क्रांतिकारी आंदोलन

क्रांतिकारी आंदोलन की पृष्ठभूमि 

Indian Customer स्वाधीनता आंदोलन की Single पृथक धारा क्रांतिकारी आंदोलन है। भारत के नवयुवकों का Single वर्ग हिंSeven्मक संघर्ष को राजनीतिक प्राप्ति के लिए आवश्यक मानते थे। वे स्वयं को मातृभूमि के लिए बलिदान करने को तैयार थे और हिंसक माध्यमों से ब्रिटिश शासन को भयभीत कर, आतंकित कर देश से निकाल देना चाहते थे। यह अक्रामक राष्ट्रवाद की विचारधारा है। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम चरण में चारों ओर फैलती असंतोष की लहर, अकाल, भूकम्प, महामारी का प्रकोप और बढ़ती गरीबी तथा Indian Customer जनता की कठिनार्इयों के प्रति शासन की उदासीनता ने Indian Customer नवयुवकों में विदेशी ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रमक विरोध की भावनाओं को भड़काया। आसुरी ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए अस्त्र का प्रयोग करना ही होगा। इस विचारधारा ने देश में क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म दिया। समाचार पत्रों, लेखों के माध्यम से संगीत तथा नाटकों का मंचन कर लोगों को प्रेरित करना दासता के प्रति उनमें विरोध पैदा करना, उन्हें मातृभूमि से पे्रम करना सिखाकर निडर बनाना और अस्त्र शस्त्र का निर्माण करने अथवा उसे खरीदने के लिए धन प्राप्त करने हेतु क्रांतिकारी राजनैतिक डकौतियां करना उनके साधन थे। क्रांतिकारी साहित्य द्वारा अपने विचारों कर गुप्त समीतियों के माध्यम से क्रांतिकारी गतिविधियों को वे अंजाम देते थे। ब्रिटिश King वर्ग को आतंकित करने हेतु वे राजनैतिक हत्याओं को उचित मानते थे।

क्रांतिकारी आंदोलन का विकास : First चरण

क्रांतिकारी आंदोलन का जन्म महाराष्ट्र में हुआ था लेकिन कालांतर में इसका प्रधान केन्द्र बंगाल बन गया। भारत के अन्य प्रांतो तथा विदेशों में भी Indian Customer क्रांतिकारी सक्रिय हुए।

1. बंगाल

बंगाल के क्रांतिकारी नेता बरीन्द्र कुमार घोष (अरविंद घोष के छोटे भार्इ) और भूपेन्द्र नाथ दत्त (स्वामी विवेकानंद के छोटे भार्इ) थे। इन दोनों ने युगांतर तथा संध्या नामक क्रांतिकारी पत्रों द्वारा क्रांतिकारी विचारधारा का प्रचार Reseller। इन्हें क्रांति का अग्रदूत भी माना जाता है। युगांतर और संध्या दोनों अत्यधिक लोकप्रिय सिद्ध हुए। क्रांतिकारियों ने अनुशीलन-समिति नामक संस्था का गठन Reseller जिसमें सदस्यों को Indian Customer History, संस्कृति और राष्ट्रवाद तथा राजद्रोहात्मक सिद्धांतो की शिक्षा व शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता था। इसकी लगभग 200 शाखाएं थी तथा ढाका और कलकत्ता इसके मुख्य केन्द्र थे। इसके सदस्यों को मां काली के समक्ष अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के हेतु व्रत लेना पड़ता था।

बंगाल में 1907 से ही वातावरण क्रांतिमय हो गया था और अंग्रेजी शासन के विरूद्ध सशस्त्र आंदोलन प्रारंभ हो गया। 6 दिसंबर 1907 को मिदनापुर के समीप क्रांतिकारियों द्वारा उस रेलगाड़ी में बम फेंका गया जिसमें बंगाल का गर्वनर यात्रा कर रहा था। दूसरी घटना 23 दिसंबर 1907 को हुर्इ जब क्रांतिकारियों ने ढाका के भूतपूर्व जिला मजिस्ट्रेट को गोली मारने का असफल प्रयत्न Reseller था। तीसरी घटना 30 अप्रैल, 1908 को मुजफरपुर में घटी जिसने भारत तथा ब्रिटेन में पूरी सनसनी फैला दी। क्रांतिकारियों ने मुजफरपुर के जज किंग्सफोर्ड की हत्या करने का प्रयास Reseller। किंतु किंग्सफोर्ड के स्थान पर उसकी गाड़ी में दो अंगरेज महिलाएं थीं जो घटनास्थल पर ही मारी गर्इ। इस अपराध के लिए 18 वष्र्ाीय युवक खुदुदुदीराम बोसेसेस को फांसी की सजा दी गर्इ। खुदीराम के बलिदान का Indian Customer युवकों पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह बंगाल का राष्ट्रीयवीर शहीद बन गया। उस पर देश भक्तिपूर्ण कविताएँ लिखी गयी जो हर बंगाली की जुबान पर छा गर्इ। अगली घटना अलीपुर “ाड़यंत्र केस 1910 के नाम से प्रसिद्ध है। सरकार को कलकत्ता में Single क्रांतिकारी “ाड़यंत्र का बोध हुआ। जिसमें कुछ बम डायनामाइट और कारतूस बरामद हुए। इस घटना के संबंध में 31 व्यक्ति गिरतार हुए जिनमें अरविंद घोष भी थे। कन्हार्इलाल और सत्येन्द्र को फांसी की सजा मिली तथा वीरेन्द्र को देश निष्कासन की। अंत में क्रांतिकारियों की ओर से कुछ अन्य हत्याएं भी की गर्इ जिनका संबंध मुजफरपुर तथा अलीपुर केस से था।

2. महाराष्ट्र

क्रांतिकारी आंदोलन बंगाल से First महाराष्ट्र में प्रारंभ हो गया था। महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन के नेता चापेकेकेकर बंधु विनायक दामोदेदेदर सावरकर And उनके भार्इ गणेश सावरकर तथा श्यामजी कृष्ण वर्मा थे। लोकमान्य तिलक के बंदी बनाए जाने पर महाराष्ट्र में क्रांतिकारी आंदोलन का उदय हुआ। तिलक की Creationओं से क्रांतिकारियों ने प्रेरणा ग्रहण की थी। क्रांतिकारियों के संगंठन अभिनव भारत का केन्द्र नासिक था। सावरकर बंधुओं ने सन् 1900 में Single देशभक्त संगठन मित्र मेलेलेला की स्थापना की थी। सन् 1904 में यह Single क्रांतिकारी संगठन बन गया और इसका नाम अभिनव भारत कर दिया गया। संपूर्ण महाराष्ट में इसकी शाखाएं फैली हुर्इ है। प्रशासन को निष्क्रिय बनाने के लिए क्रांतिकारियों के संगठनों द्वारा राजनीतिक हत्याओं और नौकरशाही को आतंकित करने के लिए प्रचार कार्य किए गए थे। महाराष्ट्र में क्रांतिकारियों का नारा था प्रा्रा्राण देनेनेने से पूर्व प्रा्रा्राण ले लो।े सन् 1899 में रैण्ड And अयेस्र्ट की हत्या की गर्इ। चापेकर बन्धुओं को इसके लिए दण्ड दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि इन अंग्रेंजी की हत्या में श्यामजी कृष्ण वर्मा का हाथ था। वे इसके बाद इंग्लैण्ड चले गये। सन् 1906 में विनायक दामोदर सावरकर भी इंग्लैण्ड चले गये और श्यामजी कृष्ण वर्मा का हाथ बंटाने लगे। वे दोनों लंदन से अपने संदेश तथा क्रांतिकारी शस्त्र गणेश्ेश्ेश सावरकर को भेजा करते थे। 1909 में उन्होनें में गणेश सावरकर के नाम पिस्तौलों का Single पार्सल भेजा था। पार्सल मिलने से पूर्व 2 मार्च 1909 को उन्हें पुलिस द्वारा बंदी बना लिया गया। उनके विरूद्ध राजद्रोहात्मक साहित्य के प्रकाशन का आरोप था। 9 जून 1909 को उन्हें आजीवन देश निर्वासन का दण्ड दिया गया। दिसंबर 1909 में नासिक के जिलाधिकारी जेकसन को गाली से उड़ा दिया गया। उन्होनें गणेश सावरकर को दण्ड दिया था। अभिनव समिति के 27 सदस्यों पर अभियोग चलाया गया। और उनमें से तीन को मृत्यु दण्ड दिया गया। नवंबर 1909 में गर्वनर लार्ड मिण्टो पर बम फेंककर हत्या करने का असफल प्रयास Reseller गया था। दामोदर सावरकर भी बंदी बनाकर जहाज से भारत भेजे गये। वे किसी प्रकार जहाज से बच निकले। समुद्र को तैरकर फ्रांस के बंदरगाह में शरण ली। लेकिन वे भी गिरफ्तार कर लिए गए। उन्हें आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया।

3. पंजाब

प्रारंभ में पंजाब में बंगाल तथा महाराष्ट्र जैसी गुप्त समितियां नहीं थी, लेकिन सरकार की भूमि संबंधी नीति के कारण जनता के विभिन्न वर्गो में तीव्र असंतोष फैला। 1907 र्इ. में सरदार अजीत सिंह, भार्इ परमानंद तथा लाला हरदयाल ने क्रांतिकारियों का संगठित Reseller। सरदार अजीत सिंह और सूफी प्रसाद ने मिलकर भारत माता सोसायटी नामक संस्था की स्थापना की। इस समय बांके दयाल जी पंजाब की सभाओं में Single गीत गाया करते थे। जिसकी First पंक्ति थी: पगड़ी़ संभाल ओं जट्ट्टटा पगड़ी़ संभाल ओ पंजाब में यह गीत उतना ही लोकप्रिय था, जितना बंगाल में वन्दे मातरम्। 1907 में लाला लाजपतराय और सरदार अजीत सिंह की गिरफ्तारी से असंतोष बढ़ने लगा। कुछ समय के लिए पंजाब में जन असंतोष इतना बढ़ गया कि King 1907 र्इ. में 10 मर्इ को (जो 1857 की क्रांति के प्रारंभ का दिन था) प्रदेशव्यापी विद्रोह की आशंका करने लगे थे। परंतु 1909 र्इ. में सरकार द्वारा भूमि संबंध् ाी नीति में जनता की इच्छानुसार परिवर्तन कर दिये जाने पर क्रांतिकारी गतिविधियों में कमी आर्इ। दिल्ली उस समय पंजाब का ही Single हिस्सा थी। बंगाली And पंजाबी देशभक्तों के लिए दिल्ली संगम स्थल था। 23 दिसम्बर, 1912 को दिल्ली के राजधानी बनने पर गर्वनर जनरल हार्डिंग के ऊपर बम फेंककर हत्या का असफल प्रयास Reseller गया। मर्इ, 1913 लाहौर में अंग्रेज अधिकारियों की हत्या का प्रयत्न Reseller गया। इस घटना के फलस्वReseller दिल्ली के क्रांतिकारियों का पता लग गया। दिल्ली “ाड़यंत्र काण्ड में 13 व्यक्ति गिरतार किये गये। मास्टर अमीरचन्द्र इस समय दिल्ली के सबसे बड़े क्रांतिकारी थे।

4. मद्रास

मद्रास में भी क्रांतिकारी आंदोलन का सूत्रपात हुआ। विपिनचन्द्र पाल ने 1907 में मद्रास का दौरा कर अपने विचारों का प्रचार Reseller। अरविंद घोष के विरूद्ध गवाही न देने के कारण उन्हें 6 माह का दण्ड दिया गया। कारावास से छूटने पर उनके सम्मान में स्थानीय क्रांतिकारी नेता सुब्रहाण्यम शिव And चिदम्बरम पिल्ले ने स्वागत का आयोजन Reseller। फलस्वReseller इन दोनों को 12 मार्च 1909 को बंदी बना लिया गया, इसकी प्रतिक्रिया टिनेवली में उपद्रव के Reseller में हुर्इ। शासन ने समाचार पत्र के संपादकों And आंदोलनकारी नेताओं को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया। इससे जनता में उत्तेजना फैल गर्इ। क्रांतिकारी संगठित होने लगे। उन्होनें सरकारी संपत्ति को हानि पहुंचायी और पुलिस चौकी And थानों पर हमले किये गये। शासन का दमन चक्र शुरू हो गया। नवयुवकों में उत्तेजना जागृत हुर्इ। एम.पीतिहल आचार्य And बी.बी. एस. नय्यर उनके प्रेरणास्रोत थे। 17 जून 1911 को टिनेवली के क्रांतिकारियों ने जिला मजिस्ट्रेट ऐश की हत्या कर दी गर्इ।

5. विदेशी में क्रांतिकारी आंदोलन

Indian Customer क्रांतिकारियों की गतिविधियां देश तक ही सीमित न थी। अपितु वे विदेशों में भी सक्रिय थे। इंग्लैण्ड में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने 1905 में नेशनल होमरूल सोसायटी की स्थापना की। उनके द्वारा इंडियन सोशियालाजिस्ट नामक मासिक पत्र का प्रकाशन Reseller जाता था। दामोदर विनायक सावरकर ने 1906 में लंदन पहुंचकर Indian Customer क्रांतिकारियों की सहायता का कार्य प्रारंभ Reseller। उन्होनें वहां से अपने भार्इ गणेश सावरकर को पिस्तौलें भेजी थी। गणेश सावरकर को ब्रिटिश शासन के विरूद्ध Fight की घोषणा करने के अपराध में देश निष्कासन का दण्ड मिला था। विनायक सावरकर को लंदन में गिरफ्तार कर अण्डमान में आजीवन कारावास का दण्ड दिया गया था।

फ्रांस में क्रांतिकारियों की सहायता मैडम भीखाजी कामा करती थी। Single गुजराती व्यापारी एम.एस.राना Single पारसी महिला भीखाजी कामा से विवाह कर पेरिस में बस गये थे। इनके द्वारा Indian Customer छात्रों को दो हजार Resellerए की यात्रा छात्रवृत्तियां दी जाती थी। मैडम कामा वन्देमातरम् नामक पत्र का संपादन करती थी। यूरोप के Indian Customer क्रांतिकारी भारत में क्रांतिकारियों की सहायता करते थे। ब्रिटिश शासन के द्वारा किये जा रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिए मदनलाल धींगंगंगरा ने सर फ्रांसिस कर्जन विली, जो भारत-मंत्री कार्यालय के एडीसी थे, को 1 जुलार्इ, 1909 को गोली मार दी थी। इस अपराध के लिए धींगरा को मृत्यु दण्ड दिया गया। मदनलाल धींगरा ने अभियोग के समय बयान देते हुए कहा था कि परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ा देश सदैव Fightस्थल ही बना रहता है। इसी प्रकार अमेरिका महाद्वीप में भी Indian Customer क्रांतिकारी सक्रिय थे। लाला हरदयाल ने 1913 में सेनफ्रांसिसको में गदर पार्टी का गठन Reseller था। उन्होनें उर्दू And गुरूमुखी में दो समाचार पत्र निकाले तथा अंग्रेजों के विरूद्ध संगठित संघर्ष का नेतृत्व Reseller। कनाडा And अमेरिका में गदरपार्टी की अनेक शाखाएं खोली गयी। मार्च 1914 में उन्हें अमेरिकी सरकार द्वारा बंदी बनाया गया और बाद में वे जमानत पर रिहा किए गए। बाद में वे स्विट्जरलैंड चले गये।

1907 में भार्इ परमानंद भी यूरोप में, इंडिया सोसेसेसायटी से संबंद्ध थे जो प्रवासी Indian Customerों का प्रमुख क्रांतिकारी संगठन था। 1909 में सरदार अजीत सिंह फारस होकर पेरिस पहुंचे थे। 1913 में कोमा गाटा मारू जहाज काण्ड हुआ था। कनाडा में प्रवास करने वाले सिक्खों के संबंध में कनाडा सरकार द्वारा बनाए गए कानून का विरोध करते हुए बाब गुरूदत्तसिंह नामक Single धनी व्यापारी जो कनाडा में बस गये थे, ने Single जापानी जहाज कोमा गाटा मारू किराये पर लिया और यह जहाज सीधे कनाडा के लिए 500 Indian Customerों को लेकर कलकत्ता से चला। कनाडा की सरकार ने इस जहाज को बंदरगाह में घुसने नहीं दिया। उसे डुबाने के लिए Fightपोत भेजे और सिक्खों पर अनेक अत्याचार किए गए। उन पर उबलता पानी डालने का प्रयास Reseller। दो माह तक जहां समुद्र में खड़ा रहा। इसे सिंगापुर And हांगकांग के बंदरगाहों में प्रवेश की अनुमति भी नहीं दी गयी। अंत में वह वापस कलकत्ता पहुॅचा। यात्रियों को Single रेलगाड़ी द्वारा भेजने की योजना बनायी गयी। यात्रियों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह के दमन करने में 8 सिख मारे गये। और अनेक घायल हुए। बाबा गुरूदत्तसिंह भी घायल हुए परंतु बचकर निकल गये। Indian Customerों को कनाडा में बसने रोकने के लिए बनाए गए इस कानून की विधि का सिखों ने विरोध Reseller। मेवासिंह ने कनाडा के विदेश विभाग के प्रधान होपकिंस की हत्या कर दी। इस कार्य में भी गदर दल ने प्रमुख योगदान दिया था।

क्रांतिकारी आंदोलन : द्वितीय चरण

1919 में जब महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन प्रारंभ Reseller गया तो क्रांतिकारियों द्वारा भी इस आंदोलन के परिणामों की उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा की जाने लगी। लेकिन जब इस आंदोलन को अपने लक्ष्य में सफलता प्राप्त नहीं हुर्इ तो क्रांतिकारियों के द्वारा अपने कार्य प्रारंभ कर दिये गये। यह क्रांतिकारी आंदोलन का द्वितीय चरण था।

1. काकोरी केस :

फरवरी 1920 में जेल से रिहा होने के बाद शचीन्द्र सान्याल के द्वारा भारत के सारे क्रांतिकारी दलों को संगंिठत करके हिन्दुस्तान प्रजातांत्रिक संघ की स्थापना की गर्इं। इस क्रांतिकारी दल के द्वारा देश में सशस्त्र क्रांति करने के लिए बड़ी मात्रा में शस्त्र खरीदे गए और इन शास्त्रों की कीमत चुकाने के लिए रेलगाड़ी में जा रहे सरकारी खजाने को लखनऊ के निकट काकोरी में लूटने की योजना बनार्इ गर्इ। 9 अगस्त 1925 को काकोरी के निकट गाड़ी रोक कर क्रांतिकारियों के द्वारा खजाना लूट लिया गया। लेकिन पुलिस गुप्तचर विभाग ने क्रांतिकारियों को गिरतार कर लिया। इन पर मुकदमा चलाया गया। इसे ही काकोरेरेरी “ाड़य़य़यंत्र केसेसेस के नाम से जाना जाता है। इसके नायक थे पंण्डित रामप्रसाद बिस्मिल। इस केस में रामप्रस्रस्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी़, रोशन सिंह और अशफाक उल्लाह को फांसी, शचीन्द्र नाथ सान्याल व बख्शी को आजन्म कारावास, मन्मथनाथ गुप्त को 14 वर्ष की कैद व अन्य को कर्इ वर्ष की सजायें दी गर्इ। सरफरोशी की तमन्ना के गायक रामप्रसाद बिस्मिल ने मुल्को मिल्लत पर इस प्रकार अपनी शहदत दे दी।

2. असेम्बली बमकाण्ड

इसके बाद सरदार भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त, चन्द्रशेखर व राजगुरू आदि के द्वारा क्रांतिकारी दल का नाम जो हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी था, हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रख दिया गया। 10 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध में निकले जुलूस का नेतृत्व करते वयोवृद्ध नेता और शेरे-पंजाब के नाम से प्रसिद्ध लाला लाजपतराय पर अंग्रेज पुलिस कप्तान साण्डर्स के द्वारा भीषण लाठी चार्ज Reseller गया था। जिसके परिणामस्वReseller लालाजी की मृत्यु हो गर्इ। लालाजी की यह मृत्यु भारत के लिए Single राष्ट्रीय अपमान था। और क्रांतिकारियों ने इसका बदला 17 दिसंबर 1928 को गोली मारकर साण्डर्स की हत्या कर ले लिया गया। इसके बाद 8 अप्रैल 1929 को Single और घटना हुर्इ। केन्द्रीय असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी बिल पर बहस चल रही थी। सदन में इस विधेयक की अस्वीकृति निश्चित थी, लेकिन यह भी निश्चित था कि गर्वनर जनर्रल अपने विशेष अधिकारों के आधार पर इसे कानून का Reseller दे देगा। इसके First सरकार द्वारा जनता की इच्छा के विरूद्ध बल पूर्वक ट्रेड डिस्प्यूटस बिल पास Reseller गया था। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी की केन्द्रीय समिति के निर्णय पर इस बिल को रूकवाने और सरकार को जनता का मूल्य समझाने के लिए असेम्बली में बम फेंका गया था। इस कार्य के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चुना गया। यह भी निश्चत Reseller गया कि ये व्यक्ति बम फेंकने के बाद भागे नहीं वरन् अपने आपको गिरफ्तार करवा दें। तथा कोर्ट में बयान देकर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के उद्देश्य और कार्यक्रम पर प्रकाश डालें।

8 अप्रैल 1921 को जब पब्लिक सेफ्टी बिल पर मत पड़ने वाले थे तो सरदार भगतसिंह ने दिल्ली की केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंका। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने इंकलाब जिन्दाबाद, साम्राज्यवाद का नाश हो के नारे लगाए। बम के साथ फेंके गये पर्चे में लिखा हुआ था बहरों को सुनाने के लिए बमों की Need है। बम फेंकने का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं, वरन् देश में जागृति पैदा करना ही था। भगत सिंह और दत्त ने अपने आपको गिरफ्तार करवा दिया गया। पुलिस ने इन पर मुकदमा चलाया। अदालत में Single लंबा बयान देकर इन क्रांतिकारियों ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के उद्देश्यों और कार्यक्रमों पर प्रकाश डाला। पुलिस ने सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के अतिरिक्त उनके कर्इ साथियों को गिरतार Reseller था। मुकदमें की कार्यवार्इ के दौरान अदालतों में ये क्रांतिकारी ‘सरफोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है’ और ‘मेरा रंग दे बसंती चोला’ जैसी गीत गाते थे। इन क्रांतिकारियों ने जेल की अHumanीय स्थिति के विरूद्ध आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया। इस लंबे अनशन से Indian Customer जनता बहुत क्षुब्ध और उद्धेलित थी। अनशन के 64 वें दिन 13 सितंबर को यतीनदास की मृत्यु हो गर्इ। मौत की खबर सुनकर पूरा देश रोया। 23 मार्च, 1931 को सरदार भगत सिंह शिवाराम, राजगुरू और सुखदेव को फांसी की सजा दे दी गर्इ। फांसी के तख्ते पर ये नौजवान क्रांतिकारी गा रहे थे- दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत, मेरी मिट्ट्टी से भी खुशबू-ए-वतन आयेगी। शहीदों के इस बलिदान पर सारे देश में शोक मनाया गया।

3. चटगांव विद्रोह

इस काल में बंगाल में भी क्रांतिकारी संगठित होने लगे इस क्षेत्र में सबसे अधिक सक्रिय था, चटगांव क्रांतिकारियों का वर्ग जिसके नेता मास्टर Ultra siteसेन थे, और उनके सहयोगी अनंत सिंह, गणेश घोष और लोकीनाथ बाठल थे। इन्होनें चटगांव विद्रोह की योजना बनार्इ, जिसमें चटगांव के दो शास्त्रागारों पर कब्जा कर हथियारों को लूटना, संचार व्यवस्था को Destroy करना और रेल-संपर्क को भंग करना शामिल था। निश्चित दिन 18 अप्रैल 1930 को पुलिस शास्त्रागार पर कब्जा कर लिया गया, किंतु ये लोग गोला-बारूद पाने में असफल रहे। वंदे मातरम् और इंकलाब जिंदाबाद के नारों के बीच कालेज शस्त्रागार के बाहर Ultra siteसेन ने तिरंगा फहराया और Single काम चलाऊ क्रांतिकारी सरकार के गठन की घोषणा की। लेकिन ये मुट्ठी भर युवा क्रांतिकारी ब्रिटिश सेना से लोहा नहीं ले सकते थे, अत: जलालाबाद की पहाड़ियों में जमकर संघर्ष के बाद Ultra siteसेन और कर्इ अन्य बवाल के गांवो में छिपने में सफल रहे, जहां बेइंतहा जुल्म के बावजूद गांव वालो ने इन्हें शरण दी। लेकिन फरवरी 1933 में Ultra siteसेन गिरफ्तार कर लिये गये और 12 जनवरी 1934 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया।

काकोरी केस में चन्द्रशेखर आजाद भी शामिल हुए थे, परंतु वे सरकार के हाथ नहीं आये। अब क्रांतिकारी दल के नेतृत्व का भार चन्द्रशेखर आजाद पर आया, उनके सहयोगी थे, यशपाल, सुखदेव राज, राधामोहन गोकुल जी और भगवती चरण बोहरा। श्री बोहरा की धर्मपत्नी श्रीमति दुर्गा देवी ने भी क्रांतिकारी आंदोलन में साहसिक भूमिका निभार्इ।

वायसराय लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी तथा जनता की अपीलों के बाद भी भगत सिंह तथा उनके साथियों के मृत्युदंण्ड को कम नहीं Reseller था। चन्द्रशेखर आजाद तथा यशपाल ने 23 दिसंबर 1929 र्इ. को निजामुद्दीन स्टेशन के पास वायसारय इरिवन की ट्रेन को बम से उड़ा देने की योजना बनार्इ। निश्चित समय पर सफल कार्यवाही के बावजूद वायसराय बाल-बाल बच गये। इसी दिन Single क्रांतिकारी हरीकिशन ने भी पंजाब के गर्वनर पर गोली चलार्इ, वे घायल हो गये किन्तु उनकी मृत्यु नहीं हुर्इ।

चन्द्रशेखर यशपाल को रूस भेजना चाहते थे, ताकि वहां से स्वाधीनता-संघर्ष में कुछ सहायता प्राप्त की जा सके। 27 फरवरी 1931 र्इ. को वे इस प्रसंग में क्रांतिकारी सुखदेव राज से इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में मंत्रणा कर रहे थे कि पुलिस वहां आ पहुंची और दोनों तरफ से गोलीबारी की गर्इ और आजाद भी शहीद हो गए। आजाद की मृत्यु से क्रांतिकारी दल की अपूरणीय क्षति हुर्इ। क्रांतिकारियों के अदम्य साहस, देशप्रेम और बलिदान ने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन में Single नया अध्याय जोड़ा है। केन्द्रीय संगठन की कमी, धन के अभाव और शिक्षित युवा वर्ग तक सीमित रहने के कारण थे, अपने उद्देश्य .. …….. भारत की स्वतंत्रता तो हासिल ना कर सके पर इन्हें असफल भी नहीं माना जा सकता। संपूर्ण भारत उनके बलिदानों के समक्ष नतमस्तक हुआ है।

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