सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 क्या है?

हमारे संविधान ने सूचना के अधिकार के महत्व को समझते हुए इसे मौलिक अधिकार के बराबर का दर्जा दिया था और इसी संवैधानिक व्यवस्था के तहत 1976 में राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में described मौलिक अधिकार घोषित Reseller। अनुच्छेद 19 (1) के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार है और न्यायालय ने माना कि कोर्इ व्यक्ति तब तक अभिव्यक्त नहीं कर सकता जब तक कि उसे जानकारी यानी सूचना न हो। संविधान की भावना के अनुReseller उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार को अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से जोड़ते हुए यह माना था कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का महत्व तभी है जब सूचना प्राप्त करने का अधिकार हो क्योंकि बगैर सूचना के अभिव्यक्ति भी सीमित हो जाती है। इसी उद्देंश्य से उच्चतम न्यायालय ने इस अधिकार को लागू किये जाने की Need जतार्इ थी। Single सभ्य समाज की स्थापना में समय-समय पर विभिन्न व्यक्तियों, विद्वानों, दार्शनिकों और संस्थाओं ने सूचना के अधिकार के महत्व को समझा है और इसे लागू किये जाने की Need जतार्इ है। लेकिन इसके बावजूद देश में इस कानून के अस्तित्व में आते-आते बहुत लम्बा समय लग गया और लंबी मंत्रणा तथा विचार-विमर्श के बाद अंतत: 12 अक्टूबर 2005 को देश में यह कानून (जम्मू कश्मीर को छोड़कर) लागू Reseller गया।

इस कानून के तहत प्रत्येक सरकारी विभाग में Single लोक सूचना अधिकारी की Appointment की गर्इ है। इसके उपर उसी विभाग में अपीलीय अधिकारी होता है । राज्य स्तर पर Single राज्य सूचना आयोग होता है जिसका मुखिया मुख्य सूचना आयुक्त होता है। जिसके अधीन कुछ सूचना आयुक्त कार्य करते है। इसी तरह केन्द्रीय स्तर पर Single केन्द्रीय सूचना आयोग होता है जो मुख्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त की देखरेख मे काम करता है। उसका काम अपीलों को सुनना, विशेष परिस्थतियों मे सूचना के अधिकार के लिए पैरवी करना और देश में सूचना के अधिकार के प्रभावी क्रियान्वयन पर निगरानी रखना है। कोर्इ भी नागरिक किसी विभाग के बारे में उस विभाग के लोक सूचना अधिकारी से जानकारी मांग सकता है। सूचना समय से उपलब्ध न होने पर अपीलीय अधिकारी से अपील की जा सकती है वहां से भी सूचना न मिलने पर राज्य सूचना आयुक्त (Information Commissioner) से अपील की जा सकती है। यदि वहां से भी सूचना नहीं मिल सके तो केन्द्रीय सूचना आयुक्त (Central Information Commissioner) से अपील किये जाने की भी व्यवस्था है। इस कानून के तहत यदि लोक सूचना अधिकारी अथवा Public Information Officer (PIO) सूचना समय पर नहीं देता या गलत सूचना देता है तो उसके लिये दंड का प्रावधान भी है।

सूचना के अधिकार के प्रमुख प्रावधान

सूचना के अधिकार के तहत प्राय: हर विषय को समेटा गया है। इस अधिनियम में हर विषय की सरल ढंग से पर्याप्त व्याख्या की गर्इ है। इसके तहत ‘सूचना’ कोर्इ भी ऐसी स्थार्इ सामग्री है जो रिकार्ड के Reseller में, र्इ-मेल या मेमो के Reseller में, माडल या इलैक्ट्रानिक Reseller में अथवा प्रेस विज्ञप्ति, परिपत्र, सुझाव, सरकारी आदेश, गाड़ियों की लाग बुक, अनुबन्धों इत्यादि के Reseller में हो। इस अधिकार के तहत आम व्यक्ति को निम्न अधिकार प्राप्त हैं ।

  1. विभिन्न अभिलेखों, दस्तावेजों, योजनाओं व रिकॉर्ड का निरीक्षण करने का अधिकार।
  2. ऐसे अभिलेखों, दस्तावेजों, योजनाओं, रिकॉर्ड आदि की अधिकृत प्रतिलिपि प्राप्त करने का अधिकार।
  3. निर्माण में प्रयुक्त अथवा अन्य सामग्री का नमूना लेने का अधिकार। 

लोक सूचना अधिकारी के लिये आवश्यक है कि मांगी गर्इ सूचना, प्रार्थना पत्र के दिये जाने के तीस दिन के भीतर प्रदान की जाय। लेकिन यदि कोर्इ सूचना किसी व्यक्ति के जीवन अथवा उसकी स्वतन्त्रता से सम्बन्धित है तो इसे 48 घंटे के भीतर दिया जाना आवश्यक है। लोक सूचना अधिकारी द्वारा निर्धारित समयावधि के भीतर सूचना न दिये जाने पर इसे सूचना दिये जाने से इंकार करने समान माना जाता है और इसकी शिकायत (अपील) उससे वरिष्ठ अधिकारी (First अपीलीय अधिकारी) से की जा सकती है। यदि वांछित जानकारी किसी अन्य कार्यालय या लोक सूचना अधिकारी से सम्बन्धित है तो यह लोक सूचना अधिकारी का ही दायित्व है कि वह आवेदन के पांच दिन के भीतर अनुरोध पत्र को उस कार्यालय को अग्रसारित कर दे जिससे इसका सम्बन्ध हो। इसके तहत कुछ सूचनाऐं ऐसी हैं जो कि केन्द्रीय सूचना आयोग की संस्तुति के बाद ही दी जा सकती हैं उदाहरण के लिये Human अधिकारों के उल्लंघन से सम्बन्धित सूचना। ऐसी सूचना आवेदन के 45 दिन के भीतर दिये जाने का प्राविधान है।

अधिनियम की धारा 8 में उन जानकारियों का History है जिन्हें देने से इंकार Reseller जा सकता है। इसके तहत described जानकारियों को छोड़कर जो कि राष्ट्र की प्रभुता And अखंडता, राष्ट्र की Safty, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हितों से सम्बन्धित हों या जिससे अन्य राष्ट्रों से मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े या जो किसी अपराध के लिये उकSevenी हों अथवा सामाजिक समरसता को प्रभावित करने वाली हों या ऐसी जानकारियां जो संसद या राज्य विधानमंडलों का विशेषाधिकार हनन करती हों या कापीराइट Single्ट का उल्लंघन करती हों, अन्य All जानकारियां दिया जाना आवश्यक माना गया है। इस अधिनियम के तहत विकास कायोर्ं से जुड़े विभागों जैसे सार्वजनिक निर्माण विभाग, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, पेयजल, हार्इडिल आदि की गोपनीयता शून्य मानी गर्इ है तथा उन्हें शत प्रतिशत पारदर्शी बनाते हुए उनसे सम्बन्धित प्रत्येक जानकारी दिये जाने की व्यवस्था है। लेकिन इसके तहत यह व्यवस्था भी है कि चूंकि फार्इल या दस्तावेज बहुत लंबे समय तक Windows Hosting नहीं रखे जा सकते अत: किसी मामले के 20 वर्ष बाद उससे सम्बन्धित जानकारी दिया जाना बाध्यकारी नहीं है। इसके अतिरिक्त इस अधिनियम में ‘तीसरी पार्टी की सूचना’ सम्बन्धी प्राविधान भी है जिसके तहत च्प्व् को ऐसी वाणिज्यिक गुप्त बातों, व्यावसायिक रहस्यों, बौद्धिक संपदा सम्बन्धी जानकारियों के अतिरिक्त ऐसी जानकारियों को भी न देने की छूट है, जिनसे किसी तीसरी पार्टी की प्रतियोगी स्थिति को क्षति पहुंचती हो।

अधिनियम की धारा 8(1)(घ) के तहत सम्बन्धित सूचना अधिकारी यदि आश्वस्त न हो कि ऐसी सूचना का दिया जाना लोक हित में आवश्यक है तो वह सूचना देने से इंकार कर सकता है। यदि वह सूचना देना लोकहित में आवश्यक समझे तो भी उसको इससे पूर्व सम्बन्धित तृतीय पक्ष को भी सूचित कर, उसके पक्ष को सुनकर तथा उससे अAgree होने पर उसे प्रतिवेदन का समय देना आवश्यक है। यदि इसके बाद केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ऐसी सूचना को दिये जाने का निर्णय लेता है और तृतीय पक्ष इसके विरूद्ध अपील करता है तो तब तक यह सूचना नहीं दी जा सकती जब तक कि इस अपील का निस्तारण न हो जाए।

क्या करें यदि सूचना अधिकार से सूचना न मिले या जानकारी से सन्तुष्ट न हों

सूचना के अधिकार के सुचारू निर्वहन के लिए इसमें अनेक ऐसी व्यवसायें की गर्इ है जिनके कारण सम्बद्ध विभाग समय से सूचना देने में लापरवाही नही कर सकते अथवा भ्रामक सूचनायें नही दे सकते। सूचना देने वालों की जवाबदेही तय रखने के लिए इसमें कुछ दण्डात्मक प्राविधान भी हैं।

यदि कोर्इ सूचना मांगे जाने पर आवेदक को निर्धारित अवधि (तीस दिन) के भीतर सूचना प्राप्त नहीं होती या वह इस सूचना से संतुष्ट नहीं होता है तो वह First अपीलीय अधिकारी से इसकी अपील कर सकता है। यह अपीलीय अधिकारी पद में लोक सूचना अधिकारी से वरिष्ठ अधिकारी होता है। लेकिन यह अपील निर्धारित (30 दिन) की अवधि समाप्त होने के 30 दिन के भीतर अथवा इस सम्बन्ध में केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी का निर्णय मिलने के 30 दिन के भीतर कर दी जानी चाहिये। ऐसी अपील किये जाने पर लोक प्राधिकरण के अपीलीय अधिकारी का दायित्व है कि अपील किये जाने के तीस दिन के भीतर अथवा विशेष परिस्थितियों में 45 दिन के भीतर वह इस अपील का निस्तारण कर दे। यदि First अपीलीय अधिकारी निर्धारित अवधि में अपील का निस्तारण नहीं करता अथवा अपीलकर्ता उसके निर्णय से सन्तुष्ट नहीं होता तो वह First अपीलीय अधिकारी द्वारा निर्णय किये जाने की निर्धारित समय सीमा (अधिकतम 45 दिन) की समाप्ति अथवा निर्णय की प्राप्ति के नब्बे दिन के भीतर केन्द्रीय सूचना आयोग के समक्ष दूसरी अपील कर सकता है।

इस अधिनियम के तहत यह प्रावधान भी है कि यदि केन्द्रीय सूचना आयोग केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी को बगैर समुचित कारण के सूचना का आवेदन अस्वीकार करने, निर्धारित अवधि में सूचना न देने, जानबूझकर गलत, भ्रामक या अपूर्ण सूचना देने, सूचना Destroy करने या सूचना देने की कार्यवाही में बाधा का दोषी पाता है तो वह आवेदन की प्राप्ति अथवा सूचना दिये जाने तक सम्बन्धित अधिकारी पर दो सौ रुपए प्रतिदिन का जुर्माना लगा सकता है । साथ ही दुर्भावनापूर्वक सूचना का आवेदन अस्वीकार करने या गलत व भ्रामक सूचना देने पर वह सम्बन्धित अधिकारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्रवार्इ की सिफारिश भी कर सकता है।

यदि राज्य सूचना आयुक्त किसी लोक अधिकारी को निर्धारित समयावधि पर सूचना न देने का दोषी पाता है तो वह उस पर 250 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से अधिकतम 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है जो कि सम्बन्धित लोक सूचना अधिकारी को अपनी निजी आय से वहन करना होगा Meansात वह विभागीय धनराशि से इसका भुगतान नहीं कर सकता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *