प्राकृतिक विधि का Means

प्राकृतिक विधि का तात्पर्य

प्राकृतिक विधि का तात्पर्य ऐसे नियमों से है जो प्रकृति और Human स्थिति से इस प्रकार सम्बद्ध है कि इन नियमों के अनुपालन के अभाव में समाज में शान्ति और प्रसन्नता कभी भी कायम नहीं की जा सकती है। ये नियम ऐसे है कि स्वयं र्इश्वर भी इनके विरूद्ध कार्य करने को अपेक्षित नहीं हैं। मनुष्य ने इन्हे स्वभाव से स्वीकार Reseller है और यहाँ तक कि निर्जीव पदार्थ भी अपनी गति आरै प्रयोग में लागू करते है प्राकृतिक विधि आत्मा या प्रकृति की आज्ञा (dictate) या उचित युक्ति या विवेक है। इससे उत्पन्न कार्य-कलाप बाध्यता का तत्व रखते हैं। यह स्वीकार Reseller जाता है कि ये स्वयं र्इश्वर द्वारा आदेषित या निषिद्ध किये गये हैं। अपनी इस प्रकृति के द्वारा प्राकृतिक विधि यही नहीं कि Humanीय सकारात्मक विधि से अलग है बल्कि यह दैवी सकारात्मक विधि से भी अलग है। जो न तो ऐसे कार्यो को आदेषित करती है और न तो निषिद्ध करती हैं जो स्वयं में अथवा अपनी प्रकृति के कारण या तो बाध्यकारी हैं या अविधिमान्य हैं। इस तर्कवाक्य की व्याख्या प्राकृतिक विधि की अपरिवर्तनीय प्रकृति के सन्दर्भ में की जा सकती है।

प्राकृतिक विधि के सिद्वान्त इस तरह अपरिवर्तनीय है कि स्वयं र्इश्वर द्वारा भी इन्हें परिवर्तित नहीं Reseller जा सकता है। यद्यपि र्इश्वर की शक्ति अपार है फिर भी कुछ बातें ऐसी है जो उसकी शक्ति की सीमा में नहीं आती है क्योंकि यदि यह मान लिया जाये कि र्इश्वर उन्हे बदल सकता है तो व्यवस्था में अन्तर्विरोध हो जायेगा। अत: र्इश्वर स्वयं यह नहीं कर सकता है कि दो और दो चार नहीं होंगे और इसी तरह वह यह नहीं कर सकता है कि जो वस्तु स्वत: बुरी है है बह बुरी नहीं रहे। र्इश्वर स्वयं विवेकशील व्यक्ति की प्रकृति के नियम द्वारा मूल्यांकित होना स्वीकार करता है। इसिलिए सिसरो ने कहा कि विधि प्रकृति के अनुReseller न्यायसंगत या उचित युक्ति या विवेक है। यह सार्वभौमिक, अपरिवर्तनीय और शाश्वत है। यह अपने आदेश द्वारा कर्तव्य के लिए प्रेरित करती है और निशेध द्वारा गलत कार्यो को करने से विरत रखती है। टॉमस Single्विनास के According शाश्वत विधि में विवेकशील प्राणी की सहभागीदारी को प्राकृतिक विधि कहा जाता है।

प्राकृतिक विधि की अवधारणाओं के सिद्वान्त मनुष्य के प्राकृतिक झुकाव (natural inclination) के सिद्वान्तों के समान है। इसके तीन लक्षण व्यक्त होते हैं। First, मनुष्य में प्राकृतिक या स्वभावत: और प्रारम्भिक झुकाव All पदार्थो के समान अच्छार्इ (good) के प्रति है क्योंकि All पदार्थ अपनी प्रकृति के According अपना संरक्षण करते है मनुष्य के इस स्वभाविक झुकाव के फलस्वReseller प्राकृतिक विधि उन All नियमों का समावेष करती है जो Human जीवन के संरक्षण के लिए आवश्यक हैं। यह उन All नियमों का परित्याग करती है जो Human जीवन के संरक्षण के विरूद्ध हैं। द्वितीय, अन्य प्राणियों की तरह मनुष्य में कुछ विशिष्ट ध्येयों को पूरा करने की अभिलाशा या झुकाव है। इस झुकाव के कारण प्राकृतिक विधि उन नियमों को सम्मिलित करती है जो प्रकृति ने All ‘प्राणियों’ को सहज प्रवृति (instinct) के Reseller में सिखाया है। उदारहरणार्थ यौन-सम्बन्ध, पैतृक-लगाव इत्यादि। तृतीय, मनुष्य में अपनी विवेकशील प्रकृति के कारण अच्छार्इ के प्रति लगाव या झुकाव है। यह झुकाव पदार्थ या अन्य प्राणियों में नहीं होता है बल्कि केवल मनुष्य में है। इस प्रकार मनुष्य र्इश्वर के सम्बन्धों में सच्चार्इ जानने की उत्कंठा रखता है और समाज में निवास करने की इच्छा रखता है। इस तरह प्राकृतिक विधि के अन्तर्गत मनुष्य के सहज झुकावों से सम्बन्द्ध All कार्य-कलाप आतें हैं। उदारहणार्थ के लिए प्राकृतिक विधि इन बातों से सम्बन्धित है कि मनुष्य को अज्ञानता दूर करनी चाहिए, या जिन लोगों के साथ वह रहता है उसे उनके साथ हिंसा नहीं करनी चाहिए, इत्यादि।

यद्यपि प्राकृतिक विधि ने ईश्वरीय इच्छा से अलग ईश्वरीय विवेक (divine reason) पर विशेष जोर दिया परन्तु समय-समय पर उसका प्रभाव परिलक्षित होता रहा है। समय And परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में प्राकृतिक विधि के Single या Second लक्षण को व्यक्त करने के लिए इस कर्इ नामों से पुकारा गया- अस्तु, इसे ईश्वरीय विधि (divine law), सार्वलौकिक विधि (universal law), शाश्वत विधि (eternal law), प्राकृतिक विधि (natural law), Humanता की विधि ( law of mankind), नैतिक विधि (moral law), या विवेकशील विधि (law of reason), के नाम से पुकारा गया है। डायस के According विभिन्न लोगों ने विभिन्न संदर्भो में इसे भिन्न-भिन्न तरह से प्रयुक्त Reseller है। इस प्रकार प्राकृतिक विधि का प्रयोग पाँच Meansो में Reseller गया है :-

  1. प्राकृतिक विधि वह आदर्श है जो विधि के विकास और विधि के प्रशासन का दिशा निर्देशन करती है।
  2. यह स्वयं विधि में आधारभूत नैतिकता का गुण या लक्षण है जो विधि में ‘‘जो है’’ (as is) और ‘‘जो चाहिए’’ (ought), के तत्वों के बीच पूर्ण अलगाव रोकता है। 
  3. यह पूर्ण विधि को ढूंढने का तरीका है।
  4. यह विवेक द्वारा प्राप्त पूर्ण विधि की अन्तर्वस्तु है और
  5. यह विधि की विद्यमानता या अस्तित्व का Indispensable तत्व है।

प्रारंभ में विधि, नैतिकता और धर्म Single Second से अलग नहीं किए जाते थे। विधि या तो ईश्वरीय इच्छा की अभिव्यक्ति थी या ईश्वरीय विवेक का द्योतक थी। इसके उपरान्त प्राकृतिक विधि की युक्ति परंपरा संबन्धी विचारधारा (classical hellenistic theory) की उत्पत्ति ग्रीस में हुर्इ। प्राकृतिक विधि का विकास ‘न्याय’ की परिकल्पना के साथ हुआ यद्यपि न्याय को ईश्वरीय इच्छा की पूर्ति का माध्यम माना गया परन्तु यह ईश्वरीय इच्छा युक्तिपरक इच्छा मानी गर्इ जिसे Human विवेक के माध्यम से आसानी से निश्चित Reseller जा सके। हेराक्लिटस (Heracltus) First विचारक थे जिन्होने समाज में व्यक्ति के स्थान को ध्यान में रखकर विधि की सार्वभौमिक सिद्वान्त के Reseller में व्याख्या की।

पांचवी शताब्दी र्इ.पू. के सॉफिस्ट्स ने First की विधि की व्याख्या से दो तरह से अपना भिन्न दृष्टिकोण अपनाया। First, हेराक्लिटस की नियम संगति की अवधारणा से हटकर सॉफिटस ने Human प्रकृति या विशेषकर स्वयं Human पर विशेष बल दिया। न्याय से अध्यात्मिक तत्व को हटाकर इसकी व्याख्या Human विज्ञान के लक्षणों अथवा सामाजिक हितों के Reseller में की गर्इ। उन्होने तत्कालीन प्राकृतिक विधि और राज्य की विधि दोनों से भिन्न दृष्टिकोण अपनाया। इस तरह उनके द्वारा ईश्वरीय शक्ति में विष्वास और राज्य की विधि की स्वीकारोक्ति दोनों से दूर हटकर विधि और नैतिकता के विशय में सापेक्षवादी और ऐतिहासिक दृष्टिकोण अपनाया गया।

कैलिकिल्स (Callicles) ने प्रकृति में विषमता का बोध कराकर राज्य-विधि द्वारा समानता के माध्यम से न्याय सुनिश्चित करना चाहा। उन्होने बलवान के अधिकार (right of the strong or might) को प्रकृति का आधार तत्व माना। कैलिकिल्स की तरह थ्रासीमैक्स (Thrasymachus) ने शक्तिशाली के अधिकार की बात की। सॉफिट्स की कर्इ आधारों पर आलोचना की गयी। First, एनॉनिमस लैम्बलीची (Anonymous Lamblichi) के लेखक ने कहा कि उनके द्वारा व्यक्ति की प्राकृतिक क्षमता का अनियन्त्रित और निर्दय प्रयोग का प्रोत्साहन Single महान बुरार्इ है। प्लोटो ने सॉफिस्टस की न्याय और विधि के मिलन की पुनर्स्थापना की असफलता को अपने समय के एथेन्स के नैतिक पतन तथा शक्ति And आक्रमण के शासन का कारण बताया। तृतीय, सुकरात और उनके शिष्य प्लेटो दोनों का मानना था कि सॉफिटस ने न्याय तथा सत्य की परिभाषा को ऊपर से नीचे की तरफ या उल्टा (upside down) कर दिया। उनके पलायनवाद तथा अनीश्वरवाद ने समाज के कल्याण और राज्य की समरसता को खतरे में डाल दिया। फलत: प्रतिक्रिया स्वReseller गौरवशाली प्रकृतिवाद का अभ्युदय हुआ। सुकरात, प्लेटो और अरस्तू ने इसे पूर्णता प्रदान की।

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