फ्रायड का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त
मनोविज्ञान के क्षेत्र में सिगमण्ड फ्रायड के नाम से प्राय: All लोग परिचित है। फ्रायड ने व्यक्तित्व के जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller, उसे व्यक्तित्व का मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त कहा जाता है। फ्रायड का यह सिद्धान्त उनके लगभग 40 साल के वैदानिक अनुभवों पर आधारित है। क्या आप जानते हैं कि व्यक्तित्व का अध्ययन करने वाला First उपागम कौन सा है? आपकी जानकारी के लिये बाता दें कि सबसे First मनोविश्लेषणात्मक उपागम के आधार पर व्यक्तित्व को जानने समझने का प्रयास Reseller गया। फ्रयड का सिद्धान्त इसी उपागम पर आधारित है।
किसी भी सिद्धान्त को ठीक प्रकार से जानने के लिये यह आवश्यक है कि उसकी मूल मान्यतायें बचा है? फ्रायड की भी Humanीय स्वभाव के बारे में कुछ व् पूर्वकल्पनायें हैं, जिनको जानने से उनके व्यक्तित्व सिद्धान्त को समझने में काफी मदद मिल सकती है। ये पूर्व कल्पनायें नियमानुसार हैं-
हम फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धान्त का अध्ययन निम्नांकित बिन्दुओं के अन्तर्गत कर सकते हैं-
- व्यक्तित्व की संCreation
- व्यक्तित्व की गतिकी
- व्यक्तित्व का विकास
सबसे First हम Discussion करते हैं फ्रायड के व्यक्तित्व की संCreation संबंधी विचारों पर।
व्यक्तित्व की संCreation
फ्रायड ने व्यक्तित्व की संCreation का वर्णन निम्नांकित दो मॉडलों के आधार पर Reseller है- (अ) आकारात्मक मॉडल (ब) गत्यात्मक या संCreationत्मक मॉडल इन दोनों में से सबसे First हम आकारात्मक मॉडल को समझने का प्रयास करते हैं-
1. आकारात्मक मॉडल-
- चेतन- चेतन मन में से समस्त अनुभव। इच्छायें, प्रेरणायें, संवेदनायें आती हैं। किनका सम्बन्ध वर्तमान समय से होता है और जिसमें व्यक्तित्व जाग्रतावस्था में होता है। अत: केवल वर्तमान संबंध होने के कारण चेतन मन व्यक्तित्व के अत्यन्त सीमित पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।
- अर्द्धचेतन- यह चेतन And अचेतन के मध्य की स्थिति है। इस अवस्था में व्यक्तित्व न तो पूरी तरह जाग्रत Meansात् चेतन होता है। और न ही पूरी तरह से अचेतना फ्रायड का मानना है कि अद्धचेतन मन में ऐसी इच्छाएं, भावनायें And अनुभूतियां आती हैं, किन्तु प्रयास करने पर चेतन स्तर पर आ जाती है। अवचेतन मन को सुलभस्मृति के नाम से भी जाना जाता है। उदाहरण- जैसे कि कोर्इ व्यक्ति अपना चश्मा या अन्य कोर्इ वस्तु रखकर भूल जाता है। कुछ समय तक सोचने के बाद उसे याद आता है कि वह चश्मा या वस्तु तो उसके उदाहरण में आप देखिये कि व्यक्ति को प्रारंभ में याद नहीं आत है कि अचुक वस्तु उसने कहीं रखी है Meansात् वह स्मृति अभी चेतनमन के स्तर पर नहीं है, किन्तु कुछ समय के बाद उसे स्मरण हो आता है कि वह चीज उसने यहां पर रखी है। इस प्रकार वह स्मृति चेतन मन का Single अच्छा उदाहरण है।
- अचेतन- अचेतन Word, चेतन के ठीक विपरीत है Meansात् जो चेतना से परे हो, वह अचेतन है। फ्रायड ने व्यक्तित्व के आकारात्मक मॉडल में चेतन And अर्द्धचेतन की तुलना में अचेतन को कहीं अधिक महत्वपूर्ण माना है। उनके According मनुष्य का व्यवहार अचेतन अनुभूतियां अच्छाओं And प्रेरणाओं से ही सर्वाधिक प्रमाणित होता है। फ्रायड की यह भी मान्यता है कि अचेतन में जो भी इच्छा है, विचार, अनुभव And प्रेरणायें होती हैं। उनका स्वReseller कामुक, अनैतिक,घृणित And आसामाजिक होता है। कहने के आशय यह है कि नैतिक दबाव अथवा सामाजिक दबाव इत्यादि के कारण अपनी कुछ इच्छाओं की पूर्ति व्यक्ति चेतन में नहीं कर पाता है। अत: ऐसी इच्छाएं चेतन स्तर पर निष्क्रिय होकर अचेतन मन में दमित हो जाती है और Humanीय व्यवहार को निरन्तर प्रभावित करती रहती है। इसी के परिणाम स्वReseller व्यक्ति को विभिन्न प्रकार के मनोरोगों का सामना करना पड़ता है।
2. गव्यात्मक या संCreationत्मक मॉडल-
- उपाहं-
- यह व्यक्तित्व का जैविक तत्व है। इसमें व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियां होती हैं।
- उपाहं आनन्द सिद्धान्त के आधार पर कार्य करता है। इनका आशय यह है कि इसमें केवल ऐसी प्रसवृत्तियां होती हैं जिनका मुख्य उद्देश्य सुख प्राप्त करना होता है। अत: इन प्रवृत्तियों का उचित अनुचित विवेक- अविवेक इत्यादि से कोर्इ भी संबंध नहीं होता है।
- उपाहं की प्रवृत्तियां का गुण, असंगठित आक्रामकता युक्त तथा नियम-कानून इत्यादि को नहीं मानने वाली होती हैं।
- उपाहं पूरी तरह से अचेतन होता है। इसलिये वास्तविकता या यथार्थ से इसका कोर्इ संबंध नहीं होता है?
- Single छोटे बच्चे में उपाहं की प्रवृत्तियां होती हैं।
- अहं-
- अहं व्यक्तित्व के संCreationत्मक मॉडल का दूसरा महत्वपूर्ण पहलू है।
- यह वास्तविकता सिद्धान्त के आधार पर कार्य करता है Meansात् इसका संबंध वातावरण की वास्तविकता के साथ होता है।
- जन्म के कुछ समय बाद जब नैतिक And सामाजिक नियमों के कारण व्यक्ति की All इच्छाओं की पूर्ति नहीं हो पाती है, तो उनमें निराशावादी प्रवृत्ति उत्पन्न होती है और उसका परिचय वास्तविकता से होता है।
- परिणाम स्वReseller उसमें अहं का विकास होता है। अहं को व्यक्तित्व का निर्णय लेने वाला पहलू माना गया है।
- अहं आंशिक Reseller से चेतन आंशिक Reseller से अवचेतन या अर्द्धचेतन तथा आंशिक Reseller से अचेतन होता है। इसलिये अहं द्वारा मन के तीनों स्तरों पर ही निर्णय लिया जाता है।
- पराहं-
- अहं के बाद गत्यात्मक मॉडल का तीसरा महत्वपूर्ण पहलू है पराहं।
- सच्चा जैसे-जैसे अपने जीवन के विकासक्रम में आगे बढ़ता जाता है, वैसे-वैसे उसका दायरा बढ़ने लगता है। उसका अपने माता-पिता से तादात्म्य, Addedव स्थापित होता है। परिणाम स्वReseller वह जानना शुरू करता है कि क्या गलत है और क्या सही? क्या उचित है? क्या अनुचित/इस प्रकार उसमें पराहं विकसित होता है।
- अहं के समान पराहं भी आंशिक Reseller से चेतन अर्द्धचेतन And अचेतन Meansात् तीनों होता है।
- पराहं आदर्शवादी सिद्धान्त द्वारा नियंत्रित होता है Meansात् यह नैतिकता पर आधारित होता है।
- इस प्रकार आपने जाना कि फ्रायड के According व्यक्तित्व की संCreation क्या है Meansात् व्यक्तित्व किन-किन हाटकों से मिलकर बना है। अब Discussion करते हैं, व्यक्तित्व की गति के विषय में।
व्यक्तित्व की गतिकी-
व्यक्तित्व की गतिकी का आशय है- व्यक्तित्व में उर्जा का स्त्रोत क्या है? यह उर्जा कहां से प्राप्त होती है तथा समय-समय पर व्यक्तित्व में किस प्रकार से परिवर्तन होते हैं। फ्रायड के According मनुष्य And शारीरिक And मानसिक दोनों ही प्रकार की उपाधि होती है। जिनका मुख्य स्त्रोत यौन उर्जा है। चलना, दौड़ना, लिखना इत्यादि कार्य करने में शारीरिक उर्जा तथा सोचना, तर्क करना, निर्णय लेना, समस्या का समाधान करना इत्यादि में मानसिक उर्जा काम में आती है। फ्रायड ने व्यक्तित्व के कुछ गत्यात्मक पहलू बताये हैं, जो निम्न हैं- 1. मूलप्रवृत्ति 2. चिन्ता 3. मनोCreationयें इनका वर्णन है-
1. मूलप्रवृत्ति-
- जीवनमूल प्रवृत्ति- जीवन मूलप्रवृत्ति के कारण व्यक्ति की प्रवृत्ति Creationत्मक कार्यों में होती है। वह नये-नये Meansात् मौलिक और अच्छे-अच्छे कार्य करने के लिये प्रेरित होता है। Creationत्मक कार्यों में Humanजाति का प्रजनन भी शामिल है। यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि फ्रायड ने अपने पूरे सिद्धान्त में ‘‘यौन मूल प्रवृत्ति’’ पर सर्वाधिक बल डाला है। फ्रायड के According यौन उर्जा व्यक्तित्व विकास के लिए अत्यधिक आवश्यक है।
- यौन मूलप्रवृत्ति (थैनाटोस)- इस प्रवृत्ति के कारण हिंSeven्मक And आक्रामक व्यवहार करता है। उसकी प्रवृत्ति विध्वंSeven्मक कार्यों की ओर होती है।
2. चिन्ता-
- वास्तविक चिन्ता- वास्तविक चिन्ता का Means है- ‘‘बाहरी वातावरण में विद्यमान वास्तविक खतरे के प्रति की गर्इ सांवेगिक अनुक्रिया।’’ इस प्रकार की चिन्ता इसलिये उत्पन्न होती है, क्योंकि अहं कुछ हद तक बाहृय वातावरण पर निर्भर होता है। उदाहरण- भूकंप, आँधी-तूफान, शेर इत्यादि से डर उत्पन्न होकर चिन्तित होना वास्तविक चिन्ता के उदाहरण है।
- तंत्रिकातापी चिन्ता- इस प्रकार की चिन्ता के उत्पन्न होने का कारण है- अहं का उपाहं की इच्छाओं पर निर्भर होना। उदाहरण- जैसे व्यक्ति का यह सोचकर चिंताग्रस्त हो जाना कि क्या अहं, उपाहं की यौन इच्छाओं, आक्रामक And हिंSeven्मक इच्छाओं को नियंत्रित करने में सक्षम हो पायेगा
- नैतिक चिन्ता- अहं की पराहं पर निर्भरता के कारण व्यक्ति में नैतिक चिन्ता उत्पन्न होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि जब अहं, उपाहं की अनैतिक इच्छाओं को कार्यReseller दे देता है, तो उसे पराहं से दण्डित होने की धमकी मिलती है। इससे वह नैतिक Reseller से चिन्ताग्रस्त हो जाता है तथा उसमें दोषभाष, शर्म इत्यादि की भावना उत्पन्न हो जाती है। यदि हम सामूहिक Reseller से देखें तो ये तीनों प्रकार की चिन्तायें Single Second से संबंधिक है तथा Single प्रकार की चिन्ता Second प्रकार की चिन्ता को जन्म देती हैं।
3. मनोCreationयें या अहंरक्षात्मक प्रक्रम-
- अचेतन स्तर पर कार्य करने के कारण प्रत्येक रक्षात्मक प्रक्रम ‘‘आत्म-भ्रामक’’ होता है।
- ये वास्तविकता के प्रत्यक्षण को विकृत कर देते हैं Meansात् व्यक्ति पूर्णत: यथार्थ परिस्थिति से रूबरू नहीं हो पाता। इसलिये व्यक्ति अपेक्षाकृत कम चिन्तित होता है। कुछ प्रमुख रक्षात्मक प्रक्रमों के नाम निम्नांकित हैं-
- दमन
- विस्थापन
- प्रक्षेपण
- प्रतिगमन
- प्रतिक्रिया निर्माण
- यौक्ति की करण
इस प्रकार स्पष्ट है कि रक्षात्मक प्रक्रम व्यक्ति को चिन्ता And तनाव से कुछ हद तक बचाते हैं तथा Single सीमा तक प्राय: All स्वस्थ व्यक्ति इनका प्रयोग करते हैं तथा इनका उपयोग करने में मनोवैज्ञानिक ऊर्जा लगती है।
व्यक्तित्व का विकास-
फ्रायड ने व्यक्तित्व विकास को ‘‘मनोलैंगिक विकास’’ की संज्ञा दी है तथा इस विकास के पाँच चरण या अवस्थायें बतायी है इनमें से प्रत्येक अवस्था का description निम्नानुसार है-
1. मुखावस्था-
- मनोलैंगिक विकास की यह Firstावस्था है। यह व्यक्ति के जन्म से लेकर लगभग 1 साल की आयु तक होती है।
- फ्रायड के According इस चरण में व्यक्ति का व्यामुकता क्षेत्र मुँह होता है Meansात- मुँह के माध्यम से वह कामुक क्रियायें करता है। जैसे- चूसना, निगलना, जबड़े या दाँत निकल आने पर दबाना, काटना इत्यादि।
2. गुदावस्था-
- व्यक्तित्व विकास की यह दूसरी अवस्था 2 से 3 साल की उम्र के बीच होती है।
- इस अवस्था में व्यक्ति का कामुकता क्षेत्र गुदा होता है। फ्रायड के करने का Means यह है कि इस उम्र में बच्चा मुल-मूत्र त्यागकर कामुक क्रियाओं का आनंद उठाता है।
3. लिंग प्रधानावस्था-
- यह व्यक्तित्व विकास की तीसरी अवस्था है, 4 से 5 साल की उम्र के बीच की अवस्था है।
- इसमें कामुकता का क्षेत्र जननेन्द्रिय होते हैं।
4. अव्यवक्तावस्था-
- यह अवस्था 6 से 7 साल की उम्र से आरंभ होकर 12 वर्ष की आयु तक बनी रहती है।
- इस अवस्था में कोर्इ नया कामुकता क्षेत्र उत्पन्न नहीं होता है।
- लैंगिक इच्छायें सुषुप्त हो जाती है और इनकी अभिव्यक्ति अनेक प्रकार की अलैंगिक क्रियाओं के माध्यम से होती है। उदाहरण के तौर पर हम पढ़ार्इ, चित्रकारी, संगीत नृत्य, खेल इत्यादि को ले सकते हैं।
5. जननेन्द्रियावस्था-
- मनोलैंगिक विकास के इस चरण में किशोरावस्था And प्रौढ़ावस्था या वयस्यावास्था दोनों को ही शामिल Reseller गया है।
- यह 13 वर्ष की उम्र से प्रारंभ होती है और निरन्तर चलती ही रहती है।
- फ्रायड के According इस अवस्था में व्यक्ति के शरीर में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं। जैसे की हार्मोन्स में परिवर्तन होना और इनके According शरीर में भी किशोरावस्था के अनेक लक्षण दिखायी देने लगते है।
- फ्रायड के According इस अवस्था के प्रारंभिक वषो्र में Meansात् किशोरावस्था में व्यक्ति में अपने ही लिंग के व्यक्तियों के साथ सम्पर्क बनाये रखने की प्रवृत्ति अधिक होती है। जैसे लड़कियों में लड़कियों के साथ रहने की तथा लड़कों में लड़कों के साथ रहने की प्रवृत्ति अधिक रहती है।
- किन्तु जब व्यक्ति किशोरावस्था से वयस्कावस्था में प्रवेश करता है तो उसमें ‘‘विषमलिंग कामुकता’’ की प्रवृत्ति विकसित होने लगती है Meansात- वह अपने से विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ उठता-बैठता है, बातचीत करता है, अपना समय व्यतीत करता है।
- इस अवस्था में व्यक्ति का व्यक्तित्व हर दृष्टि से परिपक्व होता है। जैसे- कि सामाजिक, शारीरिक, मानसिक दृष्टि से।
- इसी अवस्था में व्यक्ति विवाह जो कि समाज द्वारा मान्य And अनुमोदित प्रथा है। उसको अपनाकर Single सन्तोषजनक जीवन की ओर अपने कदम बढ़ाता है।
उपर्युक्त विवेचन से आप मनोलैंगिक विकास की All अवस्थाओं को समझ गये होंगे। फ्रायड का मानना है कि प्रत्येक अवस्था में व्यक्ति की लैंगिक ऊर्जा का क्रमश: विकास होता है, जिसके कारण विकास की अंतिम अवस्था में वह सक्रिय होकर उपयोगी And सन्तोषजनक जीवनयापन करता है।
फ्रायड के सिद्धान्त का मूल्यांकन –
जैसा कि आप जानते हैं कि मूल्यांकन में किसी भी व्यक्ति, वस्तु, परिस्थिति अथवा सिद्धान्त के गुण And दोष की समीक्षा की जाती है। फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्धान्त में भी कुछ गुण है और कुछ इसकी सीमायें हैं, जिनको हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
गुण-
- विस्तृत And चुनौतीपूर्ण सिद्धान्त- फ्रायड ने काफी व्यापक ढंग से व्यक्तित्व का अध्ययन Reseller है। उन्होंने प्राय: व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को समझाने की भरपूर कोशिश की है।
- बोधगम्य भाषा- फ्रायड ने व्यक्तित्व के विकास को बहुत ही आसान भाषा में समझाने की कोशिश की है। फ्रायड का मानना है कि Single स्वस्थ व्यक्तित्व में जीवन And मृत्यु मूलप्रवृत्तियों में Single प्रकार का समन्वय And सामंजस्य पाया जाता है तथा इससे Meansात् जीवन मूल प्रवृत्ति थेनाटोस Meansात् मृत्युमूलप्रवृत्ति की तुलना में अधिक सक्रिय And प्रधान होती है।
दोष –
आलोचकों ने निम्न आधारों पर फ्रायड के सिद्धान्त की आलोचना की है
- वैज्ञानिक विधि का अभाव – आलोचकों का मत है कि फ्रायड ने अपने शोध कार्यो को सुव्यवस्थत And क्रमबद्ध ढंग से प्रस्तुत नहीं Reseller है जो किसी भी सिद्धान्त की वैज्ञानिकता के लिये अत्यधिक आवश्यक है।
- लैंगिक उर्जा पर Need से अधिक बल देना – फ्रायड के सिद्धान्त की सबसे कड़ी आलोचना इस आधार पर की जाती है कि उन्होंने अपने पूरे सिद्धान्त में Only लैंगिक उर्जा को ही आधारभूत इकार्इ माना है और Need से अधिक इसके महत्व को स्वीकार Reseller है।
- मनोरोगियों की अनुभूतियों पर आधारित – फ्रायड का सिद्धान्त Single तो उनके अपने व्यक्तिगत अनुभवों और इसके उन मनोरोगियों के अनुभवों पर आधारित है, जो उनके यहाँ उपचार के लिये आते थे। आलोचकों का कहना है कि किस सिद्धान्त की नींव ही मनोरोगियों की अनुभूतियों पर टिकी है। उसे सामान्य व्यक्तियों पर कैसे लागू Reseller जा सकता है।
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से आप जान गये हैं कि फ्रायड के सिद्धान्त का क्या महत्व है और उसमें क्या-क्या कमियाँ है। उनके कमियाँ होने के बावजूद भी व्यक्तित्व मनोविज्ञान के क्षेत्र में फ्रायड के मनोविश्लेषणात्मक सिद्धान्त का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है।