भारत की जलवायु

वायुमंडलीय दशायें तापमान, वायुदाब, हवाये, आर्द्रता, वर्षा तथा मेघ मुख्य तथ्य And परिस्थितियां हैं। वायुमंडलीय अल्पकालिक या क्षणिक दशाओं को मौसम कहते हैं। मौसम की दीर्घकालिक औसत वायुमंडलीय दशाओं को जलवायु कहते हैं।

तापमान 

भारत का विस्तार उत्तरी गोलार्द्ध में उष्ण And शीतोष्ण दोनो कटिबंधों में हैं। भूमध्य रेखीय भागों में औसत दिनरात की लम्बार्इ बराबर रहती हैं। Meansात 12 घंटे की दिन And 12 घंटे की रात लेकिन यदि Ultra site के उत्तरायन And दक्षिणायन के हिसाब से देखे तो भूमध्य रेखा से धु्रवों की ओर रात And दिनों की दूरी में काफी अंतर आ जाता हैं। जैसे Ultra site जब 21 जून को उत्तरायन में कर्कवतृ पर सीधा चमकता हैं तो इस समय भारत में ग्रीष्मकालीन दशाए अपनी चरम सीमा पर होती हैं। उत्तरी धु्रव में दिन की अवधि छ: माह तक दृष्टिगोचर होता हैं। भारत में तापमान उत्तर भाग में 450 सें. ग्रेट हो जाता हैं। शीतकाल में भारत के तापमान का औसत घटकर 21 डिग्री हो जाता हैं। जब 22 दिसम्बर को Ultra site दक्षिणायन में मकर रेखा पर सीधा होता हैं तब भारत में अवधि घटकर 10-30 घंटे तक हो जाती हैं। समुद्रतल से अधिक ऊचँ ाइर् पर तापमान165 मीटर की ऊँचार्इ पर 10 के हिसाब से कम से कम हो जाता है And हिमालय पर्वत पर हिम की चादरें मोटी हो जाती हैं।

वायुदाब 

वायुदाब को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक समुद्रतल से ऊँचार्इ, तापमान की मात्रा And वायु में आदर््रता की मात्रा हैं। शीतकाल में वायुदाब सिंधुगंगा के मैदान में अधिक And दक्षिण के पठार पर कुछ कम रहता हैं। वायुदाब इस समय दक्षिण पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ता हैं। ग्रीश्म में उत्तर के मैदानी भाग में न्यून वायुदाब का क्षेत्र बन जाता हैं। दक्षिण की ओर बढ़ता जाता है। हिन्द महासागर मे इस समय उच्च वायुदाब का क्षेत्र विकसित होता है।

हवायें 

हवाओ की दिशा तापमान व वायुदाब द्वारा निर्धारित होती हैं, हवायें हमेशा अक्षिाक से कम दाब की ओर चलती हैं। हवायें ऊपर से जानेपर ठंडी And नीचे उतरने पर ठंडी हो जाती हैं। हवायें स्थल से चलने पर शुष्क And जल के ऊपर से चलने पर नमी धारण कर लेती हैं।

शीतकाल में ऊपरी हिमालय में अधिक दाब का क्षेत्र बन जाता हैं। पछुवा हवाओं का क्रम भंग हो जाता हैं। इस समय हवाए सिंधुगंगा के मैदान में उत्तर पूर्व की ओर तथा बंगाल की खाड़ी पर उत्तर पश्चिम की ओर चलती हैं। जाड़ो में चलने के कारण इन हवाओं को शीत कालीन मानसून हवायें कहते हैं। ये हवायें तापमान को अत्यंत कम देती हैं। तब इन्हे शीतलहर के नाम से जानते हैं। ग्रीश्म में Ultra site के उत्तरायन के कारण तापमान बढ़ जाने से निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता हैं। दोपहर में अधिक गर्मी के कारण गरम हवायें चलती हैं। जिन्हें लू कहा जाता हैं। ग्रीश्मकाल के उत्तरार्द्ध में हवायें दक्षिण से उत्तरपूर्व को चलती हैं। इन्हें भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसुन हवायें कहते हैं। जिनसे संपूर्ण भारत में वर्षा होती हैं।

जेट धारायें 

लगभग 27’ से 30’ उत्तर अंक्षांशों के बीच स्थित होने के कारण इन्हें उपोश्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धारायें कहा जाता हैं। भारत में ये जेट धारायें ग्रीश्म ऋतु के अतिरिक्त पूरे वर्श हिमालय के दक्षिण में पव्र ाहित होती है। इस पश्चिमी प्रवाह के द्वारा देश के उत्तर एंव उत्तर पश्चिमी भाग में पश्चिमी चक्रवाती विक्षोभ आते हैं। गर्मियों में Ultra site की आभासी गति के साथ ही उपोश्ण कटिबंधीय पश्चिमी जेट धाारा कहा जाता हैं। गर्मी के महीनों में प्रायद्वीपीय भारत के ऊपर लगभग 14’ उत्तरी अक्षांश में प्रवाहित होता हैं। सर्दी के महीनों में उत्पन्न होने वाला पश्चिमी चक्रवातीय विक्षोभ भूमध्यसागरीय क्षेत्र से आने वाले पश्चिमी प्रवाह के कारण होता हैं। वे प्राय: भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र को प्रभावित करते हैं।

मानसून 

भारत की जलवायु मानसूनी हैं। ऐतिहासिक काल में भारत आने वाले नाविकों ने सबसे First मानसून परिघटना पर ध्यान दिया था। पवन तंत्र की दिशा उलट जाने के कारण उन्हें लाभ हुआ। चूंकि उनके जहाज पवन के प्रवाह की दिशा पर निर्भर थें। अरबवासी जो व्यापारियों की तरह भारत आयें थें उन लोगो ने पवन तं.त्र के इस मौसमी उत्क्रमण को मानसून का नाम दिया।

मानसून का प्रभाव उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में लगभग 20’ उत्तर And 20’ दक्षिण के बीच रहता हैं।

  1. स्थल तथा जल के गर्म And ठंडे होने की विभेदी प्रक्रिया के कारण भारत के स्थल भाग पर निम्न दाब का क्षेत्रफल उत्पन्न हाते ा है। जबकि इसके आस पास के समुद्रो के ऊपर उच्च दाब का क्षेत्र बनता हैं।
  2. ग्रीष्म ऋतु के दिनो में अंत: उश्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र की स्थिति गंगा के मैदान की ओर खिसक जाती हैं। 
  3. हिंदमहासागर में मेडागास्कर के पूर्व लगभग 20’ दक्षिण अक्षांश के ऊपर उच्च दाब वाला क्षेत्र होता हैं। 

मानसून के दो भाग हैं- अरब सागर शाखा And बंगाल की खाड़ी शाखा। अरब सागर शाखा लगभग दस दिन बाद,10 जून के आस पास मुंबर्इ पहुंचती हैं। बंगाल की खाड़ी शाखा की तीव्रता से आगे की ओर बढ़ती है। तथा जनू के First सप्ताह में असम पहुंचती हैं। पर्वतों के कारण मानसून पवनें पश्चिम में गंगा के मैदान की ओर मुड़ जाती हैं। मध्य जून तक अरब सागर शाखा सौराश्ट्र कच्छ एंव देश के मध्य भागों में पहुंचती हैं।अरब सागर शाखा बंगाल की खाड़ी शाखा, दोनों गंगा के मैदान के उत्तर-पश्चिम भाग में आपस में मिल जाती हैं। दिल्ली में सामान्यत: मानसूनी वर्षा बंगाल की खाड़ी शाखा से जून के अंतिम सप्ताह में होती हैं।

जुलार्इ के First सप्ताह तक मानसून पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा तथा पूर्वी राजस्थान में पहुंच जाता है। मध्य जुलार्इ तक मानसून हिमाचल प्रदेश And देश के शेष हिस्सों में पहुंच जाता है। मानसून की वापसी अपेक्षाकृत Single क्रमिक क्रिया हैं। उत्तर पश्चिमी राज्यो से सिंतबर में शुरू हो जाती हैं। दिसंबर के प्रारंभ तक देश के All शेष भाग से मानसून की वापसी हो जाती हैं।

मानसून की वापसी (परिवर्तनीय मौसम) 

अक्टूबर नवम्बर के दौरान में दक्षिण की तरफ Ultra site के आभासी गति के कारण मानसनू गर्त या निम्न दाब वाला गर्त, उत्तरी मैदान के ऊपर शिथिल हो जाता हैं। धीरे धीरे पीछे की ओर हटने लगता हैं। अक्टूबर के प्रारंभ में मानसून पवनें उत्तर के मैदान से हटने लगती हैं। मानसून की वापसी होने से आसमान साफ एंव तापमान में वृद्धि होने लगती हैं। दिन का तापमान उच्च होता हैं, जबकि रातें ठंडी होती हैं। स्थल अभी भी आदर््र होता हैं। उच्च तापमान And आदर््रता वाली अवस्था के कारण दिन का मौसम असहनीय हो जाता हैं। मासिनराम विश्व में सबसे अधिक वर्षा वाला क्षेत्र तथा स्टैलैग्माइट गुफाओं के लिये प्रसिद्ध हैं। नवंबर के प्रांरभ में उत्तर पश्चिम भरत के ऊपर निम्न दाब वाली अवस्था बंगाल की खाड़ी पर स्थांनांतरित हो जाती हैं। अंडमान सागर के ऊपर उत्पन्न होता है ये चक्रवात सामान्यत: भारत के पूर्वी तट को पार करने के कारण व्यापक एंव भारी वर्षा होती हैं। ये उश्ण कटिबंधी चक्रवात विनाशकारी होते हैं। गोदावरी, कृष्णा, कावेरी नदियों के सघन आबादी वाले डैल्टा प्रदेशों में अक्सर चक्रवात आते हैं। जिससे धन जन की हानि होती हैं। कभी कभी ये चक्रवात उड़ीस, पश्चिम बंगाल And बांग्लादेश के तटीय क्षेत्रों में भी पहुंच जाते हैं। कोरोमडं ल तट पर अधिकतर वर्षा इन्ही चकव्र ाता ें तथा अवदाबो से होती हैं।

जलवायु विभाग

भारत को दो जलवायु विभागों में विभाजित Reseller जा सकता हैं-

  1. शीतोश्ण कटिबंधीय या महाद्वीपीय भारत- यह कर्क रेखा के उत्तर की ओर स्थित हैं तथा शीत ऋतु की 1800 की सेंंटीग्रेड का समताप रेखा इसकी वास्तविक सीमा का निर्धारण करती हैं। इन्हें पांच जलवायु उपविभागों में बांटा गया हैं। 
    1. हिमाचल प्रदेश- अत्याधिक वर्षा का प्रदेश 
    2. उत्तरी पश्चिमी पठार- साधारण वर्षा प्रदेश स. उत्तरी पश्चिमी शुष्क मैदानी प्रदेश द. मध्यम वर्षा वाला प्रदेश य. अधिक एंव मध्यम वर्षा वाला प्रदेश 
  2. उष्णकटिबंधीय भारत-यह कर्क रेखा के दक्षिण में स्थित है। यहां शीत ऋतु में औसत तापमान सदैव 18 से.गे्र. से अधिक रहता हैं। वर्षा की मात्रा के आधार पर इस भाग को 6 उप जलवायु विभाग में बांटा गया हैं। 
    1. अत्याधिक वर्षा वाला प्रदेश 
    2. अधिक वर्षा वाला प्रदेश 
    3. मध्यम वर्षा वाला प्रदेश 
    4. पश्चिम तटीय प्रदेश 
    5. पश्चिम तटीय प्रदेश 
    6. तमिलनाडु तट।

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