लोक व्यय का प्रभाव
लाक व्यय के प्रभाव
प्राचीन काल में लोक व्यय राज्य के क्रिया कलापों को संचालित करने का Single उपकरण था लेकिन वर्तमान में लोक व्यय न केवल राज्य के क्रिया कलापों को चलाने के साथ-साथ सरकारों को चलाने का भी Single महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। राष्ट्रों की Meansव्यवस्थाओं की प्रकृति के According लोक व्यय का प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग स्तर पर पाया जाता है। इसीलिए लोक व्यय वर्तमान में महत्वपूर्ण स्थान बनाये हुए है। सरकारों का मुख्य ध्यान लोक आगम की अपेक्षा लोक व्यय पर केन्द्रित Reseller जा रहा है। Meansव्यवस्था का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो लोक व्यय के प्रभाव से अछूता रहता हो।
आपको यहां पर ध्यान देने की अत्यन्त Need है कि लोक व्यय के प्रभाव दो Resellerों में पड़ते है Firstत: प्रभाव आपको स्पष्ट Reseller से दिखाई देते है तथा द्वितीयत: प्रभावों पर आम जनता की नजर पहुॅचना अधिक आसान नहीं है लेकिन इसका Means यह नहीं है कि द्वितीयत: प्रभाव Firstत: प्रभावों से कमजोर है। लोक व्यय का कोई भी प्रभाव Single Second से कितना प्रबल व निर्वल है यह इस बात पर निर्भर करता है कि प्रभावित होने वाला क्षेत्र कितना संवेदनाील क्षेत्र है? लोक व्यय के प्रभावों की विवेचना आगे के शीर्षकों के अन्तर्गत भंली भांति Reseller से स्पष्ट की जा सकती हैं।
लोक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव
आपको यहां पर लोक व्यय के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों की प्रवृत्ति से परिचित Reseller जायेगा। लोक व्यय का उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभावों का प्राचीन काल में भी महत्वपूर्ण स्थान रहा तथा वर्तमान में भी लोक व्यय अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। Meansव्यवस्था की प्रकृति किसी भी प्रकार की हो या उसका आकार कैसा भी क्यों न हो? लोक व्यय के बिना उत्पादन सम्बन्धी अनेक निर्णयों को ले पाना सम्भव नहीं है।
लोक व्यय के उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव से सम्बन्धित Single महत्वपूर्ण तथ्य पर विचार करना आपके लिए अत्यन्त उपयोगी होगा कि Meansव्यवस्था के संसाधनों पर स्वामित्व अधिकार की स्थिति क्या है? संसाधनों पर निजी स्वामित्व तथा अधिकार है तो लोक व्यय का प्रभाव उत्पादन पर अलग दिशा में होगा और यदि संसाधनो पर सरकार का स्वामित्व तथा अधिकार है तव लोक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव अत्यन्त तीव्र तथा गहन होता है। इसके साथ आर्थिक नियमों की भांति उत्पादन केवल आर्थिक संसाधनों पर ही निर्भर नहीं करता बल्कि सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक पर Single बड़ी सीमा तक निर्भर रहता है। उत्पादन से Added Single अन्य अहम तत्व Humanीय व्यवहार है जो लोक व्यय से काफी प्रभावित होता है।सरकारों का दायित्व है कि वह अपनी जनता की मूल भूत Needओं की पूर्ति के लिए हरदम प्रयास करें। इस मूल भूत Needओं की पूर्ति के लिए सरकार को ऐसे आवश्यक उत्पादन को अपने हाथों में लेना होता है। ऐसी स्थिति में उत्पादन के All साधनों को Singleत्रित And समायोजित करने के लिए लोक व्यय को Single उपकरण के Reseller में अपनाना होता है। सामाजिक आर्थिक सेवाओं के उत्पादन पर भी सरकार को भारी मात्रा में व्यय करना होता है जैसे स्वास्थ सुविधाऐं, शिक्षा व्यवस्था, परिवहन सेवाएं, Safty व्यवस्था, सिचांई योजनाएं, न्यायालय व्यवस्था, जलकल व्यवस्था आदि पर भारी मात्रा में लोक व्यय का सहारा लिया जाता है।
आपको सामान्य Reseller से समझाया जा सकता है कि इन उत्पादनों पर लोक व्यय का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। लोक व्यय जितना अधिक होगा उत्पादन का स्तर भी उतना ही ऊंचा होगा। सरकार कुछ उत्पादन कार्य को स्वयं अपने हाथ में नहीं लेती है लेकिन उत्पादन में वृद्धि करने के लिए निजी व्यक्तियों को प्रोत्साहन हेतु लोक व्यय का सहारा लेती है। यह लोक व्यय जनता में उत्पादन बढ़ाने हेतु प्रेरणा पैदा करता है।लोक व्यय का उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव को प्रो0 डाल्टन के इस कथन से भंली भांति समझाा जा सकता है- ‘‘जब सरकार स्वास्थ्य, मकानों और सामाजिक Safty पर व्यय करती है या बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा प्रदान करती है तो यह Single अत्यन्त महत्वपूर्ण विनियोग होता है जो भौतिक पूंजी के स्थान पर Humanीय पूंजी का निर्माण करता है।’’प्राचीन काल की अपेक्षा वर्तमान सरकारों द्वारा लोक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव इस दिशा में बढ़ता जा रहा है।
लोक व्यय उत्पादन पर कार्य निवेश तथा बचत के माध्यम से भी प्रभाव डालता है। आपको शायद यह ज्ञात हो कार्य करने की क्षमता निवेश का स्तर तथा बचत करने की क्षमता And स्तर उत्पादन के स्तर तथा गुण्वत्ता दोनों पर ही प्रभाव डालता है। लोक व्यय कार्य, निवेश तथा बचत की क्षमताओं And स्तर को सीधे तौर पर प्रभावित करता है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना होता है कि सरकार द्धारा किये जाने वाला लोक व्यय कही लोगों के मध्य कार्य निवेश तथा बचत को विपरीत Reseller से प्रभावित नहीं कर रहा है, ऐसी स्थिति में उत्पादन भी बढ़ने के स्थान पर घटना प्रारम्भ होता है। लोक व्यय में वृद्धि होने पर आर्थिक क्रियाओं का विस्तार होता है जिससे उत्पादन में बृद्धि होना स्वाभाविक है।सरकार को चाहिए कि लोक व्यय को उत्पादन कार्यों पर ही करना चाहिए। अपव्यय तथा अनुत्पादक कार्यों पर किये जाने वाले लोक व्यय का उत्पादन पर प्रभाव वांछित दिशा में नहीं पड़ सकता है। लोक व्यय का उत्पादन पर पड़ने वाले प्रभाव को Single अन्य दिशा में भी देखा गया है यदि लोक व्यय वर्तमान उत्पादन क्रिया के लिए Reseller गया है या भविष्य की उत्पादन योजनाओं के लिए। दोनों ही दिशाओं में लोक व्यय का उत्पादन पर अलग-अलग स्तर पर प्रभाव पड़ता है।लोक व्यय से उत्पादन के साधन वर्तमान से भविष्य की ओर हस्तान्तरित होते हैं। जब सरकार द्वारा पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन के लिये किसी कार्य योजना पर बल देती है तब संसाधनों का हस्तातरण भविष्य की ओर होता है और विकास की प्रक्रिया आगे बढ़ती जाती है परिणाम स्वReseller Meansव्यवस्था में उत्पादन शक्ति का विकास होता है। साधनों के इस हस्तान्तरण के लिये भारी उद्योग And बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जाती हैं। इन भारी उद्योग And परियोजनाओं पर निजी क्षेत्र की अपेक्षा लोक सत्ताओं द्वारा सही ढंग से कुशलतापूर्ण कार्य Reseller जा सकता है क्योंकि इस का सम्बन्ध सामूहिक लोक कल्याण And राष्ट्र निमार्ण से होता है।
विकासशील देशों में राज्य आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के लिये व्यक्तियों , निजी संस्थाओं को ऋण व अनुदान आदि देता है ताकि ये सब मिलकर अपने – अपने क्षेत्र में साधनों का सदुपयोग कर उत्पादन के स्तर को बढ़ा सके ।साधनों के हस्तान्तरण के सम्बन्ध में इस बात को स्पष्ट Reseller जा सकता है कि जब साधनों को Humanीय संसाधनों के विकास की ओर हस्तान्तरित Reseller जाता है तब उत्पादन के स्तर में अनुकूल असर दिखाई देने लगता है इस सन्दर्भ में डाल्टन का कहना है कि “जब सरकार स्वस्थ्य, मकानों और सामाजिक Safty पर व्यय करती है या बच्चों को निशुल्क शिक्षा प्रदान करती है तो यह Single अत्यन्त महत्वपूर्ण विनियोग होता है जो भौतिक पूंजी के स्थान पर Humanीय पूंजी का निर्माण करता है।”
प्राचीन Meansशास्त्रीयों का विचार था कि साधनों के हस्तान्तरण से आर्थिक विकास नहीं Reseller जा सकता है उनका विश्वास था कि आर्थिक क्षेत्र में सरकारी हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए।यहां यह प्रश्न उठाया जा सकता है कि राज्य द्वारा साधनों का हस्तान्तरण लाभप्रद हो या हानिप्रद ? इस प्रश्न का उत्तर देश की परििस्थ्तियों पर निर्भर करता है । उदाहरण के लिये Safty व्यय को ही लें। आज प्रत्येक देश बाह्म आक्रमण से अपने को Windows Hosting रखना चाहता है। शीत – Fight की आशंका से भी देश अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना चाहते है कुछ लोग यहां यह भी कह सकते हैं कि यदि Safty – व्यय में कमी करके इसे विकास कार्यों में लगाया जाता तो देश प्रगति कर सकता था, परन्तु हमेशा यह कथन सत्य नहीं है । यदि देश में हमेशा शान्ति व Safty बनी रहे, तो इससे देश का निरन्तर विकास होगा देश उत्तरोत्तर आर्थिक प्रगति करता रहेगा। इस प्रकार Safty सम्बन्धी व्यय पूर्ण Reseller से आवश्यक And उत्पादक है। परन्तु यहां इस बात को भी ध्यान में रखना होगा कि Safty- व्यय Single सीमा से आगे न बढ़े। यदि विश्व के All राष्ट्र इस बात के लिये Agree हो जाते हैं कि ‘Safty परिषद‘ के ही ‘समान विश्व‘ सेना का गठन कर दिया जाये, जो सब देशों की Safty के लिये उत्तरदायी होगा, यदि इसके बाद भी कोई राष्ट्र अपनी Safty के लिये व्यय करता है, तो ऐसा Saftyत्मक व्यय अनुत्पादक होगा । संक्षेप में, कहा जा सकता है कि यदि सरकार सार्वजनिक व्यय के सिद्धान्तों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक स्वार्थों से अलग होकर सार्वजनिक व्यय करे तो प्रत्येक प्रकार का सार्वजनिक व्यय उत्पादक हो सकता है।
लोक व्यय का वृद्धि पर प्रभाव
आपको यहॉ पर गम्भीरता से विचार करना होगा कि लोक व्यय का वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का सवाल विकासशील या पिछड़े देशों से मुख्य Reseller से Added हुआ है। विकासशील तथा पिछड़े देश पूंजी की कमी के कारण बेरोजगारी तथा गरीबी की समस्या का सामना कर रहे है। लोक व्यय तथा वृद्धि के सम्बन्ध में लेविस के इस कथन पर ध्यान देना अत्यन्त आवश्यक है- ‘‘अर्द्धविकसित देशों में विकास कार्यक्रमों को इस प्रकार लागू करना चाहिए कि Meansव्यवस्था के All क्षेत्रों का विकास समान Reseller से Single साथ हो, ताकि उद्योग और कृषि, उत्पादन और उपभोग तथा उत्पादन और निर्यात में उचित सन्तुलन बना रहे।’’
उक्त कथन के आधार पर आप समझ सकते है कि लोक व्यय का वृद्धि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रभाव पाया जाता है। केवल उत्पादन बढ़ाने से वृद्धि की कल्पना नहीं की जा सकती इसके लिए Meansव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के महज सन्तुलन स्थापित करना अत्यन्त आवश्यक है।All Meansशास्त्री इस मत से Agree है कि लोक व्यय आर्थिक बृद्धि पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। वृद्धि को बनाये रखने के लिए बजट में लोक व्यय की वृद्धि बनाये रखने के साथ नयी नयी विकास मदों पर उसका आवंटन करके आर्थिक बृद्धि को तेज Reseller जा सकता है। वर्तमान में लोक व्यय आर्थिक वृद्धि के लिए Single आवश्यक And महत्वपूर्ण कारगर उपाय है।
लोक व्यय का वितरण पर प्रभाव
लोक व्यय के उत्पादन तथा वृद्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने के बाद अब आप लोक व्यय का वितरण पर पड़ने वाले प्रभावों को भंली भांति समझ सकेंगे। सामान्य Reseller से कर व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन And सुधार करके ही आय तथा धन के असमान वितरण को कम करने का प्रभाव सरकारों द्वारा Reseller जाता रहा है। वर्तमान में ऐसा लगता है कि पूंजीवादी Meansव्यवस्थाओं में असमान वितरण की समस्या को दूर करने का सरकारी प्रयास सरकारी कार्यो के संचालन का Single उपकरण बनता जा रहा है। किसी भी Meansव्यवस्था में धन के समान वितरण की कल्पना करना Meansव्यवस्था तथा सरकार दोनों के लिए ही Single टेढ़ी खीर सिद्ध होगा।
विकसित देशों में असमान वितरण की समस्या को कम करने के लिए प्रगतिशील करों के प्रयोग को वरीयता दी जाती है। लेकिन यदि निर्धनों पर से कर के भार को हटा लिया जाय तो इसे केवल Single अनुदान के ही Reseller में समझ लिया जाय क्योंकि करों को हटाने से किसी भी देश में गरीबी And बेरोजगारी को दूर नही Reseller जा सकता है।यहां पर लोक व्यय के प्रभावों पर ध्यान केन्द्रित Reseller जाय तो विकासशील देशों में प्रगतिशील कर प्रणाली के समान या कही अधिक लोक व्यय, आय के असमान वितरण को कम करने में सहायक होता है। प्रगतिशील सरकारें लोक व्ययों को गरीबी दूर करने के Single उपाय के Reseller में अत्यधिक ओर से अपना रही है।
यहां Single तथ्य यह भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि लोक व्यय किसी भी वर्ग या मद पर Reseller जाय लेकिन उसका अन्तिम प्रभाव गरीब तथा बेरोजगारों पर अनुकूल Reseller से अवश्य पड़ता है। Meansव्यवस्था में उत्पादन And बाजार व्यवस्था में गरीबों का योगदान कम नहीं आंका जा सकता है। लेकिन लोक व्यय को अमीरों पर व्यय करने से उसका प्रभाव गरीबों तक पहुॅचने में काफी समय लगता है। वही दूसरी ओर सरकार द्धारा लोक व्यय को गरीब वर्ग पर सीधे करके असमान वितरण पर अनूकूल प्रभाव डाला जाता है। प्राय: All प्रगतीशील सरकारें इस उपाय का प्रयोग करती रही है। सार्वजनिक निर्माण कार्यो And नवीन विकाSeven्मक कार्यों पर लोक व्यय द्धारा वितरण व्यवस्था में वांछनीय सुधार लाने का प्रयास सरकारों द्वारा Reseller जाता है।
लोकतांत्रिक सरकारों द्वारा गरीबों के कल्याण के चलायी जाने वाली विभिन्न विकाSeven्मक तथा गैर-विकाSeven्मक योजनाऐं पर भारी मात्रा में लोक व्यय Reseller जाता है जिससे गरीबों की क्रय शक्ति में वृद्धि होती है जिससे उनकी आय में सुधार के साथ-साथ Meansव्यवस्था में मांग व पूर्ति शक्तियों के मध्य सामन्जस्य स्थापित करने में सहायता मिलती है। लोक व्यय का वितरण पर कई तरह से प्रभाव डाला जाता है। अत: लोक व्यय के वितरण पर Single तरफा पड़ने वाले प्रभावों का मापन करना इतना सरल कार्य नहीं है लेकिन महत्वपूर्ण आवश्यक है।
लोक व्यय का वितरण पर पड़ने वाले प्रभावों के सम्बन्ध में प्रो0 पीगू का मत है कि कोई भी कार्य जो गरीबों की वास्तविक आय के कुल भाग में वृद्धि करता हो सामान्यतया आर्थिक कल्याण में वृद्धि करता है।लोक सत्तायें अपने राज्य के नागरिकों को Single आवश्यक न्यूनतम जीवन स्तर का आश्वासन देती हैं तथा इसके लिये राजकोशीय निति के अन्तर्गत लोक व्यय का इस प्रकार से प्रयोग करती है कि राज्य में व्याप्त बढ़ती आय तथा सम्पत्ति की अवांछनीय विसमता को दूर Reseller जा सके । लोक व्यय की वह पद्धति अधिक उत्तम मानी जाती है जो आय की असमानता को कम करने की क्षमता रखती हो लोक व्यय के द्वारा वितरण को प्रभावित करने के लिये इस विधि का प्रयोग Reseller जाता है जो वितरण को अलग-अलग Resellerों में प्रभावित करती है ।
- आनुपातिक लोक व्यय के द्वारा वितरण को प्रभावित Reseller जाता है । इस प्रणाली के अन्तर्गत समाज के व्यक्तियों को उनकी आय के अनुपात में ही लोक व्यय से सम्बन्धित लाभ या सुविधाऐं उपलब्ध कराई जाती है। जैसे मकान भत्ता में तीन प्रतिशत की वृद्धि कर दी जाये।
- प्रतिगामी व्यय के द्वारा समाज के लोगों को प्राप्त आय की तुलना में कम अनुपात में लोक व्यय के द्वारा सुविधायें उपलब्ध करायी जाती है। विकासशील तथा पिछड़े देशों में गरीवो के लिये आवश्यक सुविधायें उपलब्ध कराने के लिये अमीर वर्ग के लिये इस प्रतिगामी लोक व्यय की रीत को अपनाया जाता है क्योंकि अमीर वर्ग को उनसे प्राप्त आय की अपेक्षा उन्हें कम अनुपात में लोक व्यय की सुविधायें प्राप्त हो पाती हैं।
- प्रगतिशील लोक व्यय समाज में आय की अपेक्षा अधिक मा़त्रा में सुविधायें उपलब्ध कराता है। निर्धनों को उपलब्ध होने वाली सार्वजनिक सेवायें उनकी आय से अधिक मात्रा में उपलब्ध करायी जाती है। विकासशील तथा पिछड़े देशों में व्याप्त गरीबी, अशिक्षा, बेराजगारी जेसी समस्याओं के समाधान हेतु प्रगतिशील लोक व्यय अत्यन्त ही सार्थक सिद्ध होता है। लोक व्यय का वितरण पर पड़ने वाले प्रभावों के सम्बन्ध में निम्न तथ्य भी अत्यन्त उपयोगी है निर्धन वर्ग के लिए नि:शुल्क व्यवस्था- सार्वजनिक व्यय की नीति में यह व्यवस्था की जानी चाहिए कि निर्धन वर्ग के लिए शिक्षा, चिकित्सा And बच्चों के लिए पौश्टिक भोजन की नि:शुल्क व्यवस्था होनी चाहिए।
उपादान- सरकार उत्पादकों और वितरकों को उपादान प्रदान करके यह व्यवस्था कर सकती है कि निर्धन और मध्यम वर्ग के लोगों के लिए खाद्यान्न, वस्त्र And मकानों की उचित रियायती दरों पर उपलब्ध कराया जाये।
नकद अनुदान- कुछ विशिष्ट वर्गो को दिये जाने वाले नकद, अनुदान धन की वितरण व्यवस्था को सन्तुलित बनाने में योगदान देते है। इनमें वृद्धावस्था के लिए पेंशन, बीमारी भत्ता, बेरोजगारी भत्ता, मातृत्व भत्ता, विधवाओं के लिए पेंशन अपंगों के लिए सहायता इत्यादि का History Reseller जा सकता है। पिछड़े क्षेत्रों पर अधिक व्यय- देश में धन के वितरण की असमानता को कम करने के लिए यह भी आवश्यक है कि सरकार द्वारा अविकसित And पिछडे क्षेत्रों के विकास पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। इससे वहां के लोगों के जीवन स्तर में सुधार होता है और आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि को प्रोत्साहन मिलता है।
लघु And कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन- यदि सरकार विभिन्न वित्तीय सहायता And प्रेरणाओं द्वारा लघु और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करती है, तो उससे भी सम्पत्ति के वितरण में सुधार होता है। उचित वेतन, मजदूरी And भत्ते- सरकार को यह देखना चाहिए कि वेतन भोगी वर्ग को उचित वेतन, मजदूरी And भत्ते मिलें। इसके लिए सरकार को निश्चित Reseller से व्ययों में वृद्धि करनी होगी। दूसरी ओर निजी उपक्रमों में इस प्रभाव से उद्योगपतियों से कर्मचारी वर्ग के आय का उचित प्रवाह होता रहता है। लोक व्यय का वितरण पर प्रभाव के सम्बन्ध में लुट्ज का यह कथन अत्यन्त ही उपयागी है। “सार्वजनिक धन के वितरण की स्थायी नीति अपनाने से देश को हानि होगी और यदि इसी उद्देश्य से व्यय Reseller जाये तो सरकार का अधिकांश व्यय अनुत्पादक माना जाएगा।” इस सम्बन्ध में ब्यूहलर ने स्पष्ट Reseller कि धन के वितरण की असमानताओं को कम करने के लिये सरकार को गरीबों पर अधिक व्यय करके तथा धनी वर्ग पर अधिक करारोपण की रीति को कुछ समय तक लागू करना होगा । आपको यहां पर लोक व्यय तथा वितरण के समबन्ध में कीन्स के विचार को ही ध्यान में रखना होगा। कीन्स के According निर्धनों में धनी व्यक्तियों की अपेक्षा उपभोग पर व्यय करने की अधिक प्रव्रत्ति पायी जाती है और इसी कारण जब धनी वर्ग से धन ले कर गरीबों पर व्यय Reseller जायेगा तो देश में व्यय के धन की मात्रा बढ़ेगी जिससे उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि होगी।
लोक व्यय तथा स्थिरीकरण
अब आप Meansव्यवस्थाओं के स्थिरीकरण पर लोक व्यय के पड़ने वाले प्रभावों को भंली भांति समझ सकेंगे। आपको यहां पर यह ध्यान देना होगा कि यह आवश्यक नहीं है कि लोक व्यय का प्रभाव सदैव सकारात्मक ही पाय जाय। स्थिरीकरण की समस्या कोई नई समस्या नहीं है। प्राचीन काल से लेकर वर्तमान में भी विकसित देशों के साथ विकासशील देश भी इस समस्या के समाधान के लिए लोक आगम की व्यवस्था के साथ-साथ लोक व्यय की भूमिका भी अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं। सामान Reseller से Meansव्यवस्था को मंदी व तेजी की अनावश्यक अव्यवस्थाओं से बचाना ही स्थिरीकरण कहा जा सकता है जिसके लिए लोक व्यय को Single आवश्यक उपकरण बनाया गया है।
विकसित देशों में रोजगार तथा वृद्धि की दर चरम सीमा पर होती है अत: व्यापारिक चक्र की समस्या सामान्य Reseller से पनपती रहती है जिसके समाधान के लिए लोक व्यय को अत्याधिक महत्व दिया जाता है। वही विकासशील देशों में इस समस्या के समाधान के लिए करारोपण And लोक व्यय दोनों ही तत्वों को Single सामन्जस्य के साथ स्वीकार Reseller जाता रहा है। विकासशील देशों में गरीबी, बेरोजगारी तथा संस्थागत विकास सम्बन्धी अनेक समस्याऐं पायी जाती है। विकाSeven्मक सरकारों की लोकप्रियता हासिल करने के लिए अपने कार्यो का विस्तार करना होता है जिससे आर्थिक अस्थिरता पैदा होती है। वही दूसरी ओर इस आर्थिक अस्थिरता को दूर करने के लिए करारोपण व्यवस्था के साथ बढते लोक व्यय को बड़ी सीमा तक सहारा लिया जा रहा है लेकिन सरकारों के सामने मुख्य समस्या इस लोक व्यय के लिए मदों का चयन की तथा व्यय के आवंटन की सदैव बनी रहती है। Single तरफ सरकार द्वारा मांग सृजित करने के लिए लोक कल्याणकारी योजनाऐं संचालित की जाती है वहीं पूर्ति पक्ष को समायोजित करने के लिए भारी मात्रा में पूंजीगत व्यय Reseller जाता है।
यहां पर आपको यह भी बताना आवश्यक है कि Meansव्यवस्था में मंदी व तेजी की अवांछनीय अवस्थाओं से निपटने के लिए लोक व्यय सम्बन्धी तत्कालीन उपाय भी किये जाते हैं। मंदी की अवस्था में मांग सृजित करने व क्रय शक्ति बढ़ाने के लिए प्रत्यक्ष तौर पर भारी मात्रा में लोक व्यय Reseller जाता है वही तेजी की अवस्था में लोक व्यय में कमी करना सम्भव नहीं होता है लेकिन लोक व्यय की दशा And क्षेत्र में आवश्यक परिवर्तन किये जाते है जिससे लोक व्यय का प्रभाव आर्थिक स्थिरता बनाये रखने में सहायक सिद्ध हो सके। आर्थिक अस्थिरता की मन्दी काल में घटनाओं का क्रम इस प्रकार से संचालित होता है कि वस्तुऐं और सेवाओं के मूल्य में गिरावट आ जाती है जिससे व्यवसाय में सुस्ती पैदा हो जाती है । इससे व्यापारियों को हानि होने लगती है और आर्थिक क्षेत्र में निराशा का माहौल पैदा हो जाता है इस आर्थिक मन्दी का उत्पादन तथा रोजगार पर प्रतिकूल Reseller से प्रभाव पड़ता है। जनता में क्रय शक्ति घट जाती है।
आपको शायद ध्यान होकि लोक व्यय के द्वारा जनता में क्रय शक्ति बढ़ जाती है जिससे वस्तुओं And सेवाओं की मांग में वृद्धि हो जाती है। इस लोक व्यय के द्वारा बढ़ी हुई क्रय शक्ति का प्रभाव Meansव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर अलग-अलग Resellerों में सकारात्मक स्तर पर पड़ता है। लोक व्यय में वृद्धि होने से उपभोग का स्तर बढ़ जाता है जिससे निजी And सार्वजनिक विनियोग को प्रोत्साहन मिलता है। विकासशील Meansव्यवस्थाओं के साथ पूर्ण विकसित Meansव्यवस्थाओं में भी मुद्रा स्फीर्ति की स्थितियां आर्थिक अस्थिरता पैदा करती हैं । जिसे राजकोशीय नीति के माध्यम से नियन्त्रित Reseller जाता है। राजकोशीय नीति में लोक व्यय को Single महत्वपूर्ण And कारगर उपाय के Reseller में प्रयोग Reseller जाता है। मन्दी काल में उठाये गये लोक व्यय सम्बन्धी कदमो के विपरीत इस स्थिति में लोक व्यय में कमी की जाती है। राजकीय व्यय को कम करके मुद्रा स्फीर्ति के खतरनाक प्रभावों को Single बडी सीमा तक कम Reseller जाता है ।
आर्थिक स्थिरता बनाऐ रखने के लिये इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है कि मन्दी या तेजी की स्थिति में लोक व्यय से सम्बन्धित निर्णय इस प्रकार लिया जाये कि उसका प्रभाव Meansव्यवस्था में Single तरफा न हो जाये अन्यथा आर्थिक अस्थिरता दो विन्दुओं – मन्दी और तेजी के बीच सदैव बनी रहेगी ।
लोक व्यय के प्रभावों की सीमाऐं
आपनें इसमे प्रारम्भ में लोक व्यय के उत्पादन, वितरण आदि पर पड़ने वाले प्रभावों को अध्ययन Reseller। लेकिन इस संदर्भ में आपको यह भी ध्यान रखना होगा कि जिन प्रभावों के उददेश्यों को ध्यान में रखकर सरकार लोक व्यय करती है वे प्रभाव पूर्ण Reseller से प्रभावी नहीं हो पाते है। जनता का व्यवहार तथा गैर आर्थिक क्रियाकलाप लोक व्यय के प्रभावों को कम करने में सफल हो जाते हैं। इसके साथ सरकारी योजनाओं तथा क्रियाकलापों का उचित क्रियान्वयन नही हो पाने से भी लोक व्यय के प्रभाव सीमित हो जाते है। Single अन्य महत्वपूर्ण सीमा यह भी देखने को मिलती है कि यदि सरकारी लोक व्यय से प्राप्त उददेश्यों को Single निश्चित समय सीमा में नहीं रखा गया Meansात समय तत्व को ध्यान में नही रखा गया तो लोक व्यय के प्रभाव Single बड़ी सीमा तक प्रभावित होते है। सामान्यत: यह प्रभाव नकारात्मक या प्रतिकूल Reseller में ही परिचलित होते है। अनावश्यक राजनीतिक हस्तक्षेप तथा प्राकृतिक आपदाओं आदि कारणों से भी लोक व्यय के प्रभाव पूर्ण Reseller से दिखाई नहीं देतें है।