एनजीओ (NGO) और जनहित याचिका

निर्धन, अल्प सुविधा प्राप्त, शोषित और उत्पीड़ित आमतौर पर कानून का सहारा लेकर क्षतिपूर्ति नहीं कराते, क्योंकि वे नहीं जानते कि उनके साथ जो गलत व्यवहार Reseller जा रहा है, वह कानूनी तौर पर गलत है और इसके पास महंगी अदालती कार्रवार्इ के लिए प्रर्याप्त धन की व्यवस्था नहीं होती।फिर भी, आम जनता में साक्षरता के बढ़ने तथा अपने मौलिक And कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा होने से, कानून के माध्यम से सामाजिक कार्रवार्इ और सामाजिक सुधार की प्रक्रिया ने Single महत्वपूर्ण Reseller धारण कर लिया है, जिसे सामान्यतया जनहित याचिका के नाम से जान जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘‘वैध स्थिति’’ की संकल्पना की अद्यतन व्याख्या ने पी0 आर्इ0 एल0 के मार्ग में आगे और क्रान्तिकारी काम Reseller है। इस नर्इ व्याख्या के मुताबिक यदि किसी व्यक्ति या व्यक्तियों के Single वर्ग के साथ कोर्इ कानून के विरूद्ध कार्य Reseller जाता है, और वह गरीबी या अषक्तता के कारण न्याय पाने के लिए कानून की अदालत का दरवाजा नहीं खटखटा सकता, तो कोर्इ भी सामाजिक भवन रखने वाला व्यक्ति या कोर्इ सामाजिक कार्रवार्इ करने वाला ग्रुप उसकी या उन व्यक्तियों की ओर से याचिका दायर कर सकता हैं यह जरूरी नहीं है कि जिस व्यक्ति के साथ कानून के विरूद्ध कोर्इ काम हुआ है वह स्वयं अदालत का दरवाजा खटखटाए।

जनहित याचिका (पी0 आर्इ0 एल0) 

पी0 आर्इ0 एल0 का Means है जनहित या सामान्य हित को लागू कराने के लिए किसी न्यायिक अदालत में दायर की गर्इ कानूनी वार्यवाही। जनहित या सामान्य हित में जन सामान्य या समुदाय के Single वर्ग का धन सम्बंधी हित या ऐसे हित, जिससे उनके कानूनी हक या जिम्मेदारियों पर विपरित प्रभाव पड़ता हो, आते हैं। ऐसे व्यक्ति जो अकेले कानूनी अदालत में जाने की स्थिति में न हो, उनको न्याय दिलवाने के लिए यह Single मार्ग है।

जनहित याचिका के उद्देश्य : पी0 आर्इ0 एल0 लोगो को न्याय दिलाने की Single ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से जनता की तकलीफों की आवाज उठार्इ जाती है। पी0 आर्इ0 एल0 का उद्देश्य यह है कि जन सामान्य अदालत जाकर कानूनी तरीके से सुधार करा सकें। पी0 आर्इ0 एल0 विरोध की भावना से कानूनी लड़ार्इ नहीं है, बल्कि यह सरकार और उसके कर्मचारियों क े लिए Single चुनौती है और Single अवसर है कि वे समुदाय के उपेक्षित और पीड़ित वर्ग के लिए मूल Humanाधिकारों केा सार्थक बनाएं और उन्हें सामाजिक और आर्थिक न्याय प्रदान करना सुनिश्चित करें, जो हमारे संविधान का अभिप्राय है।

संवैधानिक प्रावधान 

संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के द्वारा प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है किवह जहां भी कहीं मूल अधिकारों का उल्लंघन होते देखें, तो वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों में न्याय की गुहार कर सकता है।

अनुच्छेद 32(1) में मूल अधिकारों को लागू करने के लिए उपयुक्त प्रक्रिया अपना कर सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की जा सकती है। अनुच्छेद 32(2) में बताया गया है कि संविधान के भाग प्प्प् में प्रदान किए गए किसी भी अधिकार को लागू करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को उपयुक्त निर्देष देने, आदेश देने या रिट जारी करने, जिनमें बन्दी प्रत्यक्षीकरण,परमाधिदेश निषेध अधिकार पच्ृ छ आरै उत्पेश््र ाण लेख जैसी रिट शामिल हैं, का अधिकार है।

अनुच्छेद 226 में कहा गया है कि अनुच्छेद 32 में दी गर्इ किसी भी व्यवस्था के होते हुए भी, प्रत्येक उच्च न्यायालय को अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले All क्षेत्रों में भाग III में दिऐ गए किसी अधिकार (मूल अधिकार) को लागू करने के लिए किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण को उपयुक्त निर्देष देने, आदेश देने या रिट जारी करने, जिनमें बन्दी प्रत्यक्षीकरण ,परमााधिदेश,निषेध, अधिकार पच्ृ छा आरै उत्प्रेक्षा लेख जसै ी रिट शामिल हं,ै का अधिकार रखता है। संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 32 के Means और प्रसार क्षेत्र की कमजोरी वर्गो के हक में व्यापक व्याख्याएँ दी गर्इ है। ‘‘जीवन जीने के के अधिकार’’ की व्याख्या का Means जीवनयापन के अधिकार से भी है। इसी प्रकार अनुच्छेद 14 के तहत गारंटीषुदा समानता के अधिकार की व्याख्या के अन्तर्गत निर्णय लेने में कार्यकारी और प्रषासनिक अधिकारियों की स्वेच्छाचारीता के विरूद्ध अधिकार प्रदान Reseller गया हैं।

वैध स्थिति की नर्इ व्याख्या : वैध स्थिति की नर्इ व्याख्या के मुताबिक, जब किसी व्यक्ति या व्यक्तियों क Single वर्ग के अधिकारों का उल्लंघन होता है, और गरीबी या अषक्तता के कारण, वे स्वयं अदालत नहीं जा पाते तो कोर्इ भी सामाजिक भावना रखने वाला व्यक्ति या संगठन, बदले की भावना से नहीं, बल्कि भलार्इ की भावना से न्यायिक राहत प्राप्त करने के लिए अदालत जा सकता है।

एस0पी0 गुप्ता Vs. भारत गणतंत्र (AIR 1982 SC 149) मामले में, Seven जजों की संविधान बंचै ने बहुमत से यह फैसला दिया कि अगर जनता का कोर्इ व्यक्ति सच्चे मन से और जनता के साथ दुव्र्यवहार या चोट पहुँचाने पर उसके लिए सुधारात्मक कदम उठाने और क्षतिपूर्ति कराने में दिल्चस्पी रखता है, और मात्र व्यस्त संस्था या हस्तक्षेप की नीयत से काम नहीं कर रहा, तो वह मामले को अदालत में ले जा सकता है। अगर कोर्इ Single व्यक्ति या व्यक्तियों के Single वर्ग को कानूनी दुव्र्यवहार के कारण मुसीबत का सामना करना पड़ता है और वे गरीबी, बेसहारा या सामाजिक पिछड़ेपन के कारण अदालत नहीं जा सकते, तो अगर कोर्इ अन्य व्यक्ति उनकी तरफ से याचिका दायर करता है, तो अदालत नियमबद्ध प्रक्रिया अपनाने की मांग नहीं करेगी।

जजों के स्थानान्तरण के मामले में [AIR 1982 SC 149 and (1994)4 Scc 305]सर्वोच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि जनता का कोर्इ व्यक्ति अगर ‘‘पर्याप्त रूचि’’ रखता है तो वह अन्य व्यक्तियों की सामान्य परेषानियों, मुसीबतों को दूर करने और उन्हें संवैधानिक या कानूनी प्राधिकार दिलावाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।

जब संवैधानिक या कानूनी अधिकार के उल्लंघन के कारण किसी Single व्यक्ति या व्यक्तियों के Single विशिष्ट वर्ग के साथ गलत काम होता है या उसको कानूनी तरीके से चोट पहंचु ार्इ जाती है, और वह व्यक्ति गरीबी, बेसहारा या विकलांगता या सामाजिक या आर्थिक Reseller से असमर्थता की स्थिति होने के कारण राहत पाने के लिए अदालत में गुहार नहीं कर सकता/सकते, तो जनता में से कोर्इ भी व्यक्ति उपयुक्त निर्देष या आदेश प्राप्त करने या रिट के लिए याचिका दायर कर सकता है।

जनहित याचिका दाखिला करने के आयोग्य व्यक्ति 

  • जिस व्यक्ति की सामाजिक हितों में पर्याप्त रूचि न हो, 
  • जो व्यक्ति अपने फायदे या अपने हित के लिए काम करता है
  • राजनितिक ग्रस्तता वाला व्यक्ति, 
  • बुरे इरादे रखने वाला व्यक्ति, 
  • Single तीसरा पक्ष जो अभियोग पक्ष के लिए अंजान हो, और जिनमें अपराधी को सजा सुनार्इ गर्इ हो। 

जनहित याचिका में उठाए जा सकने वाले मामले 

निम्नलिखित से संबंधित मामले-

  1. मूल सुविधाएं, जैसे कि सडके, पानी दवाइयां, बिजली, प्राथमिक पाठशालाएं, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, बस सेवाएं आदि। 
  2. शरणार्थियों का पुनर्वास।
  3. बंधुआ और बाल मजदूरों की पहचान और उनका पुनर्वास। 
  4. गिरफ्तार लोगों की गैर-कानूनी नजरबन्दी।
  5. पुलिस हिरासत में लोगों के साथ दुव्र्यवहार/उत्पीड़न। 
  6. हिरासत में मृत्य 
  7. कैदियों के अधिकारों की रक्षा। 
  8. जेल सुधार। 
  9. मुकदमों की तेजी की सुनवार्इ। 
  10. कालेजों में रैगिंग। 
  11. पुलिस द्वारा नृशंसता का व्यवहार। 
  12. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के विरूद्ध नृशंसता का व्यवहार।
  13. सरकारी कल्याण गृहों में रहने वालों के प्रति लापरवाही। 
  14. हिरासत में बच्चे।
  15. बच्चों को गोद लेना। 
  16. सरकारी कर्मचारियों के विरूद्ध भ्रश्टाचार के मामले। 
  17. कानून और आदेशों का पालन। 
  18. न्यूनतम वेतन का भुगतान। 
  19. गरीबों के लिए कानूनी सहायता। 
  20. भुखमरी के कारण मृत्यु। 
  21. टेलिविजन पर अश्लील कार्यक्रम। 
  22. मद्य निषेध । 
  23. पर्यावरण प्रदूषण। 
  24. अप्राधिकृत तौर पर घर से निकालना। 
  25. पटरी और गन्दी बस्तियों में रहने वालों की रक्षा। 
  26. दहेज के कारण मृत्यु। 
  27. कल्याणकारी कानूनों का पालन। 
  28. गैर कानूनी सामाजिक प्राथाओं का सुधार, जैसे कि सती, बाल-विवाह देववासी प्रणाली आदि। 
  29. कमजोर वर्गो के मूल अधिकारों का उल्लंघन। 

अगर कोर्इ व्यक्ति जनहित याचिका दायर करता है तो वह अनुच्छेद 32 के तहत रिट के लिए निर्धारित All प्रक्रियाओं और औपचारिकाताओं को अपनाने के लिए बाध्य नहीं है। प्रक्रिया तो न्याय की Single प्रारम्भिक कड़ी है। सिर्फ प्रक्रिया सम्बंधी तकनीकों के पूरा न होने पर न्याय का हनन कभी भी स्वीकार नहीं Reseller जा सकता। इसलिए, अदालत बिना किसी संकोच के और बिना किसी अंत: करणीय संदेह के, अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय प्रक्रिया तकनीकी नियमों को नजरअन्दाज कर सकती है और सामाजिक भावना रखने वाले व्यक्ति के पत्र को रिट समझ कर उस पर कार्रवार्इ कर सकती है।

अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियां : अनुच्छेद 32 के तहत अदालत को मूल अधिकारों के लागू करने के लिए सिर्फ निर्देश, आदेश या रिट जारी करने के अकधिकारी ही नहीं है बल्कि अदालत पर यह Single संवैधानिक जिम्मेदारी भी है कि वह लोगों के मूलभूत अधिकारों की रक्षा भी करें, और इसके लिए अदालत को ऐसे All सामयिक या सहायक अधिकार भी प्राप्त हैं जिनमें मूलभूत अधिकारों को लागू करने के लिए नए उपचार और नर्इ रणनीतियां तैयार करना भी शामिल है।

जनहित याचिका दाखिल करने का तरीका 

  1. सम्बंधित न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नाम पत्र याचिका भेजना, जिसके साथ तत्संबंधी तथ्य और दस्तावेज भी हों। यह पत्र रजिस्टर्ड डाक द्वारा ही भेजा जाना चाहिए।
  2. न्यायालय की नि:शुल्क कानूनी सेवा समिति के माध्यम से सीधे अदालत मेंऋ जनहित याचिका दाखिल करना। 
  3. किसी जनहित याचिका वकील की मदद लेकर सीधे मामला दाखिला करना। 
  4. एन0 जी0 ओ0 या जनहित याचिका फर्मों के माध्यम से मामला दाखिल करना। 

ध्यान रखने योग्य महत्वपूर्ण बातें 

  1. प्रभावित व्यक्तियों के साथ कानूनी मासले पर विस्तारपूर्वक विचार-विमर्श करें।
  2. पता लगाएं कि क्या मामला लोगों के मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन का है या नहीं। यह उल्लेचा करना भी महत्वपूर्ण है कि किस मूलभूत अधिकार का उल्लंघन हुआ है। 
  3. यह निर्णय लेने के लिए लोगों की मदद करना कि क्या उनके मूलभूत अधिकारों को पाने के लिए या उनके अधिकारों के उल्लंघन होने को रोकने के लिए अदालत में कानूनी कार्रवार्इ करना अनिवार्य है। 
  4. All तथ्यों, descriptionों तारीखों आदि का History करके याचिका तैयार करना (अनुलग्नक 23.। में रिट याचिका का प्राReseller देंखें)।
  5. याचिका में History करें कि लोग किस तरह की राहत चाहते है। 
  6. अगर संभव हो, तो All प्राभावित लोगों के हस्ताक्षर करा लें। 
  7. ममले से सम्बंधित All दस्तावेज, समाचार पत्रों की कतरनें, फोटोग्राफ, जांच रिपोर्ट, प्रमाणपत्र और हलफनामें Singleत्रित करें और उन्हें मुख्य याचिका के साथ नत्थी कर दें। 
  8. याचिका दाखिल करने से First, अगर सम्भव हो, तो किसी सामाजिक सजग वकील या स्थानीय कानूनी सलाहकार समिति के सदस्यों से परापर्श कर लें। 
  9. याचिका को संबंधित उच्च न्यायालय की उच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष या सर्वोच्च न्यायालय कानूनी सेवा समिति के अध्यक्ष, नर्इ दिल्ली-110001 को रजिस्ट्री द्वारा भेज दें। 
  10. अगर याचिका कमजोर वर्ग के लोगाों की तरफ से दाखिल की गर्इ हो, तो अदालत याचिकादाता को अदालत के शुल्क का भगतान करने से छूट दे सकती है। 

वकील Appointment करना

अदालत को सिर्फ यह बता दे कि याचिकादाता स्वयं अदालत में पेश हो रहा है। फिर भी, याचिकादाता अदालत से अपने लिए वकील की व्यवस्था करने का अधिकार रखता है। अदालत निस्पृह व्यक्ति के Reseller में Single वकील को नियुक्त कर सकती है, जो याचिकादाता की तरफ से कानूनी कार्रवार्इ करेगा, या वह उस मामले को कानूनी सेवा समिति को उपयुक्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए भेज सकती है।

जनहित याचिका में साक्षी : जनहित याचिका में दिए गए अभिवचनों और दावों के समर्थन में साक्षी निम्नलिखित माध्यमों से Singleत्रित किए जा सकते है:-

  1. जनहित याचिका में अभिव्यक्त तथ्यों और सच्चाइयों के बारे में सम्बंधित व्यक्तियों से हलफनामें लेना, 
  2. उस मामले पर समाचार पत्र की कतरनें,
  3. याचिका में उठाए गए कानूनी मुछदे पर किए गए सर्वेक्षण या अनुसंधान की रिपोर्ट, 
  4. ममले पर एन0 जी0 ओ0 या किसी सरकारी एजेंसी द्वारा दी गर्इ कोर्इ जांच रिपोर्ट, 
  5. सरकार के सम्बंधित विभाग द्वारा जारी किए गए दस्तावेज या नोटिस। 

 अनुच्छेद 32 के तहत अदालत की शक्ति सिर्फ रोकथाम की ही नहीं है, Meansात मूलभूत अधिकारों के उल्लंघन को रोकना, बल्कि उनका उपचार करना भी है, Meansात् मुआवजा मंजूर करने की शक्ति1। मुआवजा सिर्फ उपयुक्त मामलो में दिया जा सकता है जहां मूलभूत अधिकारों का हनन स्थूल और सुस्पष्ट उग्र Reseller का हो । गया उल्लंघन बडे़ पैमाने पर Reseller गया हो और बहुत लोगों के मूलभूत अधिकारों पर प्रभाव डालता हो, या उनकी गरीबी या विकलांगता या सामाजिक या आर्थिक प्रतिकूलता-ग्रस्त स्थिति के कारण उनके साथ उन्याय या अत्यधिक कठोरता, या अत्याचार का प्रदर्शन करता हों, जिससे प्राभावित व्यक्ति को नागरिक अदालत में कार्रवार्इ शुरू करने और उसे आगे बढ़ाने की Need पड़ी हो।

जनहित याचिका का खर्च 

अदालत जनहित के याचिकादाता को, अगर वह याचिका अदालत के सामने Single महत्वपूर्ण मामले पर विचार करने के लिए पेश की गर्इ है, उस पर होने वाले खर्च का भूगतान करने की मंजूरी देने का अधिकार रखती है।

जनहित याचिका को बढ़ावा देने में स्वयंसेवी एजेंसी की भूमिका : जनहित याचिका भारत में Single नर्इ प्रक्रिया या संवृत्ति है। यह प्रक्रिया कुछ जजों और वकीलों में उत्पान्न जागृति से शुरू हुर्इ है। सरकारी एजेंसियों, एडजर्नमेंट-लायर्स और संभ्रान्त लोगों की तरफ से इसको तहे-दिल से स्वीकार किये जाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। ग्रास रूट स्तर पर काम करने वाले स्वयंसेवी संगठनों के लिए यह Single वरदान है। यह नया कानूनी साधन (हथियार) जनसमूह के साथ उनके अहिंSeven्मक संघर्ष में कानूनी न्याय प्राप्त करने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। अत: सामाजिक कार्यकर्ता( एन0 जीओ0 गरीबों के शोषण के खिलाफ लड़ार्इ लड़ने और उनकों मूलभूत अधिकार दिलवाने में उनकी सामाजिक कार्रवार्इ के समर्थन में इसे अवश्य प्रयोग में लाएं।

  • सरकार और गैर सरकारी संगठन 
  • स्वैच्छिक प्रयासों में सरकार की भूमिका 
  • सरकार Single नियन्त्रक के Reseller में सरकार ने अनेकों तरह के विधान बनाये है। 

उनमें से तनी प्रकार के विभाग भारत में एन0 जी0 ओ0 को प्रत्यक्ष Reseller से प्रभावित करते हैं:

  1. पंजीकरण या संस्थापन के कानून: सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 सोसायइटी को अपने सदस्यों को लाभांष की अदायगी के लिये सोसाइटी की आय के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगाता है और साथ ही यह भी प्रतिबन्ध लगाता है कि सोसाइटी के भंग हो जाने पर परिसम्पत्तियों का अन्तरण केवल उन्हीं संगठनों को हो जिसका उद्देश्य Single ही जैसा हो। यह प्रतिबंध कुद हद तक Single या दूसरी सोसाइटी द्वारा उद्देश्यों की निरंतरता Meansात् इनके लगातार जारी रहने का सुनिश्चित करता है। 
  2. वित से सम्बंधित विधान: आयकर अधिनियम 1961 में मुख्यत: एन0 जी0 ओ0 सहित धर्मार्थ संगठनों को विशेष रियायत देता है, बशर्ते ऐसी रियायतों की शर्ते प्रति वर्ष संतोशजनक हों।
  3. विदेशी निधियों का विनियमन: विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 1976 देश में All प्रकार केएन0 जी0 ओ0 के लिये विदेशी निधियों की गति और अंशदान को विनियमित करता है। भारत सरकार ने इस अधिनियम को लागू करने की जिम्मेदारी गृह मंत्रालय को सौंप रखी है। 

राज्य सरकार द्वारा धन राशि का दिया जाना 

हमारे संविधान में जो उद्देश्य दिये गये हैं, वे उद्देश्य हमारे देश के आकार को और अनुसूचित जाति/ जनजाति के लोगों, अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गो, महिलाओं सहित समाज के निम्न स्तर की जनता की बुनियादी जरूरतों को देखते हुये पूरी नहीं हो पाये हैं और विकास के लाभ उन तक नहीं पहंचु पाये हैं। गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों पर जोर देने और काफी धनराशि खर्च किये जाने के बाद भी सरकार उन जरूरतमंदों की Needओं को पूरा करने में असमर्थ रही है। इसलिये इन कार्यक्रमों के कार्यान्वयन में और अधिक स्वतंत्रता, लचीलापन और नवीनता की Need है तथा कार्यान्वयन तंत्र में शिथिलता और बरबादी को रोकने की भी Need है।

सरकार की यह इच्छा तभी पूरी हो सकती है जब वह उन एन0 जी0 ओ0 की सहायता ले जिनके पास समाज के कमजोर वर्गो के बीच काम करने का अनुभव हो और ये एन0 जी0 ओ0 भी नियमित आधार पर इस कार्य में अपना सहयोग देने के इच्छुक हों। इसलिए सरकार और एन0 जी0 ओ0 के बीच सहयोगात्मक सम्बंधों की Need है। केन्द्र और राज्यों की सरकारें विकास सम्बंधी और मनवीय सहायता प्रदान करने में छळव्े की भागीदारी के विभिन्न योजनाओं के माध्यम से प्रोत्साहन दे रही हैं। सरकारी धन राशि का काफी बड़ा भाग कार्यान्वयन एजेंसियों को स्वायत्तता के साथ खर्च करने के लिये उपलब्ध कराया जाता है बशर्ते कि इसे कुशलता और मित्व्ययिता And इमानदारी के साथ खर्च Reseller जाये।

भारत सरकार से सहायता अनुदान-सामान्य शर्ते 

भारत सरकार विशिष्ट कार्यक्रमों और सामान्य प्रयोजनों के लिए सहायता अनुदान देती हैं। ये अनुदान कुछ अनुमोदित कार्यक्रमों को कार्यान्वित करने में लगे हुए स्वैच्छिक संगठनों को दिये जाते हैं। कुल मिलाकर इन विशिष्ट योजनाओं को विनियमित करने वाले नियम और शर्ते विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की इन योजनाओं में उल्लिखित सहायता अनुदान के नियमों के According होती है। कुछ शर्ते इस प्रकार हैं:-संगठन/संस्था/एजेंसी सोसाइटीज पंजीकरण अधिकनयम, 1860 आदि के अन्तर्गत पंजीकृत होनी चाहिये।

  1. धन राशि के इच्छुक संगठन पंजीकृत और प्रतिष्ठित होने चाहियं। 
  2. इसे समुचित Reseller से गठित होना चाहिये और इसका आधार व्यापक होना चाहिये। प्रबंधकीय समिति के अधिकारों कत्र्तव्यों और जिम्मेदारियों का स्पष्ट Reseller से इसके लिखित संविधान में History होना चाहिये। 
  3. इसे सामाजिक कल्याण आदि के कार्यो में कम से कम 3 वर्ष संलग्न होना चाहिये। 
  4. स्वैच्छिक संगठनों के कार्यक्रम और सेवायें जाति, नस्ल और धर्म को भेदभाव किये बिना All के लिये होनी चाहिये। 
  5. संगठन की आर्थिक स्थिति, सुदृढ़ होनी चाहिये और इसके पास आवंटित अनुदान से कार्यक्रमों को चलाने के लिये पर्याप्त All सुविधयें और कर्मचारी आदि होने चाहिये। 
  6. इसे किसी व्यक्ति विशेष आदि के लाभ के लिये नहीं परिचालित Reseller जाना चाहिये। 
  7. अनुदान प्राप्त करने वाले संगठनों को अनुदान की शर्तो को पालन करने का Single बांड भरना अनिवार्य होगा। यदि इन शर्तो का उल्लंघन होता है तो अनुदान की राशि वापस करनी पड़ेगी। 
  8. अनुदान प्राप्त करने वाली एजेंसी अनुदान देने वाले के अधिकार को मानगी कि वह कभी भीइस संस्था के कार्यचालन आदि का निरीक्षण कर सकता है।
  9. एजेंसी जनता से अंशदान लेने सहित अपने संसाधन जुटाने में समर्थ होनी चाहिये। 
  10. अनुदान की राशि उसी प्रयोजन के लिये उपयोग की जानी चाहिये जिसके लिये वह ली गर्इ है। 
  11. संस्थायें उन कार्यक्रमों के अलग खते रखेंगी जिनके लिये अनुदान प्राप्त हुआ है। 
  12. यदि अनुदानदाता धनराशि के उपयोग से संतुश्ट नहीं हैं तो अनुदान रोक दिया जायेगा और दी गर्इ राशि वापस ले ली जायेगी। 
  13. अनुदान प्राप्त करने वाले को अपेक्षानुसार अपने लेखपरीक्षित खाते प्रस्तुत करने होंगे। सम्बंधित योजना के बारे में प्रगति रिपोर्ट भी प्रस्तुत करनी होगी। 
  14. अनुदान प्राप्त करने वाला संगठन किसी Second संगठन को कार्यक्रम के कार्यान्वयन के लिये अनुदान की राशि अन्तरित नहीं कर सकता। 
  15. यदि केन्द्रीय सरकार के किसी अन्य विभाग से किसी प्रयोजन के लिए धन राशि प्राप्त की गर्इ है तो उसी प्रयोजना के लिये अनुदान आवंटित नहीं Reseller जायेगा। 
  16. अनुदान की खर्च न की गर्इ राशि वर्ष के अन्त में वापस करनी होगी।

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