प्रबंध के सम्प्रदाय

प्रबन्ध की विचारधारा का जन्म कब हुआ, इसका स्रोत क्या था? इस विषय में चिरकाल से आजतक स्पष्ट Reseller से कुछ भी नहीं कहा जा सकता, किन्तु इस सम्बन्ध में यह तो स्पष्ट Reseller से कहा जा सकता है कि जितनी पुरानी हमारी Human सभ्यता है उतना ही पुराना प्रबन्ध की विचारधारा का जन्म। इसके सम्बन्ध में भी दो राय नहीं है कि प्राचीनकाल में प्रबंध का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था, Second Wordों में व्यवसाय का स्वामी ही स्वयं प्रबन्ध कार्यों को Reseller करता था। किन्तु आज के प्रतिस्पर्धात्मक दौर में प्रबन्ध का स्वतंत्र आवतल समाप्त हो गया है और इसकी जगह पेशेवर प्रबन्ध ने ले ली है। प्राय: प्रबन्ध विचारधारा के उदगम में तीन चरणों को रखा जा सकता है यथा प्राचीन काल में प्रबन्ध, मध्यकाल में प्रबन्ध तथा आधुनिक प्रबन्धन। इसी प्रकार प्रबन्ध की विचारधाराओं को भी तीन सम्प्रदायों (रूढ़िवादी, नवरूढ़िवादी And आधुनिक) में वर्गीकृत Reseller जा सकता है –

जैसा कि हमने देखा अध्ययन को सुव्यवस्थित करने के लिए हम प्रबन्ध के विकास को तीन चरणों में विभक्त करते हैं। आइये अब उन्हें क्रमवार गहरार्इ से समझने का प्रयास करें –

Human सभ्यता का विकास तथा प्रबन्ध का विकास लगभग साथ साथ हुआ है। Human सभ्यता के विकास के साथ ही प्रबन्ध कला लगभग All संगठनों में विद्यमान थी। First प्रबन्ध विचारधारा का अभ्युदय व्यक्तिगत नेतृत्व के Reseller में हुआ। इसका First उदभव मेसोपोटामिया में पादरियों का समूह था जो प्रबन्ध कौशल व कला के लिए विख्यात था। ये अपने को र्इश्वर का प्रतिनिधि कहते थे और इस नाते वे नेतृत्व And नियंत्रण का कार्य करते थे। इन्होंने व्यापारिक क्रियाओं का नियोजन Reseller।

प्रबन्ध कार्य को सुलभ बनाने के लिए हिसाब किताब हेतु अंक विद्या तथा लिखने के कुछ साधनों का आविष्कार भी Reseller था। इसी प्रकार धार्मिक पुस्तक बाइबिल में भी प्रबन्ध के संबंध में पता चलता है कि उस युग में भी योग्य व्यक्तियों का चयन और सत्ता के भारार्पण जैसे कुछ सिद्धान्त प्रचलन में थे जो आज विशालकाय औद्योगिक उपक्रमों में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए। इसी क्रम में प्राचीन साहित्य में सुकरात तथा अन्य लेखकों के संवादों में विशिष्टीकरण And अन्य प्रबन्धकीय सिद्धान्तों का History मिलता है।

प्राचीन मिस्रवासियों की प्रबन्ध कुशलता And इंजीनियरिंग का अन्दाजा विश्व विख्यात पिरामिडों को देखने से लग जाता है। इसी प्रकार यूनान, रोम व ग्रीक आदि देशों की प्राचीन सुन्दर इमारतें भी इस तथ्य को सिद्ध करती हैं कि उस समय भी श्रमिकों को निर्देशित करने के लिए प्रबन्धक उपस्थित थे। हमारे देश भारत में कौटिल्य द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘Meansशास्त्र‘ जिसकी Creation आज से लगभग 2000 वर्ष पूर्व हुर्इ थी, में राजनीतिक Meansव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं के साथ साथ सार्वजनिक प्रबन्ध के विभिन्न समस्याओं और उनके समाधान पर भी प्रकाश डाला गया है।

उपर्युक्त व्याख्या से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस संबंध में कोर्इ मतभेद नहीं है कि प्राचीन काल में प्रबंधकीय सिद्धान्तों के लिए जो Wordावली प्रयोग में लायी जाती थी वह वर्तमान Wordावली से बिल्कुल भिन्न थी परन्तु यह तो सिद्ध हो ही जाता है कि प्रबन्ध के कुछ मूलभूत सिद्धान्तों का प्रतिपादन First ही हो चुका था।

औद्योगिक विकास की मध्य यात्रा प्रबंध विकास का आदि काल कहा जाता है। यह आत्मनिर्भरता का समय था। अधिकांश जनसंख्या ग्रामीण थी जिनकी Needओं की पूर्ति गांवों में ही हो जाया करती थी Meansात व्यापार सीमित था। मध्य युग में औद्योगिक उत्पादन विधियॉं अत्यन्त सरल थीं और जिनके प्रयोग से ज्ञान के लिए विशेष प्रशिक्षण की Need नहीं थी। विद्वानों ने माना, मध्यकाल में कारीगर, मजदूर, निरीक्षक, पूंजीपति, व्यापारी तथा दुकानदार All कुछ था। शिल्पकार पर ही कारखाना तथा परिवार के सदस्य कारखाने में काम करने वाले कारीगर होते थे। जो कुछ भी उत्पन्न होता था उसका या तो स्वयं उपभोग कर लिया करते थे अथवा यदि कुछ शेष बचता था, तो वह निकटवर्ती लोगों को तुरंत बेच दिया जाता था इस प्रकार उपभोक्ता (क्रेता) और उत्पादक में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता था। संक्षेप में Single ही व्यक्ति प्रKing, संगठनकर्ता, व प्रबंधक कहलाता था। जिससे प्रतिस्पर्द्धा की भावना नहीं होती थी। इस प्रकार व्यापारिक गतिविधियों को पुत्र अपने पिता के साथ कार्य करके सीख लेता था। इस प्रकार यह पैतृक ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता रहता था।

यूरोप के विभिन्न देशों में हुर्इ औद्योगिक क्रान्ति ने व्यापारिक क्षेत्र के सामाजिक संCreation में गंभीर परिवर्तन किए तथा संगठन के विकास तथा विकेन्द्रीयकरण को प्रोत्साहन मिला। नये आविष्कार, अधिक उत्पादन, श्रम विभाजन, विशिष्टीकरण आदि के विकास से नर्इ प्रबन्धकीय समस्याओं को आधार मिला। इसी समय एडम स्मिथ ने 1776 में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Wealth of Nations’ में कुछ समान्य प्रबन्धकीय समस्याओं को रखा तथा कुछ सिद्धान्तों का सूत्रपात Reseller। एडम स्मिथ के कार्यों को आगे बढ़ाते हुए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में गणित के प्रो. चाल्र्स बैवेज ने अपने लेख ‘On the Economy of Machinery and Manufactures’ में उत्पादन प्रबन्ध के अनेक सिद्धान्तों की विस्तार से व्याख्या की।

20वीं शताब्दी के आरम्भ से ही वैज्ञानिक प्रबन्ध का सूत्रपात हुआ जो बाद में आधुनिक प्रबन्ध का आधार स्रोत बना तथा प्रबन्ध को Single पेशे के Reseller में मान्यता दिलार्इ। वर्तमान प्रतियोगात्मक युग में प्रबन्ध विज्ञान का विकास चार अवस्थाओं में हुआ है। यथा-

आधुनिक व्यवसाय की सबसे प्रमुख घटना व्यावसायिक संगठन के प्रमुख स्कंघ कम्पनी प्राReseller का रहा जिसके अन्तर्गत मुख्यत: तीन बातों का खुलासा हुआ –

Needओं के परिणामस्वReseller संबंधित औद्योगिक इकार्इ का संचालन पेशेवर प्रबन्ध के द्वारा सम्भव हो सका। इस प्रकार आधुनिक प्रबन्ध औद्योगिक इकाइयों को निर्देशित करने वाली विधा के Reseller में प्रकट हुआ। जिससे लाखों करोड़ों लोगों को रोजगार के अवसर मिले तथा Meansव्यवस्थाओं को भी आगे विकास करने का समुचित आधार प्राप्त हुआ।

प्रबन्धकीय History में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रेरित करने वाले कुछ तत्व निम्नलिखित हैं, जिनका चयन हमारे ज्ञान को निश्चित ही सुव्यवस्थित करेगा।

भारत में प्रबंधकीय विचारधारा अपने शैशवकाल में है। यहॉं इसका History अधिक प्राचीन नहीं है। यहॉं स्वतंत्रता से पूर्व औद्योगिक विकास की स्थिति असंतोषजनक थी। स्वतंत्रता के पश्चात हमारे देश में आर्थिक नियोजन के आधार पर देश का आर्थिक And औद्योगिक विकास Reseller गया। First पंचवष्र्ाीय योजना में औद्योगिक विकास की गति को तीव्र Reseller तथा निजी And सार्वजनिक क्षेत्र में यह महसूस Reseller गया कि औद्योगिक उपक्रमों के सफल संचालन के लिए पेशेवर प्रबन्धकों की Need है। प्रबन्धकीय प्रशिक्षण की दिशा में हमारे देश में विगत वर्षों से जो प्रयास हुए हैं, आइये उनको समझने का प्रयास करें-

1949 में भारत सरकार द्वारा अखिल Indian Customer तकनीकी शिक्षा परिषद की स्थापना की। इस परिषद के सुझाव पर औद्योगिक And व्यावसायिक प्रशासन उपसमिति की स्थापना हुर्इ जिसने जून 1953 में अपने प्रतिवेदन में अन्य बातों के अतिरिक्त तीन प्रमुख सिफारिशें की थी –

भारत सरकार ने अखिल Indian Customer प्रबन्ध तकनीकी अध्ययन मण्डल की सिफारिश के आधार पर प्रन्धकीय शिक्षा में शोध कार्य हेतु तथा निजी And सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक उपक्रमों को प्रशिक्षित प्रबन्धक उपलब्ध करने के उद्देश्य से अहमदाबाद और कलकत्ता में शिक्षण कार्य के लिए संस्थान स्थापित किये।

3. स्नातकोत्तर प्रशिक्षण की स्थापना –

भारत सरकार ने अखिल Indian Customer प्रबन्ध तरनीकी अध्ययन मण्डल की सिफारिशों के आधार पर औद्योगिक प्रबन्ध तथा इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था निम्न संस्थाओं में की है –

  1. इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस मैनेजमेंट, अहमदाबाद 
  2. इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी, खड़गपुर 
  3. इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल वेलफेयर एण्ड बिजनेस मैनेजमेंट, कोलकता 
  4. इण्डियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलौर 
  5. विक्टोरिया जुबली टेक्नीकल इंस्टीट्यूट, मुम्बर्इ 
  6. जमनालाल बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंन्ट, मुम्बर्इ, 
  7. बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाजी, पिलानी, 
  8. मोतीलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ रिसर्च एण्ड बिजनेस मैनेजमेंट, इलाहाबाद 
  9. प्रKingीय कर्मचारी कालेज, हैदराबाद, आदि । 

4. कालेज And विश्वविद्यालयों में प्रबन्धकीय शिक्षा की व्यवस्था –

विभिन्न कालेज और विश्वविद्यालयों में व्यवसाय प्रशासन And प्रबंधन की उच्च शिक्षा And शोध की व्यवस्था हुर्इ जिनमें व्यवसाय प्रशासन विभाग की स्थापना की गर्इ विश्वविद्यालय, जौनपुर विश्वविद्यालय, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय बम्बर्इ विश्वविद्यालय, मद्रास विश्वविद्यालय के नाम Historyनीय हैं। 

5. विशिष्ट पहलुअुओंं के लिए शिक्षण And प्रशिक्षण संस्थान – 

प्रबन्धकीय शिक्षण And प्रशिक्षण में अनेक पेशेवर संगठन अपनी भूमिका निभा रहे हैं, जिनमें –

  1. इंस्टीट्यूट ऑफ कास्ट एण्ड वक्र्स Singleाउन्टेंट्स कोलकता, 
  2. इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड Singleाउन्टेंट्स, मुम्बर्इ, 
  3. इंस्टीट्यूट ऑफ पर्सनल मैनेजमेंट, कोलकता, 
  4. इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोडक्शन इन्जीनियरिंग, मुम्बर्इ 
  5. इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्सटाइल रिसर्च एसोसियेशन अहमदाबाद आदि के नाम विशेष Reseller से Historyनीय हैं। 

6. लघु उद्योग संगठन – 

भारत सरकार द्वारा 1955 में लघु उद्योग संगठन की स्थापना हुर्इ। यह संगठन ‘लघु उद्योग सेवा संस्थान’ And ‘विस्तार केन्द्रों के द्वारा प्रबन्धकीय शिक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित करता है। यह संस्था लघु उद्योंग कारखानों को तकनीकी प्रशिक्षण सुविधायें प्रदान करने, विदेशी विशेषज्ञों को आमंत्रित करने और Indian Customer व्यक्तियों को प्रशिक्षण के लिए विदेशों में भेजने से संबंधित कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।

7. औद्योगिक प्रबन्ध संघ –

भारत सरकार ने अपने मंत्रालयों के अधीन स्थापित सार्वजनिक उपक्रमों में उच्च प्रबंधकीय पदों पर Appointment के लिए नवम्बर 1957 में ‘औद्योगिक प्रबंध संघ’ की स्थापना की इस संघ में सुयोग्य प्रबन्धक ही रखे जाते हैं।

8. राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद –

 भारत सरकार ने वाणिज्य And उद्योग मंत्रालय के अधीन फरवरी 1958 में भारत सरकार के वाणिज्य And उद्योग मंत्रालय के अधीन फरवरी 1958 में राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद की स्थापना की। इस परिषद ने देश में उत्पादकता And प्रबन्धकीय प्रशिक्षण को प्रारम्भ करने, विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

9. निजी उद्योगपतियों द्वारा प्रबन्धकीय प्रशिक्षण की व्यवस्था – 

उद्योगपतियों ने अपने संस्थानों में ही प्रबन्धकीय प्रशिक्षण प्रदान करने की व्यवस्था की हुर्इ है जिनमें टाटा, बिड़ला, जे.के., अम्बानी, बजाज आदि के नाम विशेष Reseller से Historyनीय हैं। वर्तमान समय में भारत में छोटे-बड़े All स्तर के उद्योग स्थापित हैं जिनमें निजी, सहकारी, सार्वजनिक तथा संयुक्त स्वामित्व के उद्योग शामिल हैं। प्रबन्ध की विक्तिायों और तकनीकी परिवर्तनों के कारण प्रबन्धकीय क्रान्ति का All पैमाने की इकाइयों में समान महत्व हैं। विशेषकर बड़े पैमाने के निजी And सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में प्रबंध व्यवस्था में तीव्र गति से हो रहे परिवर्तन भारत में प्रबन्धकीय क्रान्ति के स्पष्ट प्रमाण हैं। भारत सरकार ने स्वतंत्रता के बाद प्रबन्ध के विकास में पर्याप्त रूचि ली हैं

प्रबंध का रूढ़िवादी सम्प्रदाय 

यद्यपि प्रबन्धकीय विज्ञान का सुव्यवस्थित प्रादुर्भाव अभी कुछ ही वर्षों पूर्व हो सका है। किन्तु प्रबन्ध की समस्यायें तथा इनका समाधान Human आदिकाल से निरन्तर करता चला आया है। हर युग में Humanीय प्रबंधकों ने तत्कालीन संगठनों की समस्याओं के निराकरण का मार्ग ढॅूढा। इस प्रकार प्रबन्ध के कर्इ विचारकों को शामिल कर Single विचारधारा का जन्म हुआ, जिसे रूढ़िवादी विचारधारा कहकर सम्बोधित Reseller गया।

प्राय: रूढ़िवादिता का Means पुराने समय से चले आ रहे नियमों या परम्पराओं से होता है। इसका यह Means कदापि नहीं है कि कोर्इ चीज स्थार्इ या समयबद्ध है या उसे छोड़ देना चाहिए। हम अपने अध्ययन की सुविधा के लिये इस विचारधारा के अन्तर्गत तीन महान प्रबन्ध विद्वानों को समझने का प्रयास करेंगे यथा अधिकार तंत्र या दफ्तरशाही, वैज्ञानिक प्रबन्ध तथा प्रशासनिक प्रबन्ध।

(क) रूढ़िवादी विचारधारा के अन्तर्गत First हम मैक्स वेबर के अधिकार तंत्र या दफ्तरशाही संगठन से जुड़े विचारों को जानेंगे अपने अधिकार तंत्र का ढॉंचा वेबर ने Single प्रतिक्रिया के Reseller में निर्मित Reseller था। औद्योगिक क्रान्ति के बाद प्रबन्धकों के व्यवहार में कर्मचारियों के दमन भार्इ-भतीजावाद, निदयता, मनमानी तथा व्यक्तिगत स्वार्थ पूर्ति जैसे निमर्म बुराइयॉं पैदा हो गर्इ थीं और इन्हीं के विरोध में अधिकार तंत्रीय संगठन संCreation का सुझाव वेबर ने रखा था। उनका विश्वास था कि अधिकार तंत्रीय ढांचा Humanीय तथा यांत्रिक शक्तियों के उचित समन्वय का अचूक शस्त्र बनेगा जिससे संगठनात्मक क्रियाओं का और अधिक कुशलता से सम्पन्न Reseller जा सकेगा। आपके द्वारा अधिकार तंत्र या दफ्तरशाही संगठन के सुव्यवस्थित Reseller के लिए अग्रलिखित सूत्र दिये गये।

  1. कार्यों का सुव्यवस्थित विभाजन, 
  2. कार्य में अनिश्चितता को दूर करने तथा उनके पूर्वानुमान करने के लिए सुनिश्चत नियमों का निर्धारण
  3. अधिकार And दायित्वों के सम्बंधों की स्थापना हेतु अधिकारों की Single सुपरिभाषित क्रमिक श्रृंखला, 
  4. अधीनस्थों से व्यवहार करते समय अधिकारियों को निरपेक्ष रहना, 
  5. लिखित नियम And निर्णय तथा संदर्भों के लिए Single विस्तृत फाइलिंग व्यवस्था, 
  6. पदाधिकारियों के लिए निर्धारित योग्यताएं, 
  7. रोजगार के चयन या पदोन्नति केवल गुण या तकनीकी क्षमता के आधार पर तथा 
  8. जीवनपर्यन्त के लिए रोजगार तथा मनमाने ढंग से सेवामुक्ति से Safty। 

दफ्तरशाही के गुण 

  1. सुनिश्चितता 
  2. तीव्रता, 
  3. स्पष्टता, 
  4. फाइलों का ज्ञान, 
  5. निरन्तरता, 
  6. विवेकपूर्णता, 
  7. Singleता, 
  8. कड़ी अधीनस्थता, 
  9. टकराव की कमी तथा 
  10. सामग्री And श्रम लागतों की कमी। 

आलोचना – यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि अधिकार तंत्र को वर्तमान में अकुशलता, अलोचपूर्णता, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही आदि नकारात्मक विचारों के साथ जोड़ा जाता है। आलोचकों के According यह इसे यूरोपीय विपत्ति, भीमकाय जानवर तथा अदृश्य पिशाच जैसी संज्ञान प्रदान की है। संक्षेप में अधिकार तंत्रीय संगठनों के दोष होते हैं –

  1. नियमों की आलोचपूर्णता 
  2. अधीनस्थों से अव्यक्तिगत संबंध, 
  3. पहल और निर्णय में स्वतंत्रता का अभाव तथा नियमों का आधिपत्य,
  4. विलम्ब तथा लाला फीताशाही, 
  5. बर्बादीपूर्ण प्रबंध, 
  6. भ्रष्टाचार तथा,
  7. पक्षपात । 

इन बुराइयों के उपरान्त भी संगठन का मूल ढॉंचा अधिकार तंत्र पर ही आधारित होता है Meansात प्रबंध के ऐसे कोर्इ सिद्धान्त या नियम नहीं बने थे, जिनको प्रबंधक पढ़ सके और उनका अपने वास्तविक जीवन में प्रयोग कर सकें। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में प्रबन्ध के इस परम्परागत दृष्टिकोण में अन्तर आया, वैज्ञानिक प्रबन्ध के लिए प्रयास हुए और अन्त में ‘‘वैज्ञानिक प्रबन्ध’’ की संज्ञा उन प्रयासों को दी गर्इ। 

वैज्ञानिक प्रबन्ध 

उन्नीसवीं सदी के समापन तक प्रबंध का उपयोग पुराने ढर्रे पर चलता रहा और इसको व्यक्ति का विशेष गुण कह कर ही सम्बोधित Reseller जाता रहा। यह तरीका पूर्णResellerेण अवैज्ञानिक तथा सहजबुद्धि की उपज थी तथा इसमें भूल सुधार के माध्यम से प्रबन्ध सम्पन्न होता था। लोगों का अपने तरीके से, तथा अपनी बुद्धिमता से ही सुलझा सकता है। उसकी प्रबंध क्षमता में कोर्इ भी सुधार सैद्धान्तिक ज्ञान के अभाव में नहीं Reseller जा सकता था। Second कोर्इ से कोर्इ सिद्धान्त या नियम नहीं बने थे, जिनको प्रबन्धक पद दे सकते और प्रयोग कर सकते। इस सदी के अंत में प्रबन्ध के इस पुराने दृष्टिकोण में परिवर्तन आना प्रारम्भ हुआ, वैज्ञानिक प्रबन्ध के लिए प्रबंधकीय चिन्तकों ने सकारात्मक सुझाव प्रस्तुत किये जिनमें चाल्र्स वैवेज और टेलर का योगदान प्रमुख रहा। आइये चाल्र्स वैवेज के योगदान को समझने का प्रयास करें :- 

चाल्र्स बैवेज का योगदान 

वैज्ञानिक प्रबंध का शुभारम्भ वास्वत में चाल्र्स बैवेज ने 1832 में (Economy of Machines and Manufacturers) नामक Single निबन्ध से Reseller था। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर सर चाल्र्स बैवेज ने इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के कर्इ कारखानों का दौरा करने के बाद से इस निष्कर्ष पर पहुॅंचे कि लगभग All कारखानों में पुरानी रूढ़िवादी और व्यक्ति पर विधियों से कार्य होता है तथा समस्त कार्य अवैज्ञानिक ढंग से Reseller जाता है। अधिकांश कार्यों का आधार केवल अनुमान ही होता है। उन्होंने यह अनुभव Reseller कि इन कारखानों को चलाने में विज्ञान And गणित की विधियों का उपयोग सम्भव है। उन्होंने हिसाब लगाने की मशीन (Difference Engine) का भी आविष्कार Reseller तथा अपने उपर्युक्त निबन्ध द्वारा प्रबन्धकों और मालिकों से अनुरोध Reseller कि गणितीय सिद्धान्तों द्वारा प्रत्येक प्रक्रिया का विश्लेषण करके वांछनीय प्रक्रिया मालूम की जानी चाहिए तथा केवल उसी प्रक्रिया का प्रयोग Reseller जाना चाहिए। प्रत्येक प्रक्रिया की लागत निकाल कर प्रत्येक श्रमिक को उसकी कार्य कुशलता के आधार पर बोनस देने की व्यवस्था भी होनी चाहिए। 

इसलिए उनका सुझाव था कि परम्परागत, व्यक्तिपरक और अनुमान के आधार पर हो रहे प्रबन्ध के स्थान पर वैज्ञानिक ढंग से प्रबन्ध Reseller जाना चाहिए। वैज्ञानिक ढंग से प्रबन्ध के लिए विस्तृत निरीक्षण, आंकड़ों का वस्तुपरक वर्गीकरण और विश्लेषण, सही माप, तथा कारण और प्रभावों का सही सम्बन्ध निश्चित करना आदि कुछ महत्वपूर्ण तत्व भी उन्होंने बताये। वैज्ञानिक प्रबंध की दिशा में उठाया गया यह पहला कदम था। लेकिन व्यावसायिक प्रबन्ध के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रतिपादन मुख्य Reseller से फेडरिक डब्ल्यू. टेलर ने ही Reseller था। 

फ्रेडरिक विन्सले टेलर 

20वीं शताबदी के आरम्भ में वैज्ञानिक प्रबंध की विचारधारा को यू.एस.ए. में एफडब्ल्य ू. टेलर ने प्रतिपादित Reseller था। उस समय प्रबन्ध पहल तथा प्रेरणा तत्वों के बल पर Reseller जाता था। टेलर ने अपना जीवन मेडिविल स्टील कारखानें में कार्य करने वाले मशीन पर काम करने वाले कारीगर के Reseller में शुरू Reseller था। धीरे धीरे उन्होंने अपनी योग्यता में वृद्धि की और फोरमैन तथा बाद में उसी कारखाने में मुख्य अभियन्ता का पद पाया। उसके पश्चात उन्होंने Single दूसरी स्टील कम्पनी के परामर्शदाता के Reseller में कार्य Reseller। यह कंपनी उत्पादन की गंभीर समस्याओं से ग्रसित थी। बहुत से प्रेक्षणों तथा शॉप फ्लोर पर कार्य करने से संबंधित प्रयोगों और श्रमिकों के प्रति अधिकारियों के व्यवहार के अध्ययन के आधार पर टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध के सिद्धान्तों का प्रतिपादन Reseller। टेलर द्वारा प्रतिपादित वैज्ञानिक प्रबंध का सिद्धान्त वास्तव में प्रबंध का वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखता है। इसका प्रमुख उद्देश्य भूल तथा सुधार और अंगूठे के जोर पर प्रबंध की परम्परा को बदलता था। नर्इ विचारधारा का आधार  सिद्धान्त थे- 

  1. कार्य का मापदण्ड निर्धारित करने, उचित मजदूरी की दर को निश्चित करने तथा कार्य को श्रेष्ठतम विधि से करने के लिए वैज्ञानिक विधियों का विकास तथा प्रयोग करना। 
  2. अधिकतम कुशलता प्राप्त करने के लिए श्रमिकों का वैज्ञानिक विधि से चयन तथा उनको कार्य पर लगाना तथा उनके प्रशिक्षण And विकास की व्यवस्था करना। 
  3. अधिकारियों तथा श्रमिकों के बीच स्पष्ट आधार पर कार्य विभाजन तथा उत्तरदायित्व को निर्धारित करना।
  4. नियोजन कार्यों तथा उपकार्यों के According कार्य निष्पादित कराने के हेतु श्रमिकों के बीच सहयोग तथा मधुर संबंधों की स्थापना करना। 

वैज्ञानिक प्रबंध को सफलीभूत करने के लिए बहुत सी तकनीकों का विकास Reseller गया। इन All को मिलाजुलाकर नर्इ विचारधारा के तंत्र के लिए निम्नलिखित तकनीकों को अपनाया गया –

  1. किसी कार्य की विभिन्न प्रक्रियाओं को पूरा करने में लगने वाले समय का मापन तथा विश्लेषण का अध्ययन, प्रक्रियाओं का प्रमापीकरण और उचित मजदूरी का निर्धारण करना। 
  2. किसी कार्य को निष्पादित करने में की जाने वाली गति का अध्ययन जिससे कार्य की जाने वाली गति को रोका जा सके तथा कार्य निष्पादित करने का Single सर्वश्रेष्ठ तरीका निर्धारित Reseller जा सके।
  3. उपकरण यंत्रों व मशीनों का प्रमापीकरण तथा कार्य करने की दशाओं में सुधार।
  4. कुशल व अकुशल श्रमिकों की मजदूरी की भिन्न दरें तथा प्रेरणात्मक मजदूरी दर को अपनाना।
  5. कार्यात्मक फोरमैनी को अपनाना जिसमें मशीन की गति, सामूहिक कार्य, रिपेयर्स, कराने आदि के लिए पृथक पृथक फोरमैनों की Appointment की जानी चाहिए। 

टेलर ने वैज्ञानिक प्रबंध के अपने विचारों को व्यवस्थित Reseller से व्यक्त Reseller है। प्रबंध व्यवहार के क्षेत्र में उनका प्रमुख योगदान पहलुओं से संबंध रखता है:- 

  1. प्रबन्ध की समस्याओं को हल करने के लिए पूछताछ, अवलोकन और प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिक विधियों को अपनाना। 
  2. नियोजन कार्य को उसकी निष्पत्ति से पृथक रखना जिससे श्रमिक अपनी सर्वश्रेष्ठता का प्रदर्शन कर अपनी जीविका अर्जित कर सके। 
  3. प्रबंध का उद्देश्य उद्योगपति की अधिकतम खुशहाली के साथ श्रमिकों की अधिकतम भलार्इ होनी चाहिए। वैज्ञानिक प्रबंध के लाभ को प्राप्त करने हेतु श्रमिकों और प्रबंधकों में संपूर्ण मानसिक क्रान्ति की Need है। साथ ही ये लाभ आपसी सम्बंधों में मधुरता तथा सहयोग से प्राप्त होना चाहिए व्यक्तिवाद तथा मनमुटाव से नहीं। 

गुण – 

वैज्ञानिक प्रबंध का प्रमुख लाभ शक्ति के प्रत्येक औंस का संरक्षण तथा उचित प्रयोग करना है। फिर, विशिष्टकरण और श्रम विभाजन ने Single दूसरी औद्योगिक क्रान्ति उत्पन्न कर दी है। कार्यों को अधिक कुशल And विवेकपूर्ण रीति से निष्पादित करने के लिए समय तथा गति की तकनीकें महत्वपूर्ण उपकरण हैं। संक्षेप में वैज्ञानिक प्रबंध उपक्रम की समस्याओं का हल निकालने के लिए केवल Single विवेकपूर्ण विधि ही नहीं है वरन् यह प्रबंधन के व्यावहारिक पक्ष को भी सुविधाजनक बनाता है। 

यद्यपि टेलर द्वारा ही वैज्ञानिक प्रबंध के प्रमुख सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller गया था, तथापि उनके कर्इ अनुयायियों ने जैसे गैंट, फ्रैंक और विलियम, गिलब्रेथ तथा इमरसन ने इन विचारों का विस्तार Reseller, नर्इ तकनीक विकसित की तथा प्रबंध की इस नवीन विचार धारा में सुधार Reseller। व्यवहारिक Reseller में वैज्ञानिक प्रबंध उत्पादकता में वृद्धि लाने तथा कार्य प्रक्रियाओं की क्षमता बढ़ाने के लिए यू.एस.ए. तथा पश्चिमी योरोप में दूर दूर तक अपनाया गया।

सीमाएॅं 

वैज्ञानिक प्रबंध की अपनी सीमाएं भी हैं तथा कर्इ आधारों पर इसकी आलोचना भी की गर्इ है। कुछ आलोचकों का कहना है कि वैज्ञानिक प्रबंध तकनीकी Means में ही श्रमिकों की कार्यकुशलता से संबंधित है तथा यह उत्पादन के महत्व पर ही बल देता है। श्रमिक आरम्भ से कामचोर होते हैं। प्रबंधकों की उन पर कड़ी निगरानी की Need है तथा प्रबंधकों को अपना अधिकार इस संबंध में प्रयोग करना चाहिए। इन मान्यताओं पर यह सिद्धान्त आधारित है। यह भी कहा जाता है कि श्रमिकों को केवल मुद्रा से ही अभिप्रेरित Reseller जा सकता है।कार्य के वातावरण के सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर कोर्इ विचार नहीं Reseller जाता। अन्य आलोचकों ने इसे अवैज्ञानिक, असमाजिक, मनोवैज्ञानिक Reseller से अनुचित तथा प्रजातंत्रीय विरोधी बताया है। यह अवैज्ञानिक हैं, क्योंकि श्रमिकों की क्षमता तथा मजदूरी मापन की कोर्इ उचित तथा विश्वसनीय विधि नहीं है। यह असमाजिक है क्योंकि श्रिमेकों को आर्थिक उपकरणों के Reseller में व्यवहार Reseller जाता है यह मनोवैज्ञानिक Reseller में अनुचित है क्योंकि Single श्रमिक को Second के साथ अधिक उत्पादन करने तथा अधिक कमाने के लिए, अस्वस्थ प्रतियोगिता करनी पड़ती है। यह प्रजातंत्रीय विरोधी है क्योंकि यह श्रमिकों की स्वाधीनता को कम करती है। श्रमिक संघ इसका विरोध करते, क्योंकि यह प्रबंध को तानाशाही बनाती है कर्मचारियों के कार्य का भार बढ़ाती है तथा उनके रोजगार के अवसरों पर विपरीत प्रभाव डालती है।

रूढ़िवादी सम्प्रदाय के प्रमुख विचार को मेंसर हेनरी फेयोल का नाम भी प्रमुखता से लिया जाता है। प्रबन्धक के क्षेत्र में आप द्वारा किये गये योगदान को प्रबन्ध के प्रKingीय सिद्धान्तों के नाम से जाना जाता है। जब श्री फेयोल फ्रांस की Single कोयले की कम्पनी में बतौर निदेशक कार्यरत थे तभी उन्होंने प्रबन्धन प्रक्रिया का सुव्यवस्थित विश्लेषण प्रस्तुत Reseller था। आपके According किसी भी संगठन में समस्त व्यापारिक प्रक्रियाओं को छ: भागों में वर्गीकृत Reseller जा सकता है तथा ये परस्पर Single Second पर निर्भर रहती है ये है, तकनीकी, व्यापारिक, वित्तीय Safty, लेखाकार्य तथा प्रशासनिक कार्य।

आपके According प्रबंधन प्रक्रिया सार्वभौमिक है तथा इस प्रक्रिया में निम्नलिखित पॉंच विशेषताएं होती हैं, यथा – पूर्वनुमान, नियोजन, व्यवस्थापन, आदेश, समन्वय तथा नियंत्रण। इसके साथ साथ अपने 14 सिद्धान्तों का Single सैट भी प्रतिपादित Reseller। ये सिद्धान्त प्रबंधन प्रक्रिया का प्रयोग करने में पथ प्रदर्शक बनते हैं ।आप इन सिद्धान्तों का इकार्इ संख्या 3 में विस्तृत Reseller में अध्ययन करेंगे।

प्रभावी प्रबंधन के लिए आवश्यक गुण तथा योग्यताएं उपक्रम के विभिन्न स्तरों के प्रबंधकीय पदों पर निर्भर करती है। फेयॉल के According प्रशासनिक गुण प्रबंधकों के उच्चस्तरीय स्तर पर अनिवार्य है जबकि तकनीकी गुण नीचे के स्तर का कार्य करने वाले पदों के प्रबंधकों के लिए आवश्यक है। उनका यह भी विश्वास था कि जीवन के प्रत्येक मोड़ पर व्यक्तियों के लिए प्रबंधकीय प्रशिक्षण अनिवार्य है। उन्होंने ही पहली बार प्रबंध क्षेत्र में औपचारिक शिक्षा तथा प्रशिक्षण की Need पर बल दिया। संक्षेप में फेयॉल का विश्लेषण साधनों का Single सैट (Meansात नियोजन, व्यवस्था, आदेश, समन्वय तथा नियंत्रण) प्रबंधक प्रक्रिया को चलाने तथा मार्गदर्शन के लिए (जैसे प्रक्रिया को व्यावहारिक Reseller देने के लिए सिद्धान्त) प्रदान करता है।

प्रबंध का प्रशासनिक सिद्धान्त And प्रबंध की कार्यात्मक विचारधारा फेयॉल द्वारा रखी गर्इ नींव पर ही विकसित हुए हैं। उन्होंने प्रंबंध प्रक्रिया का विश्लेषण करने के लिए Single अवधारणात्मक ढांचा बनाकर दिया। साथ ही, उन्होंने प्रबंध को Single पृथक स्वतंत्र इकार्इ का सम्मान देकर उसका विश्लेषण Reseller। ज्ञान के समूह के Reseller में प्रबंध को अत्यधिक लाभ फैयॉल द्वारा प्रबंधकीय गुणों का विश्लेषण कर उन्हें सार्वभौमिकता प्रदान करने तथा उसके सामान्य प्रबंध के सिद्धान्तों से ही मिला। यद्यपि कुछ आलोचकों ने इसे असंगत अथवा पारस्परिक विरोधी, अस्पष्ट तथा प्रबंधकों का पक्ष लेने वाला सिद्धान्त बताया है, फिर भी यह सिद्धान्त सम्पूर्ण विश्व में प्रबंध शास्त्र की शिक्षा तथा व्यवहार में अपना महत्वपूर्ण प्रभाव रखता है।

रूढ़िव़वादी विचारधाराओं की आलोचनाएं 

इसमें संदेह नहीं कि रूढ़िवादी विचारधारा ने प्रबन्धशास्त्र के विकास से सराहनीय योगदान Reseller है, फिर भी इनकी आलोचनाएं निम्न आधार पर की जा सकती हैं :-

  1. रूढ़िवादी प्रबन्ध सिद्धान्त And अवधारणाएं व्यक्तिगत अनुभव तथा सीमित अवलोकन पर आधारित है। इनमें प्रयोग साक्ष्यों का अभाव है। इनका सत्यापन, नियंत्रित कथन कहना ही अधिक उचित है। वैज्ञानिक कहना नहीं। 
  2. बहुत से रूढ़िवादी सिद्धान्तों को या तो स्पष्ट Reseller से परिभाषित ही नही Reseller जा सकता है। Second Word में अल्पज्ञता, अति साधारणीयता और अवास्तविकता के शिकार हैं।’’ अत: यह भी प्रहार Reseller कि इन्हें कहावत से अधिक नहीं समझना भूल होगी उनकी तुलना लोकोक्ति या लोक साहित्य से की जा सकती है।
  3. रूढ़िवादी प्रबन्धशास्त्रियों ने बन्द प्रणाली मान्यताओं के आधार पर सिद्धान्तों को प्रस्तुत Reseller और संगठन पर पर्यावरणीय घटकों के प्रभावों पर विचार नहीं Reseller। जबकि हर संगठन आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक वातावरण से प्रभावित होता है। प्रक्रिया प्रभाव पड़ता है।
  4. रूढ़िवादी प्रबन्धशास्त्रियों ने यह माना कि संगठन गतिहीन और अपरिवर्तनीय होते हैं जब कि वास्तव में वे गतिशील And परिवर्तनशील होते हैं तथा निरन्तर समायोजन की Need महसूस होती है। अत: इनका केवल ऐतिहासिक महत्व रह जाता है।
  5. रूढ़िवादी प्रबन्धशास्त्रियों ने श्रमिकों को केवल जीवित संयत्र ही समझा जिन्हें प्रेरणाओं के माध्यम से संचालित Reseller जा सकता है। लेकिन Humanीय व्यवहार बड़ा ही विषम है, यह आर्थिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक तथा अन्य कारकों में प्रभावित होता है। श्रमिक प्राय: अपने किसी वर्ग के सदस्य के Reseller में व्यवहार करते हैं। उनकी क्षमता और विवेक उनकी शारीरिक क्षमता से निर्धारित नहीं होते बल्कि उनके सामाजिक मूल्यों से होते हैं इसीलिए गैर आर्थिक कारक और उनके व्यवहार के निर्धारण में महत्वपूर्ण होते है। 
  6. प्रशासनिक विचारधारा के प्रबन्धशास्त्रियों का यह मत है कि प्रबन्ध के कार्य, सिद्धान्त And अवधारणाएं All संगठनों पर लागू होती है तर्कसंगत प्राप्ति नही होता। 

प्रबंध का नवरूढ़ि वादी  सम्प्रदाय 

रूढ़िवादी सम्प्रदाय की ही उपज है नवरूढ़ि वादी सम्प्रदाय। इस सम्प्रदाय में अग्रलिखित प्रबन्ध विद्वानों को शामिल Reseller जाता है :- एल्टन, मेयो, मेरी पार्कर फोलेट, सी.आर्इ. वर्नाड, तुगलस एम.सी. ग्रेगर तथा आर.लाइकर्ट। मूलत: ये All समाजशास्त्री थे तथा इन्होंने वैज्ञानिक प्रबन्ध And प्रशासनिक प्रबंध के सिद्धान्तों की व्याख्या समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से की और पाया कि इन सिद्धान्तों के परिणाम अच्छे नहीं हैं क्योंकि इनमें कार्य की वास्तविक दशाओं की अवहेलना ओर Humanीय तथा सामाजिक कारकों के प्रभाव And महत्व की घोर उपेक्षा की गर्इ है। नव रूढ़िवादी सम्प्रदाय के विचारकों को हम दो भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं। (क) Humanीय सम्बन्धों के विचारक (ख) व्यवहारिक विज्ञान के विचारक आइये इन्हें क्रमश: समझने का प्रयास करें।

Humanीय सम्बन्धी के विचारक 

प्रबन्ध में Humanीय दृष्टिकोण का प्रतिपादन एल्टन मेयो तथा उनके सहयोगी जान ड्यवे, डब्ल्यू. एफ. ह्वाइटे तथा कुर्ट लेविन ने Reseller। एल्टन मेयो हावर्ड विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र प्राचार्य थे और उन्होंने वेस्टर्न एलेक्ट्रिक कम्पनी के होथेर्ने कारखाने में विभिन्न प्रयोगों द्वारा अपने इन विचारों का प्रतिपादन टेलर तथा अन्य रूढ़िवादी प्रबन्ध शास्त्रियों ने व्यवस्था, विवेकपूर्णता, कार्य विभाजन, विशिष्टीकरण और अधिकार सम्बन्धों पर आधारित औपचारिक संगठन ढांचे पर विशेष जोर दिया था तथा श्रमिकों को केवल Single आर्थिक साधन माना था। Humanीय सम्बन्ध दृष्टिकोण के प्रबन्ध शास्त्रियों ने इस समReseller आर्थिक दर्शन को चुनौती दी। उन्होंने निश्चित नियमों, व्यवस्था, विवेकपूवर्णता और अधिकार तंत्र पर आधारित औपचारिक संगठन ढांचे पर कड़ा प्रहार Reseller। और अनौपचारिक प्रजातांत्रिक तथा सहभागी संगठन ढांचे का समर्थन Reseller जिसमें श्रमिकों के मनोबल, सृजनात्मकता तथा संतोष वृद्धि पर विशेष ध्यान दिया गया।

यह विचार धारणा पर आधारित थी कि आधुनिक व्यवस्था Single सामाजिक तंत्र है जिसमें सामाजिक वातावरण और पारस्परिक संबंध कर्मचारियों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं। यह इस बात पर बल देता है कि अधिकारियों तथा अधीनस्थों के अधिकार दायित्व संबंध कर्मचारियों की सामाजिक And मनोवैज्ञानिक संतुष्टि से संबंष्टिात होना चाहिए। कर्मचारियों को प्रसन्न रखकर ही Single उपक्रम उनका पूर्ण सहयोग प्राप्त कर सकता है तथा इस प्रकार उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि लाता है। प्रबन्ध को कार्यरत सामाजिक समूहों के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए तथा कर्मचारियों के विचारों को मुक्त Reseller से व्यक्त करने का अवसर प्रदान करना चाहिए। प्रबन्धकों को प्रजातांत्रिक नेतृत्व के महत्व को स्वीकार कर लेना चाहिए जिससे सम्प्रेषण मुक्त Reseller से प्रवाहित हो सकेगा और अधीनस्थ निर्णयन में भाग ले सकेंगे।

ऐलटन मायो तथा उनके साथियों द्वारा किए गये बहुत से प्रयोगात्मक अध् ययनों के परिणाम स्वReseller प्रबंध में Human संबंध विचारधारा का विकास हुआ। ये अध्ययन यू.एस.ए. में होथोर्न स्थित वेस्टर्न इलेक्ट्रिक प्लांट में किये गये थे। होथोर्न अध्ययन का उद्देश्य श्रमिकों की उत्पादकता तथा कार्य निश्पत्ति को प्रभावित करने वाले कारकों को ढूॅंढ निकालना था। ये निष्कर्ष इस प्रकार थे।

  1. कार्यस्थल का नैसर्गिक वातावरण कार्यक्षमता पर कोर्इ विशेष प्रभाव नहीं डालता। 
  2. श्रमिकों तथा उनकी कार्य टोली का कार्य के प्रति अनुकूल व्यवहार कार्यक्षमता को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारक है। 
  3. श्रमिकों की सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक Needओं की पूर्ति करने से श्रमिकों के मनोबल तथा कार्यक्षमता पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। 
  4. श्रमिकों गु्रप जो सामाजिक पारस्परिक प्रभाव तथा सामान्य हित पर आधारित होते हैं, श्रमिकों के कार्य निष्पादन पर गहरा प्रभाव डालते हैं। 
  5. केवल आर्थिक पारितोषण श्रमिकों को प्रभावित नहीं कर पाता। कार्य Safty, अधिकारियों द्वारा प्रशंसा, सम्बन्धित विषयों पर विचार व्यक्त करना आदि कारक अभिप्रेरित करने के अधिक महत्वपूर्ण कारक है। 

यह ध्यान रखना चाहिए कि Human संबंधों की विचारधारा का उद्देश्य कर्मचारियों की उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना था। कर्मचारियों की संतुष्टि ही उच्च उत्पादकता तथा कार्यक्षमता के उद्देश्य को प्राप्त करने का सर्वश्रेष्ठ साधन है। इसके लिए यह आवश्यक है कि प्रबंधक यह जान लें कि कर्मचारी वह काम क्यों है जो वे करना चाहते हैं तथा कौन से सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक कारक उन्हें अभिप्रेरित करते हैं। अत: संतुष्टि प्रदान करने वाले कार्य वातावरण को उत्पन्न करने के लिए प्रयास करना चाहिए जिससे वे लोग अपनी Needओं को पूरा कर सकें तथा संगठन के उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हों। 

Humanीय सम्बन्ध दृष्टिकोण का मूल्यांकन 

इस विचारधारा का सबसे प्रमुख योगदान यही था कि इसने संगठन को Single सामाजिक व्यवस्था तथा श्रमिकों को उसका सबसे महत्वपूर्ण अंग बताकर प्रबन्धकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन का प्रयास Reseller गया। संगठन की उत्पादकता कर्मचारियों को अधिक संतुष्ट करके ही सम्भव है। कर्मचारियों को अधिक संतुष्ट And उत्पादकता तभी बनाया जा सकता है जब उनकी आर्थिक, सामाजिक, तथा मनोवैज्ञानिक Needएं पूरी की जायं। Second, इस विचारधारा ने अनौपचारिक सम्बन्धों तथा अनौपचारिक व्यक्ति समूहों का संगठन में महत्व बताकर संगठन में उत्पादकता And संतोष दोनों के परस्पर सम्बन्धों की स्थापना की। इस प्रकार, व्यक्ति उन्मुख प्रबंध की विचारधारा का सूत्रपात हुआ। दूसरी ओर इस विचारधारा की कड़ी आलोचना भी की गर्इ जिन्हें निम्न प्रकार से क्रमबद्ध Reseller जा सकता है।

  1. Humanीय सम्बन्ध विचारधारा के अधिकांश निष्कर्षों का कोर्इ वैज्ञानिक आधार नहीं है। वे संकीर्णता के शिकार हैं क्योंकि वे व्यापक और नियंत्रित प्रयोगों के ऊपर आधारित नहीं हैं। 
  2. Humanीय सम्बन्धों की विचारधारा के निष्कर्षों का सोचने का आधार बहुत संकीर्ण है क्योंकि वे केवल Humanीय सम्बन्ध और अनौपचारिक व्यक्ति समूह पर ही बल देते हैं और संगठन के ढांचे And तकनीकी पक्ष को भूल जाते हैं। उन्होंने कार्य संतोष के आर्थिक घटकों की भी उपेक्षा की है। उन्होंने केवल निम्न स्तर पर कार्यरत श्रमिकों के व्यवहार पर ही अपना ध्यान केन्द्रित रखा है और उच्च प्रबन्धक के व्यवहार के सम्बन्धों में कोर्इ मार्गदर्शन नहीं दिया है। 
  3. प्रयोगों में ऐसा कोर्इ प्रमाण कर्मचारियों की उत्पादकता, कार्य संतोष और प्रसन्नता में सम्बन्ध को प्रस्तुत नहीं करता है जिससे उनके दृष्टिकोण में विश्वास Reseller जा सके।
  4. समूह निर्णय कुछ निश्चित परिस्थितियों में अच्छे हो सकते हैं किन्तु यह झगड़ों, उत्तरदायित्व के हस्तान्तरण, प्रबन्धक के पद की अवहेलना तथा अनिर्णयन जैसी जोखिमों से भरा हुआ है और नकारात्मक है।
  5. Humanीय सम्बन्ध से जुड़े प्रबन्धशास्त्री संगठन विरोध को सदैव Single सामाजिक हानि की दृष्टि से तथा सहयोग को सामाजिक गुणता की दृष्टि से देखते हैं, फलस्वReseller वें संगठन में समूह की Singleता पर जोर देते हैं और विरोध को कम करने की बात करते हैं लेकिन संगठन का स्वस्थ रहना विरोध से सर्वथा मुक्ति में नहीं बल्कि विरोधों के सामन्जस्य और उनकी Creationत्मक शक्ति के Reseller में उपयोग में निहित हैं। 
  6. यह सिद्धान्त व्यक्ति विरोधी है। यह दृष्टिकोण प्रबन्धक के अधिकार के महत्व को कम करता है उसे पहल करने से रोकता है और उसका मनोबल गिराता है। अन्य सदस्य भी व्यक्तिगत पहल और रूचि में कमी कर देते हैं और अपने व्यक्तित्व को समूह में खो बैठते हैं। 

व्यावहारिक विज्ञान के विचारक 

व्यावहारिक विज्ञान की विचारधारा का उदगम Human सम्बन्धी विचारधारा से ही हुआ है। यह विचारधारों संगठन में Human व्यवहार के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को स्पष्ट करती है। आइये अब व्यवहारिक विज्ञान के अग्रलिखित लक्षणों को समझने का प्रयास करें – 

  1. यह अन्तरविषयी विज्ञान है जिसमें विभिन्न सामाजिक विज्ञानों के ज्ञान का समन्वय होता है। 
  2. यह प्रयोगात्मक विज्ञान है जिसमें शोध द्वारा संगठन की विभिन्न समस्याओं का निदान होता है।
  3. यह आदर्श विज्ञान है जो केवल कारक परिणाम सम्बन्ध को प्रदर्शित करता है मार्ग दर्शन करता है कि सफलता के क्या उपाय कर सकता है।
  4. यह व्यक्ति प्रधान है अत: व्यक्तियों के विचारों, भावनाओं, Needओं और प्रेरणाओं पर विशेष बल देता है और Humanीय मूल्यों को स्वीकार करता है।
  5. यह लक्ष्य प्रधान विज्ञान भी है। यह संगठन के विरोधों को Humanता प्रदान करता है तथा व्यक्तियों And संगठनों दोनों की संतुष्टि के लिए अन्र्तविरोधी लक्ष्यों में सामन्जस्य स्थान के लिए सुझााव देता है। 
  6. यह प्रणाली अवधारणा प्रधान है तथा यह All कारकों का विश्लेषण करती है जिनका प्रभाव संगठन की कार्यकुशलता पर पड़ता है। 

Human सम्बन्धी विचारधारा जहॉं प्रसन्न श्रमिक को अधिक उत्पादक माना जाता है वहीं यह विचारधारा लक्ष्य And कुशलता की प्राप्ति का Single प्रमुख माध्यम मात्र ही है। व्यावहारिक विज्ञान को हम तीन बिन्दुओं के माध्यम से और गहनता से समझ सकते हैं।

(क) व्यक्ति का व्यवहार उसके समूह के व्यवहार से प्रभावित होता है। हर व्यक्ति व्यक्तिगत Reseller से अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने वाले दबावों का विरोध कर सकता है किन्तु जब उसका समूह इस परिवर्तन को स्वीकार करता है तो वह इस परिवर्तन के लिए सहर्ष तैयार हो जाता है। समूह द्वारा कार्य का मानदंड निर्धारित करने पर उस समूह से संबंधित व्यक्ति अधिक कड़ार्इ के साथ परिवर्तन का विरोध करेंगें। फिर, जो कुछ भी श्रमिक मालिकों की उत्पादन संबंधी अपेक्षा को जिस Reseller में समझ पाते हैं वही उत्पादन स्तर को निर्धारित करती है अथवा उसको प्रभावित करती है इसका कारण यह है कि प्रबंध किसी विशेष उत्पादन स्तर का निर्धारण नहीं कर पाता बल्कि यह उचित स्तर का सुझाव देता है। और श्रमिक प्राय: यह विश्वास करते हैं कि यदि वे अधिक कार्य करेंगे तो उनकी मजदूरी की दर कम कर दी जायेगी। 

(ख) अनौपचारिक नेतृत्व के औपचारिक अधिकार की अपेक्षा सामूहिक निष्पादन के मानदंण्ड को निर्धारित करने में अधिक महत्व रखता है। नेता के Reseller में प्रबंधक अधिक प्रभावी रहेगा और अधीनस्थों को स्वीकार्य होगा यदि वह प्रजातांत्रिक नेतृत्व स्वReseller को अपनाता है । यदि लक्ष्य निर्धारण में अधीनस्थों को प्रोत्साहित Reseller जाता है तो उसके प्रति उनकी भूमिका अधिक उपयोगी रहेगी। तकनीक और कार्य विधि में परिवर्तन को श्रमिकों द्वारा प्राय: विरोध Reseller जाता है। परन्तु श्रमिकों को योजना और कार्य डिजाइन में सहभागी बनाकर इस परिवर्तन को आसानी से Reseller जा सकता है। 

(ग) अधिकांश व्यक्ति स्वभाव से ही कार्य करने में आनंद की अनुभूति करते हैं तथा स्व नियंत्रण और स्वयं के विकास से अभिप्रेरित होते हैं। प्रबन्धकों को उन परिस्थितियों को पहचानना चाहिए और उपक्रम के कार्यों में Human शक्ति के प्रयोग हेतु आवश्यक वातावरण प्रदान करना चाहिए। प्रबंधकों का अधीनस्थों के प्रति व्यवहार सदैव धनात्मक होना चाहिए। उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि ओसतन व्यक्ति आलसी नहीं होता वरन् प्रकृति के According आगे बढ़ने की इच्छा रखता है। वह महत्वाकांक्षी होता है। प्रत्येक व्यक्ति कार्य करना तथा उत्तरदायित्व स्वीकार करना पसंद करता है। प्रबन्ध की नर्इ रूढ़िवादी विचारधारा ने प्रबन्ध की रूढ़िवादी विचारधारा के सिद्धान्तों पर प्रतिस्थापन के लिए कोर्इ नया सिद्धानत नहीं दिया है। यह मूलReseller से संगठनात्मक परिवर्तन के स्थान पर कुछ समयोजनों से ही सम्बन्धित है। टिप्पणी कीजिए। 

प्रबंध का आधुनिक सम्प्रदाय 

प्रबन्ध विज्ञान में तीव्र गतिशीलता का समय द्वितीय विश्व Fight के बाद से प्रारम्भ माना जाता है। यह वही समय था जब रूढ़िवादी और नव रूढ़िविचारकों की विचारधाराओं का विश्लेषण And Singleीकरण की कोशिश की गर्इ। प्रबन्ध का यह आधुनिक सम्प्रदाय प्रणालीगत विचारधारा तथा प्रासंगिक विचारधारा को प्रस्तुत करता है। यह सम्प्रदाय रूढ़िवादी विचारधारा तथा स्थिर स्वReseller और अनौपचारिक तथा गतिशील स्वReseller पर आधारित थी। Single समन्वित Reseller है। इस सम्प्रदाय ने उन समस्याओं का हल प्रस्तुत Reseller जिसका हल रूढ़िवादी और नवरूढ़िवादी सम्प्रदायों द्वारा प्रस्तुत नहीं Reseller जा सका था। आइये अब क्रमावार आधुनिक सम्प्रदाय की विचारधाराओं को समझने का प्रयास करें – 

प्रणालीगत विचारधारा 

प्रणाली का तात्पर्य, ऐसी इकाइयों से है जो अन्र्तसम्बन्धित होती है तथा प्रत्येक Single Second को किसी न किसी Reseller में प्रभावित करती हैं जैसे -Human शरीर का निर्माण पंच तत्वों से होता है और उसके शरीर ने स्थित हृदय उस शरीर Resellerी प्रणाली की उप प्रणाली है । Single सामान्य प्रणाली की अग्रलिखित विशेषताएं हो सकती हैं – 

  1. प्रत्येक प्रणाली के अन्तर्गत अनेक उपप्रणालियॉं होती हैं ।
  2. प्रत्येक प्रणाली के ऊपर अन्य बड़ी प्रणालियां हो सकती हैं। 
  3. प्रत्येक उपप्रणाली अन्र्तसम्बन्धित होती है।
  4. प्रत्येक प्रणाली लक्ष्य से उन्मुख होती है तथा समस्त उपप्रणालियॉं उसे सुव्यवस्थित Reseller से पाने में सहयोग करती हैं।
  5. All प्रणालियों को दो भागों में वर्गीकृत Reseller जा सकता है। खुली प्रणाली व बन्द प्रणाली। 
  6. बन्द प्रणाली अपने वातावरण से कोर्इ सम्बन्ध नहीं रखती Meansात वह तो प्रभावित होती है और न ही प्रभावित करती है। इसके विपरीत खुली प्रणाली प्रभावित होती है और प्रभावित भी करती है।
  7. समस्त प्रणालियों में साधन व उत्पादन दोनों होते हैं। 
  8. खुली प्रणाली में प्रतिपुष्टि निरन्तर चलती रहती है। जिससे समय समय पर आवश्यक समायोजन And संशोधन चलता रहता है। 

उपरोक्त विवेचन के पश्चात हम कह सकते हैं कि इस विचारधारा की दृष्टि में प्रबंध भी Single प्रणाली है तथा इसकी प्रकृति खुली है। अत: प्रबन्ध को अपने संगठन की सफलता के लिए Single Singleीकृत प्रणाली समझना चाहिए। प्रबन्ध Resellerी प्रणाली के निरन्तर प्रवाह के लिए पांच प्रमुख कारक आवश्यक होते हैं, यथा संसाधन,Resellerान्तरण सम्प्रेषण व्यवस्था, उत्पादन तथा प्रतिपुष्टि। इस प्रकार प्रबन्ध Resellerी प्रणाली की विशेषताएं हो सकती हैं आइये इसे क्रमवार समझने का प्रयास करें।

  1. यह विचारधारा सम्पूर्ण संगठन को Single इकार्इ मानती है। 
  2. चूॅंकि प्रबन्ध की प्रकृति खुली है अत: इसमें परिस्थितिनुकूल परिवर्तन सम्भव है
  3. परिस्थितिनुकूल परिवर्तनों के कारण इसे Single गतिशील प्रक्रिया में इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
  4. प्रत्येक प्रबन्धक को संगठन को Single इकार्इ के Reseller में देखना चाहिए न कि उसका विभागीकरण कर अलग अलग इकाइयों में।
  5. प्रबन्धकों को सदैव बहु विषयक दृष्टि अपनानी चाहिए। क्योकि संगठन Single बहु आयामी बहुस्तरीय तथा अनेक तत्वों के सम्मिश्रण से निर्मित प्रणाली है। 
  6. इस विचारधारा के मतानुसार संगठन Single समन्वित व Singleीकृत इकार्इ होती है अत: All विभागों के समन्वित प्रयासों से ही सफलता मिलती है। 
  7. उत्पादकता में वृद्धि तभी सम्भव है जब संगठनात्मक All उपप्रणालियों समन्वित Reseller से सम्पूर्ण संगठन की सफलता के लिए मिलकर कार्य करें। 

प्रबन्ध की इन प्रक्रियात्मक विशेषताओं के पश्चात आइये इसके कुछ लाभों का भी समझने का प्रयास करें –

  1. यह संगठनात्मक प्रयासों को Singleीकृत करता है।
  2. यह प्रबंधकों को उपक्रम को समग्र Reseller में देखने का अवसर प्रदान करता है। समग्र Reseller में उपक्रम अपने विभिन्न भागों के योग से भी बड़ा होता है। 
  3. यह विचारधारा संगठन को Single खुला तंत्र मानकर चलती है।फिर उपतंत्रों के बीच पारस्परिक प्रभाव भी गतिशील होते हैं।
  4. आधुनिक विचारधारा बहुस्तरों तथा बहुआयाम पर आधारित है Meansात इसमें सूक्ष्म तथा दोनों ही पहलुओं पर विचार Reseller जाता है। यह देश के औद्योगिक कार्यों पर सूक्ष्म Reseller से विचार करती है तथा इनका आन्तरिक इकाइयों पर बहुत Reseller से विचार करती है।
  5. यह तंत्र पद्धति बहुचरों पर आधारित है क्योंकि Single घटना बहुत से कारकों का परिणाम हो सकती है जो Single Second से जुड़े हुए तथा परस्पर निर्भर रहते हों। 
  6. परिष्करण प्रक्रिया उपक्रम को अपने हिस्सों का पर्यावरण में परिवर्तन के According फिर से व्यवस्थित करने का अवसर प्रदान करती है। 

इस प्रणाली की आकर्षक अपील के कारण वर्तमान युग में इसकी विशेष मान्यता है। यह व्यवसायिक निर्णयन प्रक्रिया में क्रान्ति ला रही है। इससे विस्तृत सूचनाएं आसानी से सुलभ हो जाती हैं जिनके कारण निर्णय लेने में सुविधा होती है। किन्तु इसकी कुछ सीमायें भी हैं वास्तव में यह व्यवस्था प्रणाली के सुव्यवस्थित Reseller से प्रस्तुत नहीं कर पाता है। यह Single संगठन विशेष के उपतंत्रों का संबंध पर्यावरण से किस प्रकार रहता है स्पष्ट नहीं कर पाता है। अत: इसे अव्यवहारिक माना जाता है। अत: यह प्रबन्ध की किसी तकनीकी को स्पष्ट नहीं करती है।

प्रासंगिकता की विचारधारा 

प्रासंगिकता विचारधारा का आधार यह है कि प्रबंधन की कोर्इ Single सर्वश्रेष्ठ विधि नहीं हो सकती वास्तव में प्रबंध के विभिन्न कार्यों को करने के लिए बहुत से तरीके हैं। यह विचारधारा इस बात पर बल देती है कि नेतृत्व, नियोजन, व्यवस्था तथा प्रबंध कार्यों को करने की विधियॉं परिस्थितियों के According बदलती रहती हैं । Single विशिष्ट विधि से Single विशिष्ट परिस्थिति में श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकता है किन्तु अन्य परिस्थितियों में वह विधि कतर्इ बेकार सिद्ध हो सकती हैं। परिस्थितियों में Single सार्वभौमिक विधि नहीं अपनार्इ जा सकती। प्रबन्धकों को विभिन्न परिस्थितियों का विश्लेषण करना चाहिए और उस परिस्थिति में श्रेष्ठतम परिणाम देने के लिए वैज्ञानिक प्रबंध के हिमायती, कार्य के सरलीकरण और अतिरिक्त अभिप्रेरणात्मक सुविधाओं का सुझाव दे सकते हैं। व्यावहारिक वैज्ञानिक कार्य को समृद्ध बनाने तथा कर्मचारियों को प्रजातांत्रिक Reseller से कार्यों के निर्णयन में भाग लेने का सुझाव कर सकते हैं।किन्तु प्रासंगिक विचारधारा के समर्थकों द्वारा सम्पूर्ण परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में Single श्रेष्ठ हल ढूॅंढने की वकालत की जाती हैं। 

सीमित साधनों, अकुशल श्रमिक, सीमित प्रशिक्षण तथा स्थानीय बाजारों में सीमित उत्पादों के होने की दशा में कार्य का सरलीकरण आदर्श उपाय होगा। उपक्रमों जहॉं कुशल श्रम शक्ति की बहुलता हो, में कृत्य समृद्धि का होना आदर्श विविध होगी। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि Single दी हुर्इ स्थिति में परिस्थितियों के According प्रबंधकीय कार्य करना होता है। इस विचारधारा में प्रबंधकों को First स्थिति का ज्ञान करना होता है। और उस स्थिति के According उत्पन्न समस्याओं को हल करने की विधि ढूंढनी होती हैं संक्षेप में दो पहलुओं पर प्रासंगिकता की विचारधारा जोर देती है-  (क) यह प्रासंगिक विशिष्ट कारकों पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है।ये कारक Single प्रबंधक की समरनीति को Second की तुलना में उपयुक्त बनाने में प्रभावित करती हैं।  (ख) प्रासंगिक परिस्थितियों का विश्लेषण करने में प्रबंधकों के गुणों को विकसित करने के महत्व को यह और अधिक प्रकाश में लाती है। इस प्रकार के गुण प्रबंधकों को प्रबंधन करने की उनकी विचारधारा को प्रभावित करने वाले कारकों को खोजने में सहायक होते है। 

इस प्रकार प्रासंगिक विचारधारा प्रबन्धकों की निदानात्मक और विश्लेषणात्मक परिवर्तनशीलता के प्रति सचेत, सावधान, And समायोजन शील बने रहने का सुझाव देती है। वह सुझाव भी देती है कि उन्हें लक्ष्य, साधन या कार्य विधियों की किसी पूर्व धारणा का शिकार नहीं होना चाहिए तथा हमेशा परिस्थितियों के संदर्भ में वस्तुनिष्ठ निर्णय लेना चाहिए। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रासंगिक विचारधारा प्रणालीगत विचारधारा से अधिक श्रेष्ठ है क्योंकि यह उसके सब से बड़े दुर्गुण का समाधान देती है। यह विचारधारा अधिक व्यावहारिक And कार्य उन्मुख है। 

अत्यधिक सैद्धान्तिक जटिलता के कारण इस विचारधारा की खूब आलोचनाएं हुर्इ हैं। अनेक विद्वानों ने इसे प्रबन्धन की पृथक विचारधारा मानने से भी इन्कार Reseller है। All प्रबन्धक विभिन्न परिस्थितियों के अनुReseller सिद्धान्तों का उपयोग सुव्यवस्थित Reseller से नहीं कर पाते क्योंकि इनका ज्ञान, बुद्धिमता, अनुभव And कुशलता Single Second से भिन्न होती है। कभी कभी परिस्थितियों की जटिलता व तीव्रता के कारण उनको समझना आसान नहीं होता है इसलिए इस विचारधारा का कोर्इ अधिक महत्व नहीं रहा पाता। 

आधुनिक प्रबंध 

पारिवारिक प्रबन्ध से आराम ऐसी प्रबन्ध व्यवस्था से है जिसमें परिवार के सदस्यों द्वारा प्रबन्धकीय कार्य सम्पन्न कराये जायें। जिस प्रकार किसी परिवार में पिता की मृत्यु होने के बाद उसका उत्तराधिकारी उसका पुत्र होता है। ठीक उसी प्रकार पारिवारिक प्रबन्ध व्यवसायी के प्रबन्ध प्रक्रिया का उत्तराधिकार भी परिवार के सदस्यों को जाता है।इस सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि इस कार्य के लिए विशिष्ट योग्यता प्राप्त व्यक्तियों को कोर्इ प्राथमिकता नहीं दी जाती । इसी आधार पर पारिवारिक प्रबन्ध व्यवस्था को उत्तराधिकारी द्वारा प्रबन्ध की संज्ञा दी जाती है। भारत में प्रबन्ध अभिकर्ता प्रणाली इस प्रकार की प्रबन्ध व्यवस्था का ज्वलन्त उदाहरण है। इसके अतिरिक्त बड़े बड़े औद्योगिक घरानों जैसे – रिलायन्स, टाटा, बिड़ला आदि परिवारों में इसी प्रकार की प्रबन्ध व्यवस्था अपनार्इ गर्इ है। पारिवारिक प्रबन्ध व्यवस्था के अन्तर्गत अनेक दोषों का अनुभव Reseller गया है जैसे –

  1. औद्योगिक सत्ता का उपकरण हो जाना, 
  2. वित्तीय प्रभुत्व का विस्तार 
  3. स्वार्थपूर्ण कुप्रबन्ध, 
  4. जनता के हितों का शोषण , 
  5. श्रमिकों का शोषण आदि।

इन दोषों के कारण ही भारत में 3 अप्रैल, 1970 से प्रबन्ध अभिकर्ता प्रणाली को Single विशेष अधिनियम पारित करके पूर्ण Reseller से समाप्त कर दिया गया था।

‘‘पेशेवर प्रबन्ध से तात्पर्य ऐसे प्रबन्ध से है जिसके अन्तर्गत प्रबन्ध कार्य प्रबन्ध ज्ञान में प्रशिक्षित व्यक्तियों से कराया जाता है। Meansात पेशेवर प्रबन्ध कार्य प्रबन्ध ज्ञान में विशिष्ट ज्ञान प्राप्त व्यक्तियों को दी जाती है। वर्तमान प्रबन्ध व्यवस्था में पेशेवर प्रबन्ध का भी महत्व बढ़ता जा रहा है। संयुक्त स्कन्ध कम्पनियों में नीति निर्माण का कार्य संचालक मण्डल द्वारा Reseller जाता है और शेष कार्यों का प्रबन्ध संचालक या जनरल मैनेजर देखता है। 

विभिन्न विभागों के लिए पृथक पृथक प्रबन्धक होते हैं, जैसे – नियोजन विभाग के लिए नियोजन प्रबन्धक, उत्पादन विभाग के लिए उत्पादन प्रबन्धक, वित्त विभाग के लिए वित्तीय प्रबन्धक, विपणन विभाग के लिए विपणन प्रबन्धक होते हैं तथा उनकी सहायता के लिए उप प्रबन्धक भी नियुक्त किये जा सकते हैं। प्रबन्ध कार्य के लिए परामर्श हेतु विशेषज्ञों की भी Appointment की जा सकती है अथवा प्रबन्ध सलाहकार एजेन्सियों से परामर्श लिया यजा सकता है। इस प्रकार की प्रबन्ध व्यवसायी को ही पेशेवर प्रबन्धकाय व्यवस्था कहते हैं।’’ 

यह निर्विवाद Reseller से कहा जा सकता है कि पारिवारिक प्रबन्ध की अपेक्षा पेशेवर प्रबन्ध अधिक सफल रहा है क्योंकि पारिवारिक प्रबन्ध व्यवस्था के अन्तर्गत प्रबन्धकीय अधिकार विरासत में प्राप्त होते हैं और इसमें प्रबन्धकीय ज्ञान में विशिष्ट योग्यता पर कोर्इ ध्यान नहीं दिया जाता है जबकि पेशेवर प्रबन्ध व्यवस्था के अन्तर्गत प्रबन्धकीय ज्ञान में प्रशिक्षित व्यक्तियों को ही प्रबन्धकीय अधिकार दिये जाते हैं।

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