सामाजिक मूल्य का Means, परिभाषा प्रकार And महत्व

मूल्य समाज के प्रमुख तत्त्व हैं तथा इन्हीं मूल्यों के आधार पर हम किसी समाज की प्रगति, उन्नति, अवनति अथवा परिवर्तन की दिशा निर्धारित करते हैं। इन्हीं मूल्यों द्वारा व्यक्तियों की क्रियाएँ निर्धारित की जाती हैं तथा इससे समाज का प्रत्येक पक्ष प्रभावित होता है। सामाजिक मूल्यों के बिना न तो समाज की प्रगति की कल्पना की जा सकती है और न ही भविष्य में प्रगतिशील क्रियाओं का निर्धारण ही सम्भव है। मूल्यों के आधार पर ही हमें यह पता चलता है कि समाज में किस चीज को अच्छा अथवा बुरा समझा जाता है। अत: सामाजिक मूल्य मूल्यांकन का भी प्रमुख आधार हैं। विभिन्न समाजों की Needएँ तथा आदर्श भिन्न-भिन्न होते हैं, अत: सामाजिक मूल्यों के मापदण्ड भी भिन्न-भिन्न होते हैं। किसी भी समाज में सामाजिक मूल्य उन उद्देश्यों, सिद्धान्तों अथवा विचारों को कहते हैं जिनको समाज के अधिकांश सदस्य अपने अस्तित्व के लिए आवश्यक समझते हैं और जिनकी रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तत्पर रहते हैं। मातृभूमि, राश्ट्रगान, धर्मनिरपेक्षता, प्रजातन्त्र इत्यादि हमारे सामाजिक मूल्यों को ही व्यक्त करते हैं।

सामाजिक मूल्य का Means

सामाजिक मूल्य विभिन्न सामाजिक घटनाओं को मापने (मूल्यांकन करने में) का वह पैमाना है जो किसी घटना-विशेष के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। सामाजिक मूल्य प्रत्येक समाज के वातावरण और परिस्थितियों के वैभिन्न्य के कारण अलग-अलग होते हैं। ये Human मस्तिष्क को विशिष्ट दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जो सामाजिक मूल्यों के निर्माता होते हैं। प्रत्येक समाज की सांस्कृतिक विशेषताएँ, अपने समाज के सदस्यों में विशिष्ट मनोवृत्तियाँ उत्पन्न कर देती हैं जिनके आधार पर भिन्न-भिन्न विषयों और परिस्थितियों का मूल्यांकन Reseller जाता है।

यह सम्भव है जो ‘आदर्श’ और मूल्य Single समाज के हैं, वे ही Second समाज में अक्षम्य अपराध माने जाते हैं। भारत के सभ्य समाजों में विवाहेतर यौन सम्बन्ध मूल्यों की दृष्टि से घातक हैं किन्तु जनजातियों के सर्वोच्च लाभदायी मूल्य हैं। अत: मूल्यों का निर्धारण समाज की विशेषता पर आधारित है।

सामाजिक मूल्य की परिभाषा

  1. एच0 एम0 जॉनसन (H. M. Johnson) के According-”मूल्य को Single धारणा या मानक के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है। यह सांस्कृतिक हो सकता है या केवल व्यक्तिगत और इसके द्वारा चीजों की Single-Second के साथ तुलना की जाती है, इसे स्वीकृति या अस्वीकृति प्राप्त होती है, Single-Second की तुलना में उचित-अनुचित, अच्छा या बुरा, ठीक अथवा गलत माना जाता है।” 
  2. रोबर्ट बीरस्टीड (Robert Bierstedt) के According-”जब किसी समाज के स्त्री-पुरुष अपने ही तरह के लोगों के साथ मिलते हैं, काम करते हैं या बात करते हैं, तब मूल्य ही उनके क्रमबद्ध सामाजिक संसर्ग को सम्भव बनाते हैं।” 
  3. राधाकमल मुकर्जी (Radhakamal Mukerjee) के According-”मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे इच्छाएँ तथा लक्ष्य (Desires and goals) हैं जिनका आन्तरीकरण (Internalization) समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो व्यक्तिपरक अधिमान्यताएँ (Subjective preferences), मानदण्ड (Standards) तथा अभिलाशाएँ बन जाती है।” 
  4. स्कैफर And लाम (Schaefer and Lamm) के According-”मूल्य वे सामूहिक धारणाएँ हैं जिन्हें किसी संस्कृति विशेष में अच्छा, वांछनीय तथा उचित अथवा बुरा, अवांछनीय तथा अनुचित माना जाता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि मूल्य का Single सामाजिक आधार होता है और वे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त लक्ष्यों की अभिव्यक्ति करते हैं। मूल्य हमारे व्यवहार का सामान्य तरीका है। मूल्यों द्वारा ही हम अच्छे या बुरे, सही या गलत में अन्तर करना सीखते हैं।

    सामाजिक मूल्य के प्रकार

    मूल्य विविध प्रकार के होते हैं तथा विद्वानों ने इनका वर्गीकरण विविध प्रकार से Reseller है। कुछ प्रमुख विद्वानों के वर्गीकरण इस प्रकार हैं-

    (अ) इलियट And मैरिल ने अमेरिकी समाज के सन्दर्भ में तीन प्रकार के सामाजिक मूल्यों का History Reseller है-

    1. देशभक्ति या राष्ट्रीयता की भावना,
    2. Humanीय स्नेह तथा
    3. आर्थिक सफलता।

    (ब) राधाकमल मुकर्जी के According सामाजिक मूल्य प्रत्यक्ष Reseller से सामाजिक संगठन व सामाजिक व्यवस्था से सम्बन्धित होते हैं। उन्होंने चार प्रकार के मूल्यों का History Reseller है-

    1. वे मूल्य जो सामाजिक संगठन व व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए समाज में समानता व सामाजिक न्याय का प्रतिपादन करते हैं।
    2. वे मूल्य जिनके आधार पर सामान्य सामाजिक जीवन के प्रतिमानों व आदर्शों का निर्धारण होता है। इन मूल्यों के अन्तर्गत Singleता व उत्तरदायित्व की भावना आदि समाहित होती है।
    3. वे मूल्य जिनका सम्बन्ध आदान-प्रदान व सहयोग आदि से होता है। इन मूल्यों के आधार पर आर्थिक जीवन की उन्नति होती है व आर्थिक जीवन सन्तुलित होता है।
    4. वे मूल्य जो समाज में उच्चता लाने व नैतिकता को विकसित करने में सहायता प्रदान करते हैं।

    (स) सी0 एम0 केस ने सामाजिक मूल्यों को चार भागों में विभाजित Reseller है-

    1. जैविक या सावयवी मूल्य-ये मूल्य व्यक्ति की शरीर रक्षा के लिए निर्धारित किए जाते हैं। जैसे ‘शराब मत पीयो’ सावयवी मूल्य ही है क्योंकि शराब के परिणाम खराब स्वास्थ्य, विभिन्न बीमारियाँ तथा मानसिक असमर्थता आदि हैं जिनका प्रभाव व्यक्ति के शरीर के साथ ही भावी सन्तान पर भी पड़ता है तथा समाज में भी शराब के दुष्परिणाम देखे जा सकते हैं।
    2. सांस्कृतिक मूल्य-इन मूल्यों की उत्पत्ति व्यक्ति के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में नियमितता और नियन्त्रण के लिए हुई। परम्परा, लोककला, रीति-रिवाज, धार्मिक क्रियाएँ, गायन, नृत्य All सांस्कृतिक मूल्य कहे जाते हैं।
    3. सामाजिक मूल्य-ये मूल्य सामाजिक जीवन से सम्बन्धित होते हैं। सहयोग, दान, सेवा, निवास, भूमि, समूह इत्यादि के निर्धारित मूल्य इस कोटि में आते हैं।
    4. विशिष्ट मूल्य-इनका निर्धारण परिस्थितियों के लिए Reseller जाता है। अवसर-विशेष के लिए जिन मूल्यों का प्रचलन Reseller जाता है वे ही विशिष्ट मूल्य कहलाते हैं। जैसे-ब्रिटिश सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए Indian Customer जनता Single साथ कृत संकल्प हुई थी।

      सामाजिक मूल्यों का महत्व

      सामाजिक मूल्य समाज के सदस्यों की आन्तरिक तथा मनोवैज्ञानिक भावनाओं पर आधारित होते हैं। इसीलिए समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से मूल्यों का अत्यधिक महत्त्व होता है। इनके आधार पर ही सामाजिक घटनाओं And समस्याओं का मूल्यांकन Reseller जाता है। मूल्य व्यक्तिगत, सामाजिक और अन्तर्राष्ट्रीय जीवन को भी अपने अनुReseller बनाने का प्रयास करते हैं। सामाजिक मूल्य सामाजिक SingleResellerता के जनक हैं, क्योंकि मूल्य व्यवहार के प्रतिमान अथवा मानकों को प्रस्तुत करते हुए समाज के सदस्यों से अपेक्षा करते हैं कि वे अपने आचरण द्वारा मूल्यों का स्तर बनाए रखेंगे। इस तरह सामाजिक प्रतिमानों के Reseller में मूल्यों का निर्धारण होता है।

      सामाजिक मूल्यों से ही विभिन्न प्रकार की मनोवृत्तियों का निर्धारण होता है तथा व्यक्ति को उचित And अनुचित का ज्ञान होता है। पारसन्स And शिल्स के According सामाजिक मूल्य सामाजिक व्यवहार के कठोर नियन्त्रक हैं। उनके According सामाजिक मूल्यों के बिना सामाजिक जीवन असम्भव है, सामाजिक व्यवस्था सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर सकती तथा व्यक्ति अन्य व्यक्तियों को अपनी Needओं And जरूरतों को भावात्मक Reseller से नहीं बता पाएँगे। संक्षेप में सामाजिक मूल्यों का महत्त्व है-

      1. Human समाज में व्यक्ति इन मूल्यों के आधार पर समाज द्वारा स्वीकृत नियमों का पालन करता है। वह उनके अनुकूल अपने व्यवहार को ढालकर अपना जीवन व्यतीत करता है। 
      2. मनुष्य अपनी अनन्त Needओं की पूर्ति के लिए सतत प्रयत्न करता रहता है। इन Needओं की पूर्ति में उसे सामाजिक मूल्यों से पर्याप्त सहायता प्राप्त होती है।
      3. समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। सामाजिक मूल्य सम्बन्धों के इस जाल को सन्तुलित करने व समाज के सदस्यों में सामंजस्य बनाए रखने में सहयोग प्रदान करते हैं। 
      4. समाज के सदस्यों की प्रवृत्तियाँ व मनोवृत्तियाँ सामाजिक मूल्यों के आधार पर निर्धारित की जाती हैं।
      5. सामाजिक मूल्यों के आधार पर सामाजिक तथ्यों और घटनाओं; जैसे विचार, अनुभव तथा क्रियाओं आदि का ज्ञान प्राप्त होता है। अत: सामाजिक तथ्यों को समझने के लिए सामाजिक मूल्यों का ज्ञान होना जरूरी है।
      6. सामाजिक मूल्य व्यक्तियों को अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं व उद्देश्यों को वास्तविकता प्रदान करने का आधार प्रस्तुत करते हैं।
      7. सामाजिक मूल्य व्यक्ति के समाजीकरण And विकास में सहायक होते हैं। 
      8. सामाजिक मूल्यों के आधार पर ही सामाजिक क्रियाओं And कार्यकलापों का ज्ञान होता है।

      भारत में मूल्यों के समाजशास्त्र के विकास में लखनऊ सम्प्रदाय का भी महत्वपूर्ण स्थान है। समाजशास्त्रीय शिक्षण And अनुसन्धान की दृष्टि से इसे भारत का दूसरा सम्प्रदाय माना जाता है। लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के साथ दो प्रमुख नाम जुड़े हुए हैं-प्रो0 राधाकमल मुकर्जी तथा प्रो0 डी0 पी0 मुकर्जी। इस विभाग को First ‘Meansशास्त्र और समाजशास्त्र का लखनऊ सम्प्रदाय’ कहा जाता था। इसमें First Humanशास्त्र विभाग भी सम्मिलित था तथा इस विषय को प्रो0 डी0 एन0 मजूमदार पढ़ाते थे। बाद में यह सम्प्रदाय तीन विभागों में विभाजित हो गया-Meansशास्त्र विभाग, समाजशास्त्र And समाज कार्य विभाग तथा Humanशास्त्र विभाग। राधाकमल मुकर्जी ने समाजशास्त्र के पश्चिमी बौद्धिक वातावरण का Indian Customer स्वभाव से समन्वय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

      लखनऊ सम्प्रदाय ने ‘मूल्यों के समाजशास्त्र‘ के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। मुकर्जी के According समाजशास्त्र का कार्य मूल्यों का वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना है, पुराने मूल्यों के कार्यों का विश्लेशण करना है तथा नए मूल्यों का मूल्यांकन करना है। सामाजिक मूल्य सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हैं। मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे इच्छाएँ तथा लक्ष्य हैं जिनका आन्तरीकरण अनुकूलन, सीख या समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो व्यक्तिपरक अधिमान्यताएँ, प्रतिमान तथा अभिलाशाएँ बन जाती हैं। मूल्यों का वर्गीकरण करके तथा मूल्यों में संस्तरण को स्पष्ट करके मुकर्जी ने इस शाखा को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

      राधाकमल मुकर्जी के According, “मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त वे इच्छाएँ तथा लक्ष्य हैं जिनका आन्तरीकरण अनुकूलन, सीख या समाजीकरण की प्रक्रिया के माध्यम से होता है और जो व्यक्तिपरक अधिमान्यताएँ, प्रतिमान तथा अभिलाषाएँ बन जाती हैं।” अत: मूल्यों का Single सामाजिक आधार होता है और वे समाज द्वारा मान्यता प्राप्त लक्ष्यों की अभिव्यक्ति करते हैं।

      मूल्यों की प्रमुख विशेषताएँ

      1. सामाजिक मूल्य मानसिक धारणाएँ हैं। अत: जिस प्रकार समाज अमूर्त है उसी प्रकार मूल्य भी अमूर्त होते हैं। अन्य Wordों में, सामाजिक मूल्यों को न तो देखा जा सकता है और न ही इनको स्पर्श Reseller जा सकता है, इनका केवल अनुभव Reseller जा सकता है।
      2. सामाजिक मूल्य व्यक्ति के लक्ष्यों, साधनों व तरीकों के चयन के पैमाने हैं। हम सामाजिक मूल्यों के आधार पर ही किसी Single लक्ष्य को अन्य की अपेक्षा अधिक प्राथमिकता देते हैं।
      3. मूल्य व्यवहार करने के विस्तृत तरीके ही नहीं हैं अपितु समाज द्वारा वांछित तरीकों के प्रति व्यक्त की जाने वाली प्रतिबद्धता भी है।
      4. किसी भी समाज के मूल्य वहाँ की संस्कृति द्वारा निर्धारित होते हैं। अत: मूल्य संस्कृति की उपज हैं तथा ये संस्कृति को बनाए रखने में भी सहायक हैं।
      5. प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक मूल्यों को अपने ढंग से लेता है और उनका निर्वाचन करता है। Single संन्यासी And व्यपापारी के लिए ‘ईमानदारी’ (जोकि Single सामाजिक मूल्य है) का Means भिन्न-भिन्न हो सकता है।
      6. सामाजिक मूल्य Human व्यवहार के प्रेरक अथवा चालक के Reseller में कार्य करते हैं।
      7. सामाजिक मूल्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरित होते रहते हैं और इसीलिए इनमें परिवर्तन करना कठिन होता है। व्यक्तियों की इनके प्रति प्रतिबद्धता या वचनबद्धता के कारण भी इनमें परिवर्तन करना कठिन होता है।
      8. सामाजिक मूल्य व्यक्ति पर थोपे नहीं जाते, अपितु वह समाजीकरण द्वारा स्वयं इनका आन्तरीकरण कर लेता है और इस प्रकार वे उसके व्यक्तित्व के ही अंग बन जाते हैं।
      9. सामाजिक मूल्यों में संज्ञानात्मक, आदर्शात्मक तथा भौतिक तीनों प्रकार के तत्त्व निहित होते हैं।
      10. सामाजिक मूल्य ही नैतिकता-अनैतिकता अथवा उचित-अनुचित के मापदण्ड होते हैं।
      11. किसी भी समाज की प्रगति का मूल्यांकन सामाजिक मूल्यों के आधार पर ही Reseller जाता है।

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