प्रयोजनवाद क्या है ?

प्रयोजनवाद के लिये अंग्रेजी का Word ‘‘प्रैग्मेटिज्म’’ है। इस Word की उत्पत्ति यूनानी Word प्रैग्मा से हुयी जिसका Means है Reseller गया कार्य, व्यवसाय, प्रभावपूर्ण कार्य। कुछ विद्वानों ने इस Word की उत्पत्ति Second यूनानी Word ‘‘प्रेग्मिटिकोस’’ से बताया है, जिसका Means है प्रौक्टिकेबल Meansात् व्यावहारिक इसके According प्रैग्मैटिज्म का Means है व्यवहारिकता। इस दृष्टि से प्रयोजनवाद के According किसी कार्य और सिद्धान्त के लिये व्यावहारिकता और उपयोगिता आवश्यक है अन्यथा उसका कोर्इ महत्व नहीं है। उपयेागिता पर बल देने के कारण इसे प्रयोजनवाद कहा गया। जीवन की व्यवहारिक क्रियाओं से उत्पन्न होने के कारण परिणाम पर बल देने के कारण कुछ लोगों ने इसे फलकवाद भी कहा है।

  1. जेम्स के According- ‘‘फलकवाद मस्तिष्क का Single स्वभाव है Single अभिवृत्ति है यह विचार और सत्य की प्रकृति का सिद्धान्त है और अन्तत: वास्तविकता के बारे में खोज का Single सिद्धान्तवाद भी है।’’
  2. कैण्डल के According- ‘‘प्रयोगवाद अमरीकी मस्तिष्क की व्यावहारिकता की प्रतिच्छाया है जो नवागत लोगों की जीवन की समस्या और उनके समाधान के फलस्वReseller उत्पन्न हयु ी।’’
  3. रस्क के According – ‘‘पय्रोगवाद पक्रतिवाद आरै हीगले के अथवा चरम आदर्शवाद दोनों का विरोध है।……..प्रयोगवाद नवीन Single नवीन आदर्शवाद के विकास में केवल Single अवस्था है Single आदर्शवाद वास्तविकता के साथ तभी पूर्ण न्याय कर सकता है जबकि व्यावहारिक और आध्यात्मिक मूल्यों को Single साथ दें और Single संस्कृति का निर्माण कर दे जो कार्य क्षमता में फलित हो न कि उसकी निशेधता में।
  4. प्रैट के According- ‘‘प्रयोजनवाद हमे Means का सिद्धान्त, सत्य का सिद्धान्त ज्ञान का सिद्धान्त और वास्तविकता का सिद्धान्त देता है।’’
  5. रोजन के According- ‘‘प्रयोजनवाद सत्य तथा Means के सिद्धान्त को पध््राानता देने के कारण मूलत: ज्ञानवादी विचारधारा है। इस विचारधारा के According सत्य को केवल उसके व्यावहारिक परिणामों से जाना जा सकता है। अत: सत्य निरपेक्ष की अपेक्षा वैयक्तिक या सामाजिक वस्तु है।’’

प्रयोजनवाद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

प्रयोजनवाद दर्शन की वह शाखा है, जो किसी पूव-सिद्ध सत्य को स्वीकार नहीं करतीं। इसे Means-क्रियावाद, व्यवहारवाद, करणवाद, पुनर्Creationवाद, अनुभववाद, फलानुमेय-प्रामाण्यवाद, प्रयोगवाद आदि संज्ञाओं से भी अभिहित Reseller जाता है। ये All संज्ञायें प्रयोजनवाद के लक्षणों की व्याख्या करती है, यह अमरीकी जन जीवन से उद्भुत दार्शनिक प्रणाली है।

प्रयोजनवाद ने Single ओर आदर्शवाद द्वारा प्रतिपादित पूर्व-सत्य के विरूद्ध आवाज उठायी, तो दूसरी ओर प्रकृतिवाद के अHumanीय वैज्ञानिक सत्य का विरोध Reseller। आदर्शवाद के According जगत पूर्व-निर्धारित तथा पूर्ण है और सत्य सार्वकालिक है। दैवी आदर्शवाद तो मनुष्य की नियति को भी किसी अज्ञात विण्वात्मा में स्थापित कर देता है ऐसी स्थिति में Human निष्क्रिय हो जाता है, और प्रकृतिवाद मनुष्य को Single प्रकृति का खिलौना मानकर अस्तित्व केा ही समाप्त कर देता है। दूसरी ओर प्रयोजनवाद इन दोनों मान्यताओं को चुनौती देते हुये अनेक नर्इ स्थापनायें प्रस्तुत करता है, जिनमें सर्वत्र Single नकारात्मकता झलकती है तथा पूर्व-निर्धारित All सिद्धान्तों को इंकार करने की प्रवृत्ति दिखायी देती है। अमेरिकी दर्शन के नाम से प्रचलित यह दर्शन प्रयोगवादी क्यो कहलाया है ? इसका कारण अमरीकी उपनिवेश की स्थापना है। इंग्लैण्ड And यूरोप से निष्कासित प्यूरिटन क्रिश्चन अमेरिका पहॅुचे और अपने समक्ष उपस्थित समस्याओं को अपनी तरह से सोच कर हल निकालने का प्रयास Reseller और नवीन अनुभवों के फलस्वReseller नर्इ विचारधारा निकली और यही प्रयोजनवाद के नाम से प्रसिद्ध हुयी। यूरोप में ज्ञान-विज्ञान में पुरूत्थान And सुधार की लहर फैली और उसका प्रभाव अमेरिका में भी आ पहॅुचा और लोगों ने प्रयोगकर उपयोगी तथ्यों और ग्रहण करने की प्रवृत्ति ने जन्म दिया और इस प्रयोग की प्रवृत्ति ने प्रयोगवाद को आगे बढ़ाया। प्रयोग की कसौटी पर आदर्शवाद And प्रकृतिवाद के सिद्धान्तों को परखकर प्रयोगवाद ने अपना दार्शनिक अस्तित्व खड़ा Reseller। प्रयोजनवाद के लिये अंग्रेजों में प्रयुक्त Word ‘‘प्रग्मैटिज्म’’ ग्रीक भाषा के Word प्रौमैटीकोस से लिया गया जिसका Means व्यवहार प्रयोग या क्रिया है। ग्रीक भाषा में मिला यह Word प्राचीन दार्शनिकों के विचारों में मिला है।

इस Word का प्रयोग पांचवी से छठवीं शताब्दी र्इसा पूर्व में हेराक्लिट्स के विचारों में पाया जाता है। हेराक्लिटस के अुनसार वास्तविक चीजें परिवर्तनशील है अत: साश्वत सत्य नहीं हो सकते। इसे प्रयोगवाद ने भी स्वीकार Reseller है। हेराक्लिटस के बाद सोफिस्ट आते हैं। इनकी प्रस्थिति समाज में ऊँची नहीं थी फिर भी ये दार्शनिक माने जाते हैं। प्लेटों की प्रोटोगोरस नामक Single पुस्तक में प्रोटोगोरस नामक सोफिस्ट का चित्रण Reseller है प्रोटोगोरस तथा गोरजियस और उनके शिष्यगणों ने विद्यालय तथा सामान्य जनता के बीच सम्पर्क स्थापित करने का प्रयत्न Reseller। प्रोटोगोरस ने सिद्ध Reseller कि इन्द्रीय ज्ञान उत्तेजना प्रतिक्रिया सिद्धान्त पर निर्भर है। ज्ञान का आधार प्रत्यक्ष है और व्यक्ति ही इन्द्रिय प्रत्यक्ष होता है।

गोरिजियस का मत था कि पूर्व में केार्इ भी अस्तित्व नहीं है, इससे संदेहवाद की भावना गोरजियस में पायी जाती है। जान डी0वी0 के मतानुसार All चिन्तन Single प्रकार का प्रयोग है। इसके अलावा व्यक्ति को नहीं सामाजिक मन को डी0वी0 ने All चीजों का मापदण्ड कहा है।

Indian Customer दर्शन में भी प्रयोजनवादी विचारधारा पायी जाती है। इस सम्बंध में डा0 सिन्हा ने अपने विचार व्यक्त करते हुये लिखा है कि ‘‘अन्त: यथार्थ सत्य की परख है। न्याय प्रवृत्ति सामथ्र्य अथवा क्रियात्मक उपयोगिता को भी सत्य की कसौटी मानता है।………. ………अत: क्रियात्मक अनुपयोगिता असत्य की Single कसौटी है। न्याय तथ्य के साथ संमात की जो विषय वादियों की कसौटी है तथा क्रियात्मक उपयोगिता को जो व्यवहारवादियों के सत्य की कसौटी है, इन दोनों को मानता है। न्याय विषयवादियों व्यवहार को मानता है। न्याय का मत है कि ज्ञान का प्रमाण्य, ज्ञान के कारणों के गुण से उत्पन्न होता है, न्याय के According ज्ञान का प्रमाण्य और अप्रमाण्य दोनेां बाहरी कारणों से उत्पन्न तथा ज्ञात होते हैं।’’

Indian Customer परम्परा को तो मानना है कि बिना उद्देश्य या प्रयोजन के तो मंदबुद्धि भी किसी काम में नहीं लगता प्रयोजनमनुधिण्य न मंदो अपि प्रवर्तते यानि प्रयोजन कार्य की पहली शर्त है। इसके अलावा- यस्तु क्रियान्वयन पुरूष: स And विद्वान यानि क्रियाणील या व्यवहारणील व्यक्ति ही असली विद्वान है और Meansकारी सा विद्या -विद्या र्इच्छाओं को पूरा करने वाली है। पूरा Indian Customer दर्शन धर्म सिखाने से भरा पड़ा है और धर्म का Means कर्तव्य भावना है, जिससे मनुष्य लगातार उन्नति की ओर बढ़ता रहे। मीमांणा दर्शन के According तो धर्म प्रेरणा का साधन है मनुष्य जीवन की उन्नति के दस लक्षणेां की महत्व देते हुये इन्हें ही धर्म का लक्षण बताया गया।

घृति: क्षमा दमोsस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं।।

धर्म के दस लक्षण- धैर्य, क्षमा, मन पर वण, सत्य वचन, क्रोध पर वश, चोरी न करना, पवित्रता, इन्द्रिय नियंत्रण, बुद्धिमता, ज्ञान। (शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्) शरीर इस साध्य को पाने का सबसे बड़ा साधन है। Indian Customer दर्शन में प्रयोजनवादी शाखा प्राचीन है।

बैाद्ध दर्शन में भी प्रयोगवाद की झलक मिलती हैं, योगाचार सम्प्रदाय क दर्शन में प्रयोगवाद की छाया दिखायी पड़ती है। जिसमें यह लिखा गया है कि जीवन में हमारी क्रियायें बाह्य पदार्थों के कारण हैं ज्ञानकारों के भिन्नता विषयाकारों की भिन्नता के कारण है। वर्ण Word, गंध, स्वाद, तापमान इत्यादि का ज्ञान बाह्य पदार्थों को देखता है। यह अनुभव उसके प्रयोग पर निर्भर है। प्रयोगवाद की यदा-कदा झलक 16वीं शताब्दी में भी दिखायी देती है। फ्रांसीसी बेकन ने अपने लेखों (नोवम आर्गेनम एडवासमेंट, आफ लर्निंग, न्यू एटलांटिस) में आगमन प्रणाली विज्ञान को समाज मार्ग दर्शन के Reseller में तथा समाज द्वारा विज्ञान को सामान्य निधि स्वReseller Windows Hosting रखने के लिये तथा विज्ञान को सामाजिक अनुसंधान क्रिया के Reseller में मानने को कहा है।

अठारहवीं शताब्दी में आगस्ट काम्टे ने अपनी ‘‘पाजिटिवी फिलास्फी’’ में विज्ञानों के अध्ययन पर जोर दिया और बताया कि भौतिक विज्ञान, रासायनिक विज्ञान, शरीर विज्ञान तथा समाज विज्ञान ये All Human के क्रियाओं से अन्त: सम्बंधित है। इससे व्यावहारिक कार्यों ने काल्पनिक विचारों का प्रभाव कम हुआ और Humanेत्तर And धार्मिक विश्वासों का प्रभाव कम होता गया। अध्यात्मशास्त्र का व्यावहारिक उपयोग होने लगा और सामाजिक सम्बंधों पर बल दिया जाने लगा। इससे नयी विचारधारा प्रयोजनवाद में आ गयी। प्रयोगवाद के First दार्शनिक चाल्र्स सैण्डर्स पियर्स माने गये पियर्स का योगदान ज्ञान दर्शन के क्षेत्र में विचारों के प्रयोगवादी Means निश्चय करने की कसौटी निर्धारित की है। इसी दर्शन को जेम्स व डी0वी0 आगे बढ़ाया।

पियर्स ने तर्क विज्ञान And गणित के सिद्धान्तों का प्रयोग Reseller इस प्रयत्न में पियर्स ने कान्ट के आत्मगत मानसिक प्रक्रिया तथा संसार की वस्तुगत यर्थाथताओं को कुछ हद तक जोड़ा है।पियर्स के बाद विलियम जेम्स प्रयोगवादी दार्शनिक हुये इन्हेानें भी अनुभव पर बल दिया पर Human को सर्वोच्च नहीं स्वीकार Reseller है और डी0वी0 And जेम्स के दर्शन में अन्तर आ गया।

डी0वी0 प्रयोगवाद के प्रबल समर्थक And प्रचारक हुये। डी0वी0 पर यर्थाथवादी टोरी, आदर्शवादी मारिस, जाने केयर्ड तथा ग्रीन का और स्टेनली हाल के प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का प्रभाव पड़ा। इसके फलस्वReseller प्रयोगात्मक वैज्ञानिक विधि की और डी0वी0 का झुकाव है। डी0वी0 ने आदर्शवादी धारण के विरूद्ध मनुष्य के आत्मा और इच्छा शक्ति को आध्यात्मिक Reseller न होकर सामाजिक Reseller दिया। डी0वी0 के बाद उनके शिष्यों और सहयोगियों ने प्रयोजनवाद को आगे बढ़ाया जिनमें किलपैट्रिक मांरिसन आदि अमरीका में तथा शिलर इंग्लैण्ड के प्रमुख प्रयोजनवादी माने गये है।

प्रयोजनवाद का दार्शनिक दृष्टिकोण

1. तत्व प्रदर्शन में प्रयोजनवाद –

 प्रयोजनवादी मन तथा पदार्थ Single पथ्श् ाक और स्वतंत्र तत्वों के Reseller मे अस्वीकार करते हैं। वे अपने सत्ता-विज्ञान को अनुभव की धारणा पर आधारित करते हैं। प्रयोजनवादियों के According प्राकृतिक नियम की धारणा निर्देशात्मक हेाने के बजाय वर्णनात्मक है ये वास्तविकता को सूक्ष्म वस्तु नहीं मानते है। वे इसको कार्य सम्पादन की प्रक्रिया समझते है जिसमें दो बातें निहित हैं- कार्य करना और कार्य तथा उसके परिणाम से Means निकालना। पियर्स का कथन है- ‘‘प्रयोजनवाद स्वयं में तत्व-दर्शन का सिद्धान्त नहीं और न यह वस्तुओं के सत्य को निर्धारित करने के लिये कोर्इ प्रयास है। यह केवल कठिन Wordों और अमूर्त धारणाओं के Means को निश्चित करने की विधि है।’’

2. ज्ञान शास्त्र में प्रयोजनवाद –

ज्ञान अनुभव में निहित है। अनुभव तात्कालिक या मध्यस्थ हो सकता है। तात्कालिक अनुभव, अनुभूति की वस्तु है। तात्कालिक अनुभव मनुष्य तथा उसके मन की अपने वातावरण के प्रति की जाने वाली पारस्परिक क्रिया है। इसके लिये बुद्धि के प्रयोग की Need है क्योंकि, बुद्धि के द्वारा ही इसकी दिणा का निर्धारण Reseller जाता है। प्रयोजनवादी प्रयोगात्मक विधि को ज्ञान प्राप्ति के साधन मानते हैं उन्होनें इस विधि के पांच पद या स्तर निर्धारित किये हैं। क्रिया परिस्थिति निर्माण, समस्या, सूचना या प्रदत्त, परिकल्पना या सम्भव समाध् ाान, परीक्षण And प्रयोग। डी0वी0 का कथन है- ‘‘जो परिपकल्पना व्यावहारिक Reseller में कार्य करती है, वह सत्य है, जिसका प्रयोग उन वास्तविक और पूर्वअनुमानित वांछित तथ्यों के संकलन के लिये Reseller जाता है, जिनकी अपने परिणामों द्वारा पुष्टि होती है।’’

3. मूल्य मीमासां में प्रयोजनवाद –

नैतिक मूल्य Human एव समाज के मध् य होने वाली आदान-प्रदान की प्रक्रिया का प्रतिफल है। अच्छार्इ वह है जो सर्वोत्तम ढंग से अनिण्चित परिस्थितियों का समाधान करती है। प्रयोजनवादी-समस्याओं के समाधान में बुद्धि के प्रयोग की अच्छार्इ या सद् मानते हैं।

सुन्दर क्या है? इस सन्दर्भ में प्रयोजनवादी के According सुन्दर वहीं है जिसे हम अपने अनुभव से सुन्दर मानते हैं। कला की जो कृति हमें अपनी ओर आकृष्ट कर सकती है और गहन Reseller से अनुभूति करने के लिये तत्पर बना सकती है, वही सुन्दर है।

धर्म क्या है? इस सन्दर्भ में डी0वी0 ने लिखा है कि ‘‘धर्म किसी बात की स्वीकृति है जो पृथक है और जिसका स्वयं के द्वारा अस्तित्व है। धार्मिक के Means को स्पष्ट करते हुये डी0वी0 ने लिखा है कि इसके अन्तर्गत वे दृष्टिकोण आते हैं जो किसी वस्तु तथा किसी निर्धारित साध् य या आदर्श के प्रति बनाये जा सकते है।

र्इश्वर क्या है? इस सन्दर्भ में डी0वी0 ने लिखा है कि र्इश्वर आदर्श तथा वास्तविकता के मध्य सक्रिय सम्बंध है।

प्रयोजनवाद के विभिन्न सम्प्रदाय

1. पियर्स का व्यवहारवाद-

Means क्रियावाद अथवा प्रयोजनवाद Word का पय्र ागे First चाल्र्स सैण्डर्स पियर्स की पुस्तक में मिलता है। पियर्स ने तार्किक And दार्शनिक दृष्टि से प्रतीकों की व्याख्या की। पियर्स के मतानुसार कोर्इ अभिधारणा अन्तिम नहीं है उसका Means उसके प्रभाव से निर्धारित Reseller जाता है। फलत: वास्तविक व्यवहार में जो प्रत्यय अथवा अभिधारणायें Single-Second से सम्बद्ध होती है, उनके इस पारस्परिक सम्बंध को उचित Means में देखना ही उन्हें सीखना है। संक्षेप में पियर्स यह कहना चाहता है कि सत्य सम्बंधी All अभिधारणायें अस्थायी हैं उनमें निरन्तर परिवर्तन होता रहता है, तथा व्यवहार के साथ उनके Means बदलते रहते हैं।

2. विलियम जेम्स का अनुभववाद या फलानुमेय प्राण्यवाद- 

पियर्स के पग्े्रमेिटसिज्म को जेम्स ने शिष्य बनकर प्रेग्मेटिज्म संज्ञा प्रदान कर उसे क्रमबद्ध दर्शन का Reseller प्रदान Reseller। जेम्स ने पियर्स का इस विषय में अनुमोदन Reseller कि Means-क्रियावादी विधि बिना पूर्व-निर्धारित उत्तरों के प्रण्नों का हल ढूढने का प्रयत्न करती है। जेम्स के According विचार का प्रयोजन Humanीय रूचियों को सन्तुष्टि करना है। विचार अनुभव में अन्तर्निहित होता है। और अनुभव से परे कोर्इ विचार नहीं हेाता। अनुभव सब कुछ है और जीवन के All मूल्य अनुभव के ही उद्भूत हेाते हैं सत्य निरपेक्ष नहीं है, अपितु अनुभवाश्रित है। सत्य का मूल्य व्यावहारिक है। चिरन्तन अपरिवर्तित सत्य को जेम्स स्वीकार नहीं करता। सत्य की प्रकृति के सम्बध में उसकी मान्यता है सत्य अनेक है जो निर्मित होते है। जेम्स जगत को पूर्ण नही मानते।

3. जान डी0वी0 के करणवाद प्रयोगवाद तथा पुनर्Creationवाद-

शिक्षा की दृष्टि से डी0वी0 के करणवाद का बड़ा महत्व है इसने शिक्षा में क्रांति दी। यह व्यवहारवाद करणवाद के Reseller में इसीलिये प्रसिद्ध हुआ क्येांकि इनके मतानुसार मस्तिष्क ज्ञान उपकरण के Reseller में प्रयुक्त होते है वे अपने आप में साध्य नहीं है। उनके मतानुसार मस्तिष्क तथा बुद्धि का विकास प्राकृतिक ढंग से हुआ। जीवन के विविध सामाजिक परिस्थितियों का सामना करने के लिये मनुष्य को जो प्रक्रियायें करनी पड़ी उनके उप-उत्पाद्य के Reseller से इसका विकास हुआ। डी0वी0 के According ज्ञान मस्तिष्क के परे नहीं है विचार मस्तिष्क की क्रिया मात्र है। डी0वी0 का दूसरा प्रमुख विचार प्रयोगवाद का है। डी0वी0 ने प्रयोगात्मक विक्रिा को जो वैज्ञानिक क्षेत्र में प्रयुक्त होती है, Humanीय सामाजिक समस्याओं का हल करने के लिये उपयुक्त समझा। डी0वी0 के According हमारी चिन्तन प्रक्रिया में वे All चरण होते हैं जो वैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रयुक्त होते है। यदि हमे अपने अनुभवों का लाभ प्रभावी ढंग से लेना है, तो प्रयोगात्मक विधि से करे। डी0वी0 प्रधानतया शिक्षा दार्शनिक था उसके According शिक्षा अनुभवों की पुनर्Creation मानी जाती है। इसी आधार पर उनके दर्शन को पुनर्Creationवाद भी कहा जाता है।

4. किलपैट्रिक का  प्रयोजनवाद-

‘‘शिक्षा की दृष्टि से Single आरै महत्वपूर्ण नाम किलपैट्रिक का लिया जाता है। जिसने डी0वी0 की समस्या हल विधि या वैज्ञानिक विधि को प्रोजेक्ट प्रणाली के Reseller में विकसित Reseller। किलपैट्रिक ने गैलिलियों द्वारा स्थापित वैज्ञानिक प्रतिमानों द्वारा विण्व की व्याख्या करने का प्रयत्न Reseller। इनके According Humanीय मूल्यों अनुभवों की प्रमुख उपलब्धि नैतिक मूल्य है। उसके According दर्शन जीवन के संघर्षत्मिक मूल्यों का समीक्षात्मक अध् ययन है। दर्शन का काम यह पता लगाना है कि संघर्षों के बीच जीवन कैसे जिया जाय। डी0वी0 के समान किलपैट्रिक की भी यही मान्यता है कि नैतिकता सामाजिक हेाती है।

प्रयोजनवाद के मुख्य सिद्धान्त

ब्राइटमैन का कथन है- ‘‘प्रयोजनवाद सत्य का मापदण्ड है। सामान्य Reseller में यह वह सिद्धान्त है, जो समस्त विचार प्रक्रिया के सत्य की जॉच उसके व्यावहारिक परिणामों से करता है। यदि व्यावहारिक परिणाम संतोषजनक है तो विचार-प्रक्रिया को सत्य कहा जा सकता है।’’’प्रयोजनवाद के सिद्धान्त है-

  1. जो सिद्धान्त कार्य करते है, वे सत्य हैं। सत्य परिवर्तनणील है। 
  2. Human प्रयासों का अत्यधिक महत्व है। 
  3. अनुभव अनेक प्रकार से सम्बंधित व बदलते रहते है। 
  4. जीवन और उससे सम्बंधित विभिन्न क्रियायें वास्तविक है। 
  5. सिद्धान्त की कसौटी उसकी वास्तविकता है। 
  6. प्रयोजनवाद प्रकृतिवादी सिद्धान्तों और आदर्शवादी निष्कर्णो का योग है। 
  7. सत्य Human निर्मित हेाता है, और जीवन के मूल्य और सत्य बदलते रहते है। 
  8. दर्शन का मुख्य कार्य अनुभवों को, सम्भावनाओं को संगठित करना है। 
  9. अन्तिम अपरिवर्तित और सदैव ठीक उतरने वाली पद्धति की स्थापना साध् ान के Reseller में उसका महत्व Destroy कर देती है। 
  10. जो बात उद्देश्य पूरा करे इच्छाओं को संतुष्ट करे वही सत्य है। 
  11. समस्या के Means को समझकर ही हल करने का प्रयास करें। 
  12. विचारों की All पद्धतियो का सम्बंध उस स्थिति और व्यक्तियों से है जिसमें वे उत्पन्न होती हैं, और जिसको वे सन्तुष्ट करती है। उनमे परिणामों द्वारा सदैव परिवर्तन हो जाता है। 
  13. जीव विज्ञान द्वारा यह सिद्ध है कि जीवन मनो शारीरिक प्राणी है, और विचार उस स्थिति से अनुकुलन करने का साधन है, जिनमे कठिनाइयां And समस्यायें उपस्थित होती है।

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