स्थानीय स्वशासन का Means और पंचायतें

स्थानीय स्वशासन लोगों की अपनी स्वयं की शासन व्यवस्था का नाम है। Meansात् स्थानीय लोगों द्वारा मिलजुलकर स्थानीय समस्याओं के निदान And विकास हेतु बनार्इ गर्इ ऐसी व्यवस्था जो संविधान और राज्य सरकारों द्वारा बनाए गये नियमों And कानून के अनुReseller हो। Second Wordों में ‘स्वशासन’ गांव के समुचित प्रबन्धन में समुदाय की भागीदारी है। यदि हम History को पलट कर देखें तो प्राचीन काल में भी स्थानीय स्वशासन विद्यमान था। First कुटुम्ब से कुनबे बने और कुनबों से समूह। ये समूह ही बाद में ग्राम कहलाये। इन समूहों की व्यवस्था प्रबन्धन के लिये लोगों ने कुछ नियम, कायदे कानून बनाये। इन नियमों का पालन करना प्रत्येक व्यक्ति का धर्म माना जाता था। ये नियम समूह अथवा गांव में शांति व्यवस्था बनाये रखने, सहभागिता से कार्य करने व गांव में किसी प्रकार की समस्या होने पर उसके समाधान करने, तथा सामाजिक न्याय दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। गांव का संम्पूर्ण प्रबन्धन तथा व्यवस्था इन्हीं नियमों के According होती थी। इन्हें समूह के लोग स्वयं बनाते थे व उसका क्रियान्वयन भी वही लोग करते थे। कहने का तात्पर्य है कि स्थानीय स्वशासन में लोगों के पास वे सारे अधिकार हों जिससे वे विकास की प्रक्रिया को अपनी जरूरत और अपनी प्राथमिकता के आधार पर मनचाही दिशा दे सकें। वे स्वयं ही अपने लिये प्राथमिकता के आधार पर योजना बनायें और स्वयं ही उसका क्रियान्वयन भी करें। प्राकृतिक संसाधनों जैसे जल, जंगल और जमीन पर भी उन्हीं का नियन्त्रण हो ताकि उसके संवर्द्धन और संरक्षण की चिन्ता भी वे स्वयं ही करें। स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने के पीछे सदैव यही मूलधारणा रही है कि हमारे गांव, जो वर्षों से अपना शासन स्वयं चलाते रहे है। जिनकी अपनी Single न्याय व्यवस्था रही है, वे ही अपने विकास की दिशा तय करें। आज भी हमारे कर्इ गांवों में परम्परागत Reseller में स्थानीय स्वशासन की न्याय व्यवस्था विद्यमान है।

स्थानीय स्वशासन का तात्पर्य 

  1. गांव के लोगों की गांव में अपनी शासन व्यवस्था हो व गांव स्तर पर स्वयं की न्याय प्रक्रिया हो।
  2. ग्रामस्तरीय नियोजन, क्रियान्वयन व निगरानी में गांव के हर महिला पुरूष की सक्रिय भागीदारी हो।
  3. किस प्रकार का विकास चाहिये या किस प्रकार के निर्माण कार्य हों या गांव के संसाधनों का प्रबन्धन व संरक्षण कैसे होगा ये All बातें गांव वाले तय करेगें।
  4. गांव की सब तरह की समस्याओं का समाधान गांव के लोगों की भागेदारी से ही हो। 
  5. ऐसा शासन जहां लोग स्थानीय मुद्दों, गतिविधियों में अपनी सक्रिय भागीदारी निभा सकें।
  6. स्थानीय स्तर पर स्वशासन को लागू करने का माध्यम गांव के लोगों द्वारा, मान्यता प्राप्त लोगों का समूह हो जिन्होने सम्पूर्ण गांव का विकास, व्यवस्था व प्रबन्धन करना है। ऐसा समूह जिसका निर्णय All को मान्य हो। 

संविधान में संशोधन व स्थानीय स्वशासन 

  1.  हमारे देष में पंचायतों की व्यवस्था सदियों से चली आ रही है। पंचायतों के कार्य भी लगभग समान है। उनके स्वReseller में जरूर परिवर्तन हुआ है। First पंचायतों का स्वReseller कुछ और था। उस समय वह संस्था के Reseller में कार्य करती थी। और गांव के झगड़े, गांव की व्यवस्थायें सुधारना जैसे फसल Safty, पेयजल, सिंचार्इ, रास्ते, जंगलों का प्रबंधन आदि मुख्य कार्य हुआ करते थे।
  2. लोगों को पंचायतों के प्रति बड़ा विष्वास था। उनका निर्णय लोग सहज स्वीकार कर लेते थे। और हमारी पंचायतें भी बिना पक्षपात के कोर्इ निर्णय Reseller करती थी। ऐसा नहीं कि पंचायतें सिर्फ गांव का निर्णय करती थी। बड़े क्षेत्र, पट्टी, तोक के लोगों के मूल्यों से जुड़े संवेदनशील निर्णय भी पंचायतें बड़े विश्वास के साथ करती थी। इससे पता लगता है कि पंचायतों के प्रति लोगों का First कितना विश्वास था। वास्तव में जिस स्वशासन की बात हम आज कर रहे हैं, असली स्वशासन वही था। जब लोग अपना शासन खुद चलाते थे, अपने विकास के बारे में खुद सोचते थे, अपनी समस्यायें स्वयं हल करते थे And अपने निर्णय स्वयं लेते थे।
  3. धीरे-धीरे ये पंचायत व्यवस्थायें आजादी के बाद समाप्त होती गर्इ। इसका मुख्य कारण रहा, सरकार का दूरगामी परिणाम सोचे बिना पंचायत व्यवस्थाओं में अनावश्यक हस्तक्षेप। जो छोटे-छोटे विवाद First हमारे गांव में हो जाते थे अब वह सरकारी कानून व्यवस्था से पूरे होते हैं, जिन जंगलों का हम First Safty भी करते थे और उसका सही प्रबंधन भी करते थे अब उससे दूरियां बनती जा रही हैं और उसे हम अधिक से अधिक उपभोग करने की दृष्टि से देखते हैं। जो गांव के विकास संबंधी नजरिया हमारा स्वयं का था उसकी जगह सरकारी योजनाओं ने ले ली है। और सरकारी योजनाएं राज्य या केन्द्र में बैठकर बनार्इ जाने लगी और गांवों में उनका क्रियान्वयन होने लगा।
  4. परिणाम यह हुआ कि लोगों की जरूरत के According नियोजन नहीं हुआ और जिन लोगों की पहुँच थी, उन्होंने ही योजनाओं का उपभोग Reseller। लोग योजनाओं के उपभोग के लिए हर समय तैयार रहने लगे चाहे वह उसके जरूरत की हो या न हो। उसको पाने के लिए व्यक्ति खींचातानी में लगा रहा। इससे कमजोर वर्ग धीरे-धीरे और कमजोर होता गया। और लोग पूरी तरह सरकार की योजनाओं और सब्सिडी(छूट) पर निर्भर होने लगे। धीरे-धीरे पंचायत की भूमिका गांव के विकास में शून्य हो गर्इ। लोग भी पुरानी पंचायतों से कटते गये। 
  5. लेकिन 80 के दशक में यह लगने लगा कि सरकारी योजनाओं का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक नहीं पहुँच पा रहा है। यह भी सोचा जाने लगा कि योजनाओं को लोगों की जरूरत के मुताबिक बनाया जाय। योजनाओं के नियोजन और क्रियान्वयन में भी लोगों की भागीदारी जरूरी समझी जाने लगी। तब ऐसा महसूस हुआ कि ऐसी व्यवस्था कायम करने की Need है जिसमें लोग खुद अपनी जरूरत के According योजनाओं का निर्माण करें और स्वयं उनका क्रियान्वयन करें।
  6. इसी सोच के आधार पर पंचायतों को कानूनी तौर पर नये काम और अधिकार देने की सोची गर्इ ताकि स्थानीय लोग अपनी जरूरतों को पहचानें, उसके उपाय खोजें, उसके आधार पर योजना बनायें, योजनाओं को क्रियान्वित करें और इस प्रकार अपने गांव का विकास करें। 
  7. इस सोच को समेटते हुए सरकार ने संविधान में 73वाँ संषोधन कर पंचायतों को नये काम और अधिकार दे दिये हैं। इस प्रकार केन्द्र और राज्य सरकार की तरह पंचायतें भी स्थानीय लोगों की अपनी सरकार की तरह कार्य करने लगी। 

स्थानीय स्वशासन की Need 

स्थानीय स्वशासन में लोगों के हितों की रक्षा होती है तथा स्थानीय लोगों की सहभागिता से आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय की योजनाएं बनायी व लागू की जाती हैं।

  1. ग्रामीण विकास हेतु किये जाने वाले किसी भी कार्य में स्थानीय And वाºय संसाधनों का लोगों द्वारा बेहतर उपयोग Reseller जाता है। 
  2. स्थानीय लोग अपनी समस्याओं And प्राथमिकताओं से भली-भांति परिचित होते हं।ै तथा लोग अपनी समस्या And बातों को आसानी से रख पाते हैं।
  3. स्थानीय स्वशासन व्यवस्था से लोगों की भागीदारी से जिम्मेदारी का अहसास होता है और स्थानीय स्तर की समस्याओं का निदान व विवादों का निपटारा लोग स्वयं करते हैं। 
  4. गांव के विकास में महिलाओं, निर्बल, कमजोर And पिछडे वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित होती है तथा वास्तविक लाभाथ्र्ाी को लाभ मिलता है।

स्थानीय स्वशासन व पंचायतें 

स्थाभिनीय स्वशासन को स्थापित करने में पंचायतों की अहम भूमिका है। पंचायतें हमारी संवैधानिक Reseller से मान्यता प्राप्त संस्थायें हैं और प्रशासन से भी उनका सीधा Addedव है। भारत में प्राचीन काल से ही स्थानीय स्तर पर शासन का संचालन पंचायत ही करती आयी हैं। स्थानीय स्तर पर स्वशासन के स्वप्न को साकार करने का माध्यम पंचायतें ही हैं। चूंकि पंचायतें स्थानीय लोगों के द्वारा गठित होती हैंं, और इन्हें संवैधानिक मान्यता भी प्राप्त है, अत: पंचायतें स्थानीय स्वशासन को स्थापित करने का Single अचूक तरीका है। ये संवैधानिक संस्थाएं ही आर्थिक विकास व सामाजिक न्याय की योजनाएं ग्रामसभा के साथ मिलकर बनायेंगीं व उसे लागू करेंगी। गांव के लिये कौन सी योजना बननी है, कैसे क्रियान्वित करनी है, क्रियान्वयन के दौरान कौन निगरानी करेगा, ये All कार्य पंचायतें गांव के लोगों (ग्रामसभा सदस्यों) की सक्रिय भागीदारी से करेंगी। इससे निर्णय स्तर पर आम जनसमुदाय की भागीदारी सुनिश्चित होगी। 

स्थानीय स्वशासन तभी मजबूत हो सकता है जब पंचायतें मजबूत होंगी और पंचायतें तभी मजबूत होंगी जब लोग मिलजुलकर इसके कार्यों में अपनी भागीदारी देंगे और अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे। लोगों की सहभागिता सुनिश्चित करने के लिये पंचायतों के कार्यों में पारदर्शिता होना जरूरी है। First भी लोग स्वयं अपने संसाधनों का, अपने ग्राम विकास का प्रबन्धन करते थे। इसमें कोर्इ शक नहीं कि वह प्रबन्धन आज से कहीं बेहतर भी होता था। हमारी परम्परागत Reseller से चली आ रही स्थानीय स्वशासन की सोच बीते समय के साथ कमजोर हुर्इ है। नर्इ पंचायत व्यवस्था के माध्यम से इस परम्परा को पुन: जीवित होने का मौका मिला है। अत: ग्रामीणों को चाहिये कि पंचायत और स्थानीय स्वशासन की मूल अवधारणा को समझने की चेष्टा करें ताकि ये दोनों ही Single Second के पूरक बन सकें। 

गांवों का विकास तभी सम्भव है जब सम्पूर्ण ग्रामवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ा जायेगा। जब तक गांव के सामाजिक तथा आर्थिक विकास के निर्णयों में गांव के First तथा अन्तिम व्यक्ति की बराबर की भागीदारी नहीं होगी तब तक हम ग्राम स्वराज की कल्पना नहीं कर सकते हैं। जनसामान्य की अपनी सरकार तभी मजबूत बनेगी जब लोग ग्रामसभा और ग्रामपंचायत में अपनी भागीदारी के महत्व को समझेंगे। 

स्थानीय स्वशासन व पंचायतों में आपसी सम्बन्ध 

भारत में प्राचीन काल से ही स्थानीय स्तर पर शासन का संचालन पंचायत ही करती आर्इ हैं। स्थानीय स्तर पर स्वशासन के स्वप्न को साकार करने का माध्यम हैं पंचायतें।

  1. चूंकि पंचायतें स्थानीय स्तर पर गठित होती हैं अत: पंचायतें स्थानीय स्वशासन को स्थापित करने का अचूक तरीका है। 
  2. पंचायत में गांव के विकास हेतु स्थानीय लोग ही निर्णय लेते हैं विवादों का निपटारा करतें हैं, स्थानीय मुद्दों के लिए कार्य करते हैं अत: गांव की हर गतिविधि व कार्य में स्थानीय लोगों की ही भागीदारी रहती है। 
  3. पंचायत द्वारा बनाये गये विकास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में स्थानीय लोगों की भागीदारी होती है तथा स्थानीय लोगों को ही इसका लाभ मिलता है। अत: पंचायत स्थानीय लोगों के अधिकारों व हकों की Safty करती है।

स्थानीय स्वशासन की दिशा में 73वां संविधान संशोधन अधिनियम Single कारगार And क्रान्तिकारी कदम है। लेकिन गांव के अन्तिम व्यक्ति की सत्ता And निर्णय में भागीदारी से ही स्थानीय स्वशासन की सफलता आंकी जा सकती है। स्थानीय स्वशासन तभी मजबूत होगा जब गांव के हर वर्ग चाहे दलित हों अथवा जनजाति, महिला हो या फिर गरीब, सबकी समान Reseller से स्वशासन में भागीदारी होगी। इस के लिये गांव के प्रत्येक ग्रामीण को उसके अधिकारों And कर्तव्यों के प्रति जागरूक Reseller जाना अत्यन्त आवश्यक है। हम अपने गांवों के सामाजिक And आर्थिक विकास की कल्पना तभी कर सकते है जब गांव के विकास संबन्धी समुचित निर्णयों में अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी होगी। लेकिन इस सबके लिये पंचायत व्यवस्था ही Only Single ऐसा मंच है जहॉं आम जन समुदाय पंचायत प्रतिनिधियों के साथ मिलकर स्थानीय विकास से जुड़ी विभिन्न समस्याओं पर विचार कर सकते हैं और सबके विकास की कल्पना को साकार Reseller दे सकते हैं।

स्थानीय स्वशासन कैसे मजबूत होगा ? 

  1. स्थानीय स्वशासन की मजबूती के लिए First पंचायत में सुयोग्य प्रतिनिधियों का चयन होना आवश्यक है। पंचायत का नेतृत्व करने के लिए ऐसे व्यक्ति का चयन Reseller जाना चाहिए जिसकी स्वच्छ छवि हो व वह नि:स्वार्थ भाव वाला हो। 
  2. सक्रिय ग्राम सभा पंचायती राज की नींव होती है। अगर ग्रामसभा के सदस्य सक्रिय होंगे व अपनी भूमिका तथा जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होंगे तभी Single सशक्त पंचायत की नींव पड़ सकती है। अत: ग्राम सभा के हर सदस्य को जागरूक रह कर पंचायत के कार्यों में भागीदारी करनी चाहिए। तभी स्थानीय स्वशासन मजबूत हो सकता है।
  3. स्थानीय स्तर पर उपलब्ध भौतिक, प्राकृतिक, बौद्धिक, संसाधनों का बेहतर उपयोग And उचित प्रबन्घन से ही विकास प्रक्रिया को गति प्रदान की जा सकती है। अत: स्थानीय संसाधनों के बेहतर उपयोग द्वारा पंचायतें अपनी स्थिति को मजबूत बनाकर ग्राम व ग्रामवासियों के विकास को गति प्रदान कर सकती है।
  4. स्थानीय स्वशासन तभी मजबूत होगा जब गांव वासी अपनी Need व प्राथमिकता के According योजनाओं व कार्यक्रमों का नियोजन करेंगे व उनका स्वयं ही क्रियान्वयन करेंगे। उपर से थोपी गर्इ परियोजनायें कभी भी ग्रामीणों में योजना के प्रति अपनत्व की भावना नहीं ला सकती, अत: सूक्ष्म नियोजन के आधार पर ही योजनाएं बनानी होंगी तभी वास्तविक Reseller से स्थानीय स्वशासन मजबूत होगा।
  5. पंचायतों की मजबूती का Single महत्वपूर्ण पहलू है निष्पक्ष सामाजिक न्याय व्यवस्था व महिला पुरूष समानता को बढ़ावा देना। पंचायतें सामाजिक न्याय व आर्थिक विकास को ग्राम स्तर पर लागू करने का माध्यम हैं। अत: समाज के वंचित, उपेक्षित व शोशित वर्ग को विकास प्रक्रिया मे भागीदारी के समान अवसर प्रदान करने से ही पंचायती राज की मूल भावना “ लोक शासन” को मूर्त Reseller दे सकती है।
  6.  युवा किसी भी देश व समाज के लिए पँूजी है।  इनके अन्दर प्रतिभा, शक्ति व हुनर व़िद्यमान है इस युवा शक्ति व प्रतिभा का पलायन रोककर व उनकी शक्ति व उर्जा का Creationत्मक कार्यो में सदुपयोग Reseller जाए तो वे स्थानीय स्तर पर पंचायतों की मजबूती में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  7. पंचायतीराज की मजबूती के लिए सत्ता का वास्तविक Reseller में विकेन्द्रीकरण Meansात कार्य, कार्मिक व वित्त सम्बन्धित वास्तविक अधिकार पंचायतों को हस्तांतरित करना आवश्यक है। इनके बिना पंचायतें अपनी भूमिका व जिम्मेदारियों को सफलता पूर्वक निभाने में असमर्थ हैं।

स्थानीय स्वशासन व ग्रामीण विकास में संबंध

  1. स्थानीय स्वशासन आरै ग्रामीण विकास Single Second के पूरक है।  स्थानीय स्वशासन के माध्यम से गांव की समस्याओं को प्राथमिकता मिल सकती है व ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है। 
  2. स्थानीय स्वशासन की आधारशिला पंचायत है अत: पंचायत के माध्यम से गांव के समुचित प्रबन्धन में समुदाय की भागीदारी बढ़ती है। 
  3. ग्राम विकास की समस्त योजनाएं गांव के लोगों द्वारा ही बनार्इ जायेंगी व लागू की जायेंगीं। इससे विकास कार्यों के प्रति सामूहिक सोच को बढ़ावा मिलेगा। साथ ही स्थानीय समुदाय का विकास की गतिविधियों में पूर्ण नियन्त्रण। 
  4. ग्रामीण विकास प्रक्रिया में All वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व And सब को समान महत्व मिलने से स्थानीय स्वशासन मजबूत होगा। महिलाओं तथा कमजोर वर्गो की भागीदारी से ग्राम विकास की प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी। 
  5. मजबूत स्थानीय स्वशासन से किसी भी प्रकार के विवादों का निपटारा गांव स्तर पर ही Reseller जा सकता है। 
  6. स्थानीय समुदाय की नियोजन व निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी से विकास जनसमुदाय व गांव के हित में होगा। इससे लोगों की समस्याओं का समाधान भी स्थानीय स्तर पर सबके निर्ण द्वारा होगा। स्थानीय संसाधनों का समुचित विकास व उपयोग होगा तथा सामूहिकता का विकास होगा। 

सत्ता का विकेन्द्रीकरण, स्थानीय स्वशासन And स्थानीय स्वशासन से ग्रामीण विकास के बीच संबंध 

सत्ता का विकेन्द्रीकरण
क्या है ?
स्थानीय स्वशासन कैसे
मजबूत होगा ?
स्थानीय स्वशासन व ग्रामीण
विकास के बीच संबंध
नीचें से ऊपर की ओर विकास के नियोजन की प्रक्रिया। पंचायत में सुयोग्य प्रतिनिधियों का चयन हो। स्थानीय स्वशासन और ग्रामीण विकास Single Second के पूरक है। 
स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय सामुदायिक संगठनों व ग्रामीणों का अधिकार। पंचायत का नेतृत्व करने वाला व्यक्ति स्वच्छ छवि And नि:स्वार्थ भाव वाला हो।
सक्रिय ग्राम सभा द्वारा। 
स्थानीय स्वशासन के माध्यम से गांव की समस्याओं को प्राथमिकता मिल सकती है व ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है। 
निर्णय व नियोजन प्रक्रिया में समुदाय की सक्रिय And प्रभावपूर्ण भागीदारी। स्थानीय संसाधनों का बेहतर उपयोग And उचित प्रबन्घन हो। विकास कायांर् े के प्रति सामुहिक सोच को बढ़ावा मिलेगा।
कार्यों/जिम्मेदारियों का विभिन्न स्तरों पर बंटवारा व स्थानीय स्तर पर अपने संसाधनों को जुटाने का अधिकार। परियोजनायें थोपी न जायें सूक्ष्म नियोजन के आधार पर ही योजनाए बनें।  ग्रामीण विकास प्रक्रिया मे स्थानीय स्वशासन के माध्यम से जनसमुदाय की आवाज को बल मिलेगा
प्रत्येक स्तर पर निर्णय लेने का अधिकार ग्रामीणों को प्राप्त।  स्थानीय स्वशासन के प्रति लोगों के दृष्टिकेाण में परिवर्तन हो And लोगों की क्षमता का विकास हो।  ग्राम विकास की समस्त योजनाएं गांव के लोगों द्वारा ही लागू की जायेंगीं।
नियोजन लोगों का और भागीदारी सरकार की हो। निष्पक्ष न्याय व्यवस्था व महिला पुरूष समानता को बढ़ावा देकर।  ग्रामीण विकास प्रक्रिया में All वगांर् े को उचित प्रतिनिधित्व And सब को समान महत्व मिलने से स्थानीय स्वशासन मजबूत होगा।
निर्णय लेने का अधिकार ग्रामसभा तथा उसकी भावनाओं के According पंचायत को हो।  युवा प्रतिभाओं का पलायन रोककर व उनकी शक्ति व उर्जा का Creationत्मक कार्यो में सदुपयोग द्वारा। स्थानीय समुदाय का विकास की गतिविधियों में  पूर्ण नियन्त्रण।
नियोजन, क्रियान्वयन व कार्य के सम्पादन में पारदर्शिता व जबाबदेही। मजबूत संगठन व सामुहिकता की भावना के विकास द्वारा। स्थानीय संसाधनों का समुचित विकास व उपयोग होगा, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
तीनों स्तरों पर जानकारी का आदान प्रदान।  सत्ता का वास्तविक Reseller में विकेन्द्रीकरण कर पंचायतों को अधिकार संम्पन्न बनाया जाये। स्थानीय समुदाय की नियोजन व निर्णय प्रक्रिया में भागीदारी से विकास लोगों व गांव के हित में होगा।
हर स्तर पर मजबूत नेतृत्व व महिलाओं तथा कमजोर वर्गो का प्रतिनिधित्व।   पारम्परिक व्यवस्था को महत्व मिले तथा पंचायतें आत्मनिर्भर हों। लोगों के ज्ञान, अनुभव तथा जनसहभागिता को महत्व मिले। स्थानीय स्वशासन की आधारशिला पंचायत है अत: पंचायत के माध्यम से गांव के समुचित प्रबन्धन में समुदाय की भागीदारी बढ़ती है।
All स्तरों पर अनुशासन व सामजस्य, निधा्ररित नियमों का दुReseller्योग नहीं। स्थानीय संसाधनों के प्रति लोगों जागरूक हों ताकि स्थानीय संसाधनों का सदुपयोग हो।  मजबूत स्थानीय स्वशासन से किसी भी प्रकार के विवादों का निपटारा गांव स्तर पर। 
 हर स्तर पर वित्तीय ससंसाधनों की उपलब्धता व उसके समुचित उपयोग की स्वतन्त्रता। ग्राम की योजना, ग्रामवासी अपनी Needनुसार स्वयं बनायें ग्रामसभा के निर्णयों को मान्यता। महिलाओं तथा कमजोर वर्गो की भागीदारी से ग्राम विकास की प्रक्रिया को मजबूती मिलेगी।

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