स्व-अधिगम सामग्री क्या है ?

स्व-अधिगम साग्रमी दूरस्थ शिक्षा की मूलाधार है। इसे स्व-अनुदेशनात्मक, स्व-अध्ययन सामग्री And स्व-शिक्षण सामग्री के Reseller में पुकारा जाता है। All नामों के मूल में Single ही तथ्य है अपने आप पढ़ने-सीखने वाली सामग्री Meansात् ऐसी पाठ्यवस्तु सामग्री जिसे अध्येता स्वतंत्रत Reseller से अध्ययन करके अपनी गति अपनी रूचि से सीखता है, और स्वयं अपना शिक्षण करता है। यह विशेष Reseller से अभिकल्पित मुद्रित पाठ्यवस्तु दूर शिक्षा में Single लोकप्रिय कार्यनीति है। मुद्रित पाठ्यों को स्वशिक्षण सामग्री के अभिकल्पन के सिद्धान्तों के आधार पर विकसित Reseller जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य उन विद्यार्थियों को सहायता करना होता है जो अपनी परिस्थितियों में स्वंत्रत Reseller से सीखते हैं। दूरस्थ शिक्षा माध्यम में यह शिक्षण सामग्री के Reseller में हैं, इसका उत्पादन व्यापक स्तर पर होता है। प्रभावी स्व-अधिगम सामग्री अध्येताओं में अधिगम के प्रति रूचि जागृत करती है, और बनाये रखती है। किसी लेख तथा पुस्तक के विपरीत स्व-अधिगम सामग्री का उद्देश्य विवेकपूर्ण प्रस्तुतीकरण नहीं होता। इस प्रकार स्व-अधिगम सामग्री पहचाने गये लक्ष्य वर्गों को ज्ञानात्मक अभिवृत्तियों और कौशलों के अर्जन के योग्य बनाने के प्रयोजन से विशेष Reseller से अभिकल्पित की जाती है। दूर शिक्षा के अध्येता अधिकत दूर से ही सीखते हैं, वे अपने घर अथवा कार्यस्थल से अध्यापक And अपने सहपाठियों से बराबर अन्योन्यक्रिया नहीं कर पाते है। अत: दूर शिक्षा में स्व-अधिगम सामग्री में अध्यापक अप्रत्यक्ष Reseller से शिक्षण करता है और अध्येता के साथ अप्रत्यक्ष वार्तालाप करते हुये अधिगम की परिस्थितियां उत्पन्न करता है। दूरस्थ अध्ययन में स्व-अधिगम सामग्री को प्रदान करने के निम्न उद्देश्यों को हम Historyित कर सकते हैं।

  1. दूर अध्येताओं को पाठ्यक्रम विशेष की जिसमें वे नामांकित है, उसकी Resellerरेखा बताना ।
  2. दूर अध्येताओं को आवश्यक पाठ्यक्रम के स्वReseller से परिचित कराते हुये अस्थिागम हेतु रूचि जागृत करना। 
  3. दूर अध्येताओं को पाठ्यवस्तु के आकार से परिचित कराना। 
  4. दूर अध्येताओं की पाठ्यक्रम विशेष में आवश्यक पाठ्यवस्तु Singleत्र करने हेतु मार्गदर्शन प्रदान करना। 
  5. पूर्व अध्ययन कर परामर्ण कक्षाओं में अपनी समस्याओं को समाधान हेतु उठाने में दूर अध्येयताओं को अधार प्रदान करना।
  6. अप्रत्यक्ष Reseller से शिक्षक And शिक्षार्थी की अन्त:क्रिया को प्रत्यक्ष करने का प्रयास करना।
  7. अध्येता को, स्व-अध्ययन हेतु अभिप्रेरित करना और ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न करना जिसमें वह अपनी गति से सीख सके।
  8. दूर-अध्येताओं को अध्ययन केन्द्रों से जोड़ना Meansात् समस्याओं को सुलझाने व परामर्श कक्षाओं में उपस्थिति का आधार स्व-अधिगम सामग्री बनती है। 
  9. दूर अध्येताओं को दत्त कार्य And प्रोजेक्ट तथा अन्य व्यावहारिक क्रियाकलापों हेतु आधार प्रदान करना। 
  10. स्व अध्ययन हेतु आवश्यक दिशा निर्देश व अभिप्रेरण प्रदान करना। 
  11. दूर अध्येताओं में पाठ्यक्रम विशेष से सम्बंधित अन्तर्दृष्टि And अवबोध उत्पन्न करना। 

स्व-अधिगम सामग्री का स्वReseller 

स्व-अधिगम सामग्री को प्रदान किये जाने हेतु निर्धारित उद्देश्यों के विषय में आप विस्तार से पढ़ चुके है, अब यह आवश्यक है कि स्व-अधिगम सामग्री का स्वReseller And प्रकृति की Discussion की जाये। इसका स्वReseller And विशेषतायें निम्न है-

  1. स्वत: अधिगम सामग्री का आधार सम्प्रेषण सिद्धान्त-सम्पूर्ण विश्व में दूरस्थ And मुक्त शिक्षा प्रणाली Single नवीन सामाजिक, राजनैतिक चेतना के परिणाम स्वReseller Reseller गया है। यह स्वतंत्र प्रेस And सामाजिक दायित्व के सिद्धान्त प्रयोग द्वारा इन उद्देश्यों को पूर्ण करने वाली Single सशक्त प्रणाली सिद्ध हो सकती है। अधिगम सामग्री में कुशल सम्प्रेषण प्रक्रिया का प्रयोग करते हुये सूचनाओं की प्रासंगिकता उपयुक्त चयन, सम्प्रेषण हेतु उपयुक्त संकेतों का निर्माण And उनकी Meansापन क्षमता तथा संग्राहक से प्राप्त पृष्ठ पोषण को ध्यान में रखा जाता है। 
  2. स्व-अधिगम सामग्री के निर्माण का आधार अधिगम के सिद्धान्त-दूरस्थ शिक्षा में शिक्षक-शिक्षार्थी के मध्य अन्त: क्रिया मुद्रित पाठ्य सामग्री And इलेक्ट्रानिक उपकरणों के माध्यम से सम्पन्न होता है। इसमे थार्नाडाइक द्वारा प्रतिपादित प्रभाव का नियम, तत्परता का नियम And अभ्यास के नियम सम्मिलित है। अधिगम के व्यवहारवादी दृष्टिकोण का प्रयोग कर तीन चीजों पर ध्यान देने का प्रयास Reseller जाता है। 
    1. परिणाम का ज्ञान अथवा पुष्टि तथा सकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग। 
    2. पुनर्बल प्रदान करने में कम से कम विलम्ब। 
    3. जटिल व्यवहारों की व्याख्या हेतु छोटे-छोटे घटक/उपघटक के Reseller में अधिगम विभाजन। व्यवहारवादी उपागम के पुनर्बलन सिद्धान्त पर आधारित स्व-अधिगम सामग्री के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। स्किनर के According पुनर्बलन अधिगम को आगे बढ़ाने में सहायक होता है। 
  3. वास्तविक कक्षा शिक्षण हेतु परिस्थितियों का निर्माण- सम्पूर्ण स्व-अधिगम सामग्री इस Reseller में प्रस्तुत की जाती है जैसे कि वास्तविक कक्षा शिक्षण में परिस्थितियां उत्पन्न होती हे। वास्तविक कक्षा शिक्षण में अध्यापक And अध्येता के मध्य की सम्पूर्ण प्रतिक्रियायें अप्रत्यक्ष Reseller से उत्पन्न की जाती है। All इकाइयां अपने आप में परिपूर्ण होती है। प्रस्तावना के साथ प्रारम्भ कर अध्येता को सीखने के लिये प्रेरित कर वास्तविक विषय वस्तु का प्रारम्भ अवधारणा या संकल्पना से की जाती है। विषय को छोटे खण्डो में प्रस्तुत कर बोध प्रश्नों को रखकर प्राप्त ज्ञान को मापा जाता है, और फिर अध्येता को आगे बढ़ने हेतु अभिप्रेरित Reseller जाता है। सम्पूर्ण विषय सामग्री में अध्यापक अप्रत्यक्ष Reseller से अध्येता से अन्त:क्रिया करता रहता है 

1. रोचक And लचीला 

स्व-अधिगम सामग्री को रोचक And अध्येता की मनोवैज्ञानिक Need के According संग्रहित And रचित होती है। स्व-अधिगम सामग्री में All तथ्यों को व्यवस्थित करके रखते हुये सम्पूर्ण विषय वस्तु को सरलतम तरीके से रखा जाता है। इस बात पर विशेष ध्यान रखा जाता है, कि विषय सामग्री को सरल से कठिन की ओर प्रत्यक्ष से अप्रत्यक्ष की ओर And ज्ञात से अज्ञात की ओर प्रस्तुत Reseller जाता है। अध्येता को पारिभाषिक Wordावली, अनुभाग शीर्षक And उनके उपशीर्षक, रेखाचित्र, उदाहरण And व्याख्या कर विषय वस्तु को ग्रहण करने में सहायक होते है।

2. व्यावहारिकता 

स्व-अधिगम सामग्री का स्वReseller व्यावहारिक होता है क्योंकि इसमें उसके लिये बोध प्रश्न And अभ्यास कार्य दिये जाते हैं, सम्पूर्ण विषय वस्तु अब तक Added रहता है। स्व-अधिगम सामग्री में नवीन And आवश्यक तथ्यों को विषय सामग्री में जोड़ा जाता है, जिससे कि अध्येता हेतु वह उपयोगी हो और वह निर्धारित स्तर तक अधिगम कर सके।

दूरस्थ शिक्षा हेतु स्व-अधिगम सामग्री विकास के आवश्यक तत्व 

शिक्षा Single सोद्देश्य प्रक्रिया है तथा पाठ्यक्रम इन उद्देश्यों की पूर्ति का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। दूरस्थ शिक्षा में भी उद्देश्यों की प्राप्ति का प्रमुख साधन/आधार पाठ्यक्रम ही होता है। दूरस्थ शिक्षा में पाठ्यक्रम का Means अधिक व्यापक होता है तथा इसके अन्तर्गत शिक्षण अधिगम के साथ-साथ अध्ययन के अन्य All तत्वों को भी सम्मिलित Reseller जाता है। दूरस्थ शिक्षा में स्व-अधिगम सामग्री का प्राResellerण Single जटिल And लम्बी प्रक्रिया हे। अत: पाठ्यक्रम विकास ने परम्परागत शिक्षा के All प्रमुख बिन्दुओं को समाहित करने के साथ दूरस्थ शिक्षा की आवश्यकतओं And लक्ष्यों को भी ध्यान में रखना होता है। इसी प्रकार दूस्थ शिक्षा के पाठ्यक्रम में अग्रलिखित तत्वों को सम्मिलित Reseller जाता है-

1. अधिगम के उद्देश्य का प्रस्तुतीकरण And व्याख्या 

पाठ्यवस्तु में व्यापकता के कारण तीनों पक्षों को समाहित करने का प्रयास Reseller जाता है। इसमें अधिगम के उद्देश्यों का प्रस्तुतीकरण करते हुये व्याख्या करने का प्रयास Reseller जाता है।

2. अध्ययन सामग्री के माध्यम से संवाद 

परम्परागत शिक्षा में वास्तविक कक्षा शिक्षण के दौरान अध्यापक And अध्येता के मध्य सक्रिय सम्प्रेषण हो जाता है, जबकि दूरस्थ शिक्षा में संवादशीलता भी स्व-अधिगम सामग्री के माध्यम से ही स्थापित की जाती है। इसके लिये पाठ्य सामग्री में अन्त: क्रियात्मकता की प्रवृत्ति And लय से युक्त होती है। अथार्त् सामग्री प्रस्तुतीकरण में वार्तालाप शैली का पुट होना चाहिये। पाठ्यलेखक को प्रश्नों And क्रियाओं को समाविष्ट करना होता है। इसके अतिरिक्त गृहकार्य पर शिक्षण टिप्पणियां श्रव्य-दृश्य माध्यमों से शिक्षक की आवाज And प्रदर्शन भी अध्यापक-अध्येता की अन्त: क्रिया को सम्भव बनाते हैं।

3. व्यक्तिगत Addedव को महत्व 

सम्पूर्ण स्व-अधिगम सामग्री तुम या आपके द्वारा अध्येता को सम्बोधित किये जाते हैं, इससे अध्येता अध्यापक से Addedव का अनुभव करता है, और इसे वह अपना महत्व भी समझाता है। इससे अध्येता का व्यक्तिगत विकास होता है। प्रत्यक्ष अन्त: क्रिया हेतु प्रावधान दूरस्थ शिक्षा में भी Single निश्चित अवधि अथवा सुविधाजनक समय पर आमने-सामने की अन्त:क्रिया हेतु अध्यापक And अध्येता को अवसर दिया जाता है। विज्ञान And अन्य प्रयोगात्मक विषय इसके अतिरिक्त व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में भी सम्पर्क कार्यक्रमों के आयोजन में प्रत्यक्ष सम्पर्क पर अत्यधिक बल दिया जाता है।

4. अध्ययन कौशलों के विकास पर केन्द्र बिन्दु 

दूरस्थ शिक्षा में पाठ्यक्रम पूर्णतया स्व-अध्ययन पर आधारित होता है, अत: अध्येताओं को इसके लिये तैयार करने का कार्य भी अनुदेशनात्मक सामग्री के माध्यम से करना पड़ता है, और स्व-अध्ययन के विविध कौशलों की उत्पत्ति And विकास हेतु आवश्यक संकेत And निर्देशन दिये जाने की Need होती है, और पाठ्यक्रम प्राResellerण में इसका ध्यान रखा जाता है।

5. अध्येता की प्रकृति And Need 

दूरस्थ शिक्षा अध्येता उन्मुक्त होती है अत: पाठ्यक्रम निर्धारण में भी अध्येता की प्रकृति And Need को केन्द्र बिन्दु बनाकर Reseller जाता है, उसकी आयु योग्यता, अनुभव And आकांक्षा स्तर में पर्याप्त भिन्नता हो सकती है। इसके अतिरिक्त दूर अध्येता विभिन्न क्षेत्रों व विविध शिक्षण संस्थाओं के पूर्व विद्यार्थी हेाते हैं, और उनके अधिगम की आदतों के अतिरिक्त प्रकृति And उपलब्धि में भी प्र्याप्त अन्तर होता है, इस हेतु दूरस्थ शिक्षा व्यवस्था में लगातार शोध निष्कार्णों का सहारा लिया जाता है।

6. राष्ट्रीय And सामाजिक लक्ष्यों का समाहित Reseller जाना 

All स्तर की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य, व्यक्तिगत And सामाजिक विकास होता है और शिक्षा के द्वारा समाज व्यक्ति व राष्ट्र की उन्नति की संकल्पना को पूरा करना है। ठीक इसी प्रकार से मुक्त And दूरस्थ शिक्षा में भी पाठ्यक्रम विकास में इन तथ्यों को समाहित Reseller जाता है, और इस Reseller में तैयार Reseller जाता है कि वह समाजोपयोगी And राष्ट्रोपयोगी Human संसाधन तैयार करें।

स्व-अधिगम सामग्री की Need 

दूरस्थ शिक्षा व्यवस्था का मुख्य स्वReseller दूर अध्येता का दूर शिक्षा संस्थान से दूरी है। इससे अध्येता पाठ्यक्रम के स्वReseller से लेकर शिक्षण तक निराश्रित रहता है। उसे न तो अध्यापक का निर्देशन प्राप्त होता है न ही सहपाठियों का मार्गदर्शन। इसीलिये स्व-अधिगम सामग्री इस कमी को ध्यान में रखकर ऐसे संकल्पित की जाती है, कि वह स्वयं में पूर्ण पर्याप्त, शैक्षणिक, स्पष्ट, निर्देशित, आंकलन करने योग्य तथा सहपाठी की भांति होती है। दूर अध्येता को सहारा देने के साथ अधिगम व अध्ययन हेतु मार्गदर्शन देती है। इसके साथ ही दूर अध्येता के अधिगम को सुलभ बना देती है, और बाह्य सहायता को कम कर देती है।

स्व-अधिगम सामग्री दूर अध्येता को पाठ्यक्रम विशेष में क्या और कितना पढ़ना है, और कहां तक जानना आवश्यक है यह स्पष्ट करती है। यह दूर अध्येताओं के समक्ष अधिगम की परिस्थितयां उत्पन्न कर देती है, जिसमें विद्यार्थी सीखने के लिये विवश हो जाता है। इनका स्वReseller इस प्रकार से निर्मित Reseller जाता है कि वह ऐसा प्रतीत होता है कि अध्यापक को अप्रत्यक्ष Reseller से उपस्थित कर देता है, और अध्येता को ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि अप्रत्यक्ष Reseller से कोर्इ उनकी Needओं की पूर्ति कर रहा हो, उन्हें निर्देश दे रहा है। स्व-अधिगम सामग्री में अध्येता को अपनी गति से अधिगम की सुविधा के साथ-साथ अपने अधिगम के आंकलन की भी सुविधा दी जाती है, इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण शिक्षण सामग्री अध्यापक अध्येता की अप्रत्यक्ष वार्तालाप को प्रकट करती है। स्व-अधिगम सामग्री पूर्णतया अध्येता उन्मुख होती है, इसीलिये यह मनोविज्ञान के सिद्धान्तों पर अभिकल्पित Reseller जाता है।

1. स्व-अधिगम सामग्री का अभिकल्पन 

स्व-अधिगम सामग्री की अभिकल्पना करने तथा उसका विकास करने के लिये उसकी मुख्य विशेषताओं का बोध अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त स्व-अधिगम सामग्री के लेखकों And अभिकल्पकों की पूर्वापे्रक्षाओं का ज्ञान भी आवश्यक है। आइये हम इन पर नीचे Discussion करें।

2. स्व-अधिगम सामग्री की मुख्य विशेषतायें- 

स्व-अधिगम सामग्री के कुछ विशेष अभिलक्षण होते हैं। यद्यपि स्व-अधिगम सामग्री की ये विशेषतायें, उद्देश्यों, प्रयोजन और प्रस्तुतीकरण की शैली के आधार पर थोड़ा बहुत भिन्न हो सकती है, तथापि स्व-अधिगम सामग्री की कुछ स्थायी विशेषतायें हैं। आइये हम नीचे इन विशेषताओं पर विचार करें।

स्व-अधिगम सामग्री को यद्यपि यह नाम दिया जाता है, तथापि उनका ध्यान केन्द्र अध्यापन अथवा शिक्षण की अपेक्षा अधिगम पर अधिक होता है। ये अलग-अलग शिक्षार्थियों की Needओं पर आधारित है, न कि अध्यापक तथा मुक्त अधिगम संस्थाओं की रूचियों पर। ये विद्यार्थियों को अपने अधिगम पर यथासंभव अधिक से Meansिाक नियंत्रण प्रदान करती है। इसीलिये आजकल स्व-अधिगम सामग्री को स्व-अधिगम सामग्री कहा जाता है। स्व-अधिगम सामग्री के कुछ निश्चित अभिलक्षण हैं। इनमें से महत्वपूर्ण निम्नलिखित है-

3. स्व-व्याख्यात्मक- 

स्व-अधिगम सामग्री इस Means में स्व-व्याख्यात्मक होती है कि विद्यार्थी अधिगम सामग्री के द्वारा अध्ययन कर सकते हैं, और विषयवस्तु को बिना किसी प्रकार की अधिक बाह्य सहायता/समर्थन के आसानी से समझ सकते हैं। इसलिये, ये सामग्री विषयवस्तु, प्रस्तुतीकरण और भाषा की दृष्टि से किसी भी अस्पष्टता से मुक्त होनी चाहिये। विषयवस्तु तर्कसंगत Reseller से व्यवस्थित होनी चाहिये, और प्रस्तुतीकरण सरल और प्रभावी होना चाहिये। प्रत्येक वस्तु इस प्रकार स्पष्ट होनी चाहिये कि अध्येता को सीखने और ज्ञान की वृद्धि करने में सहायक हो।

4. स्व-पूर्ण 

स्व-अधिगम सामग्री स्वयं में पूर्ण अथवा स्वयं में पर्याप्त होनी चाहिये। विद्यार्थी के लिये पाठ्यक्रम उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अपेक्षित समस्त आवश्यक विषयवस्तु स्व-अधिगम सामग्री में सम्मिलित करनी चाहिये। विद्यार्थी को अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये अतिरिक्त अध्ययन सामग्री की Need नहीं होनी चाहिये, क्योंकि अतिरिक्त सामग्री प्राप्त करने में समस्यायें आती हैं। साथ ही स्व-अधिगम सामग्री अत्यधिक विषयवस्तु अथवा अधिगम कार्य से अतिभारित नहीं होनी चाहिये कि अध्येता उससे डर ही जाय।

5. स्व-निर्देशित- 

Single प्रभावी अध्यापक के महत्वपूर्ण प्रकायोर्ंं में से Single विद्यार्थियों को आवश्यक ज्ञान, कौशल तथा अभिवृत्तियों को स्वयं अर्जन के लिये विद्यार्थियों को निर्देश दे। इसी प्रकार शिक्षार्थियों को स्व-अधिगम प्िरक्रया की प्रत्येक अवस्था पर आवश्यक मार्गदर्शन, संकेत और सुझाव प्रदान करके स्व-अधिगम शिक्षा Single प्रभावी अध्यापक का कार्य सम्पादित करती है। विषयवस्तु को तर्कसंगत अनुक्रम में प्रस्तुत करके, विद्यार्थियों के स्तर के According अधिगम संकल्पनाओं की व्याख्या करके उचित स्व-अधिगम कार्यकलाप प्रदान करके और विषयवस्तु को समझने में सरल बनाने के लिये चित्रोदाहरण प्रस्तुत करके अधिगम को दिशा दी जाती है।

6. स्व-अभिप्रेरक 

अभिप्रेरण प्रभावी अधिगम की पूर्व Need है। स्व-अधिगम सामग्री मेंं विद्यार्थियों में रूचि और अभिप्रेरणा उत्पन्न करने और बनाये रखने की क्षमता होनी चाहिये। विषयवस्तु को जिज्ञाSeven्मक होना चाहिये, समस्यायें उठानी चाहिये और ज्ञान का सम्बंध विद्यार्थियों की परिचित परिस्थितियों से स्थापित करना चाहिये ताकि विद्यार्थी अभिप्रेरित अनुभव करे और उनका ज्ञान दश्ढ़ हो जाये। इस प्रकार का अभिप्रेरण और प्रबलीकरण अधिगम की प्रत्येक अवस्था पर देना चाहिये।

7. स्व-अधिगम 

स्व-अधिगम सामग्री कार्यक्रमबद्ध शिक्षण के सिद्धान्तों पर आधारित होती है। कार्यक्रम शिक्षण के अभिलक्षण जैसे कि उद्देश्यों का विनिर्देशन, विषयवस्तु को छोटे (परन्तु प्रबंधनीय) चरणों में बांटना, अधिगम अनुभवों का अनुक्रमण करना, प्रतिपुष्टि प्रदान करना आदि को स्व-अधिगम सामग्री में सम्मिलित Reseller जाता है। इस प्रकार स्व-अम्मिागम सामग्री की ये विशेषतायें विद्यार्थियों को स्वंतत्र Reseller से सिखाती है। विद्यार्थी अपनी स्वयं की अधिगम कार्यनीतियों को बना लेते हैं, और अपने आप ही सीखते हैं।

8. स्व-मूल्यांकन 

स्व-अधिगम सामग्री विद्यार्थियों को इष्टतम अधिगम को सुनिश्चित करने के लिये, उचित प्रतिपुष्टि प्रदान करते हैं। वे विद्यार्थियों को यह भी जानकारी देते हैं कि क्या वे ठीक दिशा में प्रगति कर रहे हैं अथवा नहीं। स्व-जॉच अभ्यास, मूल पाठ में प्रश्न, कार्यकलाप और अभ्यास के Second प्रकार अध्येताओं को उनकी प्रगति के विषय में बहुअपेक्षित प्रतिपुष्टि देते हैं। यहां यह कहने की Need नहीं है कि प्रगति से सम्बंधित प्रतिपुष्टि विद्यार्थियों को Single अधिगम बिन्दु से Second अधिगम बिन्दु तक सीखने और आगे बढ़ने के लिये प्रबलित और अभिप्रेरित करता है। Second Wordों में, परिणाम का ज्ञान अध्येताओं को आगे सीखने के लिये सकारात्मक प्रबलन प्रदान करता है। उपर्युक्त विशेषताओं के साथ स्व-अधिगम सामग्री के विकास के लिये इस बात की भी Need है कि विणिण्ट ज्ञान, कौणलो और सक्षमताओं वाले लोगों को सम्मिलित Reseller जाये। इसका यह तात्पर्य है कि दूरस्थ शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि उनमें प्रभावी स्व-अधिगम सामग्री के विकास के लिये कुछ निश्चित विशेषताएं हों।

9. पाठ्यक्रम लेखकों अपेक्षाएॅ 

दूरस्थ अध्येताओं के लिये अधिगम सामग्री का विकास करने के काम में लगे हुये अध्यापकों में विशिष्ट ज्ञान, कौशलों और सक्षमताओं की अपेक्षा की जाती है। दूरस्थ शिक्षा अध्येताओं के लिये स्व-अधिगम सामग्री तैयार करने वाले पाठ्यक्रम लेखकों में निम्नांकित मुख्य पूर्वापेक्षाये होनी चाहिये।

10. प्रणाली की सुविज्ञता 

पाठ्यक्रम लेखकों को सम्बंधित दूर शिक्षा संस्था की शिक्षण प्रणाली से पूरी तरह परिचित होना चाहिये। उन्हें पद्धति के विद्यार्थियों की Resellerरेखा और अनुसरण किये जा रहे माध्यम उपागम से भी परिचित होना चाहिये।

11. लक्ष्य वर्ग की सुविज्ञता 

दूर शिक्षा पद्धति में विद्यार्थी विभिन्न पृष्ठभूमियों, शैक्षिक योग्यताओं, अनुभव, सामाजिक आर्थिक स्तरों और आयु आदि से आते हैं। वे दूर शिक्षा पाठ्यक्रम में विभिन्न भाषात्मक योग्यताओं, सीखने की सामथ्र्य, अध्ययन आदतों, पूर्व आवश्यक ज्ञान ग्राम-शहरों आदि से आकर भाग लेते हैं। अधिगम सामग्रियों के विकास में लगे पाठ्यक्रम लेखकों को दूर शिक्षा के माध्यम से शिक्षा लेने वाले विद्यार्थियों के विभिन्न वर्गों की Needओं, अपेक्षाओं और सीखने की आदतों से परिचित होना चाहिये। अधिगम सामग्री विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर के According तैयार करनी चाहिये। Meansपूर्ण, प्रभावी अधिगम सामग्री को विकसित करने के लिये पाठयक्रम लेखक को पाठ्य description का पूर्ण ज्ञान होना चाहिये। इसलिये यह दावा करने के लिये कि दूरस्थ शिक्षण सामग्री स्व-पूरित और स्व-अधिगम है तो पाठ्यक्रम लेखक को सबसे First अधिगम अनुभव/कार्यों की दृष्टि से पाठ्य description का पूरी तरह विश्लेषण करना चाहिये। अपने परस्पर संबंधों पर आधारित, अधिगम कार्यों को उचित क्रम से व्यवस्थित करना चाहिये। पाठ्यक्रम विशेष में विद्यार्थियों को उद्देश्यों को प्राप्त करने में सहायता देने की दृष्टि से लेखक केा उसकी विषयवस्तु की व्याप्ति का ज्ञान होना चाहिये।

12. अधिगम के सिद्धान्तों से परिचय 

कक्षा-आधारित अध्येताओं के विपरीत, दूर शिक्षा अध्येता अपने घरों तथा कार्यस्थलों पर स्वतंत्र Reseller से पढ़ते हैं। पाठ्यक्रम लेखक के लिये विविध अध्यापन कार्यनीतियों के प्रयोग की Need हेाती है, ताकि विद्यार्थी अपनी Needओं के According अधिगम रणनीति का चयन कर सके। पाठ्यक्रम लेखकों में अधिगम और संचार के सिद्धान्तों का पर्याप्त ज्ञान ऐसी स्व-शिक्षण सामग्री की सर्जनात्मक अभिकल्पना में उनकी सहायता करता है जो अलग-अलग विद्यार्थियों के अनुकूल होते हैं। स्व- अधिगम सामग्री का आधार अधिगम सिद्धान्तों और शिक्षण मापदण्डों की ठोस नींव पर होना चाहिये ताकि विद्यार्थियों में इष्टतम अधिगम सुनिश्चित हो सके। यहां इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि स्व-अधिगम सामग्री के लेखन/विकास के सिद्धान्त अध्यापन और अधिगम के सिद्धान्तों से उत्पन्न किये जाते हैं। इसलिये पाठ्यक्रम लेखकों को शिक्षण और अधिगम सिद्धान्तों की सम्यक जानकारी होनी चाहिये। इसके अतिरिक्त दूर अध्येयताओं के लिये स्व-अधिगम सामग्री विकसित करने के कार्य में लगे हुये व्यक्तियों में प्रभावी संचार के पूर्णज्ञान का होना भी Single पूर्वापेक्षा है। विषयवस्तु, व्याख्या, भाषा, प्रस्तुतीकरण आदि की स्पष्टता प्रभावी संचार और विद्यार्थियों द्वारा Meansपूर्ण अधिगम का सुनिश्चित करने में बहुत सहायक होगी। यह कहने की जरूरत नहीं है कि दूर शिक्षा, या यों कहिये कि किसी प्रकार का अध्यापन परस्पर Agree उद्देश्यों (प्रेषक और प्रापक द्वारा) सूचना, अनुभव, विचारों आदि के आदान-प्रदान की Single प्रक्रिया है। अनुभव और विचारों का बॉटना, सूचना और संदेशों के प्रेषक और प्राप्तकर्ता के मध्य प्रभावी संचार पर निर्भर करता है। विशेषकर संचार तब प्रभावी होता है, जब वह उस भाषा में होता है जिसको प्राप्तकर्ता पूरी तरह से समझता है जिससे प्राप्तकर्ता की Need की पूर्ति होती है।

स्व-अधिगम सामग्री के निर्माण की प्रक्रिया 

स्व-अधिगम सामग्री की निर्माण करना उसकी Resellerरेखा तैयार करने की तरह है जो कुल मिलाकर दूर शिक्षा संस्था के पाठ्यक्रम/कार्यक्रम की अभिकल्पना बनाती है।

1. अधिगम And सम्प्रेषण सिद्धान्तों का पाठ्यक्रम निर्माण में प्रयोग 

दूर शिक्षक को भी लगभग वे All क्रियायें (प्रत्यक्ष And अप्रत्यक्ष Reseller में) सम्पन्न करनी होती है। जिन्हें Single औपचारिक And परम्परागत प्रशिक्षित कक्षा-शिक्षक करता है। किन्तु देानों में प्रमुख अन्तर यह है कि परम्परागत शिक्षक जिन क्रियाओं को पाठ्य-वस्तु के माध्यम से प्रत्यक्ष Reseller में छात्रों के सम्मुख करता है, दूर शिक्षक को वहीं क्रियायें दूर शिक्षार्थी को भेजी जानी वाली स्वि-अधिगम सामग्री के अन्दर अप्रत्यक्ष Reseller में करनी होती है। Second Wordों में दूर शिक्षक को पाठयक्रम के प्राResellerण And निर्माण में ही Single प्रशिक्षित शिक्षक की भूमिका निभानी होती है। इसके साथ ही दूर शिक्षक को पाठ्यक्रम प्राResellerण में इसका भी विशेष ध्यान रखना होता है कि पाठ्य-सामग्री का सफलतापूर्वक सम्पे्रषण भी सम्भव हो सके। अधिगम सिद्धान्त And सम्प्रेषण सिद्धान्त दूर शिक्षक को इनक कार्यों को सम्पन्न करने में दिशा निर्देश प्रदान करते हैं। स्वत: अनुदेशनात्मक सामग्री का प्राReseller तैयार करने में दूर शिक्षक को क्रियायें करनी होती है-

  1. पाठ्य सामग्री का प्रस्तुतीकरण।
  2. उद्देश्यों की पहचान करना। 
  3. शिक्षार्थियों को अभिप्रेरित करना। 
  4. शिक्षार्थियों के अनुभवों का अधिकतम उपयोग करना।
  5. अधिगम क्रियाओं हेतु परिस्थितियां प्रदान करना।
  6. धारण शक्ति में वृद्धि हेतु प्रावधान करना। 
  7. अधिगम-स्थानान्तरण को प्रोत्साहित करना। 
  8. पृष्ठपोषण हेतु अवसर प्रदान करना। 
  9. निर्देशन प्रदान करना। 

2. पाठ्य सामग्री का प्रस्तुतीकरण 

स्वत: अधिगम सामग्री का प्रस्तुतीकरण पाठ्यक्रम के स्वReseller पर निर्भर करता है। चूॅूकि दूर शिक्षा के पाठ्यक्रमों हेतु पूर्व निर्धारित पाठ्य-पुस्तकें नहीं हेाती है तथा पाठ्य-सामग्री को शिक्षार्थी के स्वत: अधिगम को ध्यान में रखते हुये प्रस्तुत करना होता है। अत: सामग्री प्रस्तुतीकरण निम्नलिखित विशिष्टताओं से युक्त होना चाहिये- 

3. बौद्धिक स्पष्टता 

विषय-वस्तु का सही And स्पष्ट ज्ञान होन पर ही लेखक उसे तार्किक And क्रमबद्ध ढंग से से विश्लेषित And प्रस्तुत की गयी सामग्री ही स्वत: अधिगम को प्रोत्साहित करने में सक्षम होती है। 

4. भाषा की सरलता 

पाठ्य सामग्री में जटिल भाषा And Wordों को प्रयोग स्वत: अधिगम में बाधक होता है। अत: स्व अधिगम सामग्री सरल भाषा में प्रस्तुत की जानी चाहिये। इसके लिये सामान्य Wordों, छोटे And सरल वाक्यों, विचारों And सम्प्रत्ययों की स्पष्ट अभिव्यक्ति, व्यक्तिगत सम्बंधों को विकसित करने वाली शैली तथा यथासम्भव मनोरंजनात्मक प्रसंगों आदि का प्रयोग Reseller जाना चाहिये। 

5. सम्प्रत्ययों की मूर्तता 

शिक्षार्थियों के लिये अमूर्त सम्प्रत्ययों को मूर्त वस्तुओं के माध्यम से समझना सरल होता है। अत: कठिन सम्प्रत्ययों को चित्रों, रेखाचित्रों, शाब्दिक चित्रावली, उदाहरणों आदि के द्वारा स्पष्ट Reseller जाना चाहिये। 

6. उपयुक्त माध्यम 

यद्यपि शोध निष्कर्षों And अनुभवों से यही पता चलता है कि शिक्षार्थी All माध्यमों (मुद्रित, श्रव्य And दृश्य) से समान Reseller में सफलतापूर्वक सीखते हैं, अथवा सीख सकते हैं। इसके अतिरिक्त माध्यमों के चयन में लागत-दक्षता सिद्धान्त का अनुपालन भी आवश्यक होता है। 

7. उद्देश्यों की पहचान करना 

उद्देश्यों की स्पष्टता स्वत: अधिगम को प्रोत्साहित करने में बहुत अधिक सहायक होती है। अत: स्व अधिगम सामग्री के प्रारम्भ में ही उस पाठ इकार्इ के उद्देश्यों की सूची प्रस्तुत करनी आवश्यकत होती है। यदि ये उद्देश्य अलग-अलग क्षेत्रों (ज्ञानात्मक, भावात्मक And क्रियात्मक) से सम्बंध रखते हो। उन्हें अलग-अलग सूचियों में प्रस्तुत करना चाहिये। अधिकांश विषयों में उद्देश्यों को व्यावहारिक Reseller में लिखने की Need होती है क्येांकि इससे शिक्षार्थी को उन्हें समझने And प्राप्त करने में सरलता होती है। उद्देश्यों को व्यावहारिक Reseller में लिखने हेतु ब्लूम के प्रतिमान का अनुसरण दूर शिक्षक के लिये बहुत उपयोगी हो सकता है। 

8. शिक्षार्थी को अभिप्रेरित करना 

शिक्षक की ही भांति अधिगम सामग्री को अभिप्रेरित कर सकती है। अभिप्रेरणा का (स्तर उच्च, सामान्य, निम्न) सामग्री के बाह्य And आन्तरिक स्वReseller पर निर्भर करता है। सामग्री के बाह्य स्वReseller से तात्पर्य उसकी बाहरी साज-सज्जा से है जो शिक्षार्थी को First दृष्टि में आकर्षित करते है। उदाहरणाथ- अनुदेशनात्मक सामग्री जिस पुस्तिका के Reseller में प्रस्तुत की जाती है, उसका आचरण, कागज, छपार्इ, चित्र, रंग, आकार तथा कभी-कभी पैंकिंग तक भी शिक्षार्थी को उसके प्रति आकर्षित होने के बाध्य करते हैं। अत: ये सब बाह्य अभिप्रेरक के Reseller में कार्य करते हैं।

स्व अधिगम सामग्री का आन्तरिक स्वReseller Meansात् पस्तुत की गयी समिति की गुणवत्ता ही सही Meansों में शिक्षार्थी को अभिप्रेरित करती है। सामग्री के आन्तरिक स्वReseller को गुणवत्ता युक्त तभी कहा जा सकता है जब कि वह-’ 

  1. शिक्षार्थियों की Needओं को पूर्ण करने वाली हो।
  2. शिक्षार्थियों के अनुभवों के भरपूर प्रयोग से युक्त हो। 
  3. पर्याप्त पृष्ठपोषण प्रदान करने वाली हो। 
  4. स्ूचनाओं को व्यक्तिगत सम्बंध विकसित करने वाली शैली में प्रस्तुत Reseller गया हो। 
  5. मनोरंजनात्मक And रूचिकर अभ्यासों से युक्त हो। 
  6. अध्ययन इकाइयों को उपयुक्त आकार And लम्बार्इ में प्रस्तुत Reseller गया हो। 
  7. आवश्यक सम्पूर्ण पाठ्यवस्तु उसमें निहित हो।
  8. दूर अध्येता की विशेषताओं को धन में रखकर लिखी गयी हों।
  9. गश्हकार्यों को कठिनार्इ स्तर के क्रम में प्रस्तुत Reseller गया हो। 

उपर्युक्त गुणों से युक्त स्व अधिगम सामग्री सामग्री शिक्षार्थियों को उच्च स्तरीय अभिप्रेरणा प्रदान कर सकती है। शिक्षार्थी के अनुभवों का भरपूर उपयोग करना शिक्षार्थियेां को अभिप्रेरित करने का Single अच्छा तरीका उनके अनुभवों का अधिक से अधिक उपयोग करना भी है। स्वत: अनुदेशानात्मक सामग्री के निर्माण में भी इस विधि से लाभ उठाया जा सकता है। यह उपागम शिक्षार्थियेां को अभिप्रेरणा प्रदान करने के साथ-साथ पाठ लेखकों को इस Reseller में भी सहायता प्रदान करता है कि पाठ को शिक्षार्थियों के पूर्व ज्ञान से जोड़ते हुये प्रारम्भ Reseller जाये, तथा उसके आधार पर नवीन ज्ञान प्रस्तुत Reseller जाये। पाठ सामग्री की भाषा व्यक्तिगत सम्बंध विकसित करने वाली शैली में होने पर अधिकांश शिक्षार्थी इसे अपने पूर्व अनुभवों के आधार पर सरलता से ग्रहण कर लेते हैं, जबकि कठिन भाषा में वे पाठ्य-पुस्तक से विरक्त हो सकते हैं। अत: पाठ लेखक को शिक्षार्थी के अनुभवों से युक्त भाषा का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिये। 

पाठ इकार्इ के प्रारम्भ में दिये गये अध्ययन सम्बंधी कुछ आवश्यक निर्देश भी शिक्षार्थी के लिये बहुत लाभदायक होते हैं। इससे शिक्षार्थी प्रस्तुत की गयी नवीन सामग्री को अपने पूर्वज्ञान से सम्बंधित कर सकने में समर्थ हो जाता है। 

पाठ लेखक शिक्षार्थियों के अनुभवों को Needनुसार विभिन्न स्रोतों (History, भूगोल, जीवविज्ञान, समाजशास्त्र,Meansशास्त्र,वाणिज्य, दैनिक जीवन की क्रियाओ, साहित्य, लोक कथाओं, जन संचार आदि) से चयनित कर सकता है। शिक्षक के आसपास भी इस तरह के अनेक अनुभव होते हैं। 

9. अधिगम क्रियाओं हेतु परिस्थितियां प्रदान करना 

अधिगम की सबसे अच्छी विधि करके सीखना है। अत: स्व अधिगम सामग्री के अन्तर्गत भी इस तरह की परिस्थितियां प्रदान की जानी चाहिये, जिससे शिक्षार्थी को अधिक से अधिक अधिगम क्रियाओं को करने का अवसर मिल सके। इसके लिये कुछ प्रमुख अधिगम परिस्थितियां इस प्रकार की हो सकती है। 

अभ्यास कार्य – दूरस्थ शिक्षार्थी को स्वयं करने के लिये प्रत्यके उप इकार्इ के बाद अभ्यास कार्य दिये जाने चाहिये। यदि सम्भव हो तो पाठ के अन्त में उनके उत्तर या उत्तर संकेत अथवा संक्षिप्त उत्तर भी दिये जायें, जिससे शिक्षार्थी अपने उत्तरों की पुष्टि कर सके। इससे उसे पृष्ठपोषण मिलता रहता है। 

गृहकार्य – दूर शिक्षार्थी के लिये सबसे महत्वपूर्ण अधिगम क्रिया गृहकार्य को पूरा करना होता है। गश्हकार्य अभ्यास कार्य से भिन्न होता है। इनमें अपेक्षाकृत लम्बा उत्तर लिखना होता है। अत: गृहकार्य सम्बंधी प्रश्नों को ब्लाक (इकार्इ समूह) के अन्त में दिया जाना चाहिये। गृहकार्य से जहां Single तरफ शिक्षार्थी की निश्पत्ति का आंकलन हो पाता है, वहीं दूसरी ओर यह द्विमार्गी शैक्षणिक संवाद स्थापित करने में भी सहायक होता है। गृहकार्य हेतु विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को दिया जा सकता है। उदाहरणार्थ- दीर्घ उत्तरीय प्रश्न, वस्तुनिष्ठ प्रश्न, प्रोजेक्ट कार्य, इकार्इ के बारे में सकारात्मक सुझाव And समालोचना आदि। 

10. धारण शक्ति में वृद्धि करना 

शिक्षा का उद्देश्य मात्र नवीन ज्ञान को प्रदान करना ही नहीं बल्कि उसे शिक्षार्थी के मस्तिष्क में लम्बे समय तक धारण करवाना भी है, जिससे वह उसका अपने जीवन में सदुपयोग भी कर सके। धारण शक्ति में वृद्धि का सबसे अच्छा And प्रचलित तरीका सीखी गयी क्रियाओं को थोड़े-थोड़े अन्तराल पर दुहराते रहना है। स्वअधिगम सामग्री के अन्तर्गत भी सारांश प्रस्तुतीकरा, पुनर्बोधात्मक प्रश्नों तथा गृहकार्य प्रश्नों के माध्य से पाठ को कर्इ बार दुहराने के अवसर प्रदान किये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त अधिक से अधिक उदाहरणो, उपयुक्त व्याख्याओं And टिप्पणियों केा प्रस्तुत करके भी शिक्षार्थी को यह अवबोध बार-बार कराया जा सकता है। 

11. अधिगम स्थानान्तरण को प्रोत्साहित करना 

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया के अन्तर्गत नवीन सम्प्रत्ययों, कौशलों को सीखना तथा नवीन अभिवृत्तियों को विकसित करना ही पर्याप्त नहीं माना जाता है। अधिगम की पूर्णता तभी होती है, जब शिक्षार्थी उसे दूसरी परिस्थितियों में भी स्थानान्तरित And प्रयुक्त कर सके। इस प्रकार का उच्चस्तरीय अधिगम जटिल प्रयोगों And समस्या समाधान वाले अभ्यास कार्यों के माध्यम से प्रदान Reseller जा सकता है। 

12. पृष्ट पोषण प्रदान करना – 

शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने के लिये उसमें निरन्तर सुधार की Need होती है। अत: शिक्षक And शिक्षार्थी के मध्य द्विमार्गी पृष्टपोषण प्रक्रिया सम्पादित की जानी चाहिये।

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