से तीन मास के भीतर हस्तान्तरित कर देगा, यदि दहेज विवाह के पूर्व प्राप्त Reseller गया हो। यदि दहेज विवाह के समय या विवाह के बाद अन्य व्यक्ति द्वारा प्राप्त Reseller गया हो, तो ऐसी प्राप्ति के दिनांक से तीन मास के भीतर उस स्त्री को हस्तान्तरित कर देगा। यदि स्त्री अवयस्क हो तो उसके द्वारा 18 वर्ष की आयु पूरी कर लेने के तीन मास के भीतर वह अन्य व्यक्ति जिसने दहेज प्राप्त Reseller हो, उस स्त्री को हस्तान्तरित कर देगा। इसका उल्लंघन करने पर 6 माह से 2 वर्ष तक के कारावास या 10,000 रुपये तक के जुर्माने या दोनों से दण्डित Reseller जा सकता है। न्यायालय ऐसे मामलों में 6 माह के कारावास के दण्ड को कम नहीं कर सकता है।

यदि दहेज प्राप्त करने के पूर्व स्त्री की मृत्यु हो जाती है, तो उस स्त्री के वारिस उस सम्पत्ति को तत्समय धारण करने वाले व्यक्ति से पाने के लिए दावा कर सकते हैं।

धारा 4-क के According यदि कोर्इ व्यक्ति विवाह के उपलक्ष्य में अपनी सम्पत्ति में किसी अंश या धन या दोनों देने हेतु विज्ञापन देता है तो यह दण्डनीय अपराध है। ऐसे अपराध 6 मास से 5 वर्ष तक के कारावास या 15,000 रुपये तक के जुर्माने से दण्डनीय है। परन्तु यथोचित And विशेष कारणों से 6 माह से कम कारावास का दण्ड दिया जा सकता है। इस अधिनियम के अन्तर्गत अपराध असंज्ञेय तथा गैर जमनतीय होते हैं। (धारा 8) अधिनियम की धारा 7 के According इस अधिनियम के अन्तर्गत घटित होने वाले अपराधों को न्यायालय स्वयं के ज्ञान या पुलिस रिपोर्ट पर या पीड़ित पक्षकार या पीड़ित पक्षकार के माता-पिता अथवा अन्य रिश्तेदार या किसी मान्यता प्राप्त कल्याण संस्था या संगठन द्वारा किये गये परिवाद पर संज्ञान में ले सकता है।

अधिनियम की धारा 6(3) के According विवाह के बाद Seven वर्ष की अवधि के भीतर यदि अप्राकृतिक कारणों से किसी महिला की मृत्यु हो जाती है तो पति And उसके परिवार के लोगों को यह साबित करना पड़ेगा कि दहेज की मांग के कारण महिला की मृत्यु नहीं हुर्इ है। Indian Customer साक्ष्य अधिनियम में भी धारा 114-ए जोड़कर तदनुसार परिवर्तन कर दिया गया है। ऐसे मामलों में महिला की पूरी सम्पत्ति-

  1. यदि वह नि:सन्तान है, तो उसके माता-पिता को अन्तरित हो जायेगी; 
  2. यदि उसके सन्तान हैं, तो उसकी सन्तानों को अन्तरित हो जायेगी और ऐसे अन्तरण के लम्बित रहने के दौरान, सन्तानों के लिए न्यास में धारित की जायेगी। 

दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की धारा 8ख के अन्तर्गत अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकार दहेज प्रतिषेध अधिकारी (Dowry Prohibition Officer) नियुक्त कर सकती है, परन्तु कर्इ राज्यों द्वारा उनकी Appointment नहीं की गर्इ है। धारा 8ख(4) के According राज्य सरकार दहेज प्रतिषेध अधिकारियों को उनके कार्यों के प्रभावी सम्पादन में सलाह देने और सहायता करने के लिए संबंधित क्षेत्र से, अधिक से अधिक पाँच सामाजिक कल्याण कार्यकर्ताओं (जिसमें कम से कम दो महिलायें, होंगी) के सलाहकार बोर्ड की Appointment करेगी।

5. प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 

Indian Customer संविधान द्वारा महिलाओं के लिए न केवल लोक नियोजन के विषय में समान अवसर, समान कार्य के लिये समान वेतन आदि का उपबन्ध Reseller गया है, बल्कि उनके हित में विशेष उपबन्ध भी किये जा सकते हैं।

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 की धारा 5(2) के According कोर्इ भी स्त्री प्रसूति प्रसुविधा की तब तक हकदार न होगी, जब तक उसने अपने प्रत्याशित प्रसव की तरीख के पूर्ववर्ती बारह मासों में कम से कम अस्सी दिवस तक किसी स्थापन (Organization) में कार्य न Reseller हो।

अधिनियम की धारा 4(1) के According कोर्इ भी नियोजक किसी स्त्री को उसके प्रसव या गर्भपात या गर्भ के चिकित्सीय समापन के दिन के ठीक बाद (Immediately following) छह सप्ताह के दौरान किसी स्थापन (Establishment) में जानते हुए नियोजित नहीं करेगा। धारा 4(2) के According कोर्इ भी स्त्री अपने प्रसव या गर्भपात या गर्भ के चिकित्सीय समापन के दिन के ठीक बाद (Immediately following) छह सप्ताह के दौरान किसी स्थापन (Establishment) में काम नहीं करेगी।

धारा 4(3) के According धारा 6 के उपबन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना किसी भी गर्भवती स्त्री से उसके द्वारा प्रार्थना किये जाने पर, उपधारा (4) में उल्लिखित कालावधि के दौरान उसके नियोजक द्वारा कोर्इ ऐसा काम करने की अपेक्षा नहीं की जायेगी जो कठिन प्रकृति का हो या जिसमें लम्बे समय तक खड़ा रहना पड़े या जिससे उसके गर्भवातित्व (Pregnancy) या भ्रूण (foetus) के प्रसामान्य विकास (Normal development) में किसी भी प्रकार विघ्न की सम्भावना हो या जिससे उसका गर्भपात होने या उसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो।

प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम, 1961 की धारा 5(1) के According, इस अधिनियम के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुए, हर स्त्री वास्तविक अनुपस्थिति की कालावधि के लिए औसत दैनिक मजदूरी (Average dailywage) की दर से प्रसूति प्रसुविधा की हकदार होगी तथा नियोजक इसके लिए उत्तरदायी होगा। यानि कि हर स्त्री अपने प्रसव के दिन के ठीक पूर्व की कालावधि, प्रसव के वास्तविक दिन तथा प्रसव के दिन के ठीक वाद की किसी कालावधि के लिए प्रसूति प्रसुविधा की हकदार होगी तथा नियोजक इसके लिए उत्तरदायी होगा।

धारा 5(3) के According कोर्इ स्त्री अधिकतम बारह सप्ताह की कालावधि के लिए प्रसूति लाभ की हकदार होगी जिसमें से, उसकी अपेक्षित प्रसव (expected delivery) की तिथि के पूर्व की अधिकतम कालावधि छह सप्ताह होगी। लेकिन यदि कोर्इ स्त्री इस कालावधि के दौरान मर जाये, वहाँ प्रसूति प्रसुविधा उसकी मृत्यु के दिन तक के लिए ही, (जिसके अन्तर्गत मृत्यु का दिन भी सम्मिलित होगा) संदेय (Payable) होगी। धारा 11 के According हर प्रसूता स्त्री को जो प्रसव के बाद काम पर वापस आती है उस विश्रामार्थ अन्तराल (Interval for rest) के अतिरिक्त जो उसे अनुज्ञात (Allow) है, अपने दैनिक काम की चर्या में (in the course of her daily work) विहित कालावधि (Prescribed duration) के दो विराम (Breaks) शिशु के पोषण (Nursing) के लिए तब तक अनुज्ञात होंगे, जब तक वह शिशु पन्द्रह मास की आयु पूरी न कर लें।

6. महिलाओं का अशिष्ट Resellerण (निषेध) अधिनियम, 1986

महिलाओं का Resellerण दो प्रकार से प्रदर्शित Reseller जाता है। Single तरफ उसे सच्चरित्र, सरल And आज्ञाकारी महिला के Reseller में दिखाया जाता है तथा दूसरी ओर अशिष्ट And सेक्स से संबंधित Resellerण Reseller जाता है उसे आज व्यावसायिक प्रचार-प्रसार का माध्यम बना दिया गया है। मॉडलिंग के नाम पर अंग प्रदर्शन Single सामान्य बात हो गर्इ है। सौन्दर्य प्रतियोगिताओं में नारियों को अर्द्धनग्न अवस्था में प्रस्तुत Reseller जाता है। इसके निवारण हेतु संसद द्वारा वर्ष 1986 में महिलाओं का अशिष्ट Resellerण (निषेध) अधिनियम पारित Reseller गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत महिलाओं का किसी भी प्रकार से अशिष्ट Resellerण निषेध Reseller गया है।

अधिनियम की धारा 2(ग) के According महिलाओं का अशिष्ट Resellerण (Indecent representation of women) का Means है, स्त्री की आकृति, उसके Reseller या शरीर अथवा उसके किसी भाग का ऐसी रीति से वर्णन जो उसके शिष्ट होने या अल्पीकृत करने पर या महिलाओं के चरित्र को कलंकित करने के प्रभाव के Reseller में हो या जिससे दुराचार, भ्रष्टाचार या लोक दूषण, अथवा नैतिकता को हानि पहुँचने की, सम्भावना हो।

अधिनियम की धारा 4 में दिखार्इ देने वाले All प्रकार के अशिष्ट Resellerण को सम्मिलित Reseller गया है। जैसे लेखन, पुस्तक, पेपर, स्लार्इड, फिल्म आदि। परन्तु ऐसा Resellerण जो धार्मिक महत्व का हो या कला अथवा विज्ञान के उद्देश्य से हो ‘अशिष्ट Resellerण’ में सम्मिलित नहीं Reseller गया है। ऐसा Resellerण जो जन कल्याण के लिए हो या शिक्षा के लिए हो या शारीरिक चिकित्सा के लिए हो, ‘अशिष्ट Resellerण’ की श्रेणी में नहीं रखा गया है।

अधिनियम की धारा 6 के According, धारा 3 या 4 का प्रभम बार उल्लंघन करने पर दो वर्ष तक के कारावास तथा दो हजार रुपये तक के जुर्माने से दण्डित Reseller जा सकता है। धारा 3 या 4 का पुन: उल्लंघन करने पर कम से कम छ: मास तथा अधिकतम पाँच वर्ष तक के कारावास से कम से कम दस हजार रुपये व अधिकतम Single लाख रुपये तक के जुर्माने से दण्डित Reseller जा सकता है।

अधिनियम की धारा 5 के According कोर्इ प्राधिकृत राजपत्रित अधिकारी उचित समय में ऐसे स्थान की तलाशी ले सकता है जहाँ पर महिलाओं के अशिष्ट Resellerण से संबंधित पदार्थ मौजूद है। लेकिन वह बिना वारण्ट के किसी व्यक्तिगत निवास गृह में प्रवेश नहीं कर सकता। यदि पाया गया ऐसा कोर्इ रिकार्ड, रजिस्टर, दस्तावेज या अन्य कोर्इ मौलिक पदार्थ साक्ष्य हो सकता है तो वह उसे अभिगृहीत कर सकता है और रख सकता है जब तक कि इस संबंध में मजिस्ट्रेट से अन्यथा आदेश प्राप्त न हो जाये।

इस प्रकार की सामग्री के उत्पादन, प्रयोग या प्रसार में संलग्न कोर्इ व्यक्ति या कम्पनी अभियोजन हेतु उत्तरदायी है। अधिनियम की धारा 8 के According इस प्रकार के अपराध संज्ञेय तथा जमानतीय होंगे।

7. सती (निवारण) अधिनियम, 1987

वित्तीय या राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस प्रकार के आपराधिक शोषण के विरुद्ध कार्यवाही करने हेतु अधिनियम में उपबन्ध किये गये हैं।

अधिनियम की धारा 4(1) के According यदि कोर्इ स्त्री सती होती है, तब जो कोर्इ ऐसे सती होने का प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्ष Reseller से दुष्प्रेरण (Abetment) करता है, वह मृत्युदण्ड से या आजीवन कारावास से दण्डित Reseller जायेगा तथा जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

धारा 4(2) के According यदि कोर्इ स्त्री सती होने का प्रयास करती है तब जो कोर्इ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष Reseller से ऐसे प्रयास का दुष्पे्ररण करेगा, वह आजीवन कारावास से दण्डित Reseller जायेगा तथा जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।

अधिनियम की धारा 2(1)(स) के According ‘‘सती’’ का Means-

  1. विधवा को उसके मृत पति के शव या किसी रिश्तेदार के शव या किसी वस्तु, पदार्थ या सामग्री, जो उसके पति या रिश्तेदार से संबंधित हो, के साथ जीवित जलाना, या गाड़ना है, या 
  2. इस तथ्य को बिना विचार किये कि, ऐसा गाड़ना या जलाना, उस विधवा या स्त्री द्वारा उसकी ओर से स्वैच्छिक है या अन्यथा है, किसी स्त्री को उसके किसी संबंधी के शव के साथ गाड़ना या जलाना है। 

धारा 2(1)(ब) के According ‘‘गौरवान्वित करना’’ (गौरव बढ़ाना) का तात्पर्य-

  1. सती के संबंध में कोर्इ जुलूस निकालना या उत्सव मनाना, या 
  2. सती प्रथा को न्यायोचित ठहराना, समर्थन करना या प्रचार करना, या 
  3. जिसने सती की हो, उस व्यक्ति की स्तुति करने हेतु किसी कार्यक्रम का आयोजन करना, या 
  4. जिसने सती Reseller हो, उसकी स्मृति Windows Hosting रखने या उसके सम्मान को स्थायी बनाने के लिए किसी न्यास का निर्माण करना या राशि Singleत्रित करना, या किसी मन्दिर का निर्माण करना है।

अधिनियम की धारा 7 के According ऐसे All मन्दिर हटाये जाने हैं। धारा 5 के According जो कोर्इ सती का गौरव बढ़ाने हेतु कोर्इ कार्य करेगा, वह Single वर्ष से Seven वर्ष तक के कारावास और 5,000 से 30,000 रुपये तक के जुर्माने से दण्डनीय होगा। सती के नाम पर Singleत्र की गर्इ All सम्पत्ति जब्त कर ली जायेगी।

7. घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005

महिलाओं के प्रति उनके कुटुम्ब के भीतर ही होने वाली हिंसा से संरक्षण के लिए घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 को पारित Reseller गया है। अधिनियम की धारा 2 के अन्तर्गत पीड़ित व्यक्ति से तात्पर्य किसी ऐसी महिला से है जो प्रत्युत्तरदाता की घरेलू रिश्ते में है या रही है और जिसका अभिकथन है कि वह प्रत्युत्तरदाता द्वारा किसी घरेलू हिंसा के अधीन रही है। अधिनियम की धारा 3 के According प्रत्युत्तरदाता का कोर्इ कार्य या लोप घरेलू हिंसा गठित करेगा यदि वह-

  1. पीड़ित व्यक्ति के स्वास्थ्य, Safty जीवन अंग की या चाहे उसकी मानसिक या शारीरिक भलार्इ की क्षति करता है, या उसे कोर्इ हानि पहँुचाता है या उसे संकटयुक्त करता है या उसकी ऐसा करने की प्रवृत्ति है और जिसके अन्तर्गत शारीरिक दुरुपयोग, लैंगिक दुरुपयोग, मौखिक और भावनात्मक दुरुपयोग और आर्थिक दुरुपयोग कारित करना भी शामिल है। 
  2. किसी दहेज या अन्य संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति के लिए किसी विधि विरुद्ध मांग की पूर्ति के लिए उसे या उससे संबंधित किसी अन्य व्यक्ति को प्रपीडित करने की दृष्टि से पीड़ित व्यक्ति का उत्पीड़न करता है या उसकी अपहानि करता है या उसे क्षति पहँुचाता है या संकट में डाल देता है। यदि कोर्इ महिला घरेलू हिंसा की शिकार है तो उसके निम्न अधिकार होंगे-
    1. धारा 5 के अन्तर्गत उन अधिकारों तथा उन अनुतोषों के विषय में जानकारी के बारे में संरक्षणकर्ता And सेवा प्रदाता की सहायता Reseller जाना जिसे आप कर सकती हैं। 
    2. सरंक्षण अधिकारी की सहायता और सेवा प्रदाता या निकटतम पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी की शिकायत दर्ज करने सहायता और धारा 9 और 10 के अनुतोश हेतु आवेदन।
    3. धारा 18 के अन्तर्गत घरेलू हिंसा के कार्यों से स्वयं या स्वयं के बच्चों के लिये सरंक्षण प्राप्त करना। 
    4. उन खतरों और अSaftyओं से जिससे आप का बच्चा सामना कर रहा है सरंक्षण, उपाय और आदेश पाने का अधिकार।
    5. धारा 10 के अन्तर्गत उस घर में रहने वाली घरेलू हिंसा का शिकार हुर्इ और उक्त आवास में रहने वाले व्यक्तियों के हस्तक्षेप में बाधा उत्पन्न करने तथा घर तथा उसमें निहित सुविधाओं व शांतिपूर्ण उपभोग And बच्चों के अधिकार के विषय में। 
    6. धारा 18 के अधीन आपके स्त्रीधन, आभूषण कपड़ों और दैनिक उपयोग की वस्तुओं और अन्य घरेलू चीजों को वापस कब्जे में लेना। 
    7. धारा 6, 7 धारा 9 और धारा 14 के अन्तर्गत चिकित्सीय सहायता, आश्रय परामर्श और विधिक सहायता लेना।
    8. धारा 18 के अन्तर्गत घरेलू हिंसा कर्ता को आप से सम्पर्क और पत्राचार रोकने हेतु।
    9. धारा 22 के अधीन घरेलू हिंसा के कारण शारीरिक पीड़ा या मानसिक क्षति या किसी धन संबंधी क्षति हेतु क्षतिपूर्ति।
    10. अधिनियम की धारा 12, धारा 18, और 19, धारा 20, धारा 21, धारा 22 और धारा 23 के अधीन शिकायत करने या अनुतोष प्राप्त करने हेतु किसी न्यायालय के सम्मुख कार्यवाही। 
    11. की गर्इ शिकायतों, आवेदनों किसी चिकित्सीय रिपोर्ट या अन्य रिपोर्ट को जो आप के द्वारा दर्ज करायी जाती है या आपके बच्चे द्वारा उसकी प्रतियाँ प्राप्त करना। 
    12. घरेलू हिंसा के विषय में किसी प्राधिकारी के द्वारा अभिलिखित किसी कथन की प्रतियाँ प्राप्त करना। 
    13. किसी खतरे से बचाव हेतु पुलिस या संरक्षण अधिकार से सहायता प्राप्त करना।

8. राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम , 1990

वर्ष 1990 में, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम पारित हुआ। राष्ट्रीय महिला आयोग महिलाओं के सशक्तीकरण का Single अन्य महत्वपूर्ण उपकरण है।

अधिनियम की धारा 3(1) के According केन्द्रीय सरकार राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन करेगी जो अधिनियम के अन्तर्गत दिये गये कार्यों का सम्पादन करेगा। आयोग अधिनियम की धारा 10 के अन्तर्गत उल्लिखित कार्यों का सम्पादन करेगा। जिनमें से मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  1. महिलाओं के लिए संविधान और अन्य विधियों के अधीन उपबन्धित रक्षोपायों (Safeguards) से संबंधित All विषयों का अन्वेषण (Investigation) और परीक्षा (Examine) करना 
  2. संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं को प्रभावित करने वाले विद्यमान (Existing) उपबन्धों का समय-समय पर पुनर्विलोकन (Review) करना और उनके यथोचित संशोधनों की सिफारिश करना;
  3. संविधान और अन्य विधियों के महिलाओं से संबंधित उपबन्धों के उल्लंघन के मामलों को समुचित प्राधिकारियों के समक्ष उठाना; 
  4. निम्नलिखित से संबंधित विषयों पर शिकायतों (Complaints) की जाँच करना और स्वप्रेरणा (Suo Motu) से ध्यान देना। 
    • महिलाओं के अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित मामले; 
    • महिलाओं को संरक्षण प्रदान करने वाली अधिनियमित (Enacted) विधियों के अक्रियान्वयन (Non-implementation) से संबंधित मामले 
    • संघ और किसी राज्य के अधीन महिलाओं के विकास की प्रगति का मूल्यांकन (Evaluation) करना, आदि। 

परन्तु आयोग कानून का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए अक्षम है। इसके द्वारा की गर्इ सिफारिशों पर समुचित ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके द्वारा जारी किये गये सम्मन को गम्भीरता से नहीं लिया जाता। महिला आयोग अपने सम्मन असिस्टेंट कमिश्नर ऑफ पुलिस के कार्यालय के माध्यम से भेज सकता है, समाचार पत्रों में प्रकाशित करवा सकता है या पोस्टर के Reseller में चिपकवा सकता है। परन्तु महिला आयोग शायद ही कभी ऐसा करता है। जब कभी भी कार्य करने के स्थान पर महिलाओं के यौन शोषण के मामले सामने आये हैं तो आयोग ने केवल शुरू में शोर ही मचाया है और ज्यादा कुछ नहीं Reseller है। आयोग बिना पोशाक के पुलिस नहीं है। इसके पास मजिस्ट्रेट की विधिक शक्तियाँ भी नहीं हैं। इसके सदस्य स्वयं स्वीकार करते हैं कि इसने अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं की है। उनका कहना है कि क्योंकि वे सरकार पर निर्भर हैं अत: उनकी बहुत कम शक्तियाँ हैं। कोर्इ भी संस्था Second पर निर्भर होते हुए शक्तिशाली नहीं हो सकती।

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