गुप्त काल का History

गुप्त वंश की स्थापना श्रीगुप्त ने की थी जो संभवतया वैश्य जाति से संबंधित थे। वे मूलत: मगध (बिहार) तथा प्रयाग (पूर्वी उ.प्र.) के वासी थे। उसके पुत्र घटोत्कच जिसने महाKing की उपाधि धारण की थी, Single छोटा-मोटा King प्रतीत होता है, किन्तु उसके विषय में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।

चन्द्रगुप्त First

गुप्त वंश की वास्तविक नींव चन्द्रगुप्त First के शासनकाल में (सन् 319 से 334) पड़ी। सन् 319 में उसके राज्यारोहरण को गुप्त साम्राज्य का प्रारम्भ माना जाता है। समस्त अभिलेखों में इसी का History मिलता है तथा उनके सामंतो में भी। उसने महाKingधिराज की उपाधि धारण की थी। उसका विवाह लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से हुआ था। चन्द्रगुप्त द्वारा ज़ारी की गई स्वर्ण मुद्राओं की श्रृंखला में इस घटना को described Reseller गया है। प्रतीत होता है कि इस वैवाहिक सम्बन्ध ने गुप्त सम्राट को वैधता, सम्मान तथा शक्ति प्रदान की। चन्द्रगुप्त का साम्राज्य मगध (बिहार), साकेत (आधुनिक अयोध्या) तथा प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) तक विस्तत था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) थी।

समुद्रगुप्त

समुद्रगुप्त (सन् 335-375) चन्द्रगुप्त First का उतराधिकारी बना। समुद्रगुप्त ने Fight तथा विजय की नीति का अनुसरण Reseller And अपने साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार Reseller। उसकी उपलब्धियों का सम्पूर्ण description उसके राजदरबारी कवि हरिसेन द्वारा संस्कृत में लिखे गए वर्णन में लिपिबद्ध Reseller गया है। यह आलेख इलाहाबाद के निकट Single स्तंभ पर described है। यह समुद्रगुप्त द्वारा जीते गए वंशों तथा क्षेत्रें के नाम को बतलाती है। उसने हर जीते हुए क्षेत्र के लिए भिन्न नीतियाँ अपनाई थीं।

गंगा यमुना दोआब में उसने Second राज्यों को बलपूर्वक सम्मिलित करने की नीति का अनुसरण Reseller। उसने नौ नागा Kingों को पराजित कर उनके राज्य को अपने साम्राज्य में मिलाया। तत्बाद वह मध्य भारत के वन प्रदेशों की ओर बढ़ा जिनका History ‘अतवीराज्य’ के Reseller में मिलता है। इन कबायली क्षेत्रें के King पराजित हुए तथा दासत्व को बाध्य हुए। इस क्षेत्र का राजनीतिक द ष्टि से भी व्यापक महत्त्व हैं क्योंकि इससे दक्षिण भारत को मार्ग जाता था। इसने समुद्रगुप्त को दक्षिण की ओर कूच करने में सक्षम Reseller तथा पूर्वीतट को जीतते हुए, बारह Kingों को पराजित करते हुए वह सुदूर काँची (चेन्नई के निकट) तक पहुँच गया। समुद्रगुप्त ने राज्यों को बलपूर्वक अपने साम्राज्य में सम्मिलित करने के स्थान पर उदारता का परिचय दिया तथा उन Kingों को उनके राज्य वापस लौटा दिए। दक्षिण भारत के लिए राजनीतिक समझौते की नीति इसलिए अपनाई गई क्योंकि उसे ज्ञात था कि Single बार उत्तर-भारत में अपने क्षेत्र में लौटने के पश्चात इन राज्यों पर नियन्त्रण स्थापित रखना दुष्कर होगा। अत: उसके लिए इतना पर्याप्त था कि ये King उसकी सत्ता को स्वीकारें तथा उसे कर तथा उपहारों का भुगतान करें।

इलाहाबाद अभिलेख के According पाँच पड़ोसी सीमावर्ती प्रदेश तथा पंजाब And पश्चिम भारत के नौ गणतन्त्र समुद्रगुप्त की विजयों से भयभीत हो गए थे। उन्होंने बिना Fight किए ही समुद्रगुप्त को धन तथा करों का भुगतान करना तथा And उसके आदेशों का पालन करना स्वीकार कर दिया था। अभिलेख से यह भी ज्ञात है कि दक्षिण-पूर्वी एशिया के भी कई Kingों से समुद्रगुप्त को धनादि प्राप्त होता था।

मुख्य Reseller से यह माना जाता है कि हालांकि उसका साम्राज्य Single विस्तृत भू-खण्ड तक फैला हुआ था, किन्तु समुद्रगुप्त का प्रत्यक्ष प्रशासनिक नियन्त्रण मुख्य गंगा घाटी में था। वह अपनी विजय का उत्सव अश्वबलि देकर मनाता था अश्वमेध And इस अवसर पर अश्वमेध प्रकार के सिक्के (बलि को described करते सिक्के) जारी करता था। समुद्रगुप्त केवल विजेता ही नहीं, बल्कि Single कवि, Single संगीतकार, तथा शिक्षा का महान संरक्षक था। संगीत के प्रति उसका प्रेम उसकी उन मुद्राओं से मुखरित होता है, जिसमें उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।

चन्द्रगुप्त द्वितीय

समुद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय उसका उत्तराधिकारी बना। उसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से भी जाना जाता है। उसने मात्र अपने पिता के साम्राज्य का विस्तार ही नहीं Reseller, बल्कि इस युग के अन्य वशों के साथ वैवाहिक संबंधों द्वारा अपनी स्थिति को भी सुद्ढ़ Reseller।

उसने नागा राजकुमारी कुवेरनाग से विवाह Reseller तथा उसे प्रभावती नामक पुत्री भी थी। प्रभावती का विवाह दक्षिण में शासन कर रहे वाकाटक वंश के King रुद्रसेन द्वितीय से हुआ था। अपने पति की मृत्यु के उपरान्त कलावती ने अपने पिता की सहायता से अपने अवयस्क पुत्र के संरक्षक के Reseller में शासन Reseller था। वाकाटक क्षेत्र पर नियंत्रण चंद्रगुप्त द्वितीय के लिए वरदान सिद्ध हुआ, क्योंकि अब वह अपने अन्य शत्रुओं पर और बेहतर तरीके से आक्रमण कर सकता था।

उसकी महानतम सैन्य उपलब्धि पश्चिमी भारत में 300 वर्षों से शासन कर रहे King साम्राज्य पर विजय रही। इस विजय के फलस्वReseller गुप्त साम्राज्य की सीमाएं भारत के पश्चिमी तट तक पहुंच गई मेहरौली, दिल्ली में स्थित Single लौह स्तंभ से हमें संकेत मिलते हैं कि उसके साम्राज्य में उत्तर-पश्चिम भारत तथा बंगाल के भी राज्य थे। उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारणा की थी Meansात् Ultra site के समान बलशाली। चंद्रगुप्त द्वितीय कला तथा साहित्य के संरक्षण के लिए विख्यात है। उसके दरबार में नवरत्न हुआ करते थे। संस्कृत के महान कवि तथा नाटककार कालिदास इनमें सर्वाधिक चर्चित रहे। चीनी बौद्ध तीर्थयात्री फाह्यान (सन् 404-411) ने उसके शासन काल में भारत की यात्रा की थी। उसने पांचवी शताब्दी के लोगों के जीवन का description दिया है।

गुप्तवंश का पतन

चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद उसका पुत्र कुमारगुप्त (सन् 415 से 455) सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। अपने पिता के साम्राज्य की रक्षा करने में वह प्रारंभ में सफल रहा, किन्तु उसके शासन के उत्तरार्द्ध में मध्य एशिया में शासन कर रहे हूणों से उन्हें चुनौती मिलनी प्रारंभ हो गई। बैक्ट्रिया पर अधिपत्य स्थापित करने के उपरान्त हूणों ने हिन्दुकुश पर्वत को पार कर भारत में प्रवेश Reseller। हूणों का First आक्रमण राजकुमार स्कन्दगुप्त द्वारा विफल कर दिया गया। किन्तु गुप्त King हूणों के उत्तरवर्ती आक्रमणों से अपने साम्राज्य की रक्षा नहीं कर पाए तथा बार-बार के आक्रमणों ने साम्राज्य को दुर्बल बना दिया। यह गुप्त साम्राज्य के विघटन के लिए उत्तरदायी घटकों में मुख्य घटक था। हूणों द्वारा लिखे गए आलेखों से ज्ञात होता है कि सन् 485 तक उन्होंने मालवा तथा मध्य भारत के बड़े हिस्से पर अधिपत्य स्थापित कर लिया था। पंजाब तथा राजस्थान भी उनकी झोली में थे। हूण वंश का First चर्चित King तोरमण था, जिसने मध्य भारत में भोपाल के निकट एरान तक अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार Reseller। उसका पुत्र मिहिरकुल सन् 515 में उसका उत्तराधिकारी बना। आलेखों में उसका description तानाशाह तथा क्रूर King के Reseller में मिलता है। मालवा के King यशोधर्मन तथा गुप्त King नरसिंहगुप्त बालादित्य ने अंतत: मिहिरकुल को पराजित Reseller, किन्तु हूणों पर यह विजय भी गुप्त साम्राज्य को नया जीवन न दे सकी।

हूणों के आक्रमण के अतिरिक्त आर्थिक समृद्धि में भी ह्रास हुआ। यह उत्तरवर्ती गुप्त Kingों के काल की मुद्राओं से ज्ञात होता है, जिसमें सोने की मात्रा कम थी तथा मिश्र धातु की अधिकता थी। हम गुप्तोत्तर काल में मुद्राओं की क्रमिक कमी भी पाते हैं। इसने Kingों को नकद राशि के स्थान पर भूमि के Reseller में भुगतान करने की प्रक्रिया को जन्म दिया। इस तथ्य का ज्ञान ब्राह्मणों तथा अधिकारियों को बड़े पैमाने पर दान किए भूखण्डों के अधिकार पत्रों से मिलता है।

धार्मिक तथा साम्प्रदायिक उद्देश्यों से भूखण्ड दान के बदले शासन को सेवाएं प्रदान करने की परम्परा जागीरदारी प्रथा कहलाई। इस प्रथा के अंतर्गत, दान पाने वाले व्यक्ति को मात्र कर संग्रह का ही नहीं, बल्कि दान में प्राप्त भूमि के प्रबंध का भी अधिकार दिया जाता था। इसने विभिन्न छोटे शक्ति केंद्रों को जन्म दिया, जिन्होंने शासन को चुनौती देने के लिए अपने प्रभाव क्षेत्र का विस्तार Reseller।

गुप्त साम्राज्य के पतन के परिणामस्वReseller उत्तर भारत में विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में King वंशों का उदय हुआ। इनमें प्रमुख रहे थानेसर के पुष्यभूति, कन्नौज के मौखरी And वलभी के मैत्रक। Indian Customer प्रायद्वीप में भी राजनीतिक परिदृश्य भिन्न नहीं था। दक्षिण तथा उत्तरी तमिलनाडु में क्रमश: चालुक्य तथा पल्लव मजबूत राजनीतिक शक्तियों के Reseller में प्रकट हुए।

मैत्रक

मैत्रक गुप्त वंश के सहायक मुखिया थे, जिन्होंने पश्चिम भारत में Single स्वतंत्र सत्ता की स्थापना की थी। मैत्रक वंश का सर्वाधिक प्रमुख King ध्रुवसेन द्वितीय था। वह हर्षवर्धन का समकालीन था तथा हर्षवर्धन की पुत्री के संग उसका विवाह हुआ था। ह्वेनत्सांग के descriptionों से हमें पता चलता है कि ध्रुवसेन द्वितीय ने हर्षवर्धन द्वारा प्रायोजित सभा में प्रयाग (इलाहाबाद) में हिस्सा लिया था। गुजरात में सौराष्ट्र पर शासन करते हुए मैत्रक सम्राटों ने वलभी को अपनी राजधानी के Reseller में विकसित Reseller। यह नगर शीध्र ही ज्ञानार्जन का महत्त्वपूर्ण केन्द्र बन गया। अरब सागर के किनारे स्थित होने के कारण यह प्रमुख बंदरगाही शहर था, जिसमें व्यवसाय तथा वाणिज्य समद्व था। मैत्रक वंश का शासन आठवीं शताब्दी तक सुचारू Reseller से चलता रहा जब तक कि अरब आक्रमणकारियों ने उनकी शक्ति को क्षीण नहीं कर दिया।

मौखरी

मौखरी वंश का शासन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में रहा जो धीरे-धीरे पाटलिपुत्र के स्थान पर उत्तर भारत में सत्ता का केन्द्र बन कर उभरा। मौखरी King गुप्त Kingों के अधीन King थे तथा ‘सामंत’ उपाधि का प्रयोग करते थे। हर्षवर्धन की बहन राज्यश्री का विवाह ग हवर्मन से हुआ था। बंगाल के King शशांक And उत्तरवर्ती गुप्त King देवगुप्त ने संयुक्त Reseller से ग हवर्मन पर आक्रमण Reseller तथा उनकी हत्या कर दी। कन्नौज के राज्य का पुष्यभूति के राज्य में विलय हो गया And हर्षवर्धन ने अपनी राजधानी थानेसर (कुरूक्षेत्र) से कन्नौज में स्थानान्तरित कर दी।

थानेसर का पुष्यभूति वंश

गुप्त साम्राज्य के क्षीण होने के पश्चात प्रमुख King वंश पुष्यभूति रहा जिनकी राजधानी थानेसर (कुरूक्षेत्र में थानेस्वर) थी। प्रभाकरवर्धन के सिंहासनारोहण के बाद यह वंश अत्यधिक प्रभावी हो गया था। प्रभाकरवर्धन ने हूणों को पराजित करने में सफलता प्राप्त की And पंजाब तथा हरियाणा क्षेत्र में अपनी स्थिति को सुद ढ़ Reseller। उसकी मृत्यु के बाद उसका ज्येष्ठ पुत्र सिंहासन पर बैठा, किन्तु बिहार तथा बंगाल के King शशांक द्वारा उसकी निर्मम हत्या कर दी गई। सन् 606 के लगभग हर्षवर्धन का राज्याभिषेक हुआ। उस समय वह मात्र 16 वर्ष का था। तथापि उसने स्वयं को Single महान योद्धा तथा कुशल प्रKing सिद्ध Reseller। हर्षवर्धन (606-647) के जीवन तथा काल के संबंध में प्रकाश डालने के लिए हमारे पास मूल्यवान स्रोत है। वे हैं उसके दरबारी कवि बाणभट्ट द्वारा रचित हर्षचरित्र तथा चीनी बौद्ध तीर्थयात्री ह्वेनत्सांग का यात्रा वत्तांत ‘सी-यू-की’, जिससे सन् 629 से लेकर 644 तक भारत यात्रा की।

गद्दी संभालने के बाद हर्षवर्धन ने अपने साम्राज्य को अपनी बहन के साम्राज्य के साथ मिला कर संयुक्त Reseller And अपनी राजधानी को कन्नौज में स्थानान्तरित Reseller। हर्षवर्धन को उत्तर का देव की उपाधि दी गई । उसने पंजाब, उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा को संगठित Reseller। हर्ष अपने साम्राज्य की पताका दक्षिण में भी फैलाना चाहता था किन्तु नर्मदा नदी के तट पर चालुक्य King पुलकेशिन द्वितीय ने उसे पराजित कर दिया। इस प्रकार नर्मदा नदी उसके साम्राज्य की दक्षिणी सीमा बन गई। हर्षवर्धन की म त्यु के उपरान्त सन् 647 से भारत में राजनीतिक अनिश्चितता का दौर प्रारंभ हुआ जो आठवीं शताब्दी तक चला, जब उत्तर भारत में गुर्जर, प्रतिहार, राजपूत King बड़ी शक्तियों के Reseller में उभरे।

वाकाटक साम्राज्य

Indian Customer प्रायद्वीप में वाकाटक Single स्थानीय सत्ता थे जिनका साम्राज्य उत्तरी महाराष्ट्र तथा विदर्भ में था। उनका History ब्राह्मणों को दान की गई भूमि के लिए जारी किए गए अक्तिाकार पत्रों की सहायता से पुन: लिखा जा सकता है। शाही वाकाटक वंश के रूद्रसेन द्वितीय का विवाह महान गुप्तवंश के प्रतापी King चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त के साथ हुआ था। वाकाटक साम्राज्य सांस्क तिक Reseller से महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है क्योंकि वह दक्षिण भारत में ब्राह्मणवाद की संस्कृति के विस्तार का माध्यम बना।

चालुक्य वंश

दक्कन तथा दक्षिण भारत के History में चालुक्य वंश ने छठी शताब्दी के प्रारंभ से लेकर 200 वर्ष तक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने पश्चिमी दक्कन में अपने साम्राज्य की स्थापना की तथा वातापी (वर्तमान कर्नाटक में बादामी) को अपनी राजधानी बनाया। पुलकेशिन द्वितीय के शासन काल में (सन् 610-642) साम्राज्य की ख्याति शीघ्रता से शिखर पर पहुंच गई वह चालुक्य वंश का महानतम King था। उसने अपनी स्थिति को महाराष्ट्र में सुदढ़ Reseller तथा दक्कन के बड़े भू-भाग पर विजय प्राप्त की। उसने सन् 630 के निकट हर्षवर्धन को पराजित कर ‘दक्षिणपथेश्वर’ Meansात् दक्षिण के देव की उपाधि अर्जित की। हालांकि वह स्वयं सन् 642 में पल्लव King नरसिम्हवर्मन के हाथों पराजित होकर मारा गया। इसने चालुक्य तथा पल्लवों के मध्य लंबे राजनीतिक संघर्ष के युग को प्रारंभ Reseller जो कि सौ वर्षों से अधिक उत्थान And पतन के साथ निरंतर चलता रहा। इस संघर्ष पर विराम सन् 757 के निकट लगा जब उन्हीं के सामन्तों राष्ट्रकूट वंश ने उनका तख्ता पलट दिया। सांस्क तिक Reseller से दक्कन क्षेत्र में कला तथा स्थापत्य कला की प्रगति के लिए इस युग की अपनी महत्ता है।

पल्लव वंश

पल्लव वंश ने अपना साम्राज्य दक्षिण आंध्र प्रदेश से लेकर उत्तरी तमिलनाडु तक स्थापित Reseller। उन्होंने कांची को अपनी राजधानी बनाया। उनके शासनकाल में कांची व्यापारिक तथा व्यावसायिक गतिविधियों का महत्त्वपूर्ण केन्द्र तथा मंदिरों के लिए विख्यात नगर बन गया था।

महेन्द्रवर्मन (सन् 600-630) तथा नरसिम्हवर्मन (सन् 630-668) के शासन काल में पल्लव वंश के साम्राज्य का विस्तार हुआ। अपने शासन के दौरान उनका संघर्ष उत्तर में वातापी के चालुक्य वंश, चोलों के तमिल साम्राज्य तथा दक्षिण में पांड़यों के साथ निरंतर चलता रहा। प्रतापी चोल Kingों द्वारा दक्षिण भारत में उनके शासन का अंत हुआ। सांस्क तिक Reseller से उनका शासन काल तमिल साहित्य में भक्ति धारा के विकास के लिए And दक्षिण भारत में कला तथा स्थापत्य कला के क्षेत्र में द्रविड़ शैली की प्रगति के लिए स्मरणीय रहेगा। उन्हीं के शासनकाल में चेन्नई का दक्षिण क्षेत्र महाबलीपुरम, मंदिरों की वास्तुकला के महत्त्वपूर्ण केन्द्र के Reseller में प्रकट हुआ।

प्रशासनिक प्रणाली (300-750 ई0)

मौर्ययुग में राजनीतिक शक्ति King के हाथों में ही केन्द्रित थी किन्तु गुप्त प्रशासन स्वभावतया विकेन्द्रित था। इसका तात्पर्य जागीरें Meansात् स्थानीय King And छोटे मुखिया उनके साम्राज्य के बड़े हिस्से पर शासन करते थे। प्रतापी गुप्त Kingों ने महाKingधिराज, परमेश्वर जैसी शानदार उपाधियां धारण की हुई थीं। इनके दुर्बल Kingों ने King अथवा महाKing उपाधियों से अपने नाम को अलंकत Reseller। सामान्यतया राजपद वंशानुगत था। प्रशासन का मुख्य बिंदु King होता था। राजकुमार मंत्री तथा सलाहकार उसकी सहायता करते थे। राजकुमारों को भी क्षेत्रें का राज्यपाल नियुक्त Reseller जाता था। प्रान्त मुख्यत: देश, राष्ट्र अथवा भुक्ति के नाम से जाने जाते थे। उनका प्रधान ‘उपारिक’ कहलाता था। प्रान्त विभिन्न जिलों में विभक्त हुआ करते थे जिन्हें ‘प्रदेश’ अथवा ‘विषय’ कहा जाता था। ‘विषय’ का प्रधान ‘विषयपति’ के नाम से जाना जाता था। ‘विषय’ भी ग्रामों में विभक्त हुआ करते थे। ग्राम प्रमुख ‘ग्रामाध्यक्ष’ कहलाता था तथा ग्राम के वरिष्ठ नागरिकों की सहायता से ग्राम के विषयों की जिम्मेदारी निभाता था। गुप्त काल के दौरान कलाकार तथा व्यापारी नगर प्रशासन में सक्रिय भूमिका निभाते थे। मौर्यो की तुलना में गुप्त अधिकारी वर्ग कम बड़ा था। गुप्तों के अधीनस्थ उच्च स्तरीय केन्द्रीय अधिकारी कुमारअमात्य से संबोधित होते थे। महत्त्वपूर्ण पदाधिकारी, यथा-मंत्री, सेनापति All इसी संवर्ग से चयनित होते थे। प्रशासनिक पद मात्र वंशानुगत ही नहीं होते थे बल्कि प्राय: कई कार्यालय संयुक्त Reseller से Single ही व्यक्ति द्वारा संचालित होते थे जैसे कि इलाहाबाद स्थित समुद्रगुप्त के आलेख का रचयिता, हरिसेन उसका History ‘महादण्डनायक’ (Fight तथा शक्ति मंत्री) के Reseller में प्राप्त होता है। प्राय: उच्च पदाधिकारियों का चयन King स्वयं करता था किन्तु पद वंशानुगत होने से प्रशासन पर शाही नियंत्रण दुर्बल हो गया था।

गुप्तकाल में भू-करों में व्यापक वृद्धि हुई। भू-कर Meansात ‘बालि’, कुल उत्पादन का 1/4 से 1/6 हिस्से तक भिन्न होता था। गुप्त काल में हमें आलेख से दो नए कृषि करों का भी आभास होता है यथा ‘उपरिकर’ तथा ‘उद्रग।’ तथापि इनका यथार्थ स्वReseller स्पष्ट नहीं है। साथ ही कृषक वर्ग को सामन्तों की Needओं को भी पूर्ण करना होता था। उन्हें गांव से शाही सैन्य बल को भोजन भी कराना होता था जिस गांव से वे गुजरते थे। ग्रामवासियों से बेगार कार्य भी लिया जाता था।अपने पिछले समय की तुलना में गुप्तकाल की न्यायिक व्यवस्था अत्यधिक उन्नत थी। अपने पिछले समय की तुलना में First बार दीवानी तथा अपराधिक विधि नियमों का स्पष्ट वर्गीकरण हुआ था। विभिन्न प्रकार की सम्पत्तियों से संबंधित विवाद दीवानी कानून के अन्तर्गत आए। उत्तराधिकार से संबंधित विस्त त नियमों की Creation इस युग में हुई। चोरी तथा व्यभिचार आपराधिक न्याय विधान के अन्तर्गत आए। King ने नियमों को मजबूत बनाया तथा ब्राह्मणों की सहायता से विषयों का निराकरण Reseller। कारीगरों तथा व्यापारियों के संगठन स्वनिर्मित नियमों द्वारा नियंत्रित होते थे।

हर्षवर्धन ने इसी पद्धति पर अपने साम्राज्य का संचालन Reseller, किन्तु उसके शासन काल में प्रशासन में विकेन्द्रीकरण की गति में प्रगति हुई तथा सामंत जागीरों की संख्या में भी वृद्धि हुई। हर्षवर्धन के शासन काल में अधिकारी तथा धार्मिक व्यक्तियों को भूमि के Reseller में भुगतान Reseller जाता था। इसने सामंती प्रथा को प्रोत्साहन दिया जो कि हर्षोत्तर काल में असाधारण Reseller से विकसित हुई।

हर्षवर्धन के शासन काल में कानून, न्याय And दंड व्यवस्था उतनी प्रभावी प्रतीत नहीं होती है। भारत में अपनी यात्रा के दौरान ह्वेनत्सांग को दो बार लूट लिया गया जबकि गुप्त काल के यात्री फाह्यान ने ऐसी किसी भी कठिनाई का History नहीं Reseller है।

गुप्तवंश में समाज

गुप्तकाल में समाज का तानाबाना Single परिवर्तन के दौर से गुजर रहा था। ब्राह्मणों की सर्वोच्चता में व द्धि हो रही थी। उन्हें न सिर्फ Kingों से बल्कि साधारण जनता से भी दान के Reseller में भूखण्डों की प्राप्ति हो रही थी। भूखण्ड उन्हें प्रबन्ध के अधिकार तथा करों में छूट के सहित प्राप्त होते थे। अत: भू-स्वामी ब्राह्मणों के नए वर्ग का निर्माण हुआ। King का समर्थन प्राप्त होने की वजह से उनमें किसानों के शोषण की प्रव त्ति को जन्म लिया।

इस युग में हम जातियों में भी वृद्धि पाते हैं। सुदूर And विभिन्न क्षेत्रें में ब्राह्मणवादी सभ्यता के विस्तार के परिणामस्वReseller बड़ी संख्या में आदिवासी जनजातियां तथा कुछ विदेशी आक्रमणकारी, जैसे-हूण वंश, वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत ब्राह्मणवादी सामाजिक व्यवस्था में सम्मिलित हो गए। जहां विदेशी तथा जनजाति के मुखिया क्षत्रिय कहलाए वहीं साधारण जनजातियों को शूद्रों की स्थिति प्राप्त हुई। तथापि कुछ हद तक शूद्रों की स्थिति में इस युग में सुधार दिखलाई पड़ता है। उन्हें महाकाव्य तथा पुराण सुनने की अनुमति थी। वे घरेलू कर्मकाण्डों को भी कर सकते थे जो पूर्व में उनके लिए प्रतिबंधित थे। Sevenवीं शताब्दी में ह्वेनत्सांग ने शूद्रों को क “ाक तथा वैश्यों को व्यापारी कहा है। शूद्रों तथा अस्पश्यों के मध्य भी अंतर Reseller गया। अस्प शयों को समाज में शूद्रों से भी निम्न स्थान प्राप्त था।

अस्पश्यों को चाण्डाल कहा जाता था। उनका निवास गांव से बाहर होता था तथा वे नाली साफ करना अथवा कसाईगीरी जैसे कार्य करते थे। चीनी यात्री फाह्यान के According जब वे जिलों अथवा व्यापारिक केन्द्रों में प्रवेश करते थे, तब वे अपने आने की घोषणा लकड़ी के टुकड़े को बजाकर करते थे जिससे कि अन्य उनसे छूकर भ्रष्ट न हो जाएं।

दासों का संदर्भ भी समकालीन धर्मशास्त्रों में मिलता है। नारद के According 15 प्रकार के दास हुआ करते थे। उनमें मुख्यत: ग हकार्य हेतु Meansात् सफाई करने तथा झाडू लगाने हेतु दास थे। Fight के कैदी, कर्जदार, दास मां की कोख से जन्म लेने वाले All दास ही समझे जाते थे।

गुप्तकाल में स्त्रियों की सामाजिक स्थिति ठीक नहीं थी। स्त्रियों की अधीनता का मुख्य कारण पुरुषों पर उनकी पूर्ण निर्भरता रही। सम्पत्ति को पैत क Reseller में पाने का अधिकार महिलाओं को नहीं था। तथापि स्त्रीधन Meansात विवाह के समय प्राप्त उपहारों पर उसका पूर्णाधिकार था। कला में स्त्रियों का मुक्त चित्रण समाज में पर्दा प्रथा न होने का संकेत देते हैं। तथापि सती प्रथा का अस्तित्व अवश्य मिलता है। मध्य प्रदेश के एरान में अंकित Single History (सन् 510) में First सती का प्रमाण मिलता है। बाणभट्ट के हर्ष चरित्र में रानी, अपने पति King प्रभाकरवर्धन की म त्यु पर सती हो जाती है। यहां तक कि हर्षवर्धन की बहन राजश्री भी सती प्रथा का पालन करने जा रही थी जब हर्षवर्धन ने उनकी जान बचाई।

गुप्तवंश में Meansव्यवस्था

चौथी शताब्दी से आंठवी शताब्दी का काल Single महान कृषि विस्तार का युग था। भूमि का बड़े क्षेत्र पर जुताई प्रारंभ हुई तथा उच्च परिणाम प्राप्त करने हेतु उत्पादन के तत्कालीन उपलब्ध तरीकों में सुधार किए गए। इस सुधार का Single मुख्य कारण ब्राह्मणों तथा गैर धार्मिक कर्मिकों को विभिन्न क्षेत्रें में भूमि दान करने की परम्परा रही। इसने बिना काम वाली भूमि को भी कृषि के योग्य बना दिया। लौह वाले हल, गोबर की खाद, सिंचाई, तथा पिछड़े क्षेत्रें में पशुधन संरक्षण ने ग्रामीण सम्पन्नता में अपना सहयोग दिया। तथापि कर्ज से पीड़ित किसानों को इससे कोई लाभ नहीं हुआ।

गुप्त तथा गुप्तोत्तर युग में व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्र में पतन हुआ। सन् 550 तक भारत के पूर्वी रोम साम्राज्य के साथ व्यापारिक संबंध थे, जब भारत मसालों तथा रेशम का निर्यात Reseller करता था। छठी शताब्दी के लगभग रोम नागरिकों ने रेशम के धागे बुनने की कला को सीख लिया। इस विशेष वस्तु के उत्पादन क्षेत्र में विदेशी व्यापार को इससे काफी ठेस पहुंची। हूणों द्वारा उत्तर पश्चिमी मार्ग पर अवरोध उत्पन्न करना भी इस पतन के घटकों में रहा। भारत ने इसकी क्षतिपूर्ति दक्षिण पूर्वी एशिया के साथ वाणिज्य संबंध बना कर करनी चाही किन्तु इससे भी Meansव्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सहायता प्राप्त नहीं हुई। निम्न व्यापार ने देश में सोने And चांदी की आपूर्ति पर भी असर डाला। इसका प्रमाण गुप्तकाल के पश्चात स्वर्ण की कमी से मिलता है।

गुप्त Kingों द्वारा बड़ी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं प्रचलन में लाई गई थीं, जिन्हें दीनार कहते थे। किन्तु चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद हर गुप्त King के शासन काल में स्वर्ण मुद्राओं में सोने की तुलना में मिश्र धातु की अधिकता रही। गुप्त वंश के उपरांत कुछ ही वंशों के समकालीन सिक्के प्राप्त हो पाए है। सिक्कों की अनुपलब्धता से यह समझा जा सकता है कि गुप्तों के पतन के पश्चात Single सीमित व्यापार वाली अपने में संपूर्ण Meansव्यवस्था का उदय हुआ।

गुप्तवंश में साहित्य

कला तथा साहित्य के क्षेत्र में गुप्तकाल स्वर्ण युग माना जाता था। बड़ी संख्या में धार्मिक तथा अन्य साहित्य की Creation इस काल में हुई। रामायण तथा महाभारत दोनों महाकाव्य चौथी शताब्दी में पूरे हो गए। दोनों ही महाकाव्यों की विषयवस्तु में अधर्म पर धर्म की विजय है। राम तथा कृष्ण दोनों ही भगवान विष्णु के अवतार माने गए। गुप्तकाल से साहित्य में ‘पुराणों’ का स जन प्रारंभ हुआ। इन Creationओं में हिन्दू देवी-देवताओं की कहानियां हैं तथा व्रत And कर्मकाण्डों और तीर्थ यात्रा द्वारा उन्हें प्रसन्न करने के तरीकों का description है। इस काल में स जित मुख्य पुराण थे-’विष्णु पुराण,’ ‘वायु पुराण’ And ‘मत्स्य पुराण। शिव की आराधना के लिए ‘शिव पुराण’ की Creation हुई वहीं विष्णु के विभिन्न अवतारों का महिमामंडन ‘वाराह पुराण,’ ‘वामन पुराण’ तथा ‘नरसिम्हा पुराण’ में मिलता है। ये साधारण जन के लिए लिखे गए थे। गुप्त काल में कुछ विधि विषयक पुस्तकें ‘स्मति’ भी लिखी गई इनमें से नारद स्मृति सामान्य सामाजिक तथा आर्थिक नियमों तथा नियमावलियों पर प्रकाश डालती है।

गुप्तकालीन साहित्य की भाषा संस्कृत थी। संस्कृत के महानतम कवि, कालिदास पांचवीं शताब्दी में चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार के मुख्य रत्न थे। उनके साहित्यिक कार्य बहुत ही लोकप्रिय हैं तथा कई यूरोपीय भाषाओं में उनका अनुवाद हुआ। उनकी कुछ चर्चित Creationएं ‘मेघदूत’, ‘अभिज्ञान-शाकुन्तलम’, ‘रघुवंश’, ‘कुमार संभव’ तथा ‘ऋतुसंहार’ है। उनकी Creationओं का मुख्य आकर्षण उच्च कुल के पात्रों द्वारा संस्क त का प्रयोग तथा साधारण लोगों द्वारा प्राक त भाषा का प्रयोग रहा। इस युग के अन्य चर्चित लेखक ‘शूद्रक’ जिन्होंने ‘मच्छकटिकम’ तथा ‘विशाखादत्त’ जिन्होंने ‘मुद्राराक्षस’ की Creation की।

Sevenवी शताब्दी में हर्षवर्धन के दरबारी कवि ने अपने संरक्षक की प्रशंसा करते हुए ‘हर्षचरित्र‘ का सृजन Reseller। अत्यधिक अलंकत भाषा में लिखी गई यह Creation बाद के लेखकों के लिए बन गई उदाहरण हर्षवर्धन के शासन काल के आरम्भिक History की जानकारी इसी पुस्तक से प्राप्त होती है। उसके द्वारा लिखित अन्य Creation है ‘कादम्बरी’। हर्षवर्धन स्वयं भी Single साहित्यिक सम्राट था। कहा जाता है कि उसने तीन नाटक लिखे-प्रिय दर्शिका, नागनन्द तथा रत्नावली।

दक्षिण भारत में सन् 550 से 750 तक तमिल में भक्ति साहित्य का स जन हुआ। अपने-अपने देवताओं की प्रशंसा में वैष्णव संतों (अल्वर) तथा श्शैव संतों (नयन्नर) ने गीतों का स जन Reseller। अल्वर संतों में सर्वाधिक चर्चित संत Single महिला ‘अन्दल’ थी। वैष्णव भजनों को बाद में ‘नलयिरा प्रबंधम्’ तथा शैव भजनों को ‘देवराम’ नामक संकलनों में संकलित कर लिया गया।

गुप्तवंश में कला तथा स्थापत्य कला

प्राचीन Indian Customer कला मुख्यत: धर्म पर आधारित हेाती थी। गुप्त काल में भी बौद्ध धर्म ने कला को आश्चर्यजनक Reseller से प्रभावित Reseller। सुल्तानगंज, बिहार में तांबे की बनी विशालकाय प्रतिमा पाई गई है। मथुरा And सारनाथ में महात्मा बुद्ध की आकर्षक प्रतिमाएं गढ़ी गई हैं। गुप्तकालीन बौद्ध कला का सबसे परिष्क त उदाहरण अजन्ता की गुफाओं में की गई चित्रकारी है। महात्मा बुद्ध And जातक कहानियों का वर्णन करते इन चित्रों का पक्का रंग Fourteen शताब्दी उपरान्त भी फीका नहीं हुआ। अजन्ता की गुफाएं अब संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व धरोहर स्थलों की सूची में सम्मिलित हो चुकी हैं।

गुप्तकाल में ही First बार भवन के आकार के मंदिर-निर्माण की शैली उत्तर भारत में विकसित हुई। इन मंदिरों को स्थापत्य कला में ‘नागर’ के नाम से जाना गया। इस प्रकार के दो मंदिर उत्तर प्रदेश में कानपुर में भितरगांव And झांसी में देवगढ़ में पाए गए हैं, जो क्रमश: ईट तथा पत्थरों द्वारा निर्मित है। इन मंदिरों में विष्णु की प्रतिमाएं केंद्र में मुख्य देव के Reseller में स्थापित हैं।

गुप्तकालीन मुद्राएं भी कला का ही उत्क “ट उदाहरण थीं। उनकी बनावट सुंदर थी तथा सतर्कता से उन्हें गढ़ा जाता था। उन पर Kingों की गतिविधियों का आकर्षक ढंग से चित्रण होता था। समुद्रगुप्त द्वारा चलाई गई संगीतात्मक स्वर्ण मुद्राओं में उसे वीणा बजाते देखा जा सकता है। इस चित्रण में संगीत के प्रति उसका आकर्षण दिखाई देता है। जैसा कि ऊपर described है उसने अश्वमेध प्रकार की मुदाएं भी प्रचलन में लाई। Indian Customer प्रायद्वीप में शिव तथा विष्णु की आराधना लोकप्रिय हो रही थी।

इन देवताओं की प्रतिमाओं को स्थापित करने के लिए Sevenवी तथा आठवी शताब्दी में पल्लव Kingों ने पत्थरों के मंदिरों का निर्माण कराया। सर्वाधिक प्रसिद्ध Seven रथ मंदिर हैं; प्रत्येक मंदिर पत्थर के ठोस टुकड़े से बना हुआ है। यह चेन्नई से 65 किलोमीटर दूर महाबलीपुरम् में स्थित है And इसका निर्माण King नरसिंहवर्मन ने करवाया था। पल्लवों के शासन में सर्वाधिक Historyनीय मन्दिर आठवी शताब्दी के कैलाशनाथ मंदिर है।

वातापी के चालुक्य भी मंदिर निर्माण में पीछे नहीं रहे तथा उन्होंने एहोल, बादामी तथा पत्तादकल में असंख्य मंदिरों का निर्माण कराया। Sevenवी, आठवीं शताब्दी में पत्तादकल में ही दस मंदिरों का निर्माण हुआ तथा विरुपोक्ष मंदिर का भी। मंदिरों की दक्षिण भारत की स्थापत्य कला को द्रविड़-कला का नाम मिला।

गुप्तवंश में धर्म

गुप्त Kingों ने भागवत पंथ को प्रश्रय दिया, किन्तु वे अन्य धर्मो के प्रति भी सहिष्णु थे। गुप्त काल तथा हर्षवर्धन के समय में भारत यात्रा पर आए चीनी तीर्थ यात्री क्रमश: फाहयान And ह्वेनत्सांग के यात्रा व त्तांतों से यह स्पष्ट होता है कि बौद्ध धर्म भी प्रगति कर रहा था। हर्ष ने शैव मत को मानने के बावजूद बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया था तथा वह इस धर्म का महान संरक्षक बन गया था। उसने महायान को लोकप्रिय बनाने के लिए कन्नौज में Single सभा का आयोजन Reseller था। उसके शासन-काल में नालन्दा बौद्ध धर्म की महायान शाखा का प्रमुख शिक्षा केंद्र बन कर उभरा। बाहर के देशों के विद्याथ्र्ाी भी इस विश्वविद्यालय में ज्ञानार्जन को आते थे। ह्वेनत्सांग के According सौ गांवों के राजस्व से यह संचालित होता था।

भागवत पंथ भगवान विष्णु तथा उनके अवतारों की पूजा-अर्चना पर आधारित था। इसमें वैदिक कर्मकाण्डों तथा बलि के स्थान पर भक्ति And अहिंसा पर बल दिया जाता था। नया पंथ उदारवादी था तथा निम्न जाति के लोग भी इसका अनुसरण करते थे। ‘भगवदगीता’ के According जब भी अधर्म होता है, भगवान विष्णु HumanReseller में जन्म लेते हैं तथा जगत की रक्षा करते हैं। इस प्रकार विष्णु के दस अवतारों को माना गया। हर अवतार के गुणों को लोकप्रिय बनाने के लिए पुराणों की Creation की गई थी। गुप्तकालीन मंदिरों में भगवान की प्रतिमाएं स्थापित होती थीं।

दक्षिण भारत में Sevenवी शताब्दी के बाद अलवर तथा नयन्नर तमिल संतों ने भक्ति के सिद्धांत को लोकप्रिय बनाया। अल्वर संतों ने भगवान् विष्णु के Reseller को तथा नयन्नर संतों ने भगवान शिव के Reseller को जन-जन में लोकप्रिय बनाया। तंत्रवाद का उदय भी हम इस युग में देखते हैं। पांचवीं शताब्दी के बाद ब्राह्मणों को नेपाल, असम, बंगाल, उड़ीसा तथा मध्य भारत And दक्कन के प्रदेशों में जनजातीय क्षेत्रें में भूखण्ड मिलने प्रारंभ हो गए। परिणामस्वReseller ब्राह्मणों के समाज में ये जनजातीय तथ्य सम्मिलित हो गए। ब्राह्मणों ने उनके देवी, देवताओं, कर्मकाण्डों को अपना लिया। यह ब्राह्मणवादी संस्क ति तथा जनजातीय परम्पराओं का सम्मिश्रण है, जिसने तंत्रवाद को जन्म दिया। इसमें लिंग अथवा जाति आधारित भेदभाव नहीं था तथा महिलाओं And शूद्रों को स्थान प्राप्त था। उन्होंने स्त्री को शक्ति तथा ऊर्जा का केंद्र बताया। तन्त्र के सिद्धांत ने शैव, वैष्णव, बौद्ध तथा जैन All धर्मों पर प्रभाव डाला। परिणामस्वReseller इन क्षेत्रें में देवी पूजन की प्रथा प्रारंभ हुई।

गुप्तवंश में विज्ञान तथा तकनीक

गुप्त काल में विज्ञान तथा तकनीक के क्षेत्र में प्रगति के बारे में जानकारी हमें इस काल में इन विषयों में रचित ग्रन्थों से हो जाता है। इन ग्रन्थों में सर्वाधिक चर्चित ग्रन्थ खगोल-विज्ञान पर आधारित ‘आर्यभट्टयम’ है, जो कि आर्यभट्ट द्वारा पाचवीं शताब्दी में लिखा गया था। आर्यभट्ट Single खगोल विज्ञानी तथा गणितज्ञ थे। उन्होंने ही First बार यह सिद्ध Reseller था कि Earth अपनी धुरी पर घूमती है तथा Ultra site के चारों ओर चक्कर लगाती है, जिसकी वजह से Ultra site ग्रहण होता है। उन्होंने ही ‘शून्य’ की खोज की थी तथा दशमलव प्रणाली का प्रयोग First बार Reseller था। Single अन्य विद्वान वराहमिहिर (छठी शताब्दी के उत्तरार्द्ध) महान खगोल शास्त्री थे, जिन्होंने खगोल विज्ञान पर कई पुस्तकों की Creation की। उनकी Creation ‘पंचसिद्धांन्ति’ में पांच प्रकार की खगोलीय पद्धतियां बतलाई गई हैं। Single सुप्रख्यात गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त भी गुप्तकालीन थे।

गुप्त वंश में धातु विज्ञान में भी नई तकनीकों का आगमन हुआ। इस युग में निर्मित महात्मा बुद्ध की तांबे की विशालकाय मूर्ति उन्नत तकनीक का Single उदाहरण है। मेहरौली स्थित लौह स्तंभ भी धातु के क्षेत्र में गुप्त वंश की विकसित तकनीक का बखान करता है। खुले क्षेत्र में स्थापित होने के बावजूद भी पन्द्रह शताब्दियों उपरान्त भी इस स्तंभ में जंग नहीं लगी है। अजन्ता की गुफाओं में उकेरे गए पक्के रंग के चित्र रंगों के क्षेत्र में रंग बनाने की कला की व्याख्या करते हैं।

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