एड्रीनल / अधिवृक्क ग्रंथि की संCreation And कार्य

हमारे शरीर में दो अधिवृक्क ग्रन्थियाँ होती हैं तथा दोनों गुर्दों की चोटी पर स्थित होती है। यह कनेक्टिव टिश्यू कैप्सूल (connective tissue capsule) से घिरी होती हैं और आंशिक Reseller से वसा के Single द्वीप में दबी रहती हैं। अधिवृक्क ग्रन्थि को सुपरारीनल ग्रन्थि (Suprarenal Glands) भी कहा जाता है ।

एड्रीनल कॉर्टेक्स एड्रीनल मैड्यूला (Adrenal Cortex) (Adrenal Medulla)   1. मिनरलोकॉर्टीकोइड 1. एपीनेफ्रीन (Mineralocorticoid) (Epinephrine) 2. ग्लूकोकॉर्टीकोइड 2. नॉरएपीनेफ्रीन (Glucocorticoid) (Norepinephrine) 3. गोनाडोकॉर्टीकोइड (Gonadocorticoid)

यह दोनों दो भागों में विभाजित होती हैं –

  1.  पहली एड्रीनल कॉर्टेक्स (Adrenal Cortex) जो कि बाहरी क्षेत्र होता है और Second को एड्रीनल मैड्यूला (Adrenal Medulla) कहा जाता है, जो कि आंतरिक क्षेत्र है। 
  2. एड्रीनल कॉर्टेक्स और एड्रीनल मैड्यूला दोनों अलग-अलग कार्य करती हैं। 

    एड्रीनल कॉर्टेक्स की संCreation And कार्य 

    यह वजन में 5-7 ग्राम की ग्रन्थि है जो एड्रीनल ग्रन्थि का लगभग 90 प्रतिशत भाग बनाती है। यह कर्इ स्टेरॉइड हॉर्मोन उत्पन्न करती है, जिन्हें कार्टिकोस्टेरॉइड (Corticosteroid) कहा जाता है। कार्टेक्स के तीन क्षेत्र होते हैं –

    1. पहला क्षेत्र – बाह्य क्षेत्र (outer zone) से मिनीरेलोकॉर्टिकॉइड (Mineralocorticoid) स्रावित होते हैं। 
    2. द्वितीय क्षेत्र – मध्य क्षेत्र (middle zone) से ग्लूकोकॉर्टिकॉइड (glucocorticoid) स्रावित होते हैं। 
    3. तृतीय क्षेत्र – आन्तरिक क्षेत्र (inner zone) से सेक्स हॉर्मोन या gonadocorticoid स्रावित होते हैं। 

      मिनरेलोकॉर्टिकॉयड 

      इसके अन्तर्गत एल्डोस्टेरॉन (aldosterone) तथा डिहाइड्रोएपिएन्ड्रोस्टेरॉन (dehydroepiandrosteron) समाहित होते हैं, जिसमें एल्डोस्टेरॉन (aldosterone) प्रमुख हॉर्मोन है। मिनरेलोकॉर्टिकॉयड एड्रीनल कॉर्टेक्स के बाह्य क्षेत्र की कोशिका द्वारा उत्पन्न होने वाले स्टेरॉइड हॉर्मोनों का Single समूह (group) है, जो खनिजों (minerals) की सान्द्रता (density) को नियन्त्रित करता है।

      एल्डोस्टेरॉन (aldosterone) शरीर में सोडियम (Na) और पोटेशियम (K) के सन्तुलन को बनाये रखने में सहायता करता है। यह वृक्कीय नलिकाओं (kidney tubule) द्वारा रक्त में सोडियम के पुन: अवशोषण में वृद्धि करता है जिससे मूत्र में सोडियम का उत्सर्जन कम होने लगता है। और पोटैशियम का उत्सर्जन बढ़ जाता है। यह श्वेद ग्रन्थियों (sweat glands) पर भी क्रिया करता है, जिससे शरीर द्रव्यों (body fluid) में इलेक्ट्रोलाइट्स (electrolytes) का संतुलन सामान्य बना रहे।

      एल्डोस्टेरॉन की अधिकता से (अधिक स्राव होने पर) उच्च रक्तचाप (high blood pressure) हो जाता है। और रक्त में पोटैशियम की कमी (हाइपोथेलीमिया) हो जाती है, जिससे शरीर में झुनझुनी, सुर्इ सी चुभन, कमजोरी, चक्कर आना आदि अपसंवेदनायें उत्पन्न हो जाती हैं।

      ग्लूकोकॉर्टिकॉयड 

      यह एड्रीनल कॉर्टेक्स के मध्य क्षेत्र से स्रावित होने वाला हॉर्मोन है। यह रक्त शर्करा (blood glucose) की सान्द्रता को नियन्त्रित करने में सहायता करता है। यह दो तरह केहोते हैं –

      1. कॉर्टिसोल या हाइड्रोकॉर्टिसोन (cortisol or hydrocortisone) 
      2. कॉर्टिकोस्टेरॉन (corticosterone) 

      ग्लूकोज़ सान्द्रता का नियमन करने के अलावा यह ग्लूकोकॉर्टिकॉयड All तरह के भोज्य पदार्थों जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन And वसा आदि के उपापचय (metabolism) को प्रभावित करते हैं। यह एण्टीइन्फ्लेमेट्री एजेण्ट (anti-inflammatory agent) की तरह भी कार्य करते हैं। ये वृद्धि को भी काफी हद तक प्रभावित करते हैं। ये शारीरिक अथवा मानसिक तनाव (stress) के प्रभावों को कम करने में सहायक होते हैं। यह यकृत द्वारा संग्रहीत प्रोटीन को ग्लूकोजन में परिवर्तित करता है, जिसे ग्लूकोनियोजेनेसिस की प्रक्रिया कहा जाता है और यह कोशिकाओं द्वारा ग्लूकोज के उपयोग को भी कम करता है, जिसके परिणामस्वReseller शरीर में रक्त शर्करा (blood sugar) का स्तर बढ़ जाता है। परन्तु यह अग्नाशय (pancreas) द्वारा स्रावित पदेनसपद से प्राय: सन्तुलित हो जाता है।

      ग्लूकोकॉर्टिकॉयड के अधिक मात्रा में स्रावित होने के कारण ‘कुसिंग्स रोग’ (Cushing’s syndrome) होता है। जो प्राय: कॉर्टेक्स में ट्यूमर का कारण बनता है। ‘कुसिंग रोग’ में हाथ-पैर सामान्य रहते हैं, परन्तु चेहरा, वक्षस्थल And उदर क्षेत्र की चर्बी बढ़ जाती है। उदर पर धारियाँ बन जाती हैं। मधुमेह होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है। त्वचाका रंग बदल जाता है। रक्तचाप बढ़ जाता है। कमर दर्द रहने लगता है। पुरुषों में नपुंसकता तथा स्त्रियों में मासिक धर्म बन्द हो जाता है।

      गोनेडोकॉर्टिकॉयड्स 

      यह सेक्स हॉर्मोन (sex hormone) भी कहलाता है। यह एड्रीनल कॉर्टेक्स के आन्तरिक क्षेत्र से स्रावित होने वाला हॉर्मोन है। इनका नियमन एडिनोकॉर्टिकोट्रॉपिक हॉर्मोन द्वारा होता है। सेक्स अंगों पर इसका प्रभाव बहुत कम मात्रा में होता है। इसके अन्तर्गत एण्ड्रोजन (Androgen), र्इस्ट्रोजन (Oestrogen) तथा प्रोजेस्टेरोन (Progesterone), इन तीन लिंग हॉर्मोन्स का समावेश होता है, जिनका सम्बन्ध जनन तथा लैंगिक विकास से होता है। इनका प्रभाव वृषण (testis) And डिम्बाशय (ovum) द्वारा स्रावित हॉर्मोन के समान ही होता है। ये पुरुष And स्त्रियों के प्रजनन अंगों के कार्य को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा उनकी शारीरिक And स्वभावगत विशेषताओं को भी प्रभावित करते हैं।

      इस हॉर्मोन के अतिस्रावण से बच्चों में समय पूर्व लैंगिक परिपक्वता (sexual maturity) है और स्त्रियों में द्वितीयक पुरुष लिंग विशिष्टतायें, जैसे आवाज में भारीपन, स्तनों के आकार में कमी, दाढ़ी-मूंछ का आना आदि लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।

      इसकी अल्पसक्रियता से ‘एडीसन’ रोग (Addison’s disease) उत्पन्न हो जाता है। इस रोग में कमजोरी And अति थकावट महसूस होती है, त्वचा का रंग ताँबे जैसा हो जाता है। रक्ताल्पता (anaemia), रक्त में पोटेशियम (K) स्तर बढ़ जाता है तथा सोडियम का स्तर घट जाता है। रक्तचाप कम हो जाता है, रक्त शर्करा (blood sugar) का स्तर कम हो जाता है। इस रोग का नियन्त्रण कॉर्टिसोन And एल्डोस्टीरॉन की नियमित मात्रायें देकर Reseller जा सकता है।

      एड्रीनल मेड्यूला की संCreation And कार्य – 

      यह एड्रीनल ग्रन्थि का आन्तरिक भाग होता है और पूरी तरह से कॉर्टेक्स से ढँका रहता है। इससे कैटेकॉलेमाइन्स (Catecholemines) Meansात एड्रीनलीन (Adrenaline) या इपीनेफ्रीन (epinephrine) तथा नॉरएड्रीनलिन (Noradrinalin) या नॉरएपीनेफ्रीन (Norepinephrine) नामक दो हॉर्मोन का स्रावण होता है।

      नॉरएपीनेफ्रीन एपीनेफ्रीन की अपेक्षा कम प्रभावी होता है और यह बहुत कम मात्रा में उत्पन्न होता है। इस हॉर्मोन का प्रभाव सिम्पेथेटिक तंत्रिका तंत्र के समान ही होता है, जैसे श्लेषमा का स्रावण कम होना, पाचक द्रव्यों का स्रावण कम होना, हृदय गति तीव्र होना, श्वास नली का फैल जाना, लार का गाढ़ा व चिपचिपा हो जाना, रक्त वाहिकाओं का संकुचन हो जाना, पसीना बढ़ जाना आदि। यह हॉर्मोन किसी उद्दीपन से तुरन्त प्रतिक्रिया करते हैं और कुछ स्थितयों में जिसमें ‘लड़ो या भागो प्रतिक्रिया’ के लिये शरीर को तैयार करती है।

      एड्रीनल / अधिवृक्क ग्रंथि

      एड्रीनेलिन (adrenaline) या इपीनेफ्रीन (epinephrine) के कार्य 

      1. हृदय की रक्त वाहिनियों (coronary vessels) को विस्फारित करना। 
      2. हृदय की धड़कन की दर And शक्ति को बढ़ाना। 
      3. हृदय से कॉर्डिSingle आउटपुट (Cardiac output) बढ़ाना। 
      4. कंकालीय पेशियों (skeletal muscles) की रक्तापूर्ति करने वाली धमनियों (arterials) को विस्फारित करना And उनमें होने वाली थकान की दर को कम करना। 
      5. श्वास नलिकाओं को विस्फारित करना व श्वास दर (respiratory rate) को बढ़ाना। 
      6. पाचन संस्थान की चिकनी पेशियों (smooth muscles) के संकुचन को रोक कर शिथिलता उत्पन्न करना। 
      7. चयापचयी दर (metabolic rate) को बढ़ाना। 
      8. यकृत (liner) And पेशियों (muscles) में स्थित ग्लार्इकोजन (glycogen) को ग्लूकोज़ (glucose) में बदलकर रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ाना व पेशियों में लैक्टिक एसिड (lactic acid) के स्तर को बढ़ाना। नॉरएड्रीनेलिन (noradrenaline) या नॉरएपीनेफ्रीन (norepinephrine) के कार्य 
      9. परिसरीय वादिका संकुचन कर के रक्तचाप (blood pressure) बढ़ाना।
      10. लिपिड चयापचय को बढ़ाना।
      11. वसा ऊतक (adipose tissue) से उन्मुक्त वासीय अम्लों (free fatty acids) को स्वतंत्र करना है।

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