अकबर का History

जलाल्लुद्दीन मुहम्मद का जन्म अमरकोट के हिन्दू सामन्त राणा बीरसाल के महल में 15 अक्टूबर 1542 के अकबर की नव विवाहित हमीदा बानू बेगम से हुआ । इसका पिता इस समय शेरशाह के हाथों पराजित होकर इधर-उधर भटक रहा था । इसी बीच अकबर अपने माता-पिता से बिछुड़ गये और उसके चाचा ने इनका पालन पोषण Reseller । अकबर का बाल्यकाल अन्यन्त संकटपूर्ण स्थिति में व्यतीत हुआ और शिक्षा के प्रति सहयोग नहीं मिल पाया परन्तु उसने तीन और तलवार चलाने, कुशलता से घुड़सवारी करनासीख गया । केवल 12 वर्ष की अवस्था में 1554 को हुमायूं ने उसे गजनी का सुबेदार नियुक्त Reseller था । 1555 र्इ. में अकबर को लाहौर पर अपना अधिकार जमा लिया । इसके बाद हुमायूं ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया ।

अकबर का राज्यारोहण- 

27 जनवरी 1556 को जब हुमायूं का निधन हुआ उस समय अकबर बैरम खां के पास कलानौर (पंजाब) में था वहीं तेरह वर्ष की अवस्था में 14 फरवरी 1556 को अकबर का राज्याभिषेक कर दिया और उसको मुगल सम्राट घोषित कर दिया ।

अकबर की कठिनार्इयां-

साम्राज्य के विरोध- 

अकबर जिस समय King बना कठिनाइयों का अम्बार लगा हुआ था । पुराने दुश्मन हारे थे कुचले नहीं थे, सूरवंशीय सिकन्दर, इब्राहीम और आदिलशाह मुगलों को ललकार रहे थे । अफगान सत्ता को पुन: स्थापित करना चाहते थे । आदिल शाह के मंत्री हेमू ने आगरा व दिल्ली पर अधिकार कर लिया था व स्वतंत्र राज्य स्थापित करने का प्रयास करने लगा।

राजपूत King- 

गुजरात, मालवा स्वतत्रं हो चुके थे तथा कर्इ राजपतू King भी शक्तिशाली हो गये थे । देश की जनता मुगलों को हेय की दृष्टि से देखती थी । आर्थिक संकट से खजाना खाली हो चुका था ।
पानीपत का दूसरा Fight 1556 र्इ.- बैरम खां की सहायता से अकबर ने चुनौतियों का सामना Reseller । पानीपत के Second Fight में हेतु को पराजित करके 1556 र्इ. में पुन: दिल्ली आगरा पर अधिकार कर लिया ।

अकबर का सरदारों के साथ संघर्ष –

हेमू की पराजय के उपरानत अगले चार वर्ष तक मुगल राज्य की सत्ता अकबर के संरक्षक के Reseller में बैरम खां के हाथ में रही । उसने दिल्ली-आगरा के समीपवर्ती क्षेत्र में मुगल सत्ता को संगठित करने का कार्य सफलता के साथ Reseller ।

  1. बैरम खां से संघर्ष (1560 र्इ.)- 1560 र्इ. में अकबर तथा बैरम खां में मतभेद पैदा हो गये । मतभेद के कारण थे – 
    1. अकबर के द्वारा सत्ता के स्वतंत्र प्रयोग की इच्छा, 
    2. बैरम खां के आचरण से अकबर का असंतुष्ट होना तथा
    3. बैरम खां के दुश्मनों द्वारा सम्राट के कान भरना । अकबर ने बैरम खां को मक्का जाने का आदेश दिया, किन्तु अपने विरोधियों के आचरण से अपमानित होकर उसने विद्रोह कर दिया । पराजित होने पर उसने आत्मसमर्पण कर दिया, किन्तु अकबर ने उसे पुन: मक्का जाने का निर्देश दिया ।
  2. आधम खां (1569 र्इ.)- आधम खां अकबर की धाय महंम अंगा का पुत्र था । मां के प्रभाव से उसने अपनी शक्ति बढ़ा ली थी । मालवा विजय के बाद उसके आचरण ने अकबर को नाराज कर दिया और जब सने अकबर व राज्य सत्ता को अपने पूर्ण नियंत्रण में लेने का प्रयास Reseller तो अकबर ने उसे मृत्यु दण्ड दे दिया ।
  3. उजबेक सरदारों का विद्रोह (1561-67 र्इ.)- अकबर के शासन के आरम्भिक वर्षो में उजबेक अमीर बहुत प्रभावशाली थे । वह पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार तथा मालवा में सक्रिय थे । अपने प्रभाव And शक्ति के मद में वे दुस्साहसी हो गये थे तथा 1561-67 र्इ. के दौर में उन्होंने अनेक विद्रोह किए जिनका अकबर ने दमन Reseller ।

उजबेक सरदारों का 1567 र्इ. का विद्रोह Historyनीय है, क्योंकि इस विद्रोह के अवसर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मिर्जा बन्धुओं ने भी विद्रोह कर दिया तथा अकबर के सौतेले भार्इ मिर्जा हकीम ने भी इनका लाभ उठाने भारत की ओर कूच Reseller । स्थिति नाजुक थी, किन्तु अकबर ने उसका दृढ़ता से सामना कर इन विद्रोहों का दमन करने में सफलता प्राप्त की । इस प्रकार 1561-67 र्इ. तक का समय अकबर को विद्रोही सरदारों का दमन करने में बीता । ये सब स्वतंत्र King बनने का स्पप्न संजोए हुए थे ।

अकबर का साम्राज्य विस्तार-

(1) दिल्ली, आगरा विजय (1556 र्इ.)- 

1556 र्इ. में हुमायूं की मृत्यु हो गर्इ । इस समय अकबर के अधिकार में सिर्फ पंजाब का छोटा सा क्षेत्र था । उसने संरक्षक बैरम खां के साथ पानीपत के द्वितीय Fight में हेमू को Defeat कर दिल्ली-आगरा को अपने अधिकार में ले लिया ।

(2) ग्वालियर, अजमेर, जौनपुरुर (1556-60 र्इ.)- 

1556 से 1560 र्इ. के भीतर ग्वालियर, अजमेर तथा जौनपुर पर विजय प्रापत की तथा उन्हें मुगल साम्राज्य में मिला लिया ।

(3) मालवा (1560-62 र्इ.)- 

अफगान सरदार बाजबहादुर मालवा का King था ।अकबर ने आधम खां तथा मीर मुहम्मद के नेतृत्व में Single सेना मालवा पर चढ़ार्इ करने के लिए भेजी। मालवा नरेश हार गया किन्तु मुगलों का मालवा पर अधिकार अस्थायी रहा । बाजबहादुर की प्रेयसी Resellerमती ने विषपान करके मुगल शत्रुओं से अपने सतीत्व की रक्षा की । 1562 र्इ. में अकबर ने पुन: Single सेना मालवा पर आक्रमण करने हेतु भेजी । इस समय बाजबहादुर ने अकबर से सन्धि कर ली और मालवा मुगल साम्राज्य में विलीन कर लिया गया ।

(4) गोंडवाना (1564 र्इ.)- 

अकबर के समय में गोंडवाना या गढ़ा-कटंगा के राज्य का King वीरनारायण था । उसके अल्पवयस्क होने के कारण उसकी विधवा माता चन्देल राजवंश की पुत्री दुर्गावती राज्य कार्य को दख रही थी । वह कुशल सेनापति And प्रशासिका थी । अपने पड़ोसी राज्यों से उसने अनेक Fight किये थे ।

अकबर ने आसफ खां को गोंडवाना पर आक्रमण कर उसे मुगल साम्राज्य में मिलाने का आदेश दिया । आसफ खां ने 1564 र्इ. में गोंडवाना पर आक्रमण Reseller । दुर्गावती ने बड़ी वीरता के साथ आसफ खां का सामना Reseller, किन्तु वह पराजित हुर्इ तथा उसने आत्महत्या कर ली । गोंडवाना की विजय से मुगलों को अपार सम्पत्ति लूट में प्राप्त हुर्इ ।

(5) चित्तौड (1567-68 र्इ.)- 

1567 र्इ. से अकबर ने राजपूताना के विजय की ओर ध्यान दिया । चित्तौड़ के सामरिक महत्व, राजनीतिक प्रतिष्ठा व समृद्धि वे वशीभूत होकर अकबर चित्तौड़ पर अपना आधिपत्य करना चाहता था । उसकी यह आकांक्षा Fight के द्वारा ही सम्भव थी । इस समय चित्तौड़ का King राणा उदयसिंह था । जयमल तथा पन्ना पर दुर्ग की रक्षा का भार छोड़कर उदयसिंह वहां से हट गया । कड़े संघर्ष के उपरान्त 1568 र्इ. में अकबर ने किले पर अद्धिाकार कर लिया था । वहां निर्दोष लोगों की जिनकी संख्या सैकड़ों में थी, अकबर ने हत्या करा दी । यह पहला तथा आखिरी अवसर था जब इस प्रकार का निन्दनीय कृत्य उसके द्वारा Reseller गया ।

कुछ ही समय में रणथम्भौर, कार्लिजर, जोधपुर, जैसलमेर तथा बीकानेर के राज्य भी अकबर की अधीनता में आ गए, किन्तु मेवाड़ का प्रतिरोध समाप्त नहीं हुआ । राणा उदयसिंह के बाद जब उसका पुत्र राणा प्रताप King बना तो अकबर ने उससे संबंध स्थापित करने हेतु कर्इ मिशन भेजे, किन्तु संधि की शर्तो पर Agreeि नहीं हो सकी तथा अकबर को Fight का रास्ता अपनाना पड़ा । 1576 र्इ. में हल्दी घाटी की पराजय के उपरान्त राणा प्रताप ने जंगल व पहाड़ों को अपना निवास बनाया तथा मुगलों के साथ अनवरत संघर्ष जारी रखा । अकबर के शासनकाल में मेवाड़ को पूरी तरह अपने अधिकार में न Reseller जा सका ।

(6) गुजरात (1574-76 र्इ.)- 

अकबर समूचे भारत पर अपना Singleछत्र सामा्र ज्य स्थापित करना चाहता था । 1572 र्इ. को उसने गुजरात की ओर कूच Reseller । वहां के King मुजफ्फर शाह ने तुरन्त अधीनता स्वीकार कर ली पर अकबर के जाते ही उसने फिर स्वतंत्र होने की घोषणा कर दी । अकबर ने फिर चढ़ार्इ कर दी । इस बार मुजफ्फरशाह हार गया तथा उसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली ।

(7) बंगाल, बिहार (1574-76 र्इ.)- 

इस समय बगांल तथा बिहार का King सुलेमान खां था । उसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली । 1572 में उसकी मृत्यु हो गर्इ तथा उसके पुत्र दाऊद खां ने फिर से स्वतंत्रता की घोषणा कर दी । 1574 र्इ. में अकबर ने उसके विरोध में फिर से सैनिक कार्यवाही की । दाऊद खां की हार हुर्इ तथा उसे अपमानजनक परिस्थितियों में अकबर की अधीनता स्वीकार करने हेतु बाध्य होना पड़ा । अकबर ने बंगाल, बिहार प्रदेश, सेनापति मुनीम खां की निगरानी में छोड़ दिया । उसकी मृत्यु के बाद दाऊद खां ने फिर विद्रोह कर दिया। अकबर ने उसके विरोध में दूसरी बार सेना भेजी । इस बार अकबर ने उसकी हार के बाद उसका वध करवा दिया तथा बंगाल और बिहार मुगल साम्राज्य में विलीन कर लिये गये ।

(8) काबुल (1585 र्इ.)- 

काबलु का King अकबर का सौतेला भार्इ मिर्जा मुहम्मद हाकिम था । उसके मन में भी भारत विजय की लालसा थी । उसके विरूद्ध भी अकबर ने सैनिक कार्यवाही की । Fight में उसकी हार हुर्इ । अकबर ने दया दिखाकर फिर उसे काबलु सांपै दिया। 1585 र्इ. में उसकी मृत्यु हो गर्इ तब काबुल मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया । इस Fight में बीरबल मारा गया था ।

(9) कश्मीर, सिंध, कंधार (1586-95) र्इ.- 

अकबर ने 1585 र्इ. में भगवान दास को कश्मीर पर आक्रमण करने भेजा । कश्मीर को जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया । उस समय युसुफ कश्मीर का King था । 1591 र्इ. में मिर्जाबेग से सिन्ध भी हस्तगत कर लिया गया। इसको जीतने के चार वर्ष बाद कंधार भी मुगल साम्राज्य का अंग बन गया ।

(10) अहमदनगर- 

अहमद नगर शासिका चादं बीबी थी । वह अपने भतीजे की संरक्षिका थी । 1595 र्इ. में अकबर ने अहमद नगर को लेने का प्रयास Reseller और आक्रमण कर दिया । चांद बीबी बड़ी दृढता से अकबर का विराध Reseller । अकबर दुर्ग हड़पने में असमर्थ रहने के कारण दोनों से सन्धि की गर्इ । मुगलों को सन्धि के दौरान मुगलों की बरार का प्रदेश मिल गया । कुछ समय बाद किसी सैनिक ने चांद बीबी का वध कर दिया । 1600 र्इ. में अहमद नगर मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया । इसी समय उसके बेटे सलीम में विद्रोह खड़ा कर दिया। अकबर उसे दबाने में व्यस्त हो गया तथा उसकी दक्षिण विजय की कामना अधूरी रह गर्इ । 1627-58 र्इ. में जाकर अहमद नगर शाहजहां के शासनकाल में मुगल साम्राज्य में मिलाया जा सका ।

(11) खानदेश (1599 र्इ.)- 

अकबर ने 1599 र्इ. में खानदेश की राजधानी बुरहानपुर को अपने साम्राज्य के अधीन कर लिया । उसके बाद असीरगढ़ के किले को घेर लिया गया, किन्तु सफलता नहीं मिलने पर Single कर्मचारी को रिश्वत देकर अकबर ने किले का दरवाजा खुलवा लिया। इस प्रकार अमीरगढ़ का किला 1601 र्इ. में मुगलों के अधिकार में आ गया ।

अकबर का साम्राज्य बड़ा विस्तृत था । वह पूर्व में बंगाल से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक तथा उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी के तटवर्ती भागों तक विस्तृत था । यह साम्राज्यों 15 प्रान्तों में विभक्त था –
(1) इलाहाबाद, (2) आगरा, (3) अवध, (4) अजमेर, (5) अहमदाबाद (6) बिहार, (7) बंगाल, (8) दिल्ली, (9) काबुल, (10) लाहौर, (11) मालवा दक्षिण के प्रदेश, (12) बरार, (13) मुल्तान, (14) खानदेश, (15) अहमद नगर ।

अकबर की शासन व्यवस्था

अकबर Single कुशल प्रKing था । उसने प्रशासन के क्षेत्र में नवीन सुधारों के द्वारा Single संगठित राज्य प्रबन्ध की बुनियाद स्थापित की । उसने प्रKingीय ढांचे को नीवन स्वReseller प्रदान Reseller ।

(1) केन्द्रीय शासन-

सम्राट- मुगल सम्राट सर्वशक्तिमान, सप्रभुता सम्पन्न, निरंकुश King था । सैनिक तथा असैनिक सारी शक्तियां उसके हाथों में केन्द्रित थीं । वह हर विभाग का सर्वोच्च अधिकारी था । उसके असीमित अधिकार थे । इसके बाद भी वह मन्त्रियों के प रामर्श तथा अधिकारियों के सहयोग से कार्य करता था । मन्त्रियों का परामर्श मानना उसके लिए अनिवार्य नहीं था । बी.ए. स्थिम के According ‘‘सम्राट ने अपने मन्त्रियों के पीछे चलने के स्थान पर उन्हें पीछे चलाता था ।’’

अकबर निंरकुश होकर भी प्रजा का हितैषी था । महल के झरोखे पर बैठकर वह लोगों को दर्शन करता था, उनकी फरियाद भी सुनता था । गुप्त मंत्रणा के लिए अलग कक्ष निर्धारित था। वह धर्म निरपेक्ष सम्राट था, बिना पक्षपात तथा भेदभाव के अनुदान देता था ।

केन्द्री्य विभाग का मन्त्री

  1. वकील या प्रधानमंत्री- वकील या पध्रानमंत्री का स्थान सम्राट के बाद होता था, प्रधानमंत्री सम्राट तथा प्रशासन के बीच कड़ी का काम करता था ।
  2. दीवान या वजीर- राजस्व विभाग का पम्र ख अधिकारी था । वह राज्य की आय और व्यय के लिए उत्तरदायी होता था ।
  3. मीर बख्शी- वह सैन्य विभाग का प्रमख अधिकारी था । वह गुप्तचर विभाग की भी देख-रेख करता था । मीर बख्शी सैनिकों की भर्ती करता था तथा सैनिक-’असैनिक अधिकारियों के वेतन वितरण करता था ।
  4. मुख्य सदर (धार्मिक सलाहकार)- मुख्य सदर का कार्य सम्राट को धार्मिक मामले में सलाह देना था । वह धार्मिक कार्य में दान दी गर्इ भूमि की देख-देख करता था । ‘काजी-उल-कजात’ तथा ‘सद्र-उस-सुदूर’ दोनों का Single ही पद था । न्याय प्रशासन का भार इसी पर होता था ।
  5. मीर साँमा- वह शाहीहरम का प्रमुख अधिकारी होता था । सम्राट के अंगरक्षकों की Appointment करना, हरम में भोजन सामग्री की व्यवस्था करना और अन्य सामग्रियों की आपूर्ति का भार इसी पर होता था ।
  6. अन्य अधिकारी – (1) मीर आतीश (तोपखाने का अधिकारी), (2) दरोगा-ए-डाक, (3) दरोगा-ए-टकसाल ।

(2) प्रान्तीय प्रशासन-

अकबर का सम्पूर्ण सार्माजय 15 सूबों में विभाजित था – (1) बंगाल, (2) बिहार, (3) इलाहाबाद, (4) अवध, (5) आगरा, (6) दिल्ली, (7) मुल्तान, (8) लाहौर, (9) काबुल, (10) अजमेर, (11) मालवा, (12) गुजरात तथा दक्षिण के तीन प्रदेश, (13) अहमद नगर, (14) खानदेश, (15) बरार।

प्रान्तीय अधिकारी-

सूबेदार- वह प्रान्त का प्रमुख अधिकारी होता था । प्रान्तीय सनेा उसके अधिकार क्षेत्र में रहती थी । सूबेदार न्याय का भी सर्वोच्च अधिकारी होता था । इसके अतिरिक्त दीवान, बख्शी, सदर, काजी आदि अनेक अधिकारी होते थे, जो प्रान्तों में शान्ति और कानून And व्यवस्था बनाये रखने का कार्य करते थे ।

(3) स्थानीय प्रशासन-

अकबर ने प्रान्तों को सरकार या जिलों में विभाजित Reseller था, वहां फौजदार, अमलगुजार, खजानदार आदि अधिकारी होते थे । इनका कार्य जिलों या सरकार में न्याय प्रशासन, भू-राजस्व की वसूली और कानून And व्यवस्था बनाये रखना था ।

परगना या तहसील- अकबर ने सरकाराे को परगनों में विभाजित Reseller था । परगनों में शिकदार, अमिल, फोतदार और काननूगाे आदि अधिकारी हाते थे ।

ग्राम-प्रशासन- Single परगने में कर्इ गांव शामिल रहते थे, गावं प्रशासन की छोटी इकार्इ थी । गांव का पूर्ण दायित्व ग्राम पंचायत पर था, मुकदमे भी पंचायतें सुना करती थीं । ग्राम्य सुधार के सारे कामों के लिए ग्राम पंचायतें उत्तरदायी होती थीं । मुकद्दम, पटवारी, चौकीदार, आदि गांव के मनोनीत कर्मचारी होते थे ।

भू-व्यवस्था-अकबर ने शेरशाह को भू-प्रणाली अपनार्इ, पर उसमें सुधार लाकर उसे नवीन स्वReseller प्रदान Reseller । इस भू-व्यवस्था को टोडरमल प्रणाली भी कहते हैं ।

इस व्यवस्था के अंतर्गत अकबर ने King टोडरमल की सहायता से कृषि योग्य भूमि की नाप करवायी कृषि भूमि को चार वर्गो में विभाजित Reseller गया – (1) पोलज- यह सर्वाधिक उपजाऊ भूिम थी, (2) पड़ौती- यह कम उपजाऊ हातेी थी, (3) चाचर- यह किसान खोदकर कृषि योग्य बना सकते थे, (4) बंजर- यह अनुपजाऊ भूमि थी । इस वर्गीकरण से राज्य को उपजाऊ भूमि का सही ज्ञान प्राप्त हो गया तथा भूमि कर निर्धारण में सुविधा हुर्इ । इस व्यवस्था से राज्य तथा किसानों दोनों को लाभ हुआ ।

लगान- King टोडरमल ने 10 वर्षो की औसत उपज के आधार पर किसानों पर भू-राजस्व निश्चित Reseller, जिसे दह साला बन्दोबस्त कहा जाता था । यदि बाढ़ अकाल में फसल Destroy हो जाये तो राजस्व माफ कर दिया जाता था । कृषि उपज तथा फसलों के प्रकार के आधार पर लगान लगाया जाता था । लगान, कृषकों से उनके उत्पादन का Single तिहार्इ निश्चित Reseller गया था । उपज कोटे जाने के पूर्व ही ग्राम प्रधान की सहायता से सर्वे द्वारा साम्राज्य को कुल प्राप्त होने वाले भू-राजस्व का अनुमान लगा लिया जाता था । नील, गन्ना, कपास जैसी फसलों पर लगान नगद देने की प्रथा थी, शेष फसलों पर किसानों को छुट थी कि वे अपना लगान नगद दें अथवा खाद्यान्न के Reseller में ।

न्याय व्सवस्था- अकबर ने न्याय व्यवस्था में भी सुधार लाने का प्रबधं Reseller । न्याय का दायित्व काजियों पर था । कभी-कभी इस पद को मुख्य ‘सद्र’ के साथ मिला दिया जाता था । प्रजा से मिलने या भेंट करने के लिए समय-सारिणी निर्धारित होती थी, जिसमें शहनशाह व अधिकारियों से मिलना होता था । दिन की शुरूआत शहनशाह के झरोखे से दर्शन देने के साथ होता था । जहां से उनके दर्शन के अभिलाषी हजारों की संख्या में प्रजा दर्शन पाती थी, काजियों के निर्णय के विरूद्ध अपील को मुख्य काजी सुनता था । अन्तिम अपील सम्राट सुनता था । मृत्यु दण्ड का अधिकार सम्राट को था, न्याय निष्पक्ष होता था । मुस्लिम, हिन्दू न्याय व्यवस्था परम्परानुसार ही न्याय Reseller जाता था ।

सैन्य व्यवस्था- राजकीय सेना का बड़ा भाग जागीरदारों के पास था, इसकी भार जागीरदारों के उपर था । जिससे साम्राज्य के उपर भार कम आता था । कभी-कभी जागीरदार शक्ति अर्जित करके व्रिदोह कर देते है । इसलिए अकबर ने जागीरदारी प्रथा समाप्त कर दी ।

अकबर की धार्मिक नीति का विकास

अकबर के दरबार इबादत खानों में अनेक हिन्दू मुसलमान विद्वानों को आमंत्रित Reseller जाता था, धार्मिक Discussionओं के दौरान विद्वानों में मत विभिन्नता व झगड़ा हो जाता था । All विद्वान अपने अपने धर्मो के सर्वश्रेष्ठ कहने लगे । किन्तु सबमें समता का आभाव था । इससे अकबर हतोत्साहित हुआ और Single नये धर्म का अवतरण हुआ । Meansात् अकबर ने All धर्मो के गणों को सामिल Reseller जो दीन-ए-इलाही कहलाया । सब धर्मो को पूर्ण स्वतंत्रता दे दी है । अकबर की नीतियों से रूढिवादी मुसलमान भयभीत होने लगे और उसने विद्रोह की भावना उत्पन्न हुर्इ ।

दीन-ए-इलाही- अकबर ने धार्मिक संकीर्णता की सीमाओं को तोड़कर All धर्मो की श्रेष्ठ बातों And गुणों का समावेश Reseller । र्इश्वर Single है इस संसार में अकबर उसका प्रतिनिधि है । उसका कार्य राष्ट्रीयता की भावना से ओतप्रोत था । मुसलमानों And गैर मुसलमानों के आपसी मतभेदों को दूर अपने साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ Reseller ।

अकबर की सांस्कृतिक Singleता And विकास की उपलब्धियां-

अकबद शांति दूत की भांति था व्यक्तिगत जीवन में सुलह-ए-कुल अकबर नीति का उदाहरण थे । जिसने भारत का First सम्राट हुआ कि हिन्दू मुस्लिम Singleता स्थापित करने का प्रयास Reseller । दरबार में हिन्दू पहनावें व तिलक लगाकर आते थे । झरोखा दर्शन, तुलादान की हिन्दु परम्परा का निर्वाह Reseller । समाज में फैली अंधविश्वास कुरीतियां जैसे सती प्रथा And बाल विवाह पर प्रतिबन्ध लगाया किन्तु इसे आंशिक सफलता ही मिली । मुसलमानों को Indian Customer रंग में रंगा और Indian Customer को सम्मानपूर्वक जीने का अवसर प्रदान Reseller ।

अकबर की उदारता And सहिष्णु की नीति-

अकबर ने अपने पूर्ववर्ती Kingों की धार्मिक कट्टरता की नीति को त्याग दिया, धार्मिक सहिष्णुता की नीति का पालन Reseller ।

  1. हिन्दुओं से वैवाहिक संबंध स्थापित करना- राजपूतों से पारिवारिक संबधं कायम होने हिन्दू रीति रिवाज संस्कृति का प्रभाव अकबर के उपर पड़ा ।
  2. बलपूर्वक धर्म परिवर्र्तन की नीति का त्याग- अकबर के पूर्ववर्ती Kingों ने Fight में पकड़े गये स्त्री-पुरूषों को धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य Reseller था । अकबर ने इस नीति का त्याग कर बलपूर्वक धर्म परिवर्तन पर रोक लगा दी ।
  3. तीर्थ यात्रा कर व जजिया कर की समाप्ति- अकबर के पूवर्व र्ती Kingों द्वारा हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा और जजिया कर लिया जाता था तथा जो इन करों को देने में असमर्थ होते थे, उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य Reseller जाता था । अकबर ने 1564 र्इ. में इन करों को समाप्त कर हिन्दुओं के प्रति समानता का व्यवहार Reseller । उसके इस कदम से व्यापाक हिन्दू समाज में अकबर के प्रति सम्मान का भाव जागृत हुआ ।
  4. धार्मिक स्वतंत्रता की नीति- अकबर ने अपने पवू वर्ती Kingों की भांित इस्लाम को राज्य धर्म नहीं बनाया वरन् उसने अपनी प्रजा को धार्मिक स्वतंत्रा प्रदान की । हिन्दुओं को उनके रीति रिवाजों के According उपासना करने, धार्मिक स्थलों या मंदिरों के निर्माण की स्वतंत्रता प्रदान की । हिन्दुओं से जजिया कर हटाया उन्हें धार्मिक स्वतंत्रा दी, दूसरी ओर इस्लाम के उलेमाओं के राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक Singleाधिकार भी समाप्त कर दिया ।
  5. हिन्दुओं की उच्च पदों पर Appointment- 1562 र्इ. में अकबर ने हिन्दुओं और मुसलमानों All लोगों के लिए साम्राज्य में All पद योग्यता के आधार पर खोल दिये । इससे उसका राजदरबार बीरबल, टोडरमल, मानसिंह जैसे प्रतिभाशाली लोगों से भर गया । उसकी इस नीति का हिन्दुओं पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ा और वे शासन के निकट आने लगे ।
  6. हिन्दुओं के रीति-रिवाजों के प्रति उदार- अकबर ने हिन्दुओं के रीति-रिवाजों And आचार-विचार के प्रति उदार का भाव व्यक्त Reseller । उसने हिन्दुओं का त्यौहार मनाना प्रारम्भ Reseller । अकबर कभी-कभी तिलक लगाता था, झरोखा दर्शन देता था और तुलादान करता था। उसने मूंछ रखना प्रारम्भ कर दिया था । उसके पुत्र सलीम का विवाह उसने हिन्दू रीति से करवाया। इतना नहीं जबरदस्ती मुसलमान बनाये गये हिन्दुओं को पुन: हिन्दू धर्म अपनाने की अनुमति प्रदान की । अकबर की इस धार्मिक उदारता का हिन्दू समाज पर अच्छा असर हुआ आम जनता मुस्लिम संस्कृति की ओर आकर्षित हुर्इ । उसी प्रकार आम मुसलमान भी हिन्दू सांस्कृतिक धारा से जुडे़ रहे ।
  7. इबादतखाना की स्थापना- अकबर ने 1576 र्इ. में फतेहपुर सीकरी में इबादतखना की स्थापना की । यहां धर्म, कानून, दर्शन और सांसारिक ज्ञान आदि पर Discussion करने के लिए All धर्मो के विद्वान आते थे । प्रति बृहस्पतिवार को यहां वाद-विवाद और धार्मिक गोष्ठियां होती थी। अकबर प्रत्येक धर्म व नियमों को ध्यानपूर्वक सुनता था । सम्राट स्वयं इसमें सम्मिलित होता था। इन धार्मिक व ज्ञान की Discussionओं से अकबर ने अनुभव Reseller कि विश्व के All धर्म और विश्वास Single ही र्इश्वर या सत्य की ओर प्रेरित करते हैं । अत: अन्य धर्मो के प्रति उसके मन में उदारता व श्रद्धा की भावना बढ़ी ।
  8. दीन-ए-इलाही- अकबर ने धार्मिक संकीणर्ता की सीमाओं को तोडकर All धर्मो की श्रेष्ठ बातों को लेकर Single नये धर्म दीनए-इलाही की स्थापना की । उसका यह कार्य राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत था । अकबर इस नये धर्म के माध्यम से भारत के हिन्दुओं और मुसलमोनों को Single मचं पर खड़ा करना चाहता था । इस पक्रार अकबर की उदारता और सहिष्णुता की नीति समय और मांग और राजनीतिक Need थी ।

सूफी And भक्तिकालीन सन्तों का प्रभाव- सल्तनकाल में भारत में अनेक सूफी सन्त हुए, जिन्होंने आम जनता में र्इश्वर प्रेम का संदेश फैलाया । सीधे-सादे Meansो में जनता की भाषा में दिये गये उसके संदेशों ने हिन्दू मुस्लिम दोनों को प्रभावित Reseller । सन्तों ने आम जनता का सहारा लिया धर्म की उदारता और र्इश्वर प्रेम का संदेश लोगों को दिया ।

सामाजिक सुधार- धार्मिक कट्टरता दुर Reseller, बाल विवाह, नलबलि, पशुवध, बहुपत्नि प्रथा को रोकने का प्रयास Reseller, सती प्रथा में प्रतिबन्ध लगाकर विवाह की आयु बढ़ाना, वेश्यावृत्ति को रोकने का प्रयास Reseller, इसके लिए शैतानपुर बसाया ।

कर की समानता- हिन्दू मुस्लिमों पर अलग-अलग प्रकार के लगने वाले करों को समाप्त कर कर में Singleता लाने का प्रयास Reseller । उद्योग, व्यापार, कृषि में अकबर ने हिन्दू मुसलमानों में किसी भी प्रकार के अन्तर नहीं रखा ।

साहित्य- अकबर शिक्षित नहीं था किन्तु शिक्षा के महत्व को समझता था, बचपन में विपरीत परिस्थितियों ने अकबर को शिक्षा से वंचित कर दिया अल्पायु में राजनीतिक बोझ आने के कारण उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अवसर नहीं दिया । इस पश्चाताप को अपने राज्य में जनता के उचित शिक्षा के व्यवस्था करके Reseller । अकबर ने अपने दरबार व राज्य में विद्वानों, कवियों और History को संरक्षण दिया । साहित्यों की अपार उन्नति हुर्इ । हर विद्वान आते थे व साहित्य Creation के माध्यम से अकबर साम्राज्य को पल्लवित करते थे ।

साहित्य फारसी, हिन्दी और स्थानीय भाषा में लिखे जाते थे । संस्कृत साहित्यों का उर्दू व फारसी में अनुवाद करवाया । अब्दुल फजल जैसे साहित्यकार अकबर के दरबारी साहित्यकार व कवि रहें जिन्होंने ‘‘इंशा ए अबुल फजल’’ नाम ग्रंथों का लेखन Reseller ।

प्राकृतिक सौंदर्य की प्रशंसा हम फारसी साहित्यिक ग्रंथों के माध्यम से करते हैं । आइने अकबरी ग्रंथ गिजाली फैजी मुहम्मद हुसैन नजीरी और सैय्यद जमानुद्दीन उर्फी के नामक Historyित करते हैं । अबुल फाजल ने ‘‘अकबर नामा’’ आर्इन ए अकबरी की Creation की। निजामुद्दीन ने हबकाते अकबरी, बंदायू ने की Creation की । अकबर मुन्तखान उत तवारीख जैसे साहित्यों की Creation की । अकबर ने संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की, यूनानी भाषा के अनेक ग्रंथो का फारसी मे अनुवाद Reseller । हिन्दी साहित्यकाराे में तुलसीदार, सूरदास तथा अब्दुर्रहीम खानखाना और खान थे । King बीरबल, King मानसिंह, भगवानदास, नरहरि And हरिनाथ हिन्दी कवि थे । रामचरित मानस, सूरसागर, कविप्रिया, रामचंद्रिका, रसिक प्रिया जैसे साहित्यों की Creation हुर्इ ।

वास्तुकला- स्थापत्य कला के मर्मज्ञ थे । भवन निर्माण के शौकिन आगरा और लाहौर में किले बनाये गये । इस शैली में इरानी शैली के According गुम्बद, मीनार, डाट आदि बनावाएं । हाथी शेर मोर आदि पशु पक्षियों के चित्रकारी करवाये । अकबर के शासन काल की वास्तुकला उसकी नर्इ राजधानी फतेहपुर सीकरी से चलता है । इन प्रमुखों में दीवाने Single आम, दीवाने ए खास, पंचमहल, जोधाबार्इ महल, बीरबल का महल, पुस्तकालय बुलंद दरवाजा,शेख सलीम का मकबरा, इसके अतिरिक्त अनेक भवनों का निर्माण करवाया ।

चित्रकला- अकबर के शासन काल में चित्रकला का भी विकास हुआ र्इरानी And Indian Customer चित्र शैली का मिश्रण देखने को मिला जिसे हम मुगलकालीन शैली कहते हैं ।‘‘दास्तान ए अमीर हजमा’’ तारीख ए खानदानी तैमूरिया और ‘‘बादशाहनामा’’ की चित्रकारी देखने को मिलती है । अकबर कालीन महाभारत की पाण्डुलिपि 369 चित्र मिले है ।

संगीत कला- तात्कालिन कवियों, संगीतज्ञां,े बैज बावरा, सुल्तान वाज बहादरु रानी Resellerमती का नाम Historyनीय है । अकबर का दरबार नौ रत्नों का संग्रह केन्द्र था । ये All रत्न रहे-

  1. King बीरबल- कवि, सगींता, हसीं के धनी लोगों के दिलों को गुदगुदाने वाली चुटकुले की अपार खान था ।
  2. King टोडरमल- सुप्रसिद्ध राजस्व प्रबनधक तथा सेनापति बंगाल विजय उसकी वीरता का परिचायक था ।
  3. अबुल फली- संस्कृत भाषा मुर्धन्य विद्वान कवियों में इनका नाम आता है । 
  4. अबुल फजल- मर्धन्य विद्वानों में इनकी गिनती होती है । फजल ने अकबर को सुलह कुल व दीन ए इलाही धर्म की निर्धारित नियम बनाये ।
  5. अब्दल रहीम खानखाना- कवि हएु ।
  6. King मान सिंह- अकबर का महान सेनापति वीर मान सिंह था जिसमें नाम पर अकबर ने बिहार में वीरभूमि, मानभूमि व सिंह भूमि तीन नगर बसाये।
  7. तानसेन- अमर संगीत सम्राटों में प्रमुख तानसेन थे।
  8. हकीम हुमान- बादशाह का प्रसिद्ध वैध्य
  9. मुल्ला दो प्याजा- Single विनोदी व मसखरे स्वभाव के धनी व्यक्ति थे । इस तरह सम्राट अकबर के नौ रत्न दरबार में हमेशा रहते थे ।

    अकबर तथा दक्षिण विजय अभियान

    अकबर के राज्यरोहण के साथ ही अनेक विद्रोही भी पैदा हो गये । इसलिए दक्षिण के राज्यों पर आक्रमण आवश्यक हुआ था ।

    दक्षिण भारत के अभियान का उद्द्देश्य- 

    अकबर दक्षिण के विभिन्न राज्यो को अपने अधीन करके सम्पूर्ण भारत को Single प्रशासनिक सूत्र में आबद्ध करना चाहता था । इसके अतिरिक्त वह पूर्तगालियों को भारत से बाहर करना चाहता था, जो भारत की समृद्धि से लाभ उठा रहे थे। अकबर की दृष्टि में पुर्तगाली मुगल साम्राज्य के घोर शत्रु थे, जो देश के आर्थिक साधनों का शोषण कर रहे थे ।

    1. खानदेश का मुगल साम्र्राज्य में विलीनीकरण- दक्षिण अभियान के पूर्व अकबर ने खानदेश के King को उसकी अधीनता स्वीकार कर लेने की सलाह दी । खानदेश के King अली खां ने संदेश पाते ही अधीनता स्वीकार कर ली, किन्तु उसके पुत्र ने विरोध कर दिया और स्वतंत्र King की भांति व्यवहार करने लगा । परिणामस्वReseller 1599 र्इ. में खानदेश पर मुगल सेना ने आक्रमण कर दिया । उसके सुप्रसिद्ध किला असीरगढ़ को घेर लिया गया । असीरगढ़ का किला मुगलों के लिए Single चुनौती सिद्ध हुआ और उसे जीता नहीं जा सका । अन्त में Single बड़ी रकम घूस देकर किले का दरवाजा खुलवाया गया । इस प्रकार 1601 र्इ. में असीरगढ़ का किला मुगलों के अधिकार में आ गया । खानदेश के King मीरन बहादुर शाह को कैद करके ग्वालियर भेज दिया गया । इसके साथ ही खानदेश मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया गया ।
    2. बरार पर अकबर का आधिपत्य- 1591 र्इ. में अकबर ने अहमदनगर के निजाम शाही King को अधीनता स्वीकार करने का संदेश दिया । उससे कोर्इ संतोषजनक उत्तर न मिलने पर अब्दुर्रहीम खानखाना के नेतृत्व में मुगल सेना को अहमदनगर पर चढ़ार्इ करने भेजा गया। 1595 र्इ. में राजकुमार मुराद को खानखाना की सहायता के लिए भेजा गया । मुगल सेना ने अहमदनगर को घेर लिया जिससे घमासान Fight हुआ । 1595 र्इ. में Single सन्धि हुर्इ जिसके According बरार मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया ।
    3. अहमदनगर विजय- अकबर ने अहमदनगर को जीतने के लिए First अबुल फजल को दक्षिण भेजा । कुछ समय पश्चात उसने स्वयं भी Single विशाल सेना सहित अहमदनगर की ओर कचू Reseller । मुगल सेना ने 1599 र्इ. में दौलताबाद को तथा 1600 र्इ. में अहमदनगर को अपने कब्जे में ले लिया । अमदनगर को अकबर ने ले तो लिया, परनतु उसे वह मुगल साम्राज्य में नहीं मिला सका । युवराज सलीम के विद्रोह के कारण उसे उत्तर की और लौटना पड़ा । अहमदनगर के सरदार Single अन्य निजाम शाही राजकुमार को सुल्तान बनाकर मुगलों के विरूद्ध विद्रोह करते रहे। विजित प्रदेशों (बरार तथा खानदेश) को राजकुमार दानियाल को सौंप दिया गया ।

    सम्राट अकबर की मृत्यु 16 अक्टूबर 1605 र्इ. को हुर्इ । उसका पुत्र सलीम, जहांगीर के नाम से सिंहासन पर आसीन हुआ । उसने 1605 र्इ. से 1627 र्इ. तक मुगल साम्राज्य की बागडोर सम्भाली । उसके बाद उसका पुत्र खुर्रम शाहजहां के नाम से गद्दी पर बैठा । उसने 1627 र्इ. से 1658 र्इ. तक राज्य Reseller । इन 53 वर्षो में मुगल साम्राज्य का क्रमिक, किन्तु अनवरत विकास हुआ।

    अकबर का मूल्याकंन- 

    अकबर की गिनती ससांर के प्रमुख शक्तिशाली तथा महानतम सम्राटों में की जाती है, वह वीर सैनिक, महान् सेनानायक, कुशल प्रKing, कूटनीतिज्ञ, प्रजाहितैषी तथा मुगल साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था । उसका महानतम् कार्य हिन्दू और मुस्लिम संस्कृति का सम्मिश्रण करके साम्राज्य में राजनैतिक Singleता की स्थापना करना था । वह Human चरित्र तथा योग्यता का अच्छा जानकार था, उसने राजपूतों की योग्यता को परखकर उसका उपयोग राष्ट्रहित में करके साम्राज्य की सफलतओं पर चार चांद लगा दिया । उसने प्रशासन, सुधारों और नियमों के द्वारा मुगल शासन को सुदृढ़ कर दिया ।

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