सम्पर्क भाषा के Reseller में हिन्दी

भारत जैसे बहुभाषा-भाषी देश में सम्पर्क भाषा की महत्ता असंदिग्ध है। इसी के मद्देनजर ‘सम्पर्क भाषा (जनभाषा) के Reseller में हिन्दी’ शीर्षक इस अध्याय में सम्पर्क भाषा का सामान्य परिचय देने के साथ-साथ सम्पर्क भाषा के Reseller में हिन्दी के स्वReseller And राष्ट्रभाषा और सम्पर्क भाषा के अंत:सम्बन्ध पर भी विचार Reseller गया है।

सम्पर्क भाषा : परिभाषा And सामान्य परिचय 

भाषा की सामान्य परिभाषा में यह कहा जा चुका है कि ‘भाषा मनुष्य के विचार-विनिमय और भावों की अभिव्यक्ति का साधन है।’ सम्पर्क भाषा का आशय जनभाषा है। किसी क्षेत्र का सामान्य व्यक्ति प्रचलित शैली में जो भाषा बोलता है वह जनभाषा है। Second Wordों में क्षेत्र विशेष की संपर्क भाषा ही जनभाषा है। इसलिए जरूरी नहीं कि जनभाषा शुद्ध साहित्यिक Reseller वाली ही हो या वह व्याकरण के नियम से बंधी हो।

सम्पर्क भाषा या जनभाषा वह भाषा होती है जो किसी क्षेत्र, प्रदेश या देश के ऐसे लोगों के बीच पारस्परिक विचार-विनिमय के माध्यम का काम करे जो Single Second की भाषा नहीं जानते। Second Wordों में विभिन्न भाषा-भाषी वर्गों के बीच सम्पे्रषण के लिए जिस भाषा का प्रयोग Reseller जाता है, वह सम्पर्क भाषा कहलाती है। इस प्रकार ‘सम्पर्क भाषा’ की सामान्य परिभाषा होगी : ‘Single भाषा-भाषी जिस भाषा के माध्यम से किसी दूसरी भाषा के बोलने वालों के साथ सम्पर्क स्थापित कर सके, उसे सम्पर्क भाषा या जनभाषा (Link Language) कहते हैं।’

बकौल डॉ. पूरनचंद टंडन ‘सम्पर्क भाषा से तात्पर्य उस भाषा से है जो समाज के विभिन्न वर्गों या निवासियों के बीच सम्पर्क के काम आती है। इस दृष्टि से भिन्न-भिन्न बोली बोलने वाले अनेक वर्गों के बीच हिन्दी Single सम्पर्क भाषा है और अन्य कर्इ Indian Customer क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलने वालों के बीच भी सम्पर्क भाषा है।’ डॉ. महेन्द्र सिंह राणा ने सम्पर्क भाषा को इन Wordों में परिभाषित Reseller है : ‘परस्पर अबोधगम्य भाषा या भाषाओं की उपस्थिति के कारण जिस सुविधाजनक विशिष्ट भाषा के माध्यम से दो व्यक्ति, दो राज्य, कोर्इ राज्य और केन्द्र तथा दो देश सम्पर्क स्थापित कर पाते हैं, उस भाषा विशेष को सम्पर्क भाषा या सम्पर्क साधक भाषा (Contact Language or Interlink Language) कहा जा सकता है।’(-प्रयोजनमूलक हिन्दी के आधुनिक आयाम, पृ. 79) इस क्रम में डॉ. दंगल झाल्टे द्वारा प्रतिपादित परिभाषा Historyनीय है- ‘अनेक भाषाओं की उपस्थिति के कारण जिस सुविधाजनक विशिष्ट भाषा के माध्यम से व्यक्ति-व्यक्ति, राज्य-राज्य, राज्य-केन्द्र तथा देश-विदेश के बीच सम्पर्क स्थापित Reseller जाता है, उसे सम्पर्क भाषा (Contact or Inter Language) की संज्ञा दी जा सकती है।’(-प्रयोजनमूलक हिन्दी : सिद्धान्त और प्रयोग, पृ. 53)उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सम्पर्क भाषा मात्र दो या दो से अधिक भिन्न-भिन्न भाषा-भाषियों के बीच सम्पर्क का माध्यम नहीं बनती, जो Single-Second की भाषा से परिचित नहीं है, अपितु दो या दो से अधिक भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी राज्यों के बीच तथा केन्द्र और राज्यों के बीच भी सम्पर्क स्थापित करने का माध्यम बन सकती है।

सम्पर्क भाषा के Reseller में हिन्दी 

भारत Single बहुभाषी देश है और बहुभाषा-भाषी देश में सम्पर्क भाषा का विशेष महत्त्व है। अनेकता में Singleता हमारी अनुपम परम्परा रही है। वास्तव में सांस्कृतिक दृष्टि से सारा भारत सदैव Single ही रहा है। हमारे इस विशाल देश में जहाँ अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोली जाती हैं और जहाँ लोगों के रीति-रीवाजों, खान-पान, पहनावे और रहन-सहन तक में भिन्नता हो वहाँ सम्पर्क भाषा ही Single ऐसी कड़ी है जो Single छोर से Second छोर के लोगों को जोड़ने और उन्हें Single Second के समीप लाने का काम करती है। डॉ. भोलानाथ ने सम्पर्क भाषा के प्रयोग क्षेत्र को तीन स्तरों पर विभाजित Reseller है : Single तो वह भाषा जो Single राज्य (जैसे महाराष्ट्र या असम) से Second राज्य (जैसे बंगाल या असम) के राजकीय पत्र-व्यवहार में काम आए। Second वह भाषा जो केन्द्र और राज्यों के बीच पत्र-व्यवहारों का माध्यम हो। और Third वह भाषा जिसका प्रयोग Single क्षेत्र/प्रदेश का व्यक्ति Second क्षेत्र/प्रदेश के व्यक्ति से अपने निजी कामों में करें।

आजादी की लड़ार्इ लड़ते समय हमारी यह कामना थी कि स्वतंत्र राष्ट्र की अपनी Single राष्ट्रभाषा होगी जिससे देश Singleता के सूत्र में सदा के लिए Added रहेगा। महात्मा गांधी, लोकमान्य तिलक, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस आदि All महापुरुषों ने Single मत से इसका समर्थन Reseller, क्योंकि हिन्दी हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक आन्दोलनों की ही नहीं अपितु राष्ट्रीय चेतना And स्वाधीनता आन्दोलन की अभिव्यक्ति की भाषा भी रही है।

भारत में ‘हिन्दी’ बहुत First सम्पर्क भाषा के Reseller में रही है और इसीलिए यह बहुत First से ‘राष्ट्रभाषा’ कहलाती है क्योंकि हिन्दी की सार्वदेशिकता सम्पूर्ण भारत के सामाजिक स्वReseller का प्रतिफल है। भारत की विशालता के अनुReseller ही राष्ट्रभाषा विकसित हुर्इ है जिससे उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम कहीं भी होने वाले मेलों- चाहे वह प्रयाग में कुंभ हो अथवा अजमेर शरीफ की दरगाह हो या विभिन्न प्रदेशों की हमारी सांस्कृतिक Singleता के आधार स्तंभ तीर्थस्थल हों- All स्थानों पर आदान-प्रदान की भाषा के Reseller में हिन्दी का ही अधिकतर प्रयोग होता है। इस प्रकार इन सांस्कृतिक परम्पराओं से हिन्दी ही सार्वदेशिक भाषा के Reseller में लोकप्रिय है विशेषकर दक्षिण और उत्तर के सांस्कृतिक सम्बन्धों की दृढ़ Üाृंखला के Reseller में हिन्दी ही सशक्त भाषा बनीं। हिन्दी का क्षेत्र विस्तृत है।

सम्पर्क भाषा हिन्दी का आयाम, जनभाषा हिन्दी, सबसे व्यापक और लोकप्रिय है जिसका प्रसार क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर से बढ़कर Indian Customer उपमहाद्वीप तक है। शिक्षित, अर्धशिक्षित, अशिक्षित, तीनों वर्गों के लोग परस्पर बातचीत आदि के लिए और इस प्रकार मौखिक माध्यम में जनभाषा हिन्दी का व्यवहार करते हैं। भारत की लिंग्वे फ्रांका, लैंग्विज आव वाइडर कम्युनिकेशन, पैन इंडियन लैंग्विज, अन्तर प्रादेशिक भाषा, लोकभाषा, भारत-व्यापी भाषा, अखिल Indian Customer भाषा- ये नाम ‘जनभाषा’ हिन्दी के लिए प्रयुक्त होते हैं। हमारे देश की बहुभाषिकता के ढाँचे में हिन्दी की विभिन्न भौगोलिक और सामाजिक क्षेत्रों के अतिरिक्त भाषा-व्यवहार के क्षेत्रों में भी सम्पर्क सिद्धि का ऐसा प्रकार्य निष्पादित कर रही है जिसका, न केवल कोर्इ विकल्प नहीं, अपितु जो हिन्दी की विविध भूमिकाओं को समग्रता के साथ निResellerित करने में भी समर्थ है।

हिन्दी ने पिछले हजार वर्षों में विचार-विनिमय का जो उत्तरदायित्व निभाया है वह Single अनूठा उदाहरण है। कुछ लोगों की यह धारणा है कि हिन्दी First ‘राष्ट्रभाषा’ कहलाती थी, बाद में इसे ‘सम्पर्क भाषा’ कहा जाने लगा और अब इसे ‘राजभाषा’ बना देने से इसका क्षेत्र सीमित हो गया है। वस्तुत: यह उनका भ्रम है। जैसाकि First History Reseller जा चुका है कि हिन्दी सदियों से सम्पर्क भाषा और राष्ट्रभाषा Single साथ रही है और आज भी है। भारत की संविधान सभा द्वारा 14 सितम्बर, 1949 को इसे राजभाषा के Reseller में स्वीकार कर लेने से उसके प्रयोग का क्षेत्र और विस्तृत हुआ है। जैसे बंगला, तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम आदि को क्रमश: बंगाल, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल आदि की राजभाषा बनाया गया है। ऐसा होने से क्या उन भाषाओं का महत्त्व कम हो गया है ? निश्चय ही नहीं। बल्कि इससे उन All भाषाओं का उत्तरदायित्व और प्रयोग क्षेत्र First से अधिक बढ़ गया है। जहाँ First केवल परस्पर बोलचाल में काम आती थी या उसमें साहित्य की Creation होती थी, वहीं अब प्रशासनिक कार्य भी हो रहे हैं। यही स्थिति हिन्दी की भी है। इस प्रकार हिन्दी सम्पर्क और राष्ट्रभाषा तो है ही, राजभाषा बनाकर इसे अतिरिक्त सम्मान प्रदान Reseller गया है। इस प्रसंग में डॉ. सुरेश कुमार का कथन बहुत ही प्रासंगिक है : ‘हिन्दी को केवल सम्पर्क भाषा के Reseller में देखना भूल होगी। हिन्दी, आधुनिक Indian Customer भाषाओं के उद्भव काल से मध्यदेश के निवासियों के सामाजिक सम्पे्रषण तथा साहित्यिक-सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की भाषा रही है और अब भी है। भाषा-सम्पर्क की बदली हुर्इ परिस्थितियों में (जो First फ़ारसी-तुर्की -अरबी तथा बाद में मुख्य Reseller से अंग्रेजी के साथ सम्पर्क के फलस्वReseller विकसित हुर्इ) तथा स्वतंत्र Indian Customer गणराज्य में All Indian Customer भाषाओं को अपने-अपने भौगोलिक क्षेत्र में व्यावसायिक और सांस्कृतिक व्यवहार की अभिव्यक्ति के लिए प्रयोग में लाने के निर्णय के बाद, हिन्दी का सम्पर्क भाषा प्रकार्य, गुण और परिमाण की दृष्टि से इतना विकसित हो गया है कि उसके सम्बन्ध में चिन्तन तथा अनुवर्ती कार्य, Single सैद्धान्तिक और व्यावहारिक Need बन गए हैं।’ वास्तव में भाषा सम्पर्क की स्थिति ही किसी सम्पर्क भाषा के उद्भव और विकास को प्रेरित करती है या Single सुप्रतिष्ठित भाषा के सम्पर्क प्रकार्य को संपुष्ट करती है। हिन्दी के साथ दोनों स्थितियों का सम्बन्ध है। आन्तरिक स्तर पर हिन्दी अपनी बोलियों के व्यवहारकर्ताओं के बीच सम्पर्क की स्थापना करती रही है और अब भी कर रही है, तथा बाह्य स्तर पर वह अन्य Indian Customer भाषा भाषी समुदायों के मध्य Only सम्पर्क भाषा के Reseller में उभर आर्इ है जिसके अब विविध आयाम विकसित हो चुके हैं। कुल मिलाकर हिन्दी का वर्तमान गौरवपूर्ण है। उसकी भूमिका आज भी सामान्य-जन को जोड़ने में All भाषाओं की अपेक्षा सबसे अधिक कारगर है।

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