भाषा विकास

भाषा का Means होता है- कही हुर्इ चीज। मनोवैज्ञानिकों के According भाषा दूसरों तक विचारों को पहुंचाने की योग्यता हैं इसमें विचार-भाव के आदान प्रदान के प्रत्येक साधन सम्मिलित किये जाते हैं। जिसमें विचारों और भावों के प्रतीक बना लिये जाते हैं जिससे कि आदान प्रदान के व्यापक Reseller में भिन्न Resellerों जैसे लिखित, बोले गये, सांकेतिक, मौखिक, इंगित प्रहसन तथा कला के Means बताये जाते हैं।

भाषा विकास-भाषा विकास बौद्धिक विकास की सर्वाधिक उत्तम कसौटी मानी जाती है। बालक को First भाषाज्ञान परिवार से होता है। कार्ल सी गैरिसन के According “स्कूल जाने से पूर्व बालकों में भाषा ज्ञान का विकास उनके बौद्धिक विकास की सबसे अच्छी कसौटी है। भाषा का विकास भी विकास के अन्य पहलुओं के लाक्षणिक सिद्धान्तों के According होता है। यह विकास परिपक्वता तथा अधिगम दोनों के फलस्वReseller होता है और इसमें नयी अनुक्रियाएं सीखनी होती है और First की सीखी हुर्इ अनुक्रियाओं का परिष्कार भी करना होता है।

भाषा विकास का क्रम

भाषा विकास क्रमागत बिन्दुओं पर आधारित है- 1. बाल्यावस्था 2. पूर्व शैशवास्था  3. मध्य And अपरांह शैशवावस्था 4. किशोरावस्था।

1. शैशवावस्था-

यह तथ्य सर्वविदित है कि शैशवावस्था मनुष्य की सबसे सक्रिय कम- अवधि है। इस अवस्था में मस्तिष्क की सतर्कता, ज्ञानेन्द्रियों की तेजी, सीखने और समझने की अधिकता अपने चरमोत्कर्ष पर होती है। फ्रायड के According मनुष्य शिशु जो कुछ बनता है जीवन के प्रारम्भिक चार-पांच वर्षो में ही बन जाता है। भाषा को क्रमानुसार प्रस्तुत Reseller जा सकता है।

  1. रूदन – चूंकि बोलना Single लम्बी And जटिल प्रक्रिया के बाद सीखा जाता है, अतएव उसका प्राReseller हमें रूदन अथवा चीखने-चिल्लाने में मिलता है। रिबिल के According रूदन प्रारम्भ में संकटकालीन होता है। यह अनियमित तथा अनियंत्रित होता है। अत: रूदन Single स्वाभाविक प्रक्रिया है जो शिशु अकारण ही करता है। स्टीवर्ट के According जीवन के प्रारम्भिक दिनों में शिशु रूदन भिन्न मात्रा में पाया जाता है और वह Second सप्ताह में प्रकट होता है। Third सप्ताह में स्वार्थवश रूदन कम हो जाता है। रूदन तीव्रता तथा शिशु के विचारों तथा भावों को अभिव्यक्त करता है। यह रूदन पीड़ा, तेज रौशनी, तीक्ष्ण आवाज, थकान, भूख आदि के कारण हो सकता है।
  2. बलबलाना – इरविन महोदय के According रूदन में सुस्पष्ट आवाजें पायी जाती है। यह ध्वनि Fourth Fifth मास के पश्चात स्पष्ट होना प्रारम्भ हो जाती है। बलबलाने में जीवन के First वर्ष में स्वर ध्वनि सुनार्इ देती है। अ-आ-इ-र्इ-ए-ऐ इसके साथ ही इसी समय तक जबकि आगे के कुछ दांत आ जाते हैं जो होठों के मेल से शिशु ब, ल, त, द, म जैसे व्यंजनों को प्रकट करता है।
  3. इंगित करना- भाषाविदो ने इंगित करने को भाषा विकास का ततश् ीय सोपान कहा। जरसील्ड मैकाथ्र्ाी ने अपने अध्ययन के आधार पर बताया है कि इसके द्वारा शिशु Second को अपने भाव विचार समझाता है। इसे लेरिक ने सम्पूर्ण शरीर की भाषा भी माना है। शिशु ‘हां’ या ‘ना’ की मुद्रा में गर्दन हिला कर भी उत्तर देता है।
  4. बोलना- भाषा प्रयोग की यह अन्तिम अवस्था है।  इसका आरम्भ Single डेढ़ वर्ष के करीब होता है। भाषा बोलना भी Single कौशल है अत: इसे अभ्यास की Need होती है। यह शरीरिक अवयवों की पुष्टता पर निर्भर करता है। शुरू में निरर्थक Word बोले जाते हैं जैसे वा, ला, मा, दा, ना इत्यादि। परन्तु क्रमश: साहचर्य के नियमों के कारण निरर्थक Wordों में सार्थकता आ जाती है और वे सोद्देश्य प्रयुक्त होते हैं। Word बोलने में Single समस्या उच्चारण की होती है। शुरू में बालक अनुकरण से ही उच्चारण सीखता है। शैशवावस्था में उच्चारण योग्यता लचीली मानी जाती है।
  5. भाषा के ध्वनि की पहचान – जैसे First स्पष्ट Reseller जा चुका है कि Wordों को सीखने से First शिशु भाषा की ध्वनि में अन्तर करना सीख जाता है। जैसे रा तथा ला में अन्तर स्पष्ट कर लेते हैं।
  6. First Word – 8 से 12 माह की आयु में बच्चा First Word बाले ता है। इससे पूर्व वह बलबलाना, इंगन आदि अन्य भाव भंगिमाओं के द्वारा अपनी भावाभिव्यक्ति करता है। ब्रेकों के According बोलना शिशु के सम्प्रेषण की विभिन्न अवस्थाओं का अगला पड़ाव है। शिशु First अपने परिवार से जुडे व्यक्तियों जिसमें उसका भावनात्मक लगाव होता है उनको पुकारना प्रारम्भ करता है जैसे बड़ों को दादा, पालतू जानवर को किटी, खिलौनों को टाम खाने को दूध इत्यादि।
  7. Word युग्म का उच्चारण – 18 से 24 माह की आयु तक शिशु पा्रय: Wordों युग्मों को बोलना प्रारम्भ कर देता है यह Word युग्म वे अपनी इंगन, कुशलता, शारीरिक इंगन तथा सिर के विभिन्न मुद्राओं के साथ बोलते है। कुछ उदाहरण इस प्रकार है।

स्थान पहचानना – वहाँ पुस्तक
दोहराना – दूध और
किसी वस्तु के प्रति विशेष लगाव – मेरा खिलौना
वस्तु की पहचान – कार बड़ी
क्रिया प्रतिक्रिया – तुम्हें मारूंगा
क्रिया वस्तु – चाकू काटो
प्रश्न – बाल कहाँ
शिशुओं की Wordावली का अध्ययन विभिन्न मनोवैज्ञानिकों (स्मिथ And सीशोर) द्वारा हुआ है तथा कुछ इस प्रकार के निष्कर्ष प्राप्त हुये हैं।

आयु Word संख्या
8 मास         0
10 मास 1
1 वर्ष 3
1-3 वर्ष 19
1-6 वर्ष 22
1-9 वर्ष 118
2 वर्ष 272
4 वर्ष 1550 (स्मिथ)
4 वर्ष 1560 (सीशोर)
5 वर्ष 2072 (स्मिथ)
5 वर्ष 9600 (सीशोर)
6 वर्ष 2562 (स्मिथ)


उपर्युक्त तालिका से शैशवावस्था में Wordों की संख्या मालूम होती है जो शिशु प्राय: उच्चारित करता है।

बाल्यावस्था में भाषा विकास

बाल्यावस्था जन्मोपरान्त Human विकास की दूसरी अवस्था है जो शैशवावस्था की समाप्ति के उपरान्त प्रारम्भ होती है। बाल्यावस्था में प्रवेश करते समय बालक अपने वातावरण से काफी सीमा तक परिचित हो जाता है। इस अवस्था में वह व्यक्तिगत तथा सामाजिक व्यवहार करना सीखना प्रारम्भ करता है तथा उसकी औपचारिक शिक्षा का प्रारम्भ भी इसी अवस्था में होता है। बाल्यावस्था में भाषा विकास तीव्र गति से होता है। Word भण्डार में वश्द्धि होती है। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं में भाषा का विकास तेजी से होता है। वाक्य Creation And वाक पटुता में भी बालिकाएं श्रेष्ठ होती है।

सीशोर ने बालक-बालिकाओं के Word भण्डार का अध्ययन करके बताया कि उनके Wordों की संख्या 10-12 साल तक 35,000 के लगभग पहुंच जाती है।

आयु  Wordों की संख्या
7 साल         21200
8 साल 26300
10 साल 34300
12 साल 50500


उपर्युक्त सारिणी देखने से ज्ञात होता है कि बाल्यावस्था में क्रमश: Single वाक्य में अधिक Word होते है। बालक अब मिश्रित And संयुक्त वाक्यों का प्रयोग अधिक करता है न कि सरल वाक्यों का।

किशोरावस्था में भाषा विकास

किशोरावस्था जन्मोपरान्त Human विकास की तश्तीय अवस्था है जो बाल्यावस्था की समाप्ति के उपरान्त प्रारम्भ होती है तथा प्रौढ़ावस्था के प्रारम्भ होने तक चली है। यद्यपि व्यक्तिगत भेदों, जलवायु आदि के कारण किशोरावस्था की अवधि में कुछ अन्तर पाया जाता है फिर भी प्राय: 12 से 18 वर्ष की आयु के बीच की अवधि को किशोरावस्था कहा जाता है। इस अवस्था को बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के बीच का संधिकाल माना जाता है।

चूंकि भाषा का विकास इस अवस्था में सम्प्रत्यात्मक स्तर पर निर्भर होता है, अत: किशोर किशोरियों में कल्पनाशील साहित्य के अध्ययन And सश्जन की अभिकार्य होती है, प्रतीकात्मक Wordों का प्रयोग भी किशोरवर्ग अधिक करता है। अत: इनके Word भण्डार की विविधता तथा प्रचुरता स्वभावत: पायी जाती है। किशोरावस्था में भाषा के विकास में आदत And बुद्धि का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है, आदत Single प्रकार चेतन सजगता And अन्र्तदृष्टि की ओर संकेत करती है। इस क्षमता के कारण किशोर समस्याओं की परख करता है और उपयुक्त भाषा का प्रयोग करता है। यदि उपयुक्त भाषा नही मिलती तो वह उन्हें तोड़-मरोड़ के नये Word गढ़ता है। यहीं पर उसकी बुद्धि, उसकी कल्पना और उसकी आदत या अभ्यास भाषा के विकास में अपना योगदान देते हैं।

भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक

1. बुद्धि –

भाषा की क्षमता And योग्यता का सम्बन्ध हमारी बुद्धि से अटूट होता है। भाषा की कुशलता भी उन बालकों में अधिक होती है, जो बुद्धि में अधिक होते हैं। बर्ट ने अपने “वैकवार्ड चाइल्ड” में संकेत Reseller है जिन बालकों की बुद्धि क्षीण होती है वे भाषा की योग्यता भी कम रखते हैं और पिछड़े भी होते हैं। तीक्ष्ण बुद्धि बालक भाषा का प्रयोग उपयुक्त ढंग से करते हैं।

2. जैविकीय कारक –

मस्तिष्क की बनावट भी भाषा विकास को प्रभावित करते हैं। भाषा बोलने तथा समझने के लिए स्नायु तन्त्र, तथा वाक-यन्त्र की Need होती है। बहुत हद तक इनकी बनावट तथा कार्य शैली तथा स्नायु नियन्त्रण भाषा को प्रभावित करते हैं।

3. वातावरणीय कारक –

भाषा सम्बन्धी विकास पर व्यक्ति जिस स्थान और परिस्थिति में रहता है, आचरण करता है, विचारों का आदान-प्रदान करता है उसमें भाषा का विकास होता हैं। उदाहरण स्वReseller निम्न श्रेणी के परिवार व समाज के लोगों में भाषा का विकास कम होता है क्योंकि उन्हें दूसरों के सम्पर्क में आने का अवसर कम मिलता है, इसी प्रकार परिवार में कम व्यक्तियों के होने पर भी भाषा संकुचित हो जाती है।

  1. विद्यालय और शिक्षक – विद्यालय आरै शिक्षक भाषा विकास में महती भूमिका का निर्वाहन करते हैं। विद्यालय में विभिन्न विषयों And क्रियाओं का सीखना-तथा सिखाना भाषा के माध्यम से होता है। इस प्रक्रिया में भाषा सम्बन्ध् ाी विकास अच्छे से होता है।
  2. व्यवसाय एव कार्य – ऐसे बहतु से व्यवसाय हैं जिनमें भाषा का पय्रोग अत्यधिक होता है, उदाहरण स्वReseller अध्यापन, वकालत, व्यापार कुछ ऐसे व्यवसाय है जिनमें भाषा के बिना कोर्इ कार्य नहीं चल सकता। अतएव वातावरण के अन्तर्गत इनको भी सम्मिलित Reseller गया है।
  3. अभिप्रेरण, अनुबंधन तथा अनुकरण – मनोवैज्ञानिक के विचारानुसार भाषा सम्बन्धी विकास अभिप्रेरण, अनुबंधन And अनुकरण पर निर्भर करता है। Single निरीक्षण से ज्ञात हुआ कि बोलने वाले शिशु को प्रलोभन देकर स्पष्ट भाषी बनाया गया। Single Second निरीक्षण में शिशुओं को चित्र दिखाकर उनके नाम याद कराये गये। ये अभिप्रेरण के महत्व को प्रकट करते हैं। भाषण प्रतियोगिता में पुरस्कृत होने पर छात्र को अधिक प्रभावशाली भाषा का प्रयोग करने का अभिप्रेरणा मिलती है।

अनुबन्धन की प्रक्रिया में प्रलोभन पुरस्कार या अभिप्रेरण के साथ प्रयत्न इस प्रकार जोड़ा जाता है कि प्रक्रिया पूरी हो जाती है। अनुकरण वास्तव में Single सामान्य प्रकृति है जो All को अभिप्रेरित करती है। अनुकरण की प्रवश्त्ति Single आन्तरिक अभिप्रेरक होती है। कक्षा में अध्यापक की सुस्पष्ट साहित्यिक तथा शुद्ध भाषा का अनुकरण सचेतन And अचेतन Reseller में छात्र करते हैं तथा भाषा सम्बन्धी विकास करने में सफल होते हैं।

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