आयकर क्या है?

आयकर Single वार्षिक कर होता है जो प्रत्येक कर निर्धारण वर्ष में निर्धारित दरों से गत वर्ष की कुल आय पर लगाया जाता है। यह कर प्रत्येक ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसकी गत वर्ष (वित्तीय वर्ष) की कर योग्य आय न्यूनतम कर योग्य सीमा से अधिक हो, कर की निर्धारित दरों से केन्द्रीय सरकार को चुकाना होता है। केन्द्रीय सरकार आयकर की राशि को केन्द्रीय वित्त आयोग की अनुशंसा के आधार पर राज्य सरकारों में बांट देती है। आयकर पर अधिभार (Surcharge) की राशि राज्य सरकारों में नहीं बांटी जाती है वरन् इस राशि पर केन्द्रीय सरकार का ही अधिकार रहता है।

भारत में आयकर का History

भारत में First बार आयकर सन् 1860 ई. में सर जेम्स विलसन (Sir James Wilson) द्वारा लगाया गया था। सन् 1886 ई. में First Indian Customer आयकर अधिनियम पारित हुआ जो 1917 तक यथावत लागू रहा। सन् 1918 ई. में Single नया आयकर अधिनियम बनाया गया जिसमें यह व्यवस्था थी कि चालू वर्ष की आय पर उसी वर्ष में कर निर्धारण Reseller जायेगा। यह व्यवस्था आयकर अधिनियम 1922 के द्वारा बदल दी गई और इस नये अधिनियम में यह व्यवस्था की गयी कि आयकर गत वर्ष की आय पर चालू वर्ष (कर निर्धारण वर्ष) में लगाया जावेगा। सन् 1922 ई. के इस अधिनियम में समय-समय पर संशोधन होते रहे और सन् 1961 ई. में नया आयकर अधिनियम पारित हुआ। यह अधिनियम (आयकर अधिनियम 1961) 1.4.1962 से जम्मू व कश्मीर सहित सम्पूर्ण भारत में लागू हुआ। इस अधिनियम के प्रावधान 1.4.1990 से सिक्किम में भी लागू हो गये।

आयकर कानून के संघटक

आयकर सम्बन्धी व्यवस्थाओं को समझने के लिए इन कानूनों की जानकारी आवश्यक है-

  1. पूर्णतया संशोधित आयकर अधिनियम 1961;
  2. पूर्णतया संशोधित आयकर नियम 1962;
  3. प्रत्येक वर्ष पारित Reseller गया वित्त अधिनियमय
  4. समय-समय पर जारी की गई अधिसूचनाए 
  5. केन्द्रीय प्रत्यक्ष बोर्ड द्वारा समय-समय पर जारी किये गये परिपत्र And स्पष्टीकरण तथा
  6. न्यायिक निर्णय।

आयकर अधिनियम 1961 –

यह अधिनियम 1 अप्रैल, 1962 से सम्पूर्ण भारत में लागू हुआ, जिसमें कर योग्य आय व उस पर कर के निर्धारण से सम्बन्धित प्रावधान, कर निर्धारण प्रक्रिया, अपील, शासित अपराध And अभियोजन के सम्बन्ध में प्रावधान दिये हुये हैं। इस अधिनियम में वार्शिक केन्द्रीय बजट तथा विभिन्न संशोधनों के द्वारा संशोधित प्रावधानों का समावेश Reseller जाता है। वर्तमान में इस अधिनियम में 298 धाराए तथा 14 अनुसूचियॉ (Schedules) हैं।

आयकर नियम 1962 –

केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा आयकर अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए आयकर नियम 1962 बनाये गये हैं। बोर्ड द्वारा समय-समय पर नियमों में संसद की Agreeि से संशोधन Reseller जाता है।

वित्त अधिनियम  –

केन्द्रीय वित्त मंत्री करों में परिर्वतन के प्रस्ताव वित्त विधेयक (Finance Bill) के माध्यम से संसद के सम्मुख प्रस्तुत करता है। विधेयक को संसद द्वारा पारित करने तथा राष्ट्रपति द्वारा इस पर Agreeि दिये जाने पर यह अधिनियम बन जाता है। इस अधिनियम की First अनुसूची में आयकर की दरों के सम्बन्ध में चार भाग दिये हुये होते हैं –

  • भाग I : इस भाग में चालू कर निर्धारण वर्ष के सम्बन्ध मे आयकर की दरें दी हुई होती है। वित्त अधिनियम 2010 में कर निर्धारण वर्ष 2010-11 के सम्बन्ध में लागू दरें दी हुई हैं।
  • भाग II : इस भाग में चालू वित्तीय वर्ष में कमाई गई आयों पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती की दरें दी हुई होती है। जैसे- वित्त अधिनियम 2010 में वित्तीय वर्ष 2010-11 में कमाई जाने वाली आयों पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती की दरें दी हुई हैं।
  • भाग III : इस भाग में वते न शीर्षक में कर योग्य आयों पर उद्गम स्थान पर कर की कटौती करने के लिए दरें दी हुई होती हैं। वित्त अधिनियम 2010 में वित्तीय वर्ष 2010-11 से सम्बन्धित उद्गम स्थान पर कर की कटौती की दरें दी हुई हैं।
  • भाग IV : इस भाग में शुद्व कृषि आय की गणना करने के सम्बन्ध में नियम दिये हुये होते है। 

सामान्यत : भाग II तथा भाग III की दरें ही अगले वित्त अधिनियम में भाग-I की दरों के Reseller में शामिल की जाती हैं।

यदि वित्त अधिनियम निर्धारित समय पर पारित नहीं हो पाता है तो पिछले वर्ष की दरें अथवा प्रस्तावित वित्त विधेयक (Finance Bill) की दरें, जो भी करदाता के पक्ष में हो, कर निर्धारण के लिए लागू होती हैं। कर निर्धारण वर्ष 2010-11 के लिए वित्त अधिनियम 2010 तथा पूर्व के वित्त अधिनियमों के प्रा्रावधान लागू होंगें।

अधिसूचनाए –

केन्द्रीय सरकार द्वारा समय-समय पर सरकारी गजट में प्रकाशित अधिसूचनाओं की भी जानकारी करना आवश्यक है।

परिपत्र And स्पष्टीकरण – 

केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड द्वारा विभागीय अधिकारियों के लिए दिशा निर्देश And अनुदेश परिपत्रों के माध्यम से जारी किये जाते हैं, जिनकी जानकारी भी आवश्यक है।

न्यायिक निर्णय – 

उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये विभिन्न निर्णय आयकर के प्रावधानों की सही व्याख्या करने में सहायक होते हैं। अत: ऐसे निर्णयों की जानकारी भी आवश्यक है।

महत्वपूर्ण परिभाषाए 

आय (Income) [धारा 2(24)]

आयकर अधिनियम की धारा 2(24) के According आय में मदें सम्मिलित होती हैं :

  1. लाभ तथा अधिलाभ।
  2. लाभांश।
  3. पूर्णतया अथवा आंशिक Reseller से पुण्यार्थ अथवा धार्मिक उद्देश्यों के लिये स्थापित प्रन्यास या संस्था, वैज्ञानिक शोध संगठन, खेल-कूद संघ या संस्था, विश्वविद्यालय अथवा अन्य शिक्षण संस्था चिकित्सालय अथवा अन्य चिकित्सा संस्था अथवा निर्वाचन प्रन्यास द्वारा प्राप्त ऐच्छिक चन्दे।
  4. धारा 17(2) तथा (3) में described अनुलाभ (Perquisites) अथवा वेतन के बदले मिले हुए लाभ (Profitsi in lieu of salary)।
  5. कोई विशेष भत्ता अथवा लाभ जो उपर्युक्त (iv) में described अनुलाभों के अतिरिक्त, जो करदाता को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए पूर्णतया, अनिवार्यतया तथा विशिष्टतया किये गये व्ययों की पूर्ति के लिए विशेष Reseller से स्वीकार किये गये हों।
  6. करदाता को स्वीकृत भत्ता जो उसे अपने कर्त्तव्यों का साधारणतया पालन करने के स्थान पर अथवा उस स्थान पर जहॉ वह सामान्यत: रहता हैय अपने निजी व्ययों की पूर्ति के लिए हो अथवा जीवन-निर्वाह की बढी हुई लागत की पूर्ति के लिए हों, जैसे- नगर क्षतिपूर्ति भत्ता। 
  7. किसी कम्पनी के संचालक द्वारा या किसी अन्य व्यक्ति जिसका कम्पनी में सारवान हित हो अथवा संचालक या ऐसे व्यक्ति के रिश्तेदार द्वारा कम्पनी से प्राप्त किये हुए लाभ या अनुलाभ का मूल्य तथा कम्पनी के द्वारा उक्त लोगों की तरफ से किये गये ऐसे दायित्वों का भुगतान जो यदि कम्पनी नहीं करती तो इन लोगों को करना पड़ता।
  8. प्रतिनिधि करदाता या लाभ प्राप्तकर्ता को प्राप्त किसी सुविधा या लाभ का मूल्य। लेकिन प्रतिनिधि करदाता द्वारा भुगतान की गई कोई राशि जो लाभ प्राप्तकर्ता के लाभ के लिए की गई हो अथवा जिसका भुगतान साधारणतया लाभ प्राप्तकर्ता को करना होता, यह लाभ प्राप्तकर्ता की आय होगी।
  9. वह धन जो धारा 28 (ii), धारा 28 (iii), धारा 41 तथा धारा 59 के According ‘व्यापार अथवा पेशे के लाभ’ शीर्षक की आय में कर-योग्य है, इनमें सम्मिलित हैं- (अ) क्षतिपूर्ति की प्राप्य या प्राप्त राशि, (ब) व्यापार या पेशे की आय जो व्यापार संध द्वारा अपने सदस्यों के लिए कोई विशेष सेवा करने से प्राप्त हो, (स) गत वर्ष में प्राप्त ऐसी कोई राशि जिसके सम्बन्ध में करदाता को व्यय के Reseller में गत वर्ष से पूर्व किसी वर्ष में कटौती स्वीकृत कर दी गई हो, जैसे डूबत-ऋण जो अपलिखित कर दिया गया हो तथा जो बाद में किसी वर्ष में प्राप्त हो जाये।
  10. धारा 28 (अ) के अन्तर्गत, फर्म से उसके साझेदार को प्राप्त ब्याज, वेतन, बोनस, कमीशन अथवा अन्य पारिश्रमिक, जिस सीमा तक फर्म की आय में से घटाया गया हो।
  11. आयात नियंत्रण आदेश 1955 के अन्तर्गत प्राप्त लाइसेंस को बेचने से लाभ।
  12. भारत सरकार की किसी योजना के अन्तर्गत निर्यात के लिए किसी व्यक्ति को प्राप्त अनुदान।
  13. सीमा शुल्क तथा केन्द्रीय आबकारी शुल्क वापसी नियम 1971 के अन्तर्गत किसी व्यक्ति को निर्यात के सम्बन्ध में सीमा शुल्क या आबकारी शुल्क की वापसी की राशि।
  14. ऐसे किसी लाभ या अनुलाभ का मूल्य जो व्यापार या पेशा करने के कारण प्राप्त हुआ हैं।
  15. पॅूजी लाभ जो धारा 45 के According कर-योग्य हैं।
  16. Single पारस्परिक बीमा कम्पनी या सहकारी समिति के बीमा व्यवसाय के लाभ जिनकी गणना धारा 44 के According की गई हो।
  17. लाटरी, वर्ग पहेली, धुड़दौड़ आदि के ईनाम, ताश के खेल या अन्य खेलों में जीती हुई राशि या शर्त आदि से आय। ऐसी आय को सामान्य भाषा में आकस्मिक आय (Casual Income) कहा जाता हैं।
  18. भविष्य निधि अथवा सुपरएनुएशन फण्ड अथवा कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम 1948 के अन्तर्गत स्थापित किसी फण्ड अथवा कर्मचारी कल्याण के लिए स्थापित किसी फण्ड में कर्मचारियों का अंशदान नियोक्ता की आय होगी।
  19. महत्वपूर्ण व्यक्ति बीमा पॉलिसी (Keyman Insurance Policy) के अन्तर्गत प्राप्त कोई राशि (बोनस सहित)।
  20. धारा 28 (अ) के अन्तर्गत किसी ऐसे अनुबन्ध के अन्तर्गत प्राप्त अथवा प्राप्य कोई राशि जो किसी व्यवसाय से सम्बन्धित कोई भी क्रिया के संचालन न करने के सम्बन्ध में हो तथा किसी भी तकनीकी जानकारी पेटेण्ट, कॉपीराइट, ट्रेड मार्क लाइसेंस, फ्रेन्चाइज अथवा इसी प्रकार की अन्य सूचनाओं के आदान प्रदान करने में भागीदार न बनने के सम्बन्ध में हो।
  21. धारा 52 (2) (vii) में described व्यक्तिगत उपहारों की राशि बशर्ते यह 50,000 रु. से अधिक हो। 
  22. सहकारी समिति द्वारा अपने सदस्यों के साथ संचालित बैंकिंग के किसी भी व्यवसाय के लाभ।

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