बाबर का History

जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर पितृकुल में तैमूर से 6ठीं पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था और उसकी माँ प्रसिद्ध मंगोल चंगेज खाँ की Fourteenवीं वंशज थी। उसके जीवन पर इन दो महान व्यक्तियों के आदेर्शों And उद्देश्यों का प्रभाव पूर्णResellerेण था। बाबर के बाल्यकाल के समय मध्य एशिया की राजनीतिक दशा चित्रित भी थी। 1 बाबरनामा- पृ. 198-227, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 30-31, डॉ0 राधेश्याम- मुगलसम्राट बाबर, पृ.सं. 165-170.

All आपस में Single Second से ईर्ष्या करते थे। तैमूरी King उजबेगों, मंगोलो और ईरानियों से घिरे हुए थे। फिर भी वे निरन्तर आपस में लड़ते रहे। इनमें से बाबर का पिता उमरशेख मिर्जा भी महत्वाकांक्षीं और झगड़ालू था। अन्य Wordों में Single ओर तो उमरशेख मिर्जा और उसके भाई, दूसरी ओर मंगोल और अबुल खैर का वंशज शैबानी खाँ, All Single Second के विरुद्ध घात लगाये बैठे हुये थे। ऐसी विषम परिस्थितियों ने बाबर को अधिक जागरूक, संघर्षशील And महत्वाकांक्षी बना दिया।

बाबर का संक्षिप्त परिचय

नाम जहीरूद्दीन मुहम्मद बाबर
राजकाल 1529-30 ई .तक
जन्म स्थान फरगना में रूसी तुर्किस्तान का करीब
80,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र
पिता उमर शेख मिर्जा, 1494 ई. में
Single दुर्घटना में मृत्यु हो गयी,
नाना यूनस खां
चाचा सुल्तान मुहम्मद मिर्जा
भाई जहाँगीर मिर्जा, छोटा भाई नासिर मिर्जा
पत्नी चाचा सुल्तान मुहम्मद मिर्जा
की पुत्री आयशा बेगम
मृत्यु 26 दिसम्बर, 1530 ई. (आगरा)
48 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई।
उत्तराधिकारी हुमायूं,
Fight पानीपत’ खानवा और घाघरा जैसी विजयों
ने उसे Safty और स्थायित्व प्रदान Reseller।
प्रधानमंत्री निजामुद्दीन अली खलीफा

भारतवर्ष आगमन के पूर्व बाबर का काबुल राज्य उत्तर में हिन्दूकुश की पहाड़ियों से लेकर पश्चिम में खुरासन की सीमाओं तक, और पूर्व में आबे-इस्तादह के मैदानों से लेकर दक्षि१ण में चगन सराय तक फैला हुआ था। काबुल पर अधिकार करने के पूर्व बाबर कभी भी स्थिर नहीं रह सका था, उसे समकन्द, अन्दजान, खीजन्द And फरगना आदि स्थानों पर अनेक जातियों जैसे हिन्दू तथा अफगानी विद्रोहियों को चुनौती देनी पड़ी थी, साथ ही शाही परिवार के सदस्यों तथा स्थानीय जनता के द्वारा किये गये विद्रोहों का भी सामना करना पड़ा था। सन् 1494 ई0 में मुगल राजकुमार सुल्तान महमूद के द्वारा उत्तर की तरफ से और सुल्तान अहमद ने पूर्व की तरफ से फरगना पर आक्रमण। दुर्भाग्यवश उसी समय 1494 ई0 में बाबर के पिता उमर शेख मिर्जा की Single दुर्घटना में मृत्यु हो गयी, उस समय उमर शेख मिर्जा का बड़ा पुत्र बाबर जिसने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी, बारह वर्ष का था।

बाबर का पिता उमर शेख मिर्जा फरगना के छोटे राज्य का King था, जो आधुनिक समय में रूसी तुर्किस्तान का करीब 80,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र का Single छोटा सूबा है। इतनी अल्पावस्था में बाबर तैमूरियों की गद्दी पर बैठा, जिसके लिए सम्भवत: भाग्यशाली परिस्थितियाँ ही उत्तरदायी थीं क्योंकि फरगना का यह अल्पवयस्क King चारों तरफ से प्रबल शत्रुओं से घिरा हुआ था। ये शत्रु उसके प्रिय बन्धु ही थे जो प्रबल महत्वाकांक्षाओं से सशक्त थे और परिस्थितियों का लाभ उठाना चाहते थे।1 बाबरनामा, 1, पृ. 198-227, डॉ0 राधेश्याम, मुगल सम्राट ‘बाबर’, पृ.सं. 165-170, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, ‘‘मुगल कालीन भारत ‘बाबर’ ‘‘, पृ.सं. 30-31. 2 बाबरनामा, 1, पृ. 198-227, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 30-31, डॉ0 राधेश्याम- मुगलसम्राट बाबर, पृ.सं. 165-170. 3 बाबरनामा, 1, पृ. 198-227, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 30-31, डॉ0 राधेश्याम- मुगलसम्राट बाबर, पृ.सं. 165-170. 4 ‘तुजुके बाबरी’, 1, पृ.सं. 227, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 8-9, डॉ0 राधेश्याम- मुगलसम्राट बाबर, पृ.सं. 170.

इसके साथ ही उजबेग सरदार शैबानी खाँ से अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए लड़ना पड़ा। बाबर में तैमूर एव चंगेज के वंशजों का रक्त प्रवाहित था जो अत्यधिक महत्वाकांक्षी और सम्पूर्ण विश्व के केन्द्रीयकरण में विश्वास करते थे। अत: सम्पूर्ण समस्याओं से जूझते हुए भी बाबर ने Single बार पुन: अपनी इस इच्छा को पूर्ण करना चाहता था। अवस्था में बहुत छोटें होते हुए भी बाबर ने अमीर तैमूर की राजधानी ‘समरकन्द’ को जीतने तथा तैमूर की गद्दी पर बैठने का निश्चय कर लिया।

बाबर को अनेक समस्याओं का सामना करने के साथ ही अपने परिवार तथा भाई बन्धुओं के विद्रोह का भी सामना करना पड़ा, क्योंकि तत्कालीन विघटित परिस्थितियों का लाभ उठाकर All अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने हेतु तत्पर रहते थे। इस प्रकार समरकन्द की गद्दी मध्य एशिया के All Kingों, मंगोल सुल्तानों की महत्वाकांक्षाओं और रूचियों की केन्द्र बिन्दु बनी हुयी थी। इनका Single कारण यह थी कि उस समय में समकरन्द राजनीतिक, व्यापारिक, आर्थिक And सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व रखता था। समरकन्द मध्यएशिया का हृदय था। इसकी जलवायु, उपजाऊपन, सुन्दरता, यश सम्पन्नता और

ऐतिहासिक महत्व All तैमूरियों को आकर्षित करते थे। बाबर जो Single महत्वाकांक्षी, संस्कारयुक्त, वादापूर्ण करने वाला नवयुवक था, वह समरकन्द की गद्दी के लिये प्रयासरत लोगों का अधिक विरोध नहीं कर सका। परिणाम यह हुआ कि समरकन्द सम्पूर्ण मध्य एशिया विवादों का केन्द्र बन गया जो अन्ततोगत्वा तैमूरियों के विघटन के लिए उत्तरदायी हुआ।1 तुजुके बाबरी, भाग 1, पृ.सं. 227, डॉ0 राधेश्याम- मुगलसम्राट बाबर, पृ.सं. 170. 2 तुजुके बाबरी, भाग 1, पृ.सं. 227-228, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 8-9. 3 रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 25-30, तुजुके बाबरी, भाग 1, पृ.सं. 227-28, डॉ0 राधेश्याम- मुगल सम्राट बाबर, पृ.सं. 165-170, स्टेनली लेनपूल, बाबर, पृ. सं. 60.

बाबर ने अपनी महत्वाकांक्षाओं के पूर्ति के लिए अWindows Hosting फरगना की दशा, सामन्तों तथा अमीरों के अकृतज्ञ स्वभाव के मध्य First सन् 1496 ई0 में समरकन्द पर चढ़ाई की। उसके चाचा हिसार के सुल्तान मुहम्मद मिर्जा की मृत्यु Single वर्ष हुई थी, जिसे समरकन्द और बुखारा के सामन्तों ने वहाँ शासन करने हेतु आमन्त्रित Reseller था। सुल्तान महसूद का पुत्र बायसुंगर मिर्जा गद्दी पर बैठा लेकिन नगर के सामन्तों के असहयोग के कारण वह शीघ्र ही असफल हुआ। तत्कालीन कुछ अमीरों ने हिसार पर शासन करने हेतु मंगोल राजकुमार सुल्तान महमूद को आमन्त्रित Reseller लेकिन वह अन्तत: बायसुंगर मिर्जा द्वारा पराजित हुआ। अपनी योजना में असफल होने के बाद अमीरों ने पुन: सुल्तान अली को गद्दी पर बैठने हेतु आमन्त्रित Reseller, जो बायसुंगर का छोटा भाई था। दो भाईयों के मध्य छिड़ा यह संघर्ष बाबर के लिये Single चुनौती था, उसने उत्कृष्ट परीक्षण से समरकन्द के लिये अभियान जारी Reseller और सन् 1496 ई0 तक कब्जा कर लिया। परन्तु वह (बाबर) वहाँ पर किसी प्रकार का प्रभाव जमाने में असफल रहा, कारण कि मौसम उसके अनुकूल नहीं था। ऐसी परिस्थितियों में प्रतीत होता है कि बाबर की शक्ति अपने अन्य सम्बन्धियों की अपेक्षा सुदृढ़ थी, तथा अमीर भी उसके पक्ष की ही तरफदारी करते थे, जिससे वह फरगना के First अभियान में सफल हुआ था।1 तुजुके बाबरी, भाग 1, (अंग्रेजी अनुवादक ए.एस. बेवरीज) भाग 1, पृ.सं. 127-28, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगल कालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 30-32, डॉ0 राधेश्याम- मुगल सम्राट बाबर, पृ.सं. 165-170. 2 रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 25-30, तुजुके बाबरी, भाग 1, पृ.सं. 227-28, डॉ0 राधेश्याम- मुगल सम्राट बाबर, पृ.सं. 165-170, स्टेनली लेनपूल, बाबर, पृ. सं. 60. 3 तुजुके बाबरी, भाग 1, अंग्रेजी अनुवादक (ए.एस. बेवरीज), पृ.सं. 129-29, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 9-10, स्टेनली लेनपूल बाबर’ पृ.सं. 60-61. 4 बाबरनामा, 1, पृ. 198-206, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, ‘‘मुगल कालीन भारत ‘बाबर’ ‘‘, पृ. सं. 30-31. 5 स्टेनले लेनपूल, ‘बाबर’ पृ.सं. 60-61, डॉ0 राधेश्याम- मुगल सम्राट बाबर, पृ.सं. 165-175.

मई सन् 1497 ई0 में बाबर और सुल्तान अली ने संयुक्त Reseller से समरकन्द का घेरा डाला। यह घेरा इतने अधिक परिश्रम से डाला गया था कि बायसुंगर ने शाह बेग खान को अपनी सहायता हेतु बुलाया। इस Fight ने उजबेगों की शक्ति को Single बार पुन: संगठित Reseller, यहाँ तक कि शैबानी खान को भी अपनी सहायता हेतु बुलाया, परन्तु शैलानी खान भी बाबर के सैनिकों के विरोध के आगे स्थिर नहीं रह सका, बायसुंगर का भी अपने सहयोगियों पर से विश्वास उठ गया और उसने बाबर को शान्तिपूर्ण ढंग से बात करने हेतु आमन्त्रित Reseller। इन कार्यवाहियों से क्षुब्ध होकर शैबानी खान ने पुन: अपने क्षेत्र में ही रहना उचित समझा। बायसुंगर ने भी अपने क्षेत्र में ही शान्तिपूर्वक रहना उचित समझा। नगर की जनता और अमीरों ने इस संकटपूर्ण स्थिति मे बाबर को आमन्त्रित Reseller। इस प्रकार बाबर ने यह महसूस Reseller कि, अस्थायी ही सही लेकिन उसकी महत्वाकांक्षाओं की 1497 ई0 तक, समरकन्द में आंशिक Reseller से पूर्ति हुयी, जिसकी वह कामना करता था।

बाबर ने तिरमिज नामक स्थान पर यह निश्चय Reseller कि मध्य एशिया में अपने को स्थिर करना अनुपयोगी और अनुचित था और जब वह अपने भाग्य, दुर्भाग्य का फैसला करना ही चाहता था तो उसे इस कार्य हेतु अफगानिस्तान में प्रयास करना चाहिये, जहाँ की सरकार अस्थिर और अयोग्य तथा कबीली हो चुकी थी। काबुल की तत्कालीन परिस्थितियां बाबर के पक्ष में थी And वह केन्द्रीकरण में अधिक विश्वास करता था। उलुग बेग मिर्जा की मृत्यु 1501 ई0 में ही हो चुकी थी। उसका अवव्यस्क पुत्र अब्दुर्रज्जाक उकसा उत्तराधिकारी नियुक्त हुआ। 1 तुजुके बाबरी, भाग 1, पृ.सं. 100-198, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 11-12. 2 बाबरनामा, 1, पृ. 100-150, स्टेनली लेनपूल, ‘बाबर’, पृ.सं. 61, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 11-15. 

मुहम्मद मुकीम जो हज़ारा से आया था, ने काबुल की शक्ति और सत्ता पर कब्जा कर लिया था। उसने उलुग बेक मिर्जा की पुत्री से शादी भी कर ली और अपनी पूर्व की सामन्तीय स्थिति को पुन: प्राप्त करना चाहता था। इन कारणों से काबुल का राज्य पूर्णत: अस्थिर तथा दुर्बल हो चुका था। बाबर ने इस विघटित परिस्थिति का पूरी तरह से लाभ उठाने की कोशिश की।

मुहम्मद मुकीम को पराजित करके बाबर काबुल की ओर बढ़ा, जो उजबेगों के घोर उपद्रव के कारण उस क्षेत्र में Only अमीर तैमूरियों का हिस्सा रह गया था। बाबर ने काबुल पर जब अधिकार Reseller तो कुछ अमीर तथा अनेक जातियों And कबीलों के लोग उससे मिल गये, जिनका मुख्य उद्देश्य बाबर के संरक्षण में अपनी रक्षा का उपाय ढूंढना था। बाबर ने भी काबुल का प्रशासन ठीक करने हेतु अमीरों And अपने परिवार जनों में उस राज्य का विभाजन Reseller था।

बाबर ने गजनी व उसके अधीनस्थ प्रदेश, जहाँगीर मिर्जा को दिया, नासिर मिर्जा को मिन्गनहार, मन्द्रावार, नूरघाटी, कुनार नूरगल और चिगनसराय दिया। अमीरों को उसने गांव जागीर में दिये। काबुल तथा उसके अधीन प्रदेशों को अपने हाथों में रखा। ऐसा प्रतीत होता है कि काबुल राज्य को प्रशासनिक सुविधा के लिये बाँटते हुए तथा जागीरें प्रदान करते हुए और काबुल के सीमित साधनों को देखते हुए बाबर ने किसी सिद्धान्त का पालन नहीं Reseller था। न तो उसने All को बराबर-बराबर बांटने वाले सिद्धान्त को अपनाया और न ही उसने अमीरों की कार्यकुशलता, उनकी सेवाओं तथा Single लम्बी अवधि से उसकी सेवा में होने का ही ध्यान रखा। वैसे दोनों में से किसी Single सिद्वान्त को अपनाया इस समय कठिन था। यदि वह First सिद्धान्त को अपनाया तो केन्द्र शासन कमजोर हो जाता और विभिन्न भागों में इसके अमीर अपनी स्वतंत्रता घोषित करने के पीछे नहीं डटते। Second सिद्धान्त को इसलिये नहीं अपनाया जा सकता था क्योंकि ऐसे अमीरों की संख्या, जिन्होंने बाबर की सेवा बहुत दिनों से की, बहुत अधिक थी तथा उनमें से All अमीरों की सेवा पर विश्वास भी नहीं Reseller जा सकता था। Third- काबुल के साधन सीमित थे और ऐसी स्थिति में प्रत्येक अमीर, चाहे वह मुगल हो या तुर्क अथवा ईरानी या तुरानी, को संतुष्ट रखना दुष्कर कार्य था। इस अवसर पर बाबर से Single भूल अवश्य हुई कि उसने अपने पुराने सेवकों को तथा अन्दीजन के अमीरों को समृद्धिशाली And उपजाऊ प्रदेश दिये और उनसे निम्न श्रेणी के बेगों को कम आय वाले या बन्जर प्रदेश तथा छोटे-छोटे गांव जागीर में दिये। इस प्रकार अमीर वर्ग के साथ पक्षपात करके Second वर्ग को उसने आलोचना करने का अवसर दिया, Second जागीरों को बांटते समय उनके तनिक भी सतर्कता से काम नहीं लिया।  1 बाबरनामा, 1, पृ. 190-198, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 13. 2 बाबरनामा, 1, पृ. 100-199, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 30-32, डॉ0 त्रिपाठी आर.पी. ‘मुगल साम्राज्य का उत्थान And पतन’, पृ.सं. 13-14. 3 बाबरनामा, 1, पृ. 226, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 32-33.

बाबर काबुल में आने के बाद भी स्थिर नहीं रह सका, क्योंकि उसको उस समय हजारों अफगानों तथा अपने निकट के व्यक्तियों, सलाहकारों जैसे बाकी चगिनियानी के विश्वासघाती क्रियाकलापों का सामना करना पड़ा। उसको इस अभियान से यह लाभ हुआ कि उसने मध्य एशिया से आयी कबायली जातियों को अपने साथ अभियान में शामिल रखा जिससे वे विद्रोही नहीं हुए और उसे यह भी पता चला कि अफगान जातियों में Singleता का अभाव है। मध्य एशिया के तैमुरिया के All सदस्य सम्भवत: अत्यधिक महत्वकांक्षी और अवसरवादी प्रवृत्ति के थे, अवसर पाते ही वे अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में जुट जाते थे तथा उस समय वे अन्य किसी भी बाधा का सामना करने हेतु तत्पर रहने थे जैसा कि तत्कालीन नासिर मिर्जा और जहाँगीर मिर्जा के विद्रोहों से ज्ञात होता है। बाबर को काबुल में न केवल अनेक जातियों जैसे अफगान, हजारा, बिलोची आदि के विद्रोहों का ही सामना करना पड़ा, वरन् अनेक बार शाही परिवार And सामन्तों के व्रिदोहों का भी मुकाबला करना पड़ा था। बाबर ने उस शाही परिवारजनों के विद्रोहों का दमन करने के लिये मित्रता, कूटनीति तथा दमनकारी नीति का सहारा लिया था। बाबर का छोटा भाई नासिर मिर्जा सम्भवत: बाबर द्वारा दी गई जागीर के Reseller में मन्द्रावार, नूरघाटी कुनार, नूरगल व नीनगनहार के क्षेत्र से सन्तुष्ट नहीं था, उसकी उस असंतुष्टि ने विद्रोह का Reseller धारण कर लिया अत: उसने सन् 1505 ई0 में बाबर के विरूद्ध विद्रोह कर दिया और कूटनीति से खुसरो साह से भी समझौता कर लिया, लेकिन जब बदख्शां के लोगों को जो नासिर मिर्जा के समर्थक थे, इस समझौते के विषय में पता चला तो उन्होंने खुसरो साह से भी समझौता कर लिया, लेकिन जब बदख्शां के लोगों को जो नासिर मिर्जा के समर्थक थे, इस समझौते के विषय में पता चला तो उन्होंने खुसरो शाह का स्वागत करने से इन्कार कर दिया।1 बाबरनामा, 1, पृ. 100-225, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 32-33. 2 बाबरनामा, 1, पृ. 100, 227, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 41-42, डॉ0 राधेश्याम- मुगल सम्राट बाबर, पृ.सं. 174-75.

नासिर मिर्जा ने Single चाल चली, उसने इश्कमिश में डेरा डाला तथा अपनी सेना को तैयार Reseller। खुसरोशाह घबराकर अपने कुछ सैनिकों के साथ कुन्दुज के दुर्ग को जीतने हेतु चल पड़ा। खुसरोशाह के आने की सूचना पाकर हिसार के दुर्ग के सैनापति ने हम्ज सुल्तान के साथ खुसरोशाह पर आक्रमण करके उसे बन्दी बना लिया और शीघ्र ही मौत के घाट उतार दिया। नासिर मिर्जा ने बदख्शां से उजबेगों को हराकर भगा दिया। इस प्रकार ऐसा प्रतीत होता है कि अब तक उजबेगों की स्थिति दुर्बल हो गई थी।

इस संघर्ष में यद्यपि नासिर मिर्जा को पूर्ण सफलता प्राप्त हुई लेकिन फिर भी वह बदख्शां में अपना प्रभुत्व नहीं स्थापित कर सका था, बदख्शां के कुछ अमीरों ने जो बाबर की आज्ञा के पालक थे, नासिर मिर्जा के विरूद्ध विद्रोह कर दिया। इसका प्रभाव यह पड़ा कि नासिर मिर्जा बदख्शां से बाबर के अमीरों से भयभीत होकर पलायन करके काबुल चला गया। इस विद्रोह में नासिर मिर्जा को पूर्ण सफलता मिलने के उपरान्त भी वह इस क्षेत्र में स्थिर नहीं रह सका, इसका Single कारण वहां के अमीरों की बाबर के प्रतिपूर्ण निष्ठा थी, जिसका परिणाम यह हुआ कि इन अमीरों ने नासिर मिर्जा को वहां रुकने नहीं दिया।1 बाबरनामा, 1, पृ. 100-227, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास, मुगलकालीन भारत ‘बाबर’ पृ.सं. 43-44, डॉ0 राधेश्याम- मुगल सम्राट बाबर, पृ.सं. 170-175. 2 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 228, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 43-44, डॉ0 राधेश्याम, मुगल सम्राट, बाबर, पृ.सं. 170-175. 

इस समय तक Single बार पुन: बाबर को, बाकी चगिनियानी जो उसका Single परामर्शदाता था, के विश्वासघाती कार्यों का सामना करना पड़ा। बाबर 1505 ई0 के अन्त तक उससे तंग आ चुका था अत: जब उसने पुन: त्याग पत्र दिया तो बाबर ने उसे स्वीकार कर लिया तथा उसे परिवार सहित हिन्दुस्तान जाने की अनुमति दे दी। लेकिन मार्ग में वह यार हुसैन द्वारा मारा गया बाबर ने तुर्कमान हजारा व अफगानों को भी 1506 ई0 के प्रारम्भ में शान्त करना चाहा जो काबुल से पंजाब तक के स्थानों पर लूटमार कर रहे थे। इस अभियान में उसे सफलता मिली। इस समय वह थोड़ा अस्वस्थ भी हो गया था। अत: उपर्युक्त परिस्थितियों का अवलोकन करने से यह स्पष्ट होता है कि बाबर इस समय अनेक कठिनाइयों में व्यस्त होने के साथ ही अस्वस्थ भी था, जिसका पूर्ण फायदा उसके भाईयों And सगे सम्बन्धियों ने उठाया तथा बाबर के विरूद्ध उठ खड़े हुये।

अप्रैल 1506 में जब बाबर काबुल में था, उसी समय जहाँगीर मिर्जा (बाबर का भाई) ने अयूब के पुत्र यूसूफ तथा बहलोल से मिलकर बाबर के विरूद्ध षडयंत्र करना प्रारम्भ कर दिया। जहाँगीर मिर्जा के विद्रोह करने के कारणों का History अस्पष्ट है। सम्भवत: जहाँगीर मिर्जा को जो गजनी प्रदेश जागीर के Reseller में दिया गया था, उससे वह सन्तुष्ट नहीं था, और इसी कारण उसने विद्रोह Reseller था। अपने सहमित्रों के साथ वह काबुल से भाग गया। नानी के दुर्ग पर जहाँगीर मिर्जा ने आक्रमण Reseller, उसे अधिकृत करके उसने आसपास के प्रदेशों को लूटना प्रारम्भ Reseller। अब तक जहाँगीर पूर्णत: व्यभिचारी, शराबी और अपव्ययी व्यक्ति हो चुका था, अपने अशिष्ट व्यवहार की तनिक भी चिन्ता नहीं करते हुये उसने हजारा अफगानों के देश को पार Reseller और बमियान की ओर मुगल कबीलों से मिलने चल दिया। वह चाहता था कि मुगल उसकी सहायता करें। जहाँगीर मिर्जा की कार्यवाहियों को देखकर बाबर चिन्तित हुआ क्योंकि बाबर यह भली भांति जानता था कि मुगल उसका साथ देकर केवल अपने ही स्वार्थ को सिद्ध करने की चेष्टा करेंगे। अभी वह जहाँगीर मिर्जा के विद्रोह को दबाने की बात सोच ही रहा था कि मध्य एशियाई राजनीति तथा खुरासान के राज्य में होने वाली कुछ घटनाओं ने, जिसकी प्रतीक्षा वह बहुत दिनों से कर रहा था, बाबर का ध्यान आकृष्ट Reseller। इस समय शैबानी खाँ ने Single बार पुन: तैमूरियों को छिन्न-भिन्न करने का निश्चय Reseller। वास्तव में तैमूरियों व उजबेगों के मध्य शक्ति के लिये यह अन्तिम संघर्ष था। खुरासान के सुल्तान हुसैन मिर्जा बैकरा ने बाबर को इस अभियान में शामिल करने हेतु आमन्त्रित Reseller क्योंकि वह भी खुरासान की रक्षा उजबेगों से करना चाहता था। बाबर तो First तो उजबेग (मुगलों की उपजाति) के नेता शैबानी खाँ से घृणा करता था, Second वह खुरासान जाते समय जहाँगीर मिर्जा के विद्रोह को शान्त करना चाहता था या उसे किसी भी प्रकार से अपने पक्ष में करके षडयंत्र करने से रोकना चाहता था, अत: उसने खुरासान की ओर प्रस्थान Reseller।1 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 228, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 43-44. 2 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 250, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 49. 3 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 250, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 49. 4 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 250, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 49. 5 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 254-55, डॉ0 राधेश्याम, मुगल सम्राट, बाबर, पृ.सं. 175-176.

बाबर के आगे बढ़ने की सूचना पाकर जहाँगीर मिर्जा बामियान से भागकर निकटवर्ती पहाड़ियों में चला गया। बाबर को जहाँगीर के प्रति शंका थी कि कहीं वह पीछे से ही आक्रमण न कर दें, अत: उसने कुछ अस्त्र-शस्त्र उश्तुर शहर में छोड़ दिये। उसके जौहक, सैगर तथा दन्दार-ए-शिंकन दर्रा पार करके कहमर्द में रूकने के कारण अमैक जाति घबरा गई और उसने जहाँगीर मिर्जा की सहायता नहीं की। इसी समय बाबर को पता चला कि उजबेग बदख्शां की ओर बढ़ रहे है। अत: शाहदान से मुबारक शाह तथा नासिर मिर्जा बढ़े और उन्होंने उजबेगों के Single दल को हरा दिया। ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय तब उजबेगों की स्थिति दुर्बल हो गयी थी। लेकिन इसी समय मिर्जा हुसैन बैंकरा की मृत्यु का समाचार बाबर को मिला जो हिरात से शैबानी खान का दमन करने आ रहा था। फिर भी उसने खुरासान का अभियान जारी रखा, इसके कई कारण थे। यदि वह काबुल लौट जाता तो, जहाँगीर मिर्जा के विद्रोह का दमन नहीं कर पाता और ऐसी स्थिति में जहाँगीर मिर्जा, नासिर मिर्जा तथा अन्य लोगों के साथ मिलकर काबुल में गड़बड़ियाँ उत्पन्न करता, सम्भव यह भी होता कि वह काबुल की सत्ता भी हथियाने का प्रयास करता और उस प्रयास में वह काबुल की जनता And अमीरों को अपने पक्ष में करने का पूरा-पूरा प्रयास करता, क्योंकि तैमूरियों की Single प्रमुख विशेषता थी उसकी अटूट महत्वाकांक्षा, जिसे वे पूर्ण करने की चेष्टा Reseller करते थे।1 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 199-206, डॉ0 राधेश्याम, मुगल सम्राट, बाबर, पृ.सं. 175-76. 2 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 250-51, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ. सं. 49-50.

अतएव बाबर अजर घाटी से होता हुआ तूप व मन्दगाज की ओर बढ़कर बल्ख नदी को पारकर साफ नामक स्थान पर पहुंचा। इस समय तक भी उजबेग, खान और चारयक नामक स्थान पर लूट-पाट मचाये हुये थे, और खुरासान को जाने वाले मार्ग रोक रखे थे। बाबर ने कासिम बेग के अधीन Single सेना भेजी जिसने उजबेगों को पराजित Reseller और अनेक लोगों को मारकर वह मुख्य सेना से आकर मिल गया। इसी स्थान पर अनेक ऐमक जातियां उसकी सेवा में आयीं तथा जहाँगीर मिर्जा भी उसकी सेवा में उपस्थित हुआ। इस प्रकार बाबर को दो प्रकार से लाभ हुआ- Single तो उसका विद्रोही भाई उसके अधीन हो गया Second उपबेगों की भी क्षणिक पराजय हो गयी। तत्कालीन सम्पूर्ण परिस्थितियों को दृष्टिगोचर करने पर यह स्पष्ट होता है कि बाबर की संगठित शक्ति को देखकर जहाँगीर मिर्जा ने स्वयं विद्रोह के विचार को त्याग दिया होगा, क्योंकि 1506 ई0 में ही बाबर ने खुरासान की ओर प्रस्थान Reseller। अत: ऐसा भी हो सकता था कि जहाँगीर मिर्जा काबुल की गद्दी पर आरूढ़ हो जाता, लेकिन उसने ऐसा नहीं Reseller।1 खुरासान जाते समय बाबर काबुल में मोहम्मद हुसैन दोगलात् और खान मिर्जा को छोड़ गया था। लेकिन मोहम्मद हुसैन दोगलात् ने काबुल के All मुगलों को अपनी तरफ मिलाकर खान मिर्जा को सुल्तान घोषित कर दिया। उसने यह खबर फैला दी कि सुल्तान हुसैन मिर्जा के पुत्र बाबर के साथ विश्वासघात करने वाले हैं। उन्होंने खुरासान में बाबर के कैद किये जाने की भी खबर फैला दी। इस षडयंत्र में बाबर की सौतेली नानी शाहबेग, जो कि यूनुस खान की दूसरी पत्नी थी, का हाथ था। खान मिर्जा उसका सगा नाती था और बाबर सौतेला। इस प्रकार काबुल की अस्त-व्यस्त परिस्थितियाँ और अनेक अफवाहों के उड़ने से बाबर शीघ्र ही खुरासान से काबुल पहुंचा। विद्रोहियों ने थोड़े से प्रयासों के बाद शीघ्र ही आत्मसमर्पण कर दिया। इस षडयंत्र के अपराधियों के प्रति बाबर का व्यवहार बहुत ही अच्छा रहा। शाहबेगम, खान मिर्जा और मोहम्मद हुसैन मिर्जा से भी बाबर ने प्रसन्नतापूर्ण भेंट की और मोहम्मद हुसैन मिर्जा को खुरासान जाने की अनुमति दे दी।1 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 296, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 49.

बाबर का यह व्यवहार उसकी स्वाभाविक उदारता के साथ-साथ कुशल राजनीतिज्ञता का भी परिचायक है। ऐसे समय में जबकि काबुल में बाबर की स्थिति बहुत ज्यादा दृढ़ नहीं थी और मध्यएशिया में शैबानी खान जैसा प्रबल उजबेग शत्रु शक्तिशाली था, खान मिर्जा, शाहबेगम या मोहम्मद हुसैन मिर्जा जैसे अपने निकट सम्बन्धियों को दण्ड देकर मंगोलों से शत्रुता मोल लेना दूरदर्शिता नहीं थी।

इस प्रकार बाबर को प्रारम्भ से ही अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति करने हेतु And Single बार पुन: तैमूरिया वंश की शक्ति को मध्यएशिया में स्थापित करने के  लिये अनेक कठिनाईयों के साथ-साथ विद्रोहों का भी सामना करना पड़ा था, जिसमें शाही परिवार के सदस्यगणों ने भी उसके विरूद्ध अभियान जारी रखे। ये लोग सदैव ही ऐसे अवसर की ताक में रहते थे, कि कब साम्राज्य की स्थिति दुर्बल हो, King की स्थिति कमजोर हो और वे उसका लाभ उठाकर अपनी इच्छा की पूर्ति करें, लेकिन अधिकांश समय में इन शाही परिवार के सदस्यों को सफलता नहीं मिली, इसके पीछे सम्भवत: बाबर की दृढ़ इच्छा शक्ति, महत्वाकांक्षा और उसके क्रिया कलाप थे।1 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 296, रिजवी सैय्यद अतहर अब्बास मुगल कालीन भारत, बाबर, पृ.सं. 49. 2 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 290-97, वन्दना पराशर, बाबर-Indian Customer संदर्भ में, पृ.सं. 8. 3 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 290-97, वन्दना पराशर, बाबर-Indian Customer संदर्भ में, पृ.सं. 8. 4 बाबरनामा, भाग-1, पृ.सं. 196-200, वन्दना पराशर, बाबर-Indian Customer संदर्भ में, पृ.सं. 8.

बाबर के आक्रमण के समय भारत की स्थिति

सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में Meansात् बाबर के आक्रमण के समय भारतवर्ष की राजनीतिक अवस्था बहुत ही सोचनीय And दयनीय थी। कोई भी ऐसा शक्तिशाली केन्द्रीय राज्य नहीं था जो समस्त भारत पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित कर सके। दिल्ली के King सुल्तान इब्राहीम लोदी के शासन का प्रभाव क्षेत्र केवल दिल्ली तथा उसके आस-पास के प्रदेशों तक ही सीमित था। देश कई छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित हो चुका था; जो प्राय: आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे। इन राज्यों के King परस्पर ईष्र्या, राग, द्वेष रखते थे। उनमें राष्ट्रीय Singleता का सर्वथा अभाव था। कई Kingों के बीच आपसी शत्रुता इतनी तीव्र थी कि वे अपने शत्रु का सर्वनाश करने के लिए विदेशी आक्रमणकारी को आमंत्रित करने में भी नही हिचकिचाते थे। इससे भी बढ़कर दुर्भाग्य की बात यह थी कि दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी ने उत्तरी-पश्चिमी सीमा प्रान्त की Safty की ओर कोई ध्यान नहीं दिया था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद महोदय ने भारतवर्ष की तत्कालीन दयनीय अवस्था का History करते हुए कहा है कि सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में भारत कई राज्यों का संग्रह बन गया था। कोई भी विजेता जिसमें इच्छाशक्ति और दृढ़ निश्चय हो, आसानी से यह उसके आक्रमण का शिकार हो सकता था और सफलता अर्जित कर सकता था। 1 डॉ. ईश्वरी प्रसाद : ए शार्ट हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूल इन इण्डिया, पृ. 213.

बाबर के आक्रमण के समय हिन्दुस्तान का अधिकांश भाग दिल्ली साम्राज्य के अधिकार में था, परंतु देश में अन्य कई स्वतंत्र और शक्तिशाली King भी थे। बाबर ने स्वयं लिखा है कि उसके आक्रमण के समय भारत में पाँच प्रमुख मुस्लिम राज्य (दिल्ली, बंगाल, मालवा, गुजरात तथा दक्षिण का बहमनी राज्य) तथा दो काफिर (हिन्दू) Kingों (चित्तौड़ तथा विजयनगर) का राज्य था। 1 वैसे तो पहाड़ी और जंगली प्रदेशों में अनेक छोटे-छोटे King और रईस थे, परन्तु बड़े और प्रधान राज्य ये ही थे।

उत्तरी भारत के राज्य – 

उत्तरी भारत में उस समय दिल्ली, पंजाब, सिंध, कश्मीर, मालवा, गुजरात, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, मेवाड़ (राजस्थान) आदि प्रमुख राज्य थे। इन राज्यों की राजनीतिक अवस्था इस प्रकार थी-

दिल्ली – बाबर के आक्रमण के समय दिल्ली पर लोदी वंश के King इब्राहीम लोदी का आधिपत्य था। वह Single अयोग्य और उग्र स्वभाव का व्यक्ति था। उसके दुव्यर्वहार के कारण कई स्थानों पर विद्रोह होने लगे। बाबर ने इब्राहीम लोदी के बारे में लिखा है कि वह Single अनुभवहीन व्यक्ति था तथा अपने कार्यों के प्रति लापरवाह था। वह बिना किसी योजना के आगे बढ़ जाता, रूक जाता और पीछे लौट जाता था। Fight क्षेत्र में भी वह अदूरदर्शिता से लड़ता था। वह अभिमानी तथा निर्दयी था। उसने अपनी कठोर नीति और दुव्र्यवहार के कारण अपने अमीरों और सरदारों को रूष्ट कर दिया था। परिणाम स्वReseller वे विद्रोही हो गये तथा उसे पदच्युत करने के लिए षड्यंत्र करने लगे। लाहौर के गवर्नर दौलत खां लोदी ने अपने आपको स्वतंत्र घोषित कर दिया और इब्राहीम के विरूद्ध षड्यंत्र रचने के लिये बाबर की सहायता प्राप्त करने का प्रयत्न Reseller। दरिया खां लोदी बिहार में स्वतंत्र King बन बैठा था और उसके पुत्र बहादुर खां ने बहुत से प्रदेश विजय कर लिए थे।1 बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 459. 2 तुजुक-ए-बाबरी, उद्धृत मिश्रिलाल मांडोत, मुगल सम्राट् बाबर, पृ.46.

दिल्ली की तत्कालीन स्थिति के परिप्रेक्ष्य में एर्सकिन महोदय ने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा है कि दिल्ली का लोदी साम्राज्य थोड़ी सी स्वतंत्र राज्य जागीरों तथा प्रान्तों का बना हुआ था। अत: इसका शासन-प्रबन्ध वंश-परंपरागत सरदारों, जमींदारों तथा दिल्ली के प्रतिनिधियों के हाथों में था। वहाँ की जनता अपने गवर्नर को, जो वहाँ का Single मात्र King था और जिसके हाथ में जनता को सुखी या दु:खी रहना था। फलत: उसे ज्यादा मानती थी, क्योंकि सुल्तान उनसे बहुत दूर था। व्यक्ति का शासन था और नियमों का कोई महत्त्व न था।

यद्यपि वैसे तो दिल्ली का साम्राज्य बहराह से बिहार तक फैला हुआ था। इब्राहीम के पास साधन भी बहुत थे, सेना भी शक्तिशाली थी, परंतु अपनी कुनीतियों के कारण वह इन सबका लाभ नहीं उठा सका। कहने को तो उसका शासन क्षेत्र बहुत विस्तृत था परंतु वास्तव में वह अव्यवस्थित ही था। एर्सकिन ने लिखा है कि दिल्ली के राज्य छोटे-छोटे स्वतंत्र नगरों, जागीरों अथवा प्रांतों का समूह था जिन पर विभिन्न वंशों के उत्तराधिकारियों, जागीरदारों अथवा दिल्ली के प्रतिनिधियों का शासन था। जनता गवर्नर को ही अपना स्वामी मानती थी। सुल्तान का जनता से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं था।1 नागोरी, एस.एल. And प्रणव देव, पूर्वोक्त कृति, पृ. 141.

इस प्रकार की परिस्थितियों में कोई भी सामन्त या सरदार सुल्तान का भक्त नहीं रह गया था, जबकि दिल्ली सल्तनत में सामंतशाही व्यवस्था ही साम्राजय की रीढ की हड्डी मानी जाती थी। सुल्तान की मान प्रतिष्ठा में बहुत कमी हो गई थी। दिल्ली का साम्राज्य दुर्बल, अव्यवस्थित And दीनहीन हो गया था। विरोधियों का प्रतिरोध उत्तरोत्तर बढ़ता चला जा रहा था। अतएव बाबर जैसे शक्तिशाली और महत्त्वाकांक्षी आक्रमणकारी, जिसके पास विजय प्राप्त करने के लिए इच्छा शक्ति और संकल्प दोनों ही विद्यमान थे, का सामना करना इब्राहीम जैसे King के लिए संभव नहीं था। बाबर ने उसे पानीपत के Fight में पराजित कर दिल्ली पर अपनी प्रभुसत्ता स्थापित की।

पंजाब – यद्यपि पंजाब दिल्ली साम्राज्य का ही Single अंग था, लेकिन इब्राहीम लोदी का प्रभाव इस पर नाममात्र के लिए रह गया था। व्यवहारिक Reseller में पंजाब लगभग स्वतंत्र राज्य था। इस समय पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोदी था। दौलत खां लोदी और इब्राहीम लोदी के बीच मनमुटाव And शत्रुता चल रही थी। वह इब्राहीम के व्यवहार से असंतुष्ट था। इब्राहीम ने दौलत खां को दण्डित करने के लिए दिल्ली बुलाया, लेकिन उसने अपने स्थान पर अपने पुत्र दिलावर खां को भेज दिया। इब्राहीम ने उसके पुत्र के साथ ऐसा दुव्र्यवहार Reseller, जिसके कारण दौलत खां उसका और भी अधिक कट्टर शत्रु बन गया। इसी समय इब्राहीम का चाचा आलमखां लोदी भी पंजाब के आसपास घूम रहा था। वह भी इब्राहीम से राज्य छीनना चाहता था। इन बदलती हुई परिस्थितियों का दौलत खां ने लाभ उठाया। उसने अपने आपको स्वतंत्र King घोषित कर दिया। साथ ही दौलत खां ने इब्राहीम से अपने अस्तित्व तथा नवजात स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए उसके विरूद्ध Fight की तैयारियां प्रारम्भ कर दी। उसने बाबर से भी सहायता प्राप्त करने का प्रयास Reseller, क्योंकि बाबर स्वयं दिल्ली का सुल्तान बनने के लिए महत्त्वाकांक्षी था। बाबर तो ऐसे ही अवसर की खोज में था। इसलिए तत्कालीन परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए उसने शीघ्र ही भारतवर्ष पर आक्रमण कर दिया।1 बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 495.

गुजरात – सन् 1401 ई. में गुजरात दिल्ली साम्राज्य से अलग हो गया था। गुजरात में First स्वतंत्र सुल्तान जफरखां, मुजफ्फर शाह के नाम से गद्दी पर बैठा। इस राजवंश का सबसे अधिक योग्य व प्रतिभा सम्पन्न King महमूद बेगड़ा था। बाबर के आक्रमण के समय यहां का King मुजफ्फर शाह द्वितीय था। उसने 1511 से 1526 ई. तक शासन Reseller। उसने अपने शत्रुओं से निरन्तर संघर्ष Reseller, परन्तु मेवाड़ के राणा सांगा ने उसे पराजित Reseller। वह Single विद्वान् King था। उसे हदीस पढ़ने का बड़ा शौक था। वह सदैव कुरान शरीफ पढ़ने में लगा रहता था। सन् 1526 में पानीपत के Fight में सुल्तान इब्राहीम लोदी की पराजय से कुछ समय First ही वह इस संसार से सदैव के लिए विदा हो गया। उसकी मृत्यु के बाद गुजरात राज्य की शक्ति बहुत कमजोर हो गयी थी।

मालवा – खानदेश के उत्तर में मालवा का राज्य स्थित था। तैमूर के आक्रमण के बाद जब अशांति फैल गयी थी उस समय 1401 ईस्वी में दिलावर खां गौरी ने मालवा में स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली। परन्तु 1435 ईस्वी में महमूद खिलजी ने मालवा के इस स्वतंत्र राज्य को समाप्त करके खिलजी राज्य की स्थापना की। वह वीर, योग्य और महत्त्वाकांक्षी King था। बाबर के आक्रमण के समय मालवा का King महमूद द्वितीय था। उसकी राजधानी माण्डू थी। मालवा के Kingों का गुजरात तथा मेवाड़ के साथ निरन्तर संघर्ष चलता रहा। महमूद द्वितीय के शासन काल में मालवा पर राजपूतों का अधिकार हो गया था। महमूद खिलजी ने अपना राज्य प्राप्त करने के लिए चंदेरी के मेदिनीराय से सहायता प्राप्त की जिसके कारण मालवा पर मेदिनीराय का अत्यधिक प्रभाव कायम हो गया था। महमूद ने मेदिनीराय को अपना प्रधानमंत्री भी नियुक्त Reseller। फरिश्ता ने महमूद खिलजी की प्रशंसा करते हुए लिखा है कि सुल्तान नम्र, वीर, न्यायी तथा योग्य था और उसके शासन काल में हिन्दू और मुस्लिम दोनों ही प्रसन्न थे तथा परस्पर मित्रता का व्यवहार करते थे, परंतु महमूद खिलजी मेदिनीराय के हाथों का कठपुतली बन गया था।1 विस्तार के लिए द्रष्टव्य – नागोरी, एस.एल. And प्रणव देव, पूर्वोक्त कृति, पृ. 141. 2 नागोरी, एस.एल. And प्रणव देव, पूर्वोक्त कृति, पृ. 141.

खानदेश – खानदेश ताप्ती नदी की घाटी में बसा हुआ है। First यह भी दिल्ली राज्य का Single अंग था परंतु 14वीं शताब्दी के अंतिम दशक में यह देश स्वतंत्र हो चुका था। मलिक King फारूकी ने खानदेश में Single स्वतंत्र राज्यवंश की स्थापना की। उसने 1388 से 1399 तक खानदेश पर शासन Reseller परंतु प्रारम्भ से ही गुजरात का सुल्तान खानदेश पर अपना प्रभाव स्थापित करने का अवसर देख रहा था। इसी कारण से गुजरात और खानदेश के बीच बराबर संघर्ष चलता रहा। 1508 ई. में यहां के सुल्तान वानुदखां की मृत्यु हो जाने से उसके दो उत्तराधिकारियों के बीच सिंहासन प्राप्त करने के लिए गृहFight छिड़ गया, वहाँ पर राजनीतिक संकट उपस्थित हो गया। Single का समर्थन अहमदनगर कर रहा था और Second का गुजरात। अन्त में गुजरात के King महमूद बेगड़ा की सहायता से आदिलखां खानदेश का सिंहासन प्राप्त करने में सफल हुआ। आदिलखां ने 1520 तक यहां शासन Reseller। इसकी मृत्यु के बाद उसका पुत्र मीरनमहमूद खानदेश के सिंहासन पर बैठा परन्तु यह देश दिल्ली से दूर था और इसकी आन्तरिक स्थिति भी ठीक नहीं थी। इसी कारण खानदेश का तत्कालीन राजनीति में कोई भी महत्त्वपूणर् स्थान नहीं था।

बंगाल – फिरोज तुगलक के शासन काल में भी बंगाल दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र राज्य बन गया था। यहां हुसैनी वंश का शासन था। इस वंश का सबसे शक्तिशाली King अलाउद्दीन हुसैन था जिसका शासन काल 1493 ई. से 1519 तक का था। उसके शासन काल में बंगाल राज्य की सीमा आसाम में कूच बिहार तक फैल गयी थी। बाबर का समकालीन King नुसरतशाह था। उसने तिरहुत पर अधिकार Reseller और बाबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बढ़ाये। वह कला तथा साहित्य प्रेमी और सहिष्णु King था। उसके शासन काल में प्रजा सुखी और सम्पन्न थी। बाबर ने भी उसकी प्रशंसा की है और उसे Single विशेष महत्त्वपूर्ण King बताया है। यद्यपि इस समय बंगाल Single शक्तिशाली राज्य था, किन्तु दिल्ली से दूर होने के कारण बंगाल की राजनीति का Indian Customer राजनीतिक जीवन पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। डॉ. पी. शरण का मन्तव्य है कि घाघरा Fight के बाद बाबर ने नुसरतशाह के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये और Single अस्थायी सन्धि-पत्र पर हस्ताक्षर भी किये। 1 बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 458-459.

सिंध – मुहम्मद तुगलक के शासन काल के बाद सिंध का प्रान्त स्वतंत्र हो गया था। सन् 1516 ई. में शाहबेग आरगन ने सिंध में सुमरावंश के King को पराजित करके अपना राजवंश स्थापित कर लिया। बाबर के आक्रमण के समय शाह हुसैन आरगन राज्य कर रहा था। उसने मुलतान को भी अपने अधिकार में कर लिया। उसने अपने शासन काल में सिंध की शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित और संगठित कर दिया था। सन् 1526 ईमें यह राज्य अपनी प्रगति की चरम सीमा पर था, परंतु दिल्ली से दूर होने के कारण इस प्रान्त की राजनीति का कोई विशेष प्रभाव दिल्ली की राजनीति पर नहीं पड़ा। एस.एल. नागोरी And प्रणवदेव का अभिमत है कि सिंध में समा वंश तथा अफगान वंश में संघर्ष चल रहा था।

जौनपुर – इब्राहीम लोदी की शक्तिहीनता और अव्यवस्था का लाभ उठाकर मरफ फारमूली तथा नासिर खां लौहानी के नेतृत्व में जौनपुर में अफगान सामन्तों ने विद्रोह कर दिया व जौनपुर को स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया। यह उच्च शिक्षा And संस्कृति का विशेष समृद्ध राज्य था।

काश्मीर – बाबर के आक्रमण के समय इस प्रदेश में मुस्लिम King मुहम्मद शाह पदासीन था। सरदारों और अमीरों के अत्यधिक प्रभाव के कारण राज्य में गृह कलह और संघर्ष होते रहते थे। परिणामस्वReseller राज्य में अशांति और अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न हो गई तथा King अमीरों के हाथों में कठपुतली बन गया। मुहम्मद शाह की मृत्यु के बाद उसका वजीर काजी चक स्वयं King बन गया। इसी मध्य बाबर की सेना ने काश्मीर में अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया और काजी चक को अपदस्थ कर दिया, किन्तु काश्मीर के सामन्तों और अमीरों ने संगठित होकर मुगलों को वापस खदेड़ दिया।1 शरण, पी., मुस्लिम पोलिटी, पृ. 62. 2 नागोरी, एस.एल. And प्रणव देव, पूर्वोक्त कृति, पृ. 142. 3 बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 456-457.

राजस्थान – 16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में राजस्थान भी अपने History में सबसे अधिक संगठित और सुव्यवस्थित इकाई के Reseller में विद्यमान था। यद्यपि जितने भी महत्त्वपूर्ण राज्य यहां स्थापित हुए, वे सब सुव्यवस्थित Reseller से अपना राज्य स्थापित कर चुके थे और इन राजवंशों का अस्तित्व भारतवर्ष की स्वतंत्रता पर्यन्त तक बना रहा। 15वीं शताब्दी में राजनीतिक दृष्टिकोण से राजस्थान में भी अव्यवस्था फैली हुई थी। परंतु 16वीं शताब्दी राजस्थान के लिए पुनर्निर्माण का काल था। यहां पर बड़े-बड़े साम्राज्यों की स्थापना इस समय प्रारम्भ हो चुकी थी। अव्यवस्था के स्थान पर व्यवस्था का काल प्रारम्भ हो चुका था। इतना ही नहीं राजस्थान में भी भारत के अन्य भागों की भांति राजनीतिक परिवर्तन हाने े लगे थे। इस प्रकार राजनीतिक दृष्टि से 16वीं शताब्दी का प्रारम्भ राजस्थान के लिए पूर्णResellerेण व्यवस्था का काल था। राजस्थान के राज्यों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण राज्य मेवाड़ था।

मेवाड़ – मेवाड़ का प्राचीन नाम मेदपाट था। इसका राजनीतिक History बहुत ही प्राचीन है परन्तु गौरीचन्द हीराचन्द ओझा के According गुहिलौत वंश (सिसोदिया) का राज्य यहां पर छठी शताब्दी से प्रारम्भ होता है। इस वंश का संस्थापक गुहिल था लेकिन मेवाड़ के साम्राज्य का विस्तार काल राणा हमीर से प्रारम्भ हुआ। राणा हमीर ने अपने राज्य की सीमा का विस्तार अजमेर, माण्डलगढ़ और जहाजपुर तक कर लिया था परंतु मेवाड़ Single सर्वशक्तिमान राज्य के Reseller में महाराणा कुंभा के शासन काल में प्रकट होता है।

महाराणा कुंभा Single महान् King था। उसने लगभग 35 वर्ष तक मेवाड़ का शासन सूत्र पूर्णतया अपने हाथ में रखा। उस समय मालवा और गुजरात प्रभावशाली राज्य थे, किन्तु इन राज्यों से मेवाड़ को पूर्णतया Windows Hosting रखा। कुछ Historyकारों की तो यह भी मान्यता है कि कुंभा ने मालवा के King महमूद को हराकर 6 माह तक चित्तौड़ के दुर्ग में बन्दी बनाए रखा। केवल राजनीतिक दृष्टि से ही नहीं अपितु सांस्कृतिक And भवन-निर्माण कला की दृष्टि से भी यह युग मेवाड़ के History में स्वर्णयुग था। ऐसा कहा जाता है कि मेवाड़ में विद्यमान 84 दुर्गों में से लगभग 32 दुर्गों के निर्माण का कार्य इसी समय में हुआ था।

बाबर ने स्वयं अपनी ‘आत्मकथा’ में लिखा है कि भारतवर्ष पर आक्रमण के समय वहां पर Seven महत्त्वपूर्ण राज्य थे, जिनमें दो हिन्दू राज्य थे – Single मेवाड़ और दूसरा विजयनगर। बाबर ने यह भी स्वीकार Reseller है कि मेवाड़ की शक्ति राणासांगा ने अपनी सैनिक प्रतिभा के कारण काफी बढ़ा ली थी।

कर्नल टाँड ने लिखा है कि सांगा की सैनिक-संख्या लगभग 80 हजार थी। उसकी सेना में 7 King, 9 राव और 104 सामंत थे। राजस्थान के Kingों ने जिसमें मुख्य Reseller से मारवाड़, आमेर, बूंदी आदि ने इसको अपना नेता स्वीकार कर लिया था। सांगा के नेतृत्व के कारण ही राजस्थान समस्त भारत वर्ष में अथवा दिल्ली पर राजपूती प्रभुत्व स्थापित करने का स्वप्न देखने लगा था।1 नागोरी, एस.एल. And प्रणव देव, पूर्वोक्त कृति, पृ. 141. 2 बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 459-460.

राणा सांगा ने मालवा, गुजरात और यहां तक कि इब्राहीम लोदी की मिली-जुली सेना को और अलग-अलग Reseller से भी कितनी ही बार पराजित Reseller। मालवा का King महमूद द्वितीय भी सांगा के हाथों Defeat हुआ। सांगा इब्राहीम लोदी की शक्ति हीनता का लाभ उठाकर दिल्ली पर हिन्दू राज्य स्थापित करने को लालायित था। डॉ. जी.एन. शर्मा के According – राणा सांगा Fight की प्रतिमा थे। ऐसा माना जाता है कि जीवन पर्यन्त Fight करते रहने के कारण उसके शरीर पर अस्सी घावों के निशान थे तथा Single हाथ, Single आंख और Single टांग बेकार सी हो गई। वास्तव में उसकी वीरता और प्रभुता की धाक समस्त उत्तरी भारत वर्ष में फैली हुयी थी।

सांगा के नेतृत्व शक्ति के कारण ही बाबर के आक्रमण के पूर्व राजपूत Kingों का First बार इतना विशाल संगठन स्थापित हुआ था। इस संगठन का उद्देश्य भारतवर्ष में अपना राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करना था। किन्तु खानवां के Fight में सांगा पराजित हुआ। उसकी महत्त्वाकांक्षा अधूरी रही। इसके Single वर्ष बाद ही सांगा की मृत्यु हो गई।

मारवाड़ – मेवाड़ के अतिरिक्त अन्य महत्त्वपूर्ण राज्य मारवाड़ था। यह राजस्थान के पश्चिमी भाग में अवस्थित था। संस्कृत शिलालेखों And पुस्तकों में इस राज्य के अनेक नाम मिलते हैं। मरूदेश, मरू, मरूस्थल आदि अनेक नामों से इसे पुकारा जाता है परंतु साधारण बोलचाल की भाषा में यह मारवाड़ अथवा मरूधर के नाम से जाना जाता है। जोधपुर शहर के निर्माण के बाद इस राज्य की राजधानी जोधपुर को ही बना दिया तथा तभी से इसे राजधानी के नाम से ‘जोधपुर राज्य’ ही कहना प्रारम्भ कर दिया गया। राजस्थान के राज्यों में जोधपुर का भी विशिष्ट महत्त्व रहा है। यह राज्य विस्तार में अन्य राज्यों की अपेक्षाकृत अधिक बढ़ा है बाबर के आक्रमण के समय जोधपुर का King राव गांगा था।1 उद्धृत, मांडोत, मिश्रीलाल, मुगल सम्राट् बाबर, पृ. 53. 2 मांडोत, मिश्रीलाल, मुगल सम्राट् बाबर, पृ. 53.

उसने 1515 ई. से 1531 ई. तक मारवाड़ पर शासन Reseller। यह सांगा का समकालीन था। 1526 के Fight में भी यह अपनी सेना सहित बाबर के विरूद्ध राणा सांगा को सहायता देने के लिए खानवां के Fight में सम्मिलित हुआ। इसके राज्याभिषेक के समय में मारवाड़ की स्थिति अWindows Hosting थी। सामन्त लोग King के साथ बराबरी का दावा करते थे। जोधपुर के आसपास मेड़ता, नागौर, सांचोर और जालोर स्वतंत्र राज्य थे। परंतु राव गांगा ने बड़ी दृढ़ता से मारवाड़ की सीमाओं को बढ़ाने का प्रयत्न Reseller और उसमें उसे बड़ी सीमा तक सफलता भी मिली। उत्तराधिकारी King मालदेव Single श्रेष्ठ और शक्तिशाली Kingों की गणना में आ सका। मारवाड़ उसके शासन काल में पूर्ण Reseller से सुव्यवस्थित आरै सुसंगठित था।

बीकानेर – राठौड़ वंश का Single अन्य राज्य बीकानेर था जिसे जांगल प्रदेश भी कहा जाता है Meansात् Single ऐसा देश जहां पानी और वृक्षों की कमी हो। बीकानेर राठौड़ों के अधीन आने से पूर्व परमारों के अधीन था। बीकानेर में राठौड़ राज्यवंश की स्थापना राव बीका ने की। राव बीका जोधपुर के King राव जोधा का पुत्र था। अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के उद्देश्य से वह जांगल प्रदेश में Single छोटी सेना सहित आया और यहां अपने Single अलग राज्य की स्थापना की। यहां पर अनेक छोटे-छोटे राज्य थे। यह क्षेत्र रेगिस्थानी भाग होने के कारण आक्रमणकारियों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र नहीं रहा। इसीलिए 15वी  शताब्दी के उत्तरार्द्ध में भी अन्यान्य छोटे-छोटे राजवंश वहां पर विद्यमान थे। राव बीका के लिए बीकानेर राज्य का छोटे-छोटे भागों में विभाजित होना हितकर सिद्ध हुआ क्योंकि यहां की छोटी-छोटी जातियों को हराकर बड़ी आसानी से वह Single विशाल साम्राज्य स्थापित कर सका। सन् 1472 ईस्वी में वह King बना और 1485 ई. में उसने बीकानेर नगर और दुर्ग का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवा दिया। सन् 1505 ईस्वी में अपनी मृत्यु से पूर्व राव ने बीकानेर राज्य की सीमा को पंजाब में हिसार तक पहुँचा दिया। मांडोत, मिश्रीलाल, मुगल सम्राट् बाबर, पृ. 55.

बाबर के आक्रमण के समय यहां का King लूणकरण था। उसने 21 वर्ष तक शासन Reseller और सामंती विद्रोही को दबाया। पड़ौसी Kingों को पराजित कर उसने अपने साम्राज्य का विस्तार Reseller तथा राज्य की सीमाओं को Windows Hosting Reseller। उसने फतेहपुर, नागौर, जैसलमेर व नारनौल आदि स्थानों पर आक्रमण किये। वह Single अच्छा विजेता ही नहीं, अपितु प्रजाहितैषी, साहित्य प्रेमी और दानी King था। अकाल तथा अन्य संकट के समय में वह अपनी प्रजा को सहायता देता था। अपनी वीरता, शौर्यता व प्रजा हितैषी कार्यों के कारण उसने राठौड़ राजवंश को बीकानेर क्षेत्र में दृढ़ Reseller। बाबर के आक्रमण के समय मेवाड़ व मारवाड़ के बाद बीकानेर ही सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था। मांडोत, मिश्रीलाल, मुगल सम्राट् बाबर, पृ. 55.

कछवाहा, राजवंश – राजस्थान का अन्य महत्त्वपूणर् राज्य कछवाहा राजवंश था। यह अपने आपको कुश के वंशज मानते हैं। राजस्थान में इस राजवंश की स्थापना के काल के बारे में मतभेद हैं। All Historyकार इस विषय पर Singleमत हैं कि सौढ़ादेव इस राजवंश का संस्थापक था जिसने सबसे First दौसा पर अधिकार Reseller।

ओझा की मान्यता है कि सौढ़ादेव राजस्थान में 1137 ई. में आया। कर्नल टाड ने 967 ई., श्यामलदास ने 976 ई. और इम्पीरियल गजीटियर के According 1128 ई. को सौढ़ादेव के राजस्थान आगमन का समय बताया गया है। शिलालेशों में ओझा के कथन की पुष्टि होती है। सौढ़ादेव ग्वालियर से दौसा आया, वहां के बढ़गुर्जरों को पराजित Reseller और बाद में जयपुर (ढूंढाण प्रदेश) में अपना राज्य स्थापित Reseller। जब आमेर शहर का निर्माण हुआ, तब से यह आमेर राज्य के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाबर के आक्रमण के समय आमेर का King Earthराज था। बाबर के आक्रमण तक आमेर राज्य का राजस्थान में विशेष महत्त्व नहीं था किन्तु इसकी सीमायें लगभग निश्चित हो गई थी। Earthराज ने अपने साम्राज्य का विस्तार नहीं Reseller। वह कृष्ण का परम भक्त था। उसने राज्य में धार्मिक वातावरण उत्पन्न Reseller। इस काल में आमेर में बहुत से मंदिरों का निर्माण हुआ जो वास्तुकला के विशेष उत्कृष्ट नमूने हैं। Earthराज खानवां के Fight में राणा सांगा की तरफ से लड़ा था।

चौहान राजवंश – राजस्थान का Single अन्य महत्त्वपूर्ण राज्य चौहान वंश का था। प्राचीन काल में इस राजवंश का राजस्थान में बहुत प्रभाव था। अजमेर और सांभर इसके मुख्य केन्द्र थे। राजस्थान के अनेक भागों में छोटे-छोटे चौहान वंशीय राज्य थे किन्तु सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में यह सारा प्रभाव समाप्त हो गया था और केवल हाड़ौती प्रदेश (वर्तमान कोटा-बूंदी का क्षेत्र) में चौहान वंश का राज्य रह गया। सोलहवीं शताब्दी के पूर्व चौहान वंशीय राजवंश मेवाड के अधीन था। यहां के Kingों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। राणा सांगा की मृत्यु के बाद उत्पन्न परिस्थितियों के कारण यहां के Kingों ने अपने आपको मेवाड से स्वतंत्र कर लिया किन्तु इनकी स्वतंत्रता अधिक समय तक नहीं बनी रह सकी। कुछ ही समय बाद इस राजवंश ने बाध्य होकर मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली थी।1 मांडोत, मिश्रीलाल, पूर्वोक्त कृति, पृ. 56. 2 वही, पृ. 56.

बहमनी राज्य –सुल्तान मुहम्मद तुगलक के शासन काल में दक्षिणी भारत में बहमनी राज्य की स्थापना हुई। बहमनी दक्षिण भारत का Single प्रबल राज्य था जो लगभग दो शताब्दियों तक रहा। परन्तु आन्तरिक संघर्ष और विजयनगर राज्य के साथ निरन्तर Fightों के कारण इसका पतन हो गया। अमीरों की शक्ति निरन्तर बढ़ती जा रही थी। बहमनी राज्य का अंतिम King महमदू शाह था जिसका शासन काल 1482 ई. से 1518 ई. तक रहा। इसके बाद बहमनी राज्य छिन्न-भिन्न होकर पांच विभिन्न राज्यों में विभाजित हो गया। ये राज्य अहमद नगर, बीदर, बरार, बीजापुर और गोलकुण्डा के नाम से बने।

सबसे Historyनीय बात यह थी कि बहमनी राज्यों के All King इस्लाम के शियामत के अनुयायी थे। इन नवीन निर्मित राज्यों में परस्पर संघर्ष और वैमनस्य चलता रहा जिसके कारण इन राज्यों की शक्ति क्षीण हो गई जिससे दक्षिण भारत की राजनीति में अव्यवस्था और असंतुलन के वातावरण का संचार हुआ। मांडोत, मिश्रीलाल, पूर्वोक्त कृति, पृ. 57. 2 वही, पृ. 58.

बाबर के आक्रमण के समय इन All मुस्लिम राज्यों का अस्तित्व कायम था परन्तु आपसी वैमनस्य और संघर्षरत रहने के कारण इन राज्यों ने उत्तरी भारत की राजनीति पर प्रभाव नहीं डाला।

विजयनगर – भारतवर्ष के हिन्दू राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य विजयनगर था। इस राज्य की स्थापना 1336 ई. में हरिहर आरै बुका ने की। यह राज्य दक्षिण भारत में हिन्दू-धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिये बहमनी राज्य से बराबर संघर्षरत रहा। बाबर के आक्रमण के समय में विजयनगर राज्य का King कृष्णदेव राय था, जो अपने वंश का महान्तम King था। वह बहुत ही वीर, साहसी, विजेता और योग्य King था। साहित्य और कला से उसे बहुत प्रेम था। उसके शासन काल में विजयनगर राज्य राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक दृष्टि से प्रगति की चरम-सीमा पर था। यह राज्य उत्तरी भारत से बहुत दूर उपस्थित था। इसलिए उत्तरी भारतवर्ष की राजनीति को इसने सम्पर्क सूत्र की कमी के कारण प्रभावित नहीं Reseller। किन्तु दक्षिण में मुसलमान आक्रमणकारियों को आगे बढ़ने से रोका और दक्षिण भारत में हिन्दू-धर्म और संस्कृति की रक्षा करने में भी सफलता प्राप्त की।

के.एम. पन्निकर का मन्तव्य है कि कृष्णदेव अशोक, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, हर्ष And भोज की परंपरा में Single महान् सम्राट् था, जिसका राज्य अपने वैभव के शिखर पर था। बाबर ने भी उसे दक्षिणी भारत का सबसे प्रतापी And शक्तिशाली शासन माना है। बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 459.

गोआ के पुर्तगाली – बाबर के आक्रमण के समय पुर्तगालियों ने दक्षिण में अपने पैर जमा लिये थे। 1498 ई. में वास्कोडिगामा ने कालीकट के बन्दरगाह तक पहुँच कर पश्चिमी देशों के लिए भारत के द्वार खोल दिए। सन् 1510 ई. में पुर्तगाली गवर्नर अल्बु कर्क ने गोआ पर अधिकार कर लिया। फलत: कुछ ही समय बाद यह नगर पुर्तगालियों की कार्यवाही का केन्द्र और राजधानी बन गया। शीघ्र ही उन्होंने दिऊ, दमन, साल्सेट तथा बसीन पर भी आधिपत्य स्थापित कर लिया।

सामाजिक स्थिति

बाबर के आक्रमण के समय भारत में समाज मुख्य Reseller से हिन्दू और मुसलमान दो वर्गों में विभाजित था। हिन्दू-समाज में जाति और वर्ण-व्यवस्था प्रचलित थी। हिन्दू-समाज कई जातियों, उपजातियों में विभाजित था। व्यवसाय भी अधिकांशत: जाति-व्यवस्था पर आधारित था। इस्लाम धर्म से हिन्दूत्व की रक्षा के लिए सामाजिक नियम और नियंत्रण और भी कठोर बना दिए गए थे। छुआछूत की भावना विद्यमान थी। समाज में ब्राह्मण वर्ग का बोलबाला था। धार्मिक और सामाजिक अनुष्ठान का कार्य ब्राह्मण करते थे। हिन्दू राजपूत राज्यों में क्षत्रियों का बहुत सम्मान था। अपने वैभव के कारण वैश्य वर्ग को भी समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त थी। शूद्रों के साथ अमानुषिक व्यवहार होता था। समाज में अन्य विश्वास, रूढ़िवादिता, आडम्बर आदि बुराइयां व्याप्त थीं। स्त्रियों को समाज में आदर की दृष्टि से नहीं देखा जाता था। उन पर अन्यान्य प्रकार के बंधन थे। घर की चहारदीवारी तक ही उनका कार्यक्षेत्र सीमित था। समाज में बहुपत्नी प्रथा, सतीप्रथा, पर्दाप्रथा और बाल-विवाह का विशेष प्रचलन था। पन्निकर, क.े एम., ए सर्वे ऑफ इण्डियन हिस्ट्री, पृ. 140. 2 बाबरनामा (हिन्दी अनुवाद), पृ. 459.

एस.एल. नागोरी And प्रणव देव का अभिमत है कि बाबर के आक्रमण के समय भारत में दो वर्ग थे – हिन्दू And मुसलमान। सदियों से साथ रहने And भक्ति आंदोलन व सूफी मत के परिणामस्वReseller दोनों परस्पर निकट आ गये थे। बोल-चाल का माध्यम, उर्दू भाषा तथा हिन्दी भाषा थी। भक्ति आंदोलन से प्रान्तीय भाषाओं तथा साहित्य का विकास हुआ। हिन्दू-समाज में बहु-विवाह, बाल-विवाह, सती-प्रथा तथा पर्दा-प्रथा के प्रचलन के परिणाम स्वReseller स्त्रियों की स्थिति विशेष शोचनीय हो गई थी। विधवाओं की स्थिति बड़ी दयनीय थी। मुस्लिम-समाज में बहु-विवाह And तलाक-प्रथा के कारण स्त्रियों की दशा खराब थी। दासों की स्थिति भी बड़ी दयनीय थी।

समाज में साधारण वर्ग की दशा दयनीय थी। धार्मिक असहिष्णुता का वातावरण था। धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर लोगों पर अत्याचार हो रहे थे। मुस्लिम Kingों ने हिन्दू जनता पर धर्मान्धता के कारण अन्यान्य अत्याचार किये। हिन्दू जनता में इतनी शक्ति नहीं थी कि वे संगठित Reseller से इन कुपरिस्थितियों का मुकाबला कर पाते। 1 मिश्रीलाल, पूर्वोक्त कृति, पृ. 60. 2 नागोरी And प्रणवदेव, पूर्वोक्त कृति ,पृ. 142.

धार्मिक-स्थिति – 

हिन्दू-समाज में वैष्णव, जैन, शैव, शाक्त और अन्य कई सम्प्रदाय और मत मतान्तर प्रचलित थे। मंदिरों में धर्म के नाम पर दुराचरण होता था। तंत्र-मंत्र अनुष्ठान, भूत-प्रेत, मूर्ति पूजा, कर्मकाण्ड, यज्ञ, अनुष्ठान हवन, पूजा पाठ आदि कई बातों में विश्वास Reseller जाता था। बहुदेववाद का प्रचलन था। पशु बलि-प्रथा प्रचलित थी। धर्म को बहुत ही संकीर्ण बना दिया गया था। धर्म शास्त्रों का अध्ययन केवल ब्राह्मण वर्ग तक ही सीमित था। पन्द्रहवीं और सोलहवीं शताब्दी में हिन्दू-धर्म व समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए रामानन्द, कबीर, रैदास, चैतन्य, महाप्रभु, गुरू नानक, तुकाराम जैसे भक्तों और संतों ने बहुत प्रयास Reseller। उन्होंने Singleेश्वरवाद पर जोर दिया और भक्ति को ही मुक्ति का साधन माना। जाति प्रथा, अन्ध विश्वास और मिथ्या आडम्बरों का खंडन Reseller।

इस समय देश में हिन्दू, मुस्लिम समन्वय के प्रयास भी हुए। इसमें भक्ति आंदोलन व सूफी मत के संतों ने काफी योगदान दिया जिसके कारण हिन्दू व मुसलमानों के बीच भ्रातृत्व भावना पैदा हुई और सामाजिक Singleता को प्रोत्साहन मिला। तत्कालीन साहित्य, स्थापत्य कला, संस्कृति, धार्मिक व सामाजिक-जीवन में भी उन्नति हुई और धार्मिक सहिष्णुता की भावना में विशेष वृद्धि हुई।

आर्थिक स्थिति

आर्थिक दृष्टि से भी समाज में First, मध्यम और निम्न वर्ग थे। First वर्ग बहुत ही सम्पन्न And समृद्ध था, जिसमें बड़े-बड़े King, उच्च द्रष्टव्य – श्रीवास्तव, कन्हैया लाल, झारखण्ड चौबे, मध्ययुगीन कोटि के सामन्त और पदाधिकारी तथा धनवान लोग सम्मिलित थे। यह वर्ग विलास प्रिय जीवन व्यतीत करता था। मध्यम वर्ग में छोटे-छोटे अमीर, सामन्त व्यापारी आदि सम्मिलित थे। निम्न वर्ग में सैनिक, शिल्पी, श्रमिक और कृषक वर्ग था, जो प्राय: सादा-जीवन व्यतीत करता था। साधारण तौर पर देश आर्थिक दृष्टि से उन्नत था। खाद्यान्न की कमी न थी और Need की All वस्तुएं सुलभ थी। अतिवृि “ट आरै अनावृष्टि से अकाल पड़ने पर साधारण वर्ग की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती थी। ग्रामीण जीवन सरल और सुखी था। किसानों की दशा ठीक थी। उन्हें अपनी उपज का ⅓ भाग भूमि कर के Reseller में देना पड़ता था। आन्तरिक व विदेशी व्यापार उन्नत दशा में था। ईरान, अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत आदि देशों से स्थल-मार्ग द्वारा और अरब मलाया आदि देशों में सामुद्रिक व्यापार होता था। लोग आर्थिक दृष्टि से सुखी व सम्पन्न थे। नागोरी And प्रणवदेव का अभिमत है कि अच्छी वर्षा के कारण पर्याप्त मात्रा में अन्न उत्पन्न होता था। Single यात्री Single बतौली (Single तरह का सिक्का) से दिल्ली से आगरा जा सकता था। उद्योग-धन्धे तथा व्यापार भी उन्नत दशा में थे। कुशल कारीगर पर्याप्त संख्या में थे। सामान्य जनता का जीवन सुखी था।बाबर भी भारत की अतुल धन राशि से लालायित होकर ही भारत की ओर उन्मुख हुआ था।Indian Customer समाज And संस्कृति, पृ. 320-25.

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि बाबर के आक्रमण के समय भारत सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक All दृष्टियों से उन्नत स्थिति में था। किन्तु राजनीतिक परिस्थितियां ठीक नहीं थी। उसने इन अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों का पूरा-पूरा लाभ उठाया और भारत पर आक्रमण कर विजय प्राप्त करने में सफल हुआ और भारत में मुगल साम्राज्य की नींव डाली।1 नागोरी And प्रणवदेव, पूर्वोक्त कृति, पृ. 142-143. 2 मिश्रीलाल, पूर्व कृति, पृ. 62.

बाबर का साम्राज्य विस्तार

संक्षेप में 1529-30 तक बाबर अपनी विजयों के कारण लगभग सम्पूर्ण उत्तरी भारतवर्ष का शासन बन गया था। उसका साम्राज्य मध्य एशिया में आक्सस नदी से लेकर उत्तरी भारत में बिहार तक फैला हुआ था। बंगाल के सुल्तान नुसरत शाह ने उसका आधिपत्य स्वीकार कर लिया था। उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में चंदेरी तक उसका साम्राज्य फैला हुआ था। हिन्दुकुश से परे के बदख्शा, कुण्डुज, बल्ख आदि के प्रदेश भी उसके अधीन थे। भारत की उत्तरी-पश्चिमी सीमा पर स्थित काबुल, गजनी, कंधार भी उसके राज्य के अंग थे। 1 मुल्ला अहमद, तारीखे अल्फी (रिजवी), पृ. 645.

राजपूताना और मालवा में रणथंभोर व चंदेरी के दुर्ग पर उसका अधिकार था। इस प्रकार बाबर ने अपनी विजयों के द्वारा उत्तरी भारत के Single विशाल भू-भाग पर आधिपत्य कायम कर लिया था। परंतु इस संबंध में वन्दना पाराशर ने सत्य ही लिखा है – ‘पानीपत’ खानवा और घाघरा जैसी विजयों ने उसे Safty और स्थायित्व प्रदान Reseller था किन्तु बाबर के अंतिम दिनों में इस साम्राज्य की विघटनशील प्रवृत्तियां उभरने लगी थीं। खलीफा और मैंहदी ख्वाजा अपने प्रयास में विफल हो जाने पर भी अत्यन्त प्रभावशाली थे। उनके अतिरिक्त मोहम्मद सुल्तान मिर्जा, मोहम्मद जमान मिर्जा आदि अनेक अमीर अपने अधिकारों के प्रति सजग थे। कामरान कंधार से संतुष्ट नहीं था और काबुल पर उसकी नजर थी। पंजाब में अब्दुल अजीज और ग्वालियर में रहीम दाद का विद्रोही स्वर बाबर के समय में ही फूटने लगा था। गुजरात में साधन-सम्पन्न And महत्त्वाकांक्षी सुल्तान बहादुर शाह शक्ति संचय कर रहा था। राजपूताने में खानवा और मालवा में चंदेरी की विजय के बाद भी राजपूत न तो कुचले गये थे और न ही अफगानों का विद्रोह समूल Destroy Reseller जा सका था। इन बिखरे हुए तत्वों को Singleत्रित And संगठित रखने के लिए बाबर के उत्तराधिकारी का बाबर के ही समान दृढ़ और साहसी व्यक्तित्व अपेक्षित था।’ 1 अन्य Wordों में बाबर का साम्राज्य Fightकालीन परिस्थितियों में तो ठीक था, किंतु शांतिकाल के लिए उपयुक्त न था। बाबर के अंतिम दिन और खलीफा का षडयंत्र घाघरा के Fight में अफगानों को पराजित कर, बंगाल के सुल्तान नुसरत शाह से संधि करने के बाद 21 जून, 1529 ई. को बाबर आगरा लौट आया। बाबर की शारीरिक दुर्बलता और मानसिक चिंता को देखते हुए उसके प्रधानमंत्री निजामुद्दीन अली खलीफा ने मैंहदी ख्वाजा को बाबर की मृत्यु के बाद हुमायूं के बजाय सिंहासनारूढ़ करने का प्रयत्न Reseller जो खलीफा का षड्यंत्र कहलाता है।1 वन्दना पाराशर, बाबर : Indian Customer संदर्भ में, पृ. 93.

बाबर की मृत्यु 26 दिसम्बर, 1530 ई. को हुई और हुमायूं चार दिन बाद गद्दी पर बैठा। हुमायूं के हिन्दुस्तान में होते हुए भी बाबर की मृत्यु के चार दिन बाद गद्दी पर बैठने के दो कारण हो सकते हैं – First तो यह कि हुमायूं के स्थान पर किसी अन्य व्यक्ति को गद्दी पर बिठाने का षड्यंत्र इस मध्य Reseller गया हो और वह असफल हुआ हो अथवा दूसरा यह कि हुमायूं आगरा में उपस्थित नहीं था।

खलीफा के षड्यंत्र का विस्तृत History निजामुद्दीन अहमद ने ‘तबकाते अकबरी’ में Reseller है। निजामुद्दीन के According – अमीर निजामुद्दीन अली अलीफा, जिस पर शासन-प्रबंध के कार्य अवलम्बित थे, किन्हीं कारणों से शाहजादा मोहम्मद हुमायूं मिर्जा से भयभीत था और वह उसे बादशाह बनाने के पक्ष में नहीं था। जब वह ज्येष्ठ पुत्र के पक्ष में नहीं था तो छोटे पुत्रों के पक्ष में भी नहीं हो सकता था। चूंकि बाबर का जामाता मैंहदी ख्वाजा Single दानी और उदार व्यक्ति था तथा अमीर खलीफा से उसकी बहुत घनिष्ठता थी, इसलिए अमीर खलीफा ने उसे बादशाह बनाने का निर्णय Reseller। लोगों में यह बात प्रसिद्ध हो गई। वे मैंहदी ख्वाजा को अभिवादन करने जाने लगे। मैंहदी ख्वाजा भी इस बात को समझकर लोगों से बादशाह के समान व्यवहार करने लगा। किंतु किन्हीं कारणों से मैंहदी ख्वाजा को बादशाह नहीं बनाया गया। मीर खलीफा ने तत्काल मोहम्मद हुमायूं मिर्जा को बुलाने के लिए भेजा तथा मैंहदी ख्वाजा को जबरन उसके घर भेज दिया गया।

अबुल फजल ने भी इस संबंध में लिखा है कि मीर खलीफा हुमायूं से किन्हीं कारणों से आशंकित था और मैंहदी ख्वाजा को बादशाह बनाना चाहता था किन्तु बाद में मीर खलीफा ने यह विचार त्याग दिया तथा मैंहदी ख्वाजा को दरबार में आने से मना कर दिया। ईश्वर की कृपा से सब काम ठीक हो गया।

निजामुद्दीन और अबुल फजल ने जो description दिया है उससे स्पष्ट है कि –

  1. जब बाबर बहुत रूग्णावस्था में था तब खलीफा ने बाबर के अंतिम दिनों में यह योजना बनाई थी। 
  2. हुमायूं उन दिनों आगरा में उपस्थित नहीं होकर अपनी जागीर संभल में था। 
  3. खलीफा ने मैंहदी ख्वाजा को अपने घर जाने के आदेश दिए तथा अमीरों को उसके घर जाने से इंकार कर दिया जिससे यह ज्ञात होता है कि बाबर की रूग्णावस्था और हुमायूं की अनुपस्थिति के कारण खलीफा का प्रभाव काफी बढ़ गया था और वह स्वयं बाबर के नाम से आदेश देने लगा था। 
  4. दोनों ही लेखक इस बात को स्वीकार करते हैं कि किन्हीं कारणों से खलीफा हुमायूं से आशंकित और भयभीत था।  निजामुद्दीन, तबकाते अकबरी, भाग-2, पृ. 28-29. 2 अबुलफजल, अकबरनामा, भाग-1, पृ. 117.

इसलिए संभव है कि खलीफा ने यह सोचा होगा कि यदि हुमायूं को बादशाहत मिली तो उसकी स्थिति और प्रभाव में कमी आ जाएगी। अस्तु खलीफा Single ऐसे व्यक्ति को सिंहासनारूढ़ करना चाहता था जो योग्य भी हो तथा उसके प्रभाव में बना रह सके। यही सोचकर उसने मैंहदी ख्वाजा का चयन Reseller होगा। किंतु जब उसने मोहम्मद मुकीम से यह सुना कि मैंहदी ख्वाजा बादशाह बनते ही सबसे First खलीफा को रास्ते से हटाने की सोच रहा है, तब उसने इस योजना का परित्याग कर दिया और बाबर की मृत्यु के चार दिन बाद हुमायूं को सिंहासनारूढ़ कर दिया गया। यह भी स्पष्ट है कि हुमायूं को बादशाह बनाने में खलीफा की भी Agreeि थी।

यादगार और सुर्जनराय ने भी इस बात की पुष्टि की है कि बाबर की रूग्णावस्था के दौरान खलीफा हुमायूं के स्थान पर मैंहदी ख्वाजा को बादशाह बनाना चाहता था।

श्रीमती बेवरिज की मान्यता है कि न केवल खलीफा, अपितु बाबर भी हुमायूं के स्थान पर मोहम्मद जमान मिर्जा को गद्दी पर बिठाना चाहता था न कि मैंहदी ख्वाजा को। श्रीमती बेवरिज का अनुमान है कि बाबर मोहम्मद जमान मिर्जा को हिन्दुस्तान का राज्य सौंपकर काबुल लौट जाना चाहता था, लेकिन हुमायूं के अकस्मात् बदख्शां से आ जाने, उसकी बीमारी, बाबर के आत्म बलिदान आदि कारणों ने हुमायूं को सिंहासनारूढ़ कर दिया। रश्बु्रक विलियम्स की भी मान्यता है कि माहम बेगम को खलीफा के षड्यंत्र की सूचना थी, इसीलिए उसने हुमायूं को बदख्शां से बुला लिया और वह बाबर के कहने के उपरान्त भी पुन: बदख्शां नहीं गया। तत्बाद हुमायूं ने अपने अच्छे व्यवहार से बाबर को खुश कर दिया और उसने उसे अपना उत्तराधिकारी बना दिया।1 यादगार, तारीखे शाही, पृ. 130-32. 2 सुर्जनराय, खुलाSeven ए तवारिख, रा.सं.पा.सं. 469, पृ. 210-211.

वन्दना पाराशर ने श्रीमती बेवरिज और रश्बु्रक विलियम्स के कथन से अAgreeि प्रकट करते हुए लिखा है –

  1. इस अनुमान की पुष्टि किसी समकालीन अथवा परवर्ती वृत्तान्त से नहीं होती कि खलीफा मोहम्मद जमान मिर्जा को गद्दी पर बिठाना चाहता था। 
  2. यदि खलीफा किसी तैमूर के वंशज को ही गद्दी पर बिठाना चाहता था तो मोहम्मद जमान मिर्जा के अतिरिक्त और भी अनेक तैमूर के वंशज हिन्दुस्तान में उपस्थिति थे। फिर खलीफा ने मोहम्मद जमान मिर्जा को ही क्यों चुना? 
  3. जवान का Means युवक ही नहीं, सैनिक भी होता है और यजना केवल पुत्री के पति को ही नहीं, बहन के पति को भी कहा जाता है। 
  4. मोहम्मद जमान मिर्जा को शाही चिºन प्रदान करने का तात्पर्य उसे उत्तराधिकारी बनाना नहीं था। इस प्रकार के चिºन बाबर ने अस्करी को भी प्रदान किये थे। 
  5. खलीफा की योजना से बाबर के Agree होने का विचार भी कल्पना मात्र है। समकालीन वृत्तान्तों में इस बात का स्पष्ट History है कि बाबर ने हुमायूं को ही अपना उत्तराधिकारी बनाया था। खलीफा ने यह योजना तब बनाई थी जब बाबर बीमार था और राज्य-कार्य खलीफा पर निर्भर थे। Agree होना तो दूसरी बात है, बाबर को इस योजना की सूचना मिलने का History भी किसी वृत्तान्त में नहीं मिलता। 1 बेवरिज, बाबरनामा, पृ. 702, 708. 2 रश्बु्रक विलियम्स, ऐन एम्पायर बिल्डर ऑफ दि सिक्सटींथ सेंचुरी, पृ. 171, 178.
  6. जून-जुलाई 1529 में हुमायूं बदख्शां से बाबर के निमंत्रण पर आया था न कि माहम बेगम के निमंत्रण पर। माहम बेगम के आगरा पहुँचने के केवल दस दिन बाद हुमायूं आगरा में था। इतने कम समय में माहम बेगम का खलीफा की योजना के विषय में पता लगाना, हुमायूं को सूचित करना और हुमायूं का आगरा पहुँच जाना असंभव था। Second, 10 जून, 1529 ई. को जब माहम बेगम काबुल-आगरा मार्ग पर थी तब हुमायूं बदख्शां से चलकर काबुल पहुँच चुका था। Third हुमायूं 1529 की जून-जुलाई में आया था और बाबर की मृत्यु दिसम्बर 1530 में हुई। हुमायूं के आगरा आने से लेकर बाबर की मृत्यु तक, Meansात् डेढ़ वर्ष तक षड्यंत्र होता रहा और बाबर को उसकी सूचना भी न मिली, यह असंभव है। फिर निजामुद्दीन और अबुल फजल ने स्पष्ट लिखा है कि यह योजना बाबर की बीमारी के दौरान बनी अत: हुमायूं के बदख्शां से आने और खलीफा के षड्यंत्र में कोई अन्तर नहीं है।
  7. यह सत्य है कि बाबर समरकन्द विजय की अभिलाषा से कभी मुक्त नहीं हो सका और काबुल को खालसा में सम्मिलित करने की इच्छा का भी उसने अपने पत्रों में कई बार History Reseller है। किन्तु इसका अभिप्राय यह नहीं था कि वह काबुल को अपने साम्राज्य का केन्द्र मानता था और काबुल लौट जाना चाहता था। यदि वह हिन्दुस्तान में किसी को नियुक्त करके काबुल या समरकन्द जाना चाहता था तो उसका उत्तराधिकारी निश्चित Reseller से हुमायूं था, मोहम्मद जमान मिर्जा या मैंहदी ख्वाजा नहीं।

उपर्युक्त description से यह तो स्पष्ट है कि खलीफा का षड्यंत्र अवश्य हुआ किंतु किन्हीं परिस्थितियों में वह क्रियान्वित नहीं हो सका और बाबर की मृत्यु (26 दिसम्बर, 1530) के चार दिन बाद हुमायूं को गद्दी पर बिठाया गया। हुमायूं के सिंहासनारूढ़ होने में यह चार दिन की देरी इसलिए हुई क्योंकि वह उस समय आगरा में नहीं था।

बाबर की मृत्यु

बाबर की मृत्यु के बारे में Single कहानी यह प्रचलित है कि जब हुमायूं बहुत बीमार हो गया तो उसे संभल से आगरा लाया गया। बहुत उपचार के बाद भी जब हुमायूं की हालत में सुधार नहीं हुआ तो मीर अबुल बका ने बाबर से कहा कि यदि कोई मूल्यवान वस्तु रोगी के जीवन के बदले में दान कर दी जाये तो वह बच सकता है। बाबर ने कहा कि उसके जीवन से ज्यादा मूल्यवान और क्या हो सकती है? तत्बाद बाबर ने हुमायूं की शैय्या के चारों ओर तीन चक्कर लगाकर प्रार्थना की कि यदि जीवन का बदला जीवन ही होता है, तो वह हुमायूं के जीवन के बदले में अपने प्राणों का दान करता है। बाबर की प्रार्थना स्वीकार कर ली गई। वह बीमार पड़ गया, हुमायूं अच्छा होने लगा। इसके बाद हुमायूं संभल चला गया। जब बाबर का स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया तो उसे कालिंजर अभियान से बुलाया गया। बाबर ने उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त Reseller और उसकी मृत्यु हो गई।  किन्तु गुलबदन बेगम की यह कहानी कपोल कल्पित और वास्तविकता से परे है। वास्तव में बाबर की बीमारी का मुख्य कारण इब्राहीम की मां द्वारा दिया गया विष था, और उसी कारण 26 दिसम्बर, 1530 को 48 वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई। मृत्यु से पूर्व उसने अमीरों को बुलाकर हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करने और उसके प्रति वफादार रहने का आदेश दिया। हुमायूं को भी अपने भाइयों के प्रति अच्छा व्यवहार रखने की चेतावनी दी। अंत में जब बाबर की मृत्यु हो गई तो उसका पार्थिक शरीर चार बाग अथवा आराम बाग में दफना दिया गया। ‘शेरशाह के राज्यकाल में बाबर की अस्थियों को उसकी विधवा पत्नी बीबी मुबारिका काबुल ले गई और वहां शाहे काबुल के दलान पर जो मकबरा बाबर ने Single उद्यान में बनवाया था, वहां दफनवा दिया।’ हुमायूं 29 दिसम्बर, 1530 ई. को सिहासनारूढ़ हुआ।1 वन्दना पाराशर, बाबर : Indian Customer संदर्भ में, पृ. 90-91.

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