मनोविज्ञान की अवधारणा

शाब्दिक Reseller में मनोविज्ञान दो पदों से मिलकर बना है, मन And विज्ञान । इस दृष्टि से यदि देखें तो वैज्ञानिक तरीकों से मन का अध्ययन ही मनोविज्ञान है। Meansात् जिन तरीकों से, जिन विधियों से मन का अध्ययन Reseller जाना है वे वैज्ञानिक हों। यदि विज्ञान की कसौटी पर खरे उतरने वाले तरीकों से मन का अध्ययन Reseller जाता है तो ही उन्हें स्वीकार Reseller जाना चाहिए। विज्ञान की कसौटी पर विचार करने पर यह प्रश्न सहज ही उत्पन्न होता है कि ये विज्ञान क्या है? इसकी कसौटी क्या है?

करलिंगर नामक Single प्रसिद्ध विद्वान ने विज्ञान को परिभाषित करने हेतु Single बड़ी उत्तम उक्ति-कथन का प्रयोग Reseller है। उनका यह कथन इस प्रकार है – ‘विज्ञान सामान्य समझ का क्रमबद्ध Reseller से नियंत्रित विस्तार है’ (Science is the systematic and controlled extension of common sense)। इस कथन के Wordों के बड़े ही गूढ़ And गहरे निहितार्थ हैं। ‘सामान्य समझ’ वह समझ है जो कि सामान्य व्यक्तियों में उनके जीवन में घटने वाली विभिन्न प्रकार की घटनाओं के लिए होती है। जीवन में घटने वाली घटना केवल घटना नहीं होती है बल्कि उस घटना से पूर्व उसका कारण And उस घटना के पश्चात उसका परिणाम होता है। इस प्रकार प्रत्येक घटना में उसका कारण And प्रभाव विद्यमान होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामान्य समझ के अनुReseller घटना के कारण का अनुमान And संभावित परिणाम की व्याख्या करता है। जब यह सामान्य समझ नियंत्रित And निर्देशित हो जाती है Meansात् इस समझ को व्यवस्थित And क्रमबद्ध Reseller में दिशा मिल जाती है तब यह वैज्ञानिक ज्ञान प्रदान करने वाली हो जाती है। इसी समझ के विकास का वैज्ञानिक Reseller से अध्ययन करना ही मनोविज्ञान कहलाता है।

समझ को बोध (understanding) भी कहा जाता है। इस समझ के कर्इ स्वReseller होते हैं जिनमें वैचारिक समझ And भावनात्मक समझ प्रमुख हैं। परन्तु यह दोनों समझ स्थूल Reseller में दिखलार्इ नहीं पड़ती हैं। स्थूल Reseller में दिखलार्इ पड़ता है व्यवहार। इसीलिए कहा जाता है कि Human की समझ उसके व्यवहार में परिलक्षित होती है। परन्तु यह व्यवहार मनुष्य की सोच And भावनाओं/संवेगों पर आधारित होता है। इस प्रकार सार Reseller में यह परिभाषित Reseller जा सकता है कि ‘मानसिक प्रक्रियाओं And व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान ही मनोविज्ञान है।

मनोविज्ञान के अध्ययन की Need

मनोविज्ञान के अध्ययन की Need क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर हम All को अपने जीवन में झांकने से प्राप्त होता है। हम All अपने जीवन में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त विभिन्न प्रकार के अनुभवों से गुजरते हैं, And जिनमें घटनाओं को समझना, चुनौतियों से निबटना, संबंधों का विकास, रोग आदि सम्मिलित होते हैं। इन अनुभवों के प्रकाश में हम जीवन के महत्वपूर्ण पड़ावों में निर्णय लेते हैं। हमारे ये निर्णय कभी सही साबित होते हैं कभी गलत। कुछ परिस्थितियों में हमें स्पष्ट Reseller से ज्ञात होता है कि हम सही निर्णय कर रहे हैं वही कुछ परिस्थितयों में हम अस्पष्ट होते हैं। हमारे निर्णयों का सही And गलत होना हमें प्राप्त सूचनाओं की समझ And उनकी विश्लेषण कर पाने की क्षमता पर निर्भर करता है। इसके साथ ही हमारी भाव दशा And पूर्व अनुभव भी इसमें महत्वूपर्ण भूमिका निभाते हैं। सही निर्णय हमें सही परिणाम प्रदान करते हैं And हमें हमारे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। सही निर्णय हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं। ऐसी परिस्थिति में यह प्रश्न उठता है कि यह निर्णय लेने की प्रक्रिया किस प्रकार घटित होती है? कौन से कारक इसमें बाधक होते हैं? And कौन से कारक इसमें सहायक होते हैं? यदि इन प्रश्नों का समुचित उत्तर हमें प्राप्त हो सके तो हम निर्णय करने की प्रक्रिया को समझ सकते हैं। सार Reseller में यदि कहें तो अपने दैनिक जीवन में हम अपनी मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा संचालित होते हैं जिनके बारे में हमें निश्चित Reseller से जानना चाहिए। इसी कारण मनोविज्ञान के अध्ययन की Need है।

पाश्चात्य दृष्टिकोण में मनोविज्ञान

वर्तमान समय में पूरे विश्व में मनोविज्ञान का जो स्वReseller प्रचलित And प्रचारित हो रहा है उसमें व्यापक Reseller से पाश्चात्य दष्टिकोण ही परिलक्षित हो रहा है। मनोविज्ञान को पाश्चात्य दृष्टिकोण से जानने के लिए पाश्चात्य दर्शन में मन की अवधारणा को समझना आवश्यक है।

प्राचीन पाश्चात्य दृष्टिकोण में मन – पाश्चात्य दर्शन में मन के स्वReseller पर पर्याप्त विचार हुआ है, किन्तु यह Indian Customer दर्शन की परम्परा से सर्वथा हटकर हुआ है। Indian Customer दर्शन में जहॉं मन And आत्मा को अलग-अलग माना गया है वहीं पाश्चात्य दर्शन में मन And आत्मा को समतुल्य माना गया है। यूनानी दर्शन में सुकरात Single प्रमुख दार्शनिक हुए हैं उनकी दृष्टि में मन या जीवात्मा दैवी, नित्य, बोधगम्य, समान अविनाशी और अजर है। जबकि शरीर विनाशी, जड़, परिवर्तनशील और Destroy होने वाला है। प्लेटो भी आत्मा और मन में भेद नहीं मानते। उनके According आत्मा या मन शरीर व इन्द्रियों के नश्वर जगत् से परे का उच्चतर सत्य है। इसके वे तीन विभाग बताते हैं – बुद्धि (cognition), संकल्प (Will), और संवेदना (Sensation)। बुद्धि का धर्म ज्ञान है। First विभाग के अन्तर्गत वैचारिक क्षमता आती है। Second विभाग के अन्तर्गत व्यक्ति कोर्इ कार्य व्यवहार में उतारता है। Third विभाग, बुभूक्षा के अंतर्गत सुख की इच्छा, धन की कामना, भोजन की इच्छा तथा इसी तरह की अन्य शारीरिक इच्छाओं को रख सकते हैं। आगस्टीन का कथन है कि मनुष्य मन और शरीर का मिश्रण है और मन (आत्मा) सरल, चेतन तथा आध्यात्मिक तत्व है और शरीर से वास्तव में अलग है। वे मन की तीन शक्तियॉं बतलाते हैं – बुद्धि, संकल्प और स्मृति। वे शरीर का संचालन मन के द्वारा निर्देशित बताते हैं। महान दार्शनिक थोमस Single्विनो जो कि अरस्तू से काफी प्रभावित थे उनके According शरीर के प्रत्येक भाग में मन मौजूद है। बुद्धि प्रत्येक व्यक्ति के मन का भाग है। वे मन की दो शक्तियॉं मानते हैं – संवेदना (Sensation) और क्रियात्मक बुद्धि (Active intelligence) और उनके According ये शक्तियॉं ही मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने में सक्षम बनाती हैं।

1. आधुनिक पाश्चात्य दर्शन में मन की विवेचना

प्राचीन And मध्ययुगीन पाश्चात्य चिन्तन जहॉं धार्मिक प्रवृत्तियों से प्रभावित रहा, वहीं आधुनिक पाश्चात्य दर्शन का प्रारम्भ आधुनिक काल की बौद्धिक प्रवृत्तियों के बीच हुआ। इस दौर के दार्शनिकों में रेने देकार्त सर्वोपरि रहे। उन्हें आधुनिक दर्शन ही नहीं बल्कि आधुनिक दार्शनिक प्रणाली का पिता माना जाता है। देकार्त के According मनुष्य का मन अथवा आत्मा शरीर से पूर्णत: भिन्न है। मन स्वतंत्र, अभौतिक And विचारशील वस्तु है। मन का अस्तित्व स्वयं सिद्ध है। इस संदर्भ में देकार्त की यह उक्ति प्रसिद्ध है कि, मैं सोचता हॅूं, अत: मैं हॅूं। इसी तरह स्पिनोजा के मत में शरीर और मन दोनों आपस में समानान्तर हैं व इनमें कार्य-कारण का सम्बन्ध नहीं है। इस तरह मन में केवल चेतना नहीं है, बल्कि यह आत्मचेतन भी है, जिसे स्पिनोजा ने शरीर के प्रत्यय का प्रत्यय (Idea of the idea of body) कहा है।

अनुभववाद को मानने वाले दार्शनिक जानॅ लाक के According मनुष्य का मन प्रारम्भ में खाली पट्टी की तरह होता है, जिसमें कोर्इ चिह्न या प्रत्यय नहीं होता। अनुभव होने पर ही इसमें विचार या ज्ञान का उद्भव होता है। अनुभव से ज्ञान दो तरह का होता है – संवेदना द्वारा और चिन्तन द्वारा। संवेदना द्वारा ऐन्द्रिय गुणों का ज्ञान होता है और चिन्तन में प्रत्यक्ष, संवेग, विश्वास, विचार, तर्क, संकल्प जैसी मन की क्रियायें आती हैं।

डेविड् ह्यूम अनुभववाद को अपनी पराकाष्ठा पर पहॅुंचाने वाले दार्शनिक हुए हैं। उनके According मनया आत्मा नित्य और शाश्वत नहीं हैं, क्योंकि यह तथ्य अनुभवगम्य नहीं है और अनुभव के अतिरिक्त अन्य किसी का जगत में अस्तित्व नहीं है। आत्मा इन्द्रियों से अनुभव नहीं होती है, अत: वह असिद्ध है। ह्यूम के According मन उन विभिन्न संवेदनाओं के युग्म के अतिरिक्त कुछ नहीं है जो कि अचिन्तनीय तीव्रता के साथ Single के पीछे Single आते हैं। इस तरह मन या आत्मा मानसिक क्रियाओं को समूह भर है।

2. पाश्चात्य मनोविज्ञान के क्षेत्र में मन का स्वReseller निर्धारण

दर्शन And विज्ञान की तरह ही मनोविज्ञान के क्षेत्र में भी मन सम्बंधी विचार अभी विकास की प्रक्रिया में है और समग्र प्रतिपादन से सर्वथा दूर हैं। स्वतंत्र प्रयोगात्मक विज्ञान के Reseller में इसकी स्थापना सन 1879 में हुर्इ। तब से आधुनिक मनोविज्ञान की यह धारा साहचर्यवाद, संCreationवाद, प्रकार्यवाद, व्यवहारवाद, मनोविश्लेषण, संज्ञानात्मक मनोविज्ञान, Humanतावाद आदि विविध सम्प्रदायों के उद्भव विकास And संगठन के साथ अपनी विकास यात्रा पर गतिशील है। मन के सम्बंध में इनके विविध मत इस प्रकार हैं।

  1. साहचर्यवाद में मन- विलियम वुण्ट के प्रयासों के परिणामस्वReseller स्वतंत्र मनोविज्ञान के Reseller में मनोविज्ञान की स्थापना हुर्इ। वे मन की तत्व प्रकृति पर बल देते हुए इसके दो तत्व बताते हैं – संवेदना (sensation) और अहसास (feeling)। इन दोनों तत्वों के साहचर्य के साथ मानसिक क्रियाओं का निर्माण होता है। वुण्ट मन के अध्ययन हेतु अन्तर्दर्शन की विधि को महत्व देते हैं और मानसिक क्रियाओं की शारीरिक आधार पर व्याख्या करते हैं। वुण्ट मन तथा शरीर में Single प्रकार के समानान्तर समबंध की विवेचना करते हैं, पर यह स्पष्ट नहीं कर पाये हैं कि मन और शरीर Single Second के समानान्तर होते हुए भी किस प्रकार घनिष्ठ सम्बंध से सम्बन्धित हैं। 
  2. संCreationवाद में मन- संCreationवाद का प्रतिपादन टिचनर द्वारा Reseller गया है।वे मन और चेतना के बीच अन्तर करते हुए, मन को व्यक्ति के जन्म से लेकर मरण तक के अनुभवों के समुच्चय के Reseller में परिभाषित करते हैं और चेतना को, पल-पल होने वाले व्यक्ति के अनुभवों का समुच्चय बताते हैं। वे भी वुण्ट की तरह शरीर और मन के बीच समानान्तरवाद के पक्षधर हैं। वुण्ट ने जहॉं मन के दो घटक बताए थे- संवेदना और भावना। टिचनर इसमें Single ओर जोड़ देते हैं – प्रतिभा। यहॉं संवेदन इन्द्रियजन्य अनुभवों का आधार है, अहसास संवेगों में विद्यमान मूल तत्व है और प्रतिभा विचार, कल्पना और स्मृति का मूल आधार है। इसी तरह वे मानसिक तत्वों की चार विशेषतायें और बताते हैं – गुण, गहनता, अवधि और स्पष्टता। 
  3. प्रकार्यवाद में मन का स्वReseller- विलियम जेम्स प्रकार्यवाद के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं वे टिचनर And वुण्ट के समान मन को स्थितज (Static) नहीं मानते हैं और न ही वे इसे समझने के लिए इसके अलग अलग खण्डों में बॉंटकर अध्ययन की वकालत ही करते हैं। उनके According तो मन सतत् परिवर्तनशली चेतना प्रवाह है। 
  4. व्यवहारवाद में मन का विरोध- व्यवहारवाद की स्थापना 1913 में वाटसन द्वारा की गयी। यह संCreationवाद And प्रकार्यवाद दोनों के विरोध का परिणाम थी। प्राकृत विज्ञान की यह शाखा विशुद्धत: वस्तुनिष्ठ And प्रयोगात्मक थी। इसके According केवल प्रेक्षणीय व्यवहार ही मनोविज्ञान के अध्ययन की विषयवस्तु हो सकता है। इसी परम्परा में स्कीनर भी मन को नकारते हैं और अन्तर्नोद, अभिप्रेरण और संवेग जैसे सूक्ष्म And अदृश्य तत्वों को नहीं मानते ओर न ही Creationत्मकता को स्वीकारते हैं। 
  5. गेस्टाल्ट का समग्रवाद- गेस्टाल्ट सम्प्रदाय के जन्मदाता मैक्स वर्दाइमर हैं। गेस्टाल्ट का Means है – समग्रता। यह मानसिक अध्ययन में समग्रता And अखण्डता के सिद्धान्त पर बल देता है। इसके According मन व चेतना का अध्ययन इसे टुकड़ों में बॉंटकर नहीं Reseller जा सकता है। बल्कि विभिन्न खण्ड परस्पर मिलकर जो नया स्वReseller गढ़ते हैं वह इसे समग्र स्वReseller प्रदान करता है। 
  6. मनोविश्लेषण में मन का स्वReseller- सिगमंड फ्रायड ने मनोविश्लेषण का प्रतिपादन Reseller। उनके According मन के दो भाग हैं- चेतन और अचेतन। मन का मात्र 10 प्रतिशत भाग ही चेतन है और शेष अधिकांश भाग अचेतन है। इस संदर्भ में इड, र्इगो और सुपर र्इगो फ्रायड की विकसित अवधारणायें हैं। इड व्यक्ति के जन्मजात गुण तथा जैविक प्रवृत्तियों का स्रोत है। यह मन का अज्ञात And अचेतन भाग है। यह विवेक रहित होता है और दमित इच्छाओं तथा वासनाओं का आधार है। र्इगो इड का वह अंश है जो बाह्य पर्यावरण से प्रभावित होकर विकसित होता है। यह मन का चेतन अंश है जो अचेतन मन की अवांछनीय इच्छाओं को नियंत्रित करता है। सुपर र्इगो का सम्बंध नैतिक अभिवृत्तियों, आदतों और मूल्यों से है, जिसे व्यक्ति शिक्षा द्वारा प्राप्त करता है। यही व्यक्ति को आदर्श जीवन जीने के लिए प्रेरित करता है। मनोविश्लेषण की परंपरा में एडलर का स्थान महत्वपूर्ण है। एडलर के According किसी व्यक्ति के मन का अध्ययन तब तक नहीं हो सकता, जब तक कि उसे सम्पूर्ण जीवन का ज्ञान न हो। इसके अंतर्गत वे व्यक्ति के जीवन लक्ष्य और जीवन शैली में निकटता को आवश्यक मानते हैं। उनके According ‘व्यक्ति के व्यवहार And मानसिक क्रियाओं की व्याख्या उसका अंतिम लक्ष्य ही कर सकता है। एडलर के विचार में चेतन तथा अचेतन Single Second से सर्वथा भिन्न नहीं हैं। जब हम अचेतन को समझ जाते हैं तो वह चेतन हो जाता है तथा जब चेतन समझ नहीं पाते तब वह अचेतन हो जाता है।

कार्ल युंग मन के स्थान पर चित्त (साइकी) Word का प्रयोग करते हैं। इसमें अचेतन और चेतन दोनों का समावेश हो जाता है। जबकि मन से केवल चेतन मन का आभास मिलता है। युंग अचेतन को प्रमुख मानते हैं तथा चेतन को गौण। चेतन मन का ऊपरी भाग है तथा अचेतन के बिना ठहर नहीं सकता। अचेतन के भी यहॉं दो Reseller हैं। वैयक्तिक और सामूहिक। वैयक्तिक अचेतन जीवन के अनुभवों के आधार पर विकसित होता है और सामूहिक अचेतन उसकी सांस्कृतिक परम्परा And आनुवांशिकता द्वारा विनिर्मित होता है। मानसिक क्रियाओं में युंग चिंतन (thinking) , भावना (feeling), संवेदना (sensation) और सहजबोध (intuition) पर महत्व देते हैं। इस तरह सामूहिक अचेतन And वैयक्तिक अचेतन युंग की मन सम्बन्धी नूतन धारणा है जो उचित होते हुए भी इस संदर्भ में त्रुटिपूर्ण है। इस तरह आधुनिक मनोविज्ञान की विभिन्न शाखाएॅं मन And इसकी क्रियाओं के विविध पक्षों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालती है, किन्तु किसी भी शाखा में मन का स्वReseller स्पष्ट Reseller से विवेचित नहीं हो पाता है। अत: आधुनिक पाश्चात्य मनोविज्ञान मन के सम्यक् प्रस्तुतिकरण से अभी सर्वथा दूर है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि आधुनिक पाश्चात्य् मनोविज्ञान अभी भी मन की अवधारणा को पूरी तरह से स्पष्ट नहीं कर पाया है। विभिन्न प्रकार के मत होने के कारण इसकी भिन्न-भिन्न व्याख्यायें मिलती हैं।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *