सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के कारण, लक्षण And वैकल्पिक चिकित्सा

हमारी रीढ का निर्माण छोटी छोटी विशेष आकार And संCreation की अस्थियों जिन्हे कशेरुका (Vertebra) कहा जाता है, के मिलने से होता है। इन कशेरुकाओं की कुल संख्या 26 होती है। इनमें से ऊपर की (सिर की और की) First Seven कशेरुकाओं को सर्वाइकल की संज्ञा दी जाती हैं। जिन्हे अग्रेंजी भाषा के अक्षर सी-1 से लेकर सी-7 तक से प्रर्दशित Reseller जाता है। रीढ की इन सी-1 से लेकर सी-7 तक की कशेरुकाओं के मूल स्थान, आकृति अथवा संCreation में विकृति ही सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (Cervical ) नामक रोग के नाम से जाना जाता हैं।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के कारण

शरीर की गलत मुद्रा अपनाकर कार्य करने से रीढ की उपरोक्त कशेरुकाओं पर नकारात्मक प्रभाव पडता है तथा यह रोग उत्पन्न होता है। इसी प्रकार लम्बे समय तक झुककर बैठने से भी यह रोग उत्प्पन्न होता है। टेढे-मेढे होकर सोने, अधिक गहरे व लचीले गद्दों पर सोने And सोते समय मोटे तकिये को सिराहने के रुप में प्रयोग करने की आदत भी इस रोग को जन्म देती है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग के कुछ प्रमुख And महत्वपूर्ण कारण इस प्रकार है-

  1. सोने में मोटा तReseller अथवा अधिक मोटे फोम के गद्दों का प्रयोग करना (Older Age) : बिना तReseller के प्रयोग किए हुए सीधे तक्त पर सोने से रीढ And मस्तिष्क से निकलने वाली तंत्रिकाएं अपनी सही स्थिति में रहती हैं किन्तु इसके विपरित सोने में अधिक मोटे तReseller का प्रयोग करने तथा मोटे, गहरे फोम अथवा डनलफ के गद्दों का प्रयोग करने से रीढ की कशेरुकाओं की स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पडता है, इसके साथ साथ मस्तिष्क से निकलने वाली तंत्रिकाएं पर भी कशेरुकाओं का अतिरिक्त दबाव पडने लगता है। इससे प्रारम्भ में गर्दन दर्द And सिर दर्द प्रारम्भ होता है जो आगे चलकर रोग का रुप ग्रहण कर लेता है।
  2. गलत शारीरिक मुद्राएं ( Wrong body Postuer) : Human शरीर र्इश्वर की Single ऐसी अद्भुत कृति है जो आज भी वैज्ञानिकों की समझ से परे है। इसके अतिरिक्त संसार के अन्य प्राणियों से भिन्न दो पैरों पर खडे होकर चलने And कार्य करने की विलक्षण प्रतिभा भी परमात्मा ने मनुष्य को ही प्रदान की है। वैज्ञानिक अथक प्रयासों के बाद भी आज तक Human शरीर के जैसा नमूना नही बना पाएं हैं। इस शरीर को सही प्रकार प्रयोग करने Meansात इसके द्वारा कार्य करने से यह लम्बे समय तक कार्य करने में सक्ष्म बना रहता है किन्तु इस शरीर को गलत मुद्रा में रखकर कार्य करने से इसमें विकार Meansात रोग उत्पन्न होने लगते है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की उत्पत्ति में भी शरीर की गलत मुद्राएं Single महत्वपूर्ण कारण हैं। झुककर बैठने, झुककर खडा रहने, कमर झुकाकर पढने, टी0वी0 देखने अथवा कम्पयूटर आदि पर कार्य करने से And कन्धें के सहारे मोबार्इल फोन रखकर लम्बे समय तक बात करने के कारण सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग रोग उत्पन्न होता है। गलत मुद्रा में सिर पर अधिक वजन उठाकर चलने अथवा Single हाथ से अधिक वजन उठाने का रीढ की कशेरुकाओं पर दुष्प्रभाव पडता है और इस रोग की संभावना बढ जाती है। प्रतिदिन काफी अधिक समय तक लेटकर टी0बी0 देखने अथवा पत्र-पत्रिकाओं को पढने से भी जन्म लेता है। इस प्रकार शरीर की गलत मुद्राएं इस रोग की उत्पत्ति के महत्वपूर्ण कारण हैं। 
  3. अनियमित दिनचर्या ( Inactive or Sedentory life style) : रात्रि में देर तक जागना, सुबह देरी तक सोने की अनियमित दिनचर्या से शरीर की अस्थियों (रीढ की कशेरुकाओं ) में कडापन आता है। इसके अतिरिक्त असमय पर पोषक तत्वों से विहीन आहार करने से भी रीढ And शरीर की तंत्रिकाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है जिससे इस रोग के उत्पन्न होने की संभावना बढती है। दिनचर्या में श्रम का पूर्ण अभाव अथवा Single स्थान पर अधिक समय तक Single मुद्रा में बैठकर कार्य करने से भी इस रोग की संम्भावना बढ जाती है। 
  4. अत्यधिक श्रम And विश्राम का अभाव ( More hard work without taking rest) : अत्यधिक शारीरिक श्रम करने से रीढ की कशेरुकाओं में कडापन बढता है तथा बीच में विश्राम नही करने के कारण रीढ के आकार में विकृति उत्पन्न होने लगती है जो आगे चलकर सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग को जन्म देता है। 
  5. रीढ में झटका अथवा चोट लगना (Jerk or injury of spine) : चलते समय ठोकर लगने के कारण अथवा गाडी में सफर करते समय रीढ में अचानक झटका लगने के कारण भी यह रोग उत्पन्न होता है। किसी कार्य करते समय बार बार रीढ में चोट लगने के कारण भी सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग पैदा होता है।
  6. काम का अधिक बोझ And तनाव (Work load and Stress) : काम का अधिक बोझ And तनाव इस रोग की उत्पत्ति के महत्वपूर्ण कारण हैं। अधिक काम का बोझ, अधिक समय तक की लम्बी ड्रार्इविंग से यह रोग जन्म लेता है। इसके अतिक्ति मानसिक तनाव से भी यह रोग बढता है। 
  7. र्दुव्यसन ( bad habbits) : धूम्रपान करने की आदत अथवा एल्कोहल सेवन करने से अस्थियों पर नकारात्मक प्रभाव पडता है, जिसके कारण इस रोग की संम्भावना बढ जाती है। अधिक समय तक धूम्रपान हड्डियों को कमजोर बनाता है जिसके कारण कमर दर्द And सर्वाइकल दर्द की संभावना बढ जाती है। इसी प्रकार तम्बाकू, गुटका, पान मसाले के सेवन से भी यह रोग उत्पन्न होता है। 
  8. बढती उम्र (Age Factor) : Human शरीर Single प्रकार का उपकरण ही है जिस पर समय का प्रभाव पडना स्वाभाविक ही है। जिस प्रकार लगातार कार्य करते रहने से पुराना होकर उपकरण कमजोर हो जाता है, ठीक उसी प्रकार लगातार कार्य करते रहने के कारण इस शरीर रुपी उपकरण में भी विकृतियां उत्पन्न होती हैं। इन विकृतियों में ही Single विकृति सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग है जिसमें रीढ की अस्थियों के जोडों के मध्य उपस्थित गद्दियां घिस जाती हैं और गर्दन में ऐठन व दर्द उत्पन्न होने लगता है इसीलिए 40 वर्ष की आयु के उपरान्त इस रोग की संभावना बढ जाती है। 
  9. यौगिक क्रिया नही करने के कारण ( No Practice of Yoga) : यौगिक क्रियाएं जैसे “ाट्कर्म, आसन, मुद्रा-बंध, प्राणायाम And ध्यान आदि नही करने के कारण शरीर में Single और जहां वात, पित्त And कफ दोंषों की विषमता बढती है वहीं दूसरी और शरीर की अस्थियों Meansात रीढ की कशेरुकाओं में भी कडापन आता है। इसके साथ साथ रीढ की कशेरुकाओं की चाल (Movement) कम होता है। रीढ की इन कशेरुकाओं में लचीलापन के स्थान पर कडापन होने And चाल कम के कारण सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग उत्पन्न होता है। 
  10. अनुवांशिक And जन्मजात कारण (Genetic or Heritable Factor) : परिवार के अन्य सदस्यों के सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग से ग्रस्त होने पर आगे की पीढी में भी रोग की संभावना अधिक हो जाती है। इसके साथ साथ जन्मजात कारक अथवा सिण्ड्रोम (Down Syndrome, Cerebral palsy, Congenital fused spine) भी सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग को उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस प्रकार उपरोक्त दस महत्वपूर्ण कारणों में से किसी Single अथवा अधिक के कारण शरीर सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग से ग्रस्त हो जाता हैै किन्तु अब यह प्रश्न आता है कि यह कैसे पहचाना जाए कि यह व्यक्ति सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग से ग्रस्त है ? अथवा Second Wordों में इस रोग से ग्रस्त होने पर शरीर में क्या क्या लक्षण प्रकट होते हैं ? अत: अब हम सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग के लक्षणों And आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में होने वाली जाँचों ( Diagnosis) पर विचार करते हैं –

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग के लक्षण

शोध अनुसन्धान में यह तथ्य स्पष्ट होता है कि सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग से ग्रस्त रोगियों की संख्या महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक होती है Meansात यह रोग महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक पाया जाता है जिसके शरीर में लक्षण प्रकट होते हैं –

  1. गर्दन में त्रीव वेदना And जकडन के साथ गर्दन का जाम हो जाना : गर्दन में त्रीव वेदना And जकडन के साथ गर्दन का जाम होना इस रोग का वह मूल लक्षण है जिसके आधार पर इस रोग जाना And पहचाना जाता है। रोग से ग्रस्त रोगी की गर्दन में ऐसी त्रीव वेदना होती है जिस पर दर्दनिवारक दवार्इयों का प्रयोग प्रभावहीन सिद्ध होता है। इसके साथ साथ गर्दन में जकडन गंभीर रुप धारण करने लगती है जिस कारण गर्दन का दायें और बांए घूमना बंद सा हो जाता है। रोगी व्यक्ति गर्दन को पूर्ण रुप से सीधी रखने पर ही कुछ आराम की अनुभूति करता है और इसीलिए वह अपनी गर्दन को असामान्य रुप से सीधी अवस्था में रखने का प्रयास करता है। सोने के उपरान्त रोगी के गर्दन में जकडन और अधिक बढ जाती है।
  2. इन्द्रिय बोध कम होना : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग मस्तिष्क से आने वाली तन्त्रिकाओं पर दबाव आ जाता है जिसके कारण रोगी को इन्द्रिय ज्ञान अथवा इन्द्रिय ज्ञान कम हो जाता है। इसके साथ साथ तंत्रिकाओं में कमजोरी तथा सनसनी होना भी इस रोग के लक्षण हैं। इस रोग से ग्रस्त रोगी को हाथ से लिखनें में भी कठिनार्इ का अनुभव होने लगता है। 
  3. कन्धों में दर्द और जकडन के साथ हाथों व अंगुलियों में सुन्नपन होना : बिना कोर्इ चोट लगे कन्धों And हाथों में दर्द And भारीपन होना सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग के लक्षण हैं। इस रोग में कन्धों में दर्द And जकडन हाथों की और बढने लगती है। यदि रोगावस्था लम्बे समय तक बनी रहें तो हाथों में जकडन बढती हुर्इ की अंगुलियों में सुन्नपन आने लगता है। 
  4. कमर दर्द के साथ आगे को झुकने में त्रीव दर्द होना : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को कमर में दर्द रहता है और आगे की और झुकने में यह दर्द बढने लगता है। आगे की और झुककर कार्य करने अथवा गलत मुद्रा में कार्य करने यह दर्द और अधिक त्रीव और असहनीय हो जाता है।
  5. आंखों के सामने अंधेरा छाते हुए चक्कर आना And सिर दर्द रहना : चूंकि इस रोग में मस्तिष्क से आने वाली नाडी पर दबाव आ जाता है जिसके कारण रोगी की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगता है और रोगी को चक्कर आने लगते हैं। इस रोग में रोगी के सिर में दर्द रहना प्रारम्भ हो जाता है 
  6. गर्दन दर्द के कारण अनिन्द्रा उत्पन्न होना : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को प्रतिक्षण गर्दन में त्रीव वेदना रहती है जिसके कारण अनिन्द्रा रोग उत्पन्न हो जाता है। गर्दन दर्द के कारण रोग से पिडित व्यक्ति शारीरिक श्रम करने में असमर्थ हो जाता है तथा अधिक समय तक बिस्तर में लेटे रहने से उसे बैचेनी और अनिन्द्रा दोनों ही मानसिक व्याधियां घेर लेती हैं। 

यद्यपि उपरोक्त लक्षणों के आधार पर भी सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की पहचान की जा सकती है किन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इस रोग की जॉच निम्न परीक्षणों के आधार पर की जाती है-

  1. गर्दन का X- ray : इसमें गर्दन पर X- ray : डाली जाती है जिसके द्वारा गर्दन की कशेरुकाओं की स्थिति स्पष्ट की जाती है। कशेरुकाओं में उभरे हुए उकसान स्पोन्डिलाइटिस रोग को प्रर्दशित करतें हैं।
  2. M.R.I. ( Magnetic Resonance Imaging): X- तंल की तुलना में M.R.I. के द्वारा रोग की स्थिति अधिक स्पष्ट हो जाती है। इस प्रविधि में कशेरुकाओं की स्थिति And तंत्रिकाओं की स्थिति और अधिक स्पष्ट हो जाती है तथा यह भी पता चल जाता है कि नाडियों पर दबाव पड रहा है अथवा नही। 
  3. E.M.G. ( Electromyelography): E.M.G. के द्वारा यह स्पष्ट Reseller जाता है कि तंत्रिकाओं अथवा नाडियों को कितनी हानि पहुॅची है। 
  4. C.T. Scan: कम्प्यूटराइज टोमोग्राफी स्केन द्वारा गर्दन की छवि लेकर रोग को स्पष्ट Reseller जाता है। 

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग सें सम्बन्धित उपरोक्त तथ्यों को जानने And समझाने के बाद अब आपके मन में निष्चित ही इस रोग की चिकित्सा को जानने की जिज्ञासा अवश्य ही उत्पन्न हुर्इ होगी। इस रोग में प्राय: रोगी दर्दनिवारक दवार्इयों का सेवन करता है किन्तु रोगी के दर्द में इन दवार्इयों से कोर्इ प्रभाव नही पडता है अपितु इस रोग में वैकल्पिक चिकित्सा द्वारा रोगी का चिरकालिक अथवा स्थार्इ लाभ प्राप्त होता है अत: अब सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की वैकल्पिक चिकित्सा पर विचार करते हैं –

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस की वैकल्पिक चिकित्सा

1. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की योग चिकित्सा

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग में योग चिकित्सा अत्यन्त प्रभावी सिद्ध होती है। इसमें यौगिक क्रियाओं जैसे षट्कर्म, आसन, मुद्रा बन्ध, प्रत्याहार, प्राणायाम, ध्यान And समाधि के द्वारा रोग का उपचार Reseller जाता है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की योग चिकित्सा इस प्रकार है –

  1. षट्कर्म का प्रभाव : यद्यपि षट्कर्मों की छह क्रियाओं का इस रोग पर प्रत्यक्ष प्रभाव नही पडता है किन्तु धौति, बस्ति, नेति, नौली, त्राटक And कपालभाति नामक षट्कर्मों का रोग की स्थिति And रोगी की क्षमतानुसार अभ्यास कराने से रोगी के शरीर का शोधन अवश्य होता है। जिसके परिणाम स्वरुप शरीर में हल्कापन आता है और रोग की त्रीवता कम होती है। 
  2. आसन का प्रभाव : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग अस्थि संस्थान से जुडा रोग है जिसे दूर करने में आसनों का अभ्यास Single महत्वपूर्ण भूमिका का वहन करता है। इस रोग से ग्रस्त रोगी को आसनों का अभ्यास बहुत धीरे धीरे And अत्यन्त सावधानीपूर्वक कराना चाहिए। विशेष रुप से रोगावस्था मे गर्दन को आगे की और झुकाने वाले अभ्यासों (Foreward bending) को पूर्णतया निषेध रखना चाहिए इसके अतिरिक्त रोग की त्रीव अवस्था में रोगी को कठिन आसनों के स्थान पर हल्के सुक्ष्म अभ्यास ही कराने चाहिए। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को सन्धि संचालन के सुक्ष्म अभ्यासों से प्रारम्भ कराते हुए धीरे धीरे आसनों का अभ्यास कराना चाहिए। रोगी को प्रमुख रुप से गर्दन And कन्धों व हाथों को गतिशील बनाने वाले सन्धि संचालन के सुक्ष्म अभ्यासों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। रोगी को यह अभ्यास नियमित रुप से प्रात: और सांयकाल दोनों समय कराने से रोग में लाभ प्राप्त होता है। रोग की त्रीवता कम होने पर रोगी को आसनों के क्रम पर लाते हुए अभ्यासों से ही करना चाहिए। रोगी को सर्पासन, भुजँगासन, मकारासन, मरकटासन, शलभासन, धनुरासन, मत्स्यासन, उष्ट्रासन, अर्द्धचन्द्रासन And शवासन आदि इस प्रकार के आसनों का अभ्यास कराना चाहिए जिनसे मेरुदण्ड में लचीलापन उत्पन्न हो। रोगी को नियमित रुप से मरकटासन के अलग अलग प्रकारों का अभ्यास रोगी को नियमित रुप से कराने से रोग में लाभ मिलता है। इन आसनों के साथ साथ प्रत्येक आसन में शवासन And योग निन्द्रा का अभ्यास कराने से भी रोग में लाभ प्राप्त होता है। 
  3. मुद्रा And बन्ध का प्रभाव : मुद्राओं And बन्धों का अभ्यास कराने से रोगी के शरीर में प्राण तत्व का विस्तार होता है And अस्थियां व माँसपेशियां मजबूत बनती हैं। अत: रोगी को उसकी स्थितिनुसार बन्धों And काकी, शाम्भवी व महामुद्राओं आदि मुद्राओं का अभ्यास कराना चाहिए। 
  4. प्रत्याहार का प्रभाव : इन्द्रिय संयम के साथ साथ अनुशासन पालन करने से रोग समूल Destroy होता है। प्रत्याहार पालन के अन्र्तगत रोगी अपनी इन्द्रियों पर संयम करते हुए खानपान And बुरी आदतों पर नियंत्रण करता है जिससे रोग स्वत: ही ठीक होने लगता है।
  5. प्राणायाम का प्रभाव : रोगी को नाडी शोधन, अनुलोम विलोम, उज्जायी And भ्रामरी आदि प्राणायामों का नियमित अभ्यास कराने से लाभ मिलता है। प्राणायाम का अभ्यास कराने से मेरुदण्ड And अन्य सम्बन्धित नाडियों में प्राण तत्व का विस्तार होता है जिससे रोग दूर होता है। 
  6. ध्यान And समाधि का प्रभाव : ध्यान And समाधि के अन्र्तगत रोगी अपने मन से नकारात्मक विचारों And भावों को दूर करता हुआ सकारात्मक विचारों And भावों का चिन्तन करता है जिसका रोग पर सीधा प्रभाव पडता है। सर्मपण भाव, दृढ इच्छाशक्ति And शुभ संकल्पों को धारण से रोगी की आन्तरिक प्रतिरोधक क्षमता And जीवनी शक्ति तेजी से विकसित होती है जिससे यह रोग समूल Destroy होता है।

इस प्रकार योग चिकित्सा के द्वारा सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग का दुष्प्रभावरहित उपचार Reseller जाता है। इसके साथ साथ प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा भी इस रोग भी इस रोग में प्रभावी रुप से कार्य करती है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की प्राकृतिक चिकित्सा इस प्रकार है –

2. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की प्राकृतिक चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्व का प्रयोग निम्न लिखित रुप से करने से रोगी को लाभ प्राप्त होता है-

  1. मिट्टी तत्व चिकित्सा : रोगी को पेट के साथ साथ गीली मिट्टी की पट्टी देने से पेट का शोधन होता हैं। जिससे शरीर में वात दोष शान्त होता है And वात व्याधियां दूर होती हैं। इस रोग में रीढ पर गर्म मिट्टी की पट्टी का प्रयोग करने से दर्द में आराम मिलता है। 
  2. जल तत्व चिकित्सा : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग में जल तत्व का प्रयोग विशेष लाभ प्रदान करता है। रोग की त्रीवावस्था में गर्म जल से सिकार्इ (रबर की बोतल में गर्म जल भरकर) करने से रोगी को दर्द में शीघ्र लाभ मिलता है। रोगी को सम्पूर्ण शरीर का भाप स्नान देने के अतिरिक्त नियमित रुप से स्थानीय भाप (कमर And कन्धों पर) रोग में स्थार्इ लाभ प्राप्त होता है। इस रोग में गर्म बाह स्नान (Hot Arm Bath) भी लाभकारी प्रभाव रखता है। रोगी को वात दोष का शमन करने वाले औषध गुणों से युक्त द्रव्यों से एनीमा देने से भी रोग में लाभ मिलता है।
  3. अग्नि तत्व चिकित्सा : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को Ultra site स्नान देने से रोग में लाभ मिलता है। इसके साथ साथ नारंगी रंग की बोतल में आवेशित जल का सेवन रोगी को कराने And लाल अथवा नारंगी रंग के प्रकाश अस्थियों पर डालने से रोग ठीक होता है।
  4. वायु तत्व चिकित्सा : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग अत्यन्त सावधानीपूर्वक हल्के हाथों से मालिश करने से तुरन्त आराम मिलता है किन्तु यहाँ पर अत्यन्त महत्वपूर्ण ध्यान देने का तथ्य यह है कि रोगी को गहरी अथवा अवैज्ञानिक रुप से मालिश करने से रोगी के दर्द तुरन्त बहुत अधिक बढ जाता है। 
  5. आकाश तत्व चिकित्सा : सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को छोटे उपवास अथवा कल्प कराने से रोग में लाभ मिलता है। इसके साथ साथ प्रार्थना And सकारात्मक भावों से रोग समूल दूर होता है।

इस प्रकार प्राकृतिक चिकित्सा से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को लाभ प्राप्त होता है। अब वैकल्पिक चिकित्सा के अन्र्तगत आयुर्वेद चिकित्सा पर विचार करते हैं –

3. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की आयुर्वेद चिकित्सा

आयुर्वेद शास्त्र में सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को शिलाजीत, चन्द्रप्रभावटी And त्रियोदषाम गुग्गुल नामक औषधियों के सेवन का निर्देश दिया जाता है। सामान्य रुप से सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में पीसी हल्दी का चूर्ण And सौंठ समान मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन कराने से दर्द And रोग में लाभ प्राप्त होता है।

रोगी को अत्यन्त सावधानीपूर्वक बहुत हल्के हाथों से And वैज्ञानिक ढंग से महानारायण तेल से मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है। किन्तु रोगी को गहरी अथवा अवैज्ञानिक ढंग से मालिश करने से दर्द तुरन्त And तेजी से बढ जाता है। त्रिफला चूर्ण का सेवन कराने से भी सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को लाभ प्राप्त होता है। रोगी को रात्रिकाल में Single चम्मच चूर्ण गुनगुने दूध के साथ अथवा प्रात:काल खाली पेट Single चम्मच चूर्ण गर्म पानी के साथ सेवन कराना चाहिए। रोगी को एलोविरा के जूस का सेवन भी लाभकारी होता है। रोगी को चार चार चम्मच जूस प्रात:-सांय दोनों समय पिलाने से रोग में आराम मिलता है।

4. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोग की आहार चिकित्सा 

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को आहार पर विशेष नियंत्रण रखने की आवश्यक्ता होती है। रोगी को शुद्ध Seven्विक हल्का And सुपाच्य आहार देने से शरीर की पूरी जीवनी शक्ति रोग को दूर करने में लग जाती है जिससे रोग शीघ्रता से दूर होता है। कैल्शियम की कमी भी अस्थि तंत्र के रोगों का मूल कारण होता है अत: रोगी को कैल्शियम युक्त पदार्थो का अधिक से अधिक सेवन कराना चाहिए। रोगी को निम्न लिखित पथ्य और अपथ्य आहार पर ध्यान देना चाहिए –

  1. पथ्य आहार – दूध, दही, मठ्ठा, मख्खन, पनीर, अखरोट, बादाम, चना, चौकरयुक्त आटा, सन्तरा, मौसमी, हरी पत्तेदार सब्जियां विशेष रुप से करेला, मौसमी फल सलाद And पोषक तत्वों से युक्त पौष्टिक आहार रोगी के लिए पथ्य है। इसके साथ साथ रोगी के लिए बिना फ्रार्इ Reseller हुआ उबला आहार पथ्य है। 
  2. अपथ्य आहार – नमक, चीनी, चाय, कॉफी, सोफ्ट व कोल्ड डिंक्स जैसे पैप्सी व कोक, एल्कोहल, तला भुना चायनीज फूड, फास्ट फूड, जंक फूड, खट्टी दही, बासी, रुखा And पोषक तत्व विहीन भोजन रोगी के लिए अपथ्य है। विशेष रुप से रोगी को खट्टे And अम्लीय पदार्थों का सेवन पूर्ण रुप से त्याग देना चाहिए। 

इस प्रकार उपरोक्त पथ्य And अपथ्य आहार के According रोगी को आहार कराने से रोग में अत्यन्त सरलता, सहजता And शीघ्रतापूर्वक लाभ प्राप्त होता है।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी के लिए सावधानियां And सुझाव

  1. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को गर्दन में अधिक दर्द अथवा रोग की गंभीर अवस्था में गर्दन को अधिक से अधिक सीधा And स्थिर रखने हेतु गर्दन में बैल्ट का प्रयोग करना चाहिए। 
  2. रोग की त्रीव अवस्था में गर्दन को कम से कम गतिमान करते हुए अधिकतम समय तक गर्दन को सीधा रखकर आराम देना चाहिए। 
  3. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को कभी भी गर्दन अथवा कमर झुकाकर अधिक देर तक कार्य नही करना चाहिए। 
  4. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को सोते समय तReseller का प्रयोग पूर्ण रुप से छोड देना चाहिए।
  5. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को अपने All कार्य सही मुद्रा में करने चाहिए तथा आगे की ओर झुककर करने वाले कार्यों को अधिक समय तक नही करने चाहिए।
  6. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को टी0 वी0 अथवा कम्पयूटर का स्थान ऊँचार्इ पर रखना चाहिए। 
  7. सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस रोगी को नियमित रुप से प्रात:काल गर्दन के सुक्ष्म अभ्यास अवश्य करने चाहिए। इस प्रकार उपरोक्त सावधानियों को ध्यान में रखने से रोग जल्दी ठीक होता है।

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