बाल्यावस्था में मानसिक विकास

शैशवावस्था And बचपन में मानसिक 

विकास मानसिक विकास को संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन द्वारा भली प्रकार समझा जा सकता है। तकनीकी Reseller में संज्ञानात्मक विकास ही मानसिक विकास है। संप्रत्यय निर्माण, सोचना, तर्क करना, याद रखना, विश्लेषण करना, निर्णय करना यह सब संज्ञानात्मक विकास की ही प्रक्रियाये हैं। इन प्रक्रियाओं को भली प्रकार समझने हेतु मनोवैज्ञानिकों ने बहुत से अनुसंधान किए हैं। इन मनोवैज्ञानिकों में जीन पियाजे , विगोत्सकी, बर्ट तथा ब्लूम का कार्य अति महत्वूर्ण माना गया है।

सैद्धान्तिक दृष्टि में मानसिक विकास-मनोवैज्ञानिकों के सिद्धान्तों के आलोक में मानसिक विकास को तर्कपूर्ण ढंग से समझा जा सकता है। इस क्रम में First सिद्धान्त – जीन पियाजे की थ्योरी ऑफ कॉग्निटिव डेवलपमेंट है। इसका वर्णन निम्न है।

1. मानसिक विकास का पियाजे का सिद्धान्त 

जीन पियाजे का संज्ञानात्मक विकास का सिद्धान्त प्रमुख Reseller से बच्चों And किशोरों के संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं पर प्रकाश डालता है। पियाजे का यह सिद्धान्त अवस्था सिद्धान्त कहलाता है क्योंकि इस सिद्धान्त में Single अवस्था से दूसरी अवस्था तक होने वाला विकास पहली अवस्था के विकास पर निर्भर करता है। Meansात् Single अवस्था का विकास होने पर ही दूसरी अवस्था में विकास का होना संभव है। इस सिद्धान्त के According पूर्ण संज्ञानात्मक विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को इन अवस्थाओं को क्रमश: उत्तरोत्तर क्रम में पार करना पड़ता है। यदि किसी कारण से किसी अवस्था में विकास अवरूद्ध होने की स्थिति में उससे ऊपर की अवस्था में संज्ञानात्मक विकास नहीं हो पाता है। पियाजे द्वारा निर्मित संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं की सारणी निम्न है।

अवस्था (Stage) आयु (Age) मुख्य उपलब्धियॉं (major accomplishments)
संवेदी-पेशीय अवस्था (Sensorimotor stage) 0 से 2 वर्ष  बच्चे में कारण-प्रभाव And वस्तु स्थिरता की समझ (The child develops basic ideas of cause and effect and object permanence)
प्राक्संक्रियात्मक अवस्था (Preoperational stage) 2 से 6 या 7 वर्ष बच्चा संसार को संकेतो And प्रतीकों से समझना शुरू कर देता है। (The child begins to represent the world symbolically)
ठोस संक्रिया की अवस्था (Concrete operations stage)  7 से 11 या 12 वर्ष बच्चे का संरक्षण के सिद्धान्तों को समझना प्रारम्भ करना। तार्किक विचारों की उत्पत्ति।(The child gains understanding of principles such as conservation: logical thought emerges.)
औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Formal operations stage) 12 से वयस्क किशोर का तार्किक विचारों के विभिन्न स्वResellerों को समझने में सक्षम होना। (The adolescent becomes capable of several forms of logical thought.)

इन अवस्थाओं को समझने के लिए पियाजे के सिद्धान्त की मूलकल्पनाओं को समझना आवश्यक है। इस सिद्धान्त की निम्नांकित चार मूलकल्पनायें हैं।

  1. Human शिशु जन्म से ही वातावरण में घटने वाली घटनाओं के अनिश्चितता से बचने And दूर करने के लिए अनुकूलन करता है। 
  2. जब बालकों के सामने कोर्इ ऐसी घटना घटती है जिसे उसका First कभी अनुभव नहीं हुआ है तो इससे उसमें Single तरह संज्ञानात्मक असंतुलन (cognitive disequilibrium) उत्पन्न हो जाता है जिसे वह आत्मSeven्मकरण (assimilation) तथा समायोजन (accommodation) की प्रक्रिया अपनाकर संतुलित करता है। 
  3. संतुलन की यह प्रक्रिया सिर्फ बालकों की पिछले अनुभवों पर ही निर्भर नहीं करती है बल्कि उनके शारीरिक विकास, स्नायुओं की क्षमता पर भी निर्भर करती है। 
  4. संतुलन का प्रभाव यह होता है कि बालकों की संज्ञानात्मक संCreation उन्नत हो जाती है जिसके कारण संज्ञानात्मक विकास की चारों अवस्थाओं में उनका विकास सहज होता है। 

(1) संवेदी-पेशीय अवस्था (Sensorimotor Stage)-यह अवस्था जन्म से दो वर्ष तक की होती है। इस अवस्था में शिशुओं में अन्य क्रियाओं के अलावा वस्तुओं को शरीर द्वारा इधर-उधर करना, वस्तुओं की पहचान करने की कोशिश करना, किसी चीज को पकड़ना और प्राय: उसे मुॅंह में डालकर अध्ययन करना प्रमुख है। -जन्म से 30 दिन तक की आयु में बालक अॅंगूठा आदि चूसने आदि की प्रतिवर्त क्रियायें (reflex activities) ही प्रमुख Reseller से करता है।

  • Single से चार महीने की आयु में शिशुओं की प्रतिवर्त क्रियाओं में उनकी अनुभूतियों के आधार पर कुछ बदलाव आता है और वे अधिक समन्वित हो जाती हैं। 
  • चार से आठ महीने की आयु में शिशु वस्तुओं को उलटने-पलटने तथा छूने पर अधिक ध्यान देता है। 
  • आठ से बारह महीने की आयु में बालक लक्ष्यवस्तु तथा उस तक पहुॅंचने के साधन में अन्तर करना प्रारम्भ कर देता है। जैसे यदि किसी ने खिलौना छिपा दिया है तो वह उसके लिए वस्तुओं को इधर उधर हटाते हुए खोज जारी रखता है। इस अवधि में शिशु वयस्कों द्वारा किये जा रहे कार्यों का अनुकरण करना भी प्रारम्भ कर देता है।
  • 12 से 18 महीने की आयु में बालक वस्तुओं की विशेषताओं का ज्ञान प्रयत्न And त्रुटि (trail and error) विधि से प्राप्त करने की कोशिश करता है। इस अवस्था में उसकी स्वयं की शारीरिक क्रियाओं में रूचि कम हो जाती है तथा वह वस्तुओं पर प्रयोग करना शुरू कर देता है। जिज्ञासा And उत्सुकता बढ़ जाती है। वह वस्तुओं को ऊपर से नीचे गिराकर, फेंककर उसके बारे में जानने की कोशिश करते हैं। 
  • 18 महीने से 24 महीने की आयु में बालक वस्तुओं में बारे में चिन्तन प्रारम्भ कर देता है। इस अवधि में बालक उन वस्तुओं के प्रति भी अनुक्रिया करना प्रारम्भ कर देता है जो सीधे दृष्टिगोचर नहीं होती है। इस गुण को वस्तु स्थायित्व (object permanence) कहा जाता है। Second Wordों में , बालक 3-4 महीने की आयु में जो यह सोचते थे कि जब कोर्इ वस्तु उनके सामने होती है तब उसका अस्तित्व बना होता है परन्तु जब वस्तु उनके सामने से हट जाती है तब उसका अस्तित्व भी खत्म हो जाता है, को अब वे गलत समझने लगते हैं। परन्तु अब उसका चिन्तन अधिक वास्तविक हो जाता है और वह अब यह सोचता है कि जब वस्तु उसके सामने नहीं भी होती है तो भी उसका अस्तित्व बना रहता है। इसे ही वस्तु स्थायित्व का गुण कहा जाता है।

(2) प्राक्संक्रियात्मक अवस्था (Preoperational Stage) – संज्ञानात्मक विकास की यह अवस्था दो से Seven साल की होती है। यह प्रारम्भिक बाल्यावस्था की अवस्था होती है। इसे पियाजे ने दो अवस्थाओं में बॉंटा है।
प्राक्संप्रत्यात्मक अवधि (Preconceptual period) तथा 2. अन्तर्दश्र्ाी अवधि (Intutive period)।

प्राक्संप्रत्यात्मक अवधि- यह अवधि दो से चार वर्ष की होती है। इस अवस्था में बालक सूचकता विकसिकत कर लेते हैं। सूचकता (signifiers) से तात्पर्य यह होता है कि बालक यह समझने लगते हैं कि वस्तु, Word, कल्पना, तथा चिन्तन-विचार किस चीज के लिए Reseller जाता है। उन्होंने दो तरह की सूचकता पर बल डाला है। संकेत (symbol) तथा चिह्न (sign)। किसी दृश्य ठोस वस्तु के मानसिक Reseller का दूसरा नाम भी संकेत है। संकेत तथा उस ठोस वस्तु में बहुत सादृश्यता होती है। उदाहरण के लिए जब बच्चा अपनी मॉं की आवाज सुनता है तब उसके मन में मॉं का Reseller या प्रतिमा बनती है, जो संकेत का उदाहरण है। ठोस वस्तुओं के लिए प्रयुक्त Word अथवा भाषा उनके चिह्न कहलाते हैं। पियाजे के According अनुकरण की प्रक्रिया द्वारा बच्चे सूचकता को सीखते हैं। उदाहरण के लिए बच्चा जब अपने पिता को पुस्तक को पुस्तक कहने का अनुकरण करता है, तो धीरे-धीरे पुस्तक And उसके Means को समझ जाता है। खेल के द्वारा भी बच्चे सूचकता के Means को भली प्रकार समझते हैं। 

इस अवधि में बच्चों के मानसिक विकास की दो प्रमुख कमियॉं भी दृष्टिगोचर होती हैं।

  1. पहली यह किइस अवधि में बच्चों में जीववाद (Animism) उत्पन्न होता हैं। जीववाद Meansात् बच्चा निर्जीव किन्तु गतिमान वस्तुओं (पंखा, कार, हवा, बादल) को भी स्वयं के समान सजीव समझता है। 
  2. दूसरी कमी आत्मकेंद्रण (Egocentrism) के Reseller में सामने आती है। इसमें बच्चा केवल अपनी सोच को ही सही मानता है। उसे कुछ इस प्रकार का विश्वास हो जाता है कि दुनिया की अधिकतर चीजें उसके इर्द-गिर्द घूमती रहती हैं। जैसे वह तेजी से दौड़ता है, तो सूरज भी तेजी से चलना शुरू कर देता है। उसका गुड्डा वही देखता है जो वह देख रहा है। पियाजे ने यह भी बताया है कि जैसे-जैसे बच्चों का सम्पर्क का दायरा अन्य बच्चों के साथ बढ़ता है, आत्मकेंद्रण कम होता जाता है। 

अन्तर्दशीय अवधि- यह अवधि 4 साल की आयु से लेकर 7 वर्ष की अवस्था तक होती है। इस अवधि में बच्चों का चिन्तन And तर्कशक्ति में First की अपेक्षा अधिक बेहतर हो जाती है। बच्चा जोड़, घटाव, गुणा, भाग जैसी मानसिक क्रियायें आसानी से करने लगता है। परन्तु इन क्रियाओं के पीछे के सिद्धान्त को वह नहीं समझ पाता है। अन्तर्दशी चिन्तन Single ऐसा चिन्तन होता है जिसमें कोर्इ क्रमबद्ध तर्क नहीं होता है। इस उम्र के बच्चों के चिन्तन में प्रक्रियाओं को उलटकर समझने की विशेषता नहीं होती है। जैसे बच्चा यह तो समझता है कि 2×2 = 4 हुआ परन्तु 4×2 =2 कैसे हुआ, यह वह नहीं समझ पाता है।

3. ठोस संक्रिया की अवस्था (Stage of concrete operation) – यह अवस्था 7 वर्ष की उम्र से प्रारम्भ होकर 12 वर्ष की उम्र तक चलती है। इस अवस्था में बालक ठोस वस्तुओं को मानसिक प्रक्रिया द्वारा मन में परिचालित कर उनसे जुड़ी समस्या का समाधान खोज लेते हैं। परन्तु उन वस्तुओं को उपस्थित न कर यदि उन्हें भाषा का प्रयोग कर समस्या उपस्थित की जाती है तो वे ऐसी समस्याओं पर मानसिक संक्रिया कर किसी परिणाम पर नहीं पहुॅंच पाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि उन्हें तीन वस्तुएं ‘अ’, ‘ब’, ‘स’ दी जाएॅ तो उन्हें देखकर वे यह आसानी से बता देंगें कि इनमें अ, ब से बड़ा है और ‘ब’, ‘स’ से बड़ा है। अत: सबसे बड़ा ‘अ’ हुआ। परन्तु यदि उनसे यह कहा जाये कि कमला, विमला से बड़ी है और विमला बड़ी है सपना से तो तीनों में सबसे बड़ी कौन है? तो वे इसका उत्तर देने में असमर्थ रहते हैं। इसका कारण यह है कि इस समस्या में ठोस संक्रिया संभव नहीं है, क्योंकि समस्या शाब्दिक कथन के Reseller में उपस्थित की गर्इ है। इस अवस्था में बालको के चिन्तन में प्रक्रियाओं के उलटकर निष्कर्ष पर पहुॅंचने की योग्यता विकसित हो जाती है।

जैसे अब बच्चे यह समझने लगते हैं कि कि 2×2 = 4 हुआ तो 4×2 =2 कैसे हुआ। इस अवस्था में बच्चों में तीन महत्वपूर्ण नियमों की समझ उत्पन्न हो जाती हैं।

1- संरक्षण (conservation), 2- संबंध (relation), 3- वर्गीकरण (classification)। इस अवस्था में बच्चा द्रव, लम्बार्इ, भार तथा तत्व के संरक्षण को समझने लगता है वह यह समझ जाता है कि मिट्टी And मिट्टी से बना बर्तन दोनों तत्वत: Single ही हैं तथा समान मात्रा में गीली मिट्टी से बनाये गये घड़े को यदि खिलौने का स्वReseller् दे दिया जाय तब भी उसका भार उतना ही रहता है और वह तत्व Reseller में मिट्टी ही होता है। वे क्रमिक संबंधों से संबंधित समस्याओं का भी समाधान करते पाये जाते हैं। उनमें दी गर्इ वस्तुओं को उनकी लम्बार्इ या वनज के According घटते क्रम या बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने की क्षमता विकसित हो जाती है। इसे पंक्तिबद्धता (seriation) कहा जाता है। इसी प्रकार इस अवस्था में बच्चों में वस्तुओं की विशेषताओं के आधार पर उसे किसी Single वर्ग या उपवर्ग में बॉंटने की समझ भी विकसित हो जाती है।

4. औपचारिक संक्रिया की अवस्था (Stage of formal operation)- यह अवस्था 11 वर्ष की उम्र से प्रारम्भ होकर वयस्कावस्था तक चलती है। इस अवस्था में किशोरों के चिन्तन में अधिक लचीलापन आ जाता है। अब वे परिकल्पनाओं का निर्माण करने में सक्षम हो जाते हैं। अब वे समस्याओं के परिकल्पित समाधान खोज लेने में समर्थ हो जाते हैं। इस अवस्था में समस्या के समाधान के लिए समस्या से संबंधित वस्तुओं को ठोस Reseller में उपस्थित होने की Need नहीं होती है। किशोरों का चिन्तन अधिक वास्तविक व वस्तुनिष्ठ हो जाता है। पियाजे के According इस अवस्था में बदलाव तेजी से होते हैं And इसका विकास शिक्षा से सीधे Reseller में प्रभावित होता है। जिन बालकों को अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं हो पाती है उनमें इस प्रकार की मानसिक संक्रिया काफी निम्नस्तरीय होती है। परन्तु जिस बालका का शिक्षा स्तर उच्च होता है उसकी मानसिक संक्रियाये उत्तम होती हैं।

 2. मानसिक विकास का विगोत्सकी द्वारा प्रतिपादित सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धान्त – 

विगोत्सकी द्वारा सन् 1987 में प्रतिपादित संज्ञानात्मक विकास का सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धान्त पियाजे के मानसिक विकास के सिद्धान्त की मूल विचार के विपरीत दृिष्कोण प्रस्तुत करता है। यह सिद्धान्त बच्चों के मानसिक विकास की व्याख्या करने वाला Single महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। यह सिद्धान्त पियाजे के अवस्था सिद्धान्त से भिन्न है। अवस्था सिद्धान्त में पियाजे ने माना है कि प्रत्येक बालक को क्रमानुसार मानसिक विकास की उच्च अवस्थाओं में पहुॅंचने के लिए पूर्व की अवस्थाओं से गुजरना आवश्यक होता है। हालॉंकि गोपनिक आदि अनुसंधानकर्ताओं द्वारा प्राप्त शोध परिणाम बतलाते हैं कि मानसिक विकास से संबंधित संज्ञानात्मक बदलाव काफी धीरे-धीरे होते हैं, और ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी Single अवस्था में अनुपस्थित विशेषता दूसरी अवस्था में प्रवेश करते ही अचानक से दिखलायी पड़ने लगती हो। वरन इन विकाSeven्मक बदलावों के अलग अलग दायरे होते हैं, बच्चे किसी चिन्तन के किसी Single दायरे में अधिक कुशल हो सकते हैं And वहीं किसी अन्य में कमजोर हो सकते हैं। जैसा कि हमने जाना कि पियाजे के According बच्चों में ‘समझ का विकास’ उनके द्वारा उनके वातावरण में उपस्थित वस्तुओं के साथ सक्रियता पूर्वक किये गये उनके प्रयास And परिपक्वता के विकास का परिणाम होता है। यहॉं प्रयास से तात्पर्य बच्चों द्वारा वस्तुओं के साथ किये गये व्यवहार And क्रियाओं से होता है।

विगोत्सकी के सामाजिक सांस्कृतिक सिद्धान्त की विशेषता- विगोत्सकी का सिद्धान्त मूलत: स्कूल जाने की आयु वाले बच्चों पर केंद्रित है। वे बच्चे जिनकी आयु 4 वर्ष से लेकर 12 वर्ष के बीच होती है, विगोत्सकी के सैद्धान्तिक अध्ययन का मुख्य विषय रहे हैं। विगोत्सकी ने अपने सिद्धान्त में मानसिक विकास की व्याख्या के लिए दो कारकों पर सर्वाधिक जोर दिया है। 1. सामाजिक कारक And 2. भाषा विकास। सामाजिक कारक- सामाजिक कारकों को समझाते हुए लिव विगोत्सकी का कहना है कि बच्चे जब स्कूल जाने लगते हैं तब उन्हें परिवार से अतिरिक्त Single अन्य समूह से अन्त:क्रिया का अवसर मिलता है यह समूह परिवार के समूह से भिन्न होता है। इस समूह में बच्चे की कक्षा में सहपाठी के Reseller में पढ़ने वाले बच्चे, अन्य कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चे, शिक्षक-शिक्षिकायें And अन्य कर्मचारी शामिल होते हैं। ये सब मिलकर बच्चे के लिए Single सामाजिक वातावरण का निर्माण करते हैं। यह वातावरण बच्चे के मानसिक विकास को अत्यंत प्रभावित करता है।

भाषा विकास – विगोत्सकी के According भाषा बालकों के मानसिक विकास में Single अन्य महत्वपूर्ण कारक होता है। भाषा में भाषा के Wordकोश का विकास महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जिस बच्चे का Wordकोश जितना ही अधिक विस्तृत होता है वह अपने विचारों And भावों की अभिव्यक्ति करने में उतना ही अधिक समर्थ होता है। विगोत्सकी के सिद्धान्त मे ंसंज्ञानात्मक विकास के विभिन्न Reseller विगोत्सकी की मान्यता है कि बालकों में संज्ञानात्मक विकास दो तरह की परिस्थितियों अथवा संदर्भ में होता है। 1- अन्तवर्ैयक्ति संदर्भ (interpersonal context), 2- सामाजिक संदर्भ (social context)। इन संदर्भो में बच्चे का मानसिक विकास Single स्तर से शुरू होकर Second स्तर तक पहुॅंच जाता है। Single स्तर से Second स्तर तक पहुॅंचने के बीच में Single दूरी होती है जिसकी संज्ञानात्मक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

विकास का वास्तविक स्तर – इस स्तर से तात्पर्य बच्चों द्वारा बिना सहायता प्राप्त परिस्थिति में उनके द्वारा किये जा सकने वाले स्वयं के मानसिक विकास से है। Meansात् उन दशाओं में जबकि बच्चे को स्वयं के विकास के लिये केवल स्वयं के प्रयासों पर ही निर्भर रहना पड़ता हो, And उसे समाज के लोगों, खासतौर पर उसके परिवार And शिक्षकों से कोर्इ सहायता न मिल रही हो।

विकास का संभावित स्तर – इस स्तर से तात्पर्य बच्चों द्वारा सहायता प्राप्ति की परिस्थिति में उनके द्वारा किये जा सकने वाले स्वयं के मानसिक विकास से है। Second Wordों में यदि बच्चों को समय समय पर उनके बड़ों यानि उनके शिक्षकों, चाचा-चाची आदि लोगों से सहायता मिलती हो तब बच्चों द्वारा स्वयं का किस सीमा तक मानसिक विकास हो सकता है, Meansात् सहायता मिलने पर बच्चे क्या क्या कर सकते हैं।

सन्निकट विकास का क्षेत्र – उपरोक्त दोनों स्तरों के बीच अन्तर मानसिक विकास के जिस क्षेत्र को प्रदर्शित करता है वही सन्निकट विकास का क्षेत्र है। Single विकास के स्तर को पार कर Second विकास के स्तर तक पहुॅंचने में कुछ महत्वपूर्ण सहायक प्रक्रियायें घटित होती हैं जिनमें परस्पर शिक्षण And स्कैफोल्डिंग महत्वपूर्ण हैं-

‘परस्पर शिक्षण’ (Reciprocal teaching) – बच्चों को बड़ों से जो कि उम्र में वयस्क होते हैं से सामाजिक अंत:क्रिया के द्वारा किस प्रकार की सहायता प्राप्त होती है? इस सवाल के जवाब में विगोत्सकी ने पाया है कि प्राय: यह सहायता ‘परस्पर शिक्षण’ के Reseller में प्राप्त होती है जिसमें बच्चा And शिक्षक बारी बारी से किसी गतिविधि में भाग लेते हैं। ये गतिविधि खेल, सम्भाषण अथवा संगीत आदि के Reseller में हो सकती है। यह प्रक्रिया शिक्षक को बालक के सम्मुख Single मॉडल के Reseller में प्रस्तुत करती है जिससे बालक सीखता है And उसकी समझ विकसित होती है।

स्कैफोल्डिंग (Scaffolding) – बच्चों And उनके बड़ों अथवा शिक्षकों के बीच होने वाली अंत:क्रियाओं से बच्चों को स्कैफोल्डिंग का लाभ मिलता है। स्कैफोल्डिंग Single प्रकार की मानसिक संCreation होती है जिनका प्रयोग बच्चे नये कौशलों में महारत हासिल करने के दौरान And चिंतन के नये तरीकों में कर सकते हैं। विगोत्सकी के According वर्तमान में हुए बहुत से अनुसंधानों से यह प्रमाणित होता है कि बच्चों And शिक्षकों के बीच होने वाली उपरोक्त प्रकार की अंत:क्रियाओं से सामाजिक कौशलों के विकास के साथ संज्ञानात्मक विकास होता है जिसके अन्तर्गत बच्चे की पठन-पाठन की क्षमता, नवीन अंतर्दृष्टि, अनुमानात्मक चिंतन, निष्कर्ष तक पहुॅंचने की क्षमता में उन्नति होती है। इसके अलावा बच्चे अपने सहपाठी बच्चों के साथ अंतक्रिया से बहुत कुछ सीखते हैं जिसमें दूसरों के साथ सहानुभूति प्रदर्शित करने का कौशल, उचित व्यवहार करना, दूसरों के व्यवहार के पीछे की सोच का अनुमान लगाने की कला सीखना जैसे संज्ञानात्मक विकास सम्मिलित हैं।

3. बच्चों के मन का सिद्धान्त 

बच्चों की थ्योरी ऑफ माइंड से तात्पर्य उनके चिंतन के विषय में किये जाने वाले चिंतन से है। Single वयस्क के Reseller में हम All विचार And चिन्तन प्रक्रिया के सम्बन्ध में Single सुलझी हुर्इ समझ रखते हैं। हम यह जानते हैं कि समय के साथ हमारे अपनी सोच में बदलाव आते हैं And हमारे विश्वास, निष्कर्ष And धारणायें गलत भी हो सकती हैं। इसी प्रकार हम यह भी जानते हैं कि हमारे लोगों के अपने उद्देश्य, लक्ष्य And इच्छायें हो सकती हैं जो कि हमारी स्वयं की इच्छाओं And उद्देश्यों से भिन्न हो सकती हैं, And Second लोग हमसे अपनी इच्छाओं And लक्ष्यों को छिपा भी सकते हैं। इसके आगे हम इससे भी परिचित हैं कि Single समय में, Single परिस्थिति में प्राप्त समान जानकारी के बावजूद Second व्यक्तियों के हमसे भिन्न निष्कर्ष हो सकते हैं। Second Wordों में, हम यह समझते हैं कि किस प्रकार हम स्वयं And Second व्यक्ति सोचते हैं। लेकिन क्या बच्चों के साथ भी ऐसा ही होता है? किस आयु में And कैसे उनमें यह समझ विकसित होती है? यह थ्योरी ऑफ माइण्ड के अनुसंधानकर्ताओं का विशिष्ट विषय रहा है।

आइये इसकी शुरूआत सोच के सबसे सरल पहलू से करें, जिसका की संबंध बच्चों द्वारा स्वयं की सोच And दूसरों की सोच में अन्तर होने की पहचान करने की क्षमता से है। बच्चों के मानसिक विकास के अनुसंधान में सहज ही यह प्रश्न उठता है कि क्या बच्चों में यह समझने की क्षमता होती है कि दूसरों की धारणायें And विश्वास उनकी धारणाओं से अलग हो सकते हैं And गलत भी हो सकते है। यह बच्चे इस मूल तथ्य को समझते हैं? इस प्रश्न के उत्तर में पाया गया है कि चार वर्ष के अवस्था से पूर्व बच्चे इस तथ्य को समझने में असमर्थ होते हैं। हालॉंकि दो से तीन साल की उम्र के बच्चे दूसरों की सोच को कुछ हद तक समझने की क्षमता रखते हैं परन्तु वे सोच And विचार के स्वReseller की अन्तर्दृष्टि नहीं रखते हैं। उदाहरण के लिए उनके लिए यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कम दूसरा व्यक्ति चिन्तन कर रहा है। वे यह जानते हैं कि सोचना, बातचीत करने And देखने से भिन्न होता है परन्तु वे इसे पूरी तरह नहीं समझ पाते कि यह Single व्यक्तिगत मानसिक घटना होती है। इसी प्रकार ये बच्चे तब यह जानते हैं जब वे किसी चीज के बारे में जानते ह लेकिन वे प्राय: जानकारी के स्रोत से अनभिज्ञ And अस्पष्ट होते हैं तथा यह नहीं समझ पाते कि यह जानकारी उन्होंने ने स्वयं प्राप्त की है या किसी और ने उन्हें इसके बारे में बताया है। निष्कर्ष Reseller में यह कहा जा सकता है कि 4 वर्ष से कम उम्र के बच्चे इस बात को समझते हैं कि उन्हें जानकारी है परन्तु इस बात को नहीं समझ पाते कि कैसे उन्हे यह जानकारी मिली है।

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