महिलाओं से संबंधित कानून

यह अधिनियम पूरे भारत वर्ष में महिला कर्मचारियों पर लागू होता है। यह अधिनिमय अधिकतम 12 सप्ताह का अवकाश उन महिलाओं को प्रदान करता है जो मातृत्व सुख प्राप्त करती है। यह लाभ प्राप्त करने वाली महिला माँ बनने के दिन के ठीक First 6 सप्ताह तथा माँ बनने वाले दिन के ठीक बाद 6 सप्ताह का अवकाश लाभ प्राप्त कर सकती है।

महिलाओं से संबंधित कानून

2. मातृत्व And पितृत्व लाभ (1972) (सरकारी कर्मचारियों हेतु) –

केन्द्रीय सरकारी कर्मचारी (प्रत्यक्ष Reseller से भारत सरकार के अधीन) इस प्रकार के लाभ के अन्तर्गत आते है। इस लाभ के According महिला कर्मचारी को First दो जीवित सन्तानों के जन्म के समय 180 दिनों का मातृत्व अवकाश प्राप्त होगा। इस अवकाश के दौरान कर्मचारी को वही वेतन देय होगा जो अवकाश लेने के ठीक First देय रहेगा।

3. सन्तान देख भाल लाभ –

छठवें केन्द्रीय वेतन आयोग ने महिला कर्मचारियों हेतु पारिवारिक जिम्मेदारियों के निर्वहन हेतु सुविधा देने की सिफारिश की है। इसी आधार पर केन्द्र सरकार के अधीन कार्यरत ऐसी महिला कर्मचारियों को अधिकतम 2 वर्ष का सन्तान देखभाल अवकाश दिया जाता है जिनकी सन्तानें 18 वर्ष से कम आयु की हों। यह अवकाश सम्पूर्ण सेवाकाल के बीच कभी भी केवल दो बच्चों की बीमारी, पढ़ार्इ, परीक्षा या उनकी परवरिश जैसे कारणों हेतु लिया जा सकता हैं।

4. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (1948) –

कारखनों में तथा ऐसे अन्य प्रतिश्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों And उनके आश्रितों को बिमारी, सन्तान प्राप्ति, अपंगता तथा चिकित्सा लाभ हेतु आर्थिक सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से यह अधिनियम 1948 में लागू हुआ। यह अधिनियम ऐसे कारखानों में लागू होता है जो वर्ष भर व्यक्ति का प्रयोग करके चलते है तथा उनमें 10 या उससे अधिक कर्मचारी कार्य करते है साथ ही यह उन कारखानों पर भी लागू होता है जो बीस अथवा इससे अधिक कर्मचारी कार्यरत रखते है भले ही वह व्यक्ति प्रयोग न करते हों। इस लाभ को प्राप्त करने हेतु कर्मचारी व कारखाने का मालिक दोनों योगदान देते है तथा अनेक प्रकार की सुविधायें योग्य कर्मचारियों को बिमारी, मातृत्व लाभ, अपंगता जैसी अवधियों के दौरान आर्थिक सहायता प्रदान करके की जाती है। All चिकित्सा सुविधायें केवल चुनिन्दा कर्मचारी राज्य बीमा अस्पतालों, चिकित्सा इकार्इयों And स्वतन्त्र चिकित्सा व्यवसायी द्वारा ही प्रदान की जाती है।

वर्तमान समय में इस अधिनियम में लक्ष्य की गयी मजदूरी सीमा रू0 7500 से बढाकर रू0 10,000 प्रति माह कर दी गयी है Meansात् यह अधिनियम केवल उन्हीं कर्मचारियों पर लागू होता है जिनकी आय रू0 10,000 प्रति माह तक है। इस अधिनियम के According बीमित महिला कर्मचारी, गर्भाधान अथवा सम्बन्धित बिमारी के समय अपने वेतन का सत्तर प्रतिशत भाग मातृत्व लाभ के Reseller में प्राप्त कर सकती है। साथ ही यदि कर्मचारी मातृत्व लाभ प्राप्त कर रही है तो इस समयावधि में उसे नौकरी से हटाया या दण्डित नहीं Reseller जा सकता है।

5. मजदूरी भुगतान अधिनियम (1936) –

यह अधिनियम प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष Reseller से मजदूरी के निष्चित And नियमित भुगतान हेतु लागू Reseller गया है। यह अधिनियम बनाने का उद्देश्य मनमाने ढंग से नियोक्ता द्वारा मजदूरी दर में अनुपयुक्त कटौती तथा/अथवा मजदूरी भुगतान में अनियमितता व देरी को रोकना है। इस अधिनियम को बनाने व लागू करने के पीछे मंषा नियोक्ता द्वारा किये जा रहे मजदूरों के शोषण को रोकना व मजदूरों को उनके अधिकार व इसके साथ ही पूरी मजदूरी को प्राप्त करने हेतु सक्षम बनाना है।

6. समान भुगतान अधिनियम (1976) –

इस अधिनियम का उद्देश्य महिला कर्मियों को भी पुरुष कर्मियों के समान ही पारिश्रमिक दिलाना है। इस अधिनियम के According लिंग के आधार पर महिलाओं को पुरुषों से कम कजदूरी का भुगतान नहीं Reseller जाना चाहिये। भुगतान का आधार शारिरिक क्षमता व महिला-पुरुष न होकर Single व्यक्ति होना चाहियें तथा यह कदापि उचित नहीं कि औरतों को कम मजदूरी इस आधार पर दी जायेगी कि वो पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक Reseller से कमजोर होती है तथा कार्य करने का सामथ्र्य उनमें कम होता है। साथ ही वो पुरुषों की अपेक्षा कम कार्य निश्पादित कर पाती हैं।

7. न्यूनतम मजदूरी अधिनियम –

भारत सरकार द्वारा 1944 में Appointment श्रमिक जॉच समिति स्थायी श्रम समिति द्वारा तथा Indian Customer श्रम सम्मेलन में देश के कुछ उद्योगों और नियोजनों में कानूनी तौर पर मजदूरी नियत करने के प्रष्न पर विस्तार से विचार विमर्ष किये गये। समिति And सम्मेलन दोनो में कुछ नियोजनों में कानून के अन्तर्गत न्यूनतम मजदूरी की दरें नियत करने और इसके लिये मजदूरी नियतन संयंत्र की व्यवस्था की सिफारिश की ।इन अनुशसाओं को ध्यान में रखते हुये भारत सरकार ने 1948 में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम बनाया, जो उसी वर्ष देश मे लागू हुआ। समय-समय पर इस अधिनियम में संषोधन भी हुये है। महिलाओं हेतु इस अधिनियम का महत्व इसलिये बढ़ जाता है क्योंकि कार्य के बदले मिलने वाले परिश्रमिक में कहॉ भेदभाव न होने पाये। इस अधिनियम को जिन नियोजनों में लागू Reseller गया है वहॉ इस अधिनियम के अधीन न्यूनतम मजदूरी भूगतान के निरीक्षण हेतु नियुक्त निरीक्ष कइस बात पर निगरानी रखते है कि लिंग आधारित भेदभाव न होने पाये। राष्ट्रीय श्रम आयोग की सिफारिषों के According स्त्रियों के नियोजन के पूर्व ही नियोक्ता को उसकी Safty व कार्यस्थल पर प्राथमि Needओं की पूर्ति को प्रबन्ध करना आवश्यक होता है। इस कार्य हेतु आयोग ने Single अलग से कानून (सार्विक) भी बनाने की अनुषंसा की है। हॉलाकि यह सम्भव नहीं कि प्रत्येक जगह तथा All प्रकार के कार्यो की मजदूरी दर (न्यूनतम) Single दी हो और न ही ऐसा वांछित है। लेकिन, प्रत्येक राज्य में विभिन्न समResellerक्षेत्रों के लिये Single क्षेत्रीय न्यूनतम मजदूरी दर अधिसूचित की जा सकती है। First तथा द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग की सिफारिषो के आधार पर बहुत से प्राविधान इस अधिनियम के पुनरीक्षित किये जाने है, जिनमें First आयोग की सिफारिषों के According बदलाव हुये है परन्तु द्वितीय राष्ट्रीय श्रम आयोग (2002) की सिफारिषों की रिपोर्ट अभी तक सरकार के पास विचाराधीन है।

7. असंगठित मजदूर सामाजिक Safty अधिनियम (2008) –

केन्द्र, राज्य तथा स्थानीय स्तर पर ऐसी महिलायें जो असंगठित मजदूरी तथा स्व-रोजगार के क्षेत्र में हैं, के लिए यह अधिनियम लागू Reseller गया है। इस अधिनियम के द्वारा ऐसी महिला कर्मियों को सामाजिक Safty प्रदान करने का ध्येय है। स्थानीय, राज्य तथा केन्द्र स्तर पर असंगठित महिला कर्मचारियों And स्व-रोजगार में संलिप्त महिलाओं के कल्याण को ध्यान में रखकर विभिन्न प्रकार की योजनायें चलायी जा रही है। उन्हीं में से Single असंगठित मजदूर सामाजिक Safty अधिनियम (2008) भी है जो विभिन्न आकास्मिक विपरीत परिस्थितियों के विरूद्ध महिलाओं को सामाजिक Safty उपलब्ध कराती है।

8. घरेलू मजदूर अधिनियम 2008 (पंजीकरण, सामाजिक Safty And कल्याण) –

घरेलू महिलाओं And अन्य घरेलू वयस्क महिला मजदूरों के दोहन को रोकने, काम करने की दषाओं में सुधार तथा उनकी मजदूरी के नियमित भुगतान हेतु यह अधिनियम अस्तित्व में लाया गया है। घरेलू महिला मजदूर असंगठित क्षेत्र में आती है अत: उन्हें व उनके श्रम की पहचान अब तक उपेक्षित है। यद्यपि यह अधिनियम दोनों पुरुष And महिला घरेलू मजदूरों पर लागू होता है परन्तु प्राय: यह देखा जाता है कि घरेलू मजदूरी का कार्य पुरुषों की अपेक्षा महिलायें ही ज्यादा करती है। यही कारण है कि यह अधिनियम महिलाओं पर ही आधारित तथा उन्हीं के लिये विश्ेाष Reseller से बनाया हुआ प्रतीत होता है। यह अधिनियम राज्य आधारित अधिनियमों में से Single है अत: इस अधिनियम का अनुपालन अभी भी लम्बित हैं।

9. बागान श्रमिक अधिनियम (1951) –

यह अधिनियम बागान श्रमिकों को Safty तथा कार्य करने की परिस्थितियों को सुगम And सृदृढ बनाये रखने के लिये बनाया गया है। इस अधिनियम को बागान श्रमिकों के कल्याण की भावना को ध्यान में रखकर व उनके Windows Hosting कार्य परिस्थिति को सुचारू व सतत् रखा जा सके, इस आशय से लागू Reseller गया। बागान श्रमिक अधिनियम ऐसी भूमि पर लागू होता है जहॉ चाय, काफी, खर अथवा किसी और पौधे का उत्पादन 5 हेक्टेयर अथवा इससे अधिक क्षेत्रफल की जमीन पर व्यवसायिक Reseller से Reseller जा रहा हो तथा साथ ही पूर्ववर्ती बारह महीनों के किसी भी दिन उस कार्य क्षेत्र में पन्द्रह अथवा इससे अधिक मजदूरों ने श्रम कार्य Reseller हो। यह अधिनियम इस बात पर भी विशेष ध्यान देता है कि मजदूरों के पारिश्रमिक का नियमित व पूरा भुगतान हो तथा भुगतान में श्रमिकों को अकारण विलम्ब न हो। नियोक्ता द्वारा श्रमिकों का दोहन न हो, पारिश्रमिक में लिंग आधारित भेदभाव न हो। बागान श्रमिकों विशेषकर महिलाओं को व उनके आश्रितों को कार्यस्थल पर सुगमता व प्राथमिक सुविधाओं को उपलब्ध कराना भी इस अधिनियम का Singleउद्देश्य है जिससे उन्हें करने में किसी प्रतिकूल परिस्थिति का सामना न करना पडे़।

10. श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923 –

सन् 1923 में श्रमिक क्षतिपूर्ति अधिनियम पारित होने के साथ-साथ, सामाजिक Safty की शुरूआत हुर्इ। इसके अन्तर्गत कर्मचारियों और उनके आश्रितों को अपने सेवाकाल के दौरान किसी दुर्घटना (व्यवसायजन्य कुछ रोगों समेत) में मृत्यु या अपंग होने की स्थिति में मुआवजा देने का प्रावधान है। यह अधिनियम रेलवे कर्मचारियों और अधिनियम की अनुसूची दो मैं निर्दिश्ट किसी पद पर कार्यरत व्यक्तियों पर लागू होता है। अनुसूची दो में कारखानों, खानों, बागान, मशीन से चलने वाले वाहनों के संचालन, निर्माण-कार्यो और जोखिम वाले कुछ अन्य व्यवसायों में कार्यरत व्यक्ति शामिल हैं स्थायी व पूर्ण विकलांगता होने पर न्यूनतम मुआवजा राशि 90 हजार Resellerये और मृत्यु होने पर 80 हजार Resellerये निर्धारित की गर्इ है। कर्मचारी की आयु और वेतन के हिसाब से, मृत्यु होने पर अधिकतम मुआवजा 4.56 लाख Resellerये और स्थायी पूर्ण विकलांगता होने पर 5.48 लाख Resellerये निर्धारित Reseller गया है। इस कानून के बारे में मजदूरी की कोर्इ सीमा नहीं है। किन्तु यह कानून उन व्यक्तियों पर लागू नही होता जो कर्मचारी बीमा अधिनियम (1948) के अधीन आते हैं।

11. खान अधिनियम, 1952 – 

खान अधिनियम, 1952 और इसके तहत निर्मित नियमों और विनियमों में खानों में काम करने वाले श्रमिकों की Safty, स्वास्थ्य और कल्याण का प्रावधान रखा गया है। इन प्रावधानों को श्रम मंत्रालय, खान Safty महानिदेषालय द्वारा लागू करता है। महानिदेषालय का मुख्यालय धनबाद में है और इसके आंचलिक, क्षेत्रीय और उप क्षेत्रीय कार्यालय देष के All खनन क्षेत्रों में फैले हुए हैं। इसके मुख्य कार्य हैं – खानों का निरीक्षण, स्थिति की गम्भीरता के अनुReseller All घातक और गम्भीर दुर्घनाओं की जॉच-पड़ताल, विभिन्न खानों के परिचालन के सम्बन्ध में कानूनी स्वीकृति, छूट और ढील देना, खान Safty उपकरणों, यंत्रों और सामग्रियों की स्वीकृति देना तथा संवैधानिक क्षमता प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिए परीक्षण की व्यवस्था करना, Safty को प्रोत्साहन देने के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों और राष्ट्रीय Safty सम्मेलनों आदि का आयोजन करना।

12. कारखाना अधिनियम (1948) – 

यह अधिनियम कारखाने में कार्यरत श्रमिकों को Safty स्वास्थ्य उसके कार्यस्थल पर उस समय उपलब्ध कराने हेतु है ज बवह मशीनोंके साथ अथवा मशीनों पर कार्य कर रहे हों। यह अधिनियम श्रमिकों को कार्यस्थल पर कार्य करने के समय बेहतर वातावरण तथा कल्याण सुविधाओं को उपलब्ध कराता है। यह अधिनियम कार्य के घंटों को निष्चित करता है जिससे श्रमिकों का नियोक्ता द्वारा दोहन न Reseller जा सके। साथ ही कार्यावधि के अतिरिक्त कार्य करने पर श्रमिक को अतिरिक्त भुगतान भी दिलाता है। यह अधिनियम युवा पुरुषों व महिलाओं को रोजगार दिलाता है साथ ही मजदूरी भुगतान हेतु लिंग आधारित भेदभाव को भी रोकता है।

यह अधिनियम केवल कारखानों पर लागू होता है जहॉ कारखाना से अभिप्राय ऐसे परिसर से है जहॉ दस या अधिक कर्मकार काम कर रहे हो या पूर्ववर्ती बारह मास के किसी भी दिन काम कर रहे थे और जिसके किसी भाग में विनिर्माण प्रक्रिया, व्यक्ति की सहायता से की जा रही है या प्राय की जाती है अथवा ऐसे परिसर से है जहॉ बीस या उससे अधिक कर्मकार काम कर रहे है या पूर्ववर्ती बारह मास के किसी दिन काम कर रहे थे और जिसके किसी भाग में निर्माण प्रक्रिया व्यक्ति की सहायता के बिना की जा रही है या प्राय: की जाती है।

13. महिलाओं से सम्बन्धित अन्य सामाजिक अधिनियम:-

  1. दहेज प्रतिबन्ध अधिनियम (1961)
  2. सती प्रथा निरोधक अधिनियम (1988)
  3. अनैतिक देह व्यापार निरोधक अधिनियम (1956)
  4. आवश्यक विवाह पंजीकरण
  5. अधिनियम गर्भ परीक्षण रोक अधिनियम (1971)
  6. राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम (1990)
  7. Indian Customer तलाक अधिनियम (1969)

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