बंगाल विभाजन (1905 र्इ.)

Indian Customer राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के History में बंगाल विभाजन का Single विशिष्ट स्थान है। बंगाल प्रान्त के अन्तर्गत खास बंगाल, बिहार, उड़ीसा, तथा छोटा नागपुर थे।इस विशाल प्रान्त से सरकार को प्रतिवर्ष ग्यारह करोड़ Resellerये से भी अधिक का राजस्व प्राप्त होता था। सरकार का विचार था कि इतने बड़ा प्रान्त पर Single व्यक्ति का शासन संभव नहीं है। 1891 में ही सर्वपथ््र ाम इस तरह का विचार आया कि बंगाल का विभाजन कर दिया जाए। पूर्वोत्तर सीमा Safty पर विचार-विमर्श करने हेतु Single सरकारी सम्मेलन का आयोजन Reseller गया। इसमें बंगाल के उप गवर्नर, वर्मा और असम के मुख्यायुक्त तथा कुछ उच्च सैनिक पदाधिकारी उपस्थित थे। सम्मेलन में यह प्रस्ताव रखा गया कि बंगाल से लुशार्इ पहाड़ियाँ और चटगाँव अलग कर असम को दे दिए जाएँ। 1892 में भारत सरकार ने लुशार्इ पहाड़ियाँ और चटगाँव असम को हस्तांतरण कर देने का निर्णय Reseller। किन्तु इस निर्णय को कार्यान्वित करने के पूर्व असम के तत्कालीन मुख्ययुक्त सर विलियम वार्ड ने 1896 में सुझाव दिया कि न केवल चटगाँव अपितु ढाका और मेमनसिंह जिले भी असम में शामिल किये जाएँ। इस प्रस्ताव का लागे ों ने काफी विरोध Reseller।

1901 में पुन: बंग-भंग का प्रस्ताव रखा गया।इस बार मध्य प्रान्त के मुख्यायुक्त सर एण्डू फ्रेजर ने अपने Single सरकारी पत्र में यह सुझाव दिया कि बंगाल से उड़ीसा को अलग कर इसे मध्य प्रान्त को दे दिया जाए। 1903 के आरंभ में बंगाल के उप गवर्नर की हैसियत से फ्रेजर ने बंग-भंग योजना का विस्तृत कार्यक्रम उपस्थित Reseller। 1903 के मध्य में लार्ड कर्जन ने इस परियोजना पर अपनी Agreeि प्रकट कीं दिसम्बर, 1903 में भारत सरकार ने इंडिया गजट में इसे प्रकाशित Resellerं भारत सचिव एच.एच.रिज्ले ने बंगाल सरकार के मुख्य सचिव को Single पत्र लिखकर बतलाया कि बंगाल के उप गवर्नर को अब 189,000 वर्ग मील क्षेत्र पर जिसकी आबादी 78,493,000 And जिसका आर्थिक राजस्व 1,137 लाख Resellerये हैं, शासन करना है। रिज्ले ने क्षेत्रीय पुनर्गठन की विभिन्न परियोजनाओं पर विचार Reseller और बतलाया कि भारत सरकार दो महत्वपूर्ण परिवर्तनों के पक्ष में है –

  1. बंगाल प्रशासन के अधीन All उड़ियाभाषियों को अलग करना। 
  2. बंगाल के पूरे चटगाँव मण्डल तथा ढाका और मेमनसिंह जिलों को अलग कर इन्हें असम में शामिल करना And छोटे नागपुर के कुछ भाग को मध्य प्रान्त में हस्तातं रण करना। अब तक कर्जन बंगाल-विभाजन से उत्पन्न विरोधी भावना से अवगत हो गया था। अत: उसने लोगों से मिलना या जनमत जानने की बहानेबाजी बंद कर दी। अब वह गुप्त ढंग से अपनी योजनाएँ बनाने लगा जिनसे लोग यह समझ बैठे कि उसने बंग-भंग योजना त्याग दी है। सरकार भी इसी नीति का पालन करने लगी। धारा-सभा में इस पर पूछे गये प्रश्नों का कोर्इ उत्तर नहीं दिया जाने लगा। फिर भी बंग-भंग योजना का सर्वत्र विरोध जारी रहा तथा सार्वजनिक सभाओं का आयोजन कर इसकी निंदा की जाने लगी।

बंगाल – विभाजन का विरोध – 

बंग-भंग योजना का प्रारंभ से ही विरोध Reseller गया। बंग-भंग योजना का समाचार पाते ही उनका विरोध संपूर्ण भारत में 1903 में ही शुरू हो गया था। कांँग्रेस ने 1903 से लेकर1906 तक प्रत्येक अधिवेशन में प्रस्ताव पास कर इसको रद्द करने की मांग की। ‘बंगाली- पत्रिका के सम्पादक सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने इसे ‘Single गंभीर राष्ट्रीय विपत्ति’ बतलार्इ तथा इसके विरूद्ध आंदोलन छेड़ने का आह्वान Reseller। दो हजार से भी अधिक जन-सभाएँ पूरे बंगाल में आयोजित की गर्इ जिनमें कडे़-से-कड़े Wordों में विभाजन याजे ना की निन्दा की गर्इ और इसे वापस लेने के लिये प्रस्ताव पास किये गये। Indian Customer समाचार पत्रों में विभाजन योजना की खुलकर निन्दा की। यहाँ तक कि एंग्लो-इंडियन प्रेस ने भी इसकी भत्र्सना की। कुछ ब्रिटिश समाचार पत्रों ने भी इसकी आलोचना की।

16 अक्टूबर, (बंग-भंग दिवस) को पूरी हड़ताल हुर्इ । कलकत्ता में उस दिन दुकाने और सारा कारोबार बंद रहा। पुलिस की गाड़ियों को छोड़कर सड़कों पर और कुछ नजर नहीं आता था। नौजवानों की प्रभातफेरियाँ बंदेमातरम गान गाती निकली। फिर राखी-बंधन का कार्य आरंभ हुआ। Third पहर फेडरेशन (संघ) हाल की नींव डालने के लिये सभा हुर्इ जिसमें पचास हजार से अधिक लागे सम्मिलित थे। अस्वस्थता की स्थिति में भी आनन्दमोहन वसु ने इसकी अध्यक्षता कीं सभा में विभाजन योजना के विरूद्ध आन्दोलन जारी रखने का प्रस्ताव पास Reseller गया। इसके बाद सारा जनसमुदाय बाघबाजार स्थित पशुपति के घर पहुंचा। वहां Single बड़ी जनसभा हुर्इ। इसमें स्वदेशी आंदोलन जारी रखने के लिये सत्रह हजार Resellerये इकटठे किये गए। इसके बाद बंग-भंग आंदोलन विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी आंदोलन में परिणत हो गया।

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