नेपाल का History
मध्य हिमालय क्षेत्र या घाटी क्षेत्र में अनेक प्रमुख नदियाँ, जिनमें सेती, करनाली, हेरी-काली गण्डकी, त्रिशूली, संकोसी, अरूण तथा तामूर बहती हैं। नेपाल में स्थित All नदियाँ चार प्रमुख नद् अवस्थाओं करनाली, नारायणी, गण्डकी तथा कोसी का निर्माण करती हैं, जो घाटी क्षेत्र के महाखण्डों से होकर बहती हैं। मध्य हिमालय क्षेत्र में 1000 से 2000 मीटर के मध्य पर्वत श्रृंखलाऐं स्थित है। इस क्षेत्र में कृषि करने के लिए अनेक समतल घाटियाँ पायी जाती हैं, । नेपाल का दक्षिणतम क्षेत्र तराई का क्षेत्र कहलाता है, जो सामान्यतया समतल तथा उर्वर है। प्राय: देखा जाए तो नेपाल का अधिकतम क्षेत्र गंग प्रदेश का उत्तरी विस्तार है।
सम्भवत: नेपाल में 2,500 वर्ष के पूर्व ही तिब्बती-बर्मीज मूल के लोग आ चुके थे। इसी प्रकार नेपाल में इन्डो-आर्यन जातियों ने 1,500 ईशा पूर्व के आसपास प्रवेश Reseller। करीब 1,000 ईशा पूर्व नेपाल में छोटे-छोटे राज्य और राज्य संगठनों की स्थापना हुई। सिद्धार्थ गौतम (ईसा पूर्व 563-483) शाक्य वंश के क्षत्रिय थे, जिन्होंने अपना राजकाज छोड़कर तपस्वी का जीवन निर्वाह Reseller और अपनी तपस्या के कारण वह बुद्ध बन गए। नेपाल का चौथी शताब्दी में गुप्तवंश के अधीन कठपुतली राज्य बनने के 250 ईसा पूर्व तक इस क्षेत्र में उत्तर भारत के मौर्य साम्राज्य का प्रभाव पड़ा। नेपाल में वैशाली के लिच्छवियों के राज्य की स्थापना 5वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में आकर हुई, जो 8वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में अस्त हो गया और इसके साथ ही नेपाल में सन् 879 ई0 से नेवार (नेपाल की Single जाति) युग का उदय हुआ, फिर भी इन लोगों के देशभर में नियन्त्रण का आकलन कर पाना मुश्किल है। दक्षिण भारत से आए चालुक्य साम्राज्य का प्रभाव नेपाल के दक्षिणी भूभाग में 11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के आस-पास दिखाई पड़ता है। प्राय: ऐसा माना जाता है कि चालुक्यों के प्रभाव में आकर ही नेपाल में धार्मिक परिवर्तन होने लगा, क्योंकि उस समय Kingों ने बौद्ध धर्म को छोड़कर हिन्दू धर्म का समर्थन Reseller।
नेपाल राष्ट्र में प्रमुख औद्योगिक जिलों की संख्या 11 हैं। जिनके नाम बालाजु, हिटौडा, पाटन, नेपालगंज, धारन, पोखरा, भुटवल, भक्तपुर, वीरेन्द्र नगर, धनकुटा और राजबिराज औद्योगिक क्षेत्र है। नेपाल में संचालित अनेक उधोग है, जिनमें मुख्य उद्योगों की श्रेणी में जूट उद्योग, कागज उद्योग, कपड़ा उद्योग, चीनी, सिगरेट, माचिस, चाय और साबुन उद्योग, सीमेंट और टैनिंग उद्योग को शामिल Reseller जाता है। इसके अलावा नेपाल के कुटीर उद्योग का अभिन्न भाग के Reseller में सूती वस्त्र उद्योग, ऊनी कपड़े And कालीन, मेटेल वक्र, काष्ठ उद्योग, बांस आधारित उद्योग और चमड़ा उद्योग आते है। नेपाल Single कृषि पर आधारित Meansव्यवस्था, पहाड़ी भूमि क्षेत्र, मिश्रित Meansव्यवस्था तथा तेज गति से बढ़ती जनसंख्या तथा पूंजी निवेश की गति का धीमा स्तर तथा विदेशों से प्राप्त आर्थिक सहायता पर ज्यादा निर्भरता वाला देश है। इन All के कारण नेपाल के विकास में रूकावट बना हुआ है।
भारत के समान ही नेपाल भी Single कृषि प्रधान देश है और इसकी लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्य में लगी हुई है किन्तु नेपाल का लगभग 10 प्रतिशत भाग ही कृषि योग्य है। नेपाल में उत्पादित होने वाली मुख्य फसलें मक्का, धान, गेहूं, जौ और ज्वार-बाजरा हैं, इसके अलावा नेपाल की नगदी फसलों में गन्ना, तिलहन, तम्बाकू, आलू और जूट मुख्य हैं। नेपाल को Single हिन्दू राष्ट्र के Reseller में नेपाल के महाKing द्वारा सन् 1962 ई0 में स्थापित Reseller गया। यहां हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले नागरिकों की संख्या सबसे ज्यादा है, जो कुल आबादी का लगभग 85 प्रतिशत से अधिक हैं। इस हिन्दु आबादी की अगर भारत में हिन्दुओं के प्रतिशत से तुलना की जाए तो यह उससे भी अधिक है। उसके बाद नेपाल में Second स्थान पर बौद्ध धर्म को मानने वाले आते हैं, जो कि 7.78 प्रतिशत है तथा Third स्थान पर इस्लाम धर्म का प्रतिशत 3.53 है। उसके बाद नेपाल में कुछ अल्पसंख्यक समुदाय जैसे ईसाइयों का 0.17, जैन धर्म का प्रतिशत 0.04 है। साथ ही नेपाल में अचिन्हित धर्मावलिम्ब्यों का प्रतिशत 0.06 है।
नेपाल में नेपाली, मैथिली, भोजपुरी, थारू, तमंग And नेवारी छह मातृभाषाएं बोली जाती हैं। इन All में नेपाली बोलने वालो की संख्या सबसे अधिक हैं। नेपाल में मातृभाषाओं के अलावा 18 स्थानीय भाषाएं भी बोली जाती है-जो कि क्रमश: राई, मगर, अवधी, लिम्बू, गुरंग, उर्दू, हिन्दी, शेरपा, राजवंशी, चिपांग, बंगाली, सतार, धनुवार, मारवाडी, झांझर, धीमल, तमिल और मांझी हैं। इन मातृभाषाओं तथा स्थानीय भाषाओं के अलावा आठ विदेशी भाषाएं संथाली, थकाली, दराई, जीरेल, राजी, अंग्रेजी, कुम्हल तथा ब्यांसी भी बोली जाती है। इन भाषाओं में नेपाली नेपाल की राजभाषा है और इसी के कारण से यहॉ के लोगों को भी नेपाली कहा जाता है। तिब्बत And भारत से नेपाल की संस्कृति मिलती-जुलती दिखाई देती है। इन देशों की वेशभूषा And पकवान इत्यादि Single जैसे ही हैं। नेपाल के प्रधानमंत्री जंग बहादुर राणा की विदेश यात्रा के बाद सन् 1894 ई0 में स्थापित ‘दरबार हाईस्कूल’ से नेपाल में आधुनिक शिक्षा की शुरूआत हुई थी, इस यात्रा के पूर्व यहॉ धर्मशास्त्रीय दर्शन पर ही आधारित शिक्षा मात्र दी जाती थी। नेपाल के विद्याथ्र्ाी अपने आगे की उच्च शिक्षा भारत आकर ग्रहण Reseller करते थे। नेपाल के प्रधानमंत्रियों में कलकत्ता विश्वविद्यालय से मैट्रिक की सनद प्राप्त करने वाला चन्द्र शमशेर First व्यक्ति था। नेपाल में आधुनिक शिक्षा की शुरूआत होने के बाद भी यह आम नेपाली जनता के लिए सर्वसुलभ नहीं थी। नेपाल के उच्च पदाधिकारी राणावंशीय ही First हो सकते थे। नेपाल सदीयों से ही जातियों का Single अजायबघर रहा है। इसकी अधिकांश जातियां तिब्बत के निवासियों से बहुत मिलती-जुलती हैं। नेपाल में गोरखा जाति Word का प्रचलन 12वीं शताब्दी में हुआ, काठमाण्डू के पश्चिम में गोरखा नगर बसा हुआ है, यहां पर प्राचीन काल में शैवमत के प्रचारक गुरू गोरखनाथ तपस्या करते थे, प्राय: ऐसा माना जाता है कि उन्हीं के नाम पर यहां के रहने वाले गोरखे कहे जाते हैं।
नेपाल में ब्राम्हणों के अलावा ठकुरी And खस जाति के क्षत्रिय अधिक प्रसिद्ध हैं। ठकुरी क्षत्रियों की उप-जातियों में शाह, शाही, सेन, मल्ल, खान And चन तथा खस क्षत्रियों की उप-जातियों में पांडे, थापा, बस्नेत, बिष्ट And कंवर विशेष प्रसिद्ध है। नेपाल में ठकुरी And खस शुद्ध हिन्दू धर्म को मानने वाली जातियॉ है। नेपाल के गोरखा अपनी ही जाति में विवाह करते है और इस प्रकार गोरखा अपना रक्त शुद्ध रखने पर गर्व करते है। परन्तु नेपाल में तामांग, गुरूंग And मगर मूलत: बौद्ध जातियां हैं, जो केवल नाम-मात्र के लिए ही हिन्दू हैं। प्राय: ऐसा माना जाता है कि नेपाली जातीय संCreation की उत्पत्ति Indian Customer जातीय संCreation से हुई हैं।8
नेपाल की प्राचीनतम निवासी नेवार जाति के लोगों को कहॉ जाता हैं। जो बाद के दिनों में काठमाण्डू घाटी में आ कर बस गए। इन लोगों द्वारा ही नेपाल के व्यापार And उद्योगों पर अपना Singleाधिकार स्थापित कर लिया गया था। मगर And गुरूँग जाति पश्चिमी नेपाल के निवासी हैं, यह दोनों जातियॉ मंगोल जाति के वंशज प्रतीत होते हैं। इनके विषय में यह माना जाता है कि यह लोग देश-विदेश की सैनिक सेवाओं में लगे हुए हैं। नेपाल के सुदूर पूर्व की पहाड़ी प्रदेशों में निवास करने वाली जातियां लिम्बूज And किराती हैं। यह शिकारप्रिय जातियां हैं। Indian Customer राज्य सिक्किम के पास लेपचा जाति के लोग पाए जाते हैं। जिनका रहन-सहन भोटिया लोगों के समान है। नेपाल के उत्तरी सीमावर्ती क्षेत्रों में शेरपा, थाकल And भोटिया जाति के लोग निवास करते हैं। इनकी संस्कृति, धर्म तथा रहन-सहन तिब्बती लोगों के समान है। इनके अलावा नेपाल के तराई प्रदेश में थारू, थिमल And दनवार जाति के लोग पाए जाते हैं।
नेपाल ने जो वर्तमान आकार प्राप्त Reseller है। इसे Single देश के Reseller में, 18वीं शताब्दी में ही विकसित Reseller गया था, परन्तु नेपाल का ऎतिहासिक आविर्भाव First सहस्त्राब्दि ईसा पूर्व से ही हो गया था। पुरातात्विक प्रमाणों से यह पता चलाता है कि नेपाल के कुछ क्षेत्र दस हजार वर्षों से भी अधिक से अधिवासित हैं। काठमाण्डू क्षेत्र के First King किराट पर्वतीय जनजाति माने जाते हैं, परन्तु लगभग ईसवी के आसपास स्थापित लिच्छवी वंश नेपाल का निश्चित Reseller से First राजवंश था। 12वीं शताब्दी में लिच्छिवी शासनकाल से ही नेपाल के राजनैतिक History की प्रमाणिक जानकारी प्राप्त होती है, फिर भी ऐसा माना जाता है कि नेपाल पर गोपाल, किरात वंशियों और सोम वंशियों ने भी शासन Reseller। जिनके विषय में साक्ष्य नेपाल में प्राप्त शिलालेख And हस्तलिखित वंशावलियां तथा अन्य प्राचीन साहित्यों से प्राप्त होती हैं। नेपाल के किरात King सुगिको के शासनकाल में सम्राट अशोक काठमाण्डू आया था। नेपाल के पाटन में बौद्ध धर्म का व्यापक प्रचार-प्रसार सम्राट अशोक ने Reseller। डेनियल राइट की वंशावली के कथन से यह साक्ष्य प्राप्त होता है कि सम्राट अशोक अपनी पुत्री चारूमती के साथ 14वें किरात King King सुगिको के शासनकाल में काठमाण्डू की यात्रा पर नेपाल पहुँचे थे।
नेपाल के किरात King को लगा कि सम्राट अशोक अपनी विशाल सेना के साथ काठमाण्डू घाटी पर हमला करने आ रहा है। इस भय के कारण सुगिको And अन्य किरात King अपना-अपना राज्य छोड़कर गोकर्ण के वनों में जा छिप गए। बाद में उनका भय निराधार निकला। यद्यपि शेखर सिंह गौतम की पुस्तक ‘भारत खण्ड और नेपाल’ में किरात वंश Single शक्तिशाली, विशाल And समृद्धशाली वंश था। इस पुस्तक के According बलोचिस्तान जो अब पाकिस्तान में है, इसे भी किरातों ने ही बसाया था। नेपाल में किरातों की शक्ति जब कमजोर हुई तो सोमवंश राजपूतों का हमला शुरू हुआ। नेपाल में आखिरी किरात वंश का King ‘मस्ती’ था। जिसको सोमवंशी King निमिष ने पराजित Reseller तथा इसके साथ ही काठमाण्डू घाटी पर सोमवंश का परचम लहराने लगा। King निमिष के बाद क्रमश: सत्ताक्षर, काकवर्मा And पशुपेक्षदेव इत्यादि प्रमुख सोमवंशिय King हुए। नेपाल में भगवान पशुपतिनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार पशुपेक्षदेव ने ही कराया था, साथ ही उसने अपने राज्य को व्यवस्थित करने की भी कोशिश की थी। इसके बाद नेपाल का King सोमवंशी भास्कर वर्मा हुआ, इसके द्वारा सोमवंशी राज्य की सीमाओं का और अधिक विस्तार Reseller गया था। अन्त में भास्कर वर्मा द्वारा लिच्छवी वंशीय भूमि वर्मा को अपना उत्तराधिकारी मान लिया गया। लेखक बालचन्द्र शर्मा द्वारा किरात शासन काल को ‘‘नेपाल संस्कृति का उत्पत्तिकाल’’ तथा ‘‘नेपाल की ऐतिहासिक Resellerरेखा’’ का काल माना गया है।
भारत के लिच्छिवि वंश द्वारा नेपाल के काठमाण्डू में वैशाली छोड़कर प्रवेश Reseller गया था। डॉ0 मजूमदार ने यह माना हैं कि लिच्छिवि वैशाली से ही काठमाण्डू की ओर आए थे, लेकिन डॉ0 स्मिथ लिच्छिवि राज्य को पाटिलीपुत्र समीप मानते हैं। इस प्रकार डॉ0 स्मिथ And डॉ0 ब्लयूर दोनों कि Single राय हैं। दोनों ही यह मानते हैं कि लिच्छिवि मूल Reseller से नेपाली ही थे। इन All तर्कों के बाद भी पण्डित भगवानलाल के संग्रहीत लिच्छिविराज जयदेव परमचक्रकाम के शिलापट्ट में भी वंशावली दी गयी है और इस वंशावली से स्पष्ट होता है कि लिच्छिवियों ने लम्बे समय तक नेपाल राष्ट्र पर शासन Reseller था। सुपुष्प लिच्छवियों का First King था। सुपुष्प पाटलिपुत्र के गुप्त Kingओं से पराजित होने के बाद नेपाल की तराई में आ गया।
नेपाल में प्राप्त शिलालेखों से लिच्छिवियों द्वारा अपने आप को कई उपाधियों से सुशोभित करने का भी पता चलता है। इनके द्वारा महादण्डनायक, महाप्रतिहार, युवराज और महासामान्त आदि उपाधियों को धारण Reseller गया था। लिच्छिवियों And भारत के गुप्त Kingों के मध्य बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध होने का भी प्रमाण History में मिलता है। इसी कारण से डा. फ्लोट ने गुप्त संवत को वास्तव में लिच्छिवि संवत ही लिखा है। समुद्रगुप्त के पिता चन्द्रगुप्त तथा उनकी पत्नी लिच्छिवी कुमार देवी से नेपाल में गुप्त संवत का प्रचलन प्रारम्भ हुआ। सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के साथ लिच्छिवीराज की पुत्री कुमार देवी का विवाह होने के उपरान्त लिच्छिवियों तथा गुप्तों के मध्य घनिष्ठता बढ़ने के बाद गुप्त साम्राज्य की मुद्रा पर ‘लिच्छिवय’ Word तक उत्कीर्ण होने लगा। कुमार देवी से ही समुद्रगुप्त का जन्म हुआ।
वंशावली के According लिच्छवि King जयकामदेव की मृत्यु के उपरान्त नुवाकोट का ठकुरी वंशी King भास्करदेव काठमाण्डू घाटी के Single प्रभाग का King बना। नेवारी भाषा में हस्तलिखित Single ग्रंथ ‘विष्णु धर्म’ में भास्करदेव पर टिप्पणी की गयी है कि उसके द्वारा परम भट्टारक महाKingधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण Reseller गया था। भास्कर देव के उपरान्त बलदेव ठकुरी वंश का King बना। बलदेव के बाद नागार्जुन देव King हुआ। इस वंश का अन्तीम King शंकरदेव हुआ। शंकर देव के शासन काल के दौरान उसकी राजधानी पाटन-ललितपुर थी। उसके समय में ही धर्म पुत्रिका, पष्ट सहस्त्रिका And बोधिचर्मावतार जैसे ग्रंथों की Creation हुई। नेपाल पर लिच्छिवि Kingओं का शासनकाल करीब 900 सालों तक रहा।
ठकुरी वंश ने नेपाल की चित्रकला को बहुत हद तक प्रभावित Reseller। Ultra site वंशी क्षत्रियों ने ठकुरी वंश के सामन्तों तथा Kingओं को पराजित कर अपने राज्य की स्थापना की। वामादेव इस वंश का पहला क्षत्रिय King हुआ। इसी का Single नाम वाणदेव भी मिलता है। इसके बाद रामहर्ष देव तथा सदाशिव देव King हुए। इन Kingों के उपरान्त इन्द्रदेव और फिर मानदेव King हुए। मानदेव ने अपने पुत्र नरेन्द्र देव को शासन का कमान सौंप दिया और स्वयं बौद्ध चक्र बिहार में बौद्ध भिक्षु के Reseller में अपना शेश जीवन व्यतीत Reseller। नरेन्द्र देव बाद आनन्द देव King हुआ। आनन्द देव ने सन् 1165 ई0 से सन् 1166 ई0 तक शासन Reseller। कुछ हस्तलिखित ग्रंथ आनन्द देव के शासनकाल को सन् 1156 ई0 से लेकर सन् 1166 ई0 तक मानते हैं। इसके बाद रूद्रदेव King हुआ। रूद्रदेव ने करीब 8 वर्ष 1 माह तक शासन Reseller, उसके बाद सम्पूर्ण सत्ता अपने पुत्र के हाथों में सौंप कर Single साधारण पुरूष की तरह जीवन जीने लगा।
रूद्रदेव के उपरान्त अमृतदेव ने शासन संभाला। अमृतदेव करीब 3 साल 11 माह तक King रहा। इसके उपरान्त रत्नदेव King हुआ। इसके उपरान्त गुणकामदेव, लक्ष्मीकामदेव And विजयकामदेव नामक King हुए। अन्त में विजयकामदेव का उत्तराधिकारी अरिमल्लदेव हुआ। मल्ल Fight करते समय ही उसे सन्तानोत्पत्ति का समाचार प्राप्त हुआ और उसने अपने पुत्र के नाम के साथ मल्ल की उपाधि जोड़ दी। प्रजातियों के Historyकारों के According Ultra siteवंशी Kingों के द्वारा अपना अधिक समय Ultra site की उपासना में लगाया जाता था। नेपाल में मल्लों का उदय 12वीं शताब्दी के अंतिम वर्श में माना गया है और इन्होंने सन् 1769 ई0 तक शासन Reseller। प्राय: ऐसा माना जाता है कि यह भारत से आए हुए राजपूत थे। 13वीं शताब्दी काल के दौरान अलाउद्दीन खिलजी के हमले से भयभीत होकर चित्तौड़ के King चित्रसेन के भाई जिलराय And अंजलि राय अपने Seven सौ सैनिकों के साथ हिमालय के तलहटी में जाकर बस गए। उस समय गंडक नदी के पश्चिमी क्षेत्र में करम सिंह का शासन था। जिसकी राजधानी राजपुर थी। जिलराय And अंजलि राय ने लगभग 20 वर्षों तक King करम सिंह की सेवा की और इस सेवा के उपरान्त उनके राज्य पर अधिकार कर लिया। इन्हीं के वंषजों में Earth नरायण “ााह गोरखा राज्य का King हुआ। गोरखा King Earth नारायण शाह ने सन् 1769 ई0 में अनेक छोटे-छोटे राज्यों को मिलाकर नेपाल राज्य की स्थापना की।
नेपाल में शाहवंश का अंतिम King राजेन्द्र हुआ। इनके द्वारा आपसी प्रतिस्पर्धा में लगे गुटों को Single Second से भिड़ाते रहने के प्रयासों ने नेपाल को राजनैतिक अराजकता की ओर धकेल दिया। इनके शासनकाल में Single के बाद Single तेजी से मंत्रिमंडल में बदलाव हुए। जिससे नेपाल देश गृह Fight के कगार पर पहुंच गया और इसके कारण देश पर लगभग पूरी तरह छिन्न भिन्न हो जाने का खतरा पैदा हो गया। इसका लाभ कुंवर जंगबहादुर ने उठाया, जोकि History में जंग बहादुर राणा के नाम से जाना जाता है। उसने सन् 1846 ई0 में, राजमहल में भारी कत्लेआम कराकर All विरोधी राजनैतिक गुटों का सफाया कर दिया। साथ ही उसने King के विशेषाधिकारों को समाप्त कर सत्ता पर कब्जा Reseller और निरकुंश सत्ता को अपने परिवार के हाथों में केन्द्रित कर लिया। इस प्रकार जंग बहादुर ने Single नई खोज की, जो राणा शासन को पिछले पारिवारिक शासनों से अलग करती है। उसने King सुरेन्द्र से जबर्दस्ती सन् 1856 ई0 की सनद (राजसी आदेश) जारी करवाकर राणा शासन के अस्तित्व के लिए वैधानिक आधार प्रदान Reseller। इस सनद के आधार पर उसके द्वारा अपने परिवार की हैसियत को राजनैतिक संCreation के भीतर स्थापित कर लिया गया। इस दस्तावेज ने जंग बहादुर And उसके उत्तराधिकारियों को, नागरिक तथा सैन्य प्रशासन, न्याय And विदेशी संबंधों में निरंकुश सत्ता प्रदान कर दी, जिसमें King के आदेशों को राष्ट्रीय हितों के लिए अपर्याप्त अथवा विरोधाभासयुक्त होने पर नजरअंदाज कर देने का अधिकार शामिल था। इसप्रकार राजसी परिवार ने अपनी All संप्रभु शक्तियों का समर्पण कर दिया और स्वयं महल के आहाते में Singleांतवास में रहने लगे। इसके बदले शाह Kingओं को अधिक गौरवशाली, बल्कि Single तरह से विडम्बनापूर्ण महाKingधिराज (Kingओं के King) की उपाधि से सम्मानित Reseller गया।
सन् 1856 ई0 की सनद के द्वारा प्रधानमंत्री का पद शाश्वत Reseller से राणाओं को प्राप्त हो गया और इसके साथ ही उन्हें काशी And लामजुंग के महाKing की उपाधि भी प्रदान कर दी। इस सनद ने देश में राणा परिवार के शासन के लिए वैधानिक आधार उपलब्ध करा दिया। प्राय: कहा जाता है कि जंग बहादुर राजतंत्र की संस्था से पूरे तौर पर मुक्ति पाना चाहता था, जिसके लिए कुछ Historyकारों का मनना है कि उसने भारत के ब्रिटिश Kingों की स्वीकृति प्राप्त करनी चाही थी। किन्तु वह इसमें सफल नहीं हो सका तथा उसे शाह वंश के बंधक राजतंत्र के साथ ही संतोष करना पड़ा, जो कि राणा के प्रभुत्व वाली राजनैतिक व्यवस्था के अन्तर्गत Single संस्था के Reseller में बरकरार रहा। इसप्रकार नेपाल में जो राजनैतिक प्रणाली उभर कर सामने आयी, उस प्रणाली को राणाशाही अथवा राणावाद कहा जाता है। राणा प्रKingों द्वारा राजनैतिक प्रशासनिक प्रणाली के स्वेच्छाचारी चरित्र को बनाए रखा गया और राणा प्रधानमंत्री ही सत्ता का वास्तविक स्रोंत बन गया। शाह के शासन के दौरान राणा परिवार के सदस्यों को राजनैतिक And प्रशासनिक पदों पर बैठाने का कार्य पुराने कुलीनों को हटाकर Reseller गया। इस प्रकार नेपाल में राणा प्रधानमंत्री का पद उत्तराधिकार के Reseller में Single के बाद Second भाई को मिलता गया। राणा Kingों ने फरमान And उद्धोषणाएं जारी कर देश के प्रशासन को चलाने का कार्य Reseller। उन्होनें इसके लिए नेपाल में किसी संविधान का निर्धारण नहीं Reseller। इस प्रकार राणाओं की कानूनी And प्रशासनिक प्रणाली फरमानों And उद्धोषणाओं पर ही आधारित रही।
नेपाल में यद्यपि राणा King Single ऐसी निरंकुश राजनैतिक प्रणाली स्थापित करने का प्रयास करते रहे, जो देष को अलग-थलग रखने, समाज को राजनैतिक Reseller से दबाकर रखने तथा साथ ही नेपाल की Meansव्यवस्था को पिछड़ा हुआ बनाए रखने में सफल साबित हो सके, परन्तु देश विश्व व्यवस्था में होने वाली परिवर्तन की हवाओं से अछुता नहीं रह सका, जो उस समय समूचे एशिया में बह रही थीं। 20वीं शताब्दी के प्रारम्भ काल में उदयीमान शिक्षित मध्यम वर्ग द्वारा राणा निरंकुशता की आलोचना की जाने लगी तथा राजनैतिक And सामाजिक पिछड़ेपन के लिए राणाओं को दोषी ठहराया जाने लगा। इसी काल के दौरान भारत में जोर शोर से चल रहे सामाजिक, धार्मिक And साम्राज्यवाद विरोधी आंदोलनों ने भी नेपालियों को प्रभावित Reseller, जिसने राणा तानाशाही के खिलाफ आवाज उठाने के लिए शक्ति का कार्य Reseller। राजवंषों ने नेपाल के साहित्य तथा वहाँकी वास्तुकलाओं को प्रभावित करने का कार्य Reseller। अंशु वर्मा द्वारा देवपाटन का 9 मंजिला कैलाशकुट भवन सन् 589 ई0 में बनवाया गया था। उसने महाKingधिराज की उपाधि अपने नाम के साथ जोड़ी And मुद्राएं चलवाई। King नरेन्द्रदेव ने राजदरबार बनवाया, जो पगौड़ा शैली पर आधारित था। पशुपेक्ष्यदेव ने काशी से मिट्टी मंगवा कर पशुपतिनाथ मंदिर का निर्माण कराया And मंदिर के शिखर पर सोने की चादर चढ़वाई। इसी प्रकार King शिवदेव द्वारा भोट विष्टि गुटी की स्थापना की गई। जयदेव जो संस्कृत का विद्वान था, ने Single स्तुति पशुपतिनाथ मंदिर के पास शिला पर अंकित करवाई। जयदेव गुणकामदेव द्वारा ही सन् 713 ई. में काठमाण्डू नगर को स्थापित Reseller गया। इसके अलावा 9वीं शताब्दी में यहां कई मंदिर तथा स्तूप आदि बने। जिसमें स्वयंभूनाथ, काष्ठमण्डप, महाबौद्ध तथा कुम्भेश्वर प्रमुख है। गुणकामदेव ने इन्द्रयात्रा, कृष्ण यात्रा तथा लाखे यात्रा जैसे उत्सव शुरू करवाया।
ठकुरी वंश के अंतिम King शंकरदेव हुआ, इसके समय में अष्ट सहस्त्रिका, धर्म पुत्रिका, बोधि चर्मावतार जैसे ग्रन्थों की Creation की गई। नेपाल में मैथिली भाषा में सबसे अधिक नाटक राय मल्ल के वक्त में लिखे गए। जीतमित्र ने कई मंदिरों का निर्माण कराया And अश्वमेध नाट्य तथा जैमिनी भारत गं्रथ लिखे। इसप्रकार लिच्छिवियों से लेकर मल्लों तक ने नेपाल की प्राचीन कला तथा साहित्य को गहरे ढ़ंग से प्रभावित करने का कार्य Reseller। इनके द्वारा अनेकों मन्दिरों का जीर्णोद्धार करते हुए ऐतिहासिक भवनों का निर्माण करवाया गया। नेपाल पर मोनादेव के शासन का वर्णन मिलता है, जो Single लिच्छवी King था, लेकिन विभिन्न छोटे-छोटे रियासतों पर विजय प्राप्त करके उन्हें Singleीकृत कर सन् 1769 ई0 में नेपाल राज्य की स्थापना करने वाला King गोरखा King Earthनारायण शाह था। शाह Kingों ने Single निरंकुश राजनैतिक प्रणाली स्थापित Reseller, जिसमें राजतंत्र सत्ता के केन्द्र में था, किन्तु King ही शक्ति का Single मात्र स्रोंत था। शाह King के मुंह से निकलने वाले Word तथा आदेश ही देश के नियम And कानून माने जाने लगे थे। King के निर्णयों को चुनौती नहीं दी जा सकती थी और इसके साथ ही वह हर तरह के न्याय का अंतिम स्रोत था। उत्तरवर्ती काल में, King परिवार के भीतर सत्ता के लिए होने वाले आंतरिक संघर्श ने इनकी स्थिति को कमजोर बना दिया। Single अन्य कारक ने भी इनकी परिस्थिति को ज्यादा बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शाहों के लिए यह Single दुर्घटना ही थी कि 18वीं शताब्दी के अंतिम दशक में Single संक्षिप्त अंतराल को छोड़कर सन् 1777 ई0 से सन् 1832 ई0 तक राजसिंहासन पर नाबालिक लोगों को King बनाकर बैठाना पड़ा। इसके कारण प्रति Kingों And मंत्रियों (देसी भाषा में जिन्हें ‘‘मुक्तियार’’ कहॉ जाता था) को, राजनैतिक प्रक्रिया से King को लगभग अलग-थलग रखकर, अपने हाथों में सत्ता को केन्द्रीत करने का अवसर मिल गया। पुन: उच्च जाति के अनेक प्रतिभाशाली परिवार राज्य के तीव्र विस्तार के चलते शाहों की King प्रणाली में शरीक हो गए, जिनकी शाह वंश के प्रति वफादारी अथवा सेवा की कोई स्थापित परम्परा नहीं थी। इस प्रक्रिया में गोरखा कुलीन परिवारों के बीच सत्ता के केन्द्रीयकरण को तथा जनता की जनतांत्रिक आकांक्षाओं को उनके द्वारा स्वीकार न किए जाने का Indian Customer नेतृत्व ने पसन्द नहीं Reseller। नेपाल की जनवादी शक्तिया को भारत की जनता ने भी समर्थन प्रदान Reseller।
इस तरह इस काल में राजनैतिक प्रणाली Single पिरामिड नुमा संCreation बनकर रह गई थी। जो कि वास्तव में कुछ प्रमुख ब्राह्मण परिवारों की सलाह पर चलने वाली प्रणाली के अलावा कुछ नहीं थी, इन्हीं परिवारों के मध्य सत्ता तथा प्रभाव का आवंटन समय-समय बदलता रहा, जिसमें प्रमुख थे, चौतरियाओं (शाह परिवार की Single संगोत्रीय शाखा) का सन् 1785 ई0 से सन् 1794 ई0 तक प्रभुत्व रहा, सन् 1799 ई0 से सन् 1805 ई0 तक पाण्डे, तथा सन् 1806 ई0 से सन् 1837 ई0 तक थापाओं का दबदबा रहा। इन All में भीमसेन थापा ने राज्य की पूर्णशक्ति धारण कर ली थी।
इन All के शासन काल में राजनैतिक प्रक्रिया के लक्ष्य तथा तरीके अधिकांश तौर पर अपरिवर्तित ही रहे। इसप्रकार इसकाल में इन All परिवारों ने अनिवार्य Reseller से Single ही तरह से प्रशासन का संचालन Reseller था। इन्होनें अपना अधिक ध्यान भौतिक And राजनैतिक सौभाग्य को बढ़ाने पर लगाया। इस तरह से परिवारवाद ही राजनैतिक प्रणाली की आत्मा बन गया और प्राथमिक वफादारी राष्ट्र अथवा राजतंत्र की संस्थाओं के बजाए, परिवार के प्रति ही रही। जिसके कारण से नेपाली प्रशासन का गठन भी पारिवारिक अथवा प्रभुत्वशाली परिवारों की अनेक शाखाओं के बीच बंट गई। इसप्रकार से किसी को सौंपी गई रेजीमेण्टों की संख्या ही उसकी अपेक्षित शक्ति And प्रभाव की सबसे विश्वस्त सूचक बन गई। यहां तक कि इस काल के दौरान अव्यवस्था वाली राजनैतिक परिस्थिति में भी शाह वंश ने अपनी सरकार के लिए वैधता के लिए जरूरी अंतिम स्रोत के Reseller में, King परिवारों द्वारा जटिल जोड़-तोड़ के लंबे समय के दौरान राजसिंहासन में वह निरन्तरता तथा स्थिरता प्रदान करता रहा। किन्तु King परिवार स्वयं भी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं से बचा नहीं रहा और उसका व्यवहार भी अक्सर कुलीनों की भांति परिवारवाद को बढ़ाने की भावना का शिकार रहा। यह सबसे अधिक थापा परिवार के पतन ( सन् 1837 ई0 ) तथा राणा परिवार के उदय ( सन् 1846 ई0 ) के बीच के काल में दिखाई दिया, जबकि King राजेन्द्र ने राजसी परिवार की सत्ता को बहाल करने की कोशिश की। हालांकि उसके काल की बुनियादी राजनैतिक परिस्थिति प्रतिकूल थी और उसकी कोशिशों से अंतत: राजवंश पर विपत्ति का पहाड़ टूट पड़ा।
गोरखा King Earth नारायण शाह द्वारा सन् 1769 ई0 नेपाली राष्ट्र की आधारशिला रखी गई। नेपाल देश Single राज्य के Reseller में सन् 1769 ई0 में ही अस्तित्व में आया किन्तु संविधान निर्माण की प्रक्रिया सन् 1948 ई0 में जाकर शुरू हो सकी। पुन: चार दशकों के अवधि के भीतर ही देश को संविधान निर्माण के अनेक प्रयासों के दौर से गुजरना पड़ा, विभिन्न अवधियों में, राज्य में राजनैतिक घटना विकास को भिन्न-भिन्न दिशाएं प्रदान करने वाले विभिन्न संविधान लागू किए गए। सन् 1950 ई0 में अधिनायकवादी राणा प्रणाली का तख्ता पलट के बाद, जो जनतांत्रिक प्रयोग Reseller गया था, उसे सन् 1960 ई0 में तब धक्का लगा, जब King महेन्द्र ने संसदीय स्वReseller वाली शासन प्रणाली को निरस्त करके King के प्रत्यक्ष शासन की स्थापना की। Single निरंकुश राजतंत्र के अधीन अपने प्रत्यक्ष शासन को वैधता का मुखौटा प्रदान करने के लिए King महेन्द्र ने सन् 1962 ई0 में पार्टी विहीन पंचायती लोकतंत्र, नामक Single प्रणाली लागू की। इस प्रणाली में, जन्मजात तौर पर जनतांत्रिक तत्व का अभाव था और साथ ही यह प्रणाली सच्ची प्रतिनिधि संस्थाओं की बहाली कर पाने में अक्षम थी। बहुदलीय जनतंत्र की स्थापना के लिए चलाये गए Single सफल संघर्ष के बाद सन् 1990 ई0 में पंचायती युग का अंत हो गया और देश में Single बार फिर संसदीय प्रणाली की स्थापना हो गई।