गैर सरकारी संगठन-प्रबंधन के मुद्दे
प्रबंधन के मुद्दे की अवधारणा
सेवा प्रदान करना ही किसी गैर सरकारी संगठन के अभिनय को उजागर करती है, वो संवाएँ किस प्रकार की है और कितनी कारगर है? और किसी वक्त किसके लिए की जा रही है? ये All Single अच्छे गैर सरकारी संगठन से मुद्दे है। ज्यादातर गरीबों तथा विभिन्न प्रकार के समुदायों के लिए ये संस्थाएँ कार्म करती है। आज के समय में मुख्यत: गरीबी ही Single मुख्य मुद्दा है इन संगठनों के लिए जो कि दूर करना इनका ध्येय है। और गरीबी के कारणों के जानने हेतु कर्इ प्रकार के अन्य कारक होते है जो कि इसका कारण बनते है, तो उन्ही समझना भी इनका Single मुख्य कार्य ध्येय हो जाता है, जितनी सफलतापूर्वक ये संस्थएँ उनहें सुलझाती है वो उतनी ही सफल मानी जाती है यहाँ पर हम इन्ही से जुड़े हुए मुद्दे तथा उनसे सम्बन्धित शोध आदि के बारे में जानने की कोशिश करेंगे।
विकास के मुद्दे
संस्थाओं की अपने लक्ष्य की पूर्ति करने हेतु विभिन्न प्रकार की उमरती हुर्इ सामाजिक, न्यायिक, आर्थिक, पर्यावरणी तथा अन्य प्रकार की चुनोतियो को ध्यान में रखना होता है। और इन्ही चुनौतियों अथवा मुद्दो को सुलझाने हेतु ना नही सिर्फ संस्थाओं को, प्रायोगिक प्रबंधन कार्यकुशलता की Need होती है बल्कि सम्बन्धित विषयों में उचित जानकारी तथा संवेदनशीलता की भी Need है तथा ये जरूरी है। आपने कुछ Wordों का उच्चारण अवश्य सुना होगा, जैसे सामाजिक आर्थिक, अथवा सामाजिक-राजनैतिक कारक, और साथ ही पर्यावरणीय कारक और हम All इन्हीं जटिल तथा मुश्किल वातावरण में रहते है तथा इन्हें ही सरल बनाना All गैर सरकारी संस्थाओं का उद्देश्य होता है तथा उनके लिए महत्वपूर्ण कार्य करने का क्षेत्र भी। गैर सरकारी संस्थाएँ जो कि सामुदायिक विकास हेतु विभिन्न समुदायों से जुड़कर कार्यरत है वो सिर्फ वहाँ रहने वाले निवासी के साथ ही नहीं जुड़ी हुर्इ है बल्कि उनसे सम्बन्धित कर्इ तरह/प्रकार के अन्य कारणों से भी जुड़ी हुर्इ है। स्थानीय समुदायों के आयाम, बहुआगामी होते है, जिनका अध्ययन, न्यायिक तथा स्थानीय सरकारी कारणों को भी सुनना देखना तथा उसके पीछे चलना भी आवश्यक है।
जैसा कि All को विदित है आज की सामाजिक जरूरत के हिसाब से जहाँ, Human अधिकार तथा लैंगिक मुद्दों को सबसे ज्यादा अहमियत दी जा रही है, वहाँ अन्य कारणों के साथ इन्हें भी नेता तथा उनके सहयोगी समूह को लोगों की साथ कार्य करने की कार्य कुशलता, आवश्यक जानकारी तथा उचित सहयोगी स्रोतों की भी जानकारी क्षेत्रीय कार्य हेतु आवश्यक होती है। संस्था प्रमुख को इतना समझदार होना आवश्यक होता है, जिससे कि वो जटिल परिस्थितियों तथा समस्याओं तथा मुद्दो को आसानी से समझ जाए तथा उनको सुलझाने हेतु जल्दी से जल्दी आवश्यक निर्णयों को लेकर कार्य सम्पादित कर सकें। संस्थाओं के वातावरण को सुगमता से चलाने हेतु प्रबंधन की जानकारी तथा निपुणता से कार्यो को सम्हालने की जबरदस्त Need है। और यहाँ हम खुद ऐसे ही मुद्दो की बात करेगें जो कि इस इकार्इ में बताए जा रहे हैं। 1. गरीबी तथा विकास 2. प्रबंधन की चुनौतियाँ 3. गरीबी तथा उसका गलत इस्तेमाल 4. गरीबी तथा विनाशकारी कारक 5. गरीबी तथा शक्ति कि हीनता 6. विकास के सूचकांक
गरीबी तथा विकास
गरीबी का नाम जब भी हमारे सामने आता है या ये Word जब भी हम सुनते है तो हमारा अंदाज तथा अनुमान Resellerया पैसा, जमीन जायदाद तथा शायद व्यक्ति विशेष की (डिग्री) शिक्षा होता है और इन्हीं से हम ,व्यक्ति गरीब है या अमीर इसे परिभाशित भी करते है। परन्तु हम यहाँ गरीबी के कुछ अन्य पहलुओं तथा विभिन्न प्रकार के आयामों पर भी नजर डालेगें, जिससे हमे ‘‘गरीबी’’ Word की परिभाषा तथा Means समझने में आसानी हो सके।
1960 में मुख्य Reseller से जब भी ‘गरीबी’ पर विचार विमर्ष हुआ तो मुख्यत: ,व्यक्ति तथा परिवार की आय के पैमाने को महत्व दिया जाता रहा है, और गरीबी को हमेशा ‘‘Resellerयें पैसे की औकात’’ के तर्ज पर आँका जाता था हाँ आज भी वल्र्ड बैंक गरीबी को हरेक दिन की Single व्यक्ति की ‘आय’ Reseller में ही ऑकता है। गरीबी किसी Single व्यक्ति की आय के स्तर को नाप कर जानी जाय या फिर उसके पूरे परिवार की महीने की आय को ? यह Single ज्वलंत प्रश्न आज भी है। क्षेत्रीय कार्यकर्ताओं ने इसे किसी व्यक्ति या परिवार की आय ही ना मान कर सार्वभौमिक Reseller में देखा व स्वीकार Reseller।
इस सच्चार्इ से मुहँ नहीं मोड़ा जा सकता कि किसी न किसी Reseller में ‘‘पैसा’’ गरीबी से Added हुआ है, क्योंकि इसकी कमी से व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार हो जाता है, और बहुत से ऐसे कार्य है जो वो नहीं कर पाता है, जो कि पैसेवाले (अमीर) आसानी से कर लेते है, जैसे कुछ ऐसी सुविधाएँ जो जीवन को आनंदित करती है वो ‘‘पैसे की कमी’’ से इंसान नहीं कर पाता वही पर्याप्त धन वाले उन सुख-सविधाओं का संपूर्ण उपयोग करते है। कर्इ बार पैसे से कमजोर लोग धनवान बॉस द्वारा प्रताड़ित तथा गलत तरीके से इस्तेमाल(शोषित) में लिए जाते है। और धनविहीन को यही कमी शक्तिहीन भी बनाती है। इस प्रकार आप देख सकते है ज्यादा धनविहीन होना ही ‘गरीब’ का कारण नहीं है बल्कि ‘गरीबी’ का तात्पर्य है अन्य सामाजिक सुविधाओं को भोगने में ना कामयाबी, असफलता तथा अन्य राजनैतिक, संस्कृतिक सामाजिक कारकों से भी है जो व्यक्ति तथा समाज पर असर डालते है।
अब हम यहाँ संक्षेप में इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि किस प्रकार से गरीबी पिछले कुछ दशकों में उभरकर सामने आर्इ है। सन् 1970 में गरीबी, विश्व बैंक (world Bank) का Single महत्वपूर्ण मदद् ा बन गइर् जिस कारण से विश्व बैंक का मुख्य जोर गरीबी तथा इससे सम्बन्धित ‘‘वंचित क्षेत्रों पर था जो कि गरीबी को पुन: परिभाशित करने में सहायक बनें। सिर्फ न्यूनतम पोशण तथा जीविकोपार्जन, हेतु जीवन-स्तर में प्राप्त असफलता को भी स्वीकार Reseller (गरीबी के Reseller में) तथा इसमें जीवन के स्तरों में स्वीकारीय अन्तर पाया गया। आय पर आधारित गरीबी की धारणा ‘‘न्युनतम Need’’ में बदल गर्इ। इस प्रकार गरीबी सिर्फ आय की कमी ही न रहकर स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य प्रकार की सामाजिक सेवाओं की कमी के Reseller में उभरकर सामने आर्इ।
सन् 1980 में कुछ नर्इ धारणाएँ जुड़ी जो निम्न प्रकार है-
- दृव्य रहित समाज सम्बन्धी पहलू।
- वो All स्थितियाँ जो कि प्राकृतिक आपदा के Reseller में व्यक्ति के सामने Single कष्ट पहुचाने वाली स्थिति के Reseller में आती है, जैसे-तुफान, बाढ़, सूखा तथा अन्य प्राकृतिक खतरे।
- जीविका के स्तर को बढ़ाने के लिए विस्तृत अवधारणा, जो कि जल्दी ही सहारा देने वाली जीविका के Reseller में तब्दील हो गयी।
- और 1980 में ही Single दूसरा पहलू भी उभर कर सामने आया, वो था लौगिंक अध्ययन को बढ़ावा देना । और विभिन्न सरकारी नीतियों में महिला सशक्तिकरण को विकास का प्रमुख मुद्दा माना जाने लगा।
सन् 1990 में और भी विकास की अवस्थाएँ तथा अवधारणाएँ उभर कर सामने आयी। धनविहीन लोग किस तरह से अपने आप को देखते तथा परिभाशित करते है या उनकी राय में ‘‘गरीबी’’ का क्या Means है इस बात को ज्यादा महत्व दिया गया और Single सर्वसुविधा सम्पन्नता का ना होना ही गरीबी के Reseller में पर्याय माना गया। उसी समय अमत्र्यसेन की अवधारणा, जो कि ‘‘Human विकास’’ को अहमियत देती थी, उसे ही संयुक्त राष्ट्र संघ का विकास कार्यक्रम के तहत भी मुख्य ध्येय बनी। और उन्होंने Humanीय विकास को निम्न Reseller से परिभाशित Reseller-’’मन पसंद पर्याप्त अवसरों का ना होना……….. जिसके कारण Single स्वस्थ, Creationत्मक जीवन को अथवा Single उचित जीवनयापन को ना जी पाना/ भोगना, जो कि आजादी, प्रतिष्ठा तथा स्वंय के साथ ही दूसरों का सम्मान करना भी सिखाती हो। अतएव इसके उपरान्त निम्न भाषा का प्रयोग ‘‘गरीबी’’ को समझने हेतु Reseller गया।
- (क) आय की कमी अथवा धनविहीनता
- (ख) उपयुक्त Human विकास न होना
- (ग) सामाजिक निश्कासन
- (घ) कार्य करने की क्षमता में कमी आना
- (ड़) कष्टकारी अवस्थाएँ
- (च) जीवन यापन सुचारू Reseller से ना चलना
- (छ) मूल (प्राथमिक) Needओ की पूर्ति न होना
- (ज) तथा अन्य सम्बन्धित पृथक्करण/अथवा वंचित सुविधाएँ
प्रबंधन की चुनौतियाँ
क्रमश: धीरे-धीरे All संस्थाओं का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सेवा से सामाजिक विकास में तब्दील हो गया। और All गैर जानकारी संस्थाओं ने अपनी परिपक्वता का परिचय देते हुए विकास के मुद्दों पर ध्यान देना शुरू Reseller। अत: विकास के पहलू जो कि Single नर्इ चुनौती के Reseller में उभर कर सामने आए वही इन्हीं विकास के मुद्दों तथा पहलुओं का सुचारू Reseller से आगे बढ़ना जिसे मुख्य चुनौती माना गया, सामने आया। अब विकास को क्रमबद्ध तरीके से आगे बढ़ाना ही मुख्य चुनौती के Reseller में स्वीकारा गया।
यह धारणा सयुक्त राष्ट्र संघ के Single प्रतिदर्शन में छपने (रिपोर्ट) के बाद ही सामान्य जनसाधारण के प्रयोग में आयी, जो कि 1987 में Brundtland Commission_ की थी (Report of Budtland Commission 1987) जो कि (WCED) (World Commission on Environment and Development) ‘‘पर्यावरणीय विकास के विश्व आयोग’’ के द्वारा लायी गयी।
धीर-धीरे सुचारू Reseller से चलने वाला क्रमिक विकास पूरे विश्व के लिए Single उत्सुकता जगाने वाले Word में तब्दील हो गया। All विश्व के नेताओ ने उन All पक्षोंं व पहलुओं पर देखना तथा विचार विमर्श शुरू कर दिया जो कि कर्इ वर्षो से दबे हुए थे। राष्ट्रीय स्तरों पर क्रमिक विकास के विभिन्न मानको की खेज शुरू गयी और यही गैर सरकारी संगठनों के लिए उनके प्रबंधन की बड़ी चुनौती के Reseller में उभर कर सामने आयी।
पर्यावरणीय विकास के विश्व आयोग (WCED) ने क्रमिक विकास तथा सुचाReseller से चलने वाले विकास की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहाँ, ‘‘विकास का Means उन Needओं की पूर्ति है जो वर्तमान में योग्यता सम्बन्धी समझौते, जो कि आने वाली पीढ़ी की Need पूर्ति में बगैर हानि या अवरोध पहुँचाए हो।’’ दुसरे Wordों में कह सकते है कि आज के समाज को Earth पर मौजूद All स्रोतो का उपयोग उचित प्रकार से करें, ना कि कभी खत्म न होने वाली सुविधाओं के Reseller में। क्यँूकि आने वाली पीढ़ी को भी उन्हीं बातों को सोचना होगा जो वर्तमान में है। इस तरह के विकास का स्वReseller Single स्वस्थ रिश्तों को बनाने में सहायक होगा, आज तथा कल की आने वाली पीढ़ी के मद्द में, और साथ ही व्यक्ति द्वारा की जाने वाली क्रियाओं, प्राकृतिक संपदाओं तथा स्रोतो हेतु मद्द की जाने वाली प्रक्रियाओं के सांमजस्य हेतु इन्ही नैसर्गिक सम्बन्धों द्वारा हम उम्मीद करेगें कि जिन सुविधाओं का आज हम उपभोग कर रहे है वही विकास के Reseller में आने वाली पीढ़ी को उनका जीवन और बेहतर करने में सहायक हो ताकि उनके जीवन का स्तर और ऊँचा उठ सके और वो उन सुविधओं की महत्ता को अनुभव करने के साथ ही उपभोग में ला सकें। इससे सबसे प्रमुख बात उभर कर जो स्वयं सेवी संस्थाओं के सामने चुनौती बन कर उभरी वो यह है कि किस तरह से पर्यावरणीय विकास होता रहे और प्राकृतिक आपदाओं से किस प्रकार प्रकृति की Safty के आयाम बढ़ाएँ जाएँ और कारगर उपायों पर कार्य करके उन्हें अपनी संस्थाओं के मुख्य उद्देश्यों तथा लक्ष्यों के Reseller में स्वीकार Reseller जाय। सुचारू Reseller से होने वाले विकास से तात्पर्य Single उपयुक्त तथा बहुत ही ‘‘मजबूत सामंजस्य’’ से है जो कि Humanीय Needओं तथा अपनी जीवन शैली को बनाएँ रखने हेतु आवश्यक है, तथा वही प्राकृतिक स्रोतों तथा सुविधाओं के संक्षरण के बीच होता है। क्यूँकि इन्हीं पर हमारी आने वाली पीढ़ियों का विकास भी निर्भर है। इन्हीं बातों को ध्याान में रखकर संस्थाओं के सामने विकास की चुनौतियों में इजाफा हुआ है जो कि इनका प्रमुख ध्येय बन गयी तथा आर्थिक विकास को अर्जित करने का माध्यम भी बनी । इस बात को भी मद्देनजर रखा कि इस प्रयास में राष्ट्र को किसी भी तरह की प्राकृतिक सुविधा तथा स्रोतो में कमी ना आने पाए।
भारत में मुख्यत: क्रमिक And सुचारू Reseller से होने वाले विकास के अन्र्तगत सिर्फ पर्यावरणीय विकास को ही महत्व नहीं दिया गया बल्कि आर्थिक, पर्यावरणीय तथा सामाजिक नीतियों को भी ध्यान में रखा गया। इन तीन के अलावा संस्कृतिक विभिन्नता को भी चौथी नीति के अन्र्तगत रखा गया। अतएव हम कह सकते है कि ‘विकास’ Word का Means सिर्फ आर्थिक विकास ना होकर Single भावनात्मक, बौद्धिक, नैतिक तथा र्इष्वरीय महत्ता को समझने के विकास से भी है। और मे Single बहुआयामी तथा संपूर्ण विकास से सम्बन्धित है।
इस देश भारत में ज्यादातर कम धनवान जनता गाँवो में निवास करती है और मुख्य Reseller से नैसर्गिक उपायों (प्राकृतिक स्रोतो) पर अपने जीवनयापन हेतु निर्भर रहती है। हमारे भारत में ज्यादातर निर्धनता गाँवों में पायी जाती है और उनका जीवन यापन नैसर्गिक सुविधाओं तथा स्रोतों पर ही आधारित रहता है। देश की 60 प्रतिशत आबादी या कहा जाय मजदूर, खेती-बाड़ी ,मछली पालन, तथा जंगलो के भरोसे अपने जीवन यापन को बाध्य है। और इन्ही स्रोतों का क्रमश: कम होते जाना गरीबी को और बढ़ाने में सहायक है। संयुक्त राष्ट्र संघ विकास कार्यक्रम का Single दस्तावेज जिसका शीर्षक ‘‘गरीबी तथा पर्यावरणीय सम्बन्ध के According 100 लाख लोगों की आबादी जंगलो के आसपास रहती है, 275 लाख की आबादी ,जिनके लिए जंगल ही उनके जीवन यापन का जरिया है Meansात जंगल ही ऐसा स्रोत है जिससे जलाने की लकड़ी, भूंसा-चारा अदि के सहारे लोग अपना गुजारा/ जीवन यापन करते है और आर्थिक कार्यों को परिणाम देते है। साथ ही इमारती लकड़ियो को जोड़ना और जमा करना विशेषकर के औरतों के कार्य है। ज्यादातर समुद्री तटों तथा तटीय प्रदेशों में मछली से जुड़े हुए व्यवसाय ही जीवनयापन का माध्यम है तथा वही पोशण के लिए भी जिम्मेदार है। पिछले दो दशकों में मौजूदा प्राकृतिक संसाधन जो कि ग्रामीणों हेतु है, मुख्यत: धन विहीनों हेतु पर्याय थे, उनसे बहुत तरह के प्रभाव पडे़ है, जो कि अच्छे कम तथा बुरे ज्यादा है । हम इसका अंदाजा खुद प्राकृतिक प्रभावों से आज के समय में बदलते हुए पर्यावरणीय अन्तर को देख के लगा सकते है। इसके अलावा बदलती हुर्इ परिस्थियों के अचानक से आये तूफान तथा प्राकृतिक आपदाएँ भी जिम्मेदार है जो कि बाढ़ तथा सूखे जैसी समस्याओं को लाती है।
सबसे ज्यादा झटका देने वाली बात है कि इन्हीं प्राकृतिक साधनों का व्यवसायिक Reseller से जब गलत इस्तेमाल होता है और इसके बदले में गरीबों को बहुत ही सुक्ष्म पारितोशिक दिया जाता है। इसी प्रकार हम कह सकते है कि इस तरह की विशम परिस्थितियॉ आगे और बढती जाएगी या यूँ कहे कि हम बाध्य हैं कि बढ़ने के लिए औरतों के पारम्परिक भुमिका जो कि प्राकृतिक स्रोतों पर आधारित थी वो फलीभूत न हो पाएगी। और चिपको आन्दोलन तथा नमर्दा बचाओ आन्दोलन इन्हीं का ज्वलंत उदाहरण है।
विकास के सूचकांक
विकास पर कार्य करने वाले विशेषज्ञ अब गरीबी अथवा धन विहीनता के कारकों का क्रमबद्ध परीक्षण करने के लिए Single क्रमिक अध्ययन करने का विचार बना रहे है और इस प्रकार के अध्ययन के लिए कुछ ‘‘सूचकांको’’ की Need होगी और मुख्य Reseller से ये सूचकांक Single तरह के मानक होगें जो सिद्ध करगें कि निधर्नता का मूल कारक किसे ठहराया जाय तथा उसे दूर करने का उपाय भी सोचा जाय।और इसी क्रम में विकास के सूचाकांको के अन्र्तगत आने वाले सूचको की तालिका बनाएँ तो निम्न प्रकार से होगी, आय, कार्य ,भोजन, गृह, स्वास्थ्य तथा शिक्षा। इन्हीं को ध्यान में रखकर विकास को मापा जा सकता है तथा उस पर उनके विकास के विभिन्न स्तरों पर नियंत्रण भी रखा जा सकता है।
सामान्य तौर पर Single व्यक्ति की सम्पन्नता, वैभव तथा उसके जीवनयापन की विधियॉ जो कि उचित पर्यावरणीय सामंजस्य तथा स्रोतो की उपलब्धि तथा मौजूदा स्थिति पर आधारित है विकास के सूचकांक/संकेतक होते है, तथा ये बताते है कि गरीबी किस स्तर की है। और जो विशेष संकेतक है वो, गरीबी के स्तर, पानी तथा स्वास्थ्य की Safty, आर्थिक उत्पादकों, आय का वितरण शिक्षा का स्तर आदि है। कुछ संकेतक औरों की अपेक्षा ज्यादा आसानी से मापे जा सकते है। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति की आय का स्तर आसानी से मापा जा सकता है। और वही यदि हम भोजन या खाद्य पदार्थो की खपत को मापना चाहे तो वो बहुत ही मुष्किल होगा क्यूँकि खाद्य पदार्थों की खपत का सीधा सम्बन्ध व्यक्ति की आयु, लिंग, क्रिया के सम्बन्ध के साथ होता है अत: उसे देखते हुए ही निश्चित Reseller जा सकता है।
संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्वव्यापी विकास के मद्देनजर सहस्त्राब्दि विकास के उद्देश्य
सहस्त्राब्दि विकास उद्देश्यों की स्थापना, ंिसतंबर 2000 में की गयी। और इसके अन्र्तगत Human विकास के विभिन्न संकेतकों को अपनाया गया Single बेहतर विश्व की कल्पना करते हुए। 1990 केऋविश्व सम्मेलन में ही विश्व स्तर पर All के सहयोग तथा सहभामिता के आधार पर MDGs को प्रस्तावित की Reseller गया। और 2015 तक कुछ विकास की चुनौतियों पर विषय पाने का लक्ष्य रखा गया। और उन्हें आठ की संख्या में निश्चित Reseller गया। और रखा गया। और उन्हे आठ की संख्या में निश्चित Reseller गया। और वो आठ (8) M.D.Gs निम्न थे,
- धन विहीनता को कम करना
- भूख का निवारण
- अस्वस्थता को दूर करना
- स्वच्छ पानी की उपलब्धता को बढ़ाना
- लिंग अनुपात ठीक करना
- शिक्षा की कमी दूर करना
- पर्यावरण की शुद्धता को दूर करना
तथा भारत इस बात के वचन बद है कि वो 2015 तक निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति करेगा। ये Single अलग प्रश्न है कि ये कहाँ तक सफल प्रयास होगा। जैसा कि हम विकास के बारे में बात कर रहे है, तो हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिन मानदण्डों को MDGs ने विश्व के लिए बनाया है और उसे Single अपने सहयोग के Reseller में लेने के लिए, All स्वयं से ही संस्थाओं तथा सरकारी संस्थाओं आग्रह Reseller है कि वे जब भी अपने लिए अपनी संस्थाओं के उद्देश्य पूर्ति हेतु नीतिनिर्धारण करें तो उन्हे स्वीकार कर उपयोग में लाएँ। विकासशील देशों हेत ु MDGs ने Single पेण््र ाात्मक उद्देश्य दिया है। इन All उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु अथवा उनको प्राप्त करने के लिए भारत Single बहुत बड़े क्षेत्र वाला देश है। ना हि केवल Human विकास बल्कि आर्थिक विकास हेतु भी भारत बाध्य है।
जून 2004 में नर्इ दिल्ली कार्यालय ने Single सम्मेलन का आतिथ्य Reseller, जिसका शीर्षक ‘‘सहत्राब्दि विकासीय उद्देश्य और भारत’’ (Attaining the Millennium Development Goals in India: Role of Public Policy and Service Delivery) जन नीतियाँ तथा उनका सेवा प्रयोग’’ और इसी सम्मेलन मे जो विचार विमर्श हुए उनका निचौडत्र निकला कि जो नीति हस्तक्षेप द्वारा MDGs के उद्देश्यों को प्राप्त करने की कोशिश है, उन्हे कुछ वैयक्तिक अध्ययनों द्वारा समझाने की कोशिश की गयी। निम्न उद्देश्यों को समझाया गया-
- अति धन विहीनता तथा भुखमरी का निराकरण ऋ सर्वव्यापी बुनयादी शिक्षा मुहैया कराना
- लिंग भेद न करके समान अधिकार देना तथा महिला को शक्तिशाली तथा मजबूत बनाना
- बाल मृत्युदर में कमी लाना
- जच्चा को स्वास्थ्य को प्रमुखता देना
- एच0आर्इ0वी0/एडस, मलेरिया तथा संक्रामण रोगों का निराकरण
- पर्यावरणीय Safty तथा उसका जारी रहना ऋ Single विश्वस्तरीय सहभागिता को बनाना जिससे कि विकास का कार्य सुचारू Reseller से चलता रहे।
गरीबी तथा शोषण
गरीबी तथा शोषण में दोनों ही Word Single Second के पर्याय से लगते है क्यूँकि इंसान आज इतना स्वाथ्र्ाी हो चुका है कि उसे अपनी तरक्की के आगे कुछ सूझता ही नही है। महात्मा गाँधी जी ने Single बार कहा था ‘‘इस Earth पर हरेक के लिए पर्याप्त साधन मौजूद है जो कि Need की पूर्ति हेतु आवश्यक है परन्तु वही यदि ‘‘लालच’’ आ जाए तो वही All साधन कम पड़ जाते है और अनियमितता का जाती है।’’ और यही लालच निर्धन का शोषण करती है। वर्तमान समय में उपभेक्ता की Needओं में बदलाव भी आ गया है, और इसी कारण अमीर तथा गरीब में पूरे देश में, बड़ी तादाद में अनियामीतता भी आ गयी है। भारत Single गरीब देश था और ये Single पूर्णधारणा थी, इसका कारण पश्चिमी देशों की सभ्यता औद्योगिककरण ही विकास का ‘मॉडल’ समझे जाते थे।
गरीब देश क्यूंकि विकास की राह पे थे इसीलिए उन्हें शोषित करने लायक समझा जाता था। शोषण में उन्हे दान दे दे अपमानित करना भी आता है। जब भी समाज में इस प्रकार की बुरार्इयाँ तथा असमानता आती है, और Human समाज पर इसका असर पड़ता है, तो अस्तव्यव्यसता बढ़ जाती है, जिससे समाज के स्तर पर कर्इ प्रकार की समस्याएँ पन्पने लगती है और ठीक हो जाता। क्यूंकि समाजिक असमानता को दूर करना तथा Human सेवा ही उनका मुख्य उद्देश्य होता है। गैर सरकारी संस्थाएँ समस्याओं से निपटने के लिए कर्इ तरह से हस्तक्षेप कर सकती है, और इसी क्रम में शिक्षा मुहैया औपचारिक शिक्षा मुहैया नहीं करा पाती है तो अनौपचारिक शिक्षा Single अच्छा साधन विकल्प है।
दलितों तथा लड़कियों कि संख्या, अशिक्षितों में ज्यादा होने की वजह से कार्यक्रम की लचीला भी बनाया जाना जरूरी होता है। और कायैक्रम को Single्लीकृत हो तो और भी सफलता हासिल कर सकता है। सरकार की तरफ से ऐसे बहुत से कार्यक्रम बनाए जाते है, योजनाएँ तैयार की जाती है जो कि यदि ठीक तरीके से फलीभूत हो जाँय तो समस्याओं में कमी आ जाएगी। और संस्थएँ उन योजनाओं को अपने उद्दष्य के माध्यम से कार्यान्वित भी कर सकती है।
गरीबी तथा अSafty
निर्धनता के कारण गरीब सबसे ज्यादा अWindows Hosting है। और साफ ही व्यवसायिक तौर पर सबसे ज्यादा शोषित भी होते है। कुछ मुख्य कारण तथा उसके पड़ने वाले प्रभावों जिससे अWindows Hosting आय, को हम उन्हे निम्न प्रकार से समझ सकते है:-
- गरीबी के कारण अSafty
- अज्ञानता के कारण अSafty
- शक्ति विहीनता के कारण अSafty
- जीवन शैली के कारण अSafty
- जीवन यापन के तरीकों के कारण अSafty
- सुविधाओं का मँहगा होना, इत्यादि।
और इन्ही अSafty की भावनाओं के कारण जो प्रभाव मानक तथा Human विकास पर पड़ते है वो निम्न हो सकते है:-
- नशे की लत/मादक द्रव्यों का सेवन
- Human तस्करी
- मजदूर तथा अWindows Hosting जीवन
- बाल श्रम आदि। यदि संस्थाएँ इन्ही मुद्दों पर कार्य करें तो समाज का उत्थान हो सकता है।