पल्लव वंश का History

पल्लव भी स्थानीय कबीले के लोग थे । इन्होंने दक्षिणी आंध्र और उत्तरी तमिलनाडु में अपना राज्य स्थापित Reseller था । वे स्वयं को ब्राम्हण मानते थे । इन्होंने कांचीपुरम को अपनी राजधानी बनाया । यह वैदिक ज्ञान का Single बड़ा केन्द्र बन गया । पल्लवों का राजनैतिक History स्पष्ट नहीं है । प्रारम्भिक King पाण्ड्य और कवम्ब वंश के Kingओं से Fight करते रहे । परन्तु तंगभ्रदा और कृष्णा नदी के दोआब पर अधिकार प्राप्त करने के लिए इनका गुख्य संघर्ष चालुक्यों से रहा । इनकी Single सुदृढ़ And शक्तिशाली नौ-सेना थी जिसका उपयोग इन्होंने दक्षिण-पूर्वी एशिया के अभियानों के लिए Reseller ।

चालुक्य और पल्लवोंं के बीच संघर्ष

जिस समय पुलकेशिन द्वितीय अपने चरमोत्कर्ष पर था उसने अपने समकालीन पल्लव King महेन्द्रवर्मन पर आक्रमण Reseller । महेन्द्रवर्मन ने अपनी राजधानी तो बचा ली परन्तु उसके उत्तरी प्रान्तों पर चालुक्यों का अधिकार हो गया । इन जीते हुए प्रदेशों की शासन व्यवस्था के लिए पुलकेशिन द्वितीय ने अपने छोटे भार्इ विष्णुवर्धन को भेजा । उसने वेंगी के पूर्वी चालुक्यों की स्थापना की । महेन्द्रवर्मन का पुत्र नरसिंहवर्मन First 630 र्इ. में पल्लव राजसिंहासन पर बैठा । उसके शासनकाल में पुलकेशिन ने 642 र्इ. में Single बार फिर पल्लवों पर आक्रमण Reseller । परन्तु इस Fight में उसे सीघे हटना पड़ा और शायद इसी Fight में पुलकेशिन मारा गया । चालुक्य राजधानी वातापी को लूटा गया और नरसिंहवर्मन ने दातापीकोंड (वातापी का विजेता) की उपाधि धारण की । कहा जाता है कि उसने पाण्ड्यों को समाप्त कर दिया था परन्तु इस Fight का कोर्इ वर्णन नहीं मिलता है । ऐसा प्रतीत होता है कि पल्लव पाण्डयों से भी निरन्तर Fight करते रहे थे । इसका लाभ उठाकर पुलकेशिन के पुत्र विक्रमादित्य First ने पाण्डय King से सहयोग लेकर पल्लवों को पराजित Reseller । छोटे-मोटे झगड़े Sevenवीं र्इस्वीं तक चलते रहे । 740 र्इ. में चालुक्य वंश के King विक्रमादित्य ने अपनी सेना सहित पल्लव प्रदेश में प्रवेश Reseller और उसे पराजित Reseller । पल्लवों की शक्ति Destroy हो गर्इ । इस विजय से चालुक्यों और पल्लवों के बीच संघर्ष समाप्त हो गया, शीघ्र ही चालुक्यों को भी नर्इ उभरती शक्ति राष्ट्रकूटों के सामने झूकना पड़ा ।

चालुक्य और पल्लव काल में जन जीवन

यद्यपि इस काल में King Fightों में व्यस्त रहे फिर भी सांस्कृतिक प्रगति में कोर्इ बाधा नहीं आर्इ । हम देखते है कि इस काल में ब्राम्हणवाद का पुनरूत्थान हुआ जिसके फलस्वReseller भक्तिसाहित्य और संगीत का विकास हुआ । इस काल में दक्षिण में इतने अधिक मन्दिरों का निर्माण हुआ कि दक्षिण को मन्दिरों का प्रदेश कहा जाने लगा । इसी काल में Indian Customer संस्कृति तमिल क्षेत्र से दक्षिण-पूर्वी एशिया पहुंची । इसका ही हम आगे पृष्ठों में विस्तार से अध्ययन करेंगे। इस काल का दक्षिण Indian Customer History बताता है कि स्थानीय रीति-रिवाजों पर वैदिक रीति-रिवाजों का गहरा प्रभाव पड़ा था । King ब्राम्हण धर्म मानते थे और वैथ्दक यज्ञ करते थे । समाज में बा्र म्हणों आरै Kingा ें (क्षत्रियां)े का प्रभुत्व था । आपको याद हागे ा कि चालुक्य और पल्लव दोनों का ही उदय अन्धकारमय है । फिर भी सहयोगी ब्राम्हणों ने चालुक्यों को चन्द्रवंशी बताया और कहा कि उनके पवूर् ज अयोध्या के King थ े । इससे उन्हें मान्यता के साथ-साथ मान सम्मान मिला । ऐसी सेवा के बदले ब्राम्हणों को भूमि और गांव अनुदान Reseller में दिए गए । Kingओं ने धर्म महाKing जैसी उपाधि धारण की । उन्होंने अपने राज्य में शान्ति बनाए रखना अपना कर्तव्य समझा ।

निरन्तर Fightों और सांस्कृतिक गतिविधियों के तेजी से बढ़ने के कारण किसानों पर भार बढ़ना स्वाभाविक था समाज का यह वर्ग भोजन उत्पादन का उत्तरदायित्व निभाता रहा और कर देता रहा । ब्राम्हणों की कबायली क्षेत्र में भूमि अनुदान Reseller में दी गर्इ थी । इससे खेती में नर्इ भूमि का प्रयोग हुआ । इस क्षेत्र में कृषि उत्पादन के लिए नए तरीके काम में लाए गए । तमिल अभिलेखों से इस काल को तीन ग्रामों का पता चलता है । ये थीं- उर, सभा और नगरम । ‘उर’ में सभा में वे लोग शामिल थे जिनकी गांव में अपनी भूमि थी । ब्रह्मदेय गांवों (जिसके सदस्य केवल ब्राह्मण थे) शामिल थे ‘नगरम’ के सदस्य व्यापारी और दुकानदार थे । कुछ विद्वानों का मत है कि यह गांव परिषद थी । ग्रामीण व्यवस्था और विस्तार के ये प्रमाण सिद्ध करते है कि कृषि आधारित Meansव्यवस्था को विकसित करने के लिए बहुत प्रयास किए गए थे । Fightों के होते हुए भी चालुक्य और पल्लव राज्यों में मन्दिरों का निर्माण अगाधागति से होता रहा वास्तव में आपसी सम्पर्क से दोनों ही राज्यों की कला और वास्तुकला प्रभावित हुर्इ । कहा जाता है कि पुलकेशिन द्वितीय ने पट्टदकल में जब मन्दिर बनवाया तो उसने कांची पुरम के मंदिर की शैली का अनुसरण Reseller ।

यद्यपि प्रारम्भ में बौद्ध और जैन धर्म अति लोकप्रिय था फिर भी इस काल में शिव और विष्णु के मन्दिर बनवाए गए । प्रारम्भिक चालुक्य मन्दिर ऐहोल में 600 र्इ. के आस-पास बने थे । इसके बाद बादामी और पट्टदकल में जब मन्दिर बनवाए गए । चालुक्यों के लडकन और दुर्गा मन्दिर (ऐहोल), पोपनाथ और विResellerक्ष मन्दिर (पट्टदकल) प्रसिद्ध है । दुर्गा मन्दिर में बौद्ध शैली परिलक्षित है जबकि पापनाथ मन्दिर में उत्तर और दक्षिण की शैलियों का समन्वय है । ये मन्दिर शिव और विष्णु की उपासना के लिए बनाए गए थे । इसमें रामायण के दृश्यों को अंकित Reseller गया है ।

पल्लव भी महान भवन निर्माता थे । उनके बनवाए मन्दिर स्वतंत्र मन्दिर वास्तुकला और शिला वास्तुकला के सुन्दर नमूने है । चट्टानों को काटकर बनाए गए अधिकांश मन्दिर King महेन्द्र वर्मन First ने बनवाए थे जिसने शैव सम्प्रदाय अपना लिया था । त्रिचनापल्ली में चट्टानों को काटकर बनार्इ गर्इ गुफाएं इस काल की उत्कृष्ट कृतियां है । समुद्र तटीय बन्दरगाह नगर महाबलीपुरम (ममाल्लपुरम्) Single बहुत ही व्यवस्थ व्यापारिक केन्द्र था । यहां अनेक भवन और मन्दिर है । इसमें सबसे प्रसिद्ध है नरसिंहवर्मन द्वारा बनवाया गया सप्पेगोडा (Seven रथणों वाला) मन्दिर । शायद पल्लवों का सांस्कृतिक प्रभाव इण्डोनेशिया और इंडोचीन तक पहुंचा था । स्वतंत्र मन्दिरों में प्रारम्भिक मन्दिर समुद्र तटीय मन्दिर है । पल्लवों की राजधानी कांचीपुरम में कैलाशनाथ और बैंकुठ पेरूमल जैसे अनेक मन्दिर हैं ।

300-750 र्इ. तक चालुक्यों, पल्लवों और पाण्डयों का प्रभुत्व रहा । चालुक्य और पल्लव पूरे काल निरन्तर Fight करते रहे । ब्राम्हणवाद ने प्रमुखता प्राप्त की । चालुक्यों और पल्लवों ने दक्षिण में सुन्दर मन्दिर बनवाए ।

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