सद्वृत्त का Means, अवधारणा And महत्व

सद्वृत्त का Means

सद्वृत्त की उत्पत्ति दो Wordों के मिलने से होती है। First Word सद् And द्वितीय Word वृत्त। सद् Single सत्य वाचक Word है जिसका प्रयोग सही, उपयुक्त, अनुकूल And धनात्मक रुप में होता है जबकि वृत्त से तात्पर्य घेरे से होता है Meansात सद्वृत्त ऐसे सकारात्मक And सही नियमों का घेरा है जिनका पालन करने से मनुष्य का स्वास्थ्य उन्नत अवस्था में बना रहता है। वास्तव में सद्वृत्त मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों का समूह है जिनका पालन करने मनुष्य का स्वास्थ्य उन्नत अवस्था में बना रहता है जबकि इनका अपालन करने से मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक स्वास्थ्य का स्तर कमजोर हो जाता है And वह मनुष्य नाना प्रकार की व्याधियों से ग्रस्त हो जाता है। सरल भाषा में सद्वृत्त को मानसचर्या की संज्ञा भी दी जाती है क्योकि इसके अन्र्तगत मनुष्य द्वारा किए जाने वाले करणीय कर्मों का समावेश होता है। सद्वृत्त मनुष्य द्वारा किए जाने वाले ऐसे करणीय कर्मों का समूह है जिससे उसका शारीरिक,मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक स्वास्थ्य का स्तर उन्नत अवस्था में बना रहता है। आधुनिक काल में चिकित्सा विज्ञान के अन्तर्गत स्वस्थवृत्त को हाइजीन (Hygine) के नाम से जाना जाता है। आधुनिक काल में स्वास्थ्य संर्वधन में हाइजीन के महत्व को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भी स्वीकार Reseller गया है, इसीलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) स्वास्थ्य के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक पक्ष को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य को इस प्रकार परिभाशित करता है –

Health is a state of complete Physical, Mental, Spiritual and Social well being and not merely the absence of disease or infirmity. Meansात केवल रोगों की अनुपस्थिति मात्र को ही स्वास्थ्य नही कहा जा सकता है अपितु स्वास्थ्य तो वह अवस्था है जिसमें व्यक्ति शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक स्तर पूर्ण रुप से स्वस्थ हो।

इस प्रकार है विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.O.) द्वारा स्वास्थ्य की व्याख्या शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक पक्ष के आधार पर की गयी है जिसमें शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक पक्ष को स्वास्थ्य का प्रमुख घटक माना गया है। स्वास्थ्य के उपरोक्त चारों पक्षों को उन्नत बनाने वाले नियमों का वृत्त ही स्वस्थवृत्त कहलाता है। Second Wordों में स्वस्थवृत्त स्वास्थ्य का वह विज्ञान है जिसमें मनुष्य के स्वास्थ्य के उपरोक्त चारों महत्वपूर्ण पक्षों को उन्नत बनाने हेतु करणीय And अकरणीय कर्मों की सविस्तार व्याख्या की जाती है। मनुष्य के स्वास्थ्य को उन्नत बनाए रखने में स्वस्थवृत्त का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है।

स्वस्थवृत्त के Means को समझने के उपरान्त अब आपके मन में इस विषय को गहरार्इ से जानने की जिज्ञासा भी बढ गयी होगी, इसीलिए अब स्वस्थवृत्त की अवधारणा पर विभिन्न पक्षों के आधार पर विचार करते हैं।

सद्वृत्त की अवधारणा

सद्वृत्त आयुर्वेद शास्त्र का Single महत्वपूर्ण विषय है। इस विषय पर आयुर्वेंद के विभिन्न आचार्यों ने विचार मंथन Reseller है। आचार्यों द्वारा शरीर में त्रिदोषों को सम बनाने (आरोग्य प्राप्ति) के साथ साथ ज्ञानेन्द्रियों-कर्मेन्द्रियों And मन को स्वस्थ And ऊर्जावान बनाए रखने (इन्द्रियजय) के उद्देश्य से सद्वृत्त का उपदेश Reseller गया है। इस संदर्भ में वैयक्तिक And सामाजिक सद्वृत्त का उपदेश Reseller गया है। वैयक्तिक सद्वृत्त के अन्तर्गत मनुष्य के शारीरिक And मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाए रखने हेतु स्वच्छता, आहार, अध्ययन व व्यायाम आदि स्वास्थ्य संर्वधन के महत्वपूर्ण बिंदुओं का वर्णन Reseller गया है जबकि सामाजिक सद्वृत्त के अन्तर्गत नैतिक, चारित्रिक And सामाजिक नियमों के पालन का उपदेश Reseller जाता है। इन नियमों का प्रभाव मनुष्य के सम्पूर्ण स्वास्थ्य ;भ्वसपेजपब भ्मंसजीद्ध पर पडता है और इसके फलस्वरुप मनुष्य का स्वास्थ्य के साथ साथ व्यक्तित्व का भी सर्वांगीण विकास होता है। उपरोक्त बिंदुओं को जानने And समझने के अपरान्त अब आपके मन में सद्वृत्त के स्वरुप का गहरार्इ से अध्ययन करने की जिज्ञासा ओर भी बढ गयी होगी। यहाँ पर विषय का प्रारम्भ स्वंय अपने द्वारा पालन किए जाने वाले नियमों Meansात वैयक्तिक सद्वृत्त से करते हैं –

1. वैयक्तिक सद्वृत्त – 

इसे पर्सनल हाइजीन के नाम से जाना जाता है जिसमें स्वंय अपने द्वारा पालन किए जाने वाले नियमों का History आता है। यद्यपि सामान्य रुप से पर्सनल हाइजीन से तात्पर्य केवल व्यक्तिगत स्वच्छता से ही लिया जाता है किन्तु वास्तव में व्यक्तिगत स्वच्छता जैसे बाल, नाखून, कपडे आदि की स्वच्छता के साथ साथ इसमें आहार, अध्ययन And व्यायाम आदि महत्वपूर्ण बिंदु भी इसके प्रमुख भाग होते हैं जिन पर यहाँ विचार Reseller जाएगा। विषय का प्रारम्भ स्वच्छता सम्बन्धी सद्वृत्त से करते हैं –

(क) स्वच्छता सम्बन्धी सद्वृत्त 

वैयक्तिक सद्वृत्त का सबसे First And महत्वपूर्ण बिंदु स्वच्छता है। स्वच्छता मनुष्य द्वारा अपने शरीर, मन, मस्तिष्क, घर And आस-पास के वातावरण को शुद्ध, सुव्यवस्थित And अनुशासित करने की क्रिया है। Indian Customer समाज में मान्यता है कि स्वच्छता में सकारात्मक ऊर्जा (र्इश्वर) का वास And गंदगी में नकारात्मक ऊर्जा (भूतों) का वास होता है, इसीलिए स्वच्छता को मनुष्य का धर्म कहा जाता है। स्वच्छता रखने से मनुष्य का शरीर And मन स्वस्थ बनता है जबकि अस्वच्छता के परिणाम स्वरुप मनुष्य की शारीरिक And मानसिक ऊर्जा क्षीण पड जाती है और नाना प्रकार के शारीरिक And मानसिक रोग उत्पन्न होते हैं। प्रात:काल उठते ही सबसे First स्वच्छतारुपी नित्य कमोर्ं का उपदेश शास्त्रों में Reseller गया है। इस संदर्भ में कहा गया है कि जिनके कपडे मैले रहते हैं, दाँतों पर मैल जमा रहता है, मुँह से दुर्गन्ध आती है और जो सदैव कडवे वचन बोलते हैं उनको लक्ष्मी सदैव के लिए छोडकर चली जाती है। इस संदर्भ में देववाणी में सूक्ति है –

कुचैलिनं दन्तमलोपधारिणं बºवशिनं निष्ठुरभाषिणं च।

Ultra siteोदये चास्तमिते शयानं विमु´चति श्रीर्यदि चक्रपाणि:।।

Meansात जिनके शरीर और वस्त्र मैले रहते हैं, जिनके दाँतों पर मैल जमा रहता है, बहुत अधिक भोजन करते हैं, सदा कठोर बचन बोलते हैं तथा Ultra siteोदय व Ultra siteास्त के समय सोते हैं, वे महादरिद्र होते हैं। यहाँ तक कि चाहे चक्रपाणि विष्णु भगवान ही क्यों ना हो, परन्तु उनको भी लक्ष्मी छोड देती है।

सद्वृत्त के अन्र्तगत शारीरिक की स्वच्छता का वर्णन Reseller जाता है। शारीरिक स्वच्छता में साफ स्वच्छ जल से प्रतिदिन स्नान करना, हाथों को अच्छी प्रकार धोने के उपरान्त स्वच्छ हाथों से भोजन करना, हाथों And पैरों के नाखून तथा शरीर के बालों आदि को स्वच्छ-सवांर कर रखना And साफ स्वच्छ वस्त्रों को धारण करने का वर्णन आता है। इसके साथ साथ आहार बनाने And ग्रहण करने में स्वच्छता को भी वैयक्तिक सद्वृत्त के अन्र्तगत रख गया है। मनुष्य को अपने आस पास के वातावरण में औषधियुक्त धूएँ का प्रयोग करना चाहिए तथा मनुष्य को अपने स्वास्थ्य को उन्नत बनाने हेतु औषध द्रव्यों का धूआँ करने के उपरान्त उसका सेवन भी करना चाहिए, इससे Single ओर जहाँ वातावरण साफ स्वच्छ And रोगाणुरहित बनता है वहीं दूसरी ओर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है।

(ख) आहार सम्बन्धी सद्वृत्त 

मनुष्य के जीवन में आहार का विशिष्ट महत्व है। मनुष्य को स्वस्थ And रोगी बनाने में आहार की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। आहार सम्बंधी ऐसे नियम जिनका पालन करने से मनुष्य स्वस्थ रहता है And जिनका अपालन करने से मनुष्य रोगी बन जाता है, आहार सम्बन्धी सद्वृत्त कहलाते हैं। यहाँ पर स्पष्ट History Reseller गया है कि मनुष्य को अपनी प्रकृति के अनुरुप गुरु अथवा लघु का विचार करने के उपरान्त ही आहार ग्रहण करना चाहिए Meansात ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए जो शरीर की प्रकृति के अनुकूल हो तथा शरीर की प्रकृति के प्रतिकूल आहार का सेवन नही करना चाहिए।

इसके साथ साथ भोजन की मात्रा, देश And काल का विचार करने के उपरान्त ही आहार का सेवन करना चाहिए। ताजे भोज्य पदार्थों को ग्रहण करना चाहिए And भोजन करते समय बीच-बीच में थोडा थोडा जल भी पीना चाहिए, ऐसा करने से भोजन की अच्छी लुगदी बनती है And ग्रहण किए हुए भोजन के पाचन And अवशोषण की क्रिया अच्छी प्रकार होती है। भोजन में मोटे अनाज जैसे सत्तू के सेवन का उपदेश भी वैयक्तिक सद्वृत्त के अन्र्तगत Reseller जाता है। इसके अतिरिक्त मैदे से बने पदार्थों का सेवन नही करना चाहिए। जीभ के स्वाद के वशीभूत होकर त्याज्य And स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से हानिकारक पदार्थों का सेवन कदापि नही करना चाहिए।

वैयक्तिक सद्वृत्त मनुष्य के व्यक्तिक जीवन से सम्बन्धित ऐसे नियमों का वृत्त है जिनके पालन से वह उन्नत स्वास्थ्य के साथ अपने जीवन को व्यतीत करता है। इस संदर्भ में स्वच्छता And आहार सम्बन्धित नियमों का अध्ययन करने के उपरान्त आपके मन में अन्य नियमों को जानने की जिज्ञासा भी अवश्य ही बढ गयी होगी। प्रिय विधार्थियों, मनुष्य का अध्ययन के साथ गहरा सम्बन्ध है और अध्ययन के संदर्भ में भी सद्वृत्त पर विचार Reseller गया है अत: अब अध्ययन सम्बन्धी सद्वृत्त पर विचार करते हैं –

(ग) अध्ययन सम्बन्धी सद्वृत्त 

ज्ञान का Human जीवन में बहुत अधिक महत्व है। शास्त्रों का कथन है कि ज्ञान के अभाव में मनुष्य का जीवन पशु के समान है। ज्ञान प्राप्त करने का प्रमुख साधन उत्तम ग्रन्थों का अध्ययन है। अच्छे शास्त्रों का अध्ययन करने से मनुष्य ज्ञान की प्राप्ति करता है And ज्ञान से ही मनुष्य मुक्ति के समीप जाता है। सद्वृत्त के अन्र्तगत अध्ययन के नियमों पर सविस्तार विचार Reseller गया है। चूंकि अध्ययन में प्रकाश की आवश्यक्ता होती है अत: उचित मात्रा में प्रकाश की उपस्थित में अध्ययन करना चाहिए। इसके साथ साथ देश And काल में भी अध्ययन के नियमों का पालन करना चाहिए। आकाशीय विधुत चमकते समय अध्ययन नही करना चाहिए।

आपने संध्याचर्या के अन्र्तगत भी आपने ज्ञान प्राप्त Reseller है कि संध्याकाल में जब प्रकाश कम अथवा अधिक हो रहा होता है तब उस काल में पठन-पाठन Meansात अध्ययन कार्य नही करना चाहिए, यह अध्ययन सम्बन्धी सद्वृत्त है। इसके अतिरिक्त अग्नि के उपद्रव के समय, महोत्सव के समय, उल्कापात के समय, महाग्रहों के संयोग के समय And चन्द्रमाहीन तिथियों में अध्ययन नही करना चाहिए। यहाँ पर स्पष्ट History Reseller गया है कि बिना शिक्षक पढाए अध्ययन नही करना चाहिए। हीन अक्षर वाले And लम्बे वाक्यों का अध्ययन नही करना चाहिए। अति शीघ्रता अथवा अधिक धीमी गति से अध्ययन नही करना चाहिए तथा अधिक जोर से अथवा अधिक धीमे स्वर में अध्ययन नही करना चाहिए। इस प्रकार अध्ययन में भी सद्वृत्त के नियमों का पालन करने से मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, अध्यात्मिक And सामाजिक स्वास्थ्य में उन्नति होती है।

(घ) व्यायाम सम्बन्धी सद्वृत्त 

व्यायाम का Means शरीर की माँसपेशियों को सक्रिय, स्वस्थ And सबल बनाने वाी क्रिया से है। व्यायाम के द्वारा शरीर स्वस्थ And सुन्दर बनता है। इसके साथ साथ व्यायाम करने से मनुष्य के मन And बुद्धि का भी विकास होता है। नियमित व्यायाम करने से हृदय को बल मिलता है And हृदय स्वस्थ, सक्रिय And रोगरहित बनता है। इसके अतिरिक्त व्यायाम करने से मनुष्य के शरीर में रक्त परिसंचरण की क्रिया त्रीव होती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढती है। व्यायाम मनुष्य को शारीरिक And मानसिक रुप से स्वस्थ बनाने में Single महत्वपूर्ण भूमिका का वहन करते हैं किन्तु Single ओर जहाँ व्यायाम शरीर और मन पर लाभकारी प्रभाव रखते हैं तो वही दूसरी ओर यदि गलत विधि से अथवा नियमों के विपरित व्यायाम Reseller जाए तब उसका दुष्प्रभाव भी मनुष्य के शरीर And मन पर पडता है अत: व्यायाम सम्बन्धी सद्वृत्त के पालन का उपदेश आयुर्वेद शास्त्र में Reseller गया है। व्यायाम सम्बन्धी सद्वृत्त का पालन करने से दुष्प्रभाव से मुक्त लाभ मनुष्य को प्राप्त होते हैं। मनुष्य के देश, काल की परिस्थिति तथा अपने शरीर की क्षमता को ध्यान में रखकर व्यायाम करने चाहिए।

(ड) मैथुन सम्बन्धी सद्वृत्त 

मैथुन सृष्टि के जीवों की Single स्वाभाविक क्रिया है। इसके फलस्वरुप संसार के जीव अपनी वंशवृद्धि करते हैं। संसार के अधिकांश जीव जन्तु प्रकृति के नियमों का पालन करते हुए मैथुन क्रिया करते हैं जबकि मनुष्य प्रकृति के नियमों से अनभिज्ञय होकर इस क्रिया को करता है जिसके परिणाम स्वरुप उसकी शारीरिक And मानसिक ऊर्जा क्षीण पड जाती है और वह शारीरिक And मानसिक व्याधियों से ग्रस्त हो जाता है। आयुर्वेद शास्त्र में इस विषय पर बहुत गंभीरतापूर्वक चिन्तन मनन Reseller गया है And इस संदर्भ में नियम पालन का उपदेश Reseller गया है। मैथुन क्रिया के संदर्भ में उपदेशित नियमों को सद्वृत्त की संज्ञा से सुशोभित Reseller जाता है। इन नियमों का मनुष्य के शारीरिक And मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पडता है।

अभी तक आपने वैयक्तिक सद्वृत्त का अध्ययन Reseller। इन वैयक्तिक सद्वृत्त का पालन करने मनुष्य का स्वास्थ्य उन्नत अवस्था को प्राप्त होता है And मनुष्य रोगरहित व ऊर्जावान रहता है। वैयक्तिक सद्वृत्त का सम्बन्ध प्रमुख रुप से शरीर के साथ होता है Meansात वैयक्तिक सद्वृत्त का प्रभाव प्रमुख रुप से मनुष्य के शारीरिक स्तर पर पडता है किन्तु जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्वास्थ्य की परिभाषा में स्पष्ट Reseller है कि केवल शारीरिक स्वास्थ्य को ही पूर्ण स्वास्थ्य नही कहा जा सकता अपितु शरीर के साथ साथ मनुष्य का मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक स्तर पर भी स्वस्थ होना पूर्ण स्वास्थ्य कहलाता है अत: अब मानसिक And सामाजिक सद्वृत्त पर विचार करते हैं –

2. मानसिक सद्वृत्त 

मन मनुष्य के लिए शरीर से भी अधिक महत्वपूर्ण तत्व है। वास्तव में शरीर मन की कार्यस्थली होती है Meansात मन में जो भाव And विचार उत्पन्न होते हैं, उन विचारों And भावों की अभिव्यक्ति अथवा मूर्तरुप शरीर के माध्यम से दिया जाता है। सरल Wordों में शरीर And मन का अटूट सम्बन्ध होता है। इस सम्बन्ध में लोकोक्ति भी है कि मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। Meansात मन में नकारात्मक भाव आने पर शरीर में भी नकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं जबकि मन के सकारात्मक रहने से शरीर सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण रहता है। शरीर के साथ साथ मन का स्वस्थ रहना अत्यन्त आवश्यक होता है। मन में सकारात्मक ऊर्जा की प्रबलता रहने पर ही मनुष्य अच्छे कार्यों में लीन रहता है। किन्तु मन में सकारात्मक ऊर्जा की प्रबलता किस प्रकार हो ? यह Single विचारणीय प्रश्न है। जिसका उत्तर मानसिक सद्वृत्त के अन्र्तगत दिया जाता है।

मानसिक सद्वृत्त का सीधा सम्बन्ध मानसिक स्वास्थ्य के साथ है। मानसिक स्वास्थ्य वह धनात्मक अवस्था है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का ज्ञान रहता है तथा वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना करने में सक्ष्म रहता है। इसके साथ साथ वह लाभकारी And उपयोगी रुप में कार्य करते हुए समाज के प्रति अपना योगदान देता है। इस वर्ग का मनुष्य मानसिक स्वस्थ पुरुष कहलाता है।

यहाँ पर यदि हम वर्तमान काल पर दृष्टिपात करें तो आधुनिक समाज में नकारात्मक दृष्टिकोण का स्तर बढने के कारण झूट, चोरी, झगडे And हिसांत्मक घटनाओं की संख्या बढती जा रही है। आपसी सामंजस्य के अभाव में परिवार And समाज बिखरते जा रहें हैं। व्यक्ति की सोच विचार And भाव संवेददनाओं में नकारात्मक ऊर्जा की प्रबलता अधिक होती जा रही है जिसके परिणाम स्वरुप मानसिक स्वास्थ्य का स्तर दिन प्रतिदिन हीन अवस्था को प्राप्त होता जा रहा है। ऐसी अवस्था में मानसिक सद्वृत्त का जानना, समझना And व्यवहार में लाना अति आवश्य है क्योंकि मानसिक सद्वृत्त के पालन से हम उपरोक्त All समस्याओं से बडी आसानी And सहजतापूर्वक छूटकारा पा सकते हैं।

मानसिक सद्वृत्त मन का वह ज्ञान-विज्ञान है जिसके द्वारा मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा करता हुआ उसे उन्नत अवस्था में बनाए रखता है। इसके साथ साथ मानसिक सद्वृत्त के द्वारा मनुष्य मानसिक क्षमताओं का विकास करता हुआ सांवेगिक स्थिरता को प्राप्त करता है। मानसिक सद्वृत्त के पालन करने से मनुष्य मानसिक रोगों व विकारों से मुक्त स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है। मानसिक सद्वृत्त से तात्पर्य मानसिक स्तर पर अनुशासन And नियम पालन करने से होता है जिनका मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य पर अनुकूल प्रभाव पडता है And जिसके फलस्वरुप मानसिक ऊर्जा सकारात्मक And धनात्मक अवस्था में बनी रहती है।

मानसिक सद्वृत्त के विषय में जानने के उपरान्त अब आपके मन में इस विषय को ओर अधिक गहरार्इ से जानने की जिज्ञासा भी बढ गयी होगी। जैसा कि आपको ज्ञान है कि मन के विचारों से कर्म बनते है। कर्मों से आदत बनती है और आदतों से मनुष्य के चरित्र का निमार्ण होता है। इसीलिए अच्छे विचारों के परिणाम स्वरुप अच्छे चरित्र का निमार्ण And बुरे विचारों के परिणाम स्वरुप बुरे चरित्र का निमार्ण होता है। मन में अच्छे विचारों को धारण करने के संदर्भ में आपने मानसिक सद्वृत्त के अन्तर्गत अध्ययन Reseller अब चरित्र सम्बन्धी सद्वृत्त का अध्ययन करते हैं –

3. चारित्रिक सद्वृत्त 

Indian Customer समाज में मनुष्य के चरित्र को सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। Indian Customer समाज में किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन उसके चरित्र के आधार पर Reseller जाता है। चरित्र का सामान्य Means उसकी सोच विचार, बुद्धि And व्यवहार कुशलता से लिया जाता है। मनुष्य का चरित्र Single ओर जहां सामाजिक उन्नति का प्रतीक है तो वहीं दूसरी और स्वास्थ्य को उन्नत And हीन बनाने में भी चरित्र महत्वपूर्ण भूमिका का वहन करता है। आयुर्वेद शास्त्र में चरित्र को उन्नत And महान बनाने हेतु चारित्रिक सद्वृत्त का उपदेश Human जाति को Reseller गया है। चरित्र सम्बन्धी सद्वृत्त विचारों And व्यवहार का वह अनुशासनात्मक And नियमात्मक ढाँचा है जिसे अपनाने से मनुष्य में अच्छी आदतों And सोच-विचार का विस्तार होता है। चरित्र सम्बन्धी सद्वृत्त का पालन करने से मनुष्य की सोच विचार में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। मनुष्य स्वार्थ And संर्कीणता के तुच्छ भावों से ऊपर उठकर विस्तृत सोच के साथ वैशुधैवकुटुम्बकम के भावों को अपने मन में स्थान देता है। वह अपने पूर्वजों के प्रति श्रृद्धा And निष्ठाभाव रखकर उनके द्वारा बतलाए गये सन्मार्ग का पथिक बनता है। चरित्र सम्बन्धी सद्वृत्त का पालन करने से मनुष्य अपनी इन्द्रियों पर संयम करता हुए इन्द्रियजय को प्राप्त करता है। इसके फलस्वरुप Single अच्छे And महान व्यक्तित्व का निमार्ण होता है।

4. सामाजिक सद्वृत्त :

मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है। मनुष्य का समाज के साथ गहरा सम्बन्ध है। वह समाज में दूसरों में रहकर दूसरों का सहयोग करता है And साथ ही साथ दूसरों का सहयोग लंता भी है। इसी कारण मनुष्य के सामाजिक स्वास्थ्य को महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। सामाजिक स्वास्थ्य का उन्नत होना Single स्वस्थ मनुष्य का प्रमुख लक्षण है जबकि किसी मनुष्य का सामाजिक स्वास्थ्य सही नही होना रोगावस्था का परिचायक है। मनुष्य के सामाजिक स्वास्थ को उन्नत बनाने हेतु सामाजिक सद्वृत्त का उपदेश आयुर्वेद शास्त्र में Reseller गया है जिसके माध्यम से मनुष्य समाज के Second मनुष्यों तथा Second जीवों के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए अपने जीवन को सुख And शान्तिपूर्वक ढंग से व्यतीत कर सके।

सामाजिक सद्वृत्त के अन्तर्गत मनुष्य अपने माता-पिता, घर के वृद्धजन, आचार्य, अतिथि And श्रेष्ठजनों को सम्मान देने का विषय आता है। अपने आस पास के समाज में सकारात्मक वातावरण का निमार्ण करना And सामाजिक कार्यों में उत्साह से भाग लेना सामाजिक सद्वृत्त का भाग है जिसका पालन करने से मनुष्य का सामाजिक स्वास्थ्य उन्नत होता है And समाज में अच्छे संस्कारों की उत्पत्ति होती है।

आपको ज्ञान होगा कि इस भूमण्डल पर मनुष्य र्इश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। मनुष्य का दायित्व केवल अपना जीवन यापन करने तक ही सीमित नही होता अपितु संसार के अन्य जीवों पर भी पर भी मनुष्य का नियंत्रण होता है अत: मनुष्य को अपने साथ साथ अन्य जीवों के विषय में भी चिन्तन करना चाहिए। विशेष रुप से मूकहीन अपने आश्रित जीवों के प्रति हृदय में सदैव दया And करुणा के भाव रखने चाहिए। इसके साथ अपने से कमजोर दीन-हीन, विपत्ति से ग्रस्त रोगी And दुखी मनुष्यों के साथ सकारात्मक व्यवहार करना चाहिए। विपत्ति से पिडित मनुष्य की रक्षा करनी चाहिए। इन्ही नियमों का पालन करने And इस प्रकार के भाव अपनाने को सामाजिक सद्वृत्त की संज्ञा दी जाती है। इनका पालन करने से मानसिक And आध्यात्मिक बल की प्राप्ति होती है And मनुष्य को मानसिक शान्ति मिलती है।

5. धार्मिक सद्वृत्ति 

मनुष्य का धर्म के साथ अटूट सम्बन्ध है। मनुष्य को धार्मिक सद्वृत्ति रखनी चाहिए Meansात धर्म में अपनी रुचि रखनी चाहिए। प्रश्न उपस्थित होता है कि धर्म क्या है ? धर्म के स्वरुप को स्पष्ट करते हुए महर्षि मनु कहते हैं –

धृति: क्षमादमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम्।।( मनु स्मृति)

Meansात धैर्य, क्षमा, दम (अपनी वासनाओं पर नियंत्रण रखना), अस्तेय (चोरी नही करना), शौच (बाºय And आन्तरिक स्वच्छता), इन्द्रिय निग्रह (अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण), विद्या (ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन, वचन And कर्म से Single व्यवहार करना), अक्रोध (क्रोध नही करना) ये दस धर्म के लक्षण है। इसके साथ साथ मनुष्य को जो व्यवहार अपने अनुकूल नही लगता हो, ऐसा व्यवहार दूसरों के साथ नही करना चाहिए। यह भी मनुष्य का धर्म है। धार्मिक सद्वृत्त का मनुष्य के शरीर, मन And आत्मा के साथ सीधा सम्बन्ध होता है। धर्म का पालन करने से शारीरिक, मानसिक And आध्यात्मिक बल की प्राप्ति होती है जबकि धर्म को धारण नही करने से मनुष्य की आन्तरिक शक्ति असन्तुलित हो जाती है जिसके परिणाम स्वरुप मनुष्य नाना प्रकार की व्याधियों से मनुष्य ग्रस्त हो जाता है। उपरोक्त नियमों के साथ साथ मनुष्य को पूर्ण रुप से स्वस्थ बने रहने के लिए अनुपयुक्त And अयोग्य क्रियाओं का त्याग करना चाहिए। इस प्रकार कुछ सामान्य त्याज्य नियमों के वृत्त को भी described Reseller जाता है जो इस प्रकार है –

6. सामान्य त्याज्य वृत्त –

मनुष्य Single मननशील And चिंतनशील प्राणी है जिसे अपनी प्रत्येक क्रिया उचित And अनुचित का निर्णय करने के उपरान्त ही करनी चाहिए। मनुष्य को अपने जीवन में कभी अनुचित आहार विहार And सोच विचार नही करनी चाहिए। सदैव उपयुक्त आहार विहार का सेवन करते हुए सकारात्मक सोच विचार में लीन रहना चाहिए। इस संदर्भ में स्वस्थ मनुष्य के विषय में कहा जाता है कि मनुष्य को शरीर गर्म, दिमाक ठंडा And हृदय नरम रखना चाहिए। यहाँ इस लोकोक्ति का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को शरीर से कठिन परिश्रम करते हुए शरीर को गर्म रखना चाहिए, जबकि मस्तिष्क में कभी क्रोध नही लाना चाहिए अपितु क्रोध के स्थान पर मस्तिष्क को शान्त (ठंडा) रखना चाहिए, इसके साथ साथ मनुष्य को अपने हृदय में सदैव दया And उदारता के भाव रखने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य का शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य उन्नत अवस्था में बना रहता है, जबकि इसके विपरित आचरण करने से नाना प्रकार की व्याधियों से मनुष्य ग्रस्त हो जाता है।

सामान्य त्याज्य वृत्त के अन्तर्गत ऐसे कार्यों, क्रियाओं And नियमों का वर्णन आता है जिन्हे करने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है And मनुष्य की शारीरिक, मानसिक And आध्यात्मिक ऊर्जा क्षीण हो जाती है। ऐसे सामान्य त्याज्य वृत्त के अन्तर्गत बहुत अधिक बोलना, समय का सदुपयोग नही करते हुए समय Destroy करना, अपनी ऊर्जा को निर्रथक कार्यों में Destroy करना And अधारणीय वेगों को धारण करने संबधी कार्यों का History Reseller जाता है।

इस प्रकार उपरोक्त अध्ययन से आपको सद्वृत्त की अवधारण अवश्य ही स्पष्ट हो गयी होगी। इसके साथ साथ सद्वृत्त के सामान्य कार्यों And नियमों का ज्ञान भी आपको अवश्य ही हो गया होगा किन्तु इतना सब कुछ जानने के उपरान्त अब आपके मन में यह प्रश्न उपस्थित होना स्वाभाविक ही है कि सद्वृत्त पालन से मनुष्य को क्या लाभ प्राप्त होता है अथवा सद्वृत्त का Human जीवन में क्या महत्व है ? यह प्रश्न अवश्य ही आपके सम्मुख उपस्थित हुआ होगा अत: अब सद्वृत्त पालन के महत्व पर विचार करते हैं –

सद्वृत्त का महत्व

वर्तमान समय में जहाँ चारों रोग और व्याधियों का बोलबाला है, समाज में चारों ओर भिन्न भिन्न प्रकार के शारीरिक और मानसिक रोगों से ग्रस्त रोगियों की संख्या में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है और इन रोगों से छूटकारा पाने के लिए अलग अलग प्रकार की अगं्रेजी दवार्इयों And अन्य हानिकारक पदार्थों का सेवन बढता जा रहा है, ऐसे समय में सद्वृत्त पालन का महत्व ओर भी अधिक बढ जाता है क्योंकि सद्वृत्त पालन से मनुष्य बिना किसी दुष्प्रभाव And रासायनिक पदार्थों का सेवन किए बिना उन्नत स्वास्थ्य को प्राप्त करने में सक्ष्म बनता है। सद्वृत्त पालन से मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक चारों पक्षों सकारात्मक And अनुकूल प्रभाव पडता है। सद्वृत्त पालन के अन्र्तगत उपयुक्त आहार विहार का सेवन करने से मनुष्य का शरीर बलवान, ऊर्जावान And रोगमुक्त बनता है जो वहीं दूसरी ओर मानसिक सद्वृत्त का पालन से मन की नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है And मनुष्य को उन्नत मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार चरित्र संबंधी सद्वृत्त And धार्मिक सद्वृत्त का पालन करने से आत्मबल की प्राप्ति होती है And इसके फलस्वरुप आध्यात्मिक विकास होता है And सामाजिक सद्वृत्त का पालन करने से मनुष्य का सामाजिक स्तर उच्च श्रेणी का होता है Meansात मनुष्य का सामाजिक स्वास्थ्य अच्छा बनता है। इस प्रकार आधुनिक परिपेक्ष्य में यह कहना उचित सा प्रतीक होता है कि सद्वृत्त पालन से मनुष्य का सर्वागींण विकास होता है।

सद्वृत्त पालन का महत्व को आयुर्वेद शास्त्र में निम्न लिखित बिंदुओं के द्वारा समझाया गया है –

  1. सद्वृत्त पालन से आरोग्य And स्वस्थ जीवन की प्राप्ति होती है। सद्वृत्त पालन से मनुष्य All प्रकार के रोगों से मुक्त शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक And सामाजिक स्वास्थ्य के साथ स्वस्थ जीवन व्यतीत करता है।
  2. सद्वृत्त पालन से मनुष्य को सौ वर्षों की स्वस्थ आयु प्राप्त होती है जिसके विषय में वर्णन करते हुए वेद में र्इश्वर से प्रार्थना की गयी है – ओ…म तस्यचक्षुर्देवहितं पुरस्ताच्छुक्रमु´चरत्। पश्चेम शरद: शतं जीवेम शरद: शतं श्रृणुयाम शरद: शतं प्र ब्रवाम शरद: शतमदीना: स्याम शरद: शतं भूयच्श्र शरद: शतात् ।। (यजुर्वेद) Meansात हे प्रभो, हम आपको सौ वर्ष देखें, आपकी आज्ञा में सौ वर्ष जीवें, आपके नाम का सौ वर्ष व्याख्यान करें, सौ वर्ष की आयु भर पराधीन न हों और योगाभ्यास से सौ वर्ष से भी अधिक आयु हो तो इसी प्रकार विचरें Meansात इसी प्रकार आचरण और व्यवहार करें।
  3. सद्वृत्त पालन से मनुष्य को साधु पुरुषों में पूजनीय स्थान की प्राप्ति होती है Meansात मनुष्य में अच्छे गुण And उत्तम संस्कारों का उदय होता है जिसके फलस्वरुप मनुष्य का सामाजिक उत्थान होता है And समाज के सत्पुरुषों में सम्मान की प्राप्ति होती है। 
  4. सद्वृत्त पालन से मनुष्य को इस लोक में यश And ख्याति की प्राप्ति होती है Meansात मनुष्य की यश And किर्ति की सुगन्धी चारों दिशाओं में फैलती है।
  5. सद्वृत्त पालन से मनुष्य में Humanीय गुणों जैसे प्रेम, करुणा, दया, सहानुभूति And परोपकार का विकास होता है। मनुष्य स्वार्थ And सर्कीणता के तुच्छ भावों से ऊपर उठकर उच्च मानसिक क्षमता And श्रेष्ठ आत्मबल का धनी बनता है। 
  6. सद्वृत्त पालन से मनुष्य इस लोक में सौ वर्षों की स्वस्थ आयु के का भोग करने के उपरान्त सद्गति को प्राप्त होता हुआ परलोक भी अच्छे फलों को प्राप्त करता है Meansात सद्वृत्त पालन से मनुष्य का यह लोक And परलोक दोनों ही सुधरते हैं।

इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि सद्वृत्त पालन से मनुष्य का समग्र विकास होता है। आयुर्वेद के सुप्रसिद्ध विद्धान आचार्य चरक सद्वृत्त पालन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहते हैं-

तस्मादात्महितं चिकिर्षता सर्वेण सर्व सर्वदा स्मृतिसास्थाय सद्वृत्मनुष्ठेयम्।

तद्यनुष्ठानं युगपत्सम्पाˆयत्यर्थद्वयमारोग्यमिन्द्रियविजयं चेति।। ( च0 सू0 8/17)

Meansात सद्वृत्त का अनुष्ठान करने से आरोग्य की प्राप्ति And इन्द्रियों पर विजय प्राप्त होती है।

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