सांप्रदायिक हिंसा के कारण And सिद्धांत

सांप्रदायिक हिंसा के कारण

साम्प्रदायिक हिंसा की समस्या को समझने के लिये दो उपागमों का उपयोग Reseller जा सकता है: (क) ढांचों की कार्यप्रणाली का निरीक्षण करना, और (ख) उसके उद्भव की प्रक्रिया के कारण मालूम करना। First प्रकरण (case) में साम्प्रदायिक हिंसा को सामाजिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली या समाज के ढांचों के संचालन के अध्ययन से समझा जा सकता है जब कि Second प्रकरण में नियोजित/अनियोजित या चेतन/अचेतन तरीके महत्वपूर्ण होते हैं, जो कि साम्प्रदायिक हिंसा को जीवित रखते हैं। साम्प्रदायिक हिंसा को First प्रकरण में Single ‘तथ्य’ के Reseller में लिया जाता है या Single ‘निश्चित’ घटना समझा जाता है और फिर उसके औचित्य ढूँढ़े जाते हैं, जबकि Second में साम्प्रदायिकता हिंसा के उद्भव के लिये सहसंबंधों को ढूँढ़ने का प्रयास Reseller जाता है ताकि उसका Single प्रक्रिया के Reseller में अध्ययन Reseller जा सके।

विभिन्न विद्वानों ने साम्प्रदायिक हिंसा की समस्या का विभिन्न परिप्रेक्ष्यों से अध्ययन Reseller है और उसके होने के विभिन्न कारण बताये हैं और उसे रोकने के लिये विभिन्न उपाय सुझाये हैं। माक्र्सवादी विचारधारा साम्प्रदायिकता का संबंध आर्थिक वंचन और बाज़ार की ताकतों पर Singleाधिकार नियंत्रण को प्राप्त करने के लिये धनवान और निर्धन के बीच वर्ग-संघर्ष में बतलाती है। कुछ राजनीतिज्ञ इसे सत्ता का संघर्ष मानते हैं। समाजशास्त्री इसे सामाजिक तनावों और सापेक्षिक वंचनों से उत्पन्न हुर्इ घटना कहते हैं। धार्मिक विशेषज्ञ इसे हिंसक कट्टरवादियों और Accordingकों (conformists) की शक्ति का प्रतीक कहकर पुकारते हैं।

बहुकारक उपागम में दस प्रमुख कारक साम्प्रदायिकता के कारणों के बताये गये हैं (सरोलिया, 1987) ये हैं: सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, कानूनी, मनोवैज्ञानिक, प्रशासनिक, ऐतिहासिक, स्थानीय, और अन्तर्राष्ट्रीय। सामाजिक कारकों में सामाजिक परंपराएं, जाति And वर्ग-अहम् असमानता और धर्म पर आधारित सामाजिक स्तरीकरण सम्मिलित हैं; धार्मिक कारकों में धार्मिक नियमाचारों और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों में गिरावट, संकीर्ण और मतान्ध धार्मिक मूल्य, राजनीतिक लाभों के लिये धर्म का उपयोग और धार्मिक नेताओं की साम्प्रदायिक विचारधारा सम्मिलित है; राजनीतिक कारकों में धर्म पर आधारित राजनीति, धर्म-शासित राजनीतिक संस्थाएं, राजनीतिक हस्तक्षेप, साम्प्रदायिक हिंसा का राजनीतिक औचित्य और राजनीतिक नेतृत्व की असफलता सम्मिलित हैं; आर्थिक कारकों में आर्थिक शोषण और पक्षपात, असन्तुलित आर्थिक विकास, प्रतिस्पर्धा का बाज़ार, अप्रसरणशील (non-expanding) आर्थिक व्यवस्था, श्रमिकों का विस्थापन और कानूनी कारकों में सम्मिलित हैं, समान कानून संहिता, संविधान में कुछ समुदायों के लिये विशेष प्रावधान और रियायतें, कुछ राज्यों को (जैसे काश्मीर) विशेष दर्जा, आरक्षण नीति और विभिन्न समुदायों के लिये विशेष कानून; मनोवैज्ञानिक कारकों में सम्मिलित हैं, सामाजिक पूर्वाग्रह, रूढ़िबद्ध अभिवृत्तियां, अविश्वास, Second समुदाय के प्रति विद्वेष और भावशून्यता, अफवाहें, भय का मानस ;मिंत चेलबीमद्ध और जनसंपर्क के साधनों द्वारा ग़लत जानकारी देना/गलत Means लगाना/अयथार्थ Reseller प्रस्तुत करना; प्रशासनिक कारकों में शामिल हैं, पुलिस और दूसरी प्रशासनिक इकार्इयों में समन्वयन का अभाव, कुसज्जित और कुप्रशिक्षित पुलिस कर्मचारी, गुप्तचर विभागों की अकुशल कार्यप्रणाली, पक्षपाती पुलिस के सिपाही, पुलिस की ज्यादातियां और निष्क्रियता और अकुशल पी0ए0सी0; ऐतिहासिक कारकों में शामिल हैं, विदेशी आक्रमण, धार्मिक संस्थाओं को क्षति, धर्म परिवर्तन के लिये प्रयत्न, उपनिवेशीय Kingों की फूट डालो और राज करो की नीति, विभाजन का मानसिक आघात, पिछले साम्प्रदायिक दंगे, ज़मीन, मंदिर और मस्जिद के पुराने झगड़े; स्थानीय कारकों में सम्मिलित हैं, धार्मिक जुलूस, नारेबाज़ी, अफवाहें, ज़मीन के झगड़े, स्थानीय असामाजिक तत्व और गुटों में प्रतिद्वन्दिता; और अन्तर्राष्ट्रीय कारकों में सम्मिलित हैं; Second देशों द्वारा दिये जा रहे प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता, भारत की Singleता को भंग करने और कम़जोर बनाने के लिये Second देशों द्वारा “ाड्यंत्र रचाना और फिर साम्प्रदायिक संगठनों को समर्थन देना।

सिरिल बर्ट (1944) की तरह हम इन कारकों का चार उपसमूहों में वर्गीकरण कर सकते हैं: अधिकतम स्पष्ट (most conspicuous), प्रमुख सहयोगी (chief cooperating), लघु गंभीर (minor aggravating), और ऊपरी तौर से निष्क्रिय (apparently inoperative)। विशेष Reseller से ये कारक हैं: साम्प्रदायिक राजनीति And धार्मिक कट्टरवादियों को राजनीतिज्ञों का समर्थन, पूर्वाग्रह (जिसके कारण पक्षपात, परिहार) (avoidance), शारीरिक आक्रमण और निर्मूलन होते हैं), साम्प्रदायिक संगठनों का विकास और धर्म परिवर्तन। राम आहूजा मानते हैं कि-

‘‘साम्प्रदायिक हिंसा धार्मिक कट्टरवादियों द्वारा भड़कार्इ जाती है, इसकी पहल असामाजिक तत्वों द्वारा की जाती है, राजनीति में सक्रिय व्यक्ति इसे समर्थन देते हैं, निहित स्वार्थ इसे वित्तीय सहायता प्रदान करते हैं और ये पुलिस और प्रKingों की निर्दयता के कारण फैलती है’’। जबकि साम्प्रदायिक हिंसा प्रत्यक्ष Reseller से इन कारणों के कारण होती है परन्तु वह कारक जो हिंसा को फैलाने में सहायक होता है वह है Single नगर विशेष का पर्यावरणीय खाका (ecological lay-out) जो दंगार्इयों को पकड़ में नहीं आने देता।

सांप्रदायिक हिंसा के सिद्धांत

साम्प्रदायिक हिंसा Single सामूहिक हिंसा है। जब समुदाय के लोगों का Single बड़ा भाग अपने सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति में असफल हो जाता है या यह महसूस करता है कि उनके विरुद्ध भेदभाव हो रहा है और उन्हें समान अवसरों से वंचित रखा जा रहा है, तो उसमें कुण्ठा और मोहभंग की भावनाएं जागृत हो जाती हैं। यह सामूहिक कुण्ठा ख्जिसे फायराबेन्ड्स (Feierabends) और नेसवोल्ड (Nesvold) ने ‘नियमित कुण्ठा’ (Systematic Frustration) कहा है, सामूहिक हिंसा को जन्म देती है। फिर भी समस्त समुदाय हिंSeven्मक विरोध प्रदर्शित नहीं करता। दरअसल में असंतुष्ट व्यक्ति जो सत्ता में होने वाले समूह या सत्ता में होने वाले अभिजनों (जिनके आचरण के विरुद्ध वे विरोध करते हैं) के विरुद्ध जो कार्यक्रम आयोजित करते हैं वह प्राय: अहिंSeven्मक होता है। वह केवल प्रतिवादियों का Single छोटा सा दल ही होता है जो अहिंसा को अप्रभावी मानता है और संघर्ष की सफलता के लिये हिंसा को अत्यावश्यक समझता है। यही गुट अपनी विचारधारा की शक्ति की पुष्टि करने के लिये प्रत्येक अविचारित (precipitating) अवसर का, हिंसा का प्रयोग करने के लिये उपयोग करता है।

यह उप-समूह, जिसका हिंSeven्मक आचरण होता है, समस्त समुदाय या असंतुष्ट व्यक्तियों के समूचे समूह का प्रतिनिधित्व नहीं करता। इस उप-समूह के आचरण का अधिकांशतया समूह के बाकी व्यक्ति साफ-साफ तरीके के समर्थन नहीं करते।

प्रश्न यह उठता है कि ‘कुछ व्यक्तियों का समूह’ किस कारणवश हिंSeven्मक हो जाता है? सामूहिक हिंसा पर महत्वपूर्ण सैद्धान्तिक प्रस्तावों (propositions) में से दो ये हैं: (i) यह उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक प्रतिक्रिया है, और (ii) यह उन नियमाचारों से सामंजस्य रखता है जो इसके उपयोग को समर्थन देते हैं। सिद्धान्तों का दो श्रेणियों में वर्गीकरण हो सकता है: (अ) सामाजिक-मनोवैज्ञानिक विश्लेषण के स्तर पर, और (ब) सामाजिक-सांस्कृतिक या समाज वैज्ञानिक विश्लेषण के स्तर पर। पहली श्रेणी में कुण्ठा-आक्रमण (Motive-Attribution) सिद्धान्त, विकृति (Perversion) सिद्धान्त, अभिप्राय आरोपण (Motive-Attribution) सिद्धान्त, और आत्मनोवृत्ति (self-attitude) सिद्धान्त को सम्मिलित Reseller जा सकता है, जब कि दूसरी श्रेणी में व्यवस्था तनाव (System Tension) सिद्धान्त, व्याधिकी (Anomie) सिद्धान्त, हिंसा की उपसंस्कृति (Sub-culture of violence) का सिद्धान्त और सामाजिक-सीख (Social Learning) सिद्धान्त को सम्मिलित Reseller जा सकता है। अधिकतर समाजशास्त्री मानते हैं कि उपरोक्त सिद्धान्त साम्प्रदायिक दंगों की सामूहिक हिंसा के तथ्य को समझाने में विफल रहे हैं। दो सिद्धान्त जो अधिक ग्राह्य हैं की विवेचना निम्नलिखित है। यह सिद्धान्त राम आहूजा द्वारा विकसित किए गए हैं तथा सामाजिक संCreationत्मक स्थितियों के समाज वैज्ञानिक विश्लेषण पर केन्द्रित हैं।

1. सामाजिक बन्धन का सिद्धांत

जिन परिस्थितियों के कारण सामूहिक साम्प्रदायिक हिंसा होती हैं वे हैं: तनाव, पद की कुण्ठा (status frustration), और विभिन्न प्रकार की संकट-स्थितियां। हिंसा का उपयोग आक्रमक (aggressors) इसलिये करते हैं क्योंकि वे अSafty और चिन्ता से ग्रसित होते हैं। इन भावनाओं और चिन्ताओं की उत्पत्ति उन सामाजिक अवरोधों से होती है जो दमनात्मक सामाजिक व्यवस्थाएं और सत्ताधारी अभिजनों (power elite) द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं। इन (भावनाओं) की उत्पत्ति उस व्यक्ति की पृष्ठिभूमि और पालन-पोषण से भी होती है जिसने उस (व्यक्ति) के लिये कठिनार्इयाँ उत्पन्न की हैं और जो उस (व्यक्ति) के सामाजिक प्रतिमानों और सामाजिक संस्थाओं के प्रति असंगत और अवास्तविक मनोवृत्तियों की प्रवृत्ति को और बिगाड़ देती हैं। यह सिद्धान्त आक्रामक के व्यवहार में तीन कारकों को भी ध्यान में रखता है, Meansात् समायोजन (adjustment) (पद में), लगाव (attachment) (अपने समुदाय के प्रति) और वचनबद्धता (commitment) (मूल्यों के प्रति) और साथ में सामाजिक वातावरण (जिसमें व्यक्ति/आक्रामक रहते हैं) और व्यक्तियों (आक्रामकों) का समाजीकृत व्यक्तित्व। उनका सैद्धान्तिक मॉडल इस प्रकार महत्व देता है सामाजिक व्यवस्था को, आक्रामकों की व्यक्तिगत व्यक्तित्व संCreation को, और समाज के उप-सांस्कृतिक संResellerों को जिनमें व्यक्ति हिंसा का उपयोग करते हैं। सामाजिक व्यवस्था में, उन तनावों और कुण्ठाओं को सम्मिलित करता है जो समाज में सामाजिक संCreationओं (परिवार, मित्र-समूह, समुदाय, आदि) के फलस्वReseller होते हैं। व्यक्तित्व संCreation में, व्यक्तित्व आक्रमकों के समायोजन, लगाव और वचनबद्धता को सम्मिलित करता है; और उप-सांस्कृतिक संResellerों में उन मूल्यों को सम्मिलित करता है जो समाज के नियन्त्रण में Single साधन के Reseller में काम करते हैं।

उनकी धारणा है कि कुसमायोजन (maladjustment), विरक्ति (non-attachment) और अवचनबद्धता (non-commitment) के कारण Single सापेक्षिक वंचना (relative deprivation) की भावना उत्पन्न हो जाती है। सापेक्षिक वंचन का Means है Single समूह की अपेक्षाओं और उसकी क्षमताओं के बीच अनुभव की गर्इ विसंगति (क्षमताओं का Means है व्यक्तियों/समूहों का यह सोचना कि समान अवसर और न्यायसंगत साधन मिलने की दशा में वे भी अपनी अपेक्षाओं को प्राप्त करने या बनाये रखने में सक्षम हैं)। यहां महत्वपूर्ण Word है ‘अनुभव की गर्इ’ (आक्रामकों के द्वारा); इसलिये आचरण के भिन्न Resellerभेद या सापेक्षिक वंचना के कारण सदैव हिंसा नहीं भड़कती।

सापेक्षिक वंचन (Single समूह का) तब होता है जब (i) अपेक्षाएं बढ़ती हैं जब कि क्षमतायें वही रहतीं हैं या उनमें गिरावट आ जाती है या (ii) अपेक्षाएं वही रहती हैं और सक्षमताओं का ह्रास हो जाता है। क्योंकि अपेक्षाएं और सक्षमताएं बोध (perception) पर निर्भर होती हैं इसलिये Single समूह के मूल्यों का महत्वपूर्ण संबंध होता है (अ) कि किस तरीके से वह समूह वंचन का अनुभव करेगा, (ब) वह लक्ष्य जिसको वह (सापेक्षिक वंचन) अपना निशाना बनायेगा, और (स) वह Reseller जिसमें वह उसे प्रदर्शित करेगा। चूंकि प्रत्येक समूह/व्यक्ति भिन्न-भिन्न शक्तियों से प्रभावित होता है इसलिये प्रत्येक समूह/व्यक्ति हिंसा के प्रति या सामूहिक साम्प्रदायिक हिंसा के प्रति अपनी प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यक्त करेगा।

सामाजिक बन्धन सिद्धान्त आवश्यक Reseller से हिंसा का अभिजन-सिद्धान्त नहीं है जहां कि Single छोटा समूह, जो विचारधारा के संदर्भ में बेहतर है, हिंसा को फैलाने में पहल करता है। यह समूह यह निर्णय भी लेता है कि उसका किस प्रकार सम्पूर्ण कुण्ठित समूह (जिसका पक्षधर बनकर वह विरोध को हिंSeven्मक Reseller से मुखर करता है) की भलार्इ के लिये काम में लाया जाये। इसके अतिरिक्त यह छोटा समूह कुण्ठित जनता के व्यापक सामूहिक कार्य पर निर्भर नहीं रहता है।

2. ध्रुवीकरण और गुच्छ समूह के प्रभाव का सिद्धान्त

लगभग Single दशक First Single नर्इ अवधारणात्मक उदाहरण या नमूने (conceptual paradigm) का सृजन भारत में अन्तर (inter) और अन्दरूनी (intra) सामुदायिक हिंसा को समझाने के लिये Reseller गया है। यह उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिक दंगों के आनुभाविक अध्ययन पर आधारित है। यह नमूना तीन धारणाओं पर आधारित है- धु्रवता (polarity), फूट (cleavage), और क्लस्टर अथवा गुच्छ समूह (cluster)। ध्रुवता से तात्पर्य ‘‘सादृश्यता, संबद्धता, संलग्नता, सरोकार और अभिन्नता के ऐसे भाव से हैं जो व्यक्ति किसी विशेष समस्या का सामना करते समय Single Second के प्रति रखते है’’। समस्या धार्मिक, सैद्धान्तिक, राजनीतिक या आर्थिक हो सकती है: ध्रुवीकरण (polarization) ‘‘अभिन्नता और सम्बद्धता की Single ऐसी तीव्र भावना (heightened sense) है जिसके फलस्वReseller व्यक्तियों या समूहों में भावात्मक, मानसिक या भौतिक संचालन हो जाता है जिससे Singleता उत्पन्न होती है।’’ फूट Single ऐसी घटना है जिसके द्वारा Single विशेष स्थान पर जनसंख्या दो विभिन्न ध्रुवों में बँट जाती है जिनके परस्पर-विरोधी, विषमता वाले या प्रतिकूल सिद्धान्त या प्रवृत्तियाँ होती हैं। गुच्छ समूह (cluster) Single ध्रुव वाले व्यक्तियों (polarity) के निवास स्थान के संReseller को बतलाता है जो कि Single विशेष क्षेत्र में Single विशेष समय पर समानता (commonness) प्रदर्शित करते हैं। इस उदाहरण का सृजन (built up) दंगों से First, दंगों के समय, और दंगों के बाद की स्थितियों के तथ्यों के आधार और विभिन्न सामाजिक समूहों (ध्रुवों जो आपस में बैर भाव रखते हैं) के सदस्यों के सामूहिक आचरण के विश्लेषण के आधार पर Reseller गया है। चूंकि साम्प्रदायिक दंगों में दो विरोधी सामाजिक समूह होते हैं इसलिये यह आवश्यक है कि बैर-भाव (जो वास्तव में मनोदशा और मन है), संCreationत्मक प्रेरकता (conclusivencess) (जो वास्तव में भौतिक स्थिति है) और पूर्वाग्रह का सावधानीपूर्वक विश्लेषण Reseller जाये।

व्यक्ति अकेलेपन में कमज़ोर और अWindows Hosting होता है। शक्ति संरक्षण/सम्मेलन/जमाव (assembly), सामूहिकता और समूहों में होती है। Single व्यक्ति अपने लाभ और Safty के लिये उनमें मिल जाता है। समाज में हर समय विभिन्न ध्रुवताएं ;चवसंतपजपमेद्ध विद्यमान होती हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिये ये ध्रुवताएं अन्तर-व्यक्तिगत संबंधों के विषय में सन्दर्भ ;तममितमदबमेद्ध का काम करते हैं। ध्रुवताएं दो प्रकार की होती हैं- स्थार्इ और अस्थार्इ। पहली श्रेणी में सिद्धान्त, धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्र, और लिंग आते हैं। ये ध्रुवताएं व्यक्ति की मूल पहचान बताती हैं जो व्यक्ति के अन्तिम समय तक रहती हैं। दूसरी श्रेणी में व्यवसाय, पेशा, और वे कार्य आते हैं जो निहित स्वार्थों पर आधारित हैं। यद्यपि सामान्यतया ध्रुवताएं आपस में अनन्य (mutually exclusive) नहीं होतीं, परन्तु वे अनन्य उस समय हो जाती हैं जब कि ध्रुवीकरण के फलस्वReseller समाज में जनसंख्या के विवाद और विभाजन की अनुभूति से फूट पड़ जाती हैं। तब जनता सामान्यत: Single अकेली ध्रुवता से Single ही प्रकार से जुड़ जाती है तो वह उस समय पर उस विशेष स्थान पर उस विशेष जनसंख्या की Single प्रमुख ध्रुवता बन जाती है। यह प्रमुख ध्रुवता जनसंख्या के आवास का संReseller निर्धारित करती है, यानी ध्रुवता पर आधारित गुच्छ समूह जनांकिकी आवासीय संReseller (demographic living patterns) को चिन्हित करते हैं। पुराने शहरों और कस्बों में ये गुच्छ समूह धर्म, जाति और सम्प्रदाय पर आधारित होते हैं, परन्तु आधुनिक नगरों में ये वर्गों पर अधिक आधारित होते हैं। जब इस प्रकार के गुच्छ दो भिन्न ध्रुवताओं के कारण बनते हैं (जैसे धर्म/या धार्मिक संप्रदाय) तो वहां झगड़ा होता है।

गुच्छ समूह (क्लस्टर) में रहने की सामाजिक गतिकी (Soical dynamics) यह होती है कि गुच्छ समूह दंगा-प्रवृत्त स्थिति (riot-prone situation) के उभाड़ने में अति प्रेरक सिद्ध होते हैं क्योंकि अन्तर-व्यक्तिगत संबंध बिगड़ जाते हैं और ऐसी उत्तेजनाएं (irritants) उत्पन्न हो जाती हैं जिन्हें Single का Second के प्रति जानबूझ कर Reseller गया अपमान, वंचना (deprivation) और चोट समझा जाता है। ऐसी घटनाएं गुच्छ समूहों के अधिकांश लोगों को अपनी ही ध्रुवता वाली जनसंख्या में सम्पर्क बनाने के लिये प्रोत्साहित करती हैं और यह जन विद्रोह पैदा करने में मदद करती हैं।

नेतृत्व के स्तर पर दिया जाने वाला साम्प्रदायिक आºवान (call) भी ध्रुवीकरण की प्रक्रिया में तेजी लाता है। उदाहरणार्थ, मुस्लिम जनसंख्या को मेरठ में 1982 में शाही इमाम बुख़ारी द्वारा दिये गये भड़काने वाले भाषण से हिन्दुओं में तीव्र प्रतिक्रिया हुर्इ और अपने हितों की रक्षा के लिये उनमें मुसलमानों के विरुद्ध ध्रुवीकरण हो गया जिससे अन्तत: शहर में साम्प्रदायिक दंगा हुआ। उसने इसी प्रकार का भड़काने वाला भाषण 8 अप्रैल, 1988 को अनंतनाग, कश्मीर में दिया और कश्मीरी मुसलमानों को यह कह कर भड़काया कि विभाजन के बाद उन्हें गुलाम बना दिया गया है। उसने बलपूर्वक कहा कि केन्द्र ने उनके लिये बेहतर आर्थिक स्थितियां पैदा नहीं की हैं, उनको अपने अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है, और उनकी समस्याओं की अनदेखी की जा रही है। ध्रुवता के प्रभुत्व (polarity dominance) की प्रकृति पांच कारकों पर निर्भर है: (1) समय और स्थान (यानि कालावधि, क्षेत्र, स्थान और स्थिति या भौगोलिक सीमायें), (2) सामाजिक संCreation (यानि, जाति समुदाय और सामाजिक समूह) (3) शिक्षा (यानि हित के प्रति जागरूकता), (4) आर्थिक स्वार्थ, और (5) नेतृत्व (यानि भावात्मक भाषण, वायदे और नेताओं की नीतियां)।

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