पर्यावरण विश्लेषण की तकनीक

वातावरण के विश्लेषण से हमें मौजूदा वातावरण तथा इसमें होने वाले हर सम्भव परिवर्तनों को समझने में सहायता मिलती है। वर्तमान वातावरण को जानने के साथ-साथ भावी स्थिति का अनुमान भी लगाना पड़ता है। इससे भावी रणनीति को तैयार करने में मदद मिलती है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वातावरण के अध्ययन से लाभ हैं –

  1. फर्म की रणनीति तय करने तथा दीर्घकालीन नीति निर्धारण में सहायता मिलना,
  2. तकनीकी प्रगति के कार्यक्रम को विकसित करने में मदद मिलना,
  3. फर्म के स्थायित्व पर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व सामाजिक, आर्थिक प्रभावों का पूर्वानुमान लगाना, 
  4. प्रतिस्पर्धियों की रणनीति का विश्लेषण तथा प्रभावी जवाब की तैयारी करना, तथा 
  5. गतिशीलता बनाए रखना।

व्यावसायिक वातावरण के प्रति जागरूक नहीं रहने के भयानक And कष्टदायी परिणाम निकल सकते हैं। सम्भव है कि कम्पनी अपने को अजेय मान ले तथा बाजार में क्या घटनायें घट रही है उनकी ओर न तो ध्यान दे और न उनकी जांच करें। इस स्थिति में कम्पनी न तो वातारण में परिवर्तन के According अपनी रणनीति में समायोजन करेगी और नहीं बदलते वातावरण के According प्रतिक्रिया करेगी। ऐसी कम्पनी को परेशानी में पड़ना स्वाभाविक है।

वातावरण का विश्लेषण कम्पनी को इतना समय प्रदान करता है कि वह अवसरों की जानकारी First ही प्राप्त कर ले और उनके According रणनीति में परिवर्तन करें। यह रणनीति निर्धारकों को Single पूर्व चेतावनी व्यवस्था (early warning system) विकसित करने में मदद देता है ताकि खतरे से बचा जा सके And खतरे को अवसर में बदला जा सके।

प्रबन्ध पर समय का काफी दबाव रहता है। वातारण के व्यवस्थित अध्ययन And विश्लेषण की अनुपस्थिति में प्रबन्धक वातावरणीय परिवर्तनों पर पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे। फलत: ऐसे परिवर्तनों का सामना सही ढंग से नहीं हो पाएगा, लेकिन जहां व्यावसायिक पर्यावरण का विश्लेषण होता है वहां प्रबन्धकीय निर्णय अधिक सही होते हैं। इस स्थिति में प्रबन्धक अन्य महत्वपूर्ण कार्यों पर अधिक समय दे सकगें । इसी वजह से विलियम एफ, ग्लुयके तथा लॉरेंसे आर. जॉच (William F. Glueck and Lawrence R. Jauch) ने कहा, “फर्म जो व्यवस्थित Reseller से पर्यावरण का विश्लेषण तथा निदान करती है, ऐसा नहीं करने वालों की तुलना में अधिक प्रभावी होती है।” पर्यावरण से पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए उत्पादन के स्तर पर तथा प्रक्रिया- सम्बन्धी विश्लेषण की Need है।

(1) उत्पादन के स्तर पर पर्यावरण विश्लेषण को पर ध्यान देना है :

  1. चालू समय में जो परिवर्तन हो रहे हैं उनका वर्णन,
  2. भविष्य में होने वाले सम्भावित परिवर्तनों का अग्रदूत,
  3. भावी परिवर्तनों की वैकल्पिक व्याख्या।

ऐसी जानकारी के विश्लेषण से बाह्म मुद्दों को समझने तथा तदनुसार समायोजन का समय मिल जाता है तथा खतरों को अवसरों में बदलने का मौका।

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया के स्तर पर यह मान लिया जाता है कि वाह्म शक्तियों से फर्म का संगठन प्रभावित होता हैं। वास्तव में वह विश्लेषण चुनौती भरा, लम्बा (काफी समय लेता है), तथा खर्चीला है। यह विश्लेषण चार चरणों में Reseller जा सकता है :

1. परीक्षण  – 

पर्यावरण विश्लेषण का यह First चरण है। इसमें पर्यावरण सम्बन्धी All-कारकों की सामान्य निगरानी की जाती है तथा इनकी अन्तक्रियाओं पर ध्यान दिया जाता है; ताकि

  1. पर्यावरण सम्बन्धी All सम्भव परिवर्तनों की शुरू में ही पहचान की जा सके; तथा
  2. पर्यावरण सम्बन्धी वे परिवर्तन जो घटित हो चुके हैं, को खोज निकाला जा सके।

पर्यावरण विश्लेषण की प्रक्रिया का परीक्षण अच्छा ढांचा प्रस्तुत नहीं करता है तथा अस्पष्ट है। परीक्षण के लिए उपलब्ध आंकड़े न केवल अत्यधिक मात्रा में विद्यमान है बल्कि बिखरे हुए अस्पष्ट तथा सटीक नहीं है। ऐसे अस्पष्ट, असम्बद्ध तथा बिखरे हुए आंकड़ों का परीक्षण Single चुनौती भरा कार्य है।

2. अनुश्रवण  – 

इसका कार्य वातावरणीय प्रवृत्ति, घटनाक्रम या क्रियाओं के प्रवाह पर नजर रखना। यह वातावरण के परीक्षण से प्राप्त संकेतों को समझने का प्रयास करता है। निर्देशन का उद्देश्य पर्याप्त आंकड़े इकट्ठे करना है ताकि यह समझा जा सके कि किसी प्रवृत्ति तथा पैटर्न का उदय हो रहा है या नहीं। निर्देशन की प्रगति के साथ-साथ अस्पष्ट आंकड़े स्पष्ट And सुनिश्चित दिखने लगते हैं।
अनुश्रवण के तीन परिणाम निकलते हैं-

  1.  वातावरण की प्रवृत्ति तथा पैटर्न, जिनकी भविष्यवाणी करनी है, का सुस्पष्ट description;
  2. और आगे निर्देशन के लिए प्रवृत्ति की पहचान; तथा
  3. और आगे परीक्षण के लिए क्षेत्रों तथा स्थलों की पहचान।

3. पूर्वानुमान – 

परीक्षण तथा निर्देशन से वह तस्वीर निकलती है जो बन चुकी है तथा बनने जा रही है। रणनीति-सम्बन्धी निर्णय भविष्य की ओर देखता है। अत: वातावरण के विश्लेषण में स्वाभाविक Reseller से भविष्यवाणी करना आवश्यक अंग बन जाता है। भविष्यवाणी का सम्बन्ध वातावरण सम्बन्धी परिवर्तन की दिशा, क्षेत्र तथा गहनता के विषय में युक्तियुक्त परियोजना को विकसित करना है। प्रत्याशित परिवर्तनों के विकास पथ के निर्माण की कोशिश की जाती है। भविष्यवाणी का सम्बन्ध प्रश्नों से है –

  1.  नर्इ तकनीकों को बाजार तक पहुंचने में कितना समय लगेगा?
  2. क्या चालू स्टाइल जारी रहने वाला है?
  3. परीक्षण तथा निर्देशन से भिन्न, भविष्यवाणी अधिक निगमनात्मक तथा जटिल क्रिया है।

4. आकलन  – 

उपरोक्त तीनो  प्रक्रिया- परीक्षण, निर्देशन तथा पूर्वानुमान अपने आप में उद्देश्य नहीं है। इन प्रक्रियाओं से प्राप्त परिणामों का आकलन करके व्यवसाय की चालू तथा भावी रणनीतियों को तय करना होता है। आकलन से जिन प्रश्नों के उत्तर देने हैं, वे हैं –

  1. वातावरण किन मुख्य मुद्दों को उपस्थित करता है?
  2. इन मुद्दों का संगठन के लिए क्या महत्व है?

पर्यावरण पूर्वानुमान

पूर्वानुमान ज्ञात तथ्यों से निष्कर्ष निकाल कर भविष्य का परीक्षण करने के लिये Single व्यवस्थित प्रयास है। इस तकनीक के अन्तर्गत भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाने के लिए भूत व वर्तमान की सूचना का प्रयोग Reseller जाता है। इसका ध्येय प्रबन्ध को ऐसी सूचना प्रदान करने का है जिस पर वह नियोजन निर्णय आधारित कर सके।

नियोजन व पूर्वानुमान Single Second से जुड़े हुए हैं परन्तु पूर्वानुमान योजना नहीं होती, उससे मात्र अनुमान लग सकता है और उसका हमारे कार्य-कलापों पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। जैसा कि फेयोल ने कहा है, “Single योजना अनेक पूर्वानुमानों का संश्लेषण होती है।” पूर्वानुमान नियोजन में पहला चरण होता है। भरोसेमंद योजना सटीक पूर्वानुमानों पर आधारित होती है। पूर्वानुमान अधिकतर उन घटनाओं पर आधारित होते हैं जिनका होना सम्भव तो है, परन्तु निश्चित नहीं।

अधिकतर कम्पनियाँ अपने व्यवसाय के बारे में ऊपर से नीचे व नीचे से ऊपर तक पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करती है और इन दोनों पूर्वानुमानों को आपस में जोड़ देती है। जब हम ऊपर से नीचे जाते हैं तो हम First देश की सम्पन्नता, उसके बाद अपने उद्योग में विक्रय, फिर अपनी कम्पनी, और अन्त में अपनी वस्तुओं का पूर्वानुमान लगाते हैं। जब हम नीचे से ऊपर की ओर जाते हैं तो हम अपने विक्रेता तथा डीलरों को अपनी वस्तुओं के विक्रय के विषय में पूर्वानुमान लगाने को कहते हैं और उनको आपस में जोड़ देते हैं।

पूर्वानुमान Single या अनेक उत्पादों का भविष्य में कुछ समय के लिये माँग के स्तर का आकलन है। इसमें भविष्य में होने वाली परिस्थितियों को प्रभावित करने वाले निर्पेक्ष व सापेक्ष कारकों के महत्व व परिमाण का आकलन करने की Need पड़ती है। कभी-कभी इसे पढ़ा-लिखा अनुमान भी कहा जाता है। कुछ प्रबन्धक अपने अन्तर्ज्ञान के आधार पर भी पूर्वानुमान लगाते हैं। यह वे अपने कार्य के अनुभव के कारण कर पाते हैं। परन्तु आज के जैसे जटिल पर्यावरण में ऐसा पूर्वानुमान लगाना खतरनाक हो सकता है।

ऐसे में परिष्कृत पूर्वानुमान तकनीकों की Need होती है। ग्लूइक (Glueek) के According, “पूर्वानुमान भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाने के लिए औपचारिक तरीका है जो कि संगठन के कार्यकलापों को प्रभावित करता है।”

उपर्युक्त वर्णन पूर्वानुमान की विशेषताएं प्रस्तुत करता है-

  1. पूर्वानुमान भविष्य की घटनाओं से सम्बन्धित है।
  2. यह नियोजन के लिए आवश्यक अभ्यास है। 
  3. यह भविष्य की सम्भावित घटनाओं के होने के बारे में भविष्यवाणी करने का प्रयास करता है।
  4. इसमें उन All कारकों का परीक्षण शामिल होता है जो भूत और वर्तमान में संगठन के कार्य को प्रभावित करते हैं।
  5. यद्यपि व्यक्तिगत अवलोकन पूर्वानुमान में सहायता कर सकता है तब भी उचित यही होगा कि जोखिम कम करने के लिए विवेकपूर्ण तकनीक का प्रयोग Reseller जाय।

पूर्वानुमान की Need और महत्व

पूर्वानुमान नियोजन प्रक्रिया की कुंजी है। नियोजन शून्यता में नहीं हो सकता। पूर्वानुमान के द्वारा भविष्य के बारे में पता लगाया जा सकता है कि जो कि नियोजन में सहायक होता है। जब तक प्रबन्धकों को यह न ज्ञात हो कि वस्तुयें किस प्रकार से होंगी, वे योजना नहीं बना सकते। इस प्रकार पूर्वानुमान Single आमुख आधार निर्धारित करता है जिसके अन्तर्गत नियोजन Reseller जाएगा। पूर्वानुमान संगठन के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है। प्रत्येक संगठन के निश्चित उद्देश्य होते है। ये लक्ष्य तभी प्राप्त किये जा सकते हैं जबकि उनसे सम्बन्धित क्रिया-कलाप को कार्यान्वित Reseller जाए। इस सम्बन्ध में प्रश्न उठता है कि किसी विशेष लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कौन से क्रिया-कलाप संगत है? इस प्रश्न का उत्तर क्रिया-कलाप के सम्भावित परिणाम पर निर्भर करता है और सम्भावित परिणाम केवल पूर्वानुमान के द्वारा प्राप्त Reseller जा सकता है। Single संगठन के अन्दर पूर्वानुमान परांेक्ष Reseller से समन्वय करता है। पूर्वानुमान All प्रकार की सूचना, भूत और वर्तमान दोनों पर निर्भर करता है। इस प्रकार की सूचना All स्रोतों-आन्तरिक And वाह्य से Singleत्रित की जाती है। संगठन के All हिस्से आवश्यक सूचना Singleत्रित करने में लगे रहते हैं। इस प्रक्रिया में वे Single Second को प्रभावित करते हैं जो कि उनको पास लाने व Single Second को समझने में सहायकता करते है। यह सब संगठन के विभिन्न हिस्सों में बेहतर समन्वय लाता है।

सूचना Singleत्रीकरण विधि, जिसका कि ऊपर वर्णन Reseller है, बेहतर नियन्त्रण की ओर भी ले जाती है। सूचना द्वारा प्रबन्धक संगठन के दुर्बल पहलुओं को जान लेते हैं और उसी के According सही कदम उठाते हैं। यह प्रबन्धन को अपने अधीनस्थों पर बेहतर नियन्त्रण करने में सहायता करता है। इस प्रकार पूर्वानुमान नियन्त्रण करने में सहायता करता है।

पूर्वानुमान अनिश्चितता को दूर करने में सहायक होता है। Single बार भविष्य की घटनाऐं व उनके सम्भाव्य परिणाम साथ हो जायें तो प्रबन्धक नियोजन कर सकते हैं कि उन्हें क्या करना है और कैसे करना है। इस प्रकार पूर्वनुमान कार्य करने का सही तरीका चयन करने में सहायता करता है।

वास्तव में, पूर्वानुमान संगठन को सफलता की ओर ले जाता है। All संगठन उस वातावरण से प्रभावित होते हैं जिसमें वे कार्य करते है। इसके अतिरिक्त All संगठनों में अपने अन्दर ही परिवर्तन होता रहता है। ये सब पूर्वानुमान द्वारा सही समय पर पता लगाए जा सकते हैं और सही कदम उठा कर संगठन को पूर्ण Reseller से सफलता की ओर ले जाया जा सकता है।

पूर्वानुमान के चरण

सबसे First, पूर्वानुमान का लक्ष्य निर्धारित करें Meansात् पूर्वानुमान का उद्देश्य क्या है?

दूसरा, All आमुख को समझें। आमुख आन्तरिक व वाह्य हो सकते है। वाह्य आमुख संगठन के लिये वाह्य प्रतिबन्ध अथवा सहायक हो सकते हैं। इनके अन्तर्गत व्यावसायिक पर्यावरण जिसमें राजनैतिक माहौल (राजनैतिक स्थिरता का स्तर), सरकारी दृष्टिकोण (Meansव्यवस्था पर नियन्त्रण की सीमा), जनसांख्यकीय कारक (लोगों द्वारा पसन्द किये जाने वाली वस्तुएँ), आर्थिक विकास का स्तर (जो लोगों की खरीदने की शक्ति को निर्धारित करता है), मूल्य अभिसूचक (जो लाभ के स्तर को निर्धारित करता है), वित्तीय नीति (कर ढांचा व सरकारी खर्चे की सीमा), आर्थिक नीति (धन की आपूर्ति की सीमा) व तकनीकी विकास (संगठन को उनके According ढालने की Need अन्यथा वह समाप्त हो जायेगा); बाजार के कारक जैसे कि प्राकृतिक संसाधन, आधारभूत सुविधाएं, कच्चे माल की सुलभता, उनकी आपूर्ति की नियमितता, अद्यतन मशीन की सुलभता व उसका मूल्य और संगठन को स्थापित करने व चलाने के लिये वित्तीय उपलब्धता; व वस्तु का बाजार जिसमें संगठन की वस्तु की मांग, प्रतिस्पर्धा का प्रकार, जैसे कि मूल्य, गुणवत्ता विज्ञापन, नवाचार व मांग का मूल्य में परिवर्तन के सन्दर्भ में लोच शामिल होते हैं। आन्तरिक आमुख संगठन के अन्दर की घटनाएं होती हैं। इनके अन्तर्गत संगठन की मूल नीतियाँ, नीतियों को लागू करने के लिए कार्यक्रम, संगठन का ढांचा व लक्ष्य प्राप्त करने के विषय में संगठन की अपने बारे में उम्मीद सम्मिलित होती है।

तीसरा, All ज्ञात और उपलब्ध सूचना को All स्रोतों से Singleत्रित करना, चाहे आन्तरिक हों या बाह्य।

चौथा, सूचना का उचित तकनीक द्वारा विश्लेषण करना।

पाँचवां, समय-समय पर वास्तविक परिणाम की पूर्वानुमान से तुलना करना और उसी के According पूर्वानुमान की सफलता की दर निकालना। कमियों के कारणों की जांच व विश्लेषण करना।

अन्तत:, उपरोक्त तुलना के आधार पर पूर्वानुमान प्रक्रिया को पुन: संरचित व परिष्कृत करना, जिससे कि भविष्य में वह पूर्णतया सटीक हो।

पूर्वानुमान की कमियाँ

पूर्वानुमान करते समय हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि चाहे इस प्रक्रिया में कितनी भी परिष्कृत तकनीकों का प्रयोग Reseller गया हो तब भी यह वास्तविक कथन नहीं होते वरन् मात्र परिकल्पना होते हैं।

पूर्वानुमान अधिकतर इस आमुख पर आधारित होता है कि घटनाएं बहुत लम्बे समय तक अपना रूख नहीं बदलेंगी। यह सही नहीें है क्योंकि घटनाओं में अकस्मात व तीव्र परिवर्तन हो सकते हैं जो कि अधिकतर प्रबन्ध से जुड़े लोगों के नियन्त्रण के बाहर होते हैं।

पूर्वानुमान अनेक प्रकार की सूचना पर आधारित होता है। कहीं पर भी किसी Single कारक में परिवर्तन या त्रुटि से परिणाम काफी मात्रा तक बदल सकते हैं जिससे कि पूर्वानुमान व वास्तविक घटना में अन्तर आ सकता है।

ऐसे भी क्षेत्र हो सकते हैं जहाँ पूर्वानुमान लगाना कठिन हो या अत्यन्त हानिकारक हो। उदाहरण के लिए कर ढांचे में परिवर्तन या दो देशों के बीच Fight या भंयकर महामारी या प्राकृतिक आपदा का अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि यह बीती हुर्इ घटनाओं पर आश्रित नहीं होतीं।

यह बात ध्यान देने योग्य है कि पूर्वानुमान केवल भविष्य की प्रवृत्ति को इंगित करते हैं और किसी भी Reseller में निर्पेक्ष व अन्तिम सत्य नहीं होते। पूर्वानुमान में यह कमी है कि प्रबन्धकों को पूर्वानुमान में हो सकने वाली त्रुटि की सीमा को भी ध्यान में रखना पड़ता है। पूर्वानुमान की अवधि जितनी दीर्घ होगी उतनी ही त्रुटि की सम्भावना बढ़ जाएगी।

पूर्वानुमान Singleत्रित सूचना की गुणवत्ता व मात्रा पर निर्भर होता है जो कि आवश्यक सूचना को Singleत्रित करने में व्यय किये गये धन व समय से निर्धारित होता है। बड़े व समृद्ध संगठन व्यय करने में सक्षम होते हैं, परन्तु छोटे संगठनों के पास ऐसे अभ्यासों के लिए कठिनता से ही संसाधन हो पाते हैं। इसलिए वे परिष्कृत तकनीकों का प्रयोग नहीं कर पाते जिससे कि उनके द्वारा किये गए पूर्वानुमान की विशुद्धता प्रभावित होती है।

पर्यावरण पूर्वानुमान के तरीके अथवा तकनीकें

पूर्वानुमान के तरीकों को अधिकतर प्रकार से वर्गीकृत Reseller जाता है:-

1. ऐतिहासिक सादृश्य विधि 

इसके अन्तर्गत पूर्वानुमान भूतकाल में हुए ऐतिहासिक सादृश्य पर आधारित होता है। इस प्रकार विकासशील देशों की प्रगति का विश्लेषण विकसित देशों में हुर्इ उन्नति के सन्दर्भ में Reseller जा सकता है और उसके अनुReseller आने वाले समय की घटनाओं के स्वReseller का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह विधि सामान्य प्रवृत्ति का अनुमान लगाने में सहायक है परन्तु यह विशिष्ट प्रवृत्ति के पूर्वानुमान में बहुत अधिक कारगर सिद्ध नहीं होती।

2. पर्यलोकन विधि

पर्यलोकन विधि में सम्बन्धित लोगों का प्रश्नावली या साक्षात्कार द्वारा परीक्षण Reseller जाता है। इस प्रकार ग्राहकों से विशेष वस्तुओं के विषय में उनकी पसन्द पूछी जा सकती है। पर्यवलोकन विधि का प्रयोग परिमाणात्मक व गुणात्मक सूचना को Singleत्रित करने में Reseller जा सकता है। समय व धन की सीमा के कारण सब लोगों का साक्षात्कार करना सम्भव नहीं है इसलिए कुछ मानक तकनीकों द्वारा Single प्रतिदर्श विकसित Reseller जाता है। इसमें यह ध्यान देना चाहिए कि प्रतिदर्श उस समूह का सच्चा प्रतिनिधि हो जिसकी राय संगठन प्राप्त करना चाहता है। पर्यवलोकन से Singleत्र सूचना के आधार पर वर्तमान व नर्इ वस्तुओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है।

3. विचार मतदान 

विचार मतदान (opinion poll) का प्रयोग विषय में बुद्धिमान व ज्ञान रखने वाले लोगों का मत जानने के लिए Reseller जाता है। इस प्रकार विचार मतदान का प्रयोग चुनाव के नतीजों का अनुमान लगाने में Reseller जाता है। इसी प्रकार थोक विक्रेता अथवा डीलर के विचार मतदान के द्वारा अलग-अलग वस्तुओं की मांग का अनुमान लगाया जा सकता है। ऐसे ही विक्रय प्रतिनिधियों के विचार की भी मतगणना की जा सकती है। जहां विचार मतगणना के द्वारा विभिन्न मत निकलकर आयें वहाँ विषय पर विचार विमर्श Reseller जा सकता है तथा Single विशेष मत देने के कारणों की परिDiscussion की जा सकती है और उसके हिसाब से सर्वसम्मिति पर पहुंचा जा सकता है। इस अभ्यास के आधार पर भविष्य को प्रक्षिप्त Reseller जा सकता है।

4. अभिसूचक तरीका 

अभिसूचक (Index) पर आधारित पूर्वानुमान उतना ही अच्छा या खराब होता है जितना कि उसका आधार बनने वाला अभिसूचक व वास्तविक मांग और अभिसूचक आधारित पूर्वानुमान में परस्पर सहसम्बन्ध। ऐसे पूर्वानुमान में उच्चस्तरीय परिशुद्धता के लिए विक्रय व अभिसूचक में सहसम्बन्ध उच्च होना आवश्यक है। इसी प्रकार अभिसूचक अंकों का प्रयोग दो अथवा अधिक कलाविधि के बीच में Meansव्यवस्था की स्थिति को मापने के लिये Reseller जा सकता है। यह अभिसूचक प्रवृत्तियों, मौसमी उतार- चढ़ाव, चक्रीय चाल व अनियमित उतार-चढ़ाव का अध्ययन करने के लिए Single साधन है। इन अभिसूचक अंगों को जब Single-Second के साथ सम्बन्धित या जोड़ा जाता है तो यह Meansव्यवस्था किस दिशा में जा रही है उस ओर इंगित करता है।

5. प्रवृत्तीय विधि अथवा समय-श्रृंखला विश्लेष्ेषण 

इस विधि के अन्तर्गत पुराने आंकड़े या सूचना के आधार पर प्रवृत्ति को प्रस्तुत करके भविष्य का अनुमान लगाया जा सकता है। यह इस पूर्व धारणा पर आधारित है कि भविष्य भूत से ही जन्म लेता है। इस तकनीक के अन्तर्गत Single काल में हुर्इ आर्थिक क्रिया के मुख्य सूचक अथवा परिवर्तन बिन्दु का पता लगाकर उसके आधार पर भविष्य की प्रवृत्ति का अनुमान लगाया जाता है। इस प्रकार यदि Fight के कारण आवश्यक वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हुर्इ है तो ऐसा भविष्य में भी होने की सम्भावना है। हालांकि इस प्रकार का पूर्वानुमान तभी Reseller जा सकता है जबकि काफी लम्बे समय के आंकड़ें प्राप्त हों और प्रवृत्ति काफी हद तक स्पष्ट व स्थायी हो।

6. औसत विधि 

 इसका तात्पर्य यह है कि भूतकाल की मांग भविष्य की मांग की सूचक होती है। गणितीय औसत अथवा माध्य इसका Single तरीका है। दूसरा तरीका चलायमान औसत का है। छमाही चलायमान औसत पिछले 6 महीनों की मांग को 6 से भाग देने पर प्राप्त होता है। प्रत्येक माह गुजरने पर उसका आंकड़ा पिछले पांच महीनों के योग में जोड़ दिया जाता है और सबसे First महीने को हटा दिया जाता है। संक्षेप में, चलायमान औसत पिछले 6 महीने की प्रवृत्ति का माप है और यह श्रृंखला में अगले मान, जो कि अगले महीने की मांग होती है, का आंकलन है।v

7. बहिर्वेशन 

बर्हिवेशन पुराने अनुभवों के आधार पर भविष्य प्रवृत्ति को प्रस्तुत करने का Single तरीका है। इस प्रकार यह समय श्रृंखला की तरह ही है। यदि Single कम्पनी हर वर्ष अपना विक्रय Single करोड़ से बढ़ा रही है तो यह आसानी से अनुमानित Reseller जा सकता है कि निकट भविष्य में भी वह ऐसा करना जारी रखेगी। इस प्रकार की पूर्वानुमान तकनीक का प्रयोग उद्योग के विकास, राष्ट्रीय आय अथवा जनसंख्या प्रवृत्ति का अनुमान लगाने में Reseller जाता है।

8. लीड तथा लैग विधि 

इस तरीके में विभिन्न प्रकार की सांख्यिकी के ऐतहासिक व्यवहार का परीक्षण Reseller जाता है जिससे कि यह सुनिश्चित Reseller जा सके कि वे सामान्य व्यावसायिक प्रवृत्ति (लीड समूह) से निरन्तर आगे हैं, प्रवृत्ति के साथ (क्वाइन्सिडैंट समूह) हैं, अथवा उससे पीछे रह गए हैं (लैग समूह)। ऐसे परिवर्तन बिन्दुओं के आधार पर पूर्वानुमान Reseller जाता है।

9. न्यूनतम वर्ग विधि 

पुराने विक्रय पर आधारित पूर्वानुमान के सही होने की संभावना होती है यदि भूत व भविष्य में परस्पर सम्बन्ध है। जब कर्इ वर्षों की विश्वसनीय ऐतिहासिक सूचना प्राप्त हो तो उस सूचना को विक्रय प्रवृत्ति दर्शाने के लिए आलेखित करना सहायक होता है।

10. इकोनोमिट्रिक माडल

इकोनोमिट्रिक माडल का प्रयोग पूर्वानुमान लगाने में Reseller जा सकता है। यह माडल आंकड़ों का विश्लेषण करने व अनुमान लगाने के सांख्यिकीय तरीकों पर आधारित है। ये परिणात्मक Reseller में Single क्रिया के चरों के परस्पर सम्बन्धों को व्यक्त करता है। इस प्रकार ठोस राष्ट्रीय उत्पाद (जी0एन0पी0) का प्रयोग पिछले सम्बन्ध के आधार पर भविष्य के विक्रय का अनुमान लगाने में Reseller जाता है। इस तरीके में मुख्य चरों को समीकरणों की श्रृंखला से जोड़ा जाता है। इकोनोमिट्रिक्स सांख्यिकी, आर्थिक सिद्धान्त व गणित को मिलाकर Single माडल बनाती है व किसी निर्धारित काल की आर्थिक सिद्धान्त व गणित को मिलाकर Single माडल बनाती है व किसी निर्धारित काल की आर्थिक क्रियाओं के बारे में अनुमान लगाती है।

11. प्रतिगमन विश्लेष्ेषण 

इसका प्रयोग दो या अधिक परस्पर सम्बन्धित क्रियाओं की श्रृंखला के सापेक्ष व्यवहार का अनुमान लगाने के लिए Reseller जाता है। इस प्रकार इस तरीके का प्रयोग करने से Single या अधिक सम्बन्धित चरों में बदलाव के फलस्वReseller Single चर में आये बदलाव का आकलन Reseller जा सकता है। उदाहरण के तौर पर बाजार में प्रति- स्पर्धा के स्तर का नियंत्रित अथवा उदार Meansव्यवस्था के साथ सम्बन्ध व उसका वस्तुओं की गुणवत्ता पर प्रभाव।

12. आदा-प्रदा विधि 

इसके अन्तर्गत प्रदा की मात्रा जानने से आदा का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह इस पूर्वधारणा पर आधारित है कि आदा और प्रदा में Single निश्चित सम्बन्ध है। इस प्रकार यदि हम देश की सम्पूर्ण र्इंधन मांग का आंकलन कर सकते हैं तो हम रसोर्इ गैस का कितना उत्पादन Reseller जाय, इस बात का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। इसी प्रकार नये कनेक्शन की प्रतीक्षा सूची दूर-संचार विभाग द्वारा नर्इ लाइनों की भविष्य विस्तार योजना का निर्णय लेने में सहायता कर सकती है।

पर्यावरण विश्लेषण के लाभ

  1. पर्यावरण विश्लेषण का विचार पर्यावरण And संगठन के बारे में व्यक्ति को जागरूक बनाता है।
  2. पर्यावरण विश्लेषण व्यवसायी को वर्तमान And भविष्य की चुनौतियों And अवसर को पहचानने में मदद करता है।
  3. पर्यावरण विश्लेषण व्यवसाय को प्रभावित करने वाले घटकों के बारे में बहुत ही लाभदायक And आवश्यक जानकारी उपलब्ध करता है।
  4. पर्यावरण विश्लेषण किसी उद्योग विशेष में होने वाले परिवर्तनों को समझने में मदद करता है।
  5. तकनीकी पूर्वानुमान भविष्य में होने वाली चुनौतियों And अवसर की जानकारी देता है।
  6. पर्यावरण विश्लेषण का Single महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह खतरों को पहचानने में मदद करता है।
  7. व्यवसाय को अपने रणनीतिक निर्णय लेने में पर्यावरण विश्लेषण Single Need है।
  8. व्यवसाय को अपने रणनीतिक निर्णयों में फेरबदल करने में पर्यावरण विश्लेषण मदद करता है।
  9. पर्यावरण विश्लेषण प्रबन्धकों को प्रगतिशील, सावधान And सूचित रखता है।

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