सर टी0 पी0 नन का जीवन परिचय

प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर टी0 पी0 नन का जन्म 1870 में, इंग्लैंड में हुआ था। नन अध्यापकों के परिवार से जुड़े थे। उनके पिता और पितामह ने ब्रिस्टल नामक स्थान पर Single विद्यालय की स्थापना की थी। बाद में इसे वेस्टन-सुपर-मेयर नामक स्थान में स्थानान्तरित कर दिया गया। सोलह वर्ष की आयु से ही टी0 पी0 नन अपने परिवार के इस विद्यालय में अध्यापन में रूचि लेने लगे। 1790 में उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इस तरह से बीस वर्ष की अवस्था में ही विद्यालय की संपूर्ण जिम्मेदारी टी0 पी0 नन के कन्धों पर आ गर्इ। पर अपने को कम वय और अल्प अनुभव का मानकर उन्होंने प्रधानाचार्य का पद स्वीकार नहीं Reseller और लन्दन डे ट्रेनिंग कॉलेज में अध्यापन करने लगे। 1905 में वे इस कॉलेज के उपप्राचार्य बने तथा 1910 में उनकी Appointment लन्दन विश्वविद्यालय में शिक्षाशास्त्र के प्राध्यापक के Reseller में हुर्इ। लन्दन के विश्वविख्यात संस्थान ‘इंस्टीट्यूट ऑफ एडुकेशन’ के निदेशक पद को उन्होंने 1913 से 1936 तक सुशोभित Reseller। वे इस सुप्रसिद्ध संस्थान के संस्थापक निदेशक थे। चौहत्तर वर्ष की अवस्था में, 1944 में सर टी0 पी0 नन का देहान्त हो गया।

 सर टी0 पी0 नन की सर्वाधिक प्रसिद्ध Creation ‘एडुकेशन: इट्स डाटा एण्ड फस्र्ट प्रिन्सिपुल्स’ है। इसमें उन्होंने समाज And राज्य की तुलना में व्यक्ति के महत्व को स्थापित Reseller। वे व्यक्तिवाद (इण्डिविडुवेलिटि) को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हैं पर उनका व्यक्तिवाद उच्छृंखलता या अनियन्त्रित आचरण की अनुमति प्रदान नहीं करता है।

नन का जीवन-दर्शन 

हीगल के कार्य से राज्य की सर्वोच्चता को सैद्धान्तिक आधार मिला। हीगल के आदर्शवाद से प्रशा के मस्तिष्क में राज्य के सर्वोच्च महत्व का भाव आया। राज्य किसी अन्य नैतिक शक्ति को अपने ऊपर नहीं मान सकता, यह खतरनाक विश्वास स्थापित हुआ। इसका सीधा Means था कि प्राथमिक विद्यालय से विश्वविद्यालय जनसामान्य की आत्मा में इन सिद्धान्तों को भरने के साधन के Reseller में कार्य करे।

ब्रिटेन के प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री सर टी0 पी0 नन ने अपनी पुस्तक ‘एडुकेशन: इट्स डाटा एण्ड फस्र्ट प्रिन्सिपुल्स’ में हीगल के विचारों का खण्डन करते हुए व्यक्तिवाद And व्यक्ति की स्वतंत्रता पर अत्यधिक जोर दिया। उन्होंने अपनी पुस्तक में दिखलाया कि हॉब्स के समय से ही इंग्लैंड में व्यक्तिवादी दर्शन की प्रधानता रही है। यद्यपि लेवियाथा के लेखक के अतिरंजित व्यक्तिवाद को नन नहीं मानते पर उन्होंने समाज की जगह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर दिया है।

टी0 पी0 नन ने स्पष्ट Wordों में कहा ‘‘व्यक्ति विशेष (महिला And पुरूष) की स्वतंत्र गतिविधियों से ही Human जगत में अच्छार्इ का प्रवेश होता है तथा शैक्षिक क्रियाओं को इस तथ्य को ध्यान में रखकर संचालित Reseller जाना चाहिए।’’ नन Single ऐसा सिद्धान्त चाहते हैं जो व्यक्ति के महत्व को पुन: स्थापित करे तथा उसके अधिकार को Windows Hosting रखे। नन ने स्पष्ट Wordों में कहा ‘इंडिविडुवेलिटि इज आइडियल ऑफ लाइफ’ यानि ‘वैयक्तिकता जीवन का आदर्श है’। आचार्य रामशकल पाण्डेय इस वाक्य की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ‘‘जीवन अपने में स्वतंत्र है तथा Singleता की ओर सतत् प्रयत्नशील है।’’ जीवन की यह स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है क्योंकि Human अपने इसी स्वतंत्रता के कारण इच्छानुसार कार्य कर पाता है। नन के According मनुष्य पर प्रकृति के नियम लागू होते हैं। Human समस्त वैज्ञानिक खोजों से परे है। वह अभिव्यक्ति के लिए लगातार प्रयासरत रहता है। शिक्षा का कार्य है व्यक्तित्व की पूर्णता में सहायता प्रदान करना। व्यक्तित्व वस्तुत: शरीर और मनस् दोनों की सम्मिलित अभिव्यक्ति है। इस प्रकार नन वाटसन जैसे व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों की सीमा से परे, दर्शन की ओर बढ़ जाते हैं।

नन का शिक्षा-सिद्धान्त 

नन के शिक्षा-सिद्धान्त के केन्द्र में व्यक्ति And उसका व्यक्तित्व है। नन ने सारी शिक्षा प्रक्रिया के वैयक्तिकता के विकास के लिए संचालित करने पर जोर दिया। इसी सिद्धान्त के आधार पर उन्होंने शिक्षा के उद्देश्यों का निर्धारण Reseller।

शिक्षा के उद्देश्य 

सर टी0 पर्सी नन शिक्षा के व्यक्तिगत उद्देश्य को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका यह मानना था कि शिक्षा सबों के लिए ऐसी परिस्थिति का निर्माण करे जिससे व्यक्ति के व्यक्तित्व And वैयक्तिकता का संपूर्ण विकास हो सके। वह उसे विविधता पूर्ण Human जीवन में उन मौलिक योगदानों को पूर्ण And सत्य Reseller से करने दे जो उसकी अपनी प्रकृति संभव बनाती है। योगदान का स्वReseller व्यक्ति विशेष पर छोड़ देना चाहिए।

तात्पर्य यह है कि व्यक्तित्व And वैयक्तिकता के विकास के अतिरिक्त शिक्षा का कोर्इ सार्वभौमिक उद्देश्य नहीं हो सकता है। वास्तव में हर व्यक्ति के लिए शिक्षा का भिन्न उद्देश्य हो सकता है। जितने व्यक्ति उतने आदर्श हो सकते हैं। Meansात् व्यक्तित्व के चरम विकास को संभव बनाना शिक्षा का Only उद्देश्य है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने में परिवार तथा विद्यालय दोनों ही अपनी-अपनी भूमिकायें निभाता है पर बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है उनका दायित्व घटता जाता है। ये दोनों सामाजिक संस्थायें नैतिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तित्व का विकास करती हैं। जिस तरह से उपलब्ध सामग्री को कलाकार बेहतर से बेहतर मूर्ति का Reseller देना चाहता है उसी तरह से माता-पिता And अभिभावक को बच्चे के व्यक्तित्व को सुन्दर Reseller से गढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

नन के According प्रत्येक व्यक्ति को आत्माभिव्यक्ति का अवसर मिलना चाहिए। व्यक्तित्व के आदर्श को समाज में रहकर ही प्राप्त Reseller जा सकता है।

नन ने बच्चे की योग्यता And रूचि के आधार पर ही शिक्षा देने की वकालत की। जैसा कि हमलोग First ही देख चुके हैं कि ‘संसार में कोर्इ भी कल्याणकारी वस्तु किसी व्यक्तिगत स्त्री-पुरूष की स्वतंत्र गतिविधियों के बिना नहीं आ सकती है और शिक्षा की व्यवस्था को इसी सत्य के अनुReseller होनी चाहिए।’ अत: व्यक्तित्व And वैयक्तिकता के चरम विकास को नन ने शिक्षा का सर्वप्रमुख उद्देश्य माना।

शिक्षा के उद्देश्य के निर्धारण में टी0 पी0 नन प्राणिशास्त्र से भी सहायता लेता है। जीवित प्राणियों के संसार में प्रत्येक जीव, प्रजाति अपने आकार And कार्य में पूर्णता की ओर अग्रसर होता है। अत: नन शिक्षा का उद्देश्य ‘प्रकृति के अनुReseller’ निर्धारित करने पर जोर देता है। इसके कारण नन को आलोचकों ने उस पर अत्यधिक प्रकृतिवादी होने का आरोप लगाया। लेकिन इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि यद्यपि उन्होंने जीव विज्ञान का सहारा लिया पर उनके सिद्धान्त का First आधार दर्शन है। नन द्वारा प्रयुक्त व्यक्तिवाद या व्यक्तित्व वस्तुत: उस आदर्श, उस लक्ष्य की ओर इंगित करता है जो अध्यात्मिक पूर्णता की ओर अग्रसर है। प्रत्येक व्यक्ति को इस लक्ष्य को प्राप्त करने का लगातार प्रयत्न करना चाहिए। नन समाजिकता की पूर्णत: उपेक्षा नहीं करता है। उसका कहना है कि आदमी की प्रकृति उतना ही सामाजिक है जितना कि व्यक्तिवादी।

पाठ्यक्रम 

नन पाठ्यक्रम में यद्यपि उपयोगितावादी सिद्धान्त को सही मानते हैं वे बौद्धिक अनुशासन के विचार का विकास करते हैं। पाठ्यक्रम के सिद्धान्त के संदर्भ में उनका कहना है ‘‘Single राष्ट्र के विद्यालय… इसके जीवन का Single अंग है, जिसका विशिष्ट कार्य है उसकी आध्यात्मिक शक्ति को मजबूत करना, उसकी ऐतिहासिक तारतम्यता को बनाये रखना, पिछली सफलताओं को स्थायी बनाना और इसके भविष्य को Windows Hosting करना। अपने विद्यालयों के द्वारा Single राष्ट्र को अपने उन स्रोतों के बारे में चैतन्य होना चाहिए जिससे उस राष्ट्र के जीवन के सर्वोत्तम आन्दोलनों ने हमेशा प्रेरणा ग्रहण की है, अपने सर्वश्रेष्ठ पुत्रों के सपनों में सहभागिता करनी चाहिए, अपने आदर्शों में सुधार करना चाहिए, अपने संवेगों को पुन: जानना चाहिए और पुन: प्रेषित करना चाहिए।’’

विद्यालय को उन Humanीय क्रियाओं को प्रतिबिम्बित करना चाहिए जो विस्तृत विश्व के लिए सर्वाधिक महान और स्थायी महत्व का है, जो Human चेतना की भव्य अभिव्यक्ति हो। इन उद्देश्यों को पूरा करने हेतु नन ने पाठ्यक्रम का निर्धारण Reseller।

Human-क्रियाओं को स्वभावत: दो भागों में विभाजित Reseller जा सकता है। First समूह में वे क्रियायें आती है जो परिस्थितियों को बेहतर बनाती हैं और व्यक्ति And समाज के जीवन स्तर को ऊँचा उठाती हैं, जैसे स्वास्थ्य शिक्षा, शारीरिक सौष्ठव, व्यवहार, सामाजिक संगठन, नैतिकता, धर्म आदि। द्वितीय भाग में वे Creationत्मक कार्य आते हैं जो संस्कृति की ठोस शाखायें हैं। First समूह की क्रियाओं को उसकी प्रकृति के आधार पर विषय नहीं माना जा सकता यद्यपि उन्हें विद्यार्थियों के अध्ययन में समाहित करना चाहिए तथा कुछ हद तक वास्तविक शिक्षण का भाग बनाना चाहिए।’’ उदाहरणार्थ सामाजिक संगठन और धर्म की शिक्षा सम्पूर्ण विद्यालय जीवन में व्याप्त होनी चाहिए तथा धार्मिक भाव की कभी भी कमी नहीं होनी चाहिए।

द्वितीय समूह के क्रियाओं के संदर्भ में नन कहते हैं : ‘‘प्रत्येक पूर्ण शिक्षा योजना में निम्नलिखित विषय होने चाहिए : –

  • साहित्य, जिसमें मातृभूमि का सर्वश्रेष्ठ साहित्य अवश्य हो; 
  •  कला- विशेष Reseller से संगीत जो कि सर्वव्यापी कला है; पपपण् हस्तउद्योग, जिसमें जोर या तो सौन्दर्यात्मक अनुभूति पर हो, जैसे बुनार्इ, सिलार्इ, नक्काशी, अक्षरांकण या इसके निर्माणात्मक पक्ष पर, जैसे काष्ठकला या सूर्इकारी; 
  • विज्ञान, जिसमें गणित के साथ-साथ अंक, स्थल तथा समय का अध्ययन समाहित हो। History और भूगोल को दो स्वReseller में होना चाहिए। पहला, History साहित्य का हिस्सा है, तथा भूगोल विज्ञान का। Second Reseller में, पाठ्यक्रम में इन्हें केन्द्रीय स्थान में होना चाहिए, जिसमें Human की गतिविधि And प्रवृत्तियों को प्रस्तुत Reseller गया हो And उनकी व्याख्या की गर्इ हो। History वर्तमान के ठोस मूल्य को भूतकाल के आधार पर बताता है तथा भूगोल प्रकृति पर मनुष्य को निर्भरता का अहसास कराता है तथा Single Second पर शाश्वत निर्भरता का संदेश देता है। 

शिक्षण-विधि 

नन के According स्कूल का तात्पर्य ऐसा स्थल नहीं है जहाँ कुछ वस्तुओं का मात्र ज्ञान दिया जाय वरन् जहाँ नर्इ पीढ़ी को कुछ गतिविधियों या कार्यों में अनुशासित Reseller जाता है। जैसे गणित को कुछ विशेष सूत्रों, युक्तियों या बाजीगरी तक ही सीमित न रखकर इसे सोचने और करने की विधि के Reseller में उपयोग Reseller जाय। विद्यार्थियों को गणित के परिणामों का ज्ञान देने की जगह उसकी विधि से गुजरने का अनुभव देना चाहिए। जो गणित के संदर्भ में सही है वह All विषयों के संदर्भ में सही है। विषयों के माध्यम से विद्यार्थियों की Creationत्मक क्षमता को धनात्मक विकास मिलता है। विद्यार्थियों को All विषयों में कार्य करने वाला सृजनकर्त्ता के Reseller में कार्य करना चाहिए। उसे अन्वेषण And Creationत्मक कार्य का आनन्द मिलना चाहिए।

डीवी की भाँति नन विद्यालय में कार्यों पर जोर देते हैं। डीवी के According कार्य के चुनाव में मुख्य आधार बच्चा होना चाहिए जबकि नन के According सभ्यता का विस्तृत दृष्टिकोण कार्य के चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। रॉस के According डीवी को इस संदर्भ में प्रकृतिवादी माना जा सकता है क्योंकि वह बच्चे की दृष्टि से प्रारम्भ करता है जबकि नन को आदर्शवादी क्योंकि वह Humanजाति के सम्पूर्ण ज्ञान And सफलताओं से प्रारम्भ करता है।

लेकिन दोनों ही शिक्षा में निष्क्रियता, औपचारिकता And Wordों की संस्कृति के विरोधी हैं।

आदर्शवादी दृष्टिकोण के According शिक्षा विद्यालयी जीवन से परे की भी तैयारी है। नन का आदर्शवादी दृष्टिकोण Single उच्चतर लक्ष्य प्रदान करता है।

नन शिक्षा प्रक्रिया में तीन कालखंड या सोपान देखते हैं- उत्सुकता या आश्चर्य, उपयोगिता तथा व्यवस्था या सिद्धान्त। शिक्षा में इन तीनों सोपानों से गुजरना आवश्यक है। व्यवस्था को रॉस सामान्यीकरण मानते हैं। जिज्ञासा बालमन की स्वभाविक विशेषता है। वह कौतूहल या आश्चर्य के साथ ज्ञान प्राप्ति का प्रयास करता है। भविष्य में वह उन्हीं विषयों का अध्ययन करना चाहता है जो उसे जीवन में उपयोगी या लाभदायक लगता है। आगे उन्हीं विषयों के सिद्धान्तों या तंत्रों से काम करता है। नन के सिद्धान्त के According किशोरावस्था में उपयोगी विषयों को क्रियाओं के Reseller में प्रस्तुत करना चाहिए। अमूर्त्त शिक्षा उपयोगी न होने के कारण बेकार है। किशोरावस्था शिक्षा की दृष्टि से जीवन का महत्वपूर्ण काल-खंड है।

अनुशासन And दण्ड 

टी0 पी0 नन व्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक थे। वे इस स्वतंत्रता की नींव बाल्यकाल से ही रखना चाहते थे। उनकी दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य नकारात्मक नहीं है। शिक्षा का कार्य सक्रियता के साथ विद्याथ्र्ाी को स्वतंत्रता के लिए प्रोत्साहित करना है। विद्यालय में नियम इसलिए होते हैं कि शैक्षिक प्रक्रिया का सही ढ़ंग से संचालन हो सके। नन की अनुशासन की संकल्पना आन्तरिक है, बाह्य नहीं। यह आवेगों तथा शक्तियों के नियन्त्रण द्वारा आती है। अनुशासन से कार्यकुशलता में अत्यधिक वृद्धि होती है। अनुशासन का सर्वश्रेष्ठ Reseller है आत्म-अनुशासन जो व्यक्तित्व के पूर्ण विकास तथा आत्माभिव्यक्ति का परिचायक है।

नन शारीरिक दण्ड के पक्षधर नहीं हैं। पर वे यह भी मानते हैं कि अगर अच्छे उद्देश्य के साथ दण्ड दिया जाय तो उसे स्वीकार Reseller जा सकता है। इससे गलत प्रश्वत्तियों को सही दिशा में ले जाने में सहायता मिल सकती है। स्कूल की व्यवस्था बनाए रखने हेतु दंड की व्यवस्था हो सकती है पर इसके लिए सबों की स्वीकृति होनी चाहिए। नन के According ‘‘दण्ड असन्तोषजनक भूतकाल का नहीं वरन् आशापूर्ण भविष्य का परिचायक है।’’

विद्यालय Single आदर्श समाज है जहाँ सहयोग तथा खेल आत्म अनुशासन की भावना का विकास करते हैं। नन ने शिक्षा में कायोर्ं पर अत्यधिक जोर दिया। बिना अनुशासन के कार्य का सही सम्पादन संभव नहीं है। शिक्षा का बँधा पाठ्यक्रम तथा विद्यालय का कठोर अनुशासन वस्तुत: अनुशासनहीनता को जन्म देता है। वस्तुत: अधिक स्वतंत्रता के द्वारा ही विद्यार्थियों में आत्मप्रेरित अनुशासन का भाव विकसित हो सकता है।

अध्यापक के उच्चतर विवेक के प्रति छात्र समर्पण करता है। लेकिन अध्यापक उस दिन के लिए काम करता है जब वे उसके सहपाठी बन जाते हैं और वे उसके द्वारा स्वीकृत Human जाति के सर्वोत्तम And विस्तृत अनुभव के द्वारा स्वीकृत आदर्शों के सहभागी बन जाते हैं। जब इस तरह के आदर्श व्यवहार में आ जाते हैं, प्रभाव के द्वारा अनुशासन सही आत्म-अनुशासन बन जाता है तथा चरित्र सुगठित हो जाता है।

अध्यापक 

टी0 पी0 नन ने पुरानी अधिनायकवादी व्यवस्था की जगह प्रजातांत्रिक व्यवस्था पर जोर दिया है। उनके According अध्यापक अपने लघु लोकतांत्रिक राज्य का स्थायी अध्यक्ष है जो नागरिक के कर्त्तव्यों का पालन अधिक निष्ठा और लगन से करेगा क्योंकि उसका स्थान उसे काफी शक्ति प्रदान करता है।

नन शिक्षा में सुझावों का उपयोग स्वीकार करते हैं और कहते हैं कि अध्यापक ‘‘अपने उच्च ज्ञान And अनुभव को सामान्य निधि में डाल दे जिससे उसके लघु समुदाय के विकसित होता मस्तिष्क अपनी Needनुसार चीजों को ग्रहण कर सके।’’ Meansात् विद्याथ्र्ाी को अपने व्यक्तित्व के विकास में अध्यापक से सहायता मिलनी चाहिए। अध्यापक का यह कार्य नहीं है कि वे बच्चे पर विभिन्न तरह के प्रतिबन्धों को लगाकर उसके विकास को अवरोधित करे। नन की दृष्टि में अध्यापक विद्यालयी Resellerी प्रजातांत्रिक समाज का नेतृत्व करता है अत: उसे अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए बच्चे का विकास करना है।

नन के According शिक्षक को बाल-मनोविज्ञान का ज्ञान होना चाहिए तथा विकास की प्रक्रिया से अवगत होना चाहिए ताकि वह इस के अनुReseller शैक्षिक कार्यक्रमों को बना सके। बालक को पूर्णत: प्रवृत्तियों के आधार पर छोड़ना अनुचित है। उसे समाज की बदलती आकांक्षाओं को भी ध्यान में रखना होता है। शिक्षक विद्याथ्र्ाी पर अपनी इच्छाओं को नहीं थोप सकता। विद्याथ्र्ाी की रूचि, Need तथा योग्यता के आधार पर ही उसे स्वतंत्र वातावरण में समाजोन्मुखी शिक्षा दी जानी चाहिए। नन की दृष्टि में यही प्राकृतिक नियमों के अनुकूल है और ऐसी शिक्षा देकर अध्यापक अपने कर्तव्यों का सही ढ़ंग से निर्वहन कर सकता है।

विद्यालय तथा समाज 

नन विद्यालय को Single विशिष्ट समाज मानते हैं पर उसे समाज से बिल्कुल अलग नहीं मानते। विद्यालय Resellerी समाज में दमन की जगह स्वतंत्रता का वातावरण होना चाहिए। विद्यार्थियों और अध्यापकों को स्वस्थ जीवन व्यतीत करते हुए रूढ़ियों की जगह सार्वभौमिक तथा विश्वव्यापी आदर्शों को प्राप्त करने का लक्ष्य रखना चाहिए। जैसा कि हम देख चुके हैं, नन का मानना है कि ‘‘विद्यालय समाज का अंग है जिसका विशिष्ट कार्य समाज की अध् यात्मिक शक्ति को दृढ़ करना, उसके ऐतिहासिक क्रम को बनाए रखना, विगत में प्राप्त उपलब्धियों को Windows Hosting रखना तथा उसके भविष्य को उज्ज्वल बनाना है।’’ नागरिकता की शिक्षा देना विद्यालय का महत्वपूर्ण कार्य है। इससे व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक दायित्वों का भी सफलतापूर्वक निर्वहन करता है। साथ ही विद्यालय का यह भी दायित्व है कि वह बच्चे को कार्य करने की स्वतंत्रता दे।

Human सदैव नवीन बातो को ही पसन्द नहीं करता है। वह अपनी जाति और समाज की पुरानी बातों को दुहराया करता है। इस दुहराने की प्रवृत्ति का उपयोग शिक्षक कर सकता है। कुछ विषयों में याद करना आवश्यक सा हो जाता है पर हर ज्ञान या विषय के संदर्भ में यह उचित नहीं कहा जा सकता है। दुहराने की प्रवृत्ति समाज में भी है। प्रतिवर्ष उत्सव का मनाया जाना संस्कृति की समृद्धि का परिचायक है।

खेल तथा अनुकरण 

टी0 पी0 नन बालक के लिए खेल को Single महत्वपूर्ण क्रिया मानते हैं। बाल्यावस्था खेल का विशेष काल है तथा खेल आत्म प्रदर्शन का Reseller है। खेल बिना किसी बाह्य दबाव के खेला जाता है तथा इसकी क्रिया स्वयं आनन्ददायक होती है जबकि कार्य में बाहरी दबाव होता है और सफलतापूर्वक कार्य की समाप्ति पर ही उससे आनन्द प्राप्त होता है। खेल मे बालक थोड़े समय के लिए यथार्थ की अवहेलना कर कल्पनाजगत में कार्य करता है। स्कूल की नीरस शिक्षण व्यवस्था में बालमन की कल्पना शक्ति का उपयोग Reseller जाना चाहिए। खेल में जिस तरह बच्चे की रूचि होती है उसी तरह की रूचि कार्य में भी हो सकती है- अगर कार्य को भी खेल के Reseller में ही लिया जाय। इस प्रकार शिक्षा में खेल के उपयोग का नन जोरदार समर्थन करते हैं।

टी0 पी0 नन के According बालक में अनुकरण की स्वभाविक प्रवृत्ति होती है तथा इससे मौलिकता भी प्रभावित नहीं होती है। अत: अध्यापक का कार्य And व्यवहार इस तरह का होना चाहिए कि बच्चे उनका अनुकरण कर श्रेष्ठ मूल्यों And स्वस्थ जीवन पद्धति को अपना सकें। इससे बच्चे में अनुशासन की भावना का विकास हो सकता है तथा अच्छी आदतों को डाला जा सकता है। साथ ही स्कूल Resellerी प्रजातांत्रिक समाज का वरिष्ठतम नागरिक होने के नाते अध्यापक विद्यार्थियों को सही सलाह दे सकता है। इसका प्रभाव उनके कार्यों पर पड़ता है।

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