दर्शन का Means, परिभाषा, Need And विशेषताएँ

दर्शन का Means

दर्शन Word संस्कृत की दृश् धातु से बना है- ‘‘दृश्यते यथार्थ तत्वमनेन’’ Meansात् जिसके द्वारा यथार्थ तत्व की अनुभूति हो वही दर्शन है। अंग्रेजी के Word फिलॉसफी का शाब्दिक Means ‘‘ज्ञान के प्रति अनुराग’’ होता है। Indian Customer व्याख्या अधिक गहरार्इ तक पैठ बनाती है, क्योंकि Indian Customer अवधारणा के According दर्शन का क्षेत्र केवल ज्ञान तक सीमित न रहकर समग्र व्यक्तित्व को अपने आप में समाहित करता है। दर्शन चिन्तन का विषय न होकर अनुभूति का विषय माना जाता है। दर्शन के द्वारा बौद्धिक तश्प्ति का आभास न होकर समग्र व्यक्तित्व बदल जाता है। यदि आत्मवादी Indian Customer दर्शन की भाषा में के कहा जाये तो यह सत्य है कि दर्शन द्वारा केवल आत्म-ज्ञान ही न होकर आत्मानुभूति हो जाती है। दर्शन हमारी भावनाओं And मनोदणाओं को प्रतिबिम्बित करता है और ये भावनायें हमारे कार्यो को नियंत्रित करती है।

1. दर्शन का Indian Customer सम्प्रत्यय –

भारत में दर्शन का उद्गम असन्तोष या अतश्प्ति से माना जाता है। हम वर्तमान से असन्तुष्ट होकर श्रेण्ठतर की खोज करना चाहते है। यही खोज दार्शनिक गवेशणा कहलाती है। दर्शन के विभिन्न Means बताये गये हैं। उपनिषद् काल में दर्शन की परिभाषा थी-जिसे देखा जाये Meansात् सत्य के दर्शन किये जाये वही दर्शन है। (दृश्यते अनेन इति दर्शनम्- उपनिषद) डा0 सर्वपल्ली राधाकृष्णन के According- दर्शन वास्तविकता के स्वReseller का तार्किक विवेचन है।

2. दर्शन का पाश्चात्य सम्प्रत्यय –

बादय जगत में दर्शन का First विकास यूनान में हुआ। प्रारम्भ में दर्शन का क्षेत्र व्यापक था परन्तु जैसे-जैसे ज्ञान के क्षेत्र मे विकास हुआ दर्शन अनुशासन के Reseller में सीमित हो गया।

  1. प्लेटो के According- जो All प्रकार का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखता है और सीखने के लिये आतुर रहता है कभी भी सन्तोष करके रूकता नहीं, वास्तव में वह दार्शनिक है। उनके ही Wordों में- ‘‘पदार्थों के सनातन स्वReseller का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।’’
  2. अरस्तु के According- ‘‘दर्शन Single ऐसा विज्ञान है जो परम तत्व के यथार्थ स्वReseller की जॉच करता है।’’
  3. कान्ट के According-’’दर्शन बोध क्रिया का विज्ञान और उसकी आलोचना है।’’ परन्तु आधुनिक युग में पश्चिमी दर्शन में भारी बदलाव आया है, अब वह मूल तत्व की खोज से ज्ञान की विभिन्न शाखाओं की तार्किक विवेचना की ओर प्रवृत्त है। अब दर्शन को विज्ञानों का विज्ञान और आलोचना का विज्ञान माना जाता है। कामटे के Wordों में- ‘‘दर्शन विज्ञानों का विज्ञान है।’’ और हरबार्ट स्पेन्सर के Wordो में ‘‘दर्शन विज्ञानों का समन्वय या विश्व व्यापक विज्ञान है।’’

3. दर्शन का वास्तविक सम्प्रत्यय –

ऊपर की गयी Discussion से यह स्पष्ट है कि Indian Customer दृष्टिकोण और पाश्चात्य दृष्टिकोण में मूलभूत अन्तर है। परन्तु दर्शन की मूलभूत सर्वसम्मत परिभाषा होनी चाहिये- दर्शन ज्ञान की वह शाखा है, जिसमें सम्पूर्ण ब्रह्म्र्राण्ड And Human के वास्तविक स्वReseller सृष्टि-सृष्टा, आत्मा-परमात्मा, जीव-जगत, ज्ञान-अज्ञान, ज्ञान प्राप्त करने के साधन और मनुष्य के करणीय और अकरणीय कर्मोर्ंं का तार्किक विवेचेचन Reseller जाता है।। इस परिभाषा में प्राकृतिक, सामाजिक, अनात्मवादी व आत्मवादी और All दर्शन आ जाते है, और दर्शन के Means प्रतिबिम्बित होते हैं-

  1. दर्शन का मूल ज्ञान के लिये प्रेम- दर्शन Word के लिये अगेंज्री Word फिलॉसफी है। इस Word की उत्पत्ति दो यूनानी Word से हुयी है। फिलॉस जिसका Means है- प्रेम तथा सोफिया जिसका Means है आफ विज्डम। इस प्रकार से फिलास्फी का Means है ‘लव फार विज्डम’या ज्ञान के लिये प्रेम। सुकरात के According ‘‘वे व्यक्ति दार्शनिक हेाते हैं जो सत्य के दर्शन हेतु इच्छुक होते हैं।’’
  2. दर्शन का Means सत्य की खोज- दसू री आरे First परिभाषा भी यह स्पष्ट करती है कि दर्शन जीवन के सत्यों की खोज और उसे जानने की इच्छा तथा उसके साक्षात्कार को कहते हैं। डी0वी0ने स्पष्ट लिया है’’ दर्शन विचारने का प्रयत्न है। हम यह भी कह सकते हैं कि जीवन तथा संसार के सम्बंध में विभिन्न तथ्यों को Single साथ Singleत्र करना जो Singleनिष्ठ सम्पूर्ण बनकर जो या तो Singleता में हो या द्वितत्ववादी सम्प्रदाय में हों, अन्तिम सिद्धान्तों की Single छोटी संख्या में बहुवितरणों को बदल दे।
  3. विचारीकरण की कला- पैट्रिक ्के According- ‘‘दर्शन को हम सम्यक्, विचारीकरण की कला कह सकते हैं।’’ इसमें व्यक्ति तर्क And विधिपूर्वक संसार की वस्तुओं के वास्तविक Reseller को जानने का प्रयास करता है। इस प्रकार से हम यह भी मान सकते हैं कि व्यक्ति जन्म से कुछ दार्शनिक होता है।
  4. अनुभव की बोध गम्यता- बाइटमैन के According- ‘‘ दर्शन को हम वो प्रयास कह सकते हैं जिसके द्वारा सम्पूर्ण Human अनुभवों के विषय में सत्यता के साथ विचार करते हैं अथवा हमारे सम्पूर्ण अनुभव बोधगम्य बनते हैं।’’
  5. जीवन की आलोचना – दर्शन में जगत के दिग्दर्शन का बुिद्धवादी पय्र त्न Reseller जाता है। इसमें प्रयत्न Reseller जाता है कि तत्वों And पहलुओं के साथ समग्र ब्रह्माण्ड की धारणा पर पहॅुच सके तथा पारस्परिक सम्बंध समझ सकें।- दर्शन जीवन की आलोचना है।
  6. अंतिम उत्तर के Reseller में – दर्शन को उस उत्तर के Reseller में देखे जा सकता है जिसमें अंतिम प्रश्नों का आलोचनात्मक ढंग से उत्तर दिया जाता है। वास्तव में दर्शन का अध्ययन केवल प्रश्नों के उत्तर के लिये नहीं अपितु प्रश्नों के लिये भी हेाता हैं।
  7. समस्याओं पर विचार करने का ढग- नवीनतम विचार के अनसु ार दर्शन केवल गूढ़ And सूक्ष्म विचार ही नहीं वरन् यह समस्याओं पर विचार करने का ढंग है। इसके फलस्वReseller ज्ञान आदर्श मूल्य And अच्छार्इ मिलती है। हैण्डरसन लिखते हैं- ‘‘दर्शन कुछ अत्यन्त कठिन समस्याओं का कठोर, नियंत्रित And Windows Hosting विश्लेषण है, जिसका सामना मनुष्य सर्वदा करता है।’’

निष्कर्ष – केवल र्इश्वर ब्रह्म, जीव, प्रकश्ति, मनुष्य इसकी यर्थाथता And अंतिम वास्तविकता आदि से सम्बंधित प्रश्नों तथा उत्तरों को ही दर्शन की परिधि में नहीं रखते। व्यापक Means में दर्शन वस्तुओं, प्रकृति तथा मनुष्य उसके उद्गम और लक्ष्य के प्रतिवीक्षण का Single तरीका है, जीवन के विषय में Single शक्तिशाली विश्वास है जो उसको धारण करने वाले अन्य से अलग करता है।

दर्शन की परिभाषा 

हम यह कह सकते हैं कि दर्शन का सम्बधं ज्ञान से है और दर्शन ज्ञान को व्यक्त करता है। हम दर्शन के Means को और अधिक स्पष्ट करने हेतु कुछ परिभाषायें दे रहे हैं।

  1. बरटे्रड रसेल- ‘‘अन्य विधाओं के समान दर्शन का मुख्य उद्देश्य-ज्ञान की प्राप्ति है।’’
  2. आर0 डब्लू सेलर्स-’’दर्शन Single व्यवस्थित विचार द्वारा विश्व और मनुष्य की प््रकृति के विषय में ज्ञान प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न है।’’
  3. जॉॅन डी0वी0 का कहना है- ‘‘जब कभी दर्शन पर गम्भीरतापवू के विचार Reseller गया है तो यही निश्चय हुआ कि दर्शन ज्ञान प्राप्ति का महत्व प्रकट करता है जो ज्ञान जीवन के आचरण को प्रभावित करता है।’’
  4. हैन्डर्सन के According- ‘‘दर्शन कुछ अत्यन्त कठिन समस्याओ का कठारे नियंत्रित तथा Windows Hosting विश्लेषण है जिसका सामना मनुष्य करता है। 
  5. ब्राइटमैन ने दर्शन को थोडे़ विस्तृत Reseller में परिभाषित Reseller है – कि दर्शन की परिभाषा Single ऐसे प्रयत्न के Reseller में दी जाती है जिसके द्वारा सम्पूण्र Human अनुभूतियों के विषय में सत्यता से विचार Reseller जाता है अथवा जिसके द्वारा हम अपने अनुभवों द्वारा अपनें अनुभवों का वास्तविक सार जानते हैं।

दर्शन की Need

दर्शन यानी दाशर्निक चिन्तन की बुनियाद, उन बुनियादी प्रश्नों में खोजी जा सकती है, जिसमें जगत की उत्पत्ति के साथ-साथ जीने की उत्कंठा की सार्थकता के तत्वों को ढूढने का प्रश्न छिपा है। प्रकृति के रहस्यों को ढूढनें से शुरू होकर यह चिन्तन उसके मनुष्य धारा के सामाजिक होने की इच्छा या लक्ष्य की सार्थकता को अपना केन्द्र बिन्दु बनाती है। मनुष्य विभिन्न प्रकार के ज्ञान अपने जीवन में प्राप्त करता है। उस ज्ञान का कुछ न कुछ लक्ष्य अवश्य हेाता है। दर्शनशास्त्र के अध्ययन शिक्षाशास्त्र के विद्यार्थियों के लिये विशेष कर आवश्यक जान पड़ता है। इसके कर्इ कारण है-

  1. जीवन को उपयोगी बनाने के दृष्टिकोण से- Indian Customer And पाश्चात्य दोनो विचारों के According दर्शन की Need First जीवन के लिये होती है। प्रत्येक व्यक्ति विद्वान या साधारण ज्ञान या न जानने वाला हो वह अवश्य ही विचार करता है। व्यक्ति अपने जीवन की घटनाओं को यादकर उनसे आगामी घटनाओं का लाभ उठाता है। यह अनुभव उसको जीवन में Single विशिष्ट दृष्टिकोण रखने वाला बना देते हैं। यही उसका जीवन दर्शन बन जाता है।
  2. Meansव्व्यवस्था के दृष्टिकोण- दर्शन का Single Reseller हमें Meansव्यवस्था में भी मिलता है, जिसके आर्थिक दर्शन भी कहते हैं। आर्थिक क्रियाओं पर Single प्रकार का नियंत्रण होता है। इसका प्रयोग व्यक्तिगत And राष्ट्रीय जीवन में होता है। परिणामस्वReseller दोनों को लाभ होता है। मितव्ययिता Single विचार है और इसका उदाहरण है। व्यक्तिगत एंव राष्ट्रीय येाजना का आधार यही दर्शन होता है। Meansव्यवस्था शिक्षा के क्षेत्र में भी होता है। जिससे लाभों की दृष्टि में रखकर योजनायें बनती हैं।
  3. राजनैतिक व्यवस्था के दृष्टिकोण से- विभिन्न राजनैतिक व्यवस्था में विभिन्न प्रकार के दर्शन होते हैं। जनतंत्र में जनतांत्रिक दर्शन होता है। जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार मिलते हैं। विभिन्न ढंग से उसे समान अवसर दिये जाते हैं और उसे पूर्ण स्वतंत्रता मिलती है। विभिन्न ढंग से Single दार्शनिक दृष्टिकोण And सिद्धान्त बनता है। दर्शन राष्ट्रीय मूल्यों का स्थापन कर उनका क्रमिक विकास करता है। 
  4. शैक्षिक विकास की दृष्टिकोण से- सस्ंकृति जीने की कला है एव  तरीकों का योग हैं । दर्शन इन विधियों का परिणाम कहा जा सकता है। संस्कृति का परिचय दर्शन से मिलता है। Indian Customer संस्कृति का ज्ञान उसके दर्शन से होता है। Indian Customer परम्परा में सुखवाद को स्थान नहीं, त्याग And तपस्या का स्थान सर्वोपरि है अतएव Indian Customer दर्शन में योगवादी आदर्श पाये जाते हैं और Indian Customer दर्शन आदर्शवादी है। 
  5. व्यक्ति को चिन्तन And तर्क से पूर्ण बनाने की दृष्टि से – दर्शन जीवन पर, जीवन की समस्याओं पर और इनके समाधान पर चिन्तन And तर्क की कला है। इससे जानने की Need हर व्यक्ति को हो।

दर्शन का विषय क्षेत्र

Indian Customer विचारधारा के According दर्शन And जीवन में किसी प्रकार का अन्तर नहीं है। अत: सम्पूर्ण जीवन को दर्शन का विषय क्षेत्र माना गया है। हम दर्शन को मुख्यत: दो Reseller में ग्रहण करते हैं- 1. सूक्ष्म तात्विक ज्ञान के Reseller में। 2. जीवन की आलोचना और जीवन की क्रियाओं की व्याख्या के Reseller में। Single शास्त्र के Reseller में दर्शन के अन्तर्गत  विषयों को अध्ययन Reseller जाता है।

  1. आत्मा सम्बंधी तत्व ज्ञान- इसमें आत्मा से सम्बंि धत प्रश्नो पर विचार Reseller जाता है: यथा आत्मा क्या है? आत्मा का स्वReseller क्या है? जीव क्या है? आत्मा का शरीर से क्या सम्बंध है? इत्यादि। 
  2. र्इश्वर सम्बंधी तत्व ज्ञान- इसमें र्इश्वर विषयक प्रश्नो के उत्तर खोजे जाते हैं : जैसे कि र्इश्वर क्या है? उसका अस्तित्व है या नहीं? र्इश्वर का स्वReseller कैसा है? इत्यादि। 
  3. सत्ता-शास्त्र- इसमें अमूर्त सत्ता अथवा वस्तुओं के तत्व के स्वReseller का अध्ययन Reseller जाता है: यथा- ब्रह्माण्ड के नश्वर तत्व क्या है? ब्रह्माण्ड के अक्षर तत्व कौन-कौन से हैं ? 
  4. सृष्टि-शास्त्र- इसमें सृष्टि की Creation And विकास से सम्बंिधत समस्याओं पर विचार Reseller जाता है : यथा- क्या सृष्टि अथवा ब्रह्माण्ड की Creation भौतिक तत्वों से हुयी है? क्या ब्रह्माण्ड का निर्माण आध्यात्मिक तत्वों से हुआ है? इत्यादि। 
  5. सृष्टि उत्पत्ति का शास्त्र- इस शास्त्र में सृष्टि की उत्पत्ति के विषय में विचार Reseller जाता है : यथा- सृष्टि अथवा विश्व की उत्पत्ति किस प्रकार हुयी है? क्या इसकी Creation की गयी है? यदि हां तो इसकी Creation किसने की है? इत्यादि। 
  6. ज्ञान-शास्त्र- इस शास्त्र में सत्य ज्ञान से सम्बंि धत समस्याओं का हल खोजा जाता है : जैसे कि सत्य ज्ञान क्या है? इस ज्ञान को प्राप्त करने के कौन- से साधन है? क्या Human बुद्धि इस ज्ञान को प्राप्त कर सकती है? इत्यादि। 
  7. नीति-शास्त्र- इसमें व्यक्ति के शुद्ध एव अशुद्ध आचरण से सम्बध्ं ा रखने वाली बातों का अध्ययन Reseller जाता है। जैसे नीति क्या है? मनुष्य को कैसा आचरण करना चाहिये। मनुष्य का कौन सा आचरण नीति विरुद्ध है।
  8. तर्क-शास्त्र- इसमें तार्किक चिन्तन के विषय में विचार Reseller जाता है- यथा : तार्किक चिन्तन कैसे Reseller जाता है? तर्क की विधि क्या है? तार्किक चिन्तन का स्वReseller क्या है? इत्यादि।
  9. सैान्दर्य-शास्त्र- इसमें सौन्दर्य- विषयक प्रश्नो के उत्तर खोजे जाते है  : यथा- सौन्दर्य क्या होता है? सौन्दर्य का मापदण्ड क्या है? इत्यादि। 
  10. दर्शन मनुष्य And जगत के सम्बंध्ंध का अध्ययन- दर्शन जीवन की आलोचना तथा जीवन क्रियाओं की व्याख्या है वहां दर्शन मनुष्य का सम्बंध जगत से तथा जगत की विविध गतिविधियों से क्या है, अध्ययन करता है। जीवन का इस जगत से सम्बंध समाज और समाज की आर्थिक, राजनैतिक णैक्षिक आदि क्रियाओं के साथ है। अस्तु सामाजिक दर्शन, आर्थिक दर्शन, राजनैतिक दर्शन तथा शिक्षा दर्शन भी अध्ययन के विषय बन गये हैं। इन All विषयों में समस्याओं के अध्ययन के साथ उनमें आदर्श And मूल्यों की स्थापना होती है।

दर्शन का उद्देश्य

दर्शन चिन्तन And विचार है, जीवन के रहस्यों को जानने का प्रयत्न है। अतएव दर्शन के उद्देश्य कहे जा सकते हैं।

  1. रहस्यात्मक आश्चर्य की सन्तुष्टि- दर्शन का आरम्भ भारत में तथा यनू ान में आश्चर्य सें हुआ है। वैदिक काल में Human ने प्रकृति की सुन्दर वस्तुओं, घटनाओं And क्रियाओं को देखकर आश्चर्य Reseller कि Ultra site, चन्द्र, तारे, प्रकाण, आंधी, वर्षा, गर्मी और Human की उत्पत्ति कैसे हुयी? Human में इसे जानने की इच्छा हुयी। उसने परम सत्ता की कल्पना की। उसने अपने (आत्म) And र्इश्वर (परम) में अन्तर Reseller और दोनों के पारस्परिक सम्बंध को खोजने के लिये प्रयत्नशील हुआ। Human ने परमसत्ता को समस्त चराचर में समाविष्ट देखा और चिन्तन द्वारा अनुभूति या साक्षात्कार करने की Human ने लगातार प्रयत्न Reseller और उस परमसत्ता की प्राप्ति को मोक्ष कहा यही परमसत्ता की प्राप्ति Indian Customer दर्शन कहलाया। 
  2. तात्विक रहस्यों पर चिन्तन- येनान में ‘‘आश्चर्य’’ से दर्शन का जन्म माना गया है। यूनानी लोगों को भी प्रकृति की क्रियाओं पर आश्चर्य हुआ और संसार के मूलोद्गम को जानने की जिज्ञासा ने जन्म लिया। थेलीज ने जल को एनैकथीमैन्डर ने वायु और हैराक्लाइटस ने अग्नि को उद्गम का मूल माना। वास्तव में ये तीन तत्व ही जगत निर्माण के मूल माने गये। यही तत्व भारत में भी सृष्टि निर्माण के मूल तत्व माने गये हैं बस पांचवा तत्व आकाश माना गया है। 
  3. तर्क द्वारा संशय दूर करना- दर्शन का आरम्भी संशय से होता है। वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति केवल किसी की बात को मान लेने से नहीं होता है जब तक कि इसे तर्क देकर सिद्ध न Reseller जाये। डेकार्टे ने माना- ‘‘मैं विचार करता हॅू इस लिये मेरा अस्तित्व है’’ Meansात् डेकार्टे ने आत्मा को सन्देह रहित माना। आत्मा मनुष्य में निहीत है परन्तु र्इश्वर की सत्ता असंदिग्ध हैं। दर्शन सत्य ज्ञान प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। 
  4. यर्थाथ स्वReseller का ज्ञान प्राप्त करना- Indian Customer दृष्टिकोण से दर्शन का लक्ष्य सत्य की खोज करना है। यह सत्य प्रकृति सम्बंधी तथा आत्मा सम्बंधी हो सकता है। इस यूनान के दार्शनिक प्लेटो ने माना और उनके According-दर्शन, अनन्त का तथा वस्तुओं के यथार्थ स्वReseller का ज्ञान प्राप्त करना है। अरस्तु ने और अधिक स्पष्ट करते हुये लिखा कि दर्शन का लक्ष्य प्राणी के स्वReseller का अन्वेषण करना है और उनमें निहित स्वाभाविक गुणों का पता लगाता है। वून्ट ने स्पष्ट Reseller- विद्वानों द्वारा प्राप्त समग्र ज्ञान का सामंजस्यपूर्ण Singleता में Singleत्रीकरण ही दर्शन है। अतएव ‘‘दर्शन पूर्ण Resellerेण Singleत्रित ज्ञान ही है।’’ दर्शन का लक्ष्य समग्र ब्रह्माण्ड को समग्र वास्तविकता का दिग्दर्शन है। 
  5. जीवन की आलोचना और व्याख्या करना- दर्शन का Single लक्ष्य आधुिनक वर्णों मे ंजीवन की आलोचना And व्याख्या करना तथा निश्चित धारणाओं को प्राप्त कराना है जिससे जीवन को लाभ हो सके। दर्शन का उद्देश्य व्यापक तथा विभिन्न क्षेत्रों से सम्बंधित है। 
  6. जीवन के आदर्शों का निर्माण करना- पा्रचीन काल से आज तक अपने देश में तथा अन्य All देशों में दर्शन का लक्ष्यों जीवन के आदर्शों का निर्माण करना रहा है। दर्शन जीवन के प्रति उस निर्णय को कहते है जो Human करता है। अत: आदर्श निर्माण दर्शन का Single महत्वपूर्ण लक्ष्य होता है। 

दार्शर्निक दृष्टिकोण की विशेषताएँ 

प्रकृति, व्यक्तियों और वस्तुओं तथा उनके लक्ष्यों और उद्देश्यों के बारे में निरन्तर विचार करता है। र्इश्वर, ब्रह्माण्ड और आत्मा के रहस्यों और इनके पारस्परिक सम्बाधों पर प्रकाश डालता है। जो व्यक्ति इनसे सम्बंधित प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करता है उसे हम दार्शनिक कहते हैं। रॉस ने लिखा है कि- वे सब लोग जो सत्यता And साहस से उपर्युक्त प्रश्नों का कोर्इ उत्तर देने का प्रयत्न करते हैं और जिन उत्तरों में कुछ सुसंगति तथा तर्कबद्धता होती है उनका दृष्टिकोण दार्शनिक होता है- चाहे वे भौतिकवादी धर्मशास्त्री या अज्ञेयवादी हो।’’ दार्शनिक दृष्टिकोण की विशेषताएं है-

  1. विस्मय की भावना- दार्शनिक वह व्यक्ति होता है, जा े अपने चारा ें आरे की प्राकण्तिक And सांसारिक व्यवस्था And घटनाओं को देखकर आश्चर्य प्रकट करता है और मूल कारण की खोज करने लगता है। 
  2. सन्देह- दार्शनिक प्रत्यके बात की ठासे प्रमाणों की खाजे कर उसमें फसं ने का प्रयास करता है और प्रत्येक बात को सन्देाहस्पद दृष्टि से देखता है।
  3. मीमांसा- दार्शनिक किसी भी बात को ज्यों का त्यों नही  स्वीकार करता है, वरन् उसकी मीमांसा करके ही उसको मान्यता देता है।
  4. चिन्तन- मीमांसा के लिय े चिन्तन की Need हो ती है और दार्शनिक चिन्तनशील होता है। 
  5. तटस्थता- दाशर्निक अन्धविश्वासी नहीं हातेा। वह तटस्थ भाव से किसी भी प््राश्न पर चिन्तन करता है। उसमें विचार स्वातंत्रय होता है। वह स्वयं अपने मत का निर्धारण करता है।

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