सामान्य सम्भावना वक्र का Means, परिभाषा And उपयोग

किसी भी समूह के किसी भी चर पर प्राप्त प्राप्तांक (Score) प्राय: औसत (मध्यमान) की ओर झुके हुए होते हैं। जब इन प्राप्तांकों का मध्यमान के दोनों ओर वितरण Singleदम समान होता है तो प्राप्तांकों के इस प्रकार के वितरण को सामान्य वितरण (Normal Distribution) कहते हैं और इस प्रकार के प्राप्तांकों के आरेख (Graph) को सामान्य वितरण वक्र (Normal Distribution Curve) कहते हैं। वास्तविकता यह है कि प्राप्तांकों का इस प्रकार का सामान्य वितरण व्यावहारिक Reseller में कभी नहीं होता, इसके लगभग ही होता है, और इस लगभग होने आधार पर ही सम्भावना की जाती है। यही कारण है कि इस प्रकार के सम्भावित प्राप्तांकों के आरेख को सामान्य वक्र (Normal Curve) न कहकर सामान्य सम्भावना वक्र (Normal Probability Curve, NPC) कहते हैं।

सामान्य सम्भावना वक्र का विचार First 1933 में फ्रान्स के डी0 मोइवर (De Movire) के मस्तिष्क में आया था। उन्होंने इस वक्र की गणितीय समीकरण भी प्रस्तुत की थी। कुछ विद्वान इस वक्र को उनके नाम के आधार पर डी मोइवर वक्र (De Moiver Curve) कहते हैं और इस वक्र का गणितीय प्रयोग First जर्मनी के खगोलशास्त्री गॉस (Carl Freidrich Gausss) ने Reseller था। इसलिए कुछ विद्वान इसे गॉसियन वक्र (Gaussian Curve) कहते हैं, पर सामान्य प्रयोग में इसे सामान्य सम्भावना वक्र (Normal Probability Curve, NPC) ही कहते हैं। अब यदि हम इसे परिभाषित करना चाहें तो इस प्रकार कर सकते हैं – सामान्य सम्भावना वक्र Single ऐसा सैद्धान्तिक, आदर्श And गणितीय वक्र है जिसके प्राप्तांक मध्यमान के दोनों ओर Singleदम समान Reseller से वितरित होते हैं।

सामान्य सम्भावना वक्र की विशेषताएं

  1. सामान्य सम्भावना वक्र मध्य वाले भाग तथा दोनों ओर सीमान्तों पर सममित (Symmetrical) होता है। इसकी आकृति घंटाकार (Bell Shaped) होती है। 
  2. सामान्य सम्भावना वक्र की रेखाएँ दोनों अन्तिम छोरों (Ends) पर, X- अक्ष को न तो स्पर्श करती हैं और न ही X- अक्ष के समान्तर होती हैं। यह धारणा इस वक्र में अनन्त तक बनी रहती है। 
  3. सामान्य सम्भावना वक्र के मध्य वाले भाग में अधिकतम आवृत्तियाँ होती हैं। मध्य से जैसे-जैसे दार्इं व बार्इं ओर बढ़ते हैं तो आवृत्तियों का आकार And विस्तार Single निश्चित क्रम से धीरे-धीरे कम होता चला जाता है और सिरों पर न्यूनतम होता है। 
  4. सामान्य सम्भावना वक्र में केन्द्रीय प्रवृत्तियों मध्यमान (M), मध्यांक (Mdn) And बहुलांक (Mo) के मान समान होते हैं तथा वक्र के मध्य बिन्दु पर स्थित होते हैं। 
  5. सामान्य सम्भावना वक्र न तो बहुत चपटा होता है और न ही बहुत नुकीला होता है। औसत ऊँचार्इ वाले इस वक्र का वक्रता गुणांक (Coefficient of Kurtosis) .263 होता है Meansात् Ku = .263 
  6. सामान्य सम्भावना वक्र सममित (Symmetrical) होता है इसलिए इसका विषमता गुणांक (Coefficient of Skewness) शून्य होता है Meansात् Sk = 0
  7. सामान्य सम्भावना वक्र के X- अक्ष को मानक विचलन (σ) के आधार पर छ: भागों में विभाजित Reseller जाता है। मध्यमान बिन्दु से तीन भाग दार्इं ओर और 3 भाग बार्इं ओर होते हैं। दार्इं ओर के तीन भाग मध्यमान बिन्दु से क्रमश: +1σ , + 2σ + 3σ दूरी पर होते हैं और बार्इं ओर के तीन भाग मध्यमान से क्रमश: -1σ , – 2σ – 3σ दूरी पर होते हैं। 
  8. सामान्य सम्भावना वक्र के मध्य से दोनों ओर के भागों में आवृत्तियों का वितरण व विस्तार समान Reseller से 50% व 50% होता है।
  9. सामान्य सम्भावना वक्र में मध्यमान बिन्दु पर स्थित कोटि की ऊँचार्इ अधिकतम होती है तथा यह कुल आवृत्तियों (N) की .3989 होती है। 
  10. सामान्य सम्भावना वक्र मध्यमान से Single मानक विचलन ऊपर व नीचे Meansात् +1σ पर अपनी दिशा परिवर्तित करता है। यह वक्र +1σ , से -1σ के बीच आधार रेखा की ओर अवतल (Concave) होता है जबकि +1σ के ऊपर व (Tails) के नीचे Meansात् दोनों सिरो पर आधार रेखा की ओर उत्तल (Convex) होता है। 
  11. सामान्य सम्भावना वक्र तथा आधार रेखा के मध्य का क्षेत्रफल सामान्य सम्भावना वक्र क्षेत्रफल कहलाता है और यह कुल आवृत्तियों को प्रकट करता है। सामान्य सम्भावना वक्र की किन्हीं दो कोटियों के बीच का क्षेत्रफल उन कोटियों के सापेक्ष प्राप्तांकों के बीच अंक पाने वाले छात्रों की संख्या को प्रदर्शित करता है। यह कुल क्षेत्रफल का Single निश्चित प्रतिशत होता है। M से +1σ के मध्य 34.13% प्राप्तांक होते हैं M से +2σ के मध्य 47.72% प्राप्तांक होते हैं तथा M से +3 के मध्य 49.87% प्राप्तांक होते हैं। M के दोनों तरफ 50% व 50% प्राप्तांक होते हैं। 
  12. सामान्य सम्भावना वक्र में मध्यमान से विचलन की विभिन्न सांख्यिकीय मापों (Different Measures of Deviations) की गणना सरलतापूर्वक की जा सकती है; जैसे- +1σ (First चतुर्थांश) तथा +3σ (तृतीय चतुर्थांश) समान Reseller से Single ही दूरी पर होते हैं। यह दूरी 0.6745 होती है तथा मध्यमान से दोनों ओर अंकों की धनात्मक And ऋणात्मक दिशा में मानक विचलन दूरी (σ ) भी समान होती है। 
  13. सामान्य सम्भावना वक्र में चतुर्थांश विचलन का मान मानक विचलन के मान लगभग होता है। सूत्र में इसे इस Reseller में लिखते हैं-  Q = 6745σ = तथा σ = 1.482Q

सामान्य सम्भावना वक्र के उपयोग 

सामान्य सम्भावना वक्र के सम्बंध में First कहा जा चुका है कि मनोविज्ञान और शिक्षाशास्त्र में बहुत से ऐसे चर हैं जिनका वितरण सामान्य सम्भावना वक्र के अनुReseller होता है। मापन और मूल्यांकन के क्षेत्र में सामान्य सम्भावना वक्र का विशेष उपयोग और महत्व है। बुद्धि, स्मृति, चिन्ता आदि से सम्बंधित मापों या प्राप्तांकों को सामान्य सम्भावना वक्र के द्वारा प्रदर्शित Reseller जाता है। सामान्य सम्भावना वक्र की सहायता से इस प्रकार की समस्याओं का समाधान उदाहरणों की सहायता से समझाया गया है।

  1. दी हुर्इ सीमाओं के मध्य प्राप्तांकों का प्रतिशत ज्ञात करना। 
  2. सामान्य वितरण में विभिन्न प्रतिशतों के मध्य के प्राप्तांकों की सीमाएँ ज्ञात करना। 
  3. दो अतिव्यापी वितरणों की तुलना करना। 
  4. परीक्षण के प्रश्नों के कठिनार्इ स्तर को ज्ञात करना। 
  5. सामान्य सम्भावना के आधार पर Single अंक वितरण को विभिन्न उप-समूहों में विभाजित करना। 
  6. मानक प्राप्तांकों की गणना करना।

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